(Hindi) I Am Malala: The Girl Who Stood Up for Education and Was Shot by the Taliban

(Hindi) I Am Malala: The Girl Who Stood Up for Education and Was Shot by the Taliban

परिचय (Introduction)

मलाला पकिस्तान की वो बहादुर लड़की है जिसने लड़कियों को एजुकेशन देने की पैरवी की और तालिबान की गोलियों का शिकार हुई. इस बुक में आप उसकी स्टोरी उसी की जुबानी सुनेंगे. कट्टरपंथी सोच वाले तालिबान लड़कियों की पढ़ाई लिखाई के सख्त खिलाफ है.

उनके हिसाब से औरत सिर्फ घर की चारदिवारी में रहकर बच्चे पाले और चूल्हा चौका करे. लेकिन एक लड़की थी जिसने औरत को गुलाम बनाने वाले इस सड़ी-गली सोच के खिलाफ आवाज़ उठाई. और वो लड़की थी मलाला यूसुफ़जाई. और यही आप इस बुक में पढेंगे कि कैसे एक छोटी सी मासूम लड़की ने अपने जैसी हर लड़की के अंदर हिम्मत जगाई.

उसने सोसाइटी में औरतो के हक को लेकर जो आवाज़ उठाई है, उसकी चर्चा सारी दुनिया में हो रही है . मलाला लाखो करोडो बच्चो के लिए एक इंस्पिरेशन है, वो बहादुरी, पैशन और एक स्ट्रोंग विल पॉवर की जीती जागती मिसाल है.

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अ डॉटर इज बोर्न (A Daughter is Born)

हमारे कल्चर में जब किसी घर में लड़की पैदा होती है तो लोगो के मुंह लटक जाते है. हाँ अगर लड़का पैदा हो तो लोग राइफल से फायर करके सेलीब्रेट करते है. यहाँ लड़कियों को परदे के पीछे छुपा कर रखने का रिवाज़ है. मेरे फादर गरीब थे. उनके पास इतना पैसा नहीं था कि मेरी मदर को होस्पिटल लेकर जाते या मिडवाईफ बुलाते. जब मै पैदा होने वाली थी तो मेरी माँ की हेल्प के लिए पडोसी आये थे.

मेरे अंकल उन गिने चुने लोगो में थे जो मुझे देखने आये थे. उन्होंने मेरे पापा को कुछ पैसे भी गिफ्ट किये. वो अपने साथ फेमिली ट्री भी लेकर आये थे जिसमे मेरे खानदान के लोगो के नाम लिखे थे लेकिन उस लिस्ट में हमारी फेमिली की एक भी औरत का नाम नहीं था.

यूसुफ़जाई खानदान पाकिस्तानी कम्यूनिटी का था. हमारे यहाँ ऐसा ट्रेडीशंन और बिलीफ है कि औरत इस दुनिया में सिर्फ बच्चे पैदा करने और घर के काम करने के लिए पैदा हुयी है. लेकिन मेरे फादर की सोच डिफरेंट थी. उन्होंने पेन लिया और फेमिली ट्री में अपने नाम के नीचे एक लाइन खीची और मेरा नाम लिख दिया. “मलाला” मेरे फादर ने कहा कि मेरे पैदा होने के बाद जब उन्होंने मुझे देखा तो उन्हें मुझसे प्यार हो गया था. उन्होंने अफगानिस्तान की फेमस हीरोइन मलालाई के नाम पर मेरा नाम रखा.

1880 में ब्रिटिश और अफगानिस्तान के बीच वॉर छिड गयी थी. इंग्लैण्ड अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करना चाहता था. उस वक्त मलालाई को अपने विलेज की बाकि औरतो के साथ लड़ाई में जख्मी सोल्जेर्स की सेवा पानी के लिए जाना पड़ा. उस यंग हीरोईन ने देखा कि अफगान हार रहे है. उस लड़ाई में उसके फादर भी शामिल थे जो पूरे जी जान से लड़ रहे थे.

मलालाई उस वक्त एक टीनएजर थी लेकिन वो काफी ब्रेव थी. वो लड़ाई के मैदान में भाग गई और एक क्लिफ पर चढ़ गयी. उसने देखा कि उनके देश का झंडा नीचे गिर रहा है. मलालाई ने अपने चेहरे से सफ़ेद नकाब उतारा और झंडा ऊँचा उठा दिया. उसने सोल्जेर्स को एनकरेज करना शुरू कर दिया.

एक छोटी लड़की की ब्रेवरी ने अफगानों पर जैसे जादू कर दिया था. इसी दौरान एक गोली मलालाई को भी लग गयी थी लेकिन वो बच गयी. उसकी बहादुरी देखकर अफगान सोल्जेर्स जोश में आ गए थे, उन्होंने पूरी ताकत से ब्रिटिश का मुकाबला किया और जीते. ब्रिटिश आर्मी के लिए ये एक करारी हार थी. मेरे फादर को मलालाई की ब्रेवरी पर प्राउड था इसलिए उन्होंने मुझे ये नाम दिया. वो अक्सर मुझे मलालाई की स्टोरी सुनाते थे. हम लोग पाकिस्तान के नार्थ ईस्ट पार्ट स्वात वैली में रहते थे. हमारा गाँव मिंगोर हरे-भरे पहाडो से घिरा था जहाँ ऊँचे-ऊँचे झरने और चांदी जैसी चमकती झीले थे. मेरे लिए ये दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह है.

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ग्रोइंग अप इन स्कूल (Growing Up in a School)

मेरे फादर एजुकेशन की इम्पोर्टेंस समझते थे. उनका ड्रीम था कि वो एक स्कूल खोले. लेकिन उन्हें घर चलाने के लिय काफी हार्ड वर्क करना पड़ता था. मेरे फादर की एक भी सिस्टर स्कूल नहीं गयी थी. मेरे ग्रांड फादर ने मेरे फादर को बोला कि वो उन्हें कॉलेज भेजना अफोर्ड नहीं कर सकते. लेकिन मेरे फादर आगे पढना चाहते थे इसलिए उन्हें खुद अपनी फ़ीस वगैरह का इंतजाम करना पड़ा. वो स्टूडेंट एक्टिविस्ट थे. वो एक अच्छे स्पीकर और डिबेटर भी थे.

उन्होंने इंग्लिश में मास्टर्स की डिग्री ली और ग्रेजुएशन के बाद टीचर बन गए. फिर उन्हें एक दिन एक कॉलेज फ्रेंड मिला जो उनके साथ मिलकर स्कूल खोलने के लिए तैयार था. उन्होंने इसका नाम रखा खुशहाल स्कूल. ये स्कूल हमारे होमटाउन मिग्नोर में खोला गया था. हालाँकि इसके लिए मेरे फादर को बहुत सा पैसा उधार लेना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी सारी सेविंग उस स्कूल में इन्वेस्ट कर दी थी. उसके बाद मेरे फादर और उनके फ्रेंड के पास चाय और चीनी के लिए भी पैसे नहीं बचे थे.

शुरुवात में उनके पास सिर्फ तीन स्टूडेंट पढने आते थे. इसी बीच मेरे फादर और मदर की शादी हुई. मेरे फादर मेरी मदर के लिए बड़े डिवोटेड थे. वो अपने स्कूल के साथ-साथ अपनी फेमिली की रिसपोंसेबिलिटी भी उठा रहे थे. हमारा घर और स्कूल एक बार तूफ़ान और एक बार फ्लड का शिकार हुआ जिसमे हमे काफी नुकसान उठाना पड़ा था, उस वक्त फादर के पास मेरी माँ के शादी के बैंग्ल बेचने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं बचा था.

मेरे पैदा होने पर माँ को बड़ा डर लगा क्योंकि मै यानी उनकी फर्स्ट चाइल्ड एक बेटी थी. लेकीन मेरे फादर बहुत खुश थे. उन्होंने पाने फ्रेंड्स को बोला कि मेरी बेटी मेरे लिए लकी है. उन्हें लगता था कि मेरे आने से उनकी लाइफ में खुशहाली आई है. फिर हमारी छोटी सी फेमिली स्कूल के ही एक खाली कमरे में शिफ्ट हो गयी. उस टाइम तक स्कूल में 100 स्टूडेंट्स और पांच टीचर थे. हर स्टूडेंट मन्थली 100 रूपये फीस देता था. मेरे फादर स्कूल में कई काम करते थे. वो टीचर थे और प्रिंसिपल भी. अकाउंट्स भी वही संभालते थे.

यहाँ तक कि वो स्कूल के फर्श और बाथरूम्स की सफाई भी कर लेते थे. इतनी मुश्किलों के बाद भी खाने के लिए पूरा नहीं पड़ता था. क्योंकि फादर को पहले बाकि टीचर्स की सेलरी और स्कूल बिल्डिंग का रेंट देना होता था. लेकिन कुछ मंथ्स बाद स्कलू भी टूटने लगा मेरे फादर को एजुकेशन से बहुत प्यार था और यही पैशन मुझे भी मिला था. मेरा स्कूल ही मेरा घर था, ये सोचके मै बड़ी खुश रहती थी. मै जब तीन साल की हुई तो मुझे बड़े बच्चो की क्लास में रखा गया.

हमारे टीचर्स जो कुछ पढ़ाते थे मै बड़े धयान से सुनती. मुझे क्लास में मज़ा आता था.  मै भी खुद को टीचर समझती थी. और जब क्लास खाली होती तो अपने टीचरों की एक्टिंग करती. जब मैने रीडिंग करना सीखा तो बुक्स पढना मुझे सबसे अच्छा लगता था. मै खूब दिल लगाकर पढाई करती थी. मै खुशकिस्मत थी कि मुझे लड़की होते हुए भी पढने-लिखने का मौका मिल रहा था जो बहुत से बच्चो को नसीब नहीं होता है. क्योंकि मेरी माँ को कभी पढ़ने का चांस नहीं मिला.

जब वो छेह साल की थी नानाजी ने उनका एडमिशन करवाया था. वो अपनी क्लास में अकेली लड़की थी. लेकिन मेरी माँ अपनी क्जंस से जलती थी कि वो सारा दिन घर में रहकर खेलती है. इसलिए एक दिन मेरी माँ ने अपनी सारी किताबे बेचकर उन पैसो से टोफियाँ खरीद ली. किसी ने उनसे कुछ नहीं कहा और वो भी हमारे विलेज की बहुत से औरतो की तरह अनपढ रही गयी.

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द मुफ़्ती व्हू ट्राईड टू क्लोज़ आवर स्कूल (The Mufti Who Tried to Close Our School)

मुफ़्ती उस आदमी को बोलते है जो इस्लामिक लॉ का एक्सपर्ट होता है. वो एक इस्लामिक स्कोलर होता है. हमारा खुशाल स्कूल अच्छा चल रहा था. हमारे स्कूल में लड़के और लड़की में फर्क नहीं किया जाता था. लाइफ में पहली बार मेरी माँ ने नए कपडे खरीदे थे और हमारे गरीब पड़ोसियों को खाना दिया था. हमारे स्कूल के सामने एक अमीर आदमी रहता था जो लड़कियों की एजुकेशन के सख्त खिलाफ था. वो आदमी खुद को मुफ़्ती बोलता था.

मेरे फादर उसे देखकर कहते थे कि हर कोई जो टर्बन पहनता है मुफ़्ती नहीं होता. उस मुफ़्ती को ये बात अच्छी नहीं लगती थी कि मेरे फादर के स्कूल में विलेज की लडकियां पढने आती है. तो एक दिन मुफ़्ती ने ये बात हमारे स्कूल बिल्डिंग की लैंड लेडी को बता दी. उसने उस लेडी से मेरे फादर की बुराई करते हुए कहा कि वो कम्यूनिटी को बदनाम कर रहे है. लड़कियों को एडमिशन देकर वो हराम स्कूल चला रहे है. उसने ये भी बोला कि वो उस बिल्डिंग में स्कूल के बदले एक मदरसा खोलना चाहता है.

लेकिन हमारी लैंडलेडी ने उसकी कोई भी बात नही सुनी और उसे वहां से चले जाने को कहा. उसने मेरे फादर को भी बोला कि वो मुफ़्ती से ज़रा बच के रहे. जब मुफ़्ती की दाल नहीं गली तो वो मेरे फादर से और ज्यादा चिढ गया. उसने विलेज के कुछ इन्फ्लूएशनल और बड़े बुजुर्गो के पास जाकर कंप्लेंट कर दी. एक रात वो सब लोग हमारे घर आये. वो सात लोग थे.

मुफ़्ती ने सबसे पहले आवाज़ उठाई” मै यहाँ सारे अच्छे मुस्लिम्स की तरफ से कहने आया हूँ कि ये खुशहाल स्कूल हराम है. ये इस्लाम के खिलाफ है, इस स्कूल को तुरंत बंद कर दो”. मुफ़्ती के साथ आये बाकि लोगो ने भी कहा कि लड़कियों को परदे में रहना चाहिए, उन्हें इस तरह खुले आम नहीं घूमना चाहिए. मुफ़्ती आर्ग्यू कर रहा था कि यहाँ तक कि कुरान में भी किसी औरत का नाम नहीं आता है. लेकिन मेरे फादर नहीं माने. वो अपना स्कूल बंद नहीं करना चाहते थे.

उन्होंने कहा कि मरियम, इसा या जीसस की माँ का नाम कई बार कुरान में आता है. वो एक अच्छी लेडी थी और एक बाकि औरतो के लिए एक्जाम्पल भी मानी जाती है. लेकिन मुफ़्ती मानने को तैयार नहीं था. उसने कहा कि हमारे स्कूल के पास से कई आदमी गुजरते है और लड़कियों को स्कूल जाते हुए देखते है. इसलिए ये लडकियों के लिए अच्छी बात नहीं है. तो मेरे फादर ने एक सोल्यूशन दिया.

उन्होंने गाँव के एल्डर्स से खुशहाल स्कूल के बैक साइड में एक गेट बनवाने के लिए बोला जहाँ से लडकियां स्कूल के अंदर आ सकती है. एल्डर्स को ये प्रपोजल ठीक लगा लेकिन मुफ़्ती अभी भी नाराज़ था. सब लोग चुपचाप वापस चले गए. लेकिन मुफ़्ती को ये नहीं मालूम था कि उसकी अपनी भांजी हमारे स्कूल की स्टूडेंट थी.

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