(hindi) Hope and Help for Your Nerves

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इंट्रोडक्शन

क्या आप दूसरी चीज़ों के साथ-साथ अपने मेंटल हेल्थ का भी ख़याल रखते हैं? क्या आपको लगता है कि इस एरिया में आपको थोड़ी मदद की ज़रुरत है या आप भी इस बारे में बात करने में शर्मिंदा महसूस करते हैं? हालांकि पहले की तुलना में आज मेंटल हेल्थ को लेकर खुलकर डिस्कशन होने लगी है फ़िर भी कुछ लोग मदद लेने में हिचकिचाते हैं.

ये बुक आपको अपने मेंटल हेल्थ के बारे में खुलकर सोचने के लिए इंस्पायर करेगी. अगर आपको लगता है कि आपकी मेंटल हेल्थ ठीक नहीं है तो शर्मिंदा महसूस ना करें क्योंकि जितनी जल्दी आप मदद लेंगे उतनी जल्दी आप बेहतर हो पाएँगे.

इस बुक में आप नर्वस सिस्टम से जुड़ी हुई बीमारियों के बारे में जानेंगे. Nerves से जुड़ी इन बीमारियों को नर्वस इलनेस कहते हैं. आप जानेंगे कि इसके symptom कैसे होते हैं और इससे कैसे उभरा जा सकता है. अगर आपको नर्वस इलनेस से जुड़ी हुई कोई बीमारी ना भी हो तब भी इसमें बताए गए टिप्स आपका मूड बेहतर करने में मदद करेंगे. तो आइए ख़ुद को पहले से बेहतर करने का सफ़र शुरू करते हैं.

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The Power Within You

हमारे मन में हज़ारों थॉट लगातार आते जाते रहते हैं लेकिन कई बार ये थॉट इतने भयानक और बुरे होते हैं कि हमारे रोंगटे तक खड़े हो जाते हैं. हो सकता है कि ये एक्सपीरियंस करने के बाद आपको लगने लगे कि आप दूसरों से अलग हैं. हो सकता है कि इसे एक्सपीरियंस करने के बाद शायद आपने ख़ुद को दिमागी तौर पर बीमार भी समझ लिया हो. लेकिन इस बुक की ऑथर डॉ. क्लेयर का मानना है कि इस कंडीशन से कोई भी ठीक हो सकता है. अगर आप वैसे बनना चाहते हैं जैसे आप पहले थे तो ये बिल्कुल मुमकिन है.

डॉ. क्लेयर ने इस बुक को लिखने का मन तब बनाया जब उन्होंने देखा कि नर्वस बीमारी से जूझने वाले लोग कितना मायूस और निराश महसूस करते हैं. ऐसे लोगों को लगने लगता है कि वो कभी ठीक नहीं हो पाएँगे और उनकी जिंदगी यूहीं मायूसी और अँधेरे में ख़त्म हो जाएगी. लेकिन डॉ. क्लेयर ने उनकी मदद करने की ठानी. वो उन्हें बताना चाहती थीं कि इसका हल उनके अंदर ही है. उन लोगों को बस किसी के गाइडेंस की ज़रुरत है और कुछ नहीं.

आपके अंदर कितनी पॉवर भरी हुई है आप जानकर दंग रह जाएँगे. अपनी जिंदगी को पूरी तरह बदलने के लिए आप इस पॉवर का इस्तेमाल कर सकते हैं. अब आप कहेंगे ये तो नामुमकिन है, लेकिन नहीं, ये बिल्कुल मुमकिन है. जब तक आपका ख़ुद पर भरोसा नहीं होगा तब तक आप अपनी जिंदगी नहीं बदल सकते.

डॉ. क्लेयर ने इस बुक को उन लोगों को dedicate नहीं किया है जो ख़ुद पर कांफिडेंस है  बल्कि उन्होंने ये ख़ास उन लोगों के लिए बनाया है जो ख़ुद को किसी लायक नहीं समझते. ये उन लोगों के लिए बनाया गया है जिनमें सेल्फ़ कांफिडेंस की कमी है. आपके अंदर बहुत पॉवर है बस आपको एक ऐसा इंसान चाहिए जो इसे देखने में आपकी मदद कर सके.

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How Our Nervous System Works

ये समझने के लिए कि कुछ लोग दूसरों से अलग क्यों होते हैं आइए पहले ह्यूमन नर्वस सिस्टम को समझते हैं. नर्वस सिस्टम के दो main हिस्से होते हैं : पहला, voluntary nerves और दूसरा involuntary nerves.
बिल्कुल अपने नाम की तरह, volutary nerves वो मूवमेंट है जिन्हें आप कंट्रोल कर सकते हैं जैसे अपनी बॉडी के अलग-अलग हिस्सों को मूव करना जैसे अपने पैर की उँगलियों को हिलाना या अपना सिर खुजलाना. शरीर के इन हिस्सों की नसें आपकी रीढ़ की हड्डी यानी स्पाइनल कॉर्ड और ब्रेन से जुड़ी होती हैं.

Involuntary nerves वो मूवमेंट है जो अपने आप होती हैं जैसे कि मान लीजिए आप कहीं जा रहे हैं और रास्ते में अचानक आपके सामने एक कुत्ता आ जाता है जो बेहद गुस्से में है. उसे देखते ही आपके दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है, आपके हथेलियों पर पसीना आने लगता है. कई बार ये डर इतना ज़्यादा होता है कि आपको लगता है कि आपको उल्टी हो जाएगी.

इन दोनों nerves में सबसे बड़ा फ़र्क ये है कि involuntary nerves हमारे मूड के हिसाब से respond करती है. आप सोचते रहते हैं कि आपकी हार्टबीट वापस नार्मल हो जाए लेकिन ऐसा नहीं होता. अगर आप नर्वस या घबराए हुए हैं तो आप अपनी बॉडी को नर्वस होने से रोकने के लिए ऑर्डर नहीं दे पाएँगे.

Involuntary nerves भी दो तरह के होते हैं : sympathetic nerves और parasympathetic nerves. आप जिस मूड में भी हैं, sympathetic nerves उसके साथ “हमदर्दी” जताती है. अगर  आप किसी तरह का स्ट्रेस महसूस करते हैं, तो यह आपके बॉडी  को अपनी सुरक्षा करने के लिए तैयार करेगा जैसे जब भी आप किसी ऐसी सिचुएशन में होते हैं जब आपको लगता है कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है तो आपकी बॉडी अलर्ट हो जाती है.

दूसरी ओर, parasympathetic nerves हमारी बॉडी में endocrine glands को सुनती हैं. Endocrine glands इस बात का ध्यान रखते हैं कि हमारी बॉडी सिचुएशन के हिसाब से रियेक्ट करे. जैसे जब किसी छोटे जानवर के सामने कोई खूंखार जानवर आ जाता है तो वो डर के मारे हक्का-बक्का हो जाता है, उस वक़्त sympathetic nerves एक्टिव हो जाते हैं. उस जानवर की आँखों की पुतलियों बड़ी होने लगती हैं और दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है. Endocrine glands के कारण parasympathetic nerves उस जानवर को या तो उस खूंखार जानवर से लड़ने के लिए या वहाँ से भाग जाने के लिए तैयार करती है.

आइए अब समझें कि ये दोनों nerves इंसान की बॉडी में किस तरह काम करते हैं. इमेजिन कीजिए कि आप एक सुनसान अँधेरी गली से जा रहे हैं. जब आप सामने से अचानक एक आदमी को अपनी ओर आते हुए देखते हैं तो डर आपको अपनी गिरफ़्त में ले लेता है. आपके ब्रेन को सिग्नल मिलता है कि आप डरे हुए हैं. Sympathetic nerves adrenaline का इस्तेमाल कर के बॉडी के अलग-अलग organ को अलर्ट करते हैं.

Adrenaline वो केमिकल या हॉर्मोन है जिसकी वजह से आपको पसीना आता है. इसकी वजह से आपका दिल ज़ोरों से धड़कने लगता है. जो स्ट्रेस आप महसूस कर रहे हैं उसकी वजह से adrenaline आपके organs को सुपर एक्टिव कर देता है. Parasympathetic nerves हमारे sympathetic nerves को लगातार adrenaline रिलीज़ करने से रोकते हैं. जब हम किसी stressful सिचुएशन में होते सिर्फ़ तब parasympathetic nerves हमारे sympathetic nerves को सिचुएशन कंट्रोल करने देते हैं.

स्ट्रेस का मतलब यहाँ कुछ भी हो सकता है जैसे गुस्सा आना, बहुत ज़्यादा ख़ुश होना, excited होना या शर्मिंदगी महसूस होना. तो अब आप समझ ही गए होंगे कि sympathetic nerves असल में क्या करते हैं, उसे हमदर्दी का नाम देना तो गलत होगा. इस confusion को दूर करने के लिए डॉ. क्लेयर sympathetic nerves को adrenaline रिलीज़ करने वाले  nerves कहती हैं.

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What is Nervous Breakdown?

नर्वस इलनेस से जुड़ी बीमारी हर इंसान के लिए अलग होती है. हाँ, इसके symptom same हो सकते हैं लेकिन इसका असर कितना गहरा है ये सब के लिए अलग-अलग होता है. कई लोगों में ये एक लेवल तक आकर रुक जाती है तो कईयों ने नर्वस ब्रेकडाउन तक  एक्सपीरियंस किया है.

लेकिन नर्वस ब्रेकडाउन असल में होता क्या है? जैसा कि हमने पहले समझा कि जब हम स्ट्रेस में होते हैं या डरे हुए होते हैं तो हमारी बॉडी रियेक्ट करती है. Sympathetic nerves हमारे सेंस organs और बाकी organs को उकसाते हैं या एक्टिव कर देते हैं ताकि वो हाई अलर्ट पर बने रहे. लेकिन जब वो ख़तरा या डर का कारण टल जाता है तो parasympathetic nerves कंट्रोल ले लेते हैं. उसके बाद हम शांत महसूस करते हैं.

जब कोई इंसान लगातार डर महसूस करता है तो उसे बेचैन करने वाली सेंसेशन या एहसास का एक पैटर्न बनने लगता है जिसे नर्वस ब्रेकडाउन कहते हैं. आसान शब्दों में, इंसान हमेशा बहुत डरा हुआ, परेशान और टेंशन में रहता है और इसके बाद adrenaline का हाई लेवल रिलीज़ होने लगता है. इसमें बॉडी के नार्मल होने के बजाय इंसान को बार-बार डर लगता है. ये एक ऐसा साईकल है जो कभी ख़त्म नहीं होता और अंत में इंसान का नर्वस ब्रेकडाउन हो जाता है.

डॉ. क्लेयर ने इंसान के एक्सपीरियंस के बेसिस पर नर्वस ब्रेकडाउन को अलग-अलग केटेगरी में डिवाइड किया है. पहली केटेगरी में फिजिकल symptom और सेंसेशन के बारे में बताया गया है. इसमें इंसान को जो घबराहट या nervousness महसूस होती है वो उन पर ज़्यादा हावी नहीं होती, उन्हें बस थोड़ी दिक्कत और discomfort महसूस होती है. इस तरह की नर्वस बीमारी को एंग्जायटी स्टेट कहा जाता है.

दूसरी केटेगरी ज़्यादा ख़तरनाक है. इसमें इंसान एंग्जायटी स्टेट वाले symptom और सेंसेशन को महसूस करता है लेकिन इसके साथ-साथ कई और बेचैन करने वाले फैक्टर जुड़ जाते हैं. अक्सर इसमें इंसान अपना कांफिडेंस खो देता है और डिप्रेस्ड रहने लगता है.

डॉ. क्लेयर के अनुसार, चिंता और डिप्रेशन नर्वस ब्रेकडाउन के सबसे कॉमन टाइप हैं.

The Commonest, Simplest Form of Nervous Illness

जिन लोगों को nervousness या घबराहट की बीमारी होती है उनमें कुछ इस तरह के symptom हो सकते हैं – उल्टी होना, सांस लेने में दिक्कत होना, डायरिया, कंकंपी होना या दिल की धड़कन तेज़ हो जाना.
अब जो लोग इन symptoms को एक्सपीरियंस कर रहे हैं वो सोचने लगेंगे कि उनके साथ कुछ गड़बड़ है. वो परेशान हो जाएँगे, स्ट्रेस में आ जाएँगे ख़ासकर जब ये लोग नहीं जानते कि इन symptoms की असली वजह क्या है.
किसी इंसान को घबराहट की ये बीमारी क्यों होती है इसके तीन पॉसिबल कारण हैं : sensitization यानी किसी सिचुएशन की ओर सेंसिटिव या अलर्ट होना, हैरानी और डर.

Sensitization का मतलब है जब आपकी बॉडी स्ट्रेस के सिचुएशन में बहुत जल्दी रियेक्ट करती है. ऐसा होना ठीक नहीं है क्योंकि इस तरह की मेंटल स्टेट में छोटी से छोटी stressful चीज़ भी sympathetic nerves को ट्रिगर कर देगी. इसका एक example है, जब ऑफिस में आपका कोई दिन बहुत बुरा जाता है. आमतौर पर घर लौटते वक़्त अगर बारिश होती तो आपको चिडचिडाहट नहीं होती लेकिन क्योंकि अपका दिन ख़राब बीता था इसलिए बारिश भी आपको परेशान कर देती है. आप उसे पर्सनली लेने लगते हैं जैसे आपके साथ सब बुरा ही बुरा होता है या पूरी दुनिया ही आपके ख़िलाफ़ है.

गौर से समझा जाए तो नर्वस इलनेस हाइपर सेंसिटिविटी है जो बहुत ज़्यादा हैरानी या डर के कारण होता है. टेंशन और स्ट्रेस जैसी आम फीलिंग भी sensitization के कारण कई गुना ज़्यादा बड़ी हो जाती है. जब इंसान इतना ज़्यादा हाइपर सेंसिटिव हो जाता है तो कोई भी घटना उसे बेचैन कर सकती है.

नर्वस इलनेस की शुरुआत लंबे समय तक रहने वाले स्ट्रेस, लगभग हर चीज़ से डर लगना या एक चिंतित मन के कारण हो सकता है. लोग इन symptoms को इसलिए फील करते हैं क्योंकि उनके sympathetic nerves एक्टिव हो जाते हैं. आमतौर पर कई लोगों द्वारा एक्सपीरियंस किया गया पहला symptom तेज़ हार्टबीट होता है.

दिल की धड़कन तेज़ होने के साथ-साथ कई और symptom भी उभरने लगते हैं. कुछ लोगों को ऐसा भी लग सकता है कि वो मर रहे हैं क्योंकि उनका दिल इतनी तेज़ी से धड़कता है. ये अटैक अंत में कम हो जाता है और हो सकता है कि ये लंबे समय तक वापस ना आए लेकिन इंसान इससे डरना शुरू कर देता है. अब वो हमेशा टेंशन और स्ट्रेस में रहने लगता है क्योंकि वो उस एहसास या सेंसेशन को दोबारा महसूस नहीं करना चाहता. वो इस बात को लेकर इतना टेंशन में होता है कि उसकी बॉडी में हर वक़्त adrenaline रिलीज़ होता रहता है. ये डर सनक का रूप ले लेता है क्योंकि ऐसा इंसान बार-बार अपना पल्स ये देखने के लिए चेक करता रहता है कि वो नार्मल चल रहा है या नहीं. वो अब डर-adrenaline-डर के साईकल में बुरी तरह फंस जाता है.

ये डर इंसान को बहुत कमज़ोर बना देता है. अब इस घबराहट और स्ट्रेस से छुटकारा पाने के लिए आदमी डॉक्टर के पास जाता है. लेकिन ऐसा देखा गया है कि इस बीमारी से जूझने वाले ज़्यादातर लोग एक डॉक्टर से मिलकर संतुष्ट नहीं होते. वो कई डॉक्टरों के पास सलाह लेने जाते हैं.

आपके मन में सवाल आ सकता है कि वो ख़ुद इससे बाहर आने की कोशिश क्यों नहीं करते? लेकिन ऐसे पेशेंट वही तो कर रहे होते हैं. डर और टेंशन की फीलिंग बहुत मज़बूत और भयानक होती है. ज़रा सोचिए कि हम ख़ुद को एक ऐसे अटैक का सामना करने के लिए कैसे तैयार कर सकते हैं जिसका अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता?

नर्वस ब्रेकडाउन को कोई भी चीज़ ट्रिगर कर सकती है जैसे पर्सनल प्रॉब्लम, कोई दुःख या गिल्ट की भावना. किसी अपने को खो देने से जो दर्द महसूस होता है वो जल्द ही इस डर में बदल जाता है कि उस इंसान के बिना आपकी जिंदगी कितनी अधूरी हो जाएगी. अपने पार्टनर को ख़ुश या satisfy ना कर पाने का गिल्ट जल्द ही इस डर में बदल जाता है कि कहीं वो आपको छोड़कर ना चले जाएं. डर नर्वस इलनेस का सबसे कॉमन रूप है लेकिन चिंता ना करें डर का इलाज किया जा सकता है. भरोसा रखें कि आप बहुत जल्द अपने मन की शांति पा लेंगे.

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