(hindi) High Output Management
इंट्रोडक्शन
हर रोज़ ना जाने कितनी ही नई कंपनी शुरू होती है पर उनमें से बहुत कम ऐसी होती है जो लंबे वक्त तक मार्केट में टिक पाती है. कुछ कंपनीज़ ग्लोबल लेवल तक की सक्सेस अचीव करती है और कुछ का बुरी तरह दिवाला निकलता है.
इस किताब में हम कुछ ऐसे ट्रिक्स और फ़ॉर्मूलाज़ सिखिंगे जिससे कभी अगर हम अपनी खुद की कंपनी स्टार्ट करना चाहे तो उसे एक हाई परफोर्मिंग कंपनी बना सके और जो टॉप लेवल की सक्सेस अचीव कर सके. सबसे पहले हमें ये सीखना होगा कि प्रोडक्शन के बेसिक रूल्स क्या हैं और कैसे हम कम कॉस्ट वाली हाई क्वालिटी प्रोडक्ट बनाकर मार्केट में launch कर सकते है.
ये याद रखिये कि कस्टमर्स बेवकूफ नहीं है बल्कि काफी स्मार्ट होते है, अगर आप उनके साथ कोई ट्रिक खेलने की कोशिश करेंगे तो उन्हें तुरंत पता चल जाएगा. तो इसलिए आपको प्रोडक्शन गेम का मास्टर बनना पड़ेगा और अपने कॉम्पटीटर्स से हर हाल में आगे निकलना होगा.
दूसरी बात: आपको ये सीखना है कि अपने एक्श्न कैसे प्लान करने है. आपको ये सीखना होगा कि कैसे मार्केट स्टडी करके और अपने करंट स्टेट के हिसाब से चलते हुए आपको एक गैप ढूंढ निकालना है जो आपको इक्वेशन के दोनों किनारे मिलाने में हेल्प कर सके.
तीसरी बात: इस किताब से हमें सिखाती है कि हम डिफरेंट टाइप के यूनिट्स और ओर्गेनाइजेशन बना सकते हैं और क्योंकि ये किताब आपको सक्सेसफुल होने के तरीके सिखाती है तो ये आपको एक ऐसी ओर्गेनाईजेशन क्रिएट करने में हेल्प करेगी जो दोनों यूनिट टाइप के साथ चल सकती है. इस तरह की कंपनी को हम हाइब्रिड (hybrid) ऑर्गनाईजेशन भी बोलते है.
इसके अलावा आप सीखोगे कि कैसे एक ग्रेट मैनेजर बना जाए जो अपने टास्क सक्सेसफूली हैंडल कर सके. आप सीखोगे कि अपनी टीम को रिव्यू करना क्यों जरूरी होता है और साथ ही उन्हें जज करना भी उतनी ही जरूरी है ताकि हमें पता चल सके कि हम टीम को रीवार्ड देना है और कब उन्हें वार्निंग देनी है.
फाइनली, ये किताब हमें सिखाती है कि अपनी टीम को ट्रेन कैसे करना है. आपकी टीम में सिर्फ नए मेंबर्स को ही नहीं बल्कि पुराने मेंबर्स को भी लगातार इम्प्रूवमेंट करने की जरूरत पडती है. इस किताब से अपने टीचिंग मटेरियल्स क्रिएट तो सीखोगे ही साथ ही ये भी सीखोगे कि कैसे आप अपनी कंपनी के लिए और भी ज्यादा वैल्युएबल बन सकते हो.
ये किताब आपके लिए एक बेहद वैल्युएबल बिजनेस रीसोर्स साबित होगी. आप इसमें कई सारी वैल्युएबल स्किल्स सीखोगे जो आपको बिजनेस में काफी हेल्प करेगी और इन लेसंस से सीख कर आपका बिजनेस पहले से कई गुना ज्यादा ग्रो करेगा.
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The Basics of Production: Delivering a Breakfast
जब आप प्रोडक्शन वर्ड सुनते है तो आपके माइंड में जरूर बड़ी-बड़ी कंपनी आती होगी. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है क्योंकि एक सिंपल और छोटा सा ऑपरेशन भी सेम प्रिंसिपल ऑफ़ प्रोडक्शन फॉलो करती है जो बड़ी-बड़ी कंपनी करती है.
प्रोडक्शन का सबसे इम्पोर्टेन्ट प्रिंसिपल है टाइम ऑफसेट. ये तब होता है जब मैनेजर कम कॉस्ट में भी बेस्ट क्वालिटी प्रोडक्ट बनाने की कोशिश करता है. हर ऑपरेशन को प्रोडक्शन का प्रोसेस, असेंबली और टेस्ट फॉलो करना चाहिए.
जैसे कि एक्जाम्पल के लिए मान लो आप एक वेटर की जॉब करते हो. और आपका काम है एक फिक्स टाइम के अंदर सिंपल ब्रेकफ़ास्ट बनाकर तैयार करना. जब रेस्टोरेंट में कस्टमर्स आकर टेबल पर बैठता है तो आपके पास एक टाइम स्पान होता है, यानी आपके पास तीन मिनट होते है.
आपके ब्रेकफ़ास्ट का मेन्यू होना चाहिए: हॉट बटर टोस्ट, तीन मिनट तक उबाले गए सॉफ्ट बॉयल्ड egg और एक कप गर्मा-गर्म कॉफ़ी. अब आपको स्मार्ट और फ़ास्ट होना पड़ेगा ताकि आप ये तीनो आइटम सेम टाइम में तैयार कर सके जिससे कि आपके कस्टमर की टेबल तक ये तीनो चीज़े तीन मिनट में पहुंचे.
ये टास्क सुनने में ईजी लग सकता है पर इस तरह का ब्रेकफ़ास्ट बनाने में और किसी भी कंपनी या फैक्टरी के प्रोडक्शन सिस्टम में कोई खास फर्क नहीं है. आपका जॉब प्रोडक्ट डिलीवर करना है जोकि एक तीन मिनट में तैयार होने वाला क्वालिटी ब्रेकफास्ट है जो कम से कम रेट में सही टाइम पर आपके कस्टमर की भूख मिटाता है.
यही वजह है कि कस्टमर आपके रेस्टोरेंट में आते हैं क्योंकि आप उन्हें ताज़ा और स्वादिष्ट नाश्ता कम कीमत पर प्रोवाइड कराते हैं.
अपने कस्टमर्स की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए आपके पास एक ऐसी किचन भी होनी जरूरी है जहाँ खाने बनाने का सारा सामान मौजूद हो. या तो आपके पास खूब सारे इक्विपमेंट होने चाहिए या फिर बहुत सारे वेटर. या फिर आपके पास रेडी मेड ब्रेकफास्ट की एक बड़ी इन्वेंट्री हो, यानी हर हाल में आपको इस काम के लिए अच्छा-खासा पैसा खर्च करना पड़ेगा जोकि एक स्मार्ट डिसीजन नहीं माना जायेगा वो भी तब जब आप प्रॉफिट कमाने के लिए बिजनेस कर रहे हो.
प्रैक्टिकल होने का मतलब है कि आपको कम लागत में और सही टाइम पर कस्टमर्स तक फ्रेश और बढ़िया ब्रेकफ़ास्ट डिलीवर करने के इनोवेटिव तरीके सोचने होंगे. आपको अपने खर्चे कम करने होंगे ताकि आप एक कॉम्पटीटिव रेट पर ज्यादा से ज्यादा कस्टमर्स को लुभा सके.
तो इसका बेस्ट सोल्यूशन होगा प्रोडक्शन फ्लो का ध्यान रखना, आपको देखना होगा कि आपके ब्रेकफ़ास्ट मेन्यू में कौन सी डिश है जो सबसे इम्पोर्टेंट है और जिसे बनाने में सबसे ज्यादा टाइम लगता है. कॉफ़ी एक ऐसा आइटम है हमेशा गर्म और रेडी रहती है, बस आपको कप में डालनी होती है.
टोस्ट भी बनाने में बहुत ईजी है. अब आता है ब्रेकफ़ास्ट का मेन पार्ट जो है सॉफ्ट बॉयल्ड egg . अंडो की क्वालिटी और फ्रेशनेस काफी मैटर करती है. अगर आप अंडे ज़्यादा बॉयल्ड या ठंडे सर्व करोगे तो कस्टमर शिकायत करेंगे, तो ज़ाहिर है कि आप अपनी रेपुटेशन खराब नहीं करना चाहोगे.
अब क्योंकि अंडे उबालने में सबसे ज्यादा टाइम लगता है तो इसे तैयार करना आपके प्रोडक्शन प्रोसेस का सबसे फर्स्ट स्टेप होना चाहिए. तो ब्रेकफ़ास्ट की शुरुवात अंडे उबालने से कीजिये, फिर अगली डिश तैयार कीजिये जो अंडे से थोडा कम टाइम लेती है यानी कि टोस्ट क्योंकि कॉफ़ी तो तुरंत रेडी हो जाती है और काफी देर तक गर्म भी रहती है.
जब तक अंडे बॉयल होंगे तब तक आप टोस्ट को गर्म करके उनमे बटर लगा कर तैयार कर सकते है. और लास्ट में आपको कॉफ़ी कपों में उड़ेलनी है. जब तक टोस्ट और कॉफ़ी रेडी होगी तब तक गर्मा-गर्म अंडे भी सर्व करने के लिए तैयार हो जायेंगे. तो इस तरह आप कम खर्चे में एक बेस्ट क्वालिटी ब्रेकफ़ास्ट बनाकर बेच सकते है, और इसी को हम प्रोडक्शन टाइम ऑफसेट्स बोलते है.
इस एक्जाम्पल में प्रोडक्शन का प्रोसेस है अंडे उबालना और टोस्ट तैयार करना. और असेंबली का मतलब है तीनो आइटम्स एक साथ प्लेट में डालकर सर्व करना. और टेस्ट में हम चेक करते है कि कॉफ़ी गर्म है या नहीं या फिर अंडे ठीक से उबले है या नहीं .
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Planning: Today’s Actions for Tomorrow’s Output
प्लानिंग वो चीज़ है जो हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी में शामिल रहती है. प्लानिंग करना या चीजों को ऑर्गनाइज़ करना सिर्फ मैनेजर का काम नहीं है.
प्लानिंग को समझने के लिए आपको अपने प्रोडक्शन प्रिंसिपल्स को ध्यान में रखना होगा क्योंकि प्लानिंग का मतलब ही है कि हमारे फ्यूचर एक्श्न हमारे हिसाब से चले यानी सब कुछ हमारे कण्ट्रोल में रहे. अगर आप चाहते है कि सब कुछ आपकी प्लानिंग के हिसाब से चले तो आपको तीन बातो पर फोकस करना होगा.
सबसे पहले अपने प्रोडक्ट के लिए आपको मार्केट ढूंढनी है या फिर कह सकते है कि क्रिएट करनी है. अगर कोई भी आपका प्रोडक्ट खरीदने को तैयार नहीं है तो फिर इतनी मेहनत करने की या प्लानिंग करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. दूसरी बात, आपको अपनी मौजूदा सिचुएशन और काबिलियत को देखकर चलना पड़ेगा. खुद से पूछिए कि आप अभी के हालात में किस टाइप का प्रोडक्ट हैंडल कर सकते हो.
तीसरी बात, आपको स्टेप वन और स्टेप टू के बीच एक गैप ढूंढना है, ये गैप आपको भरना होगा और आप ये अपने प्लान में नए टास्क add करके कर सकते हो या अपने करंट प्लान में थोड़ा बदलाव करके कर सकते हो, इससे आपको अपनी मार्केट के लिए एक सही प्रोडक्ट बनाने में हेल्प मिलेगी.
एक बार अगर आपने डिसाइड कर लिए कि आपको क्या करना है, अगला स्टेप आता है: अपने प्लान को टू टाइम एंगल से देखो यानी अभी के हिसाब से और फ्यूचर के हिसाब से. अपने कस्टमर्स की सिर्फ प्रेजेंट डिमांड मत देखो बल्कि उनकी फ्यूचर डिमांड भी माइंड में लेकर चलो. अगर ये स्ट्रेटेज़ी अप्लाई करोगे तो आप अपने कॉम्पटीटर्स को पीछे छोड़ते हुए ऐसा प्रोडक्ट्स बना सकते हो जो आपके कस्टमर्स की डिमांड आज भी पूरी करेगा और फ्यूचर में भी.
चलिए इसे समझने के लिए एक एक्जाम्पल लेते है. सिंडी एक कंपनी में मिडल मैनेजर और मैं न्यूफेक्चरिंग प्रोसेस इंजीनियर है. उसका काम है अपनी कंपनी के प्लांट में बनने वाले माइक्रोचिप्स की क्वालिटी को मेंटेन रखना और उनमे इम्प्रूवाईजेशन लाना.
सिंडी का काम है अपनी कंपनी की दो चीजों पर खास ध्यान देना “ओब्जेक्ट और इन्फ्लुएंस”. ऑब्जेक्ट है न्यू टूल्स और प्रोसेस जो उसे टेस्ट करने पड़ते है और इन्फ्लुएंस है लोगो का ओपिनियन जो उसकी प्लानिंग और डिसीजन मेकिंग में काफी इम्पोर्टेंट रोल अदा करता है.
जैसे कि उसकी कंपनी का डेवलपमेंट इंजीनियर ये बोलकर सिंडी की जॉब में दखल दे सकता है कि वो कोई भी डिसीजन लेने से पहले न्यू प्रोसेस पर ज्यादा एक्सपेरिमेंट ना किया करे. वही दूसरी तरफ प्रोडक्शन मैनेजर चाहता है कि सिंडी न्यू प्रोसेसेस पर ज्यादा से ज्यादा एक्सपेरिमेंट करे.
बाकि टीम मैनेजर्स भी सिंडी की डिसीजन मेकिंग को अपनी तरह से इन्फ्लुएंस करने की कोशिश करते रहते है. जैसे कि प्रोडक्शन मैनेजर को प्रोडक्ट्स बनाने की जल्दी रहती है ताकि नए प्रोडक्ट्स जल्द से जल्द मार्केट में उतारे जा सके.
इन सारे इन्फ्लुएंस की वजह से सिंडी एक काउंसलर की तरह काम करती है जिसका काम है इन सारी अलग-अलग डिमांड्स के बीच कोआर्डिनेट करके चलना. उसका एन्वायरमेंट खुद मार्केट में नहीं है बल्कि उसके टीम मैनेजर्स का है. वो सिर्फ प्रोसेस और टूल्स क्रिएट करने के लिए काम करती है जो इन इन्फ्लुएंसर्स को खुश रखता है. यही उसके असली कस्टमर हैं .
फिर सिंडी हर टीम की परफोर्मेंस एनाईलाइज करके उसे अपने प्लान्स से कम्प्येर करके देखती है. जहाँ उसे कोई प्रोब्लम नजर आती है, तो वो उसे या तो चेंज करती है या इम्र्पूव कर देती है. अगर कोई टीम कम्प्लीट रिपोर्ट डिलीवर करने में हमेशा लेट होती है तो सिंडी की जॉब है उस प्रोब्लम के साथ डील करना और बैटर आउटकम के लिए प्लानिंग करना.
सिंडी के प्लान हमेशा एक ही गोल पर फोकस करते है और वो है फ्यूचर आउटकम के बारे में सोचना और ऐसे प्लान्स बनाना जिन पर अभी काम करके उस गोल को अचीव किया जा सके.
तो ये प्लानिंग करने का सही तरीका. अगर आपके ऊपर भी अपनी टीम के लिए प्लान बनाने की जिम्मेदारी है तो आपको भी अपने एनवायरमेंट और डिमांड ध्यान में रखने होंगे. ये चेक करो कि आप अभी और फ्यूचर में क्या अचीव करना चाहते हो. फिर आप उसी हिसाब से दोनों गोल्स अचीव् करने के लिए प्लानिंग कर सकते हो.