(Hindi) HARD DRIVE Bill Gates and the Making of the Microsoft Empire

(Hindi) HARD DRIVE Bill Gates and the Making of the Microsoft Empire

इंट्रोडक्शन (Introduction)

जब भी हम बिल गेट्स का नाम सुनते हैं तो हमारे मन में माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर, एक बिल्यनेर और एक परोपकारी इंसान का ख़यातल आता है. उन्होंने कैसे और कहाँ से  शुरुआत की? उनका बैकग्राउंड क्या है? वो कौन सी क्वालिटीज़ हैं जिनकी वजह से बिल गेट्स इतने सक्सेसफुल हुए?  उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट कंपनी की शुरुआत कैसे की? इस बुक में आप इन सभी बातों और इससे भी ज्यादा के बारे में जानेंगे.

बिल गेट्स की जितनी भी तारीफ की जाए वो कम ही होगी, वो सच में इस प्रशंसा के हकदार हैं. पैसा, नाम और सक्सेस से ज्यादा बिल एक स्ट्रोंग विल पॉवर और पर्सनालिटी वाले इंसान हैं.उन्हें हमेशा से साफ़ साफ़ पता था कि उन्हें क्या चाहिए और अपनी मंजिल को पाने  के लिए उन्होंने अपना पूरा समय और एनर्जी उसमें लगा दिया था.

दुनिया की सबसे बड़ी पर्सनल कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कंपनी बनाने के बाद उन्होंने लोगों की मदद और सेवा के लिए दुनिया की सबसे बड़ी प्राइवेट चैरिटी  इंस्टिट्यूशन भी बनाई. तब से लेकर आज तक बिल गेट्स एक रेवोलुशन लाने में और लोगों के जीवन में सुधार करने के मिशन में लगे हुए हैं.

द अर्ली इयर्स (The Early Years)
बिल गेट्स का जन्म एक बहुत अमीर घराने में हुआ था. उनके दोनों पेरेंट्स हाई सोशल बैकग्राउंड से थे. उनके पिता लॉयर थे और माँ समाज सेवा का काम किया करती थी. लेकिन बिल गेट्स को सफलता उनके पैसे या सोसाइटी में उनके स्टेटस की वजह से नहीं मिली है. जो लोग उन्हें करीब से जानते थे वो उनके टैलेंट और स्ट्रोंग पर्सनलिटी के गवाह हैं.

बिल गेट्स का बचपन बहुत ख़ुशहाल था. उनका परिवार एक दूसरे के बेहद करीब था. उनकी दादी उन्हें बुक्स पढ़ने के लिए कहा करती थीं. वहीँ उनके पिता उन्हें स्पोर्ट्स खेलने के लिए मोटीवेट करते थे. उनकी माँ हमेशा कोई ना कोई फॅमिली एक्टिविटी प्लान करती रहती ताकि परिवार के लोग ज्यादा से ज्यादा समय साथ बिता सकें. डिनर का समय गेट्स परिवार के लिए ख़ास समय होता था. बिल और उनकी बहनें अपने पेरेंट्स से खुल कर बातचीत किया करते थे. पूरा परिवार डिनर टेबल पर साथ बैठ कर दिलचस्प चर्चा करता था.

बिल ने जितने भी गेम्स सीखे, फिर चाहे वो चुस्ती फुर्ती का कोई गेम हो या बुद्धि का, वो हमेशा हर गेम में बराबरी की टक्कर देते और हमेशा जीतने की कोशिश करते थे. बिल और उनकी बहनें आपस में मुकाबला करते कि कौन सबसे पहले 300 पीस की पज़ल को सोल्व कर पाता है. बिल पिकल बाल खेलने में माहिर थे.वो कंट्री क्लब के स्विमिंग पूल में अपने दोस्तों के साथ रेस लगाया करते थे.

बिल जब 11 साल के हुए तो उनके पेरेंट्स ने लेक साइड हाई स्कूल में उनका एडमिशन कराया. वो सीएटल का सबसे महंगा स्कूल था. लेक साइड स्कूल अपने हाई एजुकेशनल स्टैण्डर्ड के लिये जाना जाता था. इसी स्कूल में बिल को काम करने का जोश और ज्यादा नॉलेज मिला. यहाँउनके बिज़नेस मैनेजमेंट की स्किल और भी ज्यादा डेवलप हुई.

लेक साइड हाई स्कूल पूरी कंट्री में पहला  स्कूल था जिसने कंप्यूटर एजुकेशन स्टार्ट किया था. सारे स्टूडेंट्स टेलिटाइप मशीन के बारे में जानने और उसे इस्तेमाल करने के लिए बहुत excited थे. बिल गेट्स के मैथ्स टीचर उनकी क्लास को पहली बार कंप्यूटर क्लास में लेकर गए. बिल ने टेलिटाइप मशीन पर कुछ इंस्ट्रक्शन टाइप किया और जब मशीन ने उसका जवाब लिखा तो वो बहुत हैरान और खुश हुए.

बस उस दिन से बिल अपना सारा खाली समय कंप्यूटर रूम में बिताने लगे. कुछ स्टूडेंट्स जिन्हें कंप्यूटर में दिलचस्पी थी वो बिल के साथ हमेशा वहाँ होते थे. उनमें से एक पॉल एलन थे.

बिल और पॉल बहुत गहरे और जिगरी दोस्त बन गए. वो दोनों कंप्यूटर के अलग अलग प्रोग्राम बनाने के एक्सपर्ट बन गए थे. उन दोनों को कंप्यूटर बेहद पसंद था. उन दोनों की  टीम में जहां बिल जोशीले और दूर की सोचने वाले इंसान थे जबकि पॉल मिलनसार  और मीठा बोलने वाले इंजिनियर थे.
13 साल के बिल ने कंप्यूटर के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने के लिए जो हो सकता था किया.वो खुद कंप्यूटर सीखने की कोशिश करते रहे क्योंकि वहाँ के टीचर्स को भी कंप्यूटर की पूरी जानकारी नहीं थी.

कुछ ही महीनों में बिल ने कंप्यूटर में टिक टैक टो और मोनोपोली जैसे गेम्स का प्रोग्राम  बना दिया था. ये उन्होंने 1964 में बनाई गई “BASIC(बेसिक) प्रोग्रामिंग लैंग्वेज” की मदद से किया था. “BASIC” बाइनरी कोड का इस्तेमाल करती है. बाइनरी कोड मतलब  सिर्फ “0” और “1” की भाषा ही समझती है.
बिल मैथ्स में बहुत होशियार थे, पूरे लेक साइड स्कूल में कोई उनकी बराबरी नहीं कर सकता था. उन्होंने वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से मैथ्स में आगे की पढ़ाई पूरी की. इसके अलावा, बिल को कंप्यूटर जीनियस भी कहा जाता है. यहाँ तक कि उनकी उम्र से बड़े स्टूडेंट्स भी उनके पास प्रोग्रामिंग के बारे में पूछने आया करते थे.

लेक साइड स्कूल में हर कोई बिल को जानने लगा था. वो मैथ्स और कंप्यूटर में इतने कुशल थे कि लगता था जैसे वो कोई जादूगर हों. हालांकि, सारे स्टूडेंट्स जानते थे कि पॉल ज्यादा मिलनसार और फ्रेंडली हैं और उनसे बात करना ज्यादा आसान है.

जब पॉल 10th क्लास और बिल 8 में थे तो उन्होंने कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी में दिलचस्पी रखने वाले कुछ स्टूडेंट्स के साथ मिलकर लेक साइड प्रोग्रामर्स ग्रुप बनाया. वो कंप्यूटर की दुनिया में कोई ना कोई बिज़नेस शुरू करने का मौका ढूंढ रहे थे. बिल ने पूरे ग्रुप को दुनिया का ध्यान अपनेबनाएहुए प्रोडक्ट और प्रोग्राम की ओर खींचने और उसे बेचने के लिए encourage किया.

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इट’स गोइंग टू हैपन  (It’s Going to Happen)

बिल के पेरेंट्स ने उन पर कभी लॉयर या कुछ और बनने के लिए दबाव नहीं डाला. वो बस चाहते थे कि बिल कॉलेज जाएं और दूसरे स्टूडेंट्स के साथ घुले मिले, उनसे बातचीत करें. इसलिए बिल ने 1973 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ज्वाइन किया. उस समय उन्हें पता ही नहीं था कि उन्हें अपनी ज़िन्दगी में क्या करना है. बिल हार्वर्ड के लोगों से और भी ज्यादा सीखना चाहते थे लेकिन उन्हें ये जानकार बहुत निराशा हुई कि वहाँ के लोग भी उनसे बहुत ज्यादा नहीं जानते थे.

उन्होंने प्री लॉ कोर्स चुना था लेकिन वो अपना ज़्यादातर समय हार्वर्ड के एकेन कंप्यूटर सेंटर में बिताते थे. अपने पहले साल में, बिल ने “BASIC” का इस्तेमाल करके PDP 10 minicomputer में बेसबॉल गेम का प्रोग्राम बनाया. इसके लिए उन्हें कई हफ़्तों तक बेहद मुश्किल अल्गोरिथम को हल करना पडा. ऐसा उन्होंने इसलिए किया ताकि स्क्रीन पर थ्रो, हिट और पकड़े गए बेसबॉल का फिगर दिखाया जा सके.

ऐसा कहा जाता है कि बिल सुबह 3 बजे नींद में बातें किया करते थे. वो नींद में प्रोग्राम की भाषा बड़बड़ाया करते जैसे, “वन कौमा, वन कौमा, वन कौमा….”बिल को नए कंप्यूटर गेम्स जैसे स्पेस वार्स और पोंग की लत लग गई थी. स्पेस वॉर्स को MIT (मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी ,कैंब्रिज में एकप्राइवेट रिसर्च यूनिवर्सिटी है) में बनाया गया था जबकि पोंग को नोलन बुशनेल  ने बनाया था जो अटारी इंक. के फाउंडर हैं.

बिल लड़कियों से दोस्ती करने के मामले में अनाड़ी थे, आप उन्हें स्कोर 1/10 दे सकते हैं और पैसा कमाने के मामले में महारथी तो इसमें आप उन्हें 10/10 दे सकते हैं. माइक्रोसॉफ्ट की शुरुआत करने से पहले भी उनके 2-3 छोटे छोटे काम थे. बिल के जैसे कई और स्टूडेंट्स भी मैथ्स और फिजिक्स के जीनियस थे लेकिन बिल सबसे अलग थे. उन्हें असली दुनिया में काम करने का बहुत अनुभव हो चुका था.

पर्सनल कंप्यूटर का ज़माना आ गया था. बिल और पॉल बहुत excited थे. वो जानते थे कि जैसे कार और एयरप्लेन के इन्वेंशन ने दुनिया को बदल कर रख दिया था उसी तरह पर्सनल कंप्यूटर भी हिस्ट्री को बदल कर रख देगा. पॉल हमेशा कहते कि“ये होगा, ये होने जा रहा है”. वो बिल से कहते रहते कि कंपनी शुरू करने का ये बिलकुल सही समय है क्योंकि टेक्नोलॉजी तो पहले से ही तैयार है.ऐसा भी एक समय था जब बिल बहुत कंफ्यूज थे कि उन्हें लाइफ में आखिर करना क्या है. उन्हें पोकर खेलने का नशा हो गया था. पहले तो उन्हें सीखने में काफी समय लगा लेकिन जब उन्होंने टेक्नीक को समझ लिया तब वो हर गेम ऐसे जीतने लगे जैसे दूसरे सारे गेम जीता करते थे.

वो हॉस्टल में स्टूडेंट्स के साथ पोकर खेलने चले जाते थे. कभी कभी तो 2,000 $ तक बेट पहुँच जाती थी. जब वो पोकर नहीं खेलते तो एकेन कंप्यूटर सेंटर में समय बिताते थे. वो अक्सर टेबल पर कंप्यूटर के पास ही सो जाते थे. इस बीच, पॉल हनीवेल में काम कर रहे थे. ये वक़्त बिल के लिए काफी मुश्किल था. पॉल ही उन्हें मुश्किलों के निकलने में मदद करते थे.

दिसम्बर 1974 का साल था. बाहर कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. पॉल अपने बेस्ट फ्रेंड बिल से मिलने हार्वर्ड पहुंचे. चलते चलते उनकी नज़र“पॉपुलर इलेक्ट्रॉनिक्स” मैगज़ीन पर पड़ी. कवर पर कुछ और नहीं बल्कि अल्टेयर 8800 की तस्वीर थी जो दुनिया का पहला माइक्रो कंप्यूटर किट था जिसे लोगों के सामने लाया गया था.

पॉल उसे देख कर बहुत excited थे. वो अपने दोस्त को ये कवर दिखाने उनके रूम की तरफ दौड़े. अल्टेयर 8800 दिखने में लाइट और टॉगल स्विच के मेटल बॉक्स जैसा था. पॉल ने कहा कि अल्टेयर को “BASIC” लैंग्वेज से प्रोग्राम करने का ये कमाल का मौका था.

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