(Hindi) Gut: The Inside Story of Our Body’s Most Underrated Organ
इंट्रोडक्शन
क्या आपने कभी किसी चीज़ पर सिर्फ इसलिए फैसला लिया है क्योंकि आपके गट (gut) में महसूस हुआ कि आपका फैसला सही है? जब आप देखते हैं कि जिस शख्स को आप पसंद करते हैं, वो आपको देखकर मुस्कुरा रहा है, तो आपको कैसा महसूस होगा? शायद “पेट में तितलियों के उड़ने जैसा”. चलिए बात करते है आपके उस दोस्त के बारे में जिसने आपकी पीठ में छुरा घोंपा था. क्या उस एक्सपीरियंस की याद आपका मन ख़राब कर देती है?
इन सारे सवालों में एक बात कॉमन है, ये सब आपके आपके गट, यानि के पेट से जुड़ी है . इसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट ( gastrointestinal tract ) या डाइजेस्टिव सिस्टम (digestive system) भी कहते है. हाँ आपका गट जिसका एक ही काम है, आपके बॉडी से टोक्सिन को मल के द्वारा बाहर निकालना.
टॉयलेट जाते समय को छोड़कर, आप कभी भी इसके बारे में नहीं सोचते. लेकिन, आप इस बुक से सीखेंगे कि कैसे आपको अपने गट की प्रशंसा ठीक वैसे ही करनी चाहिए जैसे आप अपने ब्रेन की करते है. आप मल करने के कॉम्प्लिकेटेड प्रोसेस को भी जानेंगे. आप ये भी जानेंगे कि आपका गट आपके ब्रेन से कितने कमाल के काम करवाता है.
क्या आप जानने के लिए तैयार है कि आपके गट में कितनी ताकत है?
पॉटी करना किस तरह से होता है? और, ये सवाल बहुत ज़रूरी क्यों है ?
How Does Pooping Work? And Why That’s an Important Question?
हम अपने बॉडी को नज़रअंदाज़ कर देते हैं. हम ध्यान ही नहीं देते कि हमारे बॉडी का हरेक ऑर्गन दिन रात, हर एक सेकंड चलता रहता है. इसमें कुछ न कुछ बहता रहता है, पंप करता है या ठीक होता रहता है. ये सब हमारे बॉडी के अंदर होता है पर हम इन पर ध्यान ही नहीं देते है. ये बहुत ही मज़ेदार बात है, है न?
हार्ट और ब्रेन बहुत काम करते है इसलिए ज़्यादातर लोग इन्हीं की तारीफ़ करते है. सारी पढ़ाई, आर्ट, या कविता इनके ही बारे में होते है. इनके ही तरह एक बहुत ज़रूरी ऑर्गन बैकग्राउंड में छिपा होता है. हमे लगता है कि इस गट का काम सिर्फ टॉयलेट जाने के लिए ही होता है. दअरसल, ये उससे भी ज़्यादा कॉम्प्लिकेटेड है. आप ये जानकार हैरान रह जाएंगे कि आपका गट आपको ज़िंदा रखने के लिए क्या-क्या नहीं करता. लेकिन, ये सब जानने से पहले, चलिए आपके दिमाग में जो सवाल है, उसका जवाब दे देते है. मल कैसे आता है?
चलिए अब बम (bum) की तरफ फोकस करते है. बम के आखिर में एनस (anus) होता है. इस एनस में दो स्फिन्क्टर मसल्स (sphincter muscles) होते है. ये गोल घूमे हुए मसल्स है जो तय करते है कि आपको मल करना है या नहीं. बाहर वाले स्फिन्क्टर मसल को हम कंट्रोल कर सकते हैं. आप उसे अपनी मर्ज़ी से बंद और खोल सकते हैं. लेकिन, अंदर के स्फिन्क्टर मसल को हम कंट्रोल नहीं कर सकते हैं.
बाहर का स्फिन्क्टर हमारे कॉन्शियसनेस्स (consciousness) यानी चेतना को सुनता हैं. इसका मतलब ये हैं कि ये सुनता हैं कि कब हमारा ब्रेन कह रहा हैं कि अभी टॉयलेट जाने का समय नहीं हुआ है. बाहर का स्फिन्क्टर मसल ऐसे मैसेज को समझता हैं और ख़ुद को बंद रखने के लिए पूरा ज़ोर लगा देता है. लेकिन, अंदर के स्फिन्क्टर मसल को तो सिर्फ अंदर की दुनिया यानी कि हमारे बॉडी के अंदर जो कुछ हो रहा हैं, उस से मतलब होता हैं. इसका मिशन ही होता हैं ये देखना कि हमारे अंदर सबकुछ ठीक चल रहा हैं या नहीं.
मान लीजिए कि अंदर के स्फिन्क्टर मसल को महसूस हुआ कि आपके अंदर गैस का प्रेशर बढ़ रहा हैं. फिर तो ये आपसे कभी भी, कहीं भी गैस छुड़वा सकता हैं. अच्छी बात ये हैं कि बाहर का स्फिन्क्टर मसल इसे ऐसा करने से रोक सकता हैं.
दोनों स्फिन्क्टर को तभी तसल्ली मिलती हैं जब ये दोनों मिलकर काम करते हैं. आप जो खाना खाते हैं, उसमें से जो बच जाता हैं वो अंदर के स्फिन्क्टर में पहुँचता हैं. खाना पहुँचते ही वो automatically थोड़ा सा खुलता हैं और बचे हुए खाने में से थोड़ी सा निकाल देता हैं. लेकिन ये खाना निकलकर बाहर के स्फिन्क्टर तक सीधे नहीं पहुँच पाती. रास्ते के बीच में, बहुत सारे टेस्टर्स (testers) होते हैं जिनसे होकर इस बचे हुए खाने को गुज़रना पड़ता हैं. मान लीजिये कि ये टेस्टर्स छोटे-छोटे लोग हैं जो खाने को चेक करते हैं. वे इस खाने को नज़दीक से ऐसे मुयायना करते हैं जैसे कोई फौजी एक चेकपॉइंट की करता हैं. यही टेस्टर्स तय करते हैं कि ये बचा खाना solid हैं या गैस बन चुका हैं.
ये पता करने के बाद, टेस्टर्स आपके ब्रेन को मैसेज भेजते हैं, फिर, आपका ब्रेन फैसला लेगा कि आपको अभी टॉयलेट जाना हैं या कुछ देर रूकना हैं. आपका ब्रेन अपने इस फैसले के बारे में बाहर के स्फिन्क्टर को मैसेज भेजता हैं. ये स्फिन्क्टर मसल खुद को उस मैसेज के अनुसार बंद करता हैं या खोल देता हैं. अगर आप एक कमरे में काफी लोगों के साथ बैठे हैं तो आपका ब्रेन तय करेगा कि इस समय गैस नहीं छोड़ सकते या पॉटी करने नहीं जा सकते. इसी फैसले को बाहर का स्फिन्क्टर भी मानेगा.
तो अगली बार जब आपको वैसा ही कुछ महसूस हो तो , आप इन अंदर और बाहर के स्फिन्क्टर के बारे में ज़रूर सोचना. इन्हीं के वजह से आपको अपने बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के सामने या फिर लिफ्ट में आपके ऑफिस के लोगों के सामने शर्मिंदा नहीं होना पड़ता.
TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE
हमारे ऑर्गन्स खाने को कैसे ले जाते हैं
How Our Organs Transport Food
इमेजिन कीजिये, आपने टेबल पर केक का एक मज़ेदार टुकड़ा देखा. आपकी आँखें आपके ब्रेन को ये मैसेज भेजती हैं. आपका ब्रेन फिर इस मैसेज को उन ऑर्गन्स को भेजती हैं जो इस प्रोसेस के इंचार्ज होते हैं. आपके मुंह में पानी आने लगता हैं, आपका पेट केक को हज़म करने के लिए जूस पैदा करता हैं. जैसे ही आप इस केक के टुकड़े को अपने मुंह के सामने लाते हैं, आपका नाक उसे सूंघता हैं. नाक को पता चल जाता हैं कि इस केक में वनीला, रम और चॉकलेट भरा हुआ हैं. ये आपके नाक के अंदर जो ओलफैक्टरी नर्व्स (olfactory nerves) होते हैं , वे ही इसका पता करते हैं. यही नर्व्स आपको सूंघने में मदद करते हैं.
आप केक को उठाकर पास ले जाते हैं तो जैसे-जैसे वो नाक के पास आती हैं, उसकी खुशबु तेज़ हो जाती हैं. आप अपना मुंह खोलते हैं और सोचते हैं कि आपने इतना अच्छा केक कभी नहीं खाया था. आपके मुंह में भी बहुत पावर होती हैं. आपके मसूड़ों के मसल, आपकी पूरी बॉडी के सबसे मज़बूत मसल होते हैं और, आपका जीभ आपकी बॉडी का सबसे फ्लेक्सिबल ( flexible) यानी कि लचीला मसल होता हैं. सबसे कठोर चीज़ जो आपका बॉडी पैदा करता हैं, वो हैं आपके दांतो का इनेमल( enamel ).
जैसे ही आप केक को निगलने की तैयारी करते हैं , आपका जीभ ये देखता हैं कि कहीं केक का कोई टुकड़ा आपके दांत में तो नहीं फंसा. इसके बाद ये केक को लेने पहुँचता हैं. आपके थूक के कारण ये केक अब बिलकुल नरम हो गया हैं. जीभ इस खाने को आपके मुँह की छत पर ले जाकर मसल देता हैं. मुँह के इस भाग को फैरिंक्स ( pharynx) कहते हैं. ये नरम केक अब फैरिंक्स में पहुँचता हैं. जब भी आपका खाना फैरिंक्स में पहुँचता हैं, आपको पता चल जाता हैं क्योंकि यहां पहुँचने पर आपके कान में किसी चीज़ के फटने जैसी आवाज़ होती हैं. अब, आपका केक इसोफैगस ( esophagus) में पहुँचता हैं.
इसोफैगस में खाना पहुँचते ही इसोफेगस चौड़ा हो जाता हैं. ये खाने को अपने अंदर लेकर पीछे से बंद हो जाता हैं. ये ऐसा इसलिए करता हैं ताकि खाने का कोई भी टुकड़ा वापस पीछे न चला जाए. यहाँ, आपको एक बहुत ही ज़रूरी बात पता होनी चाहिए, इसोफैगस जब खाने को निगलता हैं, उन कुछ सेकंड्स के लिए आपकी साँसे बंद हो जाती हैं ताकि कोई भी खाने का टुकड़ा आपके लंग्स (lungs) में न जाकर आपके पेट में जाए. आपका पेट अब इस नरम खाने को लेने की तैयारी करता हैं. पेट रिलैक्स हो जाता हैं और खाने को भरने के लिए फ़ैल जाता हैं. खाना अब इसोफैगस से निकलकर पेट के दिवार में गिरता हैं. दिवार से ये टकराकर पेट के फर्श में पहुँच जाता हैं.
एक केक के टुकड़े को बहुत छोटे-छोटे भागों में बांटने के लिए, आपके पेट को लगभग दो घंटे लगते हैं. इनके छोटे- छोटे टुकड़े होने के बाद ये पेट के अंत में जो छेद होता हैं, उसमें चले जाते हैं. छोटी आंत यानि स्मॉल इंटेस्टाइन (small intestine ) के दरवाज़े पर एक दरबान होता हैं. कार्बोहायड्रेट से भरे खाने जैसे केक, चावल या पास्ता इस दरबान के सामने से आसानी से निकल जाते हैं. इस तरह के खाने आसानी से हज़म होते हैं या इनके बहुत छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं. ये खाना हमारे खून में शुगर पहुंचाते हैं. मीट और दूसरे खाने जिनमें प्रोटीन भरा होता हैं, उन्हें और फैट को हज़म होने में काफी लम्बा टाइम लग जाता हैं. मीट के एक बड़े टुकड़े को छोटे -छोटे टुकड़ो में तोड़ने के लिए आपके पेट को लगभग छ: घंटे लग जाते हैं जिसके बाद ही वो स्मॉल इंटेस्टाइन से गुज़र पाएगा.
जैसे ही खाना पहुँचता हैं, स्मॉल इंटेस्टाइन अपने काम में लग जाता हैं. ये खाने के टुकड़ों को अपने अंदर दबाता हैं और उसे इधर से उधर, उधर से इधर हिलाता हैं. सबकुछ हिलता हैं और जब केक को तसल्ली से मिक्स करता हैं, फिर उसे वो आगे भेजता हैं. पर, उस केक का कुछ ही बचा कुचा हिस्सा यहाँ पहुँच पाता हैं. तो बाकी के टुकड़े कहाँ गए? वो सब आपके खून में चले गए.
क्योंकि आपके खाने का सबसे ज़्यादा हिस्सा आपके खून में चला जाता हैं, आपके पेट और स्मॉल इंटेस्टाइन में बस थोड़े ही टुकड़े जा पाते हैं. इन टुकड़ों में वैसी चीज़ें शामिल होती हैं जैसे कि मकई का दाना या वो च्युइंग गम जिसे आपने गलती से निगल लिया हो. आपको अपने स्मॉल इंटेस्टाइन के बारे में जानना चाहिए कि ये आपको साफ़ रखने के लिए ही होता हैं. अगर आप अपने स्मॉल इंटेस्टाइन को खाने को हज़म करने के दो घंटे बाद देखेंगे तो आप पूरी जगह को साफ़ सुथरा पाएँगे. वहाँ कोई बदबू भी नहीं होती. स्मॉल इंटेस्टाइन खाना हज़म करने के एक घंटे बाद खुद को साफ़ कर लेता हैं. आप कह सकते हैं कि स्मॉल इंटेस्टाइन खुद ही अपनी देखभाल कर सकता हैं.
लेकिन, बड़ी आंत या लार्ज इंटेस्टाइन ( large intestine ), बिलकुल भी स्मॉल इंटेस्टाइन जैसा नहीं हैं. इससे जब खाना गुज़रता हैं तो ये सफाई नहीं करता. लार्ज इंटेस्टाइन उस खाने को देखता हैं जो अभी तक हज़म नहीं हो पाया. आपने जो केक खाया था, वो केक पहले जैसा बिलकुल नहीं दिखता. उसमें सिर्फ फलों का रेशा बचा होता है जो उस केक में डाला गया था या फिर वो चीज़ें होते हैं जो केक में था और अभी तक हज़म नहीं हुआ. यहाँ हज़म करने वाला जूस भी उसमें मिला होता है.
स्मॉल इंटेस्टाइन के मुकाबले लार्ज इंटेस्टाइन बहुत ही सुस्त होता हैं. ये एक माले में पिरोये हुए दाने जैसा दिखता हैं. जब इसमें खाना जाता हैं, ये खाने को संभालने के लिए फूल जाता हैं. ये इसी पोजीशन में काफी देर तक रह सकता हैं, खासकर तब तक, जब तक पीछे से कोई खाना धक्का न लगा दे. जो लोग ज़्यादा खाते हैं, उनका लार्ज इंटेस्टाइन जल्दी ही भर जाता हैं. ऐसे लोगों को शायद दिन में दो से भी ज़्यादा बार टॉयलेट जाने की ज़रूरत पड़ती हैं.
आमतौर पर, हज़म करने के इस प्रोसेस को लगभग चौबीस घंटे लग जाते हैं. अगर आपका बॉडी खाने को जल्दी हज़म कर पाता हैं तो शायद आपको आठ घंटे में ही टॉयलेट जाने की ज़रूरत पड़ जाती हैं. और, अगर आप बहुत ही धीरे से हज़म करने वाले शख्स हैं तो इसमें आपको तीन से चार दिन भी लग सकते हैं.