(Hindi) Grit: The Power of Passion and Perseverance

(Hindi) Grit: The Power of Passion and Perseverance

इंट्रोडक्शन (Introduction)

ग्रिट क्या है? दुनिया के जितने भी बेस्ट एथलीट्स, डॉक्टर्स, आर्टिस्ट, एंटप्रेन्योर्स और लायर्स है, इन सबका सीक्रेट है ग्रिट. वर्ल्ड क्लास स्किल्स और ग्रेट परफोर्मेंसेस के पीछे भी यही सीक्रेट है. आप अगर एक पैदाईशी टेलेंटेड पर्सन नहीं है तो कोई बात नहीं. आप चाहे जो भी हो, जैसे भी हो, फिर भी आपके पास ग्रिट हो सकती है. इस बुक में आपको हम बताएँगे कि ग्रिट होती क्या है.

आप इस बुक में पढेंगे कि सक्सेस में टेलेंट का कितना हाथ है कितना पार्ट होता है. और आपको क्लियर गोल्स की इम्पोर्टेंस भी पता चलेगी और ये भी पता चलेगा कि लाइफ में गिव अप ना करना यानी हार ना मानना कितना जरूरी है. अगर आप भी अपनी फील्ड में बेस्ट बनने का सपना देखते हो और अपनी ट्रू कालिंग का वेट कर रहे हो और एक वर्ल्ड क्लास पर्सन बनना चाहते हो तो ये बुक एक बार जरूर पढ़ के देखो.

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शोइंग अप (Showing Up)

सिर्फ 10% एप्लिकेंट्स को ही यूनाइटेड स्टेट्स मिलिट्री एकेडमी में एडमिशन मिल पाता है. और इनमे से ज्यादातर एथलीट्स और हाई स्कूल के टीम कैप्टेन्स होते है. लेकिन इनमे से भी कई सिर्फ दो महीने की ट्रेनिंग के बाद ही एकेडमी छोड़ कर चले जाते है. नए कैडेट्स बीस्ट बैरक्स प्रोग्राम से ट्रेनिंग की शुरुवात करते है. उन्हें रोज़ सुबह 5 बजे उठना होता है. फिर पूरा दिन फिजिकल एक्सरसाइज़, वीपन्स ट्रेनिंग और क्लासरूम लेक्चर्स का सिलसिला चलता है. दिन भर में इन्हें बस तीन ब्रेक्स मिलते है, ब्रेकफ़ास्ट, लंच और डिनर. रात ठीक 10 बजे ये सोने चले जाते है.

ये इनका डेली रूटीन है. दिन-रात सेम चीज़ करना. इनके लिए कोई वीकेंड्स कोई छुट्टी नहीं होती. और खाने के अलावा कोई और ब्रेक भी इन्हें नहीं मिलता है. इन न्यू कैडेट्स को बाहरी लोगो के साथ मिलने की परमिशन नही होती. बीस्ट बैरक्स की ट्रेनिंग कैडेट्स को फिजिकली ही नहीं बल्कि मेंटली और इमोशनली भी ट्रेन करती है. इन्हें स्ट्रोंग बना देती है. और यही मिलिट्री ट्रेनिंग का मतलब होता है, सोल्जेर्स को इतना स्ट्रोंग बना देना कि वो फ्यूचर में आने वाले चेंलेंजेस का सामना कर सके. दरअसल इस ट्रेनिंग के जरिये यू.एस. आर्मी ये श्योर कर लेती है कि कौन गिव अप करेगा और कौन ट्रेनिंग पूरी करके ग्रेजुएट बनेगा.

कई साइकोलोजिस्ट की हेल्प से कैडेट्स के लिए टेस्ट क्रिएट किये जाते है जिससे ये पता चल सके कि किसके अंदर क्या क्वालिटी है और इनमे से कौन ट्रेनिंग में टिक पायेगा. लेकिन कोई भी साइकोलोजिस्ट ऐसा कोई परफेक्ट टेस्ट क्रिएट नही कर पाए है. कई बार तो मोस्ट इंटेलिजेंट और एथलेटिक टाइप के कैडेट्स भी ट्रेनिंग के बीच से ही चले जाते है. इतनी हार्ड और इंटेंस ट्रेनिंग पूरी करना सबके बस की बात नहीं है, यहाँ तक कि बेस्ट अचीवर्स भी हार मान जाते है. तो उन कैडेट्स में ऐसी कौन सी क्वालिटी होती है जो ये चार साल का ट्रेनिंग प्रोग्राम कम्प्लीट कर लेते है?

अगर ये उनका इंटेलिजेंस या टेलेंट नहीं है तो फिर क्या सीक्रेट है? मिलिट्री एकेडमी के ट्रेनर्स में से एक माइक मैथ्यूज (Mike Matthews) भी है. और उन्होंने यही से ग्रेजुएशन की है. उनका कहना है कि जैसे ही एडमिशन होता है, न्यू कैडेट्स से ऐसी चीज़े करवाई जाती है जो उन्होंने पहले कभी नहीं की होंती. माइक को याद है कि जब वो भी एक कैडेट थे. बैरक्स ट्रेनिंग के सिर्फ दो हफ्तों के अंदर वो भी बाकि क्लासमेट्स की तरह फ्रस्ट्रेटेड और टायर्ड फील करने लगे थे. उनमे से कुछ तो पहले ही ट्रेनिंग छोडकर जा चुके थे लेकिन माइक ने ऐसा नहीं किया. माइक बताते है कि उनके क्लासमेट्स कमजोर नहीं थे बल्कि वो काफी स्ट्रोंग, स्मार्ट और एक्टिव लोग थे. लेकिन मिलिट्री एकेडमी में इसके अलावा भी एक चीज़ मैटर करती है, और वो है कभी गिव अप ना करना.

ऑथर एंजेला डकवर्थ ने मेडिसीन, बिजनेस, लॉ, आर्ट और स्पोर्ट्स की फील्ड के मोस्ट सक्सेसफुल लोगो का इंटरव्यू लिया है. उन्होंने उनसे पुछा कि वो कौन सी क्वालिटीज है जो हमे सक्सेसफुल बनाती है? ऐसा क्या है जो एक्स्ट्राओर्डीनेरी लोगो को बाकियों से अलग बनाता है? एंजेला ने देखा कि ऐसे कई सारे टेलेंटेड लोग है जो अपने करियर में बेस्ट बनने से पहले फेल हो चुके थे. एंजेला ने ये भी ओब्ज़ेर्व किया कि ज्यादातर सक्सेसफुल लोगो की दो कॉमन क्वालिटीज़ होती है. पहली तो ये कि वो फेल होने के बाद भी गिव अप नहीं करते यानी आसानी से हार नही मानते.

ये लोग अपनी स्किल्स इम्प्रूव करते रहते है. जैसे कि एक राइटर जो स्टार्टिंग में कुछ ख़ास नही लिखता था. उसकी स्टोरीज़ मेलोड्रामेटिक और बोरिंग लगती थी. मगर उसने लिखना नही छोड़ा और अपने काम में इम्प्रूवमेंट करता चला गया. बाद में उस राईटर ने एक काफी प्रेस्टीजियस अवार्ड भी जीता. सक्सेसफुल लोगो की दूसरी कॉमन क्वालिटी है कि वो कभी सेटिसफाई नहीं होते. वो अपने काम में इम्प्रूवमेंट करते रहते है. तब तक करते है जब तक कि वो उसके मास्टर ना बन जाये. एक तरह से बोले तो उन्हें अपना काम से प्यार होता है.

टास्क चाहे कितना भी फ्रस्ट्रेटिंग हो,बोरिंग या पेनफुल हो, ये उसे पूरा किये बिना छोड़ते नही. ये लोग अपने सबसे बड़े क्रिटिक्स होते है. इन्हें अपने काम में कोई ना कोई कमी दिख ही जाती है. और नतीजा ये होता है कि ये बेहतर से बेहतर करते चले जाते है. अपने गोल्स को लेकर ये एकदम क्लियर होते है. तो अगर हम इन दो क्वालिटीज़ के नाम रखे तो ये है, प्रीज़ेर्वेंस और दूसरी, पैशन. प्रीज़ेर्वेंस है हार्ड वर्क और गिरके फिर से उठना. और पैशन है, पक्का इरादा और डायरेक्शन. और इन सब क्वालिटीज़ को हम एक नाम दे सकते है और वो है ग्रिट. यानी पैशन और प्रीज़ेर्वेंस.

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डिसट्रेक्टेड बाई टेलेंट (Distracted by Talent)

सक्सेसफुल होने के लिए सिर्फ टेलेंट से काम नहीं चलेगा. ऐसे कई टेलेंटेड लोग है जो एक लिमिट के बाद सेटिसफाई हो जाते है. ये ना तो प्रेक्टिस करते है और ना ही कोई ट्रेनिंग. इनके अंडर परफॉर्म होने की यही मेन वजह है. दूसरी तरफ ऐसे भी लोग है जो बिलकुल भी स्पेशल नहीं लगते. उनकी स्टार्टिंग एकदम एवरेज लेवल पर होती है. लेकिन वक्त के साथ ये लोग अपनी ग्रिट की वजह से अपने फील्ड के मास्टर बन जाते है. बेशक इनमे टेलेंट हो ना हो मगर अपने पैशन और पर्ज़ेर्वेंस की वजह से इन्हें सक्सेस मिलती है.

यहाँ हम डेविड लुओंग (David Luong) की स्टोरी लेंगे जो एंजेला के स्टूडेंट हुआ करता था. एंजेला पहले सैन फ्रांसिसको के एक पब्लिक स्कूल में मैथ पढ़ाती थी. उसने नोटिस किया कि जिन बच्चो का मैथ अच्छा था, उन्हें क्लास में एवरेज मार्क्स मिलते थे. लेकिन जो स्टूडेंट काफी मेहनत और प्रेक्टिस करते थे, वो टेस्ट और क्विज में काफी अच्छा परफॉर्म करते थे. डेविड इन्ही हार्डवर्किंग स्टूडेंट्स में से एक था. हालाँकि वो मैथ में एवरेज था. डेविड थोडा शर्मिला टाइप था और चुपचाप रहता था. वो बैक बेंचर था.

उसने ना तो क्लास में कभी कुछ पढकर सुनाया था और ना ही बोर्ड पर कोई प्रोब्लम सोल्व करके दिखाई थी. इसके बावजूद वो हमेशा अच्छे मार्क्स लाता था. एंजेला ने नोटिस किया कि डेविड बाकि बच्चो से ज्यादा फोकस्ड और इरादे का पक्का था. अलजेब्रा क्लास के बाद डेविड उससे बड़ी रिस्प्केट के साथ बोलता” मैडम, मुझे और एक्सरसाइज़ करने को दीजिये”. एंजेला जो डेविड में पोटेंशियल दिखा. उसने डेविड को एडवांस मैथ प्रोग्राम ज्वाइन करने को बोला. एक साल बाद एंजेला ने उससे उसकी परफोर्मेंस के बारे में पुछा. तो डेविड ने बताया कि मैथ उसके लिए डिफिकल्ट है.

उसे मुश्किल से ए ग्रेड मिलता है, जब उससे कोई प्रोब्लम सोल्व नहीं हो पाती तो वो अपनी टीचर की हेल्प लेता है. फिर वो उन सवालों को दुबारा सोल्व करने की कोशिश करता है. डेविड जब ग्रेजुएट हुआ तो उसे एडवांस्ड कैलकुलस क्लास में नंबर वन पोजीशन मिली थी. एंजेला को पता चला कि डेविड ने कॉलेज में इकोनोमिक्स और इंजीनियरिंग ली है. फिर डेविड ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री ली. और आज डेविड एरोस्पेस कारपोरेशन के लिए काम करता है.

एंजेला अपने इस स्टूडेंट पर काफी प्राउड फील करती है. डेविड एक शर्मीला लड़का था जिसे मैथ में कम नंबर मिलते थे. लेकिन उसके प्रीज़ेर्वेंस और पैशन ने उसे हाई पोजीशन तक पहुँचा दिया था. कौन सोच सकता था कि डेविड एक दिन राकेट साइंटिस्ट बन जायेगा? उसके पास नैचुरल टेलेंट नहीं था मगर उसके अंदर ग्रिट ज़रूर थी.

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एफर्ट्स काउंट्स ट्वाईस (Efforts Counts Twice)

लोग स्पोर्ट्स में जब किसी अचीवर के बारे में सुनते है, तो उन्हें लगता है कि उसमे जरूर कोई नैचुरल टेलेंट होगा. वो तुंरत सोच लेते है कि वो ज़रूर एक्स्ट्राओर्डीनेरी होगा. लोग अक्सर एथलीट्स को सुपरह्यूमन समझ लेते है. लेकिन ये बस कहने की बात है. स्पोर्ट्समेन के पास कोई जादू की छड़ी नहीं होती फिर भी हमे लगता है कि उनके पास कोई सीक्रेट है. लेकिन उनका सीक्रेट सिर्फ एक है, ग्रिट. इनकी सक्सेस कर राज है कई घंटो की लगातार प्रेक्टिस जो ये हर रोज़ करते है और हारने के बावजूद भी हार नही मानते.

लोग बस ओलंपिक्स में इनकी पर्फोर्मंस देखते है, किसी को उस परफोर्मेंस के पीछे की मेहनत नहीं दिखती. हम इनकी रोज़ की ट्रेनिंग नहीं देखते और ये नही देखते कि ये अपनी लिमिट से बाहर जाकर प्रेक्टिस करते है. क्या आपने ऐसे इन्सान के बारे में सुना है जो डिस्लेक्सिक (dyslexic) होने के बावजूद एक ग्रेट राईटर बना? जी हाँ, हम जॉन इरविंग की बात कर रहे है. वो एक बेस्ट सेलिंग ऑथर और अवार्ड विनिंग स्क्रीन राईटर है. जॉन पढ़ाई में काफी कमज़ोर थे. इंग्लिश में तो उसे हमेशा सी माइनस मिलता था. ग्रेजुएट होने से पहले उसे हाई स्कूल पास करने में दो साल लगे.

दरअसल जॉन डिस्लेक्सिया की सिरियस प्रोब्लम थी. उसे अपना हिस्ट्री असाइनमेंट करने में तीन घंटे लगते थे. उसे ठीक से वर्ड्स लिखने नहीं आते थे. कुछ वर्ड्स तो ऐसे थे जिनकी स्पेलिंग वो हमेशा गलत लिखता था. वो पढता भी बहुत धीरे-धीरे था. अपनी फिंगर को वर्ड्स के उपर रखकर उन्हें पढता था. उसकी इस कंडीशन की वजह से जॉन को पढने-लिखने में ज्यादा टाइम लगता था. वो सेम टेक्स्ट को बार-बार पढता था. उसे इस तरह पढने की आदत पड़ गयी थी. पर जॉन ने डिस्लेक्सिया को एडवांटेज की तरह यूज़ किया. जब वो नॉवेल लिखने बैठता था तो पेजेस को बार-बार पढता था.

उसमे पेशंस और प्रीज़ेर्वेंस दोनों थे. जॉन कहते है कि रीराइटिंग एक राईटर का एसेट है. वो फर्स्ट ड्राफ्ट लिखने के बाद उसे दुबारा लिखता था. यही उसकी हैबिट बन गयी थी. जॉन ने 20 से भी ज्यादा नॉवेल्स लिखे है, जिनमे से 5 नॉवेल्स पर मूवी भी बन चुकी है. फेमस एक्टर विल स्मिथ का नैचुरल टेलेंट पर कुछ ये मानना है” मैने कभी भी खुद को टेलेंटेड नहीं समझा बल्कि मै काफी स्ट्रिक्ट वर्क एथिक में बिलीव करता हूँ”. विल स्मिथ ये भी कहते है” बाकि एक्टर्स मुझसे बैटर या ज्यादा स्मार्ट और सेक्सी हो सकते है लेकिन वो मुझसे आगे नहीं निकल सकते क्योंकि मै कभी हार नहीं मानता”.

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