(hindi) Great by Choice

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इंट्रोडक्शन

ये किताब ना सिर्फ हमे सफल कंपनियों के बारे में बताती है बल्कि हमे ये भी जानकारी देती है कि इन सफल कंपनीयों को किस तरह के मुश्किल हालात का सामना करना पड़ता है और वो इन सबसे गुज़रते हुए लगातार आगे बढती रहती है.

“ग्रेट बाई चॉइस” किताब में कुछ बेहद जरूरी सवालों का जवाब देने की कोशिश की गई है, जैसे कि” क्यों कुछ कंपनीयाँ तमाम मुश्किलों के बावजूद टिकी रहती है जबकि बाकि कंपनीयाँ ऐसा नहीं कर पाती?’

हम इस किताब में उन ख़ास खूबियों पर चर्चा करेंगे जो कुछ बेहतरीन कंपनीयों में आम तौर पर एक जैसी पाई जाती है. और हम ये सीखने की कोशिश करेंगे कि क्यों और किस तरह ये कंपनीयाँ सफल मुकाम तक पहुंचती है और ग्रेट बनती है.

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Thriving in Uncertainty

सन 1972 से 2002 के बीच साउथवेस्ट एयरलाइंस को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. इन दौरान कंपनी का दो बार दिवालियाँ निकला, फिर 9/11 की घटना घटी और उसके बाद वर्कर्स की हड़ताल वगैरह जैसे मुश्किल दौर से कंपनी को गुजरना पड़ा.
इसके बावजूद अगर आपने 1972 में साउथवेस्ट एयरलाइन्स में $10,000 का इन्वेस्ट किया होता तो आज आपके पास $12,000,000 से भी ज्यादा पैसे होते.
अब आप सोचेंगे कि ये कैसे मुमकिन है?’ ख़ासकर तब जब उनकी कॉम्पीटटर कंपनी पैसिफिक साउथवेस्ट एयरलाइन्स बुरी तरह से फेल हो गई जोकि ठीक इसी तरह के हालत से गुजर रही थी.

तो ये समझ लीजिए कि कोई भी देश, कंपनी या इंसान सफल होने के लिए मुसीबत का इंतज़ार नही करता पर हाँ अगर इरादे मजबूत हो तो मुश्किल से मुश्किल हालात में भी कामयाब हो सकता है. इस किताब में हम जिन कंपनीयों की बात कर रहे है, उन्हें 10X बोलते है. वो इसलिए क्योंकि ये कंपनीयाँ ना सिर्फ सफल है बल्कि इन्होने बाकियों 10 गुना ज्यादा सफलता पाई है. लेकिन उससे पहले हम इन 10X कंपनियों से जुड़ी हुई कुछ ऐसी ही गलतफहमियों पर चर्चा करेंगे.

1972 से लेकर 2002 के बीच की कुछ 10X कंपनीयों के नाम है, एमजेन, इंटेल, साउथवेस्ट एयरलाइन्स और सबसे बढ़कर माइक्रोसॉफ्ट और एप्पल. 70 से लेकर 90 के दशक तक माइक्रोसॉफ्ट लगातार नंबर वन बेताज बादशाह बनी रही जबकि एप्पल भी बाज़ार में खुद को बनाये रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रही थी.

तो यहाँ हम आपको उन 10X गलतफहमियों के बारे में बताते है जो कुछ इस तरह है.
मिथ 1 गलतफहमी नंबर 1: सफल लीडर्स मुश्किलों और परेशानियों में और ज्यादा दूरदर्शी हो जाते है इसलिए और भी ज्यादा खतरे उठाने के लिए तैयार रहते है.

सच 1:  सच तो ये है कि 10X कंपनीयों के सफल लीडर्स भी भविष्य में क्या होगा, ये नही बता सकते. और ये भी सच नही है की वो और ज्यादा रिस्क लेने को तैयार रहते है. जबकि सच्चाई ये है कि सफल लीडर्स ज्यादा अनुशासित होते है और उनकी नज़र हमेशा अपने लक्ष्य में रहती है. ये लोग सोच समझ कर ही कोई रिस्क लेते है और वही बदलाव लाते है जो बेहद जरूरी होते है.

मिथ 2, गलतफहमी नंबर 2: इनोवेशन 10X कंपनीयों को सफल बनाती है.
सच्चाई 2: इसमें कोई दो राय नही कि इनोवेशन अच्छी बात है. और ये 10X कंपनीयां इनोवेशन करने में पूरा यकीन रखती है. पर किसी रीसर्च से ये साबित नही हुआ है कि 10X कंपनियां अपने कॉम्पटीटर्स से ज्यादा इनोवेटिव होती है, बल्कि कई बार तो 10X कंपनीयां बाकियों से कम इनोवेशन करती है.

मिथ 3 गलतफहमी नंबर 3: आप जितना जल्दी मूव करेंगे उतनी ही ज्यादा सफलता आपको मिलेगी.

सच्चाई 3: ये सच नहीं है, तेज़ होने से कोई सफल नही हो जाता. बल्कि कब तेज़ होना है और कब स्लो डाउन करना है, ये मालूम होना चाहिए. 10X कंपनीयों की सफलता के पीछे ये एक बड़ा राज है.

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10X बनने वाली कंपनीयां

अक्टूबर 1911 में दो टीम्स के बीच सबसे पहले साउथ पोल तक पहुँचने का मुकाबला रखा गया. और इस मुकाबले में पहली टीम जीत कर सही सलामत घर वापस पहुंची जिसके लीडर थे रोआल्ड अमुंडसेन. जबकि दूसरी टीम जो हार गई थी, उसके लीडर रोबर्ट स्कॉट थे और उनकी हार की वजह ये थी कि वो जीतने वाली टीम से 34 दिन बाद पहुंचे थे और घर वापस नही पहुँच पाए, दरअसल स्कॉट की टीम दुबारा घर पहुंच ही नही पाई.

तो ऐसा क्यों हुआ? एक टीम जीती तो दूसरी हार क्यों गई? दोनों टीम्स के सामने एक जैसी मुश्किलें थी, उन्हें 1400 मील से भी ज्यादा की दूरी तय करनी थी और बेहद खतरनाक मौसम का सामना करते हुए सफर जारी रखना था. पर ऐसा क्या हुआ कि सिर्फ एक ही टीम अपने मकसद में कामयाब हो पाई ?

रोनाल्ड आमंडसन ने मुकाबले से पहले ही अपने शरीर को सफर के लिए तैयार कर लिया था. यहाँ तक कि उन्होंने ये जानने के लिए डॉलफिन का कच्चा गोश्त भी खाया कि इससे उन्हें ताकत मिलती है या नहीं. रोनाल्ड को एहसास हुआ कि ठंडे समुन्द्र में उनका जहाज टूट कर किसी हादसे का शिकार हो सकता है, तो उन्हें जिंदा रहने के लिए डॉलफिन का कच्चा गोश्त खाना पड़ सकता है. और इसीलिए उन्होंने पहले से ही डॉलफिन का गोश्त खाने की प्रेक्टिस कर ली.

रोनाल्ड ने साउथ पोल ट्रिप की तैयारी के लिए कई साल तक ट्रेनिंग और प्लानिंग की थी, यहाँ तक कि उन्होंने कुछ वक्त एस्किमोस के साथ रहकर उनसे बेहद ठंडे मौसम में जिंदा रहने के तरीके सीखे.

रोनाल्ड ने देखा कि एस्किमोस बर्फ में सामान वगैरह ले जाने के लिए स्लेज का इस्तेमाल करते है जिन्हें उनके पालतू कुत्ते खींचते है. और वो कभी भी तेज़ नहीं चलते, दरअसल एस्किमोस पसीना बहाने से बचते है क्योंकि पसीना बर्फ बनकर उनकी त्वचा को जमा सकता है. रोनाल्ड ने एस्किमोस के कपड़े पहनने के तरीको पर भी गौर किया और उन सारी चीजों को खुद प्रेक्टिस करके देखा. रोनाल्ड की फिलोसफी थी” उन तूफ़ान के आने का इंतज़ार मत करो बल्कि पहले से तूफ़ान के लिए तैयार रहो. हम ये तो नहीं बता सकते कि भविष्य में क्या होने वाला है पर हाँ उसके लिए खुद को तैयार ज़रूर कर सकते है.

दूसरी ओर रोबर्ट स्कॉट की बात करे तो उन्होंने ये सब तैयारियाँ नही की थी बल्कि स्कॉट ने बर्फ में स्लेज गाड़ी खींचने के लिए कुत्तों के बजाए पोनीज़ का इस्तेमाल करने की गलती कर ली थी जिसकी वजह से बर्फ में चलना काफी मुश्किल हो रहा था. साथ ही उन्होंने मोटर स्लेड्स का इस्तेमाल किया था. पर ये मोटर स्लेड्स साउथ पोल जैसे ठंडे मौसम के लिए बिल्कुल भी सही नहीं थी. यही वजह थी कि कुछ दिनों बाद ही सारी मशीने टूट गई थी.

इस स्टोरी से पता चलता है कि 10X कंपनीयां मुश्किल से मुश्किल हालात में भी सर्वाइव कर जाती है जबकि उनके कॉम्पटीटर फेल हो जाते है.

10X कंपनीयों की तीन ऐसी ख़ास बाते है जो उन्हें औरों से अलग बनाती है, जो है फैनेटिक डिसिप्लिन, एम्पिरिकल क्रिएटिविटी और प्रोडक्टिव पैरानोया (Fanatic discipline, Empirical creativity, and Productive paranoia). इन तीन आदतों के पीछे जो मोटीवोटिंग फ़ोर्स है वो है लेवल 5 एम्बिशन. हम इन तीनो कॉन्सेप्ट पर डिटेल में डिस्कस करेंगे.

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20-Mile March (Fanatic Discipline)

डिसिप्लिन एक आदत है जिसका मतलब है कि हमारे बिहेवियर, एक्शन और परफोर्मेंस में और सबसे जरूरी चीज़, टाइम के साथ-साथ हमे एक कंसिस्टेंसी बनाकर रखनी होगी. यानी हम जो आदते डाले वो हमेशा के लिए फोलो करे.
और यही स्टोरी है 20 मिल मार्च की.

मान लो आप 3000 मील चलना चाहते हो. पहले आप 20 मील चलते हो. फिर अगले दिन आप और 20 मील चलोगे. अचानक आप रेगिस्तान में पहुँच गए. यहाँ इतनी गरमी है कि आप थक गये हो और थोडा आराम करना चाहते हो पर आप नहीं करते. आप अगले दिन भी 20 मील का सफर तय करते हो. फिर जब आप उठते हो तो देखते हो कि मौसम बढ़िया है तो आप सोचते हो कि आज मै 50 मील चल सकता हूँ पर आप नही चलते बल्कि आप अपनी एनर्जी बचाने के लिए 20 मील ही चलते हो. तो आप हर रोज़ 20 मील ही चलते हो जब तक कि आपकी मंजिल नही आ जाती. वही कोई दूसरा आदमी पहले दिन में ही 50 मील चल लेता है और इतना थक जाता है कि दुसरे दिन सोता रहता है. उसके अगले दिन वो 30 मील चलता है और रेगिस्तान में पहुँच जाता है. वहां काफी गरमी है तो वो मौसम के ठीक होने का इंतज़ार करता है.

कुछ दिनों बाद वो आदमी फैसला करता है कि उसे सफर जारी रखना है तो वो 50 मील लगातार चलता है ताकि जो टाइम उसने वेस्ट किया था उसकी कमी पूरी हो सके. अगले दिन वो एक बेहद ठंडी जगह पर पहुँच जाता है तो वो सिर्फ 10 मील ही चलता है. अब तक उसकी हालत बेहद खराब हो चुकी थी पर आखिर वो अपनी मंजिल तक पहुँच ही जाता है जहाँ उसकी मुलाक़ात आपसे होती है. उसे पता चलता है कि आप उस आदमी से कुछ मंथ्स पहले ही वहां पहुँच चुके थे.

तो ये कहानी है अनसर्टेनिटी की. अगर आप स्टॉक होल्डर है तो आप उसी कंपनी में इन्वेस्ट करना चाहोगे जहाँ रिस्क का खतरा कम हो और अनसर्टेनिटी ना हो. ऐसी कंपनीज़ धीरे-धीरे ग्रो करते हुए सक्सेसफुल होती है.

यहाँ हम आपको दो कंपनीज़ की स्टोरी सुनाते है. इनमे से एक स्लो है पर लगातार ग्रो करती है जबकि दूसरी फ़ास्ट चलती है पर आखिर में बुरी तरह फेल हो जाती है.
स्ट्राईकर मेडिकल डिवाइस और टूल्स बेचने वाली एक अमेरिकन कंपनी है. वही एक और कंपनी यूएसएससी भी सेम प्रोडक्ट बेचती है.

स्ट्राईकर ने 20 मील मार्च रूल्स फोलो किया था. स्ट्राईकर के सीईओ जॉन ब्राउन ने पहले से एक गोल सेट कर रखा था. ब्राउन हर साल कंपनी की 20% नेट इनकम ग्रोथ चाहते थे. ये सिर्फ एक गोल या विजन नही था बल्कि कंपनी में एक लॉ था. 1977 से 1998 के बीच ब्राउन जब सीईओ की पोस्ट पर थे तो स्ट्राईकर ने जो अपनी 20% एनुअल ग्रोथ का गोल सेट किया था, वो गोल उन्होंने करीब 90% से भी ज्यादा अचीव किया था.

और सबसे बड़ी बात ये थी कि ब्राउन ने कंपनी को इससे आगे कभी बढने नही दिया, उन्होंने एक साल में 25% ग्रोथ की लिमिट रखी थी, क्योंकि वो जानते थे कि फ़ास्ट और इनकंसिस्टेंट के बजाए स्लो और कंसिस्टेंट तरीके से चलने में ज्यादा फायदा है.

और इसी बीच यूएसएससी ने 1989 में $345 की सेल्स की और फिर 1992 में $1.2 बिलियन की जोकि 248% ज्यादा ग्रोथ थी और वो भी सिर्फ तीन सालो के अंदर. यूएसएससी ने मार्किट को लिमिट से ज्यादा पुश करना शुरू कर दिया था. कंपनी ने जॉनसन एंड जॉनसन से भी कॉम्पटीशन करना शुरू कर दिया था जो 1990 के दौरान कुछ मेडिकल टूल्स बनाया करती थी. उस वक्त जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी का मेडिकल टूल्स की मार्किट में 80% से भी ज्यादा कण्ट्रोल था.

बढ़ते हुए कॉम्पटीशन के कारण जॉनसन एंड जॉनसन ने यूएसएससी को मार्केट का 10% होल्ड करने का ऑफर दिया लेकिन यूएसएससी ने ये ऑफर रिजेक्ट कर दिया क्योंकि वो पूरी मार्किट में सिर्फ अपना कण्ट्रोल चाहते थे. कंपनी काफी तेज़ी से ऊपर चढ़ती गई पर उसके बाद क्या हुआ ? कंपनी का दिवालिया निकल गया.

गवर्नमेंट में हॉस्पिटल्स में नए हेल्थकेयर सिस्टम बनाने का फैसला लिया. इस नए सिस्टम के आने से अब सारे हॉस्पिटल को फ्री मेडिकल टूल्स मिलने लगे थे इसलिए कई हॉस्पिटल ने यूएसएससी के टूल्स खरीदने बंद कर दिए.

यूएसएससी में हर चीज़ घाटे में जा रही थी, और 1998 के आते-आते एक इंडिपेंडेंट कंपनी के तौर पर यूएसएससी की पहचान खत्म हो चुकी थी. इसे एक दूसरी कंपनी टाइको ने खरीद लिया था.

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