(Hindi) FLOW : The Psychology of Optimal Experience

(Hindi) FLOW : The Psychology of Optimal Experience

इंट्रोडक्शन(Introduction)

आज हम बात करेंगे काम की. अक्सर हम सब अपने काम से या तो थक जाते हैं या बोर हो जाते हैं. तो आप अपने काम को कैसे एन्जॉय कर सकते हैं? आप बोरियत, चिंता या frustration को कैसे दूर कर  सकते हैं? आप किसी भी एक्टिविटी को कैसे प्रोडक्टिव बना सकते हैं?

क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे आप अपने काम या हॉबी को ऐसे एक्सपीरियंस में बदल सकें जो आपको सैटिस्फैक्शन दे सके? तो उसका जवाब है हाँ. आपके हर सवाल का जवाब इस बुक में मौजूद है. ऑथर मिहाय चिक्सेंटमिहाय (Mihaly Csikszentmihalyi) ने अपने करियर में ज़्यादातर समय ख़ुशी और मोटिवेशन को स्टडी करने में बिताया है. तो आप ये सब बातें एक एक्सपर्ट और गुणी इंसान से सीखने जा रहे हैं.

इस बुक में आप फ़्लो औरऐसे एक्सपीरियंस के बारे में सीखेंगे जो आपको ज़्यादा से ज़्यादा सैटिस्फैक्शन दे सके जिसे ऑप्टीमल एक्सपीरियंस कहा जाता है. आप ऐसे स्टेप्स के बारे में जानेंगे जिन्हें फॉलो कर के आप अपने डेली रूटीन के काम को भी एन्जॉय करने लगेंगे. आप जिंदगी को भरपूर और खुल कर जीना सीख जाएंगे.

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हैप्पीनेस रीविसिटेड (Happiness Revisited)

ख़ुशी हमें बाय चांस या अच्छे  लक की वजह से नहीं मिलती है. ये कोई चीज़ नहीं है जिसे पॉवर के दम पर हासिल किया जा सके या पैसों से खरीदा जा सके. ये बाहर के माहौल या किसी घटना की वजह से भी नहीं आता है. ख़ुशी इस बात पर डिपेंड करती है कि हम किसी भी सिचुएशन को किस नज़रिए से देखते हैं. सबसे बड़ी बात तो ये है कि अगर हमें ख़ुश होने की कोई वजह नहीं मिल रही तो हम ख़ुद वो वजह ढूंढ सकते हैं, ख़ुद ख़ुशी की वजह बन सकते हैं.

देखिए, लाइफ में बहुत सी चीज़ें होती हैं जिन्हें हम कंट्रोल नहीं कर सकते. जैसे जब हमारा जन्म होता है तो हम कैसे दिखेंगे या हमारे पेरेंट्स कौन होंगे इन सब पर हमारा कोई कंट्रोल नहीं होता. लेकिन कई बार हमें लगता है कि हम ख़ुद अपनी तकदीर के मास्टर हैं. इसे ही हम ऑप्टीमल एक्सपीरियंस कहते हैं.

ये लाइफ के वो पल हैं जिनके लिए किसी भी इंसान ने कड़ी मेहनत की होती है. ये तब होता है जब एक इंसान ने किसी चीज़ को पाने के लिए बहुत एफर्ट किया हो. मान लीजिये कि एक स्विमर है जो ओलंपिक्स की तैयारी कर रहा है. वो हर रोज़ घंटों प्रैक्टिस करता है. हर रोज़ की प्रैक्टिस की वजह से उसके मसल्स में बहुत दर्द होने लगता है. उसे बहुत थकन महसूस होती है.

लेकिन फ़िर भी ये चीज़ें उसे अच्छी लगती हैं क्योंकि वो अपनी लाइफ के बेस्ट मोमेंट्स को एक्सपीरियंस करने के लिए तैयार हो रहा है. उसे थकान महसूस नहीं होती क्योंकि वो अपने काम के फ्लो में है. उसके लिए सिर्फ़ वो मैडल मायने रखता है जो उसे अपने गोल को अचीव करने के बाद मिलेगा और कुछ नहीं. वो अपने गोल को अचीव करने के लिए जी जान लगाने को भी तैयार होता है. पूरी बॉडी में दर्द होने के बावजूद वो स्विमिंग प्रैक्टिस जारी रखता है क्योंकि वो उसे बहुत अच्छा महसूस करता है.

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द एनाटोमीऑफ़ कांशसनेस (The Anatomy of Consciousness)

अब हम कांशसनेस की बात करते हैं? आसान सब्दों में कांशसनेस का मतलब होता है चेतना या समझ. ये हमारे अंदर और बाहर चल रही घटनाओं को प्रोसेस करने के बारे में है.ये हमें  इनफार्मेशन के बेसिस पर क्या एक्शन लेना है वो समझने में मदद करता है.

कांशसनेस हमें इमेजिनेशन की पॉवर से चीज़ों को क्रिएट करने में भी मदद करता है. इसके कारण हम सपने देख सकते हैं, poem लिख सकते हैं, साइंटिफिक थ्योरी बना सकते हैं.यहाँ आपको एक ज़रूरी बात याद रखना होगा. अगर हम अपने कांशसनेस को प्रोग्राम करने लगे तो ख़ुद को ख़ुशी या दुःख से भरा हुआ बना सकते हैं,वो भी इस बात की परवाह किये बिना कि आपके आस पास क्या हो रहा है.

कई लोग होते हैं जो एक होपलेस सिचुएशन को भी एक मीनिंगफुल एक्सपीरियंस में बदल देते हैं. वो लाख़ चैलेंजेज और obstacles के बावजूद डट कर खड़े रहने का जज़्बा रखते हैं. जिंदगी में ख़ुशी और सक्सेस पाने के लिए ये सबसे ख़ास क्वालिटी है जो हर एक में होनी चाहिए. अरे मायूस मत होइए, आप भी बेशक इस क्वालिटी को डेवलप कर सकते हैं. आप भी अपने कांशसनेस को प्रोग्राम कर सकते हैं क्योंकि आपके पास अपने थॉट्स और फीलिंग्स को कंट्रोल करने का पॉवर है.ये कोई जादू नहीं है बल्कि ट्रेनिंग और हार्ड वर्क का कमाल है.

अब आप सोच रहे होंगे कि इस दुनिया में सच में ऐसा कोई है जिसने इसे पॉसिबल करके दिखाया हो? तो जवाब है बिलकुल है. जितने भी ग्रेट एथलीट, योगी, म्यूजिशियन हैं उन सभी ने माइंड की अनलिमिटेड पॉवर का इस्तेमाल किया है.

अब एक योगी को ही ले लीजिए, एक योगी लगातार तपस्या में लीन रहते हैं, हमेशा कुछ ना कुछ नया सीखते और जानते रहते हैं. वो अपना सारा टाइम और एनर्जी अपनी तपस्या में लगा देते हैं. ऐसा करने से वो अपने स्किल में माहिर हो जाते हैं. दूसरे लोग मैडिटेशन के बारे में या जिंदगी के बारे में ना गहराई से सोचते हैं ना परवाह करते हैं लेकिन एक योगी के जीवन का यही गोल होता है कि वो इस यूनिवर्स और जिंदगी के हर छोटे बड़े पहलू के रहस्य को जाने और समझे.

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एंजोयमेंट एंड द क्वालिटी ऑफ़ लाइफ (Enjoyment and the Quality of Life)

अपनी लाइफ की क्वालिटी को और बेहतर बनाने के दो तरीके हैं. पहला तो है कि अपने बाहर के कंडीशन को मनचाहा बनाएं. दूसरा है, चीज़ों को देखने का अपना नज़रिया बदलें.

एक्जाम्पल के लिए, सिक्यूरिटी को ही ले लीजिये जो ख़ुशी का एक बहुत इम्पोर्टेन्ट हिस्सा होता है. अब अपने घर की सिक्यूरिटी के लिए या तो आप अपने दरवाज़े पर ताला लगा सकते हैं या एक ऐसे जगह शिफ्ट हो सकते हैं जो थोड़ी ज़्यादा सेफ़ हो. ऐसा करने से ये आपको एक सेफ़ एनवायरनमेंट दे सकती है.

दूसरा तरीका है कि आप ये सोचें कि आपकी नज़र में सिक्यूरिटी का क्या मतलब होता है. अगर आप चीज़ों को इस नज़रिए से देखने लगे कि दुनिया में ऐसी कोई जगह नहीं है जो पूरी तरह से सेफ़ है. कभी भी कहीं भी कुछ भी हो सकता है. हाँ, अपनी तरफ़ से आप पूरी सावधानी ज़रूर बरतें लेकिन इस सोच से आप ज़्यादा रिलैक्स हो सकते हैं. ऐसे नज़रिए से आप अपनी फॅमिली के साथ लाइफ ज़्यादा एन्जॉय कर पाएंगे.

अपने बाहर के कंडीशन को बदलने से आपकी लाइफ इम्प्रूव तो हो सकती है लेकिन बस कुछ ही समय के लिए ऐसा होगा. असल में आपको अपने कांशसनेस को कंट्रोल करने की ज़रुरत है. अब ऊपर वाला एक्जाम्पल ही ले लीजिये कि अगर आप एक प्राइवेट आइलैंड पर शिफ्ट हो जाते हैं, अपने लिए बॉडीगार्ड हायर करते हैं लेकिन अगर आपका नज़रिया ही गलत हुआ तब भी आप हमेशा डर में ही जीते रहेंगे, आप हमेशा अनसेफ़ ही महसूस करेंगे.लंबे समय तक ख़ुश रहने के लिए और सेफ़ महसूस करने के लिए आपको अपने कांशसनेस, अपने मन से डर को दूर करना होगा. आइए इसे इस कहानी से समझते हैं.

किंग मिडास ऐसे शख्स थे जो ये मानते थे कि अगर उनके पास बहुत धन दौलत होगी तो वो ज़रूर इस दुनिया के सबसे सुखी और ख़ुश इंसान होंगे.उन्होंने भगवान् को ख़ुश करके एक वरदान माँगा कि वो जो भी छुएं वो सोना बन जाए. इस वरदान को पाकर वो बहुत ख़ुश थे, वो जिस चीज़ को छूते वो सोना बन जाता. उन्हें लगने लगा कि अब उनके पास इतनी दौलत होगी कि वो कभी उदास और दुखी नहीं हो सकते.

लेकिन जल्द ही ऐसा वक़्त आया जब उन्हें अपने मांगे हुए वरदान पर पछतावा होने लगा. ना वो कुछ खा सकते थे, ना पी सकते थे क्योंकि वो जिस चीज़ को हाथ लगाते वो तुरंत सोने में बदल जाता था. अब उनके पास भरपूर दौलत थी लेकिन ना ख़ुशी थी ना एक पल का सुकून और किंग मिडास ऐसे ही मर गए. उनके चारों तरफ़ सोना ही सोना था लेकिन वो उन्हें कभी ख़ुशी नहीं दे पाया.

आजकल अमीर घरानों के मिडिल ऐज लोगों का साइकेट्रिस्ट के पास जाना आम बात हो गई है.इनके पास महँगी गाड़ियाँ, आलिशान बंगले, बेस्ट एजुकेशन सब कुछ है. वो सक्सेसफुल भी हैं और अमीर भी लेकिन फ़िर भी वो मन की शांति के लिए तरसते हैं. लोग सोचते हैं, “काश मैं थोड़ा और कमा सकती, काश मैं थोड़ा और फ़िट होता, काश मुझे एक पेरफ़ेक्ट लाइफ पार्टनर मिल जाता..तो मेरी लाइफ परफेक्ट हो जाती.” लेकिन सच तो ये है कि ये एक कभी ना ख़त्म होने वाली खोज है.

हमारी सोसाइटी पॉवर, दौलत, स्टेटस को ही ख़ुशी का सिंबल मानती है. अगर हम किसी फेमस, अमीर, गुड लुकिंग शख्स को देखते हैं तो बस मान लेते हैं कि वो तो अपनी लाइफ में कितना ख़ुश होगा. लेकिन सच्चाई तो ये है कि लाइफ की क्वालिटी इस बात पर डिपेंड नहीं करती कि हमारे पास क्या क्या है और लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं.

लाइफ को बेहतर बनाने के लिए आपको दौलत की ज़रुरत नहीं है. आपके पास जो है उसके किये ग्रेटफुल होना सीखें, उसकी कदर करना सीखें. दूसरों से तुलना करेंगे तो कभी ख़ुश नहीं रह पाएंगे. एक गरीब तो इसी बात से ख़ुश हो जाता है कि उसके सिर के ऊपर एक छत है जिसमें वो अपने परिवार के साथ चैन से रह सके.

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द ऑटोटेलिक एक्सपीरियंस (The Autotelic Experience)

एक ऑप्टीमल एक्सपीरियंस अपने आप में एक गिफ्ट की तरह होता है.ये एक एक्टिविटी है जो एक इंसान सिर्फ़ ख़ुशी के लिए करता है.एक्जाम्पल के लिए, एक सेलर कह सकता है कि मैं अपना सारा टाइम और एनर्जी एक बोट में इन्वेस्ट करता हूँ क्योंकि मुझे बोट से सफ़र करना सबसे ज़्यादा ख़ुशी देता है.

“ऑटोटेलिक” शब्द दो ग्रीक शब्दों से जुड़ कर बना है. पहला है “ऑटो” यानी सेल्फ़ या ख़ुद.दूसरा है “टेलोस” यानी गोल. ये एक ऐसी एक्टिविटी है जिसे आप फ्यूचर में बिना किसी फ़ायदे की उम्मीद के करते हैं क्योंकि वो अपने आप में एक गोल होताहै. एक्जाम्पल के लिए, बच्चों को पढ़ाना ताकि वो अच्छे सिटिज़न बन सकें, ये एक ऑटोटेलिक एक्सपीरियंस नहीं है. लेकिन बच्चों को पढ़ाना क्योंकि आपको उनके साथ समय बिताना अच्छा लगता है एक ऑटोटेलिक एक्सपीरियंस ज़रूर है.

जब भी आप कोई एक्टिविटी करते हैं और उसके बदले में कुछ पाने की इच्छा नहीं रखते तो वो ऑटोटेलिक एक्टिविटी बन जाता है. जब आप किसी चीज़ को ड्यूटी या ज़रुरत ना समझ कर उसमें इतने मगन हो जाते हैं कि वो आपको काम नहीं लगता बल्कि आप उसे एन्जॉय करने लगते हैं तो उसे ऑटोटेलिक एक्सपीरियंस कहा जाता है. जब आप कोई नई एक्टिविटी शुरू करते हैं तो वो एक बार में ऑटो टेलिक नहीं हो सकता.

एक्जाम्पल के लिए, एक सर्जन को सर्जरी सीखने के लिए लंबी ट्रेनिंग लेनी पड़ती है. उस समय वो पैसा कमाने, सोसाइटी में प्रेस्टीज बनाने और लोगों की मदद करने के लिए सर्जरी करता है. लेकिन समय के साथ हर सर्जरी उसके लिए एक ऑटो टेलिक एक्सपीरियंस बन जाती है.

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