(hindi) Factfulness

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इंट्रोडक्शन

आगे बढ़ने से पहले, आइये जल्दी से एक टेस्ट लेते हैं. इन् तीन सवालों का जवाब अपने दिमाग में ही दें और अपने जवाबों को याद रखें.

पहला सवाल. पिछले दो दशकों में, बहुत ज्यादा गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या ……. हो चुकी है

A.     लगभग दोगुनी

B.     पहले से ज्यादा या पहले से कम या

C.     आधी ?

दूसरा सवाल, दुनिया के कितने, एक साल से छोटे बच्चों को किसी एक ख़ास बीमारी के लिए पहले से ही टीका लगाया जा चुका है?
A.     20%
B.     50% या
C.     80%

तीसरा सवाल,  आज दुनिया में कितने लोगों के पास बिजली की सुविधा है?
A.     20%
B.     50% या
C.     80%

क्या आपको अपने जवाब याद हैं? क्या आपके मन में कोई दूसरा जवाब आ रहा है? चलिये, जानते हैं कि यूनाइटेड नेशन स्टैटिक्स (United Nations statistics) के अनुसार सही जवाब क्या हैं,

पहले सवाल का जवाब है, ऑप्शन C. पिछले दो दशकों में, बहुत ज्यादा गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या लगभग आधी घट चुकी है.

दूसरे सवाल का जवाब है, ऑप्शन C. एक साल की उम्र के 80% बच्चों को पहले से ही टीका लगाया जा चुका है.
तीसरे सवाल का जवाब है, ऑप्शन C. आज दुनिया में 80% लोग बिजली का उपयोग कर सकते हैं.

आपके कितने जवाब सही निकले? क्या आपके सभी जवाब गलत हैं? अक्सर  हैंस  रॉसलिंग अपने लेक्चर्स इसी तरह के टेस्ट के साथ शुरू करते हैं.

अपने करियर के शुरू-शुरू में,  हैंस  इस बात से बहुत निराश हो जाया करते थे कि लोगों का दुनिया को देखने का नजरिया  कितना गलत है. वह नाराज़ और गुस्सा थे कि कैसे मीडिया गरीबी और हिंसा को बदत्तर बनाकर दिखाता है.

इसीलिए  हैंस  रॉसलिंग ने लोगों के दुनिया को देखने के तरीके को बदलने और अपडेट करने के लिए इसे अपने जीवन का मिशन बना लिया. उन्होंने अपने बच्चों, ओला और एना की मदद से गैपमाइंडर की स्थापना की. यह एक ऐसी आर्गेनाइजेशन है जो आकड़ों को हमारे जीवन में दिखाती है. Gapminder ग्राफ और एनालिसिस को और भी ज्यादा मजेदार और इफेक्टिव बनाता है.

इस बुक में, आप उन तीन इंस्टिंक्ट (Instinct) जानेंगे जो हम इंसानों के पास होती हैं. जो हैं – गैप इंस्टिक्ट, negativity इंस्टिंक्ट, और स्ट्रेट लाइन इंस्टिंक्ट (Gap Instinct, Negativity Instinct और Straight-Line Instinct) ये तीन इंस्टिंक्ट हमारे दुनिया को जानने-समझने के नज़रिये को धुंधला कर देती हैं.
आइये इन पर एक-एक करके डिस्कस करते हैं.

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गैप इंस्टिंक्ट

गैप इंस्टिंक्ट का क्या मतलब होता है? यह हमारी बहुत बड़ी गलतफहमी है कि दुनिया दो भागों में बँटी हुई है- “developing और developed countries”, “पश्चिमी या वेस्ट के देश और बाकी बचे हुए देश”, अमीर देश और गरीब देश”. ऐसा कुछ नहीं है. कोई फासला या अंतर नहीं है. पिछले कुछ दशकों में दुनिया बदल चुकी है और हमें भी अपनी दुनिया के बारे में सोचने- समझने के तरीके को अपडेट करना चाहिए.

आइये एक नज़र developing और developed देशों पर डालते हैं. एक ग्राफ को इमेजिन कीजिए जिसमें बहुत से सर्कल(Circle) बने हुए हैं. हर एक सर्कल एक देश को दिखाता है. सर्कल का साइज देश की आबादी यानी population को दिखाता है. ग्राफ के लेफ्ट साइड में आप दो बड़े सर्कल देख सकते हैं जो कि इंडिया और  चाइना हैं.

y-axis पर, यह 0 से 5 साल की उम्र तक जो बच्चे जिंदा बचे रहते हैं उनका परसेंटेज दिखता है और x-axis पर, ये एक औरत से लगभग कितने बच्चे हैं उस एवरेज नंबर को दिखाता है. जैसा कि आप y-axis पर सबसे नीचे 50% और सबसे ऊपर 100% लिखे हुए का मार्क बना हुआ देख सकते हैं. और  x-axis पर आप 8 बच्चों से लेकर 7, 6, 5, 4, 3, 2, और 1 तक बने हुए मार्क देख सकते हैं.

अब, इमेजिन कीजिये कि आप साफ़ तौर पर दो हिस्से देख  सकते हैं. एक हिस्सा  ग्राफ के  लेफ्ट साइड पर मान लीजिये जिसमें ये developing देश, इंडिया और  चाइना हैं. यह दिखाता है कि 5 साल तक की उम्र के सिर्फ़ 70 % से 80 % बच्चे ही जिंदा रह पाते हैं और यह ये भी  दिखाता है कि एक औरत के एवरेज 5  से 7 बच्चे होते हैं.

जबकि, अमेरिका और यूरोप जैसे developed देश ग्राफ से राइट साइड पर दिखाए गए  हैं.  यहाँ 5 साल तक की उम्र के  90% से 100% बच्चे  जिंदा रहते  हैं. और यहाँ एक औरत के एवरेज सिर्फ़ 2 से 3 ही बच्चे होते हैं.
इसका क्या मतलब है? यह  ग्राफ दिखता है  कि  developing और developed देशों के बीच साफ़ तौर पर एक गैप है.

इस ग्राफ में दिखाया गया  डेटा 1965 के समय का लिया गया डेटा  है. यह दिखाता है कि 1965 में दुनिया कैसी थी, जो कि 5 दशक पहले की बात है.

हैंस  रॉसलिंग ने दुनिया के बारे में हमारी सोच-समझ की स्टडी करने के लिए बच्चों की सेहत यानी चाइल्ड सर्वाइवल के सब्जेक्ट को ही क्यों चुना? ऐसा इसलिए है क्योंकि एक बच्चे को पालने और बड़ा करने में समाज का योगदान होता है. अगर एक कम्युनिटी में 5 साल से ऊपर की उम्र के सभी बच्चे  जिंदा रहते हैं, तो इसका मतलब है कि वहाँ पानी साफ़ है और वहाँ भरपूर खाना और दवाइयाँ आसानी से मिल जाती हैं. वहाँ की माएँ पढ़ी-लिखी हैं और वहाँ प्रेगनेंसी को रोकने के लिए दवाएँ भी मौजूद हैं.

आइये, अब जरा अपडेटेड ग्राफ को देखते हैं. वह ग्राफ जो 2017 में दुनिया के हालात को दिखाता है, जब  हैंस  रॉसलिंग ने यह बुक लिखी थी. फिर से, ध्यान से सुनें.

2017 में, लगभग ज्यादातर देश ग्राफ की राइट साइड पर आ चुके हैं. मान लीजिए कि वे ग्राफ के राइट साइड पर ऊपर कोने पर चले गए हैं. वहीँ लेफ्ट साइड पर, जिसमें हमने  developing देशों को रखा था, अब वहाँ कुछ ही देश बाकी रह गए हैं. ज्यादातर देशों को अब  developed देशों में गिना जाने लगा है.

इसका सीधा -सा मतलब है कि वह डेटा अब पुराना हो चुका है. वे पहले से ही गलत हैं. हमें अब इनका यूज़ नहीं करना चाहिए. जैसे कि भारत में 5 साल की उम्र तक के 95% बच्चे  जिंदा रहते हैं. और एक औरत के एवरेज 2 से 3 ही बच्चे हैं. यह 2017 का डेटा है और अब इंडिया पहले से ही  developed देशों की लिस्ट में अच्छे से शामिल है. यह ग्राफ के राइट साइड पर ऊपर कोने पर है.

तो, अगर ये “अमीर और गरीब”, वेस्ट के देश और बाकी के देश” वाले लेबल पहले से ही गलत हैं, तो क्या अब हमें इनका यूज़ करना चाहिए? इस बारे में सही स्टडी करने के लिए हमें क्या यूज़ करना चाहिए ? हमें और ज्यादा लोगों की मदद करने  लिए और उन्हें भरपूर खाना, साफ़ पानी, एजुकेशन और हेल्थ केयर यानी स्वास्थ्य सेवा पहुँचाने के लिए क्या यूज़ करना चाहिए?

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हैंस ने यह सुझाव दिया है: फोर इनकम लेवल्स (The Four Income Levels)

दुनिया की आबादी अभी 7.6 बिलियन है. तो, 7 इंसानों के जैसे फिगर की एक पिक्चर की कल्पना कीजिये और वे chess के टुकड़ों की तरह दिखते हैं. हर एक फिगर 1 बिलियन लोगों को  दिखाता है.
यहाँ से शुरू होता है फोर लेवल्स का कॉन्सेप्ट.

लेवल-1 इनकम में एक  बिलियन लोग हैं. यहाँ  सिर्फ़ एक ही  chess का टुकड़ा है. लेवल-1 में परिवारों के रोज़  का बजट एक डॉलर per day है. परिवार में कुल पांच बच्चे हैं.पिता किसान और माँ हाउसवाइफ हैं. यहाँ नल के पानी की सुविधा नहीं है.

बच्चों  को नंगे पैर चलना पड़ता है और बहुत दूर एक कुँवे से पानी भरकर लाना पड़ता है. वे लकड़ियाँ बटोरकर भी इकठ्ठा करते हैं ताकि इन्हें जलाकर खाना पकाया जा सके. माँ पूरे परिवार के लिए दलिया पकाती है. वे हर रोज़ हर समय के खाने में बस यही दलिया खाते हैं.

जब कभी आंधी आएगी तो सारी फसलें नष्ट हो जाएंगी और परिवार के पास कोई इनकम नहीं रहेगी. वह 6 साल की छोटी बच्ची मर जाएगी क्योंकि उसकी खांसी और कफ के लिए कोई दवा नहीं है. सभी बच्चे कुपोषित हैं, उन्हें भरपूर और अच्छा  खाना नहीं मिल पा रहा है. घर के अंदर आग में खाना पकाने की वजह से उनके फेफड़े कमजोर हो गए हैं.

यह बहुत ही गरीबी की हालत है. यही लेवल-1 है.  स्टैटिक्स आकड़ों से पता चलता है कि दुनियाँ में लगभग 1  बिलियन लोग इसी तरह जी रहे हैं.

लेवल-2 की इनकम वाले लगभग 3 बिलियन लोग हैं. इनका रोज़ का बजट 4 डॉलर का होता है. ये लोग अंडे और चावल खरीद सकते हैं. ऐसे परिवारों को खाने के लिए फसल नहीं उगानी पड़ती है. पिता के पास एक बाइक मोटरसाइकिल हो सकती है जिसका यूज़ वह अपने काम पर जाने के लिए करते हैं.

लेकिन फिर भी, उनके यहां नल के पानी की कोई सुविधा नहीं होती है.  हाँ लेकिन कुछ ही दूरी पर कुँवा जरूर होता है. बच्चों के पास पैरों में पहनने के लिए चप्पलें होती हैं. माँ खाना बनाने के लिए गैस स्टोव का यूज़ करती हैं. घर में अंदर एक लाइट बल्ब भी होता है ताकि बच्चे अपना होमवर्क कर सकें.

पिता पैसे बचाते हैं ताकि वह अपने पूरे परिवार के सोने के लिए एक चटाई, दरी  या गद्दा खरीद सके. जीवन बेहतर  होता है. लेकिन जब कोई एक भी बच्चा बीमार हो जाए, तो माँ को पैसे उधार लेने पड़ते हैं या फिर पिता को अपनी मोटरसाइकिल बेचनी पड़ती है.

लेवल-3 की इनकम वाले लगभग 2 बिलियन लोग हैं. आज दुनिया भर में, 2 बिलियन लोग रोज के 16 डॉलर के बजट पर अपना जीवन जी रहे हैं. वाह, यह एक बहुत बढ़िया सुधार हुआ है. आखिरकार नल का पानी है और भरोसेमंद बिजली भी है. ऐसे परिवारों के पास फ्रिज होता है जिसमें वे अपना खाना रख सकते हैं और अलग-अलग डिशेस भी खा सकते हैं.

उनके पास एक मोटरसाइकिल भी है जिसका यूज़ माँ दो बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने के लिए करती है. माता-पिता दोनों के पास अच्छी सैलरी वाली नौकरियाँ हैं और वे अपने बच्चों की कॉलेज की पढ़ाई के लिए बचत करते हैं. अगर परिवार में कोई बीमार पड़ता है, तो वे मेडिकल बिल भरने के लिए अपनी बचत का यूज़ कर सकते हैं. या अगर ऐसा नहीं होता है, तो फिर पूरा परिवार हफ्ते की आखिरी छुट्टियों में बीच पर या कहीं घूमने-फिरने जा सकते हैं.

लेवल-4 में, 1 बिलियन लोग हैं. ये लोग 64डॉलर के रोज़ के बजट पर रहते हैं. इन् परिवारों का रहन-सहन अच्छा-खासा होता है. इनके पास कार होती है. इनके घर में अनेक प्रकार के उपकरण और सामान होते हैं. माता-पिता की बहुत ज्यादा सैलरी वाली नौकरियाँ होती हैं और बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने जाते हैं. ये लोग रोज़ के 1डॉलर के बजट में रहने की सोच भी नहीं सकते हैं.

आपका परिवार कोन-से लेवल में आता है? क्या यह लेवल 1, 2, 3, या फिर 4? फिर से, याद रखें कि कोई गैप नहीं है. आपको अपना गैप इंस्टिंक्ट बदलना होगा.आज दुनिया की ज्यादातर आबादी लेवल-2 और लेवल-3 की इनकम में रहती है.  सिर्फ़ 1 बिलियन लोग  ही बहुत ज्यादा गरीबी की हालत में रहते हैं. और  सिर्फ़ 1 बिलियन लोग ही बहुत ज्यादा अमीर भी हैं. हम में से ज्यादातर लोग बीच में होते हैं.

यहाँ तक कि एक देश या एक स्टेट के अंदर ही लेवल 1, 2, 3, या 4, इनकम वाले परिवार होते हैं. इसलिए अब कोई “वो” और “हम“ जैसा कुछ नहीं रहा है. ज्यादातर लोग अब भरपूर खाना, हेल्थ केयर और एजुकेशन का खर्च उठा  सकते हैं. अब ज्यादातर आबादी के पास बिजली और साफ़ पानी पहुँच चुका है. क्या आपको नहीं लगता है कि दुनिया एक सुरक्षित और बेहतर जगह बनती जा रही है?

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