(Hindi) Deep Work

(Hindi) Deep Work

ये समरी पढके आपको ये पता चलेगा कि कैसे आज कल प्रोफेशनल लोग क्वालिटी से ज्यादा क्वांटिटी पर जोर देते है. और कैसे ये चीज़ आज के यंग प्रोफेशनल को किसी पपेट्स की तरह बना रही है जो एक साथ मल्टीपल इमेल्स और प्रोजेक्ट्स निपटाने के चक्कर में मल्टी टास्किंग करने लगते है जिससे उनके काम में वो क्वालिटी जिसे “डीप वर्क” कहते है नहीं आ पाती. डीप वर्क का मतलब बिना किसी डिसट्रेक्शन के पूरे फोकस के साथ काम करने से है. जिसका ये मतलब भी है कि आजकल के प्रोफेशनल लोगो को अपनी प्रायोरिटीज़ सेट करनी चाहिए. काँल न्यूपोर्ट  जो कि MIT  से पढे हैं और इस बुक के आथर हैं ये भी क्लेम करते है कि कोरपोरेट रेस से खुद को बचाने का सबसे बढ़िया तरीका है कि कुछ टाइम के लिए टेक्नोलोजी और सोशल मीडीया से एक ब्रेक लिया जाए और खुद को कुछ क्वालिटी टाइम दिया जाए जिससे आपको अकेले में सेल्फ एक्जामिनेशन का मौका मिले. आप अपनी कमियों और इम्प्रूव्मेंट्स पर गौर कर सके.
डीप वर्क इम्पोर्टेंट है ना सिर्फ इसलिए कि डिसट्रेक्शन एक बुरी आदत है बल्कि इसलिए भी कि ये आपको मिनिमम टाइम में पॉइंट A से पॉइंट B की तरफ लेकर जा सकता है.

पार्ट वन: द आईडिया
चैप्टर वन: डीप वर्क वेल्युबल क्यो है?

अगर आप सोसाइटी में अपना एक सिग्नीफिकेंट जगह बनाना चाहते है तो आपको ये दो चीज़े करनी पड़ेगी. :

1-    मुशकिल चीजो को  लर्न करने की एबिलिटी

2-    किसी भी इम्पोर्टेंट टास्क को क्वालिटी और स्पीड के साथ फिनिश करने की एबिलिटी

हाई क्वालिटी वर्क अचीव करने के लिए हम एक इक्वेशन लेते है जो कुछ इस तरह है:-

हाई क्वालिटी वर्क प्रोड्यूसड = (टाइम स्पेंट) x (इन्टेसिटी ऑफ़ फोकस)

यानि अगर आपको हाई क्वालिटी का काम करना है तो या तो उसपर ज्यादा टाईम लगाओ या अपना फोकस इनक्रीज करो।

वेल रेकोगनाइज्ड स्कूलों के टॉपर स्टूडेंट्स को आलरेडी ये इक्वेशन मालूम है जिससे वे अपना फोकस इनक्रीज करके कम टाइम में ही क्वालिटी वर्क प्रोड्यूस करते है.

लेकिन कोई भी फोकस्ड वर्क करने के लिए हमें जरूरत है कि हम मल्टीटास्किंग से बचते हुए डीपली उस काम को करे. हालाँकि हमारी आजकल की लाइफ में मल्टीटास्किंग करना एक रूटीन सा बन गया है.
सोफी लीरॉय जो की एक रिसर्चर है प्रूव करती है कि “अटेंशन रेजिड्यू” `नाम की एक चीज़ होती है.
टास्क A फिनिश किये बिना जब आप टास्क A से टास्क B की तरफ मूव करते है तो होता ये है कि हमारा दिमाग उस वक्त भी टास्क A के बारे में ही सोच रहा होता है. और ये रेजिड्यू जितना इंटेंस होगा उतना ही खराब आप टास्क B पर परफॉर्म करेंगे.
तो जब आप डीपवर्क की टेक्नीक सीखंगे (जो कि इस समरी में दी गयी है ) और उन्हें अपनी लाइफ में अप्लाई करेंगे तब आप कम टाइम में भी आप हाइएस्ट क्वालिटी का वर्क प्रोड्यूस कर पाएंगे.

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चैप्टर टू: डीपवर्क रेयर होता है

टॉम कोह्र्रेन ने देखा कि हर रोज़ उनका डेढ़ घंटा तो सिर्फ इमेल्स पढने और उनका रिप्लाई देने मे निकल जाता है। तो उन्होंने सोचा कि इसका कंपनी पर क्या इफेक्ट पढता है और एक इंडिविजुअल का उसकी कंपनी में क्या कोंट्रीब्यूशन होता है. तो उन्होंने कुछ डिटेल्स जमा की जैसे सारे सेंट इमेल्स, टाइपिंग की स्पीड, रीडिंग स्पीड और एम्प्लोयीज़ की सेलेरी. उन्होंने एनालिटिकल सिस्टम से इसे निकाल कर देखा तो पता चला कि हर इमेल को पढना लेबर के हिसाब से 95 सेंट्स का पड़ता था.

बहुत सारी कंपनीज़ जैसे फेसबुक वगैरह “द हॉल” का कांसेप्ट अडॉप्ट कर रही है, जिसमे एक ओपन स्पेस ऑफिस रहता है और हर एम्पलाय को कोई अलग से केबिन ही दिया जाता ताकि वो आपस में इंटरएक्ट कर सके और अपने आईडिया शेयर कर सके। लेकिन ये उन्हें डिसट्रेक्ट भी करता है क्योंकि ये उनके डीप वर्क ज़ोन से बाहर रखता है.

अक्सर लोग बिजिनेस को प्रोडक्टीविटी से कनफ्यूज़ करते है. अपनी जॉब में वेल्युब्ल होने और प्रोडक्टिव बनने के बारे में कोई क्लियर नॉलेज ना होने की वजह से बहुत सारे नॉलेज़ेबल वर्कर्स वही गलती करते है जो प्रोडक्टीवीटी दिखाने का इंडस्ट्रियल इंडिकेटर है: यानी एक साथ बहुत सारी चीज़े करना.
ऐसा बहुत सारे एम्प्लोयीज़ करते है। वे अपने सामने पढे किसी भी काम को करने लगते है ताकि उन्हे लगे कि वो बहुत काम करते है। और साथ ही जैसा आजकल ट्रेंड है जो काम इंटरनेट से रीलेटेड है वो तो प्रोडक्टिव माना ही जाएगा. इन्ही सब वजहों से डीप वर्क रेयर होता जा रहा है जो एक तरह से आपके लिए अच्छी खबर है क्योंकि जो डीप वर्क कर सकता है वो किसी से भी कम्पटीट कर लेगा और अपने साथ काम करने वालो को आसानी से पीछे छोड़ देगा.

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Chapter 2

चैप्टर थ्री: डीपवर्क मीनिंगफुल है रिक फ्यूरर एक ब्लैक स्मिथ है. वो एनशियेंट और मेडीडेविल मेटल वर्किंग प्रेक्टिस में स्पेशलिस्ट है जिन्हें वो बड़ी मेहनत से अपने शॉप में क्रिएट करता है। अगर उसे एक तलवार बनानी है तो उसे ये हाथ से बनाने में पूरे 8 घंटे लगेंगे और हर बार हथोड़े की चोट ब्लेड के एक खास पॉइंट पर ही पड़नी चाहिए। इस तरह के काम में बहुत ज्यादा कोंशनट्रेशन चाहिए और किसी भी तरह की डिसट्रेक्शन नहीं होनी चाहिए और आपको जानकार हैरानी नहीं होनी चाहिए कि इस आदमी का कोई फेसबुक अकाउंट क्यों नहीं है। किसी भी चीज़ के ऊपर अपना अटेंशन फोकस करने की एबिलिटी आपकी लाइफ की क्वालिटी को बहुत बड़े लेवल पर अफेक्ट करती है और ये आपका एक्स्पीरियंश लेवल भी बढाती है। लौरा कार्सटेंशेंन अपने पेशेंट की ब्रेन एक्टीविटी जांचने के लिए एमआरआई स्कैंनर यूज़ करती है। वो जानना चाहती है की  ब्रेन का एक हिस्सा जिसे एमिगडेला कहते है, पोजिटिव और नेगेटिव इमेजेस पर कैसे इमोशनल रिएक्ट करता है उसने देखा कि छोटे पेशेंट दोनों पिक्चर से अफेक्टेड होते है जबकि बड़े पेशेंट सिर्फ पोजिटिव इमेजेस से अफेक्ट हुए थे। लेकिन इससे ये बात प्रूव नहीं होती कि बड़े लोग बहुत सुखी थे इसलिय उन्हें पोजिटिव इमेजेस ज्यादा अच्छी लगी बल्कि इसलिए क्योंकि उनका ब्रेन इस तरह रीवायर्ड हो गया था जो उन्हें निगेटिव के बजाये पोजिटिव चीजों को एप्रीशियेट करने की इंस्पिरेशन देता था। अपने अटेंशन को इस तरह से मैनेज करके इन लोगो ने अपने लिए ये दुनिया थोड़ी सी इम्प्रूव कर ली थी, और ये सब विचारो को बदर कर किया था ना कि कोई बहारी बदलाव से। और ये बात भी प्रूव हुई है कि छोटी- छोटी चीज़े जो पोजिटिव लगती है जैसे इमेल या फिर किसी ओल्ड फ्रेंड से मिलना या ऑफिस पॉलिसीज पर बात करना –ये सब मिलकर आपके दिमाग में एक इमेज बिल्ड अप कर लेती है जिससे लगेगा कि आपकी लाइफ कितनी स्ट्रेस फुल है, फ्रस्टरेटिंग और डिप्रेसिंग है और वो इसलिए कि इन सब छोटी-छोटी चीजो पर आपका डिवाइडेड अटेंशन रहता है. तो अपना टारगेट हमेशा केयरफुली चुने और फिर उस पर अपना पूरा फोकस लगा दे. इन शोर्ट कहे तो आपको एक फोकस्ड लाइफ जीने की कोशिश करनी चाहिए जोकि सबसे बेस्ट है। (Chick-san-mehaaye) एक फेमस साइकोलोजिस्ट है जिन्होंने ईसीएम (एक्स्पेरियेंश सेम्पलिंग मेथड), (एक टेक्नीक जो किसी ख़ास मूमेंट पर आपकी फीलिंग रिकॉर्ड करती है) से ये प्रूव किया है कि “बेस्ट मोमेंट आमतौर पर तब होते है जब किसी इंसान का माइंड और बॉडी किसी डिफिकल्ट और कीमती चीज़ को हासिल करने के लिए खुद ब खुद पूरी तरह से फोक्सड हो जाता है  और इसी स्टेट में वो सबसे खुश हो सकता है। और इस मेंटर स्टेट को फ्लो कहा जाता है जिस पर बुक भी लिखी जा चुकी है।   पार्ट टू: द रूल्स रूल #1: वर्क डीपली युडोमोनिया मशीन एक ग्रीक कांसेप्ट है जो कि एक रूम के बारे में है जहाँ इंसान अपनी फुल पोटेंशियल और एक एक्सट्रीम फोक्सड स्टेट  तक पहुँच सकता है। ये एक ऐसा स्पेस है जहाँ आप डीप वर्क कर सकते है। ये 5 कमरों वाला स्पेस है जो आपस में कनेक्टेड है और कमरा नम्बर 5 में पहुंचने के लिए आपको पहले रूम नम्बर 4,3,2,1 से गुज़रना पड़ेगा तो आप मशीन के किसी भी स्टेज को बाईपास नहीं कर सकते है फर्स्ट रूम आपको हल्का सा स्ट्रेस दिया जाता है ये बाते कि आप जो काम करने वाले हो वो इम्पोरटेन्ट है। सैकड रुम में आपके अन्दर काम से रिलेटड क्यूरोसिटि जागायी जाती है ताकि आप उनके बारे में सोचने लग जाओ। थर्ड रूम में आपको सारे रेकोर्ड्स मिलेंगे जो आपका काम पूरा करने के लिये जरुरी है ताकि जब आप काम शुरु करो तो उस बीच में छोर के ना जाना पडे। फोर्थ रूम में आप अपने काम से रिलेटड सारे  आईडियाज़ को एक कागज पर लिखते है और फिफ्थ रूम साउंड प्रूफ है और सबसे अलग ताकि उस काम को करते वक्त कोई भी डिस्टर्ब ना करे। यही वो रूम है जहाँ डीपवर्क होता है। आप 90 मिनट कंसंट्रेट करते है और 90 मिनट का ब्रेक लेते है जिससे आपको ह्युमन ब्रेन का मैक्सिमम फायदा मिलता है। बदकिस्मती से ये विजन हमारी करंट रियेलिटी से अभी कोसो दूर है। इसके बजाये हम अभी भी खुद को ओपन स्पेस ऑफिसेस में पाते है जहाँ इन्बोक्स के मैसेज और ईमेलट नेगलेक्ट नहीं किये जा सकते है और लगातार मीटिंग्स चलती रहती है- ये ऐसी सेटिंग होती है जहाँ  कलीग्स बेस्ट पॉसिबल रिजल्ट के बदले आपसे अपने इमेल्स का क्विक रीस्पोंड चाहते है और इस बुक के हिसाब से माने तो आप एक तरह से शेलो वर्क यानि खिखला काम करने के लिए मजबूर हो जाते है लेकिन अगर आप रूल्स फोलो करते है तो अपने काम में वही सेम इफेक्ट पा सकते है जैसे कि आप किसी युडोमोनिया मशीन के अन्दर हो। डीप वर्क की हैबिट डेवलप करने का सीक्रेट है कि गुड इंटेंशन से आगे निकला जाए (डीप वर्क की स्टेट में आने की कोशिश करना )और अपने डेली वर्किंग लाइफ में वो रूटीन्स और स्टेपस एड करे जो इस तरह डीजाइन किये गए है कि आपके विल पॉवर को मिनिमाइज़ अमाउंट में यूज़ करके आपको एक ऐसे स्टेट ऑफ़ माइंड में रखे जिसमे आपका कान्सट्रेशन टूटे नहीं। क्योंकि विल पॉवर तो एक मोबाइल बैटरी की तरह ही है जो टाइम के साथ कम होता जाता है। यहाँ हम आपको चार ऐसी स्ट्रेटेटीज़ बता रहे है जो माइंड को “डीप वर्क” की स्टेज में लेकर जा सकती है।

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