(Hindi) David and Goliath

(Hindi) David and Goliath

इंट्रोडक्शन(Introduction)

क्या आपने कभी सुना है कि एक पढ़ने लिखने की तकलीफ़ से जूझने वाला इंसान लॉयर बन गया हो ? क्या आपने कभी एक मामूली बकरी चराने वाले लड़के को एक ताकतवर योद्धा को  हराते हुए देखा है? आप सोच रहे होंगे कि ऐसा तो बस मन को बहलाने वाली कहानियों में होता है, है ना? नहीं,ऐसा सिर्फ़ फ़िल्मों में नहीं होता, कभी-कभी ये असल जिंदगी में भी होता है.

हमें जो अक्सर दिखता है वो हमेशा सच नहीं होता. एक कहावत है “लुक्स आर deceptive” यानीजो जैसा दिखता है वो हमेशा वैसा नहीं होता. छोटी सी चीज़ में भी कोई बड़ी बात छुपि हो सकती है.हमारी अपीयरेंस एक छलावा भी हो सकती है. ये एक इम्पोर्टेन्ट सबक है जो आप इस बुक के माध्यम से सीखेंगे. कुछ लोगों को देख कर ही हम अनुमान लगा लेते हैं कि वो तो हारने वाले हैं. कुछ लोग दिखने में फिजिकली इतने स्ट्रोंग नहीं होते और हम पहले से ही मान लेते हैं कि वो कभी जीत नहीं सकते. लेकिन ये underdog की तरह होते हैं जो अचानक जीत कर हमें चौंका देते हैं.

डेविड और गोलिअथ की कहानी  में आपको इसकी झलक दिखाई देगी. यह बुक आपको कई अनमोल बातें सिखाएगी. आप चीज़ों को अलग नज़रिए से देखने लगेंगे. आप सोसाइटी में फ़ैली मानसिकता को गहराई से समझने लगेंगे.

हम में से कई लोग हैं जो सोचते हैं कि किसी भी चीज़ का ज़्यादा से ज़्यादा होना हमेशा अच्छा होता है यानी ताकत हो तो बहुत होनी चाहिए, पैसा हो तो बहुत होना चाहिए. यानी ज़्यादा है तो अच्छा है, लेकिन एक ऐसा भी पॉइंट आता है जब ज़्यादा अति का रूप ले लेता है और किसी भी चीज़ की अति हमेशा विनाश का कारण बनती है. ये बुक आपको समझाएगी कि हमें कभी दूसरों को जज नहीं करना चाहिए, ये आपको किसी भी चैलेंज से उभरना सिखाएगी. आप माफ़ करना और चीज़ों को पकड़ कर रखने के बजाय उन्हें छोड़ना सीखेंगे.

डेविड और गोलिअथ कि कहानी एक इंटरनेशनल बेस्ट सेलर है और मैलकॉम की हर बुक की तरह, ये बुक साइकोलॉजी और सोशियोलॉजी के फील्ड में उनकी गहरी समझ और सोच को दिखाती है. इसे पढ़ने के बाद में आपको समझ आएगा कि उन्हें एक महान थिंकर क्यों कहा जाता है.

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डेविड एंड गोलिअथ (David and Goliath)

बहुत पुरानी बात है, इसरायली और फिलिस्तीनियों के बीच एक दूसरे के देश को जीतने की होड़ लगी हुई थी. इलाह वैली में बैटल फ्रंट था. इसरायली आर्मी ने नार्थ के हिस्से में कैंप लगाया और फिलिस्तीन आर्मी ने साउथ की ओर. दोनों तरफ़ के किसी भी सोल्जर ने इस लाइन को क्रॉस करने की जुर्रत नहीं की थी.
लेकिन कुछ समय बाद फिलिस्तीनी बेचैन होने लगे. उन्होंने पहल की और अपने सबसे ताकतवर सोल्जर को आगे भेजा. उसका नाम गोलिअथ था. वो सात फुट का लंबा चौड़ा आदमी था. उसनेपूरे शरीर को कवच से ढक रहा था.उसके पास तीन हथियार थे तलवार, भाला(spear) और जेवलिन.

उसने चिल्लाकर इसरायलीयों से कहा, “अपने सबसे ताकतवर और जांबाज़ सोल्जर को मेरा सामना करने भेजो. अगर वो जीत गया तो हम सब तुम्हारे ग़ुलाम बन जाएँगे. लेकिन अगर मैं जीता तो तुम सब को हमारे आगे सर झुकाना होगा”.

इसरायली काफ़ी घबरा गए.वो कैसे इस विशालकाय महा शक्तिशाली को हरा पाएँगे? तभी एक बकरियां चराने वाला चरवाहा (shepherd) सामने आया. उसका नाम डेविड था. इजराइल आर्मी के लीडर शाऊल डेविड को देख कर बड़े चिंतिति हुए.उन्होंने उस छोटे से दुबले पतले लड़के से कहा कि तुम ज़रा देर भी नहीं टिक पाओगे. लेकिन डेविड ये सुन कर निराश नहीं हुआ. उसने कहा कि वो उसकी बकरियों के पास आने वाले किसी भी शेर या भालू से लड़ने का जज़्बा रखता था.

इस जवाब को सुन कर शाऊल ने आगे कुछ नहीं कहा. फ़िर डेविड ने कुछ छोटे छोटे पत्थर उठाए और गोलिअथ के सामने खड़ा हो गया. गोलिअथ ने जब ये देखा तो ठहाके मार कर हँसने लगा. उसने कहा, “क्या मैं तुम्हें राह चलता कुत्ता लग रहा हूँ, जिसे तुम अपनी बकरियां चराने वाली लाठी से डरा कर भगा दोगे?”

लेकिन इसके बाद जो हुआ वो इतिहास के पन्नों में अमर हो गया. डेविड ने अपनी गुलेल (slingshot) में एक पत्थर रखा और गोलिअथ के माथे के ठीक बीच बीच निशाना लगाया. पत्थर लगते ही वो विशालकाय आदमी ज़मीन पर धराशायी हो गया. डेविड जितना हो सकता था उतनी तेज़ी से आगे की ओर दौड़ा. उसने गोलिअथ की तलवार छीन कर उसका सर काट दिया. ये नज़ारा देख कर फिलिस्तियों के होश उड़ गए और वो सब वहाँ से भाग निकले.

गोलिअथ ने सोचा था कि डेविड उससे आमने सामने लड़ाई करेगा. लेकिन अगर ऐसा होता तो डेविड का हारना तय था. डेविड बहुत होशियार और स्मार्ट था. उसने दूर से गोलिअथ पर निशाना लगाया. वो गुलेल चलाने में माहिर था, वो जानता था कि उसका निशाना चूकेगा नहीं. ऐसा करके उसने गोलिअथ को बिलकुल चौंका दिया था. इसे कहते हैं एक कमाल की बैटल स्ट्रेटेजी जिसमें सिर्फ़ बुद्धि की ज़रुरत थी ताकत की नहीं.

हिस्टोरियंस का कहना है कि असल में गोलिअथ “एक्रोमीगेली” नाम के एक कंडीशन से पीड़ित था. इस बीमारी में पिट्यूटरी ग्लैंड ज़रुरत से ज़्यादा हॉर्मोन बनाने लगता है जिसकी वजह से इंसान के हाथ, पैर और हाइट abnormal तरीके से बढ़ने लगती है. इस कंडीशन की वजह से धुंधला दिखाई देने लगता है या एक ही चीज़ की दो तस्वीर आंखों के सामने बनने लगती है.

इससे ये बात सामने आई कि गोलिअथ बहुत बलवान और लंबा चौड़ाथा. उसने कवच भी पहन रखा था लेकिन उसकी एक कमज़ोरी थी. पहला, अपने बड़े शरीर के कारण वो काफ़ी स्लो था और दूसरा, उसे ठीक से दिखाई नहीं देता था.

देखने वालों को यही लगा था कि डेविड कमज़ोर था. वो दुबला पतला छोटा सा एक मामूली लड़का था. लेकिन डेविड ने सबको गलत साबित कर दिया. वो बहुत बुद्धिमान, फ़ुर्तीला और गुलेल चलाने की कला में माहिर था.

तो यहाँ सबक ये है कि बाहरी रूप से धोखा ना खाएँ. सिर्फ़ इसलिए कि कोई दिखने में ज़्यादा ताकतवर नहीं है इसका ये मतलब नहीं होता कि वो आसानी से हार जाएगा.कई दिग्गजों ने इसे बार-बार युद्ध के मैदान में और स्पोर्ट्स के फील्ड में साबित किया है.

कई बार आर्मी और स्पोर्ट्स टीम्स ने सामने वाले की किसी कमी को देख कर बस ये अनुमान लगा लिया कि वो तो आसानी से हार जाएंगे. इसका नतीजा ये हुआ कि वो लापरवाह हो गए और जिसे वो underdog समझ रहे थे जब उन्होंने अटैक कियातो वो ख़ुद संभल नहीं पाए और उन्हें मुंह की खानी पड़ी.

ऐसे लोग अच्छी स्ट्रेटेजी और पक्के इरादे से एक ऐसी जीत हासिल करते हैं जिसकी किसी को उम्मीद नहीं होती और इनकी जीत ऐसी होती है कि ये आपको चौंकाती भी है और तारीफ़ करने पर मजबूर भी करती है.

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द एडवांटेज ऑफ़ डिसएडवांटेज  (The Advantage of Disadvantage)

तो आइए अब हम बात करते हैं कि हमारी सोसाइटी कितनी पार्शियल है. इस पार्ट में हम अमीरों की तरफ़ सोसाइटी का रवैया समझने की कोशिश करेंगे. तो चलिए पहले बात करते हैं कि पढ़ाई लिखाई और पालन पोषण में पैसों से होने वाले कौन से नुक्सान हैं.

आज कल हम ये मानने लगे हैं कि एक क्लास में जितने कम बच्चे होंगे, बच्चों की परफॉरमेंस उतनी ज़्यादा अच्छी होगी क्योंकि टीचर एक एक बच्चे पर ठीक से ध्यान दे पाएँगे. लेकिन क्या सच में ऐसा होता है? स्टेटिस्टिक्स और रिजल्ट तो कुछ और ही दिखाते हैं.

मान लीजिये कि दो क्लास है, क्लास A और क्लास B. क्लास A में10 बच्चे हैं और B में 25. लोग इमेजिन कर लेते हैं हैं कि क्लास A के बच्चों के ज़्यादा अच्छे मार्क्स आएँगे.

लेकिन सच्चाई तो ये है कि दोनों क्लास की परफॉरमेंस बिलकुल एक जैसी होगी. लेकिन ऐसा क्यों? क्योंकि जब क्लास की साइज़ छोटी हो जाती है तो टीचर एक्स्ट्रा एफर्ट नहीं देते. उनकी आदत रिलैक्स करने की हो जाती है.

इसे इस तरह सोचिए.एक डॉक्टर आमतौर पर दिनभर में 25 पेशेंट्स को चेक करते हैं. लेकिन अगर फ्राइडे को उनके पास सिर्फ़  20 पेशेंट ही आए तो क्या आपको लगता है कि डॉक्टर हर पेशेंट को ज़्यादा समय देंगे, ये जानते हुए कि उन्हें उतने ही पैसे मिलने वाले हैं जितने हमेशा मिलते हैं?

तो इसका जवाब एक बड़ा सा ना है. हर दिन के मुकाबले डॉक्टर अपना काम जल्दी ख़त्म कर के अपनी फॅमिली के साथ थोड़ा समय बिताने के लिए चले जाएँगे. बिलकुल ऐसा ही टीचर्स के साथ भी होता है.

तो यहाँ ये समझने की ज़रुरत है कि अगर क्लास बहुत बड़ी हुई यानी 70 बच्चों का तो वो ठीक नहीं है. अगर क्लास बहुत छोटा हुआ यानी 10 बच्चों तक का तो वो भी बिलकुल ठीक नहीं है. सबसे अच्छा होता है एक मीडियम क्लास साइज़ सेलेक्ट करना जैसे कि 40 बच्चों तक का. इससे टीचर अपना पूरा एफर्ट लगाएंगे. ना उन्हें ज़्यादा थकान होगी और ना उन्हें ज़रुरत से ज़्यादा काम करना पड़ेगा. हर चीज़ में बैलेंस होना बहुत ज़रूरी है.

बिलकुल ऐसा ही बच्चों की परवरिश में होता है. अक्सर गरीबी एक अच्छा पैरेंट बनने में सबसे बड़ी बाधा बन जाती है.एक्जाम्पल के लिए, अगर आप एक पिता हैं और फैक्ट्री में वर्कर की पोस्ट पर काम करते हैं तो दिन ख़त्म होते होते आप इतने थक जाएंगे कि घर जाने के बाद अपने बच्चों के साथ खेलने के लिए आप में बिलकुल एनर्जी नहीं होगी.

या अगर आप एक सिंगल वर्किंग मदर हैं तो आप अनगिनत जिम्मेदारियों की वजह से हमेशा स्ट्रेस में रहेंगी. तब अपने बच्चों पर पूरा ध्यान देना आपके लिए काफ़ी मुश्किल होगा.

लोगों को ये भ्रम है कि अगर आप अमीर हैं तो परवरिश करना बहुत आसान हो जाता है. लेकिन ये बिलकुल सच नहीं है. आइये इस कहानी से समझते हैं.

जॉन एक फेमस हॉलीवुड एक्टर हैं. वो मिनीपोलिस, USA में पले बढ़े थे. उनका बचपन काफ़ी गरीबी में गुज़रा. छोटी उम्र में ही वो काम करने लगे. वो अपने आस पास के घरों में साफ़ सफ़ाई का काम करते जैसे बगीचे की घास काटना, सूखी पत्तियों का ढेर उठाना या सर्दियों के मौसम में रास्ते से बर्फ़ किनारे लगाना.

उनके पिता काफ़ी स्ट्रिक्ट थे. अगर जॉन कुछ खरीदना चाहते जैसे बाइक या और कुछ तो वो उन्हें ख़ुद पैसे कमाने के लिए कहते. अगर वो अपने रूम की लाइट बंद करना भूल जाते तो उनके पिता उन्हें बिजली का बिल दिखाने लगते. वो जॉन को ताना मारते कि क्योंकि वो आलसी है इसलिए उन्हें बिजली के ज़्यादा पैसे भरने पड़ते हैं.

कॉलेज में, जॉन अपने साथ पढने वाले अमीर दोस्तों के लिए लांड्री सर्विस का काम करते थे. वो उनके कपड़े लांड्री में ले जाते और वापस उन्हें डिलीवर करते जिसके लिए उन्हें पैसे मिलते थे. जॉन ने न्यू यॉर्क के बिज़नेस स्कूल से पढ़ाई पूरी की. फ़िर एक दिन उन्हें एक्टिंग के फील्ड में एक छोटे से रोल का ऑफर मिला.बस यहाँ से उनकी लाइफ बदलना शुरू हुई. इसके बाद उन्हें एक के बाद एक ऑफर मिलते चले गए.

फ़िर एक समय आया जब जॉन हॉलीवुड के जाने माने स्टार बन गए. अब उनके पास एक Ferrari है और बेवर्ली हिल्स में आलिशान घर.समय के साथ उन्होंने शादी की और पिता बने. उन्हें अपने बच्चों से बहुत प्यार है लेकिन वो इस बात से चिंतित थे कि क्योंकि वो पैसे वाले थे तो उनके बच्चों की वैसी परवरिश नहीं होगी जैसी उनकी हुई थी. उन्हें पैसे कमाने के लिए कड़ी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी. लेकिन यही तो चिंता का कारण था क्योंकि बिना किसी स्ट्रगल और तंगी को महसूस किये बिना एक स्ट्रोंग कैरेक्टर बनना बहुत मुश्किल है.

इकोनॉमिस्टस ने इस ट्रेंड को स्टडी किया है. अगर पेरेंट्स की इनकम साल में 75,000 $ से ज़्यादा है तो बच्चों की परवरिश करना उतना ही मुश्किल हो जाता है जितना की मुश्किल एक गरीब के लिए होता है. पैसा कोई एडवांटेज नहीं देता.

बल्कि ये देखा गया है कि अमीर माँ-बाप के लिए अपने बच्चों को डिसिप्लिन करना बेहद मुश्किल काम है. उन्हें ज़्यादा एफर्ट लगाने की ज़रुरत होती है.

जब किसी अमीर घराने का बच्चा कुछ खरीदने की ज़िद करे तो पेरेंट्स ये नहीं कह सकते कि “हम इसे अफ्फोर्ड नहीं कर सकते” बल्कि उन्हें ये कहना चाहिए कि “हम नहीं खरीदेंगे” और अपनी बात पर अडिग रहना चाहिए. हाँ, उनके पास खरीदने के पैसे हैं लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि बच्चा पैसों की अहमियत ही ना सक्झे, अपनी पसंद की हर चीज़ खरीद ले.

अमीर पेरेंट्स को स्ट्रिक्ट होकर एक लिमिट सेट करनी चाहिए. उन्हें अपने बच्चों को समझाना होगा कि वो सब खरीद सकते हैं लेकिन एक अच्छे कैरेक्टर डेवलपमेंट के लिए उन्हें चीज़ों की और पैसों की कदर करना सीखना होगा. जहां उन्हें इजी मनी मिलने लगा वो बिगड़ते चले जाएँगे.

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