(Hindi) Daring Greatly: How the Courage to Be Vulnerable Transforms the Way We Live, Love, Parent, and Lead

(Hindi) Daring Greatly: How the Courage to Be Vulnerable Transforms the Way We Live, Love, Parent, and Lead

इंट्रोडक्शन (Introduction)


क्या आपको हमेशा ऐसा लगता है कि आप में कोई कमी है? क्या आपको ऐसा लगता है कि आपको हर किसी को खुश करने की ज़रुरत है? क्या आप अपनी असली भावनाओं को इस डर से छुपातेरहते हैं कि आपको कमज़ोर और डरपोक का लेबल दे दिया जाएगा? अगर हाँ, तो ये बुक आपके  लिए है.
हमारी भावनाएं ही हमें इंसान बनाती हैं. ये हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है. ये बुक आपको शर्म, खुद के महत्व (सेल्फ वर्थ) और भावनाओंको बेहतर समझने में मदद करेगी. ये आपको साहस करने और हिम्मत ना हारने के बारे में सिखाएगी. आप अपने डर और वल्नरबिलिटी (असुरक्षा की भावना) का सामना करना सीखेंगे.

इस बुक के टाइटल का यही मतलब है, अपनी वल्नरबिलिटी को अपनाना.  ये अपनी गलतियों, अपने दुःख और डर को अपनाने के बारे में है. जैसा कि कहा जाता है “ इंसान सिर्फ उस वक़्त सबसे ज्यादा निडर होता है जब वो सच में सबसे ज्यादा डरा हुआ होता है”.

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स्केर्सिटी : लुकिंग इनसाइड द कल्चर ऑफ़ “नेवर इनफ़” (Scarcity: Looking Inside the Culture of “Never Enough”)

“मैं कभी इतने अच्छे से काम नहीं कर पाता, मुझमें ही कमी है”, “मैं कभी इतनी पतली नहीं हो सकती”, “ मैं कभी इतना स्मार्ट नहीं हो सकता”, “मैं कभी इतनी सफल नहीं हो पाऊँगी”, “आई ऍम नोट एनफ”. आपने कितनी बार लोगों को ये कहते हुए सुना है? ये आपका जीवनसाथी, आपके पेरेंट्स, आपके रिश्तेदार, दोस्त या साथ काम करने वालों में से कोई भी हो सकता है. या आप खुद भी हो सकते हैं !

बात ये है कि कमि या काफ़ी नहीं की भावना तो जैसे हमारा कल्चर ही बन गया है. हम कभी भी संतुष्ट नहीं होते. हमारे अन्दर ये असंतोष की भावना बैठ गई है. हम अपने दिन का ज़्यादातर वक़्त इस चिंता और शिकायत में बर्बाद कर देते हैं कि हमारे पास क्या क्या नहीं है. सुबह उठते ही हम कहने लगते हैं कि “मुझे पूरी नींद नहीं मिली” या “मेरे पास काफ़ी समय नहीं है”.

अभी तक तो हमने दिन की शुरुआत भी नहीं और पहले से ही हम कमियाँ गिनने लगे. ये कमि पूरे दिन यूहीं चलती रहती है. यहाँ तक कि सोने से पहले भी हम सोचते रहते हैं कि “आज मैं ज्यादा काम नहीं करा पाया”, “आज मैं ज्यादा एक्सरसाइज नहीं कर पाया”.

ये जैसे हमारी आदत और संस्कार बन जाती है. ये सोच हमें लालची बना देती है, हम दूसरों से जलने लगते हैं. बिना सोचे समझे हम लोगों के प्रति अपनी राय बना लेते हैं और उनकी बुराई करना शुरू कर देते हैं. ये बिलकुल खुद को हराने या खुद का विनाश करने जैसा ही है. हम अपने लाइफस्टाइल, हमारे परिवार, हमारी शादी और हमारी सक्सेस को उन लोगों से compare करने से रोक नहीं पाते जिनके बारे में ये सोचते हैं कि वो हमसे ज्यादा बेहतर जीवन जी रहे हैं या हमसे ज्यादा खुश हैं.

पर सच्चाई तो ये है कि परफेक्शन जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं है. सच तो ये है कि हर चीज़ अधूरी है, कुछ भी पूरा नहीं है. हम इस भ्रम और ग़लतफहमी में जीते रहते हैं कि ये आदमी या ये सेलेब्रिटी एक परफेक्ट और कम्पलीट लाइफ जी रहा है. हम ऐसी चीज़ों को पाना चाहते हैं तो रियल लाइफ में पॉसिबल ही नहीं है.

इन सब का जड़ क्या है? ये “कमी या असंतोष” की सोच कहाँ से आई? इसके 3 कारण हो सकते हैं. वो हैं शर्म, दूसरों से तुलना और असंतोष.
ये पता करने के लिए कि आपके घर में, स्कूल में, ऑफिस में या कम्युनिटी में शर्म की भावना है या नहीं, इन सवालों के जवाब दीजिये. क्या लोगों से बात मनवाने के लिए अपमान का डर दिखाया जाता है? क्या सफलता के आधार पर खुद की योग्यता और गुणों को आंका जाता है? क्या हमेशा दूसरों पर आरोप लगाना, अपमान करना और उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता है?

ये जानने के लिए कि आपके घर में, स्कूल में, ऑफिस में या कम्युनिटी में comparison किया जाता है या नहीं, इन सवालों का जवाब दीजिये. क्या हर काम के लिए रैंक दिया जाता है या हमेशा कम्पटीशन का माहौल रहता है? क्या क्रिएटिविटी को बढ़ावा देने की बजाय रोकने की कोशिश की जाती है? क्या अपने यूनिक गिफ्ट्स का इस्तेमाल करके कुछ करने की बजाय जो स्टैण्डर्ड बनाया गया है उसे अचीव करने के लिए दवाब डाला जाता है? क्या सिर्फ एक स्किल को सबकी टैलेंट मापने के लिए इस्तेमाल किया जाता है?

क्या आपके स्कूल में, घर में, ऑफिस में या कम्युनिटी में disconnection यानी लोग जुड़ने की जगह दूर होते जा रहे हैं तो इन सवालों का जवाब दीजिये. क्या मेम्बर्स नई चीज़ें ट्राय करने से या रिस्क लेने से डरते हैं? क्या अपने आईडिया और एक्सपीरियंस को शेयर करने से ज्यादा अच्छा चुप रहना है? क्या आपको ऐसा लगता है कि आप पर कोई ध्यान नहीं दे रहा या आपकी बातों पर गौर नहीं कर रहा? क्या मेम्बर्स को अपनी बात आगे रखने के लिए स्ट्रगल करना पड़ता है?

इस शर्म, comparison और disconnection के कल्चर को ख़त्म करने के लिए हमें हर दिन इस अवेयरनेस को फैलाने और इसकी ज़िम्मेदारी लेने की ज़रुरत है. सच तो ये है कि जितनी बार हम इस कमी की भावना से लड़ते हैं हम सच में उतनी बार हिम्मत करते हैं.

अब इस कमी का opposite भरपूर नहीं होता है. इस “नेवर एनफ” का opposite होता है “एनफ”. इसलिए इस कमी की भावना का opposite है दिल भर के. जिसका मतलब है खुद की इम्पोर्टेंस को समझना और वल्नरेबल होना. वल्नरेबल का मतलब होता है अपने फेलियर और weakness को खुल कर aacept करने की हिम्मत या इच्छा.

किसी अनसर्टेनिटी, इमोशनल रिस्क या ज़ोखिम को फेस करने के बाद भी जो इंसान ये कहता है कि “मैं काफी हूँ या आई ऍम एनफ” उसने पूरे दिल से अपनी वल्नरबिलिटी का सामना करके उसे अपनाया है. वो कम्पलीट है, काफ़ी है. इसे ही “एनफ” होना कहते हैं.

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डीबंकिंग द वल्नेरेबिलिटी मिथ्स  (Debunking the Vulnerability Myths)
तो अब समझते हैं कि आखिर वल्नरबिलिटी का मतलब क्या है? इसका मतलब है uncertainity, इमोशनल रिस्क और एक्सपोज़र का सामना करना. वल्नरबिलिटी से जुड़ा हुआ  नंबर वन और सबसे खतरनाक झूठ ये है कि इसका मतलब कमज़ोर होना होता है.

हम अपनी पूरी ज़िन्दगी अपने इमोशंस को छुपाकर या अपनी फीलिंग्स को अनदेखा कर के जीते हैं. हम नहीं चाहते कि दूसरों को कभी भी पता चले कि हम में असुरक्षा की भावना है, कि हम कितने वल्नरेबल हैं. हम नहीं चाहते कि वो हम पर कमज़ोर होने का लेबल लगा दें. हमसे तो बस यही उम्मीद की जाती है कि हम इसे एक्सेप्ट करके आगे बढ़ जाएं.

पर प्रॉब्लम तो ये है कि इस वल्नरबिलिटी के पीछे छुपे उस हिम्मत और साहस को हम देख ही नहीं पाते. वल्नरेबल होने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए. अपनी फीलिंग्स को दबाने के बजाय एक्सप्रेस करना बहुत हिम्मत का काम है. ऐसा करके हम खुद को उस बेचैनी और डर के सामने खोल कर रख देते हैं. ये जानते हुए भी कि हमें जज किया जाएगा, criticize किया जाएगा हम फिर भी अपनी फीलिंग्स को खुल कर सामने रख देते हैं.

इसलिए, वल्नरबिलिटी कमजोरी तो बिलकुल नहीं है. इसलिए इसे तारीफ़ और रेस्पेक्ट की नज़र से देखना चाहिए. इसे एक्सेप्ट करने के बहुत सारे फायदे हैं. ये हमें हमारे रिश्ते मज़बूत करने में मदद करता है, ये हमें एक इंसान के रूप में आगे बढ़ने में मदद करता है.

हर बार जब आप अपनी फीलिंग्स को चाहे वो दुःख, डर, शर्म या निराशाहो, दूसरों से शेयर करते हैं तो आप अपने रिश्ते में प्यार, ख़ुशी, अपनापन, होप, क्रिएटिविटी, हमदर्दी, करेज को बढ़ावा देता है या encourage करते हैं. इसलिए वल्नरबिलिटी हमारे जीवन को एक मीनिंग देता है. देखा जाए तो ये हमारे फीलिंग्स का फाउंडेशन है.

अगर आप किसी से प्यार करते हैं और कोई गारंटी नहीं है कि बदले में वो इंसान भी आपको प्यार देगा तब भी वल्नरबिलिटी हमें ऐसा प्यार करने की ताकत देता है.ये तो बस प्यार देने के बारे में है भले ही सामने वाला आपको छोड़ दे या धोखा दे दे.

ये तो दुनिया के साथ अपने आईडिया, अपना आर्ट, राइटिंग और फोटोग्राफी को शेयर करने के बारे में है फिर चाहे आपके काम की तारीफ हो या ना हो, फिर चाहे आपको criticize किया जा रहा हो.

वल्नरबिलिटी का मतलब ना कहना भी होता भी है और मदद माँगना भी. वल्नरबिलिटी किसी को प्यार करना और कुछ नया ट्राय करना भी है, ये अपने जॉब से निकाले जाने पर अपना बिज़नेस स्टार्ट करने के बारे में है.

अगर आपकी बॉडी शेप में नहीं है फिर भी बाहर निकल कर सबके सामने एक्सरसाइज करना, वो है वल्नरबिलिटी. वल्नरबिलिटी अपने biospy रिपोर्ट का इंतज़ार करना है, ये दो बार miscarriage होने के बाद फिर प्रेग्नेंट होना भी है.

एक नया प्रोडक्ट बना कर लांच करने में भी असुरक्षा की भावना ही है मतलब वल्नरबिलिटी. ये अपने एम्प्लोयीज़ को काम से हटाना भी है. ये स्वीकार करना कि मुझे डर  लग रहा है ,भी वल्नरेबल होना ही है. किसी से माफ़ी माँगना और विश्वास रखना भी वल्नरबिलिटी ही है.

क्या आपने इनमें से किसी भी सिचुएशन को एक्सपीरियंस किया है ? क्या आपको अब भी लगता है कि वल्नरबिलिटी कमजोरी की निशानी है? रिस्क, अनसर्टेनिटी और अनदेखे सिचुएशन का सामना करना ये सब जीवन का हिस्सा है. हर बार जब हम इस वल्नरबिलिटी को खुल कर गले लगाते हैं, अपनी कमजोरियों को गले लगाते हैं तो हम खुद के साथ एक सच्चा और मज़बूत रिश्ता जोड़ते चले जाते हैं. ये हमारे करेज और हिम्मत की निशानी है.

ये वल्नरबिलिटी ही तो है जो हमें इंसान बनाता है, हमें याद दिलाता है कि ये सब फील करना नेचुरल है. इसके बिना लाइफ इमेजिन करके देखिये. वो बिलकुल वैसा ही होगा जैसे  जीवन तो है लेकिन उसमें कोई मीनिंग नहीं है, जिसमें कोई उद्देश्य नहीं है.

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