(hindi) Creative Confidence: Unleashing the Creative Potential Within Us All

(hindi) Creative Confidence: Unleashing the Creative Potential Within Us All

इंट्रोडक्शन (Introduction)

मान लो आपके पास एक पेपर का टुकड़ा है. अब इसमें सेम साइज़ के 30 सर्कल्स ड्रा करो. पर आपको सर्कल्स ऐसे ड्रा करने है कि इससे कोई ऑब्जेक्ट बन सके. कोई भी ऑब्जेक्ट हो सकता है जैसे क्लॉक, बॉल, फिश टैंक या कोई स्टॉप का साईंन कुछ भी. आप चाहो तो 3 मिनट में जितने चाहे सर्कल्स ट्रांसफॉर्म कर सकते हो.

अगर आप सारे 30 सर्कल्स फिनिश नहीं कर पाए तो कोई बात नहीं. ज़्यादातर लोग नहीं कर पाते है. लेकिन आपने इन सर्कल्स से इमेज क्या बनाई ? कोई नॉर्मल सी चीज़ जैसे बास्केटबॉल, एक बिल्लार्ड बॉल या सॉकर बॉल? या फिर कोई फनी चीज़ जैसे प्लानेट, कुकी, पिज़्ज़ा या हैप्पी फेस?

आपने कभी रूल्स ब्रेक किये है ? या इस बारे में सोचा है ? इन 30 सर्कल्स से आप कोई बड़ी इमेज क्रिएट कर सकते हो जैसे स्नोमेन या ट्रैफिक लाईट. आप कुछ भी बना सकते हो, कोई रूल् फिक्स नहीं है. इन 30 सर्कल्स से आप जो चाहे वो बना लो.

कुछ ऐसे ही एक्सपीरिएंस आपको डी. स्कूल में होते है जहाँ आपको इस टाइप के टास्क दिए जाते है. डेविड कैली ने स्टैंडफोर्ड यूनिवरसिटी में इस इंस्टीट्यूट की फाउंडेशन रखी थी. अगर बिजनेस के लिए बी स्कूल्स है तो डिजाईन थिंकिंग के लिए डी स्कूल है. यहाँ डिफरेंट फील्ड्स के लोग आते है जिन्हें  क्रिएटिव कांफिडेंस सिखाया जाता है.

जब आप क्रिएटिविटी शब्द सुनते हो तो आपके माइंड में क्या आता है? आप शायद बोलो कि आर्टिस्ट, पेंटर्स, म्यूजिशियंस और एनीमेंटर्स क्रिएटिव लोग होते है. आपको शायद वेब डिज़ाइनर्स और अर्कीटेकट्स भी क्रिएटिव लगते होंगे जबकि लॉयर्स, साइंटिस्ट और सीईओ नहीं. या शायद आप बोलोगे कि आप क्रिएटिव टाइप नहीं हो.

पर डेविड और टॉम कैली का मानना है कि हर कोई क्रिएटिव बन सकता है. चाहे आप जिस भी फील्ड में हो, जो भी जॉब करते हो, किसी भी पोजीशन में हो, आप अपने टास्क को क्रिएटिव बना सकते हो. जब आप अपने जॉब में कोई न्यू आईडिया या सोल्यूशन लेकर आते हो जिससे लोगो को बेनिफिट हो तो ये भी आपकी क्रिएटिविटी है. अब जैसे मान लो आपने कोई ऐसा टूल या सिस्टम क्रिएट किया जो यूज़ करने में ज्यादा आसान हो, अफोर्डेबल और प्रोडक्टिव हो तो ये आपकी क्रिएटिविटी मानी जायेगी.

क्रिएटिव कांफिडेंस हमारे अंदर न्यू आईडियाज़ डिजाईन क्रिएट करने और उन्हें इम्प्लीमेंट करने की एबिलिटी का नाम है. हम में से ज्यादातर लोग अपने रूटीन जॉब में बिजी रहते है. इसलिए जो भी स्ट्रेटेज़ीज़ या सिस्टम है, उसे हम एक्स्पेट कर लेते है. पर अगर कोई बैटर सोल्यूशन मिले तो क्या अच्छा नहीं है? अगर कोई ऐसा ब्रिलिएंट आईडिया मिल जाए जिससे सबको फायदा हो तो?

इस बुक आप पढेंगे कि क्रिएटिव कांफिडेंस हमे अनलिमिटेड पोसिबिलिटीज़ देती है.

फ्लिप Flip

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फ्रॉम डिजाईन थिंकिंग टू क्रिएटिव कांफिडेंस ( डिजाईन थिंकिंग से क्रिएटिव कांफिडेंस तक ) From Design Thinking to Creative Confidence

डग डाईटज़ (Doug Dietz) जर्नल इलेक्ट्रिक में 24 सालो से काम कर रहे है. आजकल उन्हें जीई हेल्थ केयर के लिए इमेजिंग सिस्टम डेवलप करने का असाइनमेंट मिला है.  ये कंपनी का एक $18 बिलियन डिविजन है. डग को न्यू हाई टेक एम्आरआई मशीन फिनिश करने में ढाई साल लगे. हर यूनिट में कई मिलियन डॉलर्स का खर्चा आया है.

डग उस होस्पिटल में विजिट के लिए गए जहाँ फर्स्ट यूनिट्स इंस्टाल्ड की गयी थी. वो एम्आईआई टेक्निशियंस से मिले और उनसे पुछा कि आपको ये मशीन कैसी लगी. डग ने उन्हें प्राउडली ये भी बताया कि ये मशीन इंटरनेशनल डिजाईन एक्सीलेंस अवार्ड के लिए नोमिनेट हुई है. ये अवार्ड डिजाईन अवार्ड्स का ऑस्कर्स माना जाता है. लेकिन डग की बात सुनकर टेक्नीशियन ने बस इतना बोला कि थोडा साइड हो जाओ.

तभी वहां एक पेशेंट आया जिसकी स्कैनिंग होनी थी. ये एक छोटी सी दुबली-पतली लड़की थी जिसने अपने पेरेंट्स का हाथ पकड़ा था. वो नर्वस थी. उसे स्कैनिंग करवाते हुए काफी डर लग रहा था. मशीन काफी बड़ी और मेंटल से बनी हुई थी. स्कैनिंग के लिए मशीन के अंदर जाना पड़ता था. जब उस बच्ची को एम्आरआई के पास ले जाया गया तो वो रोने लगी.

उसके पेरेंट्स उसे हिम्मत बंधा रहे थे इसके बावजूद लड़की डर रही थी. इसी बीच एनेस्थेयालोजिस्ट को बुलाया गया. डग को पता चला कि छोटे बच्चे मशीन को देखकर बहुत ज्यादा डर जाते है इसलिए उन्हें एम्आरआई मशीन के अंदर भेजने से पहले सीडेटे कर दिया जाता है.

और उसी पल डग को लगा कि उनका डिजाईन फेल हो गया है. हालंकि उन्हें अपने डिजाईन पर प्राउड था पर जिन पेशेंट्स को रियल में ये प्रोजेक्ट यूज़ करना था अगर ये प्रोजेक्ट उन्हें ही पंसद ना आये तो क्या फायदा. डग इस बात से बड़े डिसअपोइन्ट हुए कि उनकी ये मशीन छोटे बच्चो को डरा रही थी.

कोई और होता तो शायद ज्यादा टेंशन नहीं लेता और अपने बाकि प्रोजेक्ट में लग जाता. पर डग जानते थे कि उन्हें कुछ करना है. उन्हें बॉस ने उन्हें एडवाइस दी कि वो जाकर स्टैंडफोर्ड के डी. स्कूल से कोर्स करे. ये वन वीक का कोर्स था जिसे एक्जीक्यूटिव एजुकेशन कोर्स बोला जाता है. डग इस बात को लेकर थोडा डाउट में थे कि इस कोर्स से उन्हें बेनिफिट होगा या नहीं पर अपने बॉस की बात मानकर वो ये कोर्स करने चले गए.

डी. स्कूल में डग ने क्रिएटिव कांफिडेंस के बारे में सीखा. उन्हें ह्यूमन सेंटर्ड डिजाईन प्रोसेस के बारे में सीखने को मिला जिसमे यूजर्स की नीड, उसके थौट्स और फीलिंग्स को डिजाईन की नंबर वन प्रायोरिटी माना जाता है. यानी जिन लोगो के लिए आप प्रोडक्ट बना रहे हो, आपको उनके लिए एक्चुअल में एम्पैथी होनी चाहिए.

डग ने ये भी सीखा कि किसी भी इंडस्ट्री में ह्यूमेन सेंटर्ड डिजाईन काफी इम्पोर्टेंट है. क्योंकि यही वो फैक्टर है जो लोगो की लाइफ में बदलाव ला सकता है. डग ने डिसाइड किया कि वो अब ऐसी मशीन बनायेंगे जिससे छोटे बच्चे बिल्कुल भी ना डरे.

लेकिन डग ये भी जानते थे कि उन्हें एक और नयी एम्आरआई मशीन बनाने के लिए और फंडिंग नही मिल सकती. इसलिए उन्होंने एक्सपीरिएंस को रीक्रिएट करने पर फोकस किया. और उसे एडवेंचर सिरीज़ नाम दिया.

डग ने स्कैनर के अंदर कोई चेंज नहीं किया. बल्कि उन्होंने इसके बाहर से ट्रांसफॉर्म करने के बारे में सोचा. सिर्फ व्हाईट और मेटल के बदले डग ने एम्आरआई मशीन्स को पाइरेट शिप्स या स्पेसशिप के डिजाईन में पेंट करवा दिया. उन्होंने कमरे की वाल्स और सीलिंग भी डेकोरेट करवा दी. जिस मेटल बेड पर पेशेंट्स को लेटना होता था, उसे भी डेकोरेट करवा दिया. ये सारे इक्किप्मेंट्स थीम का पार्ट बन गए.

अब जो नई स्कैनर मशीन बनकर रेडी हुई वो बच्चो को बड़ी मजेदार लगती थी. उन्हें लगता था कि जैसे वो किसी डरावने मेडिकल प्रोसीजर के लिए नहीं बल्कि किसी अम्यूज़मेंट पार्क की राइड के लिए जा रहे है. इस एक्सपेरिमेंट के बाद अमेरिका के अंदर बच्चो के होस्पिटल्स में नौ डिफरेंट एडवेंचर्स इन्सटाल्ड किये गए है. जब कोई बच्चा स्कैनर में एंटर करता है तो एमआरआई मशीन उसे एक्सप्लेन करती है कि वो चुपचाप लेटा रहे क्योंकि वो एक समुंद्री यात्रा पर जाने वाले है या फिर उनका स्पेसशिप टेकऑफ करने वाला है. इसलिए अब स्कैनिंग कराने के लिए बच्चो को सिडेट करने की जरूरत नहीं पड़ती, ना ही किसी एनिस्थियालोजिस्ट को बुलाना पड़ता है क्योंकि ज्यादातर बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी मशीन के अंदर चले जाते है.

अब ज्यादा से ज्यादा बच्चे इस प्रोसीजर के लिए खुद से रेडी हो जाते है. और ये बच्चो के साथ-साथ उनके पेरेंट्स, होस्पिटल और जीई हेल्थकेयर के लिए किसी विन-विन सिचुएशन से कम नहीं है. डग का सबसे हैप्पी मोमेंट वो था जब एक उसने सुना कि एक छोटी लड़की पूछ रही थी” क्या मै एक और बार एम्आरआई स्कैन करा सकती हूँ” ? उस वक्त डग को 100% सेटिसफेक्शन की फीलिंग हुई. और उस दिन के बाद से डग अपने हर प्रोजेक्ट में क्रिएटिव कॉन्फिडेंस और ह्यूमन सेंटर्ड डिजाईन अप्लाई करते है.

अक्सर ये होता है कि प्रोडक्ट डिजाईन करते वक्त कहीं ह्यूमन टच छूट जाता है. हम सिर्फ टेक्निकल और बिजनेस साइड पर ही फोकस करते है. अब ज़रा एक वेन डायग्राम (Venn diagram ) के बारे में सोचो जिसमे तीन ओवरलैपिंग सर्कल्स हो. इसमें फर्स्ट प्रेक्टिकल टेक्नोलोजी के लिए है, सेकंड सस्टेनेबल बिजनेस के लिए और थर्ड लोगो के साथ एम्पैथी की फीलिंग के लिए.

डिजाईन मेकिंग में ऑर्गेनाइजेशंस को इन तीनो फैक्टर्स के बीच बेलेंस क्रिएट करना चाहिए. ये एक ऐसे कॉमन स्पॉट पर हो जहाँ सारे सर्कल्स ओवरलैप हो रहे हो. क्योंकि एक सक्सेसफुल प्रोजेक्ट का सीक्रेट यही है.

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डेयर Dare

फ्रॉम फियर टू करेज़ From Fear To Courage

क्या आप सांप से डरते है ? अल्बर्ट बंडूरा (Albert Bandura, ) स्टैंडफोर्ड यूनीवरसिटी के प्रोफेसर एमेरिटस कहते है कि अपने फोबिया से छुटकारा पाने के लिए आपको एक बार सांप को छू कर देखना होगा. और बंडूरा का दावा है कि इस ट्रीटमेंट से एक दिन में ही आपका सांपो का डर हमेशा के लिए दूर हो जायेगा.

एक साईंकोलोजिस्ट के तौर पर बंडूरा को इस फील्ड में 50 साल से भी ज्यादा का एक्स्पिरिएंस है. वो अब 87 के है फिर भी अपने स्टैंडफोर्ड के ऑफिस में काम करना पसंद करते है. जिन पेशेंट्स को वो ट्रीट करते है, इनमे से ज्यदातर लोगो ने अपनी पूरी लाइफ इसी फोबिया के साथ जी है और इससे छुटकारा भी पाया है, बल्कि उनके अंदर एक नयी हिम्मत आई है.

इस टेक्नीक को स्टेप बाई स्टेप करना होता है. इमेजिन करो आप बंडूरा के ऑफिस में हो और आपको सांपो से सबसे ज्यादा डर लगता है. तो पहले बंडूरा आपको बोलेंगे कि साथ वाले रूम में एक बोआ कंस्ट्रिकटर है और आपको उस रूम में जाना है. ऑफ़ कोर्स आप यही बोलेंगे” क्या! नहीं, कभी भी नहीं चाहे कुछ भी हो जाये”

अब उसके बाद आपको कुछ चेलेंजेस मिलेंगे जो आपको सांप के नजदीक ले जायेंगे. वहां एक वन वे मिरर है जिसके थ्रू आप देख सकते हो कि एक आदमी अपने गले में एक बोआ कंस्ट्रिकटर लपेटे खड़ा है. बंडूरा आपसे पूछेंगे कि अब आगे क्या होगा. तो आप बोलोगे” सांप इस आदमी के गले को चोक करके इसे मार डालेगा.

लेकिन उस आदमी को कुछ नही होता है. बोआ कंस्ट्रिकटर ऐसे ही उस आदमी के गले में पड़ा रहता है. इसकी लॉन्ग और मोटी बॉडी धीरे-धीरे मूव करती है. अब बंडूरा आपको उस रूम के डोर पर खड़े होने को बोलेंगे जहाँ सांप है. आपको बस दूर से देखना है. आपकी हिम्मत बढ़ाने के लिए बंडूरा आपके साथ खड़े हो जाते है.

तो अब तक आप सांप के कुछ स्टेप्स क्लोज तो आ ही चुके हो. अब आप सांप से सिर्फ कुछ फीट की दूरी पर हो. और सेशन के एंड तक आपको फाईनली सांप के पास जाकर उसे टच करने को बोला जायेगा. आप हिचकते हुए सांप को छू लेते हो. आप अपना हाथ बढाकर उसकी बॉडी को टच कर लेते हो. और आखिर आपने वो कर ही दिया जिससे आप सबसे ज्यादा डरते थे. इस एक्सपेरिमेंट के बाद बंडूरा के ज्यादातर पेशेंट्स का फोबिया दूर हुआ है. कुछ मंथ्स बाद जब वो दुबारा पेशेंट्स से मिलते है तो पेशेंट्स बताते है कि अब उन्हें सांपो से डर नहीं लगता. एक औरत को तो सपना भी आया था कि बोआ कंस्ट्रिकटर उसे बर्तन धोने में हेल्प कर रहा है. उसे अब और सांपों के डरावने सपने नही आते.

तो इस ट्रीटमेंट में होता क्या है? बंडूरा इसे “गाईडेड मास्टरी” बोलते है. इसका सीक्रेट है कि पेशेंट को पहले ऐसा टास्क दो जो वो ईजिली हैंडल कर सके, उसके बाद दूसरा और फिर तीसरा जब तक कि वो अपना गोल ना अचीव कर ले. यानी एक टाइम में एक स्माल स्टेप.

इस ट्रीटमेंट के बाद पेशेंट्स ने बताया कि ना सिर्फ उनका फोबिया दूर हुआ है बल्कि उन्होंने अपने बारे में नई चीज़े भी डिस्कवर की है. अब उनके अंदर और ज्यादा हिम्मत आ गयी है न्यू एक्सपीरिएंस ट्राई करने के लिए जैसे घोड़े की सवारी, पब्लिक स्पीकिंग, या जॉब में न्यू रिस्पोंसेबिलिटीज़. उन्होंने सांप को छुआ तो उन्हें लगा कि अब वो हर काम कर सकते है.

इसी तरह क्रिएटिव कांफिडेंस में भी वन स्टेप एट अ टाइम का कांसेप्ट अप्लाई किया जा सकता है. आपका सबसे बड़ा डर क्या है जो आपको क्रिएटिव बनने से रोक रहा है? क्या आप कुछ नया ट्राई करने से डरते हो? इसे फियर ऑफ़ फेलर भी बोल सकते है. बिलकुल सांप की तरह ही ये फियर तभी दूर होगा जब तक कि आप खुद इसे एक्सपीरिएंस नहीं करते.

इन फैक्ट, क्रिएटिव जीनियस जैसे मोजार्ट और डार्विन अक्सर फेल होते रहते थे. लेकिन ये लोग इसीलिए सक्सेसफुल हुए क्योंकि इन्होने फेल होने के डर से ट्राई करना नही छोड़ा. ये अपने गोल की तरफ और ज्यादा शॉट्स मारते गए. क्रिएटिव जीनियस फेल होते है पर ट्राई करना नही छोड़ते.

सीक्रेट यही है कि आप अपनी मिस्टेक से सीखो. फेलर्स को एक लर्निंग अपोरच्यूनिटी समझो. जब भी थॉमस एडिसन फेल होते थे तो बोलते थे कि कम से कम मुझे ये तो पता चल गया कि ये मेथड काम नहीं करेगा. वो पूरे दिन में जितने हो सके उतने ज्यादा एक्सपेरिमेंट्स करते रहते थे. यही वो चीज़ है जो लर्निंग प्रोसेस को फ़ास्ट और मोर इफेक्टिव बनाती है.

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