(hindi) Change Your Thinking Change Your Life

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इंट्रोडक्शन

क्या आपको लगता है कि आप दुनिया की सारी खुशियाँ, सक्सेस और पैसा पाने के हकदार हैं? क्या आप इस बात को मानते हैं कि जब तक आप पक्का इरादा बनाए रखते हैं तब तक आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं? क्या आप इस बात से सहमत हैं कि जिंदगी में हमें जिस सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है वो है हमारा डर और हम ख़ुद?

इस बुक के ऑथर ब्रायन ट्रेसी को लगता था कि वो जिंदगी में कुछ भी करने के लायक नहीं थे  और इस प्रॉब्लम को हल करने का उनके पास कोई उपाय नहीं था. लेकिन उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई जब उन्होंने कुछ प्रिंसिपल्स को अप्लाई करना शुरू किया जिसने उनके अंदर पाजिटिविटी और possibility को जन्म दिया.

जो प्रिंसिपल्स आप पढ़ने वाले हैं, ब्रायन ने उसे हज़ारों लोगों के साथ शेयर किया है जो कभी बिलकुल उनकी तरह हुआ करते थे. ये लोग जिंदगी के बारे में सिर्फ़ शिकायत करते और हर सिचुएशन का नेगेटिव पहलु देखते और उन्हें इस बात का यकीन हो गया था कि उनकी जिंदगी कभी बदलने वाली नहीं है. मगर वो सब गलत साबित हुए.

इस प्रिंसिप्ल का फोकस आपके थॉट यानी विचार पर होगा. आपका माइंड एक कमाल का और बेहद पावरफुल मशीन है, इतना ज़्यादा कि आप जिस चीज़ के बारे में सबसे ज़्यादा सोचते हैं वही आप बन जाते हैं. आपको जानकार आश्चर्य होगा कि लगभग हर चीज़ जो आपके साथ होती है वो आपके ही थॉट्स के कारण होती है.

जब आप अपने सोचने का तरीका बदल देंगे तो आपका जीवन भी बदल जाएगा. कुछ लोगों के पास आसमान छूने वाली सक्सेस और ख़ुशियाँ इसलिए हैं क्योंकि वो इस बात को सच में मानते हैं कि वो ये सब कुछ पाने के लायक हैं. सक्सेसफुल लोग आम लोगों की तुलना में ज़्यादा इफेक्टिव ढ़ंग से सोचते हैं. सक्सेसफुल लोग औरों की तुलना में बेहतर एक्शन लेते हैं इसलिए उन्हें रिजल्ट भी औरों से अच्छा मिलता है. तो क्या आप उनमें से एक बनने के लिए तैयार हैं?

Change Your Thinking

जिस वक़्त हमारा जन्म हुआ था, तब से लेकर आज तक, हम सब अपने बारे में एक सोच बना लेते हैं, इसे सेल्फ़-कांसेप्ट कहा जाता है. जब सक्सेसफुल होने की बात आती है तो ये एक बहुत ही इम्पोर्टेन्ट फैक्टर है क्योंकि आपकी लाइफ में आपके द्वारा एक्सपीरियंस किए जाने वाले बदलाव पर आपकी सेल्फ़-कांसेप्ट का गहरा असर होता है.

आपका बचपन बहुत ही इम्पोर्टेन्ट होता है. अगर आप एक ऐसे माहौल में पले-बढ़े हैं जहां आपके पेरेंट्स ने हमेशा आपको समझा है, सपोर्ट और encourage किया है तो ये आपमें कांफिडेंस भरता है और आप ये सोचते हुए बड़े होते हैं कि आप एक इम्पोर्टेन्ट और काबिल इंसान हैं. आपका अपने बारे में जो विचार है वो खुलकर बढ़ने लगता है. लेकिन अगर आपके पेरेंट्स ने हमेशा आपमें कमियाँ निकाली हैं, आपको डांटा और मारा-पीटा है तो आप इस सोच के साथ बड़े होते हैं कि आप नालायक इंसान हैं जो जिंदगी में ना कुछ कर सकता है और ना ही प्यार पाने के लायक है. आप ख़ुद को बेकार समझने लगते हैं.

सक्सेस की इस यात्रा में इस बड़ी बाधा को पार करने के लिए, आपको अपने बारे में नई और सही विचार बनाने होंगे. इस बात को याद रखें कि आप अपने बीते हुए कल को नहीं बदल सकते लेकिन अपने आज को कंट्रोल कर एक बेहतर फ्यूचर ज़रूर बना सकते हैं.

हालांकि, हम अपने बारे में जो सोचते हैं वो सेल्फ़-कांसेप्ट हमारे इमोशंस, विश्वास और एक्सपीरियंस से बना होता है. इसके अलावा कई छोटे छोटे विचार भी होते हैं जिन्हें मिनी सेल्फ़ कांसेप्ट कहा जाता है. इसका एक एग्ज़ाम्पल है कि आप कितने healthy हैं और एक दिन में कितनी एक्सरसाइज करते हैं. दूसरा एग्ज़ाम्पल है कि, आप कितने स्मार्ट हैं और कितने अच्छे से सीखते हैं. इस सभी चीज़ों में मेल होना चाहिए क्योंकि अगर आप चाहते हैं कि आप अपनी क्लास में टॉप करें तो आपको अपना नज़रिया बदलना होगा कि आप स्कूल में कितने अच्छे से सीखते हैं.

अपने सोचने के तरीके को बदलने के लिए, आप जो ख़ुद से कहते हैं और अपने बारे में सोचते हैं उसे बदलना शुरू करें. जब भी आपका मन नेगेटिव विचारों से भर जाए या आप कुछ करने से डर रहे हों तो अपने आप से पॉजिटिव बातें कहें जैसे , “मैं ये कर सकती हूँ या मैं ख़ुद को पसंद करता हूँ”. जब आप पॉजिटिव बातों के बारे में सोचते हैं तो ये आपके थॉट्स, फीलिंग्स और नज़रिए पर असर डालने लगता है. ये आपमें कांफिडेंस भरना शुरू करता है कि आप ख़ुद को बेहतर के लिए बदल सकते हैं. पॉजिटिव थॉट्स आपको ये विश्वास दिलाएंगे कि आप एक ख़ास और प्यारे इंसान हैं.

अपने बारे में ऐसी बातें ना कहें जो आप नहीं चाहते कि सच हो क्योंकि ये आपकी लाइफ में negativity को attract करता है. जब आप negativity को आने देते हैं तो आप ख़ुद में सिर्फ़ कमियाँ और खामियां निकालने लगते हैं. ख़ुद को सख्ती से जज ना करें. जब भी आप कुछ करना चाहते हैं और उसे करने से डर रहे हैं या ख़ुद पर डाउट कर रहे हैं तो तुरंत नेगेटिव चीज़ों के बारे में सोचना शुरू ना करें. अगर आप ऐसा करते रहेंगे तो अनजाने में आप ख़ुद की पर्सनालिटी को खत्म कर रहे हैं.

इस बात को कभी ना भूलें कि आपके थॉट्स बहुत पावरफुल होते हैं, ये आपको बना भी सकते हैं और बर्बाद भी कर सकते हैं. इसलिए ख़ुद को encourage करनी वाली बातें कहें जैसे, “मुझ में कोई कमी नहीं है. मैं कुछ भी अचीव कर सकती हूँ.” जब आप ये बातें बार-बार रिपीट करेंगे तो आप इस पर विश्वास करने लगेंगे और ये आपका कॉन्फिडेंस बढ़ाएगा कि आप लाइफ में किसी भी चैलेंज का सामना कर उससे एक विनर बनकर उभर सकते हैं.

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Change Your Life

आप अपने बारे में क्या सोचते हैं ये आपकी जिंदगी में चैलेंजेज को देखने का आपका नज़रिया बदल सकता है.  अगर आप अपने थॉट्स को पावरफुल बनाने और ख़ुद पर कांफिडेंस रखने के बारे में सोचते हैं तो चाहे लाइफ आपके सामने जैसी भी सिचुएशन खड़ी कर दे, आप उसे ज़रूर पार कर लेंगे. अगर आपकी सोच की क्वालिटी बदल गई तो आपकी जिंदगी भी बदल जाएगी.

जब आप negativity को अपने थॉट्स में जगह बनाने देते हैं तो वो आपकी पॉवर को धीरे-धीरी कम करने लगती है. इससे आपको अपनी काबिलियत पर डाउट होने लगता है और आप कोशिश करने से भी कतराने लगते हैं.

रशियन फिलोसोफर Peter Ouspensky के अनुसार नेगेटिव इमोशंस चारों चीज़ों से जन्म लेती हैं. पहला है justification यानी सफ़ाई देना. दूसरा है, Identification यानी पहचान. तीसरा है, inward considering यानी ध्यान में रखते हुए बातों को सोचना और चौथा है, blame यानी दोष. अगर आपने इन चारों से छुटकारा पा लिया तो आपकी सोच और जिंदगी दोनों बदल जाएगी.

Justification तब होता है जब आप बार-बार ख़ुद को गुस्सा या दुखी होने का कारण देते हैं. आप अपने आप को उन हादसों की याद दिलाते रहते हैं जिन्होंने आपको दुःख पहुंचाया था और आप अपने गुस्से की आग को बढ़ावा देने में बहुत समय बर्बाद कर देते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आपके गुस्से से सामने वाले का नहीं बल्कि आपका ख़ुद का  नुक्सान हो रहा है? ये आपको ख़ुशियों को एक्सपीरियंस करने से रोक देता है. अपने गुस्से को सही ठहराने की बजाय सामने वाले के बारे में एक बार ज़रूर सोचें.

मान लीजिए कि ड्राइव करते वक़्त किसी ने अचानक से पीछे से आकर आपको ओवरटेक किया. अब आमतौर पर हमारा रिएक्शन होता है कि हमें बहुत गुस्सा आता है और हम उस आदमी को बुरा-भला भी कह देते हैं. तो अब यहाँ अपनी सोच को बदलने की ज़रुरत है. गहरी सांस लें और उस आदमी के नज़रिए से सोचें, हो सकता है कि उसे कहीं emergency जैसी सिचुएशन में पहुंचना हो, या हो सकता है कि वो घर जाने की हड़बड़ी में हो या हो सकता है कि ये उसका बुरा दिन था और उससे गलती हो गई.

जब आप इस तरह की सोच रखते हैं तो ये आपको सभी नेगेटिव इमोशन से मुक्त कर देता है, जो आमतौर पर हम सब को घेरे रहती है. हम बहुत जल्द लोगों को जज करने लगते हैं लेकिन बेनिफिट ऑफ़ डाउट देना गलत तो नहीं है, है ना? इस सोच से आपका गुस्सा कम होने लगेगा और किसी एक घटना की वजह से आपका पूरा दिन ख़राब नहीं होगा.

Identification या attachment नेगेटिव इमोशन का बहुत बड़ा कारण है. ये तब होता है जब आप किसी इंसान या चीज़ से इतने ज़्यादा जुड़ जाते हैं कि जब उसके साथ कोई बुरी चीज़ हो जाती है तो आप उसे सहन नहीं कर पाते. आप उससे इमोशनली इतने ज़्यादा अटैच्ड हो जाते हैं कि उसका आप पर नेगेटिव असर होने लगता है.

अपने जीवन को बदलने के लिए आपको अपनी अटैचमेंट कम करना सीखना होगा. इसे detachment कहा जाता है. Detachment आपको अपनी विलपॉवर का इस्तेमाल कर अपने थॉट्स और इमोशंस को कंट्रोल में रखने के लिए encourage करता है. ये आपको बेहतर डिसिशन लेने में भी मदद करता है क्योंकि इमोशंस आपकी आँखों पर पर्दा डाल देते हैं जिससे सही फ़ैसला लेना मुश्किल हो जाता है.

मान लीजिए कि आप एक शिपिंग कंपनी के एम्प्लोई हैं. आप बिना रुके और कड़ी मेहनत कर एक ऐसे नए सिस्टम पर काम कर रहे हैं जो कंपनी के पैकेजिंग और प्रोसेसिंग के सिस्टम को ज़्यादा efficient बनाने में मदद करेगी. आपको उस सिस्टम पर इतना यकीन है कि जब आपके बॉस और साथ काम करने वाले लोग उसकी ख़ामियों के बारे में बताते हैं तो आपको गुस्सा आ जाता है. अब यहाँ साफ़ दिख रहा है कि अटैचमेंट नेगेटिव इमोशन को कैसे जन्म देता है.

भले ही गहराई में आप जानते थे कि वो लोग सही कह रहे थे लेकिन आप अपने प्रोजेक्ट से इतने attach हो गए कि आपने उनके सुझावों पर ध्यान नहीं दिया. अब यहाँ सबसे बेस्ट और सही तरीका यही है कि आप एक कदम पीछे हट जाएं, ख़ुद को अपने प्रोजेक्ट से detach करें और उसे इमोशनल नहीं बल्कि प्रैक्टिकल नज़रिए से देखें. इस तरह, आप अपने प्रॉब्लम को ज़्यादा इफेक्टिव तरीके से सोल्व कर पाएंगे.

Inward considering तब होता है जब दूसरे आपके साथ कैसा व्यवहार करते हैं उसका आप पर गहरा असर होता है. आसान शब्दों में, जब आप हर चीज़ ख़ुद पर पर्सनली लेने लगते हैं तो ये नेगेटिव इमोशन का कारण बनता है. इस सोच से आप बड़ी आसानी से गुस्सा हो जाते हैं. अगर आपको लगता है कि किसी ने आपको गलत तरीके से देखा या किसी के बात करने के ढ़ंग से आपको लगा कि उसने आपका सम्मान नहीं किया तो आप सोचने लगते हैं कि उसने ऐसा जानबूझकर आपकी insult करने के लिए किया. जो लोग इस तरह की सोच रखते हैं आमतौर पर उनमें कम सेल्फ़-एस्टीम यानी आत्म सम्मान की भावना होती है क्योंकि उन्हें इस बात की परवाह और चिंता होती है कि दूसरे उनके साथ कैसा बर्ताव कर रहे हैं. ये लोग बहुत ज़्यादा सेंसिटिव और नेगेटिव होने लगते हैं.

सच तो ये है कि हम सब अपनी-अपनी जिंदगी की उधेड़बुन में इतने उलझे हुए हैं कि हमें दूसरों की जिंदगी के बारे में सोचने की फ़ुर्सत ही नहीं है. अगर आप हर चीज़ पर्सनली लेने लगे तो ये नेगेटिव इमोशन कब आपको अँधेरे में डुबा देगी आपको पता भी नहीं चलेगा. हर किसी से अपने लिए तारीफ़ या अच्छी बातें सुनने की अपनी इस तलाश को बंद करें. हालांकि, कभी-कभी पहचान मिलना, लोगों द्वारा कद्र किया जाना हम सभी चाहते हैं और ये हमें अच्छा भी लगता है लेकिन आपको ख़ुद पर भी तो यकीन होना चाहिए ना? आपको  दूसरों के मुँह से सुनकर ही तस्सली क्यों मिलती है, ख़ुद पर यकीन क्यों नहीं है? अपने आप पर विश्वास करना सीखें और बाहर के बजाय अपने अंदर ख़ुशी ढूँढें.

Blame या दोष लगाना गुस्सा को जन्म देता है और गुस्सा सभी नेगेटिव इमोशंस में सबसे ज़्यादा ख़तरनाक होता है. ये आपको रिश्तों को, जॉब को यहाँ तक कि आपको ख़ुद को भी पूरी तरह से बर्बाद करने की ताकत रखता है.

जब आप बार-बार कुछ करते हैं तो वो आपकी आदत बन जाती है. यही बात गुस्से पर भी लागू होती है. जब भी हम किसी प्रॉब्लम का सामना करते हैं या कुछ ऐसा हो जाता है जो हमारी मर्जी के हिसाब से नहीं होता तो हमें तुरंत गुस्सा आ जाता है. जब भी कोई प्रॉब्लम होती है तो गुस्सा करने वाला इंसान automatically किसी और पर दोष लगाने लगता है. वो ना जाने अपना कितना टाइम और एनर्जी उस आदमी पर दोष लगाने में waste कर देता है. अंत में उसका गुस्सा एक ऐसे लेवल पर पहुँच जाता है जो उसके अंदर नाराज़गी और जलन को भर देता है.

ना जाने कितनी ही शादियों का अंत ऐसे ही हुआ है. शुरू-शुरू में सब कुछ बहुत अच्छा लगता है लेकिन समय के साथ किसी ना किसी कारण से वो रिश्ता कमज़ोर होने लगता है. तलाक भी एक दूसरे को दोष देने वाले एक गेम की तरह ही है क्योंकि किसी ना किसी को तो इसकी कीमत चुकानी ही पड़ती है.

क्योंकि दोष कभी अकेला नहीं आता बल्कि अपने साथ गुस्से को लेकर आता है इसलिए तलाक अपने साथ बहुत सारी कड़वाहट और घृणा लेकर आता है. गुस्सा रोकने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप ख़ुद अपने एक्शन की ज़िम्मेदारी लें. यहाँ तक कि अगर आपकी गलती ना भी हो तब भी उस प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए ख़ुद पर ज़िम्मेदारी लें.

हम से कोई भी परफेक्ट नहीं हैं, हम सभी में बहुत सी कमियाँ और खामियां हैं. हम सभी को एक दूसरे को अपनी कमियों के साथ अपनाना होगा इसलिए दोष देने के बजाय माफ़ करना सीखें, दूसरों की बात सुनना सीखें और पेशेंस इसमें आपकी बहुत मदद करेगी.

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