(hindi) Built to Last : Successful Habits of Visionary Companies
इंट्रोडक्शन (Introduction)
आप ऐसा क्या कर सकते है कि आपका नाम न्यूज़ में आए ? कैसे आप इतने लेजेंडरी बन सकते हो कि लोग आपको देखते ही पहचान ले? और हम ऐसा क्या करे कि हमेशा अपनी पोजीशन टॉप बनाए रखे?
रिच और फेमस होना कौन नहीं चाहेगा? पर आपके लिए बेड न्यूज़ ये है कि आज हर कोई टॉप पर पहुँचने की कोशिश कर रहा है. और गुड न्यूज़ ये है कि कोई भी नंबर 1 बन सकता है. अगर आपका गोल है अपने फील्ड की बेस्ट कंपनी बनकर दिखाना तो आपको रोक कौन रहा है? बात सिर्फ इतनी है कि आपको पता नही है कि शुरुवात कहाँ से करनी है और सक्सेस को सस्टेंन कैसे रखना है?
ये बात हम पक्के तौर पर बोल सकते है कि जो सवाल आपके माइंड में है, वही सवाल विज़नरी कंपनीज के सीईओ भी सोचते थे. यहाँ तक कि जो फेमस ब्रांड आप जानते है, उन्हें भी कहीं न कहीं से शुरुवात करनी पड़ी थी यानी कि एकदम बॉटम से. मानो या ना मानो पर जिन सक्सेसफुल कंपनीज़ के बारे में आज आप जानते हो, उनकी शुरुवात सक्सेसफुल नहीं हुई थी. ये वही कंपनीज़ है जो कई सालो तक गुमनाम रही- कई डिकेड्स तक, उसके बाद जाकर कहीं वो आज इस लेवल पर खड़ी है. पर इन्होने बहुत हार्ड वर्क किया, खुद को डिसप्लीन रखा और चेलेंजेस एक्सेप्ट किये.
इस बुक के थ्रू ऑथर्स ने अपनी 6 साल की रीसर्च प्रोजेक्ट की फाइंडिंग्स रीडर्स के साथ शेयर की है. ये रीसर्च प्रोजेक्ट ऑथर्स ने खुद कन्डक्ट की थी. जिम कॉलिंस और पोर्रस ने विज़नरी कंपनीज़ को स्टडी किया, एनलाईज किया कि उनमे क्या कॉमन है और कौन सी चीज़ उन्हें बेस्ट से भी बेस्ट बनाती है. इसमें आपको ये भी पढने को मिलेगा कि कैसे बाकि कम सक्सेसफुल कंपनीज़ इन विज़नरी कंपनीज़ के मुकाबले ठीक चल रही थी
इस बुक से आप ये भी सीखेंगे कि एक कॉम्पटीटिव मार्किट में होने के बाद भी इन कंपनीज़ ने कुछ ही सालो में कितनी तरक्की की. अगर आप भी खुद का बिजनेस स्टार्ट करने की सोच रहे हो या अपने नये बिजनेस में स्ट्रगल कर रहे हो तो इस समरी को आगे जरूर पढ़िये और सीखिए कि कैसे आईबीएम, डिज्नी और सोनी जैसी कंपनीज़ आज टॉप पर है.
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द बेस्ट ऑफ़ द बेस्ट (The Best of the Best)
इस बुक के ऑथर्स ने एक बार श्योर की है वो ये कि बात अगर उन कंपनीज़ की हो जिन्हें उन्होंने स्टडी किया था तो वो “सक्सेसफुल” या एंड्यूरिंग” के बदले ”विज़नरी” वर्ड यूज़ करेंगे. जिन विज़नरी कंपनीज पर उन्होंने 6 साल तक रीसर्च किया था, इसलिए विज़नरी थी क्योंकि उन्होंने खुद को इंडस्ट्री में सबसे बेस्ट प्रूव किया था. इन्हें सक्सेसफुल या एड्यूरिंग से कहीं बढकर बोला जा सकता है. ये कंपनीज़ अपने फील्ड में बेस्ट ऑफ़ द बेस्ट मानी जाती है. ये आपके पैदा होने से भी पहले मार्किट में है और इन्होने टाइम के साथ हर चेलेंज, हर सेटबैक को फेस किया है.
हालाँकि इन्हें विज़नरी माना जाता है पर ये कंपनीज़ परफेक्ट की डेफिनेशन पर एकदम खरी नहीं उतरती है. अब जैसे कि 1980 में वाल्ट डिज्नी की कंपनी उस वक्त बंद होने की कगार पर खड़ी थी जब कॉर्पोरेट रेडर्स ने उनकी कंपनी पर अपना क्लेम कर लिया था. सन 1930 से लेकर 1940 के दौरान बोइंग को कई सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था. और 1970 के शुरुवात सालो में उन्हें अपने 60,000 एम्प्लोईज़ निकालने पड़े.
ऐसे ही सोनी कंपनी ने अपने शुरुवाती पांच सालो में जो भी प्रोडक्ट्स निकाले, सब फेल हुए. आईबीएम् 1914, 1921 और 1990 में ऑलमोस्ट बैंकरप्ट होने ही वाला था. लेकिन इस सबके बावजूद ये विज़नरी कंपनीज़ बंद नही हुई, इन्होने हार नही मानी बल्कि फलती-फूलती रही और आज भी एवरग्रीन है. क्योंकि चाहे कैसी भी प्रोब्लम्स आई हो, कैसी भी डिफिकल्ट सिचुएशन रही हो, ये कंपनीज अपनी जगह कायम रही. हर सेटबैक में रेजिस्ट करती रही. हर फेलर के बाद बाउंस बैक करके मार्किट में दुबारा लौटी.
अपनी रेज़िलेंस पॉवर की वजह से ही ये कंपनी लॉन्ग टर्म परफोर्मेंस देती रही. आप देख सकते है कि ये विज़नरी कंपनीज़ आज भी अपनी जगह उसी मजबूती से खड़ी है और हम शर्त लगा सकते है कि अगले 50 साल तक यूं ही खड़ी रहेंगी. इनके टॉप पर होने का मतलब ये भी है कि इनका फाईनेंशियल रिटर्न्स अच्छा होगा. अगर आप इन विज़नरी कंपनीज़ में से किसी एक में $1 भी इन्वेस्ट करते हो तो साल के एंड में आपका फंड $6,000 तक ग्रो कर जाएगा. एक बढिया इन्वेस्टमेंट होने के अलावा ये कंपनीज़ उस सोसाइटी पर भी इम्पेक्ट डालती है जिसमे हम रहते है.
स्टूडेंट्स को जब अपने प्रोजेक्ट्स करने होते है या नोट लेने होते है तो 3 एम’स स्कॉच टेप और पोस्ट-इट नोट्स उनके बड़े काम आते है. सिटीकोर्प ने पैसे के लिए एटीएम मशींस को बड़े स्केल पर पब्लिक तक पहुंचाया ताकि लोग कभी भी, कहीं भी आसानी से अपने अकाउंट से पैसे निकाल सके. म्यूजिक को पोर्टेबल बनाने की बात हो तो सोनी के वाकमेन ने लोगो की लाइफ में बड़ा इम्पेक्ट डाला था. डिज्नी के मिकी माउस के साथ ना जाने कितने लोगो के बचपन की यादे जुड़ी है. इन विज़नरी कंपनीज़ ने इस दुनिया पर अपनी छाप छोड़ी है. और इनके प्रोडक्ट्स उन प्रोडक्ट्स को काफी हद तक इन्फ्लुएंस करते है जो आज मार्किट में है या फ्यूचर में कभी आयेंगे.
जैसा कि हमने बताया, इस बुक के ऑथर्स ने 6 साल तक इन कंपनीज़ को स्टडी किया है और इस बात का खास ध्यान रखा है कि कौन सी कंपनी सही मायनों में विज़नरी कही जायेगी. साथ ही इन्होने कई सारे मिथ्स भी तोड़े है जैसे कि लीडर्स के अंदर करिज्मा होना ही चाहिए या बड़ी कंपनीज़ सिर्फ प्रोफिट्स बनाती है. ऑथर्स ने अपने रीसर्च से जो बहुत से बाते सीखी थी, उनमे से एक ये भी है कि विज़नरी कंपनी कोई भी स्टार्ट कर सकता है. तो अब आप ये नही बोल सकते” ये काम मेरे बस का नहीं है” क्योंकि 6 साल की रीसर्च ने प्रूव किया है कि कोई भी टॉप पर पहुँच सकता है और अपनी सक्सेस को ससटेन रख सकता है.
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मोर देन प्रोफिट्स (More Than Profits)
जैसा कि हमने पहले के चैप्टर्स में बताया, सिर्फ प्रॉफिट की वजह से विज़नरी कंपनीज़ टॉप पर नही पहुँचती बल्कि अपनी कोर आईडीयोलोजी से ये अपने एम्प्लोईज़ को अपना बेस्ट देने के लिए गाइड और इंस्पायर करती है. इनकी यही कोर आईडीयोलोजी एम्प्लोईज़ को एक सेंस ऑफ़ पर्पज देती है ताकि लोग सिर्फ पैसे पर ही फोकस ना करे. प्रॉफिट से पहले ये कंपनीज़ आइडियल्स को इम्पोर्टेंस देती है.
अपनी कोर आईडीयोलोजी को फाउंडेशन बनाकर सोचो कि आप क्या हो, किस चीज़ के लिए स्टैंड करते हो, और आपकी कंपनी का गोल क्या है. ये कंपनीज़ विज़नरी इसलिए है क्योंकि ये जो भी करती है उसमे अपनी कोर वैल्यूज़ एड करती है. ये कंपनीज़ बातो में नहीं बल्कि एक्शन में बिलीव करती है. उनकी यही कोर वैल्यू उन्हें अपना बेस्ट करने के लिए ड्राइव करती है. इन कंपनी को पहले अपने कोर वैल्यू पर फोकस रहता है उसके बाद प्रॉफिट पर.
एक फार्मासिटीकल कंपनी मेर्क एंड कंपनी (Merck & Co., a pharmaceutical company) की भी यही आईडीयोलोजी है. जब इन्हें 100 ईयर्स हुए तो इन्होने वैल्यूज़ एंड विज़न्स: अ मेर्क सेंचुरी नाम से एक बुक पब्लिश की. इस बुक में कंपनी ने इस बात पर जोर नही दिया था कि वो 100 साल पुराना एक फार्मासिटीकल ब्रांड है बल्कि उन्होंने कंपनी के कोर आईडीयोलोजी के बारे में बात की थी.
जॉर्ज मेर्क्क II ने ये कहते हुए अपनी आईडीयोलोजी क्लियर की” वो वर्कर्स है जो एडवांस मेडिकल साइंस और इंसानियत की सेवा के थौट से इंस्पायर्ड है”. 1991 में मेर्क्क के चीफ एक्जीक्यूटिव रॉय वगेलोस (Roy Vagelos ) ने भी कहा था कि” जितनी भी सक्सेस उन्हें एक कंपनी के तौर पर मिली है, वो सिर्फ सक्सेस ही नहीं बल्कि बीमारियों के खिलाफ एक विक्ट्री है”. मेर्क्क एंड कंपनी (Merck & Co. ह्यूमेनिस्टिक एंगल लेकर चलती थी जो लोगो को बड़ी पसंद थी और इसमें उनका पर्पज भी पूरा होता था.
अपने आईडीयल्स के साथ लगातार चलते हुए मेर्क्क ने “रिवर ब्लाइंडनेस” की दवाई बनाई. थर्ड वर्ल्ड कंट्रीज़ के एक मिलियन से भी ज्यादा लोग इस बिमारी से इन्फेक्टेड थे. इस बिमारी में पेशेंट की बॉडी में पैरासाइट्स घुसकर इंसान को अंधा कर देते है. कंपनी को मालूम था कि इस बीमारी से अफेक्ट होने वाले ज्यादातर लोग दवाई का खर्चा अफोर्ड नहीं कर पाते. इसलिए मेर्क्क ने डिसाइड किया कि वो फ्री में दवाई देंगे. जब सीईओ वगेलोस ने उनके इस डिसीजन के बारे में पुछा तो उन्होंने कहा” अगर हमने हेल्प नहीं की तो ये मेर्क्क एंड कंपनी के साइंटिस्ट्स के लिए काफी डेमोरेलाइजिंग मोमेंट होगा. ख़ासकर जब कंपनी का कोर आईडीया ह्यूमन लाइफ को प्रीजेर्व और इम्प्रूव करने का हो.
आप शायद ये सोचकर हैरान हो रहे होंगे कि उस वक्त मेर्क्क ने जो डिसीजन लिया, अपनी आईडीयोलोजी की वजह से लिया या उन्हें इससे कुछ फायदा हो रहा था? तो जवाब है दोनों वजहों से. मेर्क्क एक तीर से दो शिकार कर रहे थे क्योंकि ना सिर्फ वो रिवर ब्लाइंडनेस की बिमारी से लोगो की हेल्प कर रहे थे बल्कि अपनी एक गुड रेपूटेशन भी बना रहे थे. सीईओ वेगेलोस को चूज़ नही करना पड़ा क्योंकि मेर्क्क दोनों कर सकता था. वो जितना दे रहे थे, उतना ही ज्यादा कमा रहे थे.
हालाँकि मेर्क्क ने जब फ्री मेडीसिन प्रोवाईड करने का फैसला लिया तो सबको लगा कि उन्हें बड़ा नुकसान होगा पर उनके इस फैसले ने उन्हें फ्यूचर में बड़ा प्रॉफिट दिया. कंपनी की रेपूटेशन को बढ़ी ही साथ ही उन्हें खूब सारे इन्वेस्टर्स भी मिले.