(hindi) Brandwashed: Tricks Companies Use to Manipulate Our Minds and Persuade Us to Buy
इंट्रोडक्शन
क्या आप पहले से ही ब्रैंडवाश्डहैं?
मार्टिन लिंडस्ट्रॉम एक प्रोफेशनल मार्केटर हैं जिन्हें ब्रैन्डिंग की दुनिया में 20 का अनुभव है. वो कई दशकों से मार्केटिंग एक्जीक्यूटिवके साथ मिलकर सेल्स को सिक्योर रखने के लिए कैंपेनऔर स्ट्रेटेजीबनाते आए हैं.
मार्टिन कहते है कि ब्रैंड इंडस्ट्री एक ऐसी चीज़ है जिससे लोग बच नहीं सकते, क्योंकि आज हम चारो तरफ ब्रैंड से घिरे हुए है. हमारे खाने से लेकर, हम क्या पहनेंगे, कौन सी किताबें पढ़ेंगे और कौन सा कंप्यूटर इस्तेमाल करेंगे, ये सब ब्रैन्डिंग से डिसाइड होता है. आज ब्रैंड इंसान की पहचान बन गए है और ये लोगों को ये बता रहे है कि हम कौन है और हमें क्या बनना चाहते है.
मार्टिन ने अपने करियर में कई साल कंपनीज़ के सीईओज़, एडवरटाईजिंग एक्जीक्यूटिव्स, मार्केटिंग गुरुज़ के साथ मिलकर काम किया है. हालाँकि वो खुद को एक कंज्यूमर और मार्केटर्स की ट्रिक्स का शिकार मानते है.
यही वजह है कि मार्टिन ने ब्रैंड डेटोक्स करने की कोशिश की. वो खुद को ब्रांड्स का शिकार होने से बचाना चाहते है इसलिए वो सिर्फ वही चीज़े इस्तेमाल करते है जो पहले से उनके पास मौजूद है. मार्टिन ने खुद को ही चेलेंज किया और अपने ब्रेकफ़ास्ट से लेकर शेविंग क्रीम और रेजर ब्रांड्स यहाँ तक कि अपने हेयर ज़ेल से ब्रैंड डेटोक्स की शुरुवात की.
सब कुछ ठीक चल रहा था कि छह महीने बाद सायप्रस में उनका ये चेलेंज खुद खत्म हो गया. अपने अनुभवों से मार्टिन लिंडस्ट्रॉमसमझ चुके थे कि वो पूरी तरह से ब्रैंड पर निर्भर है. इससे उन्होंने अंदाजा लगाया कि वो असल में पहले से ही ब्रैंडवाश्डहै.
इस किताब में मार्टिन लिंडस्ट्रॉम हमें बतायेंगे कि कैसे कॉर्पोरेशन और उनके मार्केटरसाईंकोलोज़िकल टैक्टिस प्लान करके हमारे मन के अंदर बसे डर, उम्मीद और हमारी डिजायर्स का फायदा उठाते है ताकि हम उनके ब्रैंड और प्रोडक्टको खरीद सके.
ये किताब आपकी आँखे खोल देगी जब आप पढ़ेंगे कि मार्केटिंग की दुनिया में जो भी स्ट्रेटेजी होती है, वो सब मार्केटर क्रिएट करते है. ब्रैंडवाश्डएक ऐसी किताब है जो आपको मार्केटिंग और ब्रैन्डिंग से जुड़ी हर जानकारी तो देगी है और साथ ही आपको इंस्पायर भी करेगी ताकि आप एक बेहतर और रेशनल कंज्यूमर चॉइस रख सके.
तो आप तैयार है एक स्मार्ट और better कंज्यूमर बनने के लिए ? तो चलिए हम मिलकर उन स्ट्रेटेज़ीज़ के बारे में जानने की कोशिश करते है जो मार्केटर हमें ब्रैंडवाश्डकरने के लिए इस्तेमाल कर रहे है.
TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE
When Companies start Marketing to us in the womb
ज्यादातर ब्रैंड और प्रोडक्ट की हमारी जो चॉइस होती है, वो ग्यारह साल की छोटी उम्र से ही बननी शुरू हो जाती है.
हालाँकि मार्टिन लिंडस्ट्रॉमदावा करते है कि अक्सर चार या पांच साल की उम्र से ही हम ब्रैंड conscious हो जाते है. हाल ही में हुई एक स्टडी के अनुसार हमारे जन्म से पहले ही हमें ब्रैंड की दुनिया से परिचय करा दिया जाता है.
क्योंकि मार्टिन अच्छी तरह जानते है कि कैसे ये मार्केटरमाँ के पेट में पल रहे बच्चे को भी अपना प्रोडक्ट बेच सकते है, तो वो हमें कुछ ऐसी मार्केटिंग स्ट्रेटेज़ी के बारे में समझाते है जहाँ म्यूजिक और स्मेल का इस्तेमाल किया जाता है.
म्यूजिक feotal मेंमोरी यानी अजन्मे शिशु की मेमोरी को ट्रिगर कर सकते है, और इसीलिए जो म्यूजिक बच्चा माँ के पेट में रहते हुए सुनता है, उस पर ऐसा असर करता है जो बड़े होने पर उसके टेस्ट तक इन्फ्लुएंस कर सकता है. जब एक माँ लगातार एक ख़ास तरह का म्यूजिक सुनती है तो उसके पेट में पल रहा बच्चा भी सुन रहा होता है और वो उस म्यूजिक को बाकि म्यूजिक से ज्यादा एन्जॉय और पंसद करने लगता है.
वही दूसरी तरफ स्मेल हमारे ब्रेन का सबसे इम्पोर्टेंट सेन्स है. माँ के पेट में बच्चे को जो स्मेल फील होती है, वही उन्हें बाहरी दुनिया से पहला परिचय कराती है और बच्चा कुछ खास तरह की खुशबूओं और स्वाद के प्रति आकर्षित होने लगता है जो बड़े होने के बाद उसकी पसंद और टेस्ट को काफी हद तक प्रभावित करती है.
यानी हम कह सकते है कि माँ के गर्भ में पल रहे इन बच्चो को कुछ इस तरह प्रोग्राम कर दिया जाता है कि उन्हें खास तरह म्यूजिक और साउंड से परिचय कराकर उनकी पसंद-नापसंद तय कर दी जाती है. यहाँ हम एक एक्जाम्पल लेंगे कि कैसे ये एडवरटाईजर उन बच्चो को अपना निशाना बनाते है जो अभी तक पैदा भी नहीं हुए.
एशिया के एक बड़े से शॉपिंग सेंटर में मार्केटर्स ने उनके स्टोर में आने वाली प्रेग्नेंट औरतों को टारगेट किया. मॉल में जहाँ कपड़े बेचे जाते थे, वहां हर जगह जॉनसन एंड जॉनसन बेबी पॉवडर छिड़का गयाऔर जहाँ लोग खाने-पीने की चीज़े लेते थे वहां पर चैरी की खुशबू वाला सेंट छिड़का इसके साथ ही शॉपिंग मॉल में मन को सुकून म्यूजिक भी प्ले किया जाने लगा.
माँल एक्जीक्यूटिव्स को पूरी उम्मीद थी कि इससे प्रेग्नेंट औरतों ज्यादा से ज्यादा उनका सामान खरीदेंगी. और एक करीब एक साल तक चले इस एक्सपेरीमेंट के बाद मॉल को उन मदर्स के लैटर्स आने लगे जो प्रेगनेंसी के दौरान मॉल में शौपिंग करने गई थी, इससे प्रूव होता है कि उन बच्चों पर मॉल का कितना हिप्नोटिक इफेक्ट पड़ा था. और नतीजा ये हुआ कि एशियन खरीददारों का एक बड़ा तबका अनजाने ही उस शॉपिंग सेंटर की तरफ आकर्षित होता था.
बच्चो को टारगेट बनाने वाली मार्केटिंग के हिट होने के दो खास कारण है. पहला तो ये कि, जो टेस्ट या मेमोरी हमारे साथ बचपन में जुड़ जाती है, वो बड़े होने पर हमारी आदतों में खुद ब खुद शामिल हो जाती है. दूसरी बात, इन्सान हमेशा उन चीजों के प्रति आकर्षित होता है जो उसे सुकून और शान्ति देती है, जो उसे एक सुरक्षित फील कराती है. यही वजह है कि मार्केटर अपने फ्यूचर कस्टमर बनाने के लिए उन्हें कम उम्र से ही टारगेट करना शुरू कर देते है ताकि वो जिंदगी भर उनके लॉयल कस्टमर बने रहे.