(hindi) Brain Rules
इंट्रोडक्शन
क्या आपने कभी सोचा है कि आपका ब्रेन यानी कि दिमाग कितना पावरफुल है? ये शब्दों और नंबर्स को समझ सकता है. जब आप डरे या घबराए हुए होते हैं तब भी ये आपको एक जगह से दूसरी जगह जाने में मदद करता है. आपका ब्रेन सिर्फ़ पावरफुल ही नहीं बल्कि बहुत तेज़ भी है.
क्या आपने कभी सोचा है कि जब आप कुछ पढ़ते हैं तो आप उसे कैसे समझ पाते हैं? या कितनी तेज़ी से किसी भीड़ में भी आप अपने दोस्त या जाना पहचाना चेहरा पहचान लेते हैं? ये कमाल आपके ब्रेन और उसके अंदर लाखों नयूरोंस का है. ये कितने आश्चर्य की बात है कि एक छोटी सी जगह में आप अनगिनत इनफार्मेशन स्टोर कर सकते हैं.
तो हम अपने ब्रेन को बेहतर बनाने के लिए आखिर क्या कर सकते हैं. इस बुक में आप सीखेंगे कि ब्रेन कैसे काम करता है और आप इसे हमेशा अच्छी कंडीशन में कैसे बनाए रख सकते हैं.
हमारा ब्रेन बहुत ही दिलचस्प और हैरान कर देने वाली मशीन है. इस बुक के ज़रिए आप इसके बारे में बहुत कुछ जानेंगे क्योंकि यकीन मानिए आपका ब्रेन आपको बहुत अच्छे से जानता है.
Exercise
Rule #1: Exercise Boosts Brain Power
हमारे जो पूर्वज थे, एक तरह से आप उन्हें बंजारा कह सकते हैं क्योंकि वो एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते थे. वो अलग-अलग जगह जाने के लिए मजबूर थे क्योंकि एक जगह पर लंबे समय तक रहना संभव नहीं था. उन्हें कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता था जैसे उनके पास खाने की या लकड़ी की कमी हो जाती थी, जंगली जानवर हमला कर देते थे या मौसम हमेशा बदलता रहता था. ऐसी कंडीशन का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहने से ब्रेन को तेज़ी से डेवलप होने में मदद मिली.
लेकिन अगर आज की बात करें तो हमारे पूर्वजों की तुलना में हमारी लाइफस्टाइल और रहन सहन बहुत अलग है. आज हम अपनी सीट से हिले बिना कई घंटों का सफ़र तय कर लेते हैं. कई तरह की मशीन ने हमारा काम आसान बना दिया है. हाँ, हमारा बुढ़ापा कैसा होगा हमारी लाइफस्टाइल का इस पर गहरा असर होता है.
अगर आप एक सुस्त जीवन जीते हैं यानी इनएक्टिव हैं और आपने अपनी जिंदगी का ज़्यादातर समय सोफ़े पर लेटे हुए बिताया है तो इसमें कोई शक नहीं कि आप बढ़ती उम्र के साथ ढलने लगेंगे. लेकिन अगर आपने एक एक्टिव लाइफस्टाइल अपनाया है तो आप 75 के बाद भी चुस्त और फुर्तीले बने रहेंगे.
एक्सरसाइज करने के बहुत फ़ायदे होते हैं. ये हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी बीमारियों के रिस्क को कम कर देता है. ये आपको फिजिकली और मेंटली परफेक्ट शेप में बनाए रखता है. कई स्टडी ने ये साबित किया है कि जो लोग एक्टिव लाइफस्टाइल अपनाते हैं वो मेमोरी, लॉजिक, प्रॉब्लम सोल्व करने की एबिलिटी और बातों को समझने की पॉवर में सुस्त लोगों की तुलना में काफ़ी आगे होते हैं.
अगर आप भी आलसी और सुस्त हैं तो उदास ना हों क्योंकि रिसर्च करने वालों ने गौर किया तो पाया कि एक्सरसाइज प्रोग्राम को फॉलो करने के बाद इनएक्टिव लोगों की मेंटल एबिलिटी में काफ़ी इम्प्रूवमेंट होने लगा था. चार महीनों में उन्होंने बहुत प्रोग्रेस दिखाई थी.
एक्सरसाइज बुढ़ापे में होने वाली बीमारियों के रिस्क को भी कम करता है. ये आपके मूड को अच्छा बनाए रखता है क्योंकि फिजिकल एक्सरसाइज आपके नर्वस सिस्टम में serotonin, dopamine और norepinephrine को रिलीज़ करता है.
जैक ललेन इस बात का परफेक्ट एग्ज़ाम्पल है कि एक्सरसाइज ब्रेन की पॉवर को कैसे बूस्ट करता है. 70 साल की उम्र में उन्होंने कैलिफ़ोर्निया के लॉन्ग बीच हार्बर से queens वे ब्रिज तक 70 बोट जिसमें एक एक आदमी सवार था, उसे खींचकर सबको चकित कर दिया था. जैक के पीछे 70 बोट बंधी थी और उन्होंने 1.5 मील की दूरी तय की. स्ट्रोंग बॉडी के अलावा, उस उम्र में भी, जैक मेंटली फ़िट थे. उनका माइंड और बॉडी एक 20 साल के नौजवान जैसा था.
अब आइए जिम और फ्रैंक को एग्ज़ाम्पल के रूप में लेते हैं जिन्होंने एक्टिव और इनएक्टिव लाइफस्टाइल को अपनाया था. जिम वृधाश्रम में रहते थे. वो ज़्यादा चलते फ़िरते नहीं थे बस टीवी के सामने बैठे रहते थे. वो काफ़ी दुखी थे और अक्सर बिना किसी कारण से रोने लगते.
दूसरी ओर, फ्रैंक फिजिकली और मेंटली एक्टिव थे. वो हमेशा किसी ना किसी काम में बिजी रहते. असल में फ्रैंक एक आर्किटेक्ट थे जिन्होंने 90 साल की उम्र में एक म्यूजियम बनाने का काम पूरा किया था. फिजिकली healthy होने के साथ-साथ वो अपनी जिंदगी से ख़ुश भी थे.
आपको क्या लगता है, इस फ़र्क का कारण क्या था ? जब आप ख़ुद को एक्टिव बनाए रखते हैं तो आप पॉजिटिव विचारों और एनर्जी से भरे होते हैं. लेकिन जहां आपने ख़ाली बैठना शुरू किया तो आपके माइंड में शैतानी ख़याल घर करने लगते हैं और आपको नेगेटिव विचारों से भर देते हैं जो आपके दुःख और तकलीफ़ का कारण बनता है जैसा कि जिम के साथ हुआ था.
कई लोग हैं जो जिम की तरह सुस्त और इनएक्टिव हैं लेकिन उनके लिए अब भी उम्मीद बची है. हर रोज़ सिर्फ़ 20 मिनट का एक्सरसाइज भी आपके हेल्थ और मूड में पॉजिटिव बदलाव लाने की ताकत रखता है.
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Survival
Rule #2: The Human Brain Evolved, Too
हमारे पूर्वजों ने कठोर वातावरण से बचने के लिए सिर्फ़ अपनी बॉडी का ही नहीं बल्कि अपने दिमाग का भी बहुत इस्तेमाल किया. वो सिंबॉलिक रीजनिंग का इस्तेमाल करते थे. सिंबॉलिक रीजनिंग वो कला है जो हमें जानवरों से अलग बनाती है. ये उन चीज़ों को देखने की एबिलिटी है जो सच में मौजूद नहीं हैं. इमेजिन कीजिए कि आप अपने हाथ पर एक सीधी और लंबी लाइन ड्रा करते हैं. क्योंकि हमारे पास सिंबॉलिक रीजनिंग है, इसलिए हम समझ जाते हैं कि इसका मतलब या तो अल्फाबेट “I” है या नंबर 1.
सिंबॉलिक रीजनिंग ने हमारे पूर्वजों को एक दूसरे के साथ बातचीत करने में और अगर आगे कोई ख़तरा है तो हमें सावधान करने में मदद की है. ये तो शुक्र है कि समय के साथ इंसान में कई बदलाव और डेवलपमेंट हुआ और कुछ ऐसे सिंबल बन गए जिन्हें दुनिया के किसी भी कोने में कोई भी समझ सकता है जैसे रेड सिग्नल का मतलब है स्टॉप, thumps up का मतलब है ओके वगैरह.
हम कई फील्ड में जैसे लैंग्वेज, आर्ट, पोएट्री में भी सिंबॉलिक रीजनिंग को यूज़ करते हैं. हमने अपने कल्चर को इस यूनिक एबिलिटी में ढाला है. हमारे पवित्र ग्रंथों, पौराणिक कथाओं और दिजागों के बारे में सोचिए. इंसानों ने सिंबॉलिक रीजनिंग की मदद से धर्म और corporation को बनाया. जानवर ये सब कुछ नहीं कर सकते.
नेचुरल सिलेक्शन ने हमारे कमज़ोर पूर्वजों को हटा दिया और ज़्यादा मज़बूत लोगों का genes अगली पीढ़ी में चला गया. फ़िर भी, हिस्ट्री ने इसे अनदेखा कर दिया. जब ईस्ट अफ्रीका में हमारे पूर्वजों ने एक छोटी सी आबादी से धरती पर जिंदगी की शुरुआत की थी तो आज आबादी 7 अरब तक कैसे पहुँच गई?
तो इसका जवाब है बदलाव. इससे लड़ने के बजाय हमने बदलाव के साथ ढलना और उसे अपनाना सीखा. Smithsonian Museum में Human Origins के डायरेक्टर रिचर्ड पॉट्स (Richard Potts) इस थ्योरी को Variability Selection Theory कहते हैं. ये थ्योरी बताता है कि हमारे ब्रेन में 2 पावरफुल विशेषताएं हैं.
पहला, हम जब गलतियां करते हैं तब हम सचेत हो जाते हैं और दूसरा हमारा ब्रेन हमें उनसे सीखने की परमिशन देता है. इस एबिलिटी ने हमारे पूर्वजों को बिना किसी मदद के तेज़ी से बदलती हुई कंडीशन को झेलते हुए आगे बढ़ना सिखाया. उन्हें बताने या सिखाने वाला कोई नहीं था. उन्होंने ख़ुद सब कुछ झेला और आगे बढ़ते रहे.
एक और चीज़ जो हमें जानवरों से अलग बनाती है वो है bipedalism. ये वो एबिलिटी है जो हमें दो पैरों पर चलने और हाथों को दूसरे काम के लिए इस्तेमाल करने की क्षमता देती है. लेकिन सबसे बड़ा फैक्टर जो इंसानों को औरों से अलग करता है वो है हमारे ब्रेन का prefrontal cortex.
Prefrontal cortex ख़ास तौर पर प्रॉब्लम को सोल्व करने, ध्यान फोकस करने और नेचुरल सेंस या इन्टुईशन को कंट्रोल करने के लिए ज़िम्मेदार होता है. आइए एक कहानी से इसे समझते हैं.
ये कहानी है 25 साल के फ़ीनीस गेज की. वो रेलरोड कंस्ट्रक्शन टीम का हेड था. गेज का परिवार और उसके साथी उसे मज़ाकिया, स्मार्ट और मेहनती लड़का के रूप में याद करते हैं. एक दिन, काम के दौरान गेज एक भयानक दुर्घटना का शिकार हो गया. वो चट्टानों को हटाने के लिए ब्लास्ट की तैयारी कर रहा था. लेकिन धमाका समय से पहले हो गया.
3 फ़ुट लंबा स्टील का rod सीधे गेज के ब्रेन के सेंटर में घुस गया. इसने उसके prefrontal cortex को पूरी तरह डैमेज कर दिया था. ये किसी चमत्कार से कम नहीं था कि गेज की जान बच गई थी. लेकिन इस घटना ने उसकी जिंदगी बदल कर रख दी. हंसता मुस्कुराता गेज अब चिडचिडा, गुस्सैल और झगड़ालू हो गया था. कुछ सालों बाद मिर्गी के दौरों की वजह से उसकी मृत्यु हो गई.
Attention
Rule #3: We Don’t Pay Attention to Boring Things
हमें चीज़ों को सीखने के लिए ध्यान यानी अटेंशन देने की ज़रुरत होती है. आप जितना ज़्यादा ध्यान किसी चीज़ पर देते हैं, उतना ही ज़्यादा आप उसे याद रख पाएँगे. अब हर क्लासरूम और ऑफिस में एक सवाल ज़रूर पूछा जाता है कि किसी का अटेंशन कैसे बनाकर रखा जाए?
बहुत सारी चीज़ें हमारा ध्यान भटकाती हैं. मान लीजिए कि आप कुछ पढ़ रहे हैं और तभी आपका कुत्ता आपके साथ खेलने लगता है या आस पास से कई गाड़ियां गुज़रती हैं वगैरह. जहां भी हमारा ध्यान होता है मेमोरी वहाँ अपना असर डालती है.
“Guns, Germs, and Steel” बुक के ऑथर जेरेड डायमंड ने न्यू गिनी के जंगल में अपनी ट्रिप और वहाँ के रहने वाले देसी न्यू गिनी के लोगों के साथ बिताए हुए समय का एक्सपीरियंस शेयर किया. वहाँ के लोग वातावरण में बदलाव को नोटिस करने में, किसी निशान का पीछा करने में और घर वापस लौटने के तरीके खोजने में माहिर थे.
जेरेड जो शहर में रहते थे, इनमें से कुछ भी नहीं कर सकते थे. ये एक एग्ज़ाम्पल है कि कैसे हम उन चीज़ों पर ध्यान देते हैं जो हमारे कल्चर से जुड़ा हुआ होता है और जिस कल्चर में हम पले बढ़े होते हैं. ज़रा सोचिए कि एक न्यू गिनी का बच्चा जिसका जन्म और पालन पोषण न्यू यॉर्क में हुआ है, क्या आपको लगता है कि वो जिंदा रहने के उन टेक्निक्स को कभी जान पाएगा जिसके बारे में उसके पूर्वज जानते थे?
इंटरेस्ट का भी अटेंशन के साथ एक कनेक्शन होता है. मार्केटिंग प्रोफेशनल्स इस प्रिन्सिप्ल का फ़ायदा उठाते हैं. अपने advertisement में वो हमेशा कुछ नया, यूनिक और हटके कांसेप्ट लेकर आते हैं. अब Sauza tequila के प्रिंट ad को ही ले लीजिए, 20 की उम्र के लोग जो पार्टी कर रहे हैं उसके बजाय उन्होंने एक दाढ़ी वाले बूढ़े की पिक्चर लगाईं थी जिसने मैले कुचैले कपड़े पहन रखे थे और उसके चेहरे पर बड़ी शरारती हंसी छायी हुई थी.
बूढ़े के मुँह में बस एक दांत था. उसके ऊपर लिखा था “इस आदमी के दांत में बस एक छेद है”. नीचे लिखा था “लाइफ हार्ड है लेकिन आपका टकीला नहीं होना चाहिए”. इस ad ने लोगों का ध्यान अपनी ओर attract किया क्योंकि इसकी पिक्चर इतनी यूनिक और हटकर थी और इसमें लिखे लाइन में humour था.
जानकारी या अवेयरनेस भी अटेंशन पर असर डालती है. आइए एक एग्जाम्पल से समझते हैं. जाने माने न्यूरोलॉजिस्ट और ऑथर डॉ. ऑलिवर सैक्स (Dr. Oliver Sacks) के बुक “The Man Who Mistook His Wife for a Hat” में डॉ. ऑलिवर के पास एक पेशेंट आई जिन्हें ख़तरनाक स्ट्रोक हुआ था. उनके ब्रेन का पिछ्ला हिस्सा बुरी तरह डैमेज हो गया था.
इसका असर ये हुआ कि वो अपनी बॉडी के लेफ्ट हिस्से में ना कुछ महसूस कर सकती थीं और ना लेफ्ट आँख से कुछ देख सकती थी. उनके लेफ्ट साइड में क्या हो रहा है उन्हें कुछ पता नहीं चलता था इसलिए वो उस पर ध्यान नहीं दे पाती थीं.
इस हादसे के बाद जब भी वो मेकअप यूज़ करती तो सिर्फ़ चेहरे के राईट साइड में करती, जब वो खाती तो अपनी प्लेट का राईट साइड का हिस्सा खाती. वो अक्सर नर्स से शिकायत भी करती कि उन्हें खाने में कभी कुछ मीठा क्यों नहीं दिया जाता था. नर्स उन्हें कहती कि अगर वो अपने लेफ्ट साइड में देखेंगी तो उन्हें मिठाई ज़रूर दिखाई देगी. मिठाई तो हमेशा वहाँ रखी होती थी उन्हें बस इस बारे में पता नहीं चलता था.