(hindi) Boundaries: When to Say Yes, How to Say No to Take Control of Your Life

(hindi) Boundaries: When to Say Yes, How to Say No to Take Control of Your Life

इंट्रोडक्शन

क्या आपने कभी ख़ुद को ऐसी सिचुएशन में फँसा हुआ पाया है जहां से आप सिर्फ़ इसलिए निकल नहीं पाए  क्योंकि आप ना नहीं कह सके? चाहे वो कोई पार्टी हो या get together ना चाहते हुए भी आपके मुँह से “हाँ ” निकल गया. अब इवेंट वाला दिन आने तक आपको गुस्सा आता रहता है, चिडचिडाहट होती है, आपके मन में बेचैनी बनी रहती है.

जब लोग हमसे कोई रिक्वेस्ट करते हैं तो हमेशा हाँ में जवाब देना हमारे अंदर  गुस्सा पैदा कर देता है. आपका और आपकी अच्छाई का फ़ायदा उठाने के लिए आपको उन पर गुस्सा आने लगता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हो सकता है शायद गलती आपकी हो? हम इतनी जल्दी दूसरों को दोषी ठहरा देते हैं कि हम इस बात पर कभी ध्यान ही नहीं देते कि हमारी प्रोब्लम को हमने ख़ुद क्रिएट किया है.

इस बुक में आप बॉउंडरीज़ यानी सीमा या हद के बारे में जानेंगे. ये सिर्फ़ “ना” कहने के बारे में नहीं है बल्कि आप ये सीखेंगे कि बॉउंडरीज़ कैसे काम करती हैं और आप इसे अपने फ़ायदे के लिए कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं. आप ये भी सीखेंगे कि किसी भी सिचुएशन को कैसे एनालाइज किया जाए  या उसे समझा जाए ताकि आप जान सकें कि कहाँ हाँ कहना अच्छा रहेगा और कहाँ ना.

A Day in a Boundaryless Life

हम हमेशा अपनी लाइफ को सही तरीके से जीने की कोशिश में लगे रहते हैं और इस पर कंट्रोल बनाए रखना चाहते हैं. लेकिन रियल लाइफ ऐसे काम नहीं करती. हम अक्सर इसका कंट्रोल खो देते हैं और ये बहुत दुःख और तकलीफ़ को पैदा करता है जिन्हें सिर्फ़ दवा की मदद से ठीक नहीं किया जा सकता. हमें लगता है कि बहुत मेहनत करने से हमारा काम बन जाएगा लेकिन कभी-कभी जितना ज़्यादा हम काम करते हैं, अपने गोल्स से हम उतनी ही दूर हो जाते हैं.

हम सभी सबके साथ अच्छा बनने की कोशिश भी करते हैं क्योंकि कोई भी दुश्मन बनाना नहीं चाहता. भले ही आप सबसे साथ अच्छे से पेश आने के लिए हमेशा हाँ भी कह दें लेकिन ये भी आपके लिए प्रॉब्लम खड़ी कर सकता है. इस बात को याद रखें कि हम सभी को खुश नहीं रख सकते. अगर आप दूसरों के लिए जिंदगी जीते रहेंगे तो आपकी अपनी जिंदगी स्ट्रेस और दुःख से भर जाएगी.

अगर आप नहीं जानते कि आपकी ज़िम्मेदारियाँ क्या हैं और अगर आप अपने लिए नहीं जीते हैं तो आपको बॉउंडरीज़ की प्रॉब्लम का सामना करना पड़ेगा. जैसे एक घर का मालिक अपने घर के चारों ओर फेंस लगाकर उसे सुरक्षित करता है ठीक वैसे ही आपको भी फिजिकल, मेंटल, सोशल और स्पिरिचुअल बॉउंडरीज़ सेट करनी होंगीं. अगर आप अपने लिए बॉउंडरीज़ सेट नहीं करेंगे तो ये आपको स्ट्रेस और थकान से भर देगा. यहाँ तक कि ये साइकोलॉजिकल बीमारियाँ जैसे डिप्रेशन और चिंता को भी जन्म दे सकता है.

शैरी अलार्म की आवाज़ सुनकर जाग गई. उसे दिन की शुरुआत करने में घबराहट हो रही थी. उसे इस बात की चिंता सताने लगी कि उसे कितने सारे काम करने थे. उसकी लिस्ट में सबसे ऊपर लिखा था कि उसे अपनी बेटी की ड्रेस को सिलना था, जिसे शैरी ने पिछली रात करने का वादा किया था. लेकिन वो अपना काम नहीं कर पाई क्योंकि उसकी माँ अचानक उससे मिलने आ गई थीं. शैरी अपना काम इसलिए नहीं कर पाई क्योंकि उसकी माँ ने शिकायत की थी कि वो उनके लिए समय नहीं निकालती और ये बात सुनकर शैरी खुद को दोषी मान रही थी. उसे दुःख भी हो रहा था और बुरा भी लग रहा था. लेकिन फिर शैरी ने खुद को ये कह कर मनाया कि घर आने के बाद उसने अपनी माँ को पूरा वक़्त देकर ख़ुश कर दिया था.

कुछ दिनों बाद शैरी अपने जॉब में लंच ब्रेक के वक़्त खाने जा रही थी कि तभी शैरी के साथ काम करने वाली एक दोस्त लुइस का फ़ोन आ गया. वो शैरी को अपनी प्रॉब्लम के बारे में बताने लगी. शैरी को अब यहाँ चिडचिडाहट होने लगी क्योंकि वो अपनी प्रॉब्लम शेयर कर अपनी भड़ास निकालना चाहती थी लेकिन लुइस या तो उस पर ध्यान नहीं देती या ना सुनने का बहाना ढूँढने लगती. लुइस इतनी देर तक  बोलती रही कि शैरी का लंच ब्रेक ख़त्म हो  गया. अब यहाँ शैरी ने फ़िर ख़ुद को ये कह कर सांत्वना दिया कि लुइस परेशान थी और ऐसे में उसे एक दोस्त की ज़रुरत थी. शैरी ना सिर्फ़ फिजिकल और सोशल बॉउंडरीज़ सेट करने में फेल रही बल्कि उसने स्पिरिचुअल बॉउंडरीज़ भी सेट नहीं की.

एक शाम , शैरी और उसका परिवार साथ बैठकर डिनर कर रहे थे. तभी उनके लोकल चर्च में womens ग्रुप की हेड, फ़ेलिस का फ़ोन आया. उसने शैरी से पूछा कि क्या वो अगले हफ़्ते होने वाले प्रोग्राम में चीज़ों को मैनेज करने के लिए मैगी की जगह काम कर सकती थी? यहाँ शैरी का हाँ कहने का बिलकुल मन नहीं था लेकिन ना चाहते हुए भी उसने हां कह दिया क्योंकि उस काम को मना करने का मतलब था भगवान् के काम को मना करना, जो वो नहीं चाहती थी.

शैरी की लाइफ उसके कंट्रोल से बाहर होती जा रही थी. वो लोगों की हर बात के लिए हाँ कहकर अपनी फीलिंग्स को नज़रंदाज़ कर रही थी. इस वजह से वो दिन-ब-दिन दुखी रहने लगी क्योंकि वो अपने लिए बॉउंडरीज़ सेट नहीं कर पाई.

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What Does a Boundary Look Like?

फिजिकल बाउंडरीज़ को देखना आसान होता है क्योंकि हम आसानी से पहचान सकते हैं कि एक बाउंडरी कहाँ ख़त्म हो रही है और दूसरी कहाँ से शुरू हो रही है. बिलकुल फिजिकल बाउंडरीज़ की तरह हमें इस बात का बहुत ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी अपनी मर्यादा क्रॉस ना करे और हर कोई हमारी ना दिखने वाली इमोशनल बाउंडरी का भी सम्मान करे. बाउंड्री आपको बताती है कि क्या आपका है और क्या आपका नहीं.

अपनी बाउंड्री या हद के अंदर आप जो करना चाहते हैं वो कर सकते हैं क्योंकि आप उसके मालिक हैं. इसी तरह, ये बाउंडरीज़ बुरी चीज़ों को बाहर रखकर अच्छी चीज़ों को अपने अंदर बनाए रखती है. बाउंडरीज़ दीवार नहीं है. ये एक फेंस की तरह है जो आपकी रक्षा करती है और इसमें दरवाज़ा भी है. अगर कोई चीज़ आपको परेशान कर रही है तो आपको भगवान् या अपनों के साथ बातचीत कर उसे बाहर निकालने की कोशिश करनी चाहिए. अपनी चिंताओं को दूर करना बहुत ज़रूरी है ताकि वो आपको परेशान ना करें.

आपको इस बात को याद रखना होगा कि जिंदगी में कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जिन्हें कोई भी आपके लिए नहीं कर सकता. इसलिए आपको उन चीज़ों की ज़िम्मेदारी ख़ुद अपने ऊपर लेनी होगी और उसे अपने दम पर करना होगा. अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि ये कैसे पता चलेगा कि कौन सी चीज़ें हम अपने दम पर कर सकते हैं और कौन सी नहीं? तो ज़िम्मेदारी दो तरह की होती है. पहला है Load यानी भार, ये वो चीज़ें हैं जिन्हें आप ख़ुद उठा सकते हैं. दूसरा है burden यानी बोझ. ये वो चीज़ें हैं जिन्हें उठाने के लिए आपको दूसरों की मदद लेनी होगी.

हम जो रोज़मर्रा की चीज़ें करते हैं वो हैं हमारा भार और आप इसे एक स्कूल बैग जैसा समझ सकते हैं. इसका भार एक स्कूल बैग जितना ही होता है. हम सब ने स्कूल में अपना अपना बैग उठाया है तो इसका भार भी हम उठा सकते हैं, है ना? ये भार हैं हमारी फीलिंग्स, हमारा नज़रिया और ज़िमीदारियाँ जो भगवान् ने हमें दी हैं. हालांकि, इसका भी भार कभी-कभी बहुत ज़्यादा लगने लगता है लेकिन फ़िर भी हम इसे उठा सकते हैं.

तो वहीँ, बोझ बड़े-बड़े पत्थरों या रुकावटों की तरह होते हैं. अगर आपने इसे अकेले उठाने की कोशिश की तो ये आपको कुचल भी सकते हैं. जब भी हमारी लाइफ में कोई क्राइसिस या ट्रेजेडी हो जाती है तो हमें दूसरों की मदद लेनी पड़ती है और लेनी भी चाहिए.

इस बुक के ऑथर डॉ. हेनरी के पास एक बार एक बूढ़े पति-पत्नी आए. उनका बेटा बिली बिलकुल गैर-ज़िम्मेदार लड़का था. उसने पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी. उसे ड्रग्स की लत लग गई थी और वो हर वक़्त नशे में चूर रहने लगा था. वो ऐसे लोगों के साथ उठने बैठे लगा जो हर तरह के बुरे काम में लगे हुए थे. उन दोनों ने डॉ. हेनरी से मदद मांगी लेकिन डॉ. ने कहा कि बिली को मदद की ज़रुरत नहीं है. उनका जवाब सुनकर वो दोनों हैरान रह गए. उन्हें डॉ. हेनरी की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था.

डॉ. हेनरी ने समझाया कि उन्हें और बिली को बस अपनी अपनी बाउंडरीज़ बनाने की ज़रुरत है. उन्हें बाउंडरी बनानी थी ताकि बिली की जो प्रॉब्लम थी वो उनकी ना रहकर बिली की प्रॉब्लम बन जाए. इसके लिए डॉ. हेनरी ने एक एग्ज़ाम्पल दिया कि उन दोनों को अपने बेटे बिली को अपना पड़ोसी समझना होगा. उन्हें इस तरह सोचना होगा कि जब भी वो अपने बगीचे का फ़व्वारा (water sprinkler) चलाते हैं तो उसका पानी बिली के बगीचे में जाता है, उनके नहीं. बिली अपने घर और बगीचे में ख़ुश था क्योंकि उस फ़व्वारे के पानी की वजह से उसके बगीचे की घास हरी-भरी थी. वहीँ, पानी की कमी की वजह से उसके माता-पिता के बगीचे की घास मार सूखकर मुरझाने लगी थी.

डॉ. हेनरी ने इसका मतलब समझाते हुए कहा कि बिली गैर-ज़िम्मेदार इसलिए था क्योंकि वो जानता था कि उसकी हर प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए उसके माता-पिता मौजूद हैं. इसलिए अब उन्हें बिली की प्रॉब्लम को सोल्व करना बंद करना होगा क्योंकि बिली अब बड़ा हो चुका था, उसे ख़ुद अपनी गलतियों को सुधारना होगा तब जाकर उसमें ज़िम्मेदारी का एहसास जागेगा. अपने हर एक्शन की उसे ख़ुद ज़िम्मेदारी लेनी होगी. मुफ़्त में मिली हुई चीज़ की कोई कद्र नहीं समझता. हमें चीज़ों की वैल्यू तब समझ में आती है जब हमें उसके लिए ख़ुद मेहनत और स्ट्रगल करना पड़ता है.

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