(Hindi) Blink: The Power of Thinking Without Thinking

(Hindi) Blink: The Power of Thinking Without Thinking

इंट्रोडक्शन (Introduction)

आप अपनी इंस्टिंक्ट सुनते हो? क्या कभी सोच के देखा है कि अगर आप अपनी इंस्टिंक्ट सुनने लगोगे तो क्या होगा? अगर हम हर चीज़ को साइंटिफिक डेटा और स्टेटिसस्टिक के बेस पर मेजर करना छोड़ दे तो क्या होगा? शायद आप रोज़मर्रा की लाइफ में डिसीजन लेते वक्त अपने इंस्टिंक्ट की सुनते होगे. लेकिन बात जब पैसे, रिलेशनशिप, बिजनेस या आपकी लाइफ के किसी कोम्प्लिकेटेड और इम्पोर्टेंट टॉपिक पर हो, तो हम सिर्फ अपने इंस्टिंक्ट के भरोसे नहीं बैठ जाते. तब हमे स्ट्रेट फॉरवर्ड इन्फोर्मेशन चाहिए होती है ताकि हम कोई सॉलिड डिसीजन ले सके. और उस वक्त अक्सर हम अपने इंस्टिंक्ट को इग्नोर करना ही ठीक समझते है.

इस बुक में आप ये सीखेंगे कि अपने इंस्टिंक्ट के बेस पर लिए गए डिसीजन उतने ही राईट होते है जितने कि कलेक्टिव डेटा और इन्फोर्मेशन पर बेस्ड डिसीजन माने जाते है. ऐसा नहीं है कि जल्दबाज़ी में लिए गए डिसीजन हमेशा गलत हो. कई बार तुंरत किये गए फैसले भी उन फैसलों के मुकाबले काफी बेहतर साबित होते है जो हम काफी रीसर्च और सोच विचार के बाद लेते है. मगर ये भी एक सच है कि कई बार हमारे इंस्टिंक्ट ही हमे धोखा दे देते है. कई बार ऐसा भी होता है कि कोई चीज़ पहली नजर में तो बड़ी अच्छी और इम्प्रेसिव लगती है लेकिन बाद में हमे पछताना पड़ता है.

इस बुक समरी में हम आपको यही चीज़ सिखाने वाले है कि आपको कब अपने इंस्टिंक्ट पर भरोसा करना चाहिए और कब नहीं. और आप इस बुक में ये भी सीखेंगे कि अपने स्नैप जजमेंट यानी जल्दबाज़ी में लिए गए डिसीजंस को कैसे एड्रेस और कण्ट्रोल करे. स्नैप जजमेंट या फर्स्ट इम्प्रेशन हमेशा सही हो ये ज़रूरी नहीं होता. हम कभी-कभी फर्स्ट इम्प्रेशन में कुछ बात बोल जाते है और फिर बाद में हमे अपनी मिस्टेक रिएलाइज होती है. इस बुक में आप कुछ ऐसे खास प्रोफेशनल्स से मिलेंगे जो स्नेप जजमेंट करने में ट्रेंड है. यकीन करना मुश्किल है मगर ये सच है कि आप भी अपने इंस्टिंकट्स को कण्ट्रोल कर सकते है.
हमे अपने इंस्टिंक्ट को सिरियसली क्यों लेना चाहिए, हमे कब इस पर ट्रस्ट करना चाहिए और कब नहीं और हम अपनी इंस्टिंक्ट को कैसे ट्रेन कर सकते है,

इन सब सवालों के जवाब आपको इस बुक में मिलेंगे. इस बुक को पढने के बाद आप अपने आस-पास की चीजों को लेकर आपका पर्सपेक्टिव चेंज हो जायेगा. आप ये सीखेंगे कि बेस्ट डिसीजन कैसे लेने है और कैसे अपना टाइम और एफोर्ट सेव करते हुए लाइफ के इम्पोर्टेंट डिसीजन लिए जाए. तो क्या आप अपनी लाइफ में चेंज लाने के लिए रेडी है? तो चलो इस बुक समरी से स्टार्ट करते है.

द थ्योरी ऑफ़ थिन स्लाइसेस: हाउ अ लिटल बिट ऑफ़ नॉलेज गोज़ अ लॉन्ग वे
थिन स्लाइसेस थ्योरी: कैसे थोड़ी बहुत नॉलेज हमारी लाइफ में काफी काम आती है. (The Theory of Thin Slices: How a Little Bit of Knowledge Goes a Long Way)

थिन स्लाईसिंग है क्या ? असल में हमारे अनकांशस माइंड की जो काबिलियत होती है कि वो पैटर्न बना सके और कनक्ल्यूजन यानी निष्कर्ष पर पहुँच सके, उसे ही हम थिन स्लाईसिंग बोलते है. आपको सुनने में ये थोडा साइंटिफिक लगेगा. मगर मेरा यकीन करो, असल में ये है नहीं. ये आपकी नैचुरल पॉवर है. जब हम लोगो को ओब्ज़ेर्व करते है, उनके बिहेवियर पैटर्न को करीब से देखने के बाद ही किसी सोल्यूशन में पहुँचते है तो असल में उस वक्त हम थिन स्लाईसिंग कर रहे होते है. और ये काफी ईजी है. अब आप सोचोगे कि सिर्फ कुछ सेकंड में ही किसी इंसान या सिचुएशन के बारे में कैसे जाना जा सकता है? लेकिन हम आपको बता दे कि थिन स्लाईसिंग एक ऑटोमेटेड प्रोसेस है.

हमारा माइंड वो सारी इन्फोर्मेशन कलेक्ट कर सकता है जो अवलेबल होती है और फिर उसमे से इररेलेवेंट यानी बेकार की चीजों को निकाल कर हमे वही इन्फोर्मेशन प्रोवाइड करता है जिसकी हमे ज़रूरत होती है. थिन स्लाईसिंग की थ्योरी को अच्छे से समझना हो तो हम साइकोलोजिस्ट सैमुएल गोसलिंग के एक्सपेरिमेंट से समझ सकते है. उन्होंने 80 कॉलेज स्टूडेंट्स के साथ एक एक्सपेरिमेंट किया. गोसलिंग ने इसके लिए ”बिग फाइव इन्वेंटरी” यूज़ की. इसमें कुछ सवाल होते है जो लोगो को 5 पैरामीटर्स पर मापते है. और ये 5 पैरामीटर्स है एक्स्ट्रावर्शन, एग्रीएबलनेस, कोंसेशिय्सनस, इमोशनल स्टेबिलिटी और लास्ट है न्यू एक्सपेरिमेंट्स को लेकर ओपननेस. (The five parameters are extraversion, agreeableness, conscientiousness, emotional stability and the last one was openness to new experiences.)

गोसलिंग ने सबसे पहले उन 80 स्टूडेंट्स के क्लोज फ्रेंड्स को चूज़ किया कि वो इन सवालों के जवाब दे. उसके बाद उन्होंने एकदम अजनबी लोगो से उन सवालों के जवाब पूछे. ये अजनबी लोग उन 80 स्टूडेंट्स से कभी नहीं मिले थे. फिर इन्हें बोला गया कि वो सिर्फ 15 मिनट के लिए इन स्टूडेंट्स के रूम एक्सप्लोर कर सकते है. उसके बाद रिजल्ट्स को कम्प्येर किया गया. अब, कोई ये सोचेगा कि उन 80 स्टूडेंट्स के जो क्लोज फ्रेंड्स थे, वो उनके बारे में अजनबी लोगो से बैटर जानते होंगे. लेकिन जो रिजल्ट आया वो इसके एकदम उल्टा था.

पहले दो पैरामीटर्स पर तो फ्रेंड्स ने बैटर जवाब दिए थे और ये पैरामीटर थे, एक्स्ट्रावर्शन और एग्रीएबलनेस (extraversion and agreeableness ) लेकिन बाकि की तीन कैटेगरी में अजनबियों ने ज्यादा अच्छा परफॉर्म किया था. और ये तीन कैटगरीज़ थी, कोंसेशिय्सनस(conscientiousness), स्टेबिलिटी और ओपननेस टू न्यू थिंग्स यानी नई चीजों को एक्सप्लोर करना.

यानि कि इस एक्सपेरिमेंट में अजनबीयों ने फ्रेंड्स से अच्छा परफॉर्म किया. और ये बात प्रूव हो गयी कि किसी के साथ एक लंबा टाइम गुज़ारने का ये मतलब नहीं कि आप उन्हें अच्छे से जानते होंगे. कई सालो साथ रहने के बावजूद हम किसी को पूरी तरह समझ पाए, ये ज़रूर्री नहीं है. जबकि किसी को कुछ मिनट्स के लिए ओब्ज़ेर्व करने से ही आप उसके बारे में काफी कुछ बता सकते है. क्योंकि हो सकता है कि वो इन्सान आज तक आपसे अपनी असलियत छुपाता आया हो या फिर उसे खुद के बारे में ही ज्यादा ना पता हो.

उन अजनबी लोगो ने उन 80 स्टूडेंट्स के रूम चेक किये थे तो इसका मतलब है कि आपकी पर्सनल चीज़े भी आपके बारे में जितना बताती है उतना तो खुद आपको भी पता नहीं होता. यही है थिन स्लाईसिंग. आपका अनकांशस माइंड चीजों को ओब्ज़ेर्व करता है, उसमे से अनवांटेड यानी फालतू निकाल के काम की इन्फोर्मेशन रख लेता है.

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द लोक्ड डोर: द सीक्रेट लाइफ ऑफ़ स्नैप डिसीजंस
The Locked Door: The Secret Life of Snap Decisions

अब जब आप थिन स्लाईसिंग के बारे जान ही चुके है तो अब ज़रा इसकी इम्पोर्टेंस के बारे में बात कर लेते है.  दो मिनट के अंदर लिए गए फैसले या स्नैप जजमेंट थिन स्लाईसिंग पर बेस्ड होते है. हमारा अनकांशस माइंड स्नैप डिसीजंस लेता है. और कई बार तो आप सोचते रह जाते है कि आपने ये डिसीजन ले कैसे लिया था. क्योंकि स्नैप डिसीजन एक लोक्ड डोर के पीछे डिसाइड किये जाते है जिनका कोई रीजन समझ नहीं आता. आमतौर पर लोग स्नैप डिसीजंस इग्नोर कर देते है. क्योंकि ये यकीन करना मुश्किल है कि हमारे माइंड में कोई लोक्ड डोर भी हो सकता है. और ये डोर हमारे कांशस माइंड को अनकांशस माइंड से अलग करता है.

हम अपने स्नैप डीसीजंस के पीछे कोई लोजिक ढूँढ़ते है पर हम कभी भी अपनी इग्नोरेंस यानी अपनी नादानी एक्सेप्ट नहीं करते. यहाँ हम लोक्ड डोर का कांसेप्ट समझने के लिए एक एक्जाम्पल लेते है. नार्मन आर, एफ. मैएर (Norman R. F. Maier)  ने एक एक्सपेरिमेंट किया, उन्होंने एक रूम की छत से दो रस्सियाँ लटका दी. रूम डिफरेंट टाइप की चीजे और फर्नीचर से भरा हुआ था. रस्सियाँ एक दुसरे से इतनी दूर रखी गयी थी कि एक रस्सी पकड़ने पर दूसरी हाथ नहीं आती थी. इस रूम में कई लोगो को भेजा गया और उनसे बोला गया कि आप कितने तरीको से एक ही टाइम में दोनों रस्सियों को पकड सकते हो. सही जवाब था चार तरीको से. पहला तरीका था:

दोनों में से एक रस्सी को जितना हो सके उतने जोर से खींच कर दूसरी रस्सी के पास ले जाओ और फिर इस पर कोई चीज़ बाँध दो ताकि ये अपनी जगह से ना हिले. उसके बाद दूसरी रस्सी को पकड़ो. सेकंड तरीका: एक एक्स्टेंशन कोर्ड लो और इसके दोनों सिरों को रस्सियों से बांध दो. थर्ड तरीका: पहली रस्सी एक हाथ में पकड़ो और किसी लंबे डंडे से दूसरी रस्सी को अपनी तरफ खींचने की कोशिश करो. फोर्थ तरीका है: एक रस्सी को पेंडूलम की तरह घुमाओ और फिर दूसरी रस्सी को पकड लो. ज्यादातर लोगो को पहले वाले तीन तरीके समझ आये मगर चौथा तरीके का आईडिया बहुत कम लोगो को आया था.

मैएर(Maier) ने फिर लोगो को 10 मिनट रूम में ऐसे ही बिठा कर रखा और उनमे से एक रस्सी को घुमाया.  तब जाकर बाकियों को भी चौथा तरीका समझ आया. तो जब इन लोगो से पुछा गया कि उनके माइंड में ये सोल्यूशन्स आया तो सब बहाने बनाने लगे. किसी ने बोला” हमे तो पहले से पता था, तो किसी ने कहा” उन्होंने ब न्दर को पेड़ से झूलते हुए इमेजिन किया. सबने कोई ना कोई बहाना बनाया लेकिन किसी ने भी ये बात एडमिट नही की कि उन्हें जब हिंट मिला तब जाकर उन्हें फोर्थ सोल्यूशन समझ आया. दरअसल कांशस माइंड इस हिंट को आसानी से नोटिस नहीं कर पाया. ये अनकांशस माइंड ने अपने आप ही सोच लिया था.

और इसकी वजह क्या है, ये बताना भी मुश्किल था क्योंकि ये माइंड के लोक्ड डोर के पीछे था. ज्यादातर लोग ये बताने में शर्म महसूस कर रहे थे कि उन्हें फोर्थ आईडिया कैसे समझ आया. दरअसल उन्हें अपने अनकांशस माइंड से समझ आया था.

द वारेन हार्डिंग एरर: व्हाई वी फॉल फॉर टाल डार्क एंड हैण्डसम मेन The Warren Harding Error: Why We Fall For Tall, Dark, and Handsome Men

इस चैप्टर में हमे स्नैप जजमेंट के डार्क साइड को जानने का मौका मिलता है. थिन स्लाईसिंग कई सालो की ओब्ज़ेर्विंग के बाद आती है. पर स्नैप जजमेंट सिर्फ फर्स्ट इम्प्रेशन्स पर बेस्ड होते है. स्नैप जजमेंट अक्सर बिना ज्यादा खोजबीन के लिए जाते है और इसीलिए कई बार इसका गलत रिजल्ट भी मिलता है. फर्स्ट इम्प्रेशन हमारे पहले के एक्स्पिरियेंश पर बेस्ड होते है. अगर किसी चीज़ को लेकर आपका पास्ट में अच्छा अनुभव रहा है तो आपका अनकांशस माइंड उसी तरफ जाएगा. फर्स्ट इम्प्रेशंस अनकांशस माइंड में बनते है और आपको पता भी नहीं चलता. लेकिन फर्स्ट इम्प्रेशंस को कण्ट्रोल किया जा सकता है.

जो एक्स्पिरियेंश फर्स्ट इम्प्रेशन्स के लिए रिस्पोंसिबल होते है उन्हें चेंज करके हम इन्हें कण्ट्रोल कर सकते है. इस चैप्टर में हम दो एक्जाम्पल देखेंगे. वारेन हार्डिंग एक छोटे से टाउन में एक न्यूजपेपर के एडिटर थे. उनकी एज 35 साल थी, देखने वो एक टाल डार्क और हैण्डसम मेन थे. लेकिन वो इतने इंटेलिजेंट नही थे. उनकी मुलाकात दौघेर्टी (Daugherty) से हुई जो एक लॉयर और लोबीईस्ट थे. वो वारेन के गुड लुक्स से बड़े इम्प्रेस्ड हुए. उन्हें लगता था कि वारेन एक ग्रेट प्रेजिडेंट बन सकते है.  उन्होंने वारेन को इस बात के लिए कन्विंस कर लिया था, और फिर दौघेर्टी (Daugherty) की दुआ से वारेन यू.एस.  के प्रेजिडेंट बन गए.

मगर बहुत से हिस्टोरियंस को लगता था कि वारेन अमेरिका के सबसे बुरे प्रेजिडेंट थे. यहाँ थिन स्लाईसिंग के कांसेप्ट फेल हुआ है. दौघेर्टी (Daugherty’) का फर्स्ट इम्प्रेशन एकतरफ़ा था. उन्होंने वारेन को एक प्रेजिडेंट की क्वालिटी से नहीं देखा था बल्कि उन्होंने सिर्फ उनके गुड लुक्स पर धयान दिया था. एक टेस्ट है आईएटी (IAT) या इम्प्लिसिट एसोशिएशन टूल ( Implicit Association Tool ) जो इंसान के बिलीफ और बिहेवियर के बीच कनेक्शन चेक करने के लिए डिजाईन किया गया है. ये टेस्ट कॉलेज स्टूडेंट्स पर किया गया. उन्हें नामो की एक लिस्ट देकर पुछा गया कि इनमे कौन मेल है और कौन फीमेल.

ये टेस्ट काफी सिम्पल और क्विक था. फिर टेस्ट को रीपीट किया गया लेकिन इस बार नाम और कैटेगरीज चेंज कर दी गयी. इस टाइम स्टूडेंट्स को बोला गया कि वो नामो को दो कैटेगरीज़ में डिवाइड करे: मेल या फेमिली और फिमेल या करियर. ये टेस्ट पहले वाले से थोडा मुश्किल था इसलिए रिएक्शन टाइम भी बढ़ा दिया गया. क्योंकि कुछ लोगो के लिए मेल को फेमिली के साथ और फिमेल को करियर के साथ रिलेट करना मुश्किल था. दरअसल ये लोग अपने एक्सपीरिएंस की वजह से एकतरफा सोच रखते थे. फिर सेम यही टेस्ट दो डिफरेंट कैटेगरीज़ के साथ रीपीट किया गया.

ये कैटेगरीज़ थी: योरोपियन या बुरे लोग और अफ्रीकन अमेरिकन या अच्छे लोग. इस लिस्ट में कुछ ऑब्जेक्टिव भी रखे गए थे जैसे कि हर्ट, ईविल, ग्लोरियस और वंडरफुल. ये वाला टेस्ट स्टूडेंट्स के लिए कुछ ज्यादा ही मुश्किल था और इसलिए उनसे ये टेस्ट हो नहीं पाया. एक बार फिर टेस्ट रीपीट किया गया. इस बार लिस्ट ऑफ़ आइटम्स सेम थे मगर चेंज्ड कैटेगरीज़ के साथ. जैसे अफ्रीकन अमेरिकन या बुरे लोग और योरोपियन अमेरिकन या अच्छे लोग. इस बार टेस्ट सिम्पल था. वो इसलिए क्योंकि स्टूडेंट्स को अफ्रीकन अमेरिकंस को अच्छी चीजों से रिलेट करना मुश्किल लग रहा था. क्योंकि उनके माइंड में अफ्रीकंस को लेकर एक नेगेटिव इमेज थी. वो उन्हें अच्छा समझ ही नहीं सकते थे.

एक स्टूडेंट को बोला गया कि वो अपने माइंड से बाएस्ड सोच हटाने के लिए रोज़ ये टेस्ट करे. लेकिन उस स्टूडेंट की सोच नहीं बदली. फिर एक दिन उसे बोला गया कि वो मार्टिन लूथर किंग, कोलिन पोवेल या नेल्सन मंडेला जैसे लीडर्स की बुक्स पढ़े. फाइनली इस स्टूडेंट की सोच चेंज हुई और उसका आईएटी स्कोर भी चेंज हुआ. क्योंकि अब उस स्टूडेंट का आईएटी स्कोर (IAT score ) इम्प्रूव हो गया था तो उसने ब्लैक लोगो को पोजिटिव लाईट में देखना शुरू कर दिया था. ग्रेट ब्लैक लीडर्स की बुक्स पढने से उसकी ट्रेडिशनल थिंकिंग अब चेंज हो गयी थी. तो इसका मतलब है कि हम अपने एन्वायर्नमेंट और एक्सपीरिएंस चेंज करके किसी भी चीज़ को लेकर अपने फर्स्ट इम्प्रेशन को चेंज कर सकते है.

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