(hindi) Bhagavad Gita (Chapter 1)

(hindi) Bhagavad Gita (Chapter 1)

नमस्कार दोस्तों,
गिगल एप पर आपका बहुत बहुत स्वागत है । हम आपके लिए लेकर आए हैं एक ऐसा प्रोजेक्ट जिसे करने के लिए हम तो excited हैं ही । पर हम जानते हैं कि आप भी इसे सुनने के लिए उतने ही बेकरार हैं।

जी हाँ यह है श्रीमद भगवद गीता । पर इससे पहले कि इसे शुरू करें कुछेक बातें हैं जो हम आपसे शेयर करना जरूरी समझते हैं ।
यह बात तो हम सभी को मालूम है कि भगवान यानि परमात्मा एक ही है पर उन्हे न पहचानने के कारण, ना जानने के कारण इस बात को मानते नहीं हैं। परमात्मा को न जान पाने के कारण भी कई हैं। जिसमे सबसे पहला तो यही है कि वह दिखाई नही देता। सोचिये जब आत्मा को ही आँखों से नहीं देखा जा सकता तो परम आत्मा को कैसे देख सकते हैं।

परम यानि सर्वोच्च – सुप्रीम- आला या अल्लाह। उनसे ऊंचा कोई और नहीं।
वह एक रचयिता और बाकी सब उसकी रचना यानि creation ।
जिस प्रकार एक आत्मा को अपनी बात कहने के लिए मानव शरीर लेना पड़ता है और हम इंसान या मनुष्य कहलाते हैं ठीक उसी प्रकार साइंस कहें या spiritual साइंस कहें । परम-आत्मा को भी इंसान के शरीर का आधार लेना ही पड़ता है।
आध्यात्म यानि आत्मा – परमात्मा और इस वर्ल्ड ड्रामा व्हील की स्टडी।
धर्म यानि धारणायें अर्थात वो नियम जो इंसानों के लिये बनाए गए।
दुनिया में लगभग 12 मुख्य धर्म हैं और सभी में ईश्वर के स्वरूप के लिए समान बातें कही गई हैं। तभी ईश्वर को सर्वज्ञ भी कहा जाता है।

जैसे परमात्मा एक नूर है और एक ही है सबसे पहले इस सिद्धांत से मनुष्य का परिचय कराने वाले संदेशवाहक हज़रत इब्राहिम हुये। हज़रत इब्राहीम को ही यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म का मुख्य संस्थापक कहा जाता है। तीनों ही धर्मों में ईश्वर को लाइट यानि नूर , प्रकाश स्वरूप कहा गया है. हज़रत मोज़ेस यानि मूसा को भी एक लाइट / फायर का साक्षात्कार हुआ और उन्होंने 10 commandments मानव समुदाय के लिये सिद्धांत के रूप में दी। । Zoroastrianism यानि पारसी धर्म के संस्थापक जुरुआस्त्र ने भी ईश्वर को फायर , प्रकाश स्वरूप और में ही अनुभव किया था। जीसस क्राइस्ट यानि हज़रत ईसा ने भी God is Light कहकर उस एक परमात्मा के गुणों का बखान किया और उन के शिष्यों द्वारा क्राइस्ट की शिक्षाओं को लिपिबद्ध करके बाइबल में सँजोया गया।

हज़रत मोहम्मद पैगंबर साहिब ने हज़रत इब्राहिम, हज़रत मूसा द्वारा मिली शिक्षाओं और सर्वोच्च ईश्वर से हुए साक्षात्कार पर आधारित पवित्र पुस्तक कुरान इस्लाम के अनुयायियों के लिए सौंपी। धरती पर रहने वाले किसी भी आदमी की यानि इंसान की, उच्च शिक्षाओं को समेटे इस पुस्तक के साथ छेड़-छाड़ करने की हिमाकत न हो इसके लिए, इसे अल्लाह के घर से आई पुस्तक कहकर इसकी हिफाजत का जिम्मा हर एक अनुयायी को दिया।

श्री गुरु नानक देव जी ने एक ओंकार यानि एक परमात्मा के बारे में ही प्रशंसा की है और फिर उनके शिष्यों ने उनकी कही बातों और शिक्षाओं को लिपिबद्ध करके गुरु-ग्रंथ साहिब जी बाकी सभी अनुयायियों के लिए रखा।

हिन्दू धर्म की पुस्तकों को श्रुति और स्मृति के आधार पर बाँटा जाता है। श्रुति अर्थात सुनी हुई पवित्र पुस्तकें वेद- और उपनिषद हैं। स्मृति यानि साक्षात्कार और याद पर आधारित रचित पवित्र पुस्तकें पुराण और रामायण एवं महाभारत महाकाव्य हैं। जन-सामान्य द्वारा सबसे अधिक पढ़ी और फॉलो की जाने वाली पुस्तक रामायण है। इसके उपरांत गीता – ज्ञान को सबसे अधिक सुना और पढ़ा जाता है।

महाभारत के युद्ध के दौरान आत्मा के धर्म अर्थात आध्यात्म के बारे में दिया गया अनमोल ज्ञान गीता कहलाया।  जिसे बाद में लिपिबद्ध कर श्रीमद भगवद पुराण के रूप में प्रस्तुत किया गया।

श्रीमद भगवद पुराण में वर्णित प्राचीन ज्ञान के अनुसार निराकार शिव परमात्मा ने गीता का दिव्य सत्य ज्ञान सबसे पहले – पहले ब्रह्मा जी को सुनाया था। इस दिव्य ज्ञान के आधार पर ही ब्रह्मा जी के द्वारा सृष्टि की रचना एवं युगों का निर्माण हुआ था जिन्हे ब्रह्मा का दिन एवं ब्रह्मा की रात के आधार पर बाँटा गया। सतयुग और त्रेता युग ब्रह्मा का दिन कहे जाते हैं और द्वापर और कलियुग ब्रह्मा की राते कहे जाते हैं। इसी ज्ञान के आधार पर आदि सनातन धर्म की स्थापना हुई थी।

अच्छी बात यह है कि उपरोक्त सभी धर्म एवं दुनिया में लगभग मुख्य 12 धर्म हैं और इन सभी में परमात्मा का स्वरूप निराकार/ ज्योति स्वरूप / God is Light कहकर ही बताया गया है।

यहाँ यह सब बातें शेयर करने के पीछे भाव यही है कि किन्ही भी नबी अथवा धर्म प्रवर्तक या संदेश वाहकों में से किसी ने भी स्वयं को ईश्वर नहीं बताया। यहाँ तक कि श्रीमद भगवद गीता में भी श्री कृष्ण जी के माध्यम से भी यही कहा गया कि परमात्मा कभी जन्म नहीं लेता। वह जन्म और मृत्यु से परे ( beyond ) निराकार है, अशरीरी है। गीता के वचनों के अनुसार जो कोई भी परमात्मा को देहधारी मानता है वह परमात्मा को नहीं जानता।

अर्जुन को भी उसके सत्य स्वरूप यानि आत्म भाव में टिककर प्रकाश स्वरूप परमात्मा का ध्यान करने का स्पष्ट निर्देश यानि clear direction दिया गया है।
फिर प्रश्न उठता है कि जब परमात्मा का स्वरूप एक है उनके attributes same  हैं तो फिर इतने सारे धर्म कैसे बन गए ? और सभी एक होकर क्यों nahi रहते ?

इसका जवाब है ठीक तरह से अपने धार्मिक ग्रंथों को न समझना। जी हाँ। यह छोटा मुह बड़ी बात लग सकती है पर यही सच है।
इस बात को इस उदाहरण के माध्यम से समझ जा सकता है। गांधी जी और गोडसे दोनों ही हर रोज श्रीमद भगवद गीता का पाठ करते थे। रोजाना ही गीता का कोई न कोई अध्याय पढ़ते थे।

पर एक ने गीता पढ़कर सत्य, अहिंसा, और ब्रह्मचर्य को अपनाया और अपने अंदर की कमजोरियों से युद्ध किया और दूसरे ने हिंसा का रास्ता अपनाया।
हम सभी परमात्मा को उतना ही जानते हैं जितना हम खुद को। हम देवात्माओं यानि देवी – देवताओं को पहचानते हैं, धर्मात्माओं को पहचानते हैं, संत-आत्माओं को पहचानते हैं। महान आत्माओं और मनुष्य-आत्माओं को पहचानते हैं। पर उस एक परम-आत्मा को नहीं पहचान पाए हैं। शायद इसीलिए हम धर्म के नाम पर एक दूसरे से अब तक लड़ते आए हैं। पर सत्य ज्ञान कभी भी बांटेगा नहीं वह सभी को एक करेगा। unite करेगा, और  इसे ही आध्यात्म कहा जाता है।

इसमे कोई दो राय नहीं कि परमात्मा का संदेश है कि धर्म की रक्षा करने से आपकी रक्षा होती है पर यह बात भी तो स मझने की है परमात्मा तो आत्मा के धर्म की (आध्यात्म) की रक्षा करने को कहते हैं। जो कि है शांति और पवित्रता। शरीर का धर्म तो मौत के साथ ही छूट जाता है पर शांति और पवित्रता तो शरीर छूटने के बाद भी आत्मा को चाहिए ही होती हैं। और किसी भी धर्म में जन्मी आत्मा क्यों न हो सभी को शांति और सुकून की तलाश होती है।

बहरहाल – हम सभी जानते हैं श्रीमद भगवदगीता पर अनेक विद्वानों ने अपने तरह से टीका-टिपण्णी की है। अपने अपने versions भी निकाले हैं । हमारा यहाँ ऐसा कोई इरादा नहीं है। हम सभी यह भी जानते हैं कि इतिहास के पिछले दौर में भारतीय पुस्तकों, धर्म-ग्रंथों को कई बार नष्ट भी किया गया है ऐसे में सम्पूर्ण सत्य का सामने आ पाना भी संभव नहीं है।

पर जितना सत्य भी हम इसमे से पाते हैं हम उसके लिए इस सर्व शस्त्र मई शिरोमणि कहलाने वाली गीता को और इसके स्वरूप को सुरक्षित रखने वालों को दिल से शुक्रिया अदा करते हैं। हमारा उद्देश्य गिगलर्स को बेस्ट आइडियास बेस्ट knowledge available कराना है। कहा जाता है संस्कृत भाषा के जनक आदि गुरु शंकराचार्य जी हैं। जिनका जन्म 17 वीं शताब्दी का बताया जाता है। अतः हम समझते हैं कि अवश्य ही गीता का ज्ञान देव-नागरी में बोल गया होगा जिसे उस समय काल के लोग बोल और समझा करते थे। हमने भी इसी उद्देश्य से गीता के इस अनमोल ज्ञान को भाषाओं में बांधने का प्रयास नही किया है । हमने एक सरल भाषा शैली का चुनाव किया जिससे सभी हिन्दी speaking बेल्ट के गिगलर्स इसे आसानी से समझ सकें।

हाँ एक बात और – अगर हम सच में चाहते हैं कि गीत का ज्ञान हमे समझ आए तो हमे खुद को अर्जुन  यानि ज्ञान का अर्जन करने वाली आत्मा समझकर यह chapters सुनने चाहियें।
कुरुक्षेत्र यानि कर्म क्षेत्र
धर्मयुद्ध यानि – हमारे अपने अंदर अच्छाई और बुराई का युद्ध
योग यानि आत्मा की परमात्मा से मिलने की विधि

आइए शुरू करते हैं श्रीमदभगवद गीता
श्रीमद् भगवद् गीता (Bhagavad Gita)
व्यास ऋषि द्वारा (Sage Vyasa)

क्या आपने कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध के बारे में सुना है? कहते हैं धर्म स्थापना के लिए लडे गए उस युद्ध में इतने लोगों की जान गई थी कि वहाँ की मिट्टी रक्त से लाल हो गई थी. क्या आप जानते हैं कि युद्ध से होने वाले विनाश के बारे में सोचकर जब राजकुमार अर्जुन को दुःख और मोह ने घेर लिया था तब  श्रीकृष्ण ने उनसे क्या कहा था? आखिर क्यों लड़ा गया था वो युद्ध,  क्या उद्देश्य था उसका?

“भगवद गीता” का मतलब है भगवान् द्वारा गाया हुआ गीत. इस पवित्र ग्रंथ की गहराई को समझना इतना आसान नहीं है. कई ज्ञानी कहते हैं कि भले ही ये युद्ध कुरुक्षेत्र की भूमि पर अस्त्र शस्त्र से लड़ा गया था लेकिन इसमें दिए गए संदेश का मकसद हमें ये समझाना है कि हमारा मन भी कुरुक्षेत्र की तरह एक रणभूमि है जहां लालच, मोह, गुस्सा, वासना आदि कौरवों की तरह 100 अवगुण बसते हैं जिन्हें हमें अपनी पाँचों इन्द्रियों, जो पांच पांडव के प्रतीक हैं, को क़ाबू में करके हराना होगा तभी हम एक सुखी जीवन जी सकते हैं और मुक्ति पा सकते हैं. श्रीकृष्ण हमारे मन की आवाज़ या आत्मा या consciousness का प्रतीक हैं जो दुविधा के वक़्त सवालों का जवाब देकर हमारी मदद करते हैं. हर इंसान अर्जुन का प्रतीक है जो दुविधा में घिरा हुआ है.

श्रीमद भगवद गीता उपदेश नहीं देती बल्कि इंसान को जीवन जीने का सही तरीका सिखाती है. ये अमृत रुपी ज्ञान किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है. इसमें श्रीकृष्ण ने पूरी सृष्टि के लिए कई अनमोल बातें बताई हैं जिन्हें अगर अपने जीवन में उतारा जाए तो हम अनगिनत समस्याओं से बच सकते हैं.

इस पवित्र ग्रंथ में आप ब्रह्माण्ड के उन रहस्यों के बारे में जानेंगे जिन्हें लेकर अक्सर हमारे मन में सवाल उठते हैं. कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने जीवन से जुड़े कई अनसुलझे सवालों का जवाब दिए हैं.

इस किताब के ज़रिए आप अध्यात्म को एक अलग नज़रिए से देखने लगेंगे. इसमें बताई गई बातें आज भी बिलकुल सटीक बैठती हैं क्योंकि इंसान का मन अब भी उन्हीं विकारों और दुविधाओं से जूझ रहा है जैसे हज़ारों साल पहले जूझ रहा था और इसका कारण है अज्ञानता. इसमें बताई गई बातें अज्ञानता को दूर कर मन में ज्ञान का दीपक जलाती है जिससे इंसान सब कुछ साफ़-साफ़ समझने लगता है और उसका बेचैन मन शांत हो जाता है. इन बातों को आप अपने जीवन के हर पहलू में उतार कर परख सकते हैं. देखा जाए तो जीवन यात्रा एक समुद्र की तरह है, जिसमें हमें एक किनारे से दूसरे किनारे तक पहुंचना होता है, तूफ़ान और लहरें वो चुनौतियां हैं जिनका सामना हमें इस सफ़र के दौरान करना पड़ता है और यह पवित्र ग्रंथ, जो समय और काल चक्र से परे है, वो नाव है जो हमें सही रास्ता दिखाती है , निराशा और अन्धकार में डूबने से बचाती है.

अध्याय 1: विषाद योग ..
(अर्जुन द्वारा कुरुक्षेत्र के मैदान में सेनाओं का निरिक्षण करना)

कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों ओर सेनाएं तैयार खड़ी थीं, तनाव के कारण हवा में अजीब सा भारीपन था. एक ओर थे पांच पांडव भाई, जिनकी सेना में कई शूरवीर शामिल थे. दूसरी ओर थे सौ कौरव भाई जिनकी सेना कई महारथियों से सजी थी और श्रीकृष्ण की नारायणी सेना ने उनके बल को और भी बढ़ा दिया था. द्वारकाधीश श्रीकृष्ण ने कसम खाई थी कि वो इस युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे इसलिए उन्होंने अर्जुन और दुर्योधन को उनमें और उनकी नारायणी सेना में से एक का चुनाव करने के लिए कहा. अर्जुन ने श्रीकृष्ण को चुना. क्योंकि अर्जुन उनके परम सखा था इसलिए उनका मार्गदर्शन करने के लिए श्रीकृष्ण उनके सारथी बने.

युद्ध शुरू होने का समय हो रहा था, पांडू पुत्र अर्जुन की नज़र सामने खड़ी सेना की ओर गई. वहाँ उन्हें अपने भाई, उनके बच्चे, गुरुजन और भीष्म पितामह दिखाई दिए. ये युद्ध किसी आम युद्ध जैसा नहीं था जहां दो राजा अपने वर्चस्व या राज्य के लिए लड़ रहे थे. ये युद्ध, जो धर्म युद्ध के नाम से जाना जाता है, एक ही परिवार के लोगों के बीच के संघर्ष की कहानी है जिसका जन्म लालच और अहंकार के कारण हुआ था.

दोनों पक्ष अपने दुश्मन को गौर से देख रहे थे, उन्हें हर ओर अपने दिख रहे थे. कहने को वो चचेरे भाई थे लेकिन सत्ता के लालच में कौरवों की आँखों पर पर्दा पड़ गया था.

ध्रितराष्ट्र और पांडू दो भाई थे. ध्रितराष्ट्र के सौ पुत्र थे जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था. उसमें अहंकार और लालच कूट-कूट कर भरा था. कहते हैं कि वो इतना दुष्ट और अधर्मी था कि उसके जन्म के समय प्रकृति भी उदास हो गई थी. पांडू के पांच पुत्र थे पांडव जो धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोग थे. दुर्योधन पर सम्राट बनने का जुनून सवार था. वो हर हाल में इस युद्ध में पांडवों को हराकर अपनी जीत चाहता था. ना उसे निर्दोषों की जान की परवाह थी ना अपने भाइयों को खोने का गम. उसे पूरा यकीन था कि भीष्म पितामाह, अंगराज कर्ण, अश्वथामा और गुरु द्रोणाचार्य जैसे महारथियों का साथ होने से उसकी जीत निश्चित थी. लेकिन उसके विश्वास के विपरीत जीत तो पांडवों की होनी थी क्योंकि श्रीकृष्ण उनके पक्ष में थे. श्रीकृष्ण धर्म के पक्ष में थे.

पांडव पराक्रमी योद्धा होने के साथ बहुत ज्ञानी भी थे, वो ये युद्ध नहीं चाहते थे. वो सिर्फ़ पांच गाँव का अधिकार चाहते थे ताकि सब सुख शांति से रह सकें. लेकिन जब दुर्योधन ने भूमि का एक टुकड़ा तक पांडवों को देने से इनकार कर दिया तब युद्ध के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा. भगवद गीता में ज्ञान का मतलब है इस शरीर, आत्मा और परमात्मा के तत्व को समझना.

कौरवों की ओर से भीष्म पितामह ने सिंह की तरह गरजकर शंख बजाया. इसके बाद शंख, नगाड़े, ढ़ोल सब एक साथ बज उठे जिनके आवाज़ से भयंकर गर्जना हुई. दूसरी ओर, सफ़ेद घोड़ों से सजे अलौकिक और दिव्य रथ पर बैठे श्रीकृष्ण और अर्जुन ने शंखनाद किया. उनके पक्ष में बाकी भाइयों ने अलग-अलग दिव्य शंख बजाए. उन सभी के शंख की गूँज से धरती और आकाश दोनों काँप उठे.

जैसे-जैसे रथ आगे बढ़ने लगा, सामने अपने लोगों को देखकर अर्जुन का मन गहरे दुःख से भर गया. जब उन्हें अपनी दुविधा का कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने श्रीकृष्ण को अपने मन की पीड़ा बताई. मान्यता के अनुसार कहते हैं कि श्री कृष्ण जी ने समय को रोक दिया था और गीता का ये दिव्य संवाद श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच में हुआ था. वहीँ, महर्षि व्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि दी थी जिसके ज़रिए वो हस्तिनापुर से कुरुक्षेत्र में हो रही हर घटना को देख सकते थे, सुन सकते थे. उन्होंने श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए इस संवाद और युद्ध का आँखों देखा हाल ध्रितराष्ट्र को सुनाया. श्रीकृष्ण ने अर्जुन के बेचैन मन को शांत करने के लिए उनके हर सवाल का जवाब दिया और तब ये महान ग्रंथ अस्तित्व में आया.

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