(Hindi) Awaken The Giant Within

(Hindi) Awaken The Giant Within

अवेकन द जायंट विदिन
एंथोनी रॉबिन्स द्वारा

परिचय

क्या आप जानते है कि हम सब के अंदर पोजिटिव एनेर्जी का एक स्लीपिंग जायंट मौजूद है जो हमारे इनर वर्ल्ड में डीप कहीं सो रहा है. क्या आप को मालूम है अपने अंदर के इस जायंट को जगाकर अपनी लाइफ की सारी प्रॉब्लम्स पूरी ताकत और कभी ना खत्म होने वाले पैशन के साथ कैसे टेकल करे? बहुत से लोगो को ये बात पता ही नहीं होती, कम से कम ये मारवेलस बुक पढने से पहले तो बिलकुल भी नहीं जो लिखी है एंथोनी रॉबिन्स ने. इस बुक में रॉबिन्स ने ऐसी टेक्नीक्स की एक पूरी वैरायटी और रेलेवेंट एडवाइस दी है

जिसे आप यूज़ करके सक्सेस और हैप्पीनेस की अपनी डिजायर पूरी कर सकते है. हमने पूरी कोशिश की है कि हम आपके लिए ” अवेकन द जायंट विदीन” बुक में से ऐसे मोस्ट इम्पोर्टेन्ट, एशेंशियल आईडियाज़ चुन कर छांटे है जो हम आपके सामने पेश कर सके. और सबसे इम्पोर्टेन्ट बात ये है कि हमने इन सब आईडियाज़ को डे टू डे की रियल लाइफ स्टोरीज और सिचुएशंश के थ्रू समझाने की कोशिश की है.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

बेलेन्स्ड एक्सपेक्टेशन

इस एक्सप्रेशन के साथ हम कहेंगे कि एक्सपेक्टेशन और स्टैंडर्ड्स एक्सट्रीमली वैल्यूएबल चीज़े है जब उन्हें मोटीवेटर की तरह किसी एक पर्टीक्यूलर गोल तक पहुँचने के लिए यूज़ किया जाए. हालांकि स्टैंडर्ड्स इतने हाई होने चाहिए कि हमें बार बार चेलेंज कर सके और आगे बढ़ने के लिए एंकरेज करे. हाई और परफेक्शनिस्ट स्टैंडर्ड्स और ऐसे लो स्टैण्डर्ड जो हमारे लिए कोई चेलेंज नहीं रखता, इनके बीच एक परफेक्ट बेलेंस करना काफी मुश्किल है. ये दोनों अगर एक्सट्रीम्स हो तो हमें लैक ऑफ़ डिजायर और मोटिवेशन की तरफ ले जाते है. जैसे एक्जाम्पल के लिए रिलेटिवली हाई स्टैण्डर्ड रखने के मतलब है कि हमें कोई भी चीज़ बहुत जल्द फेलियर लग सकती है, भले ही वो ना हो. इसके अपोजिट अगर हम लो स्टैण्डर्ड रखेंगे तो हमे कोई काम करने में वो मज़ा नहीं आएगा क्योंकि वो ईजी होगा,

उसमे कोई चेलेंजेस नहीं होंगे. पहले हम देखेंगे कि कैसे अनरीजनेबल (बहुत ज्यादा ओप्टीमिस्टिक और बहुत ज्यादा पैसीमिस्टिक) एक्सपेक्टेशन किसी भी ऐसी कोशिश बर्बाद कर देती है जो अदरवाइज़ प्रोमिसिंग हो सकती थी, वियतनाम वार की स्टार्टिंग में अमेरिकन आर्मी हाई स्पिरिट में थी. क्यों ना होती आखिरकार ये दुनिया की सबसे पॉवरफुल कंट्री के सोल्जर जो थे. उनके पास मोस्ट एडवांस और बेस्ट टेक्नोलोजी थी, उनके पास मोस्ट टेलेंटेड ऑफिसर थे, उनकी ट्रेनिंग का कोई मुकाबला नहीं था. हार उनका ऑप्शन थी ही नहीं क्योंकि उन्हें जीतने का पूरा भरोसा था. इतना ज्यादा कि उन्होंने अपने दुश्मन को कमजोर समझ लिया था.

एक सब-ह्यूमन लेवल तक प्रैक्टिकली उन्हें बहुत छोटा समझा. दुसरे वर्ड्स में कहे तो वियतकोंग ( वियतनाम कम्यूनिस्ट आर्मी) अमेरिकन आर्मी को दुश्मनी के लायक नज़र ही नहीं आ रही थी. यू. एस. आर्मी ने वार स्टार्ट होने से पहले ही इसे एक तरह से जीता हुआ समझ लिया था. और यही बात शायद उनके सिरियस लैक ऑफ़ डिसप्लीन की वजह भी बनी और अल्टीमेटली इसने वियतनाम वार को एक होर्रिबल कचरा बना डाला था. अगर सिचुएशन को ज्यादा थोरोली एनालाइज किया जाता तो शायद यू.एस. आर्मी इस वार को विनिंग की अप्रोच से देखती ही नहीं. तो इस स्टोरी का एक्जाम्पल देकर हम ये कहना चाहते है कि : अ बैटल केन नोट बी वोन बीफोर इट इवन स्टार्टेड यानी किसी भी लड़ाई की शुरुवात से पहले ही इसकी जीत तय नहीं की जा सकती.

अब जब हम किसी भी सिचुएशन को काफी क्रीटिकली वे में अप्रोच करते है तब भी हो सकता है कि जिस तरीके से इसे एनालाइज किया गया है उसमे कुछ मिस्टेक हो. अब जैसे मान लो कोई अपने लिए एक्स्ट्रीमली लो स्टैण्डर्ड रखता है जिससे उसका काम ईजीली हो जाता है. लेकिन भले ही ये सारे काम पूरे हो रहे है लेकिन इन्हें करने में कोई मज़ा नहीं आता, क्योंकि इसमें कोई चेलेंज तो है ही नहीं. ये कई बार तब होता है जब लोग एक्स्ट्रीमली अनकांफिडेंट होते है और उन्हें अपने अंदर की एबिलिटीज़ पर भरोसा नहीं होता. कोशिश करने (जिसमे हार भी मुमकिन है ) के बजाये अपने लिए लोअर स्टैण्डर्ड सेट करना बहुत ईजी होता है.जब लोग फेल होने से डरते है ना तो उन्हें लोअर स्टैण्डर्ड की चीजों पर काम करना ज्यादा लोजिकल लगता है क्योंकि इसमें फेल होने के खतरे कम होते है और थोडा प्राइड भी फील होता है कि चलो हमने कुछ तो हासिल किया.

शायद आपने नोटिस किया हो जब भी हमे मौका मिलता है हम आईडियाज़ और कॉन्सेप्ट्स को पोपुलर लोगो का एक्जाम्पल देकर यूज़ करते है. लास्ट कुछ एक्ज़म्प्ल्स में हमने देखा कि कैसे अनबेलेन्स्ड एक्सपेक्टेशन और स्टैंडर्ड्स स्कसेस का कोई भी चांस बर्बाद कर सकते है. अब हम इसे एक और पोपुलर पर्सन के एक्जाम्पल से देखने की कोशिश करते है- मैकोले कुल्किन. हम सब उनकी स्टोरी जानते है –एक अमीर और यंग आदमी जो ड्रग्स के चंगुल में फंस जाता है. हालाँकि हम एक दूसरा पर्सपेक्टिव ले सकते है. तो क्या हम ये कह सकते है कि कई सारे ब्लोक बस्टर्स, खासतौर पर होम अलोन सीरीज़ के बाद वो इस सबसे एकदम बोर हो गए और अपना स्टैण्डर्ड घटा दिया? सिम्पली बोले तो वो 13 साल की एज से ही सक्सेस की सीढियां चढने लगे थे. और सक्सेस की तरफ लगातार बढ़ने की इस आदत का चार्म अब ओवर होता जा रहा था उनके लिए. जैसे जैसे फ़िल्मिंग रूटीन का बर्डन उन पर बढ़ता गया, उनका एक्क्टिंग स्टैण्डर्ड घटता गया- और अल्टीमेटली वो एक वेस्टेड टैलेंट बनके रह गए.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

हाई सेट स्टैण्डर्ड रखना भी कोई ज्यादा हेल्पफुल नहीं होता है. ये भी उतना ही हार्मफुल है जितना कि लो सेट स्टैण्डर्ड. ये चीज़ आप परफेक्शनिस्ट लोगो में देख सकते है. वो अपने लिए इतने अनरियेलिस्टिक स्टैण्डर्ड सेट कर लेते है कि जोकि कभी पोसिबल ही नहीं होते. जैसे एक्जाम्पल लेते है, एक आर्टिस्ट है जो परफेक्शनिस्ट है. तो अब ये आर्टिस्ट कभी भी अपने काम से सेटिसफाई नहीं होगा. क्योंकि उसे कुछ ना कुछ कमी लगती रहेगी और वो उसे ठीक करता रहेगा. उसके लिए कोई भी चीज़ कम्प्लीट नहीं हो पाती इस वजह से फाइनल एक्सपोजीशन हमेशा पोस्टपोन होता रहेगा. और लास्ट में होगा ये कि वो परफेक्शनिस्ट आर्टिस्ट तंग आकर अपना काम ही छोड़ देगा.

लियोनार्डो डा विन्ची को शायद परफेक्शनिस्ट बोला जा सकता है क्योंकि अक्सर उन्हें छोटी सी पेंटिंगफिनिश करने में ही सालो लग जाते थे, जैसे कि मोनालिजा जिसे बनाने में उन्होंने 4 साल लगा दिए थे. अपनी इस आदत की वजह से लियोनार्डो उतने प्रोडक्टिव और फर्टाइल नहीं बन सके जो वो बन सकते थे. जो लोग हाई स्टैण्डर्ड सेट करते है, अक्सर ऐसे लोग खुद की इररेशनल डिमांड्स पूरी करने के चक्कर में बार-बार फेल होते रहते है और फिर उन्हें बड़ी डिसअपोइन्टमेंट होती है. यहाँ हम यूसेन बोल्ट की स्टोरी बताना चाहेंगे. जैसा सब जानते है उसेन बोल्ट हिस्ट्री में सबसे फ़ास्ट रनर है. छोटी सी एज से ही वो अपने साथ के बच्चो से कहीं ज्यादा तेज़ दौड़ते थे.

और जब उसेन बोल्ट बड़े हुए और एक प्रोफेशनल एथलीट बने, उन्होंने लोगो से रेस करना छोड़ दिया क्योंकि अब वो टाइम से रेस लगाते थे. और ये रेस कोई जीत नहीं सकता. यहाँ तक कि जब उन्होंने अपना पहला वर्ल्ड रिकॉर्ड सेट किया, उनके लिए इससे भी बैटर करने को था –दुसरे वर्ड्स में बोले तो उनकी परफोर्मेंस इम्प्रूव हो सकती थी, वो और तेज़ दौड़ सकते थे. इसलिए कुछ टाइम बाद ही उन्होंने खुद से ही एक्सट्रीमली हाई एक्सपेक्टेशन रख ली या कहे कि लोगो ने उनसे रख ली थी.

फिर जब भी वो कोई रेस में दौड़ते हर कोई उनसे अपना ही सेट किया हुआ करंट वर्ल्ड रिकोर्ड तोड़ने की उम्मीद करता. लेकिन ये भी गौर करने लायक है कि किसी भी ह्यूमन के लिए ये पोसिबल नहीं है कि वो बगैर किसी सेट बैक के एक के बाद एक बैटर रिजल्ट दे. इसलिए अल्टीमेटली जब उसेंन बोल्ट खुद से ही डिसअपोइन्टमेंट होने लगे- बेड रेसेस, जो उन्हें अपने बारे में एक्स्ट्रीमली बेड फील कराती थी, तो उन्हें लगा कि वो अपने मोस्ट इम्पोर्टेन्ट गोल में बुरी तरह फेल हो गए है. सिंपली कहे तो उन्होंने इन मामूली फेलर्स को इतना बड़ा-चढ़ा दिया कि इसे वो अपनी लाइफ की सबसे बड़ी डीफीट समझने लगे.

द इम्पोर्टेंस ऑफ़ डिसीज़न
डिसीज़न की इम्पोरटेंस

ऐसा लगता है कि एंथोनी रॉबिन्स लाइफ में डिसीजंस की इम्पोर्टेन्ट को ज्यादा बड़ी नहीं समझते कि हर रोज़ हम जो डिसीज़न लेते है वो हमारी लाइफ और फेट को इन्फ्लुयेंश करते है. आपके लिए इसे ईजी बनाते हुए ताकि आप अपने डिसीजन्स को कण्ट्रोल कर सके, एंथोनी रॉबिन्स ने इन्हें 3 सेपरेट ग्रुप्स में डिवाइड किया है:
1. किस चीज़ पर फोकस करे, इस बारे में डिसीज़न
2. मीनिंग ऑफ़ इवेंट्स और उनके इंटरप्रेशन के बारे में डिसीजन
3. जो हमें लेने है उन एक्शन के बारे में डिसिजन
चलो इन तीनो ग्रुप्स को ब्रीफ एक्जाम्प्ल्स के थ्रू समझते है क्योंकि इन्हें समझना एक्स्ट्रीमली इम्पोर्टेन्ट है तभी हम इस टेक्स्ट का पर्पज समझ पायेंगे.

किस चीज़ पर फोकस करे, इस बारे में डिसीज़न हम सब निकोलस टेस्ला के बारे में जानते है, एक यूरोपियन, एक शानदार पर्सनेलिटी का मालिक जिसने हमारे आज के इस मॉडर्न टाइम को काफी कुछ दिया है. ये अपने टाइम के हिसाब से काफी फ्यूचरिस्टिक, काफी आगे थे (सिर्फ साइंटिफिक सेन्स में ही नहीं ). उनकी लाइफ स्टाइल, उनकी यूज्वल लाइफ हर चीज़ में वो अपने टाइम से कहीं ज्यादा आगे चलते थे. लेकिन अभी जल्दी क्या है इस स्टोरी में आगे बढ़ने की. पहले जान लेते है कि निकोलस टेस्ला का चाइल्डहुड कैसा था. निकोलस टेस्ला आस्ट्रो-हंगेरियन एम्पायर(मॉडर्न डे क्रोटिया) के स्माल विलेज में पैदा हुए थे. उनके पिता ओर्थोडॉक्स प्रीस्ट थे. टेस्ला को बेस्ट एजुकेशन दी गयी थी.

बचपन से ही वो हर चीज़ में बड़ा फोकस करते थे और अपनी पूरी कोंसंट्रेशन दिखाते थे. सिंपली बोले तो वे बाकी बच्चो से काफी डिफरेंट थे. जैसे कि वो अपने हाथो से वाटरमिल जैसी चीज़े बनाया करते. और जब वो बड़े हुए ये क्लियर होता गया कि वो एक ट्रू जीनियस है. फिर वो आस्ट्रिया चले गए यूनिवेर्सिटी में पढने के लिए. और वहां उनकी लाइफ स्टाइल बाकी यंग लोगो की तरह ही थी. वो स्मोक करते थे, ड्रिंक करते थे और कार्ड्स भी खेलते थे. ज़रा इमेजिन करो कि एक जीनियस इन्वेंटर गेम्ब्लिंग में अपना पैसा हार रहा है! लेकिन अपने फ्रेंड्स से एकदम अलग उन्हें जैसे एक झटके में इन सब चीजों की लत लगी, उसी तरह एक झटके में ही छूट भी गयी.

उनकी ऑटोबायोग्राफी “ माई इन्वेंशंस” जोकि ओरिजनली इंग्लिश में लिखी गयी है, उसमे टेस्ला के कॉलेज लाइफ की ये सब बाते बड़े अच्छे से डिसक्राइब की गयी है. तो अगर हम कहे कि जीनियस होने के अलावा निकोलस टेस्ला के बारे में क्या चीज़ श्योर है तो हम सकते सकते है कि उनकी “पॉवर ऑफ़ विल”. चलो अब आगे उनकी एक चीज़ पर कम्प्लीट फोकस करने की एबिलिटी चेक करते है. वो एक तरह से अपनी लेबोरेट्री में ही रहते थे. जब वो एक चीज़ पे फोकस करते तो बाकी सारी चीजों को नेगलेक्ट कर देते थे. ये उनकी खूबी थी. सुबह उठते ही वो काम पे चल पड़ते थे. वो कम से कम 16 घंटे तो ज़रूर काम करते थे. ओल्डर होने के साथ ही उनकी अमाउंट ऑफ़ स्लीप भी डिक्रीज़ होने लगी थी क्योंकि वो सोते कम थे.

वो अपने काम में इतना डूब जाते थे कि नींद की भी परवाह नहीं करते थे. हम बोल सकते है कि शायद उनका अपनी बॉडी पर एक तरह का कण्ट्रोल था कि वो अपनी नींद तक भगा सकते थे. लेकिन अभी और सुनिए. टेस्ला औरतो के मामले में नोटोंरियस थे. वो औरतो से दूर भागते थे. अपने फ्रेंड्स और कलीग्स से एकदम उलट वो सेक्स से दूर भागते थे. उनकी प्राइवेट लाइफ एकदम कोल्ड और इमोशनलेस थी. ऐसा भी नहीं था कि वो पूरे असेक्सुअल थे या उन्हें कोई प्रॉब्लम थी लेकिन पता नहीं क्यों मगर उन्हें लगता थे कि प्यार, रोमांस जैसी चीज़ उनके काम में इंटरफेयर करेगी और अपने साइंटिफिक एक्सपेरीमेंट्स में वो किसी तरह की डिस्टर्बेंस नहीं चाहते थे. क्योंकि वो अच्छे से जानते थे कि दो नावो की सवारी एक साथ पोसिबल नहीं है

इसलिए उन्होंने प्यार मोहब्बत के बदले साइंस को चूज़ किया टेस्ला श्योर थे कि उन्हें क्या चाहिए और उसकी क्या प्राइस उन्हें देनी होगी उन्होंने क्लियर डिसीजन लिया था कि वो किस चीज़ पर फोकस करेंगे ना तो हम उनकी इस लाइफ स्टाइल को डिजायरेबल या अच्छी बोल रहे कि आप भी ऐसा ही करो और ना ही हम यहाँ टेस्ला की लाइफ का मजाक उड़ा रहे है, या इसे बेड बोल रहे है. हो भी सकता है कि कुछ लोगो को ये लाइफ स्टाइल एकदम कोल्ड और अलूफ लगे वही बाकि कुछ लोगो को उनकी ये स्टोरी इंस्पायरिंग लगे.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

SHARE
Subscribe
Notify of
Or
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments