(hindi) A Whole New Mind: Moving from the Information Age to the Conceptual Age
इंट्रोडक्शन
क्या आपने यह गौर किया कि आज हम जिस दुनिया में रहते हैं उसमें बहुत सारी क्रिएटिविटी की जरूरत है? क्या आपने नए ग्रेजुएट्स को बेरोज़गारी और काम में खराब परफॉरमेंस के कारण स्ट्रगल करते हुए देखा है? और क्या आप किसी ऐसे इंसान को जानते हैं जिसने स्कूल बीच में ही छोड़ दिया था लेकिन आगे चलकर बहुत सक्सेसफुल इंसान बन गया? ऐसा क्यों है?
हमारे अभी के समय में, राईट ब्रेन बढ़ रहा है और इसके साथ R-डायरेक्टेड थिंकर हैं। दूसरी ओर L-डायरेक्टेड थिंकर कम हो रहे हैं। इस बुक में, आप R-डायरेक्टेड और L-डायरेक्टेड थिंकर्स के बीच फ़र्क को और यह अभी समाज को कैसे अफेक्ट कर रहा है, यह जानेंगे।
L-डायरेक्टेड थिंकर लेफ्ट ब्रेन को यूज़ करते हैं, जो लॉजिकल और ऐनलिटिकल है। दूसरी ओर, R-डायरेक्टेड थिंकर्स के पास एक एक्टिव राईट ब्रेन है जो क्रिएटिव, imaginative और लॉन्ग टर्म की चीज़ों को देखना ज़्यादा पसंद करता है।
यहाँ, आप सीखेंगे कि L-डायरेक्टेड थिंकर्स पीछे रह गए हैं क्योंकि उनकी जगह अब पावरफुल सॉफ्टवेयर से काम लिया जा रहा है जो सोचने में तेज़ और ज़्यादा सटीक हैं।
इस बुक में, आप यह भी जानेंगे कि R-डायरेक्टेड थिंकर बढ़ रहे हैं क्योंकि उनमें क्रिएटिव सेंसेस हैं जो कंप्यूटर मे नहीं हैं। ये उन्हें वैल्यूबल बनाता है और उनकी मांग बढ़ाता है। सक्सेसफुल कंपनीज़ भी R-डायरेक्टेड थिंकर्स को हायर करना चाहती हैं।
आप होल न्यू माइंड के सेंसेस को जानेंगे, जो कि सिम्फनी यानी एक सामान होना या एकता, दया, कहानियाँ और मतलब हैं। ये फैक्टर्स एक साथ इंडिकेट करते हैं कि फ्यूचर राईट ब्रेन वालों का है।
सौभाग्य से, कोई भी R-डायरेक्टेड थिंकर बन सकता है। ये आसान नहीं है, लेकिन यह बुक आपको उन क्वालिटीज़ की ओर गाइड करेगी, जिन्हें, आपको राईट ब्रेन वाला बनने के लिए, अपने अंदर लाना होगा। क्या आप इस डिजिटल युग में कामयाब होना चाहते हैं? यह बुक आपको बताएगी कि कैसे जहाँ दूसरे फेल हो रहे हैं, वहाँ सक्सेसफुल होना है और आप आख़िरकार इस मॉडर्न वर्ल्ड में कैसे फिट हो सकते हैं।
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राइट ब्रेन राइज़िंग(RIGHT BRAIN RISING)
पिछले दशकों में, L-डायरेक्टेड थिंकर समाज में सबसे बेस्ट रहे हैं। ये वो शानदार दिमाग हैं जो मौजूद जानकारी को गहराई और एक्सपर्ट तरीके से इस्तेमाल करते हैं। लेकिन फ्यूचर बदल रहा है और कुछ खास तरह के लोगों के लिए जगह बना रहा है, जो हैं R-डायरेक्टेड थिंकर। ये क्रिएटिव लोग हैं, इंवेंटर्स, डिजाइनर, स्टोरी कहने वाले, आर्टिस्ट, वो लोग जो छोटी छोटी बातों को देखने के बजाय लॉन्ग टर्म के बारे में सोचते हैं।
हमारा ब्रेन जटिल है। हम ये बहुत पहले से जानते हैं कि ब्रेन दो हिस्सों में बँटा हुआ है। कुछ समय पहले तक, सभी साइंटिस्ट सहमत थे कि ब्रेन का लेफ्ट हिस्सा सबसे इंपॉर्टेंट है, और यह हमें इंसान बनाता है। वहीँ दूसरी ओर, राईट हिस्सा शुरूआती ब्रेन डेवलपमेंट स्टेज के बाद बचा हुआ हिस्सा है। लेफ्ट साइड को ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट माना गया है क्योंकि यह रैशनल, लॉजिकल और ऐनलिटिकल है।
लेकिन 1950 में ब्रेन को लेकर हमारी समझ गलत साबित हुई। एक्सपर्ट न्यूरोलॉजिस्ट रोजर डब्ल्यू स्पेरी (Roger W. Sperry) ने मिर्गी के मरीजों पर स्टडी किया। इन पेशेंट्स में ब्रेन के दो हिस्सों को जोड़ने वाली नसें, कॉर्पस कॉलोसम (corpus callosum) नहीं थी। यह सोचा गया कि इन पेशेंट्स की कॉर्पस कॉलोसम को हटाने से उनके मिरगी के दौरे ठीक हो जाएंगे। इसलिए, उन्हें बँटा हुआ दिमाग यानी स्प्लिट ब्रेन कहा जाता था।
स्पेरी ने इन लोगों को देखा, और उन्होंने उनके व्यवहार में एक बड़ा बदलाव देखा। इससे उन्होंने नतीजा निकाला कि ब्रेन का राईट हिस्सा, जिसे मूर्ख और मानसिक रूप से सुस्त माना जाता था, वह कुछ खास काम को ज़्यादा अच्छे से कर सकता है। स्पेरी ने कहा कि राईट ब्रेन लेफ्ट ब्रेन के मुकाबले कमजोर नहीं बल्कि वह अलग तरह से सोचता है। तो, यह दो ब्रेन और सोचने के दो तरीके होने जैसा था।
लेफ्ट हिस्सा रीज़निंग समझता है, लेकिन राईट हिस्सा पैटर्न को पहचानता है, भावनाओं और अनकहे संकेतों की समझता है। स्पेरी ने इस खोज के लिए नोबेल पीस प्राइज भी जीता।
1979 में, एक आर्ट इंस्ट्रक्टर, बैटी एडवर्ड्स (Betty Edwards ) ने एक बुक लिखी जिसका नाम था “Drawing the Right Side of the Brain”। उसने रोजर स्पेरी की खोज को स्टडी किया और आम लोगों के लिए इसे समझना आसान बना दिया। बैटी ने ब्रेन के राईट हिस्से से सोचने के कॉंसेप्ट को ज्यादा पॉप्युलर बना दिया।
वो इस बात से सहमत नहीं थी कि कुछ लोगों में आर्टिस्टिक काबिलियत नहीं हो सकती। बैटी ने कहा कि drawing करना मुश्किल नहीं है। हमें सिर्फ अपने लेफ्ट ब्रेन की सोच को शांत कर, राईट ब्रेन को अपना काम करने देना है। इस तरह, हम आर्ट को देखकर उसकी तारीफ़ कर सकते हैं।
लेफ्ट हिस्सा लॉजिकल सोच को हैंडल करता है जबकि राईट हिस्सा बड़ी दुनिया के बारे में सब कुछ जानता है। जब दोनों हिस्सों को एक साथ पूरी तरह से काम मे लाया जाता है, तो रिज़ल्ट्स बहुत अच्छे होते हैं। लेकिन जब कोई इंसान सिर्फ़ एक से काम करता है और दूसरे को अलग रख देता है, तो उसके परफॉर्मेंस में कमी होती हैं।
जो लोग लॉजिकली और step by step सोचते हैं वे इंजीनियर और लॉयर बनते हैं, जबकि जो लोग पूरे चीज़ को देखकर और नेचुरल रूप से सोचते हैं वे इंवेंटर, एंटरटेनर और काउंसलर बन जाते हैं। पहली तरह की सोच को L-डायरेक्टेड थिंकिंग कहा जाता है, और दूसरा R-डायरेक्टेड थिंकिंग है। L, लेफ्ट ब्रेन को दिखाता है, जबकि R राईट ब्रेन को।
पिछले दशकों में, L-डायरेक्टेड थिंकर अपने एक्स्ट्राऑर्डिनरी काम के लिए अवार्ड जीत रहे थे, और वे अक्सर सोचते थे कि राईट हिस्सा लेफ्ट हिस्से को पूरा करता है। लेकिन डिजिटल युग में, चीजें बदल रही हैं। R-डायरेक्टिंग सोच तय कर रही है कि हम फ्यूचर में कहाँ जा रहे हैं और हम वहाँ कैसे पहुंचेंगे।
आज, कई इंडस्ट्रीज़, जैसे बिज़नेस, मेडिसिन और लॉ, R-डायरेक्टेड सोच को यूज़ कर रहे हैं। लेफ्ट ब्रेन लॉजिक और एनालिसिस अब काफी नहीं हैं। अब लोग, राईट ब्रेन की काबिलियत जैसे तालमेल,दया, मीनिंग और स्टोरीटेलिंग, की मांग कर रहे हैं। इसके कारण, R-डायरेक्टेड सोच रखने वाले लोग फ्यूचर मे कामयाब होंगे।
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होल न्यू माइंड के सेंसेस: (THE SENSES OF THE WHOLE NEW MIND:)
सिम्फनी(SYMPHONY)
आगे आने वाले चैप्टर में, हम राईट ब्रेन के क्रिएटिव सेंसेस को डिस्कस करेंगे। वे हैं सिम्फनी,एम्पथी, मीनिंग और स्टोरी। साथ में, ये अपने साथ एक पूरा नया ब्रेन यानी होल न्यू माइंड लेकत आते हैं जिसकी हमें इस डिजिटल युग में आगे बढ़ने के लिए ज़रूरत है। आइए एक-एक करके इन कमाल के सेंसेस को डिस्कस करें।
क्या आपने कभी orchestra परफॉर्मेंस देखा है? क्या आपने देखा है कि किस तरह अलग अलग ग्रुप, अलग अलग नोट्स और म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट, को एक साथ मिला कर एक बहुत अच्छी धुन बनाते हैं? इसे हम सिम्फनी कहते हैं।
सिम्फनी का मतलब अलग-अलग हिस्सों को मिलाना और उन्हें एक साथ काम करवाना है, ना कि उन्हें अलग अलग करके ऐनलाइज़ करना। जब आप एक जवाब ढूँढने के बजाय दो बिलकुल अलग-अलग चीजों को आपस मे जोड़ते हैं और उनके कॉमन पैटर्न को देखते हैं, तो इसे सिम्फनी कहा जाता है। जब आप कुछ नया इंवेंट करने के लिए दो अलग-अलग एलिमेंट्स को मिलाते हैं, तो यह भी सिम्फनी है।
जो लोग इस डिजिटल युग में सफल होना चाहते हैं उन्हें सिम्फनी की ज़रूरत है। उन्हें अलग अलग कॉन्सेप्ट में समानता खोजना सीखना चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि कुछ नया बनाने के लिए अलग अलग आइडियाज़ को कैसे जोड़ा जाए।
1970 में, हर्शी फूड कॉर्प (Hershey Food Corp) TV पर एक ऐड के साथ आए, जिसमें उन्होंने R-डायरेक्टेड सोच और सिम्फनी को यूज़ किया था। ad में, एक आदमी चॉकलेट खाते हुए रास्ते के किनारे सपने देखता हुआ चल रहा था। दूसरी ओर से एक और आदमी पीनट बटर खाते हुए आ रहा था।
ये दोनों आदमी एक दूसरे से टकराते हैं। पहला आदमी शिकायत करता है, “अरे, तुमने मेरी चॉकलेट पर पीनट बटर मिला दिया।” फिर दूसरा आदमी बोलता है, “तुमने भी मेरे पीनट बटर में चॉकलेट मिला दिया।” दोनों आदमी पीनट बटर मिला हुआ चॉकलेट खाते हैं, और वे चकित हो जाते हैं कि उसका टेस्ट कितना अच्छा हो गया है। आदमियों को एहसास होता है कि कुछ एक्स्ट्राऑर्डिनरी बन गया है।
R-डायरेक्टेड थिंकर ऐसे सिंपल कॉम्बिनेशन के पीछे के साइंस को समझते हैं। कई मामलों में, सबसे कमाल का आइडिया दो मौजूदा आइडिया को मिलाकर बनता हैं, जो पहले किसी ने नहीं सोचा था। और यह एक ऐसी खूबी है जो सिर्फ दिमाग का राईट हिस्सा ही कर सकता है। डिजिटल युग एक इंसान को आगे बढ़ने के लिए, इस तरह की काबिलियत की मांग करता है।
कंप्यूटर और इंटरनेट से पहले, बारीकी से जांच करने की काबलियत के कारण जानकार लोग ज़रूरी थे। इस डिजिटल युग में, मशीनों ने इनमें से कई लोगों की जॉब ले ली हैं। उनका काम अब पावरफुल सोफ्टवेयर की मदद से मिनटों मे हो जाता है। इसलिए अब जो कंप्यूटर नहीं कर सकता जो वेल्यूबल हो गया है। सिम्फनी उनमें से एक है।
ज्यादातर एम्प्लॉयर्स ऐसे लोगों की खोज में रहते हैं जिनमे सिम्फनी है। stereo के पार्ट बनाने वाली कंपनी के सीईओ सिडनी हरमन, एमबीए की डिग्री वाले लोगों को नौकरी पर नहीं रखना चाहते। इसके बजाय, वो कहते हैं, “मैं चाहता हूं कि कुछ poet यानी कवी मैनेजर बनें” क्योंकि पोएट मे सिम्फनी होती है, वे डिजिटल थिंकर हैं। वे नए आइडिया के लिए लॉजिक पर नहीं बल्कि इमैजिनेशन और क्रिएटिविटी पर भरोसा करते हैं।
डिस्लेक्सिया एक ऐसी कंडीशन है जिसमें इंसान पढ़ने की कोशिश करता है लेकिन सारे alphabet एक दूसरे से मिक्स हुए नज़र आते हैं और शब्दों को प्रोसेस करना मुश्किल होता है। यह लिनीअर सिक्वेन्शल लेफ्ट ब्रेन की थिंकिंग में किसी दिक्कत के कारण होता है। हालांकि, न्यूरोलॉजिस्ट ने पता लगाया कि डिस्लेक्सिक लोगों में बहुत अच्छी प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल होती है। यह इसलिए है क्योंकि उनका राईट ब्रेन ज्यादा अच्छे से काम करता है। यही कारण है कि डिस्लेक्सिक लोगों में अभी भी लीडर और मैनेजर बनने की बड़ी पोटेंशियल है।