(hindi) A New Earth

(hindi) A New Earth

इंट्रोडक्शन (Introduction)

क्या कभी आपने शीशे के सामने खड़े होकर खुद से ही पुछा है कि मै कौन हूँ? सुनने में थोड़ा अजीब सा लगता है ना? लेकिन बात सोचने की है कि आखिर हम है कौन. दुसरे लोग जब आपका नाम सुनते है तो उन्हें क्या लगता होगा? वो आपके बारे में क्या सोचते है?

इंसान क्या है, इस बात को डिसक्राइब करना मुश्किल है, क्योंकि ह्यूमन नैचर एक कॉम्प्लेक्स सब्जेक्ट है. इसके कई डीप लेयर्स है. आज के टाइम में तो ये और भी चेलेंजिंग हो गया है जहाँ इंसान को उसकी अचीवमेंट्स से जाना जाता है. हम लोग इतने मैटरियलस्टिक हो गए है कि इन चीजों से खुद को अलग करना हमे आलमोस्ट इम्पॉसिबल लगता है.

कुछ ऐसे भी केसेस है जहाँ पर लोग मैटीरियल चीजों के गुलाम बन गए है. इस तरह की थिंकिंग काफी डेंजरस होती है और इससे छुटकारा पाने का सोल्यूशन है ट्रांसफोरमेशन. जब आप अपने अंदर के कांशसनेस को जगाते हो तब आपको अपना ट्रू सेल्फ नजर आता है यानी रुपए-पैसे के बिना भी आपकी एक पहचान है.

इस बुक से आप सीखेंगे कि अपने अंदर के कांशसनेस को कैसे जगाया जाए. ये बुक आपको सिखाती है कि हमारे अंदर एक ईगो है और हमे उस ईगो को कण्ट्रोल करना है. और लास्ट में, इस बुक को पढने के बाद लाइफ को लेकर आपकी अप्रोच एकदम चेंज हो जायेगी. आप चीजों को एक न्यू और फ्रेश पर्सपेक्टिव से देखोगे. जब आप आपने को ट्रांसफॉर्म करोगे तो आपके जीने का तरीका भी ट्रांसफ्रॉम हो जाएगा.

द फ्लावरिंग ऑफ़ ह्यूमन कांशसनेस (The Flowering of Human Consciousness)

इस दुनिया में हर चीज़ का एक पर्पज है. बेशक हमे कोई चीज़ कितनी भी यूजलेस लगे पर हर चीज़ का एक मतलब है, एक जरूरत है. बस हमरा देखने का तरीका बड़ा होना चाहिए. इतना समझ लो कि आप जरूरी समझो ना समझो पर कोई भी चीज़ आपकी लाइफ में बेवजह नही होती है. हो सकता है कि इससे आपको अपने ह्यूमन कांशसनेस से जुड़ने का मौका मिले. इसका मतलब है कि फालतू लगने वाली चीज़े भी कई बार हमे “एनलाईटमेंट” अचीव करने में हेल्प कर सकती है. “एनलाईटमेंट” की बात करे तो ये एक ऐसा फेस है, एक स्टेट ऑफ़ माइंड जहाँ हम किसी चीज़ को उसके फिजिकल फॉर्म से अलग देखने लगते है. यानी एक स्पिरिट फॉर्म में देखना जहाँ हम उन चीजों की तरह खींचे चले जाते है.

कुछ चीज़े अपने फिजिकल फॉर्म से बंधी नही रहती. फिजिकल फॉर्म खत्म होने के बाद भी इनकी स्पिरिट हमेशा-हमेशा के लिए मौजूद रहती है. इसे हम एक आईडिया के तौर पर देख सकते है. एक आईडिया इंसानों का आपस में इंटरएक्शन और अपने काम को लेकर उनका नजरिया चेंज कर सकता है. जब आप एन्लाईटेड होते हो तो फिजिकल चीजों से हटकर देखते हो यानी ट्रांसफ्रॉम की स्टेट में पहुँच जाते हो. ये ट्रांसफोरमेशन बुद्धा को भी मिली थी और जीसस क्राइस्ट को भी और आप भी ये ट्रांसफोरमेशन अचीव कर सकते हो. लेकिन उससे पहले आपको उन चीजों से पीछा छुड़ाना है जो आपके रास्ते की रूकावट बन सकती है.

सबसे पहले तो आपको समझना है कि आप शुरुवात से ही डाईफंक्शनल है. कुछ ऐसी चीज़े आपकी लाइफ में है जो आपको नेगेटिव बनाती है. आप इससे बचने के लिए अच्छा बनने की कोशिश करते हो लेकिन बन नहीं पाते. आप तभी अच्छे बन सकते हो जब अच्छाई आपके अंदर से निकलेगी. अगर आपको लगे कि आपके अंदर एक पागलपन है, तो ये एक अच्छी खबर है. क्योंकि एनलाईटमेंट अचीव करने के लिए आपके अंदर यही पैशन और मेडनेस चाहिए.

इसे एक्सप्लेन करने के लिए हम फूलो का एक्जाम्पल लेंगे. फूल हमारे चारों तरफ होते है मगर हमे उनके होने का पर्पज समझ नहीं आता. फूल खूबसूरत लगते लेकिन उन्हें होने ना होने से हमे क्या फर्क पड़ेगा. लेकिन असल में ऐसा नही है. असल में फूल का असली पर्पज इसकी खूबसूरती में छुपा है. कितने ही पेंटर्स फूलों की खूबसूरती से इंस्पायर होकर खूबसूरत पेंटिंग बनाते है या कवि इन्हें देखकर खूबसूरत कविता लिखते है.

कई बार बेकार पड़ी चीज़े भी इंसान के क्रिएटिव साइड को टच कर देती है. आप छोटी से छोटी चीज़ को भी एप्रिशिएट करने लगते है. फूलों को ध्यान से देखो तो उन्हें फिजिकल फॉर्म से अलग देख पाओगे, उन्हें भी एक रूह है. यहाँ हम फूलों की रूह उनकी खुशबू को मान सकते है.

मगर हमारी आँखों पर पड़े पर्दे हमे चीजों की स्पिरिट या रूह तक पहुँचने नहीं देते. यानी हमे चीजों को सिर्फ फिजिकल फॉर्म में देख पाते है. मगर ऐसा क्यों? एक्हार्ट टोल कहते है” जिसे हम “नॉर्मल” स्टेट मानते है वही गलत है. हमे शुरू से ही सबकुछ गलत बताया गया है. हिन्दूइज्म में इसे”माया” कहते है यानी हमारी आँखों पर पड़ा वहम का पर्दा. क्रिश्चीनिटी में (In Christianity,) इसे ही “ओरिजिनल सिन” यानी पाप माना गया है. नॉर्मल स्टेट का मतलब है कि हमारी तकलीफों का कोई अंत नहीं है और इंसान की जिंदगी असल में सिर्फ एक दुखो का किस्सा है और कुछ नहीं.

आज साइंस और टेक्नोलोजी काफी एडवांस हो गयी है. कई सारी ग्रेट डिसकवरीज की गयी है. पर इसका फायदा कम और नुकसान ही ज्यादा हुआ है. वॉर, गुलामी, टॉर्चर, वायोलेंस जैसे क्राइम ह्यूमन हिस्ट्री का एक पार्ट रहा है. और ये हमारे लिए बड़े दुःख की बात है कि इंसान ने टेक्नोलोजी से फायदा कम नुकसान ज्यादा उठाया है. जितने भी क्राइम हुए है उनके पीछे इंसान का लालच और सेल्फिशनेस ही है. रोज़ ही हमे न्यूज़ में कोई ना कोई मर्डर, किडनैपिंग, रॉबरी या ऐसी ही कोई क्राइम स्टोरी सुनने को मिलती है..

लेकिन इस पागलपन का ईलाज भी हमारे ही पास है. अगर हम कोशिश करे तो हमारा ये पागलपन सेनिटी और हीलिंग में बदल सकता है. जिन्होंने अपने अनकांशस माइंड को जगाया है वो एनलाईटमेंट की हाएस्ट स्टेज तक पहुंच पाए है और इसका एक्जाम्पल है बुद्धा और लाओ श्तु(Buddha and Lao Tzu.) इन महान लोगो ने हमे सिखाया है कि जिसे हम नॉर्मल समझते है दरअसल वही गलत है और हमे इस बारे में सोचने की जरूरत है.

लेकिन दुःख की बात है कि बुद्धा और लाओ श्जू (Buddha and Lao Tzu) को हम समझ नहीं पाए. उनका मजाक उड़ाया गया. जिसने भी उनकी टीचिंग को आम पब्लिक तक पहुँचाने की कोशिश की उन्हें मार दिया गया. जिसने भी हमारे पागलपन से हमे बचाने की कोशिश की उसकी जान ले ली गयी है क्योंकि ये दुनिया ये मानने को तैयार नहीं होती कि वो गलत है.

ईगो: द करंट स्टेट ऑफ़ ह्यूमेनिटी Ego: The Current State of Humanity

हमारे अंदर के पागलपन और एन्लाईटमेंट के बीच में जो कांशसनेस है उसका एक पार्ट है रिलिजन या स्प्रिचुएलिटी. का हिस्सा है. हालंकि ये दो चीज़े एक दुसरे से काफी डिफरेंट है. रिलिजन में हमे किसी सच के बारे में बताता है, जबकि स्प्रिचुएलिटी हम अपने अंदर खुद से फील कर सकते है. इसके लिए हमे किसी स्पेशल रिलिजन से जुड़ने की जरूरत नहीं है.

रिलीजियस लोग अपने इकलौते सच को ही जानते है जो उन्हें धर्म ने सिखाया है. वो खुद कुछ डिस्कवर नहीं करते बल्कि अपने धर्म के सिखाये रास्ते पर चलते है. पर स्पिरिचुअल लोग किसी रूल्स या किसी के सिखाये रास्ते पर नहीं चलते, ये अपना रास्ता खुद चूज़ करते है. स्पिरिचुएलिटी आपके बिलिफ्स पर नहीं बल्कि आपके कांशसनेस पर डिपेंड होती है. यही कांशसनेस डिसाइड करता है कि आप इस दुनिया में कैसे जीते हो.

पुराने टाइम में ट्रांसफोरमेशन और एन्लाईटमेंट सिर्फ एक पोसिबिलिटी थी लेकिन आज के टाइम में ये हमारे लिए बेहद जरूरी है कि हम अपने अंदर ट्रांसफॉर्मेशन लाये. क्योंकि आज के इंसान को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है. आज का इंसान अपने पागलपन से बर्बादी की कगार पर है. आज के टाइम में जरूरत है कि हम अपनी सोच में गहराई लाये. चीजों को उन्हें फिजिकल फॉर्म से अलग करके देखे, अपनी आत्मा के अंदर नही देखेंगे तो जो शैतान हमारे अंदर बैठा है और जो चारो तरफ है, वो हम पर हावी हो जायेगा.

याद रखो कि शैतान ही हमे बहकाता है. इसलिए अपने अंदर की अच्छाई को जगाना और अपने आप से कनेक्ट होना बेहद जरूरी है.

हम इस ट्रांसफोरमेशन या अवेकनिंग को न्यू हेवन नाम देंगे. हेवन यानी स्वर्ग असल में कोई जगह नही है बल्कि ह्यूमन कांशसनेस की एक ट्रांसफॉर्म स्टेट है. जैसा कि हमारी हैबिट है, हम चीजों को फिजिकल फॉर्म से अलग नही देख पाते पर कोशिश करो. सिर्फ ऊपरी नजर से मत देखो, उनकी गहराई में जाओ.

रिलिजन इंसान को कुछ हद तक लाइफ की जर्नी में हेल्प करता है पर ये हमे मिसगाइड भी कर सकता है. आज के टाइम में ज्यादातर लोग रिलिजन के नाम पर एक्सट्रीम बिहेव करते है. अपने रिलिजन को बेस्ट मानना, रिलिजन के नाम पर मर-मिटना, दंगे-फसाद करना, आज ये सब बहुत कॉमन सा हो गया है. लोग अपने धर्म पर प्राउड करते है और सोचते है कि उनका धर्म ज्यादा से ज्यादा फैले. पर ये गलत थौट है. जो आपको पसंद है, उसे फोलो करो पर उसे दूसरों पर थोपने की कोशिश मत करो.

लेकिन स्प्रिचुएलिटी हमे टोलरेंस सिखाती. हम अपनी लाइफ कैसे जिए, ये हमे कोई भी धर्म नही बता सकता. अच्छा होने के लिए किसी धर्म को फोलो करने की ज़रूरत नहीं है. स्प्रिचुएलिटी हमे किसी रुल में नही बांधती बल्कि हमे एक फ्रीडम देती है. यही न्यू कांशसनेस है. ये हमे किसी एक बिलिफ को मानने के लिए मजबूर नहीं करती. जो स्प्रिचुअल होगा वो हर इंसान को इक्वल ट्रीट करेगा चाहे इन्सान किसी भी धर्म या मज़हब का हो.

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