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(Hindi) Pachtawa

(Hindi) Pachtawa

“पंडित दुर्गानाथ जब  कॉलेज से निकले तो उन्हें पैसे कमाने की चिंता होने लगी। वे दयालु और धार्मिक थे। इच्छा थी कि ऐसा काम करना चाहिए जिससे अपना जीवन भी साधारणतः सुख से बीते और दूसरों के साथ भलाई और अच्छाई का भी मौका मिले। वे सोचने लगे, अगर किसी आफिस में क्लर्क बन जाऊँ तो अपना गुजारा हो सकता है लेकिन आम लोगों से कुछ भी रिश्ता न रहेगा।

वकालत में घुस जाऊँ तो दोनों बातें मुमकिन हैं लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी अपने को पवित्र रखना मुश्किल होगा। पुलिस-विभाग में गरीबों की मदद और अच्छाई के लिए बहुत-से मौके मिलते रहते हैं लेकिन एक आजाद और अच्छी सोच वाले इंसान के लिए वहाँ की हवा नुकसानदायक है। शासन-विभाग में नियम और नीतियों की भरमार रहती है।

कितना ही चाहो पर वहाँ कड़ाई और डाँट-डपट से बचे रहना नामुमकिन है। इसी तरह बहुत सोचने के बाद उन्होंने तय किया कि किसी जमींदार के यहाँ मुख्तारआम(कानूनी सलाहकार) बन जाना चाहिए। तनख्वाह तो जरूर कम मिलेगी लेकिन गरीब किसानों से रात-दिन रिश्ता रहेगा उनके साथ अच्छा करने का मौका मिलेगा। साधारण जीवन-गुजारा होगा और सोच मजबूत होगी।

कुँवर विशालसिंह जी एक अमीर जमींदार थे। पं. दुर्गानाथ ने उनके पास जा कर प्रार्थना की कि मुझे भी अपनी सेवा में रख कर एहसान कीजिए। कुँवर साहब ने इन्हें सिर से पैर तक देखा और कहा- “”पंडित जी आपको अपने यहाँ रखने में मुझे बड़ी खुशी होती, लेकिन आपके लायक मेरे यहाँ कोई जगह नहीं देख पड़ती।””

दुर्गानाथ ने कहा- “”मेरे लिए किसी खास जगह की जरूरत नहीं है। मैं हर एक काम कर सकता हूँ। वेतन आप जो कुछ खुशी से देंगे मैं ले लूँगा। मैंने तो यह कसम ली है कि सिवा किसी अमीर के और किसी की नौकरी न करूँगा। कुँवर विशालसिंह ने घमंड से कहा- “”अमीर की नौकरी नौकरी नहीं राज्य है। मैं अपने चपरासियों को दो रुपया माहवार देता हूँ और वे तंजेब के कुर्ते पहन कर निकलते हैं। उनके दरवाजों पर घोड़े बँधे हुए हैं। मेरे कर्मचारी पाँच रुपये से ज्यादा नहीं पाते लेकिन शादी वकीलों के यहाँ करते हैं।

न जाने उनकी कमाई में क्या बरकत होती है। बरसों तनख्वाह का हिसाब नहीं करते। कितने ऐसे हैं जो बिना तनख्वाह के कर्मचारी या चपरासगिरी को तैयार बैठे हैं। लेकिन अपना यह नियम नहीं। समझ लीजिए मुख्तारआम अपने इलाके में एक बड़े जमींदार से ज्यादा रोब रखता है उसका ठाट-बाट और उसकी हुकूमत छोटे-छोटे राजाओं से कम नहीं। जिसे इस नौकरी का चसका लग गया है उसके सामने तहसीलदारी झूठी है।””

पंडित दुर्गानाथ ने कुँवर साहब की बातों का समर्थन किया जैसा कि करना उनके हिसाब से सही था। वे दुनियादारी में अभी कच्चे थे बोले- “”मुझे अब तक किसी अमीर की नौकरी का चसका नहीं लगा है। मैं तो अभी  कॉलेज से निकला आता हूँ। और न मैं इन कारणों से नौकरी करना चाहता हूँ जिनका कि आपने वर्णन किया। लेकिन इतने कम वेतन में मेरा गुजारा न होगा। आपके और नौकर असामियों का गला दबाते होंगे मुझसे मरते समय तक ऐसे काम न होंगे। अगर सच्चे नौकर का सम्मान होना तय है तो मुझे यकीन है कि बहुत जल्द आप मुझसे खुश हो जायँगे।””

Puri Kahaani Sune…

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(Hindi) Rich Dad’s Success Stories

(Hindi) Rich Dad’s Success Stories

“क्या आपके पैसे बार-बार खत्म हो जाते हैं? क्या आप ये जानना चाहते हैं कि अमीर कैसे बनें? इस बुक में अलग-अलग कहानियां हैं जो ये बताती हैं कि कैसे लोगों ने  financial कामयाबी हासिल की. उन्हें बस रिच डैड की सलाह को मानना था. कई लोग गरीब से अमीर बनगए हैं. आप भी ऐसा कर सकते हैं. ये बुक आपका गाइड करेगी. इस बुक की मदद से ज़्यादा सीखिए और ज़्यादा कमाइए.

इस समरी को किसे पढ़नी चाहिए?

•    कॉलेज के स्टूडेंट्स
•    एम्पलॉईस
•    मजदूरी करने वाले
•    फैमिली के कमाने वाले मेंबर 

ऑथर के बारे में
रॉबर्ट टी. कियोसाकी बेस्टसेलिंग बुक “रिच डैड, पुअर डैड” के ऑथर हैं. रॉबर्ट रिच डैड कंपनी के फाउंडर भी हैं. इस कंपनी का लक्ष्य, बुक और वीडियो की मदद से लोगों को पर्सनल फाइनैंस के बारे में सीखाना हैं. रॉबर्ट, फीनिक्स, एरिजोना में अपनी पत्नी किम कियोसाकी के साथ रहते हैं.
 

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(Hindi) Maryada Ki Vedi

(Hindi) Maryada Ki Vedi

“यह वह समय था जब चित्तौड़ में मीठा बोलने वाली मीरा प्यार में डूबी आत्माओं कोईश्वर प्रेम के प्याले पिलाती थी। रणछोड़ जी के मंदिर में जब भक्ति में डूब कर, वह अपनी मीठी आवाज में अपने अमृत जैसे गीतों को गाती तो सुनने वाले प्यार में डूब कर पागल हो जाते। रोज यह स्वर्गीय मजा उठाने के लिए सारे चित्तौड़ के लोग ऐसे उत्सुक हो कर दौड़ते जैसे दिन भर की प्यासी गायें दूर से किसी सरोवर को देख कर उसकी ओर दौड़ती हैं। इस प्यार के अमृत से भरे सागर से सिर्फ चित्तौड़वासियों ही की संतुष्टि न होती थी बल्कि पूरे राजपूताना का रेगिस्तान डूब जाता था।

एक बार ऐसा इत्तेफाक हुआ कि झालावाड़ के रावसाहब और मंदार राज्य के कुमार दोनों ही लाव-लश्कर के साथ चित्तौड़ आये। रावसाहब के साथ राजकुमारी प्रभा भी थी जिसके रूप और गुण की दूर-दूर तक बात फैली थी। यहीं रणछोड़ जी के मंदिर में दोनों की आँखें मिलीं। प्यार ने अपना बाण चलाया।

राजकुमार सारे दिन उदास होकर  शहर की गलियों में घूमा करता। राजकुमारी जुदाई से दुखी अपने महल के खिड़कियों से झाँका करती। दोनों परेशान हो कर शाम समय मंदिर में आते और यहाँ चाँद को देख कर कमल खिल जाता।

प्यार को समझने वाली मीरा ने कई बार इन दोनों प्यार करने वालों को प्यासी आँखों से एक दूसरे को देखते हुए पा कर उनके मन के भावों को समझ लिया। एक दिन कीर्तन के बाद जब झालावाड़ के रावसाहब चलने लगे तो उसने मंदार के राजकुमार को बुला कर उनके सामने खड़ा कर दिया और कहा- “”रावसाहब मैं प्रभा के लिए पति लायी हूँ आप इसे स्वीकार कीजिए।””

प्रभा शर्म से गड़-सी गयी। राजकुमार के गुण-शील पर रावसाहब पहले ही से मोहित हो रहे थे, उन्होंने तुरंत उसे छाती से लगा लिया।

उसी मौके पर चित्तौड़ के राणा भोजराज जी मंदिर में आये। उन्होंने प्रभा का सुंदर चेहरा देखा। उनकी छाती पर साँप लोटने लगा।

झालावाड़ में बड़ी धूम थी। राजकुमारी प्रभा की आज शादी होगी। मंदार से बारात आयेगी। मेहमानों की सेवा-सम्मान की तैयारियाँ हो रही थीं।  दुकानें सजी हुई थीं।नौबतखानेहंसी मजाक से गूँजते थे। सड़कों पर सुगंधि छिड़की जाती थी। अट्टालिकाएँ(छज्जा) फूल मालाओं से सजीं थीं। पर जिसके लिए ये सब तैयारियाँ हो रही थीं वह अपनी बगीचे के एक पेड़ के नीचे उदास बैठी हुई रो रही थी।

रनिवास(महल में औरतों के रहने की जगह) मेंदासियाँ खुशी के गीत गा रही थीं। कहीं सुंदरियों के हाव-भाव थे, कहीं गहनों की चमक-दमक, कहीं हंसी मजाक की बहार। नाइन(नाई जाति की औरत) बात-बात पर तेज होती थी। मालिन(मालि का काम करने वाली औरत) गर्व से फूली न समाती थी।

धोबिन(धोबी जाति की औरत) आँखें दिखाती थी। कुम्हारिन(मिट्टी का सामान बनाने वाली जाति की औरत) मटके की तरह फूली हुई थी। मंडप के नीचे पंडित जी बात-बात पर सोने के सिक्कों के लिए ठुनकते थे। रानी सिर के बाल खोले भूखी-प्यासी चारों ओर दौड़ती थी। सबकी बौछारें सहती थी और अपने किस्मत को सराहती थी। दिल खोल कर हीरे-जवाहिर लुटा रही थी। आज प्रभा की शादी है। बड़े किस्मत से ऐसी बातें सुनने में आती हैं। सबके सब अपनी-अपनी धुन में मस्त हैं। किसी को प्रभा की फिक्र नहीं है जो पेड़ के नीचे अकेली बैठी रो रही है।

एक औरत ने आ कर नाइन से कहा- “”बहुत बढ़-बढ़ कर बातें न कर, कुछ राजकुमारी का भी ध्यान है? चल उनके बाल बना”।

नाइन ने दाँतों तले जीभ दबायी। दोनों प्रभा को ढूँढ़ती हुई बाग में पहुँचीं। प्रभा ने उन्हें देखते ही आँसू पोंछ डाले। नाइन मोतियों से माँग भरने लगी और प्रभा सिर नीचा किये आँखों से मोती बरसाने लगी।

औरत ने दुखी हो कर कहा- “”बहन दिल इतना छोटा मत करो। मुँहमाँगी मुराद पा कर इतनी उदास क्यों होती हो?””

प्रभा ने सहेली की ओर देख कर कहा- “”बहन जाने क्यों दिल बैठा जाता है।””

सहेली ने छेड़ कर कहा- “”पति से मिलने की बेचैनी है !””

प्रभा उदासीन भाव से बोली- “”कोई मेरे मन में बैठा कह रहा है कि अब उनसे मुलाकात न होगी।””

सहेली उसके बाल सँवार कर बोली- “”जैसे सुबह से पहले कुछ अँधेरा हो जाता है, उसी तरह मिलने से पहले प्यार करने वालों का मन बेचैन हो जाता है।””

प्रभा बोली- “”नहीं बहन यह बात नहीं। मुझे शकुन अच्छे नहीं दिखायी देते। आज दिन भर मेरी आँख फड़कती रही। रात को मैंने बुरे सपने देखे हैं। मुझे शक होता है कि आज जरूर कोई न कोई मुश्किल पड़नेवाला है। तुम राजा भोजराज को जानती हो न?””

Puri Kahaani Padhe..

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(Hindi) Bhagavad Gita(Chapter 5)

(Hindi) Bhagavad Gita(Chapter 5)

“अध्याय 5 – कर्म संन्यास योग
ज्ञानयोग और कर्मयोग की एकता, सांख्य का विवरण और कर्मयोग की वरीयता

श्लोक 1:
अर्जुन बोले, “हे माधव! आप कर्मों का त्याग यानी कर्म संन्यास लेने  के लिए कह रहे हैं और साथ ही निष्काम कर्म योग का गुणगान भी कर रहे हैं. मुझे निश्चित रूप से बताएँ कि दोनों में से कौन सा श्रेष्ठ  है”।
 

अर्थ: अर्जुन का ये सवाल दिखाता है कि वो अब भी दुविधा में थे और फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे कि उनके लिए युद्ध करना सही है या युद्धभूमि से पीछे हट जाना. अध्याय IV के कई श्लोकों में भगवान ने कर्मों के प्रति लगाव को छोड़ने और उन्हें भगवान् को समर्पित करने की बात कही है और श्लोक 42 में उन्होंने अर्जुन को कर्म योग में टिककर अपना कर्म करने के लिए कहा है। अब ये दो इतनी अलग-अलग बातें हैं कि कर्मों का त्याग करना और कर्म योग में टिककर कर्म करना, मनुष्य एक ही समय में दोनों कैसे कर सकता है इसलिए अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि वो कौन सा  एक रास्ता है जिस पर चलकर उनका कल्याण हो सकता है।

Puri Geeta Sune…

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(Hindi) Will It Fly?

(Hindi) Will It Fly?

“क्या आप एक  सक्सेसफुल  इंटरप्रेन्योर   बनने का सपना देखते हैं? अगर आपके पास कोई आईडिया है या नहीं, तो भी यह बुक  आपके प्रोडक्ट  के लिए एक मार्केट खोजने में आपकी मदद  करेगी। Pat flynn वेबसाइट और ऑनलाइन बिज़नेस को बनाने के लिए जाने जाते हैं। जिस किसी के पास भी कोई कमाल का आईडिया है तो उसे कैसे successfully execute करना चाहिए, इसके लिए वो पैट को एक गाइड के रूप में देखता है। इस बुक  में, वह आपको अपने ऑनलाइन बिज़नेस को  बनाने के बारे में सभी जरुरी बाते सिखाएंगे।
इस समरी से कौन सीखेगा?

●  इंटरप्रेन्योर  
● मैनेजर्स
● नया बिज़नेस शुरू करने वाले
● कोई भी जिनके पास एक प्रोडक्ट बनाने का आईडिया है 

 ऑथर  के बारे में

Pat Flynn एक अमेरिकन इंटरनेट marketer और बिज़नेस ओनर हैं, जिनका  “स्मार्ट पैसिव इनकम” नाम का एक फेमस ब्लॉग है। Pat अपने ऑनलाइन बिज़नेस में अच्छे पैसे कमाने के लिए पैसिव इनकम स्ट्रीम में अपने अनुभव को सिखाते भी हैं और रिकॉर्ड भी करते हैं । उनका मकसद यह है कि जो कोई भी अपना ख़ुद का बिज़नेस शुरू करने का सपना देख रहा है वो उसे हकीकत में बदलने में उसकी मदद कर सकें।

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(Hindi) How I Raised Myself from Failure to Success in Selling

(Hindi) How I Raised Myself from Failure to Success in Selling

“क्या आप चाहते हैं कि आपमें ज़्यादा करिश्मा हो? या फिर ज़्यादा कॉन्फिडेंस? क्या आप चाहते हैं कि आपके पास कोई एक्सपर्ट हुनर होता?  बैट्जर  आपके साथ अपने राज़ को बांटेंगे. आप ये जानेंगे कि सेल करने में ज़्यादा कॉन्फिडेंट कैसे बन सकते हैं. सबसे ज़रूरी बात, आपको ऐसे तरीके मिलेंगे जिससे लोग आपको 'ना' नहीं कह सकते.

इस समरी को किसे पढ़नी चाहिए?

•    सेल्स के लोग 
•    insurance एजेंट 
•    रियल एस्टेट एजेंट

ऑथर के बारे में
फ्रैंक बेट्जर एक मेज़र लीग बेसबॉल खिलाड़ी थे. एक घटना के बाद, फ्रैंक ने लाइफ insurance बेचने का फैसला किया. इस फील्ड में उनके सफर ने उन्हें इस बिज़नस से जुड़ी किताबें लिखने के लिए इंस्पायर किया था. फ्रैंक की किताबें बेस्ट सेलिंग हैं जिससे किसी भी सेल्समेन के करियर में हेल्प मिल सकती हैं. उनका नजरिया इस प्रोफेशन के काफी लोगों को इंस्पायर करता हैं.
 

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(Hindi) When: The Scientific Secrets of Perfect Timing

(Hindi) When: The Scientific Secrets of Perfect Timing

“क्या आपने कभी सोचा है कि आपके जीवन में फिर से चीजें कब ठीक होंगी?
मेरा मतलब है, कि आपको वह जॉब कब मिलेगी जो आप हमेशा से चाहते थे। 
या आप उस इंसान  से शादी कब करेंगे जिससे आप सबसे ज्यादा प्यार करते हैं?
हम सभी सोचते हैं कि टाइमिंग ही सब कुछ होता है। यही वजह है कि हम अपने ज्यादातर फैसले guess और intuition के हिसाब से करते हैं। लेकिन यह आईडिया गलत है।
यह किताब आपको आपके 'कब' और सही समय के साइंस के बारे में सभी जवाब देगी | यह किताब आपको दिखाएगी कि कैसे समय सिर्फ लक पर डिपेंडेंट नहीं है, बल्कि साइंस है। डैनियल पिंक आपको बताएँगे कि आपके फ़ायदे के लिए काम करने का समय कैसे निकाला जाए।

इस समरी से कौन सीखेगा?
● कॉलेज स्टूडेंट 
● employees 
● साइकोलॉजी में रुचि रखने वाले लोग

ऑथर  के बारे में
डैनियल एच पिंक छह किताबों के ऑथर हैं – जिसमें उनकी नई किताब, “व्हेन: द साइंटिफिक सीक्रेट्स ऑफ़ परफेक्ट टाइमिंग” शामिल है। व्हेन ने न्यूयॉर्क टाइम्स की बेस्टसेलर लिस्ट में जगह बनाई और इसे Amazon और आईबुक द्वारा 2018 की बेस्ट बुक का नाम दिया गया है. डैनियल की और किताबों में न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्ट सेलर “ए होल न्यू माइंड”,” ड्राइव एंड टू सेल ह्यूमन” शामिल हैं। उनकी किताबों ने कई award जीते हैं और उन्हें 39 भाषाओं में ट्रांसलेट किया गया है|
 

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(Hindi) Passionate Marriage – Keeping Love and Intimacy Alive in Committed Relationships

(Hindi) Passionate Marriage – Keeping Love and Intimacy Alive in Committed Relationships

“क्या आप अपनी सेक्स लाइफ में एक्साईटमेंट लाना चाहते हो? आप सेक्स में डेयरिंग बनने की चाह रखते है पर  कैसे बने ये मालूम नहीं? इस किताब में ऐसी टिप्स और टेक्नीक्स बताई गई है जिन्हें पढ़कर आप अपनी सेक्स लाइफ को और भी इंट्रेस्टिंग बना सकते है. ये किताब आपको सिखाएगी कि अपने पार्टनर के साथ रिश्ते में इंटी में सी कैसे लाई जाए और कैसे अपने पार्टनर को बेडरूम में खुश रखा जाए. इस किताब में आपके हर सवाल का जवाब है. 

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए ? 
    जो लोग किसी के साथ रिलेशनशिप में हैं 
    शादी शुदा कपल के लिए अच्छी किताब है 

ऑथर के बारे में 
डॉक्टर डेविड  स्नार्च  एक साईकोलोजिस्ट, प्रोफेसर और ऑथर हैं. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं. उन्होंने रिलेशनशिप प्रॉब्लम, सेक्स और इंटीमसी जैसे टॉपिक पर काफी रिसर्च की है. 
 

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(Hindi) Turn the Ship Around! A True Story of Turning Followers Into Leaders

(Hindi) Turn the Ship Around! A True Story of Turning Followers Into Leaders

“आपको ये समरी क्यों पढ़नी चाहिए?
ज़्यादातर हम दूसरों से ऑर्डर्स लेकर उसे फॉलो करते हैं और उन चीजों को करते हैं जो हमें बताए जाते हैं. क्या आपको कभी ऐसा नहीं लगता या ऐसी सोच नहीं आती कि आप उन चीजों को अलग-अलग तरीके से कर सकते हैं, लेकिन बेहतर ढंग से और उसी रिजल्ट के साथ? हम में से कुछ ने ऐसे लोग भी देखे होंगे जिन्होंने ऑर्डर्स को अनसुना किया होगा या उसके खिलाफ खड़े हुए होंगे  लेकिन, इस समरी को पढ़ने के बाद, आप एक ऐसा लीडर बनने की कोशिश करेंगे जो दूसरों को भी आगे ले जा पाएगा!

ये समरी कौन पढ़ सकता हैं?
ये समरी उन लोगों के लिए हैं जो चीजों को जहाँ तक हो सके बेहतरीन ढंग से करने की कोशिश करते हैं, जैसा उन्हें ऑर्डर मिलता हैं, भले ही वे खुद की सोच से चीजों को अलग तरीके से कर सकने के काबिल होते हैं. लीडरशिप को खुदबखुद चलते रहने की जरूरत हैं, चीजों को अपने हाथों में लें और लिमिट या हद के अंदर रहकर ही जो भी करना हो करें. लीडर-लीडर स्ट्रक्चर के इस नए नज़रिए को कोई भी शामिल कर सकता हैं और अपने ऑर्गर्नाईजेशन को आगे बढ़ा सकता हैं.

ऑथर के बारे में
कैप्टन डेविड मार्के US नेवी के पहले इंटलेक्चुअल रहे हैं जिन्होंने  USS सैंटा फ़े की किस्मत को बदलने के लिए कमांड के पहले से ही चल रहे पुराने रूल्स को बदला. उन्होंने Leadership Is Language: The Hidden Power of What You Say – and What You Don’t,जैसी कई किताबें लिखी हैं. इसके अलावा वे कई इवेंट्स में स्पीकर भी रहे हैं. वो लीडरशिप एंड लीडरशिप टेक्निक को बढ़ावा देते हैं. उन्होंने खुद को एक लीडर साबित किया हैं और दूसरों को बताते हैं कि कैसे लीडर बनना हैं और सिर्फ फॉलो नहीं करना हैं.

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(Hindi) JYOTI

(Hindi) JYOTI

“विधवा हो जाने के बाद बूटी का स्वभाव बहुत कड़वा हो गया था। जब उसका बहुत जी जलता तो वो अपने मरे हुए पति को कोसती कि ख़ुद तो परलोक सिधार गए, मेरे लिए यह जंजाल छोड़ गए । जब इतनी जल्दी जाना था, तो शादी न जाने किसलिए की । घर में पैसों की इतनी तंगी और कर ली शादी ! वह चाहती तो दूसरी सगाई कर लेती । अहीरों में इसका रिवाज है । वो देखने-सुनने में भी बुरी न थी । दो-एक आदमी तो तैयार भी थे, लेकिन बूटी पतिव्रता कहलाने के मोह को न छोड़ सकी और यह सारा गुस्सा उतरता था, बड़े लड़के मोहन पर, जो अब सोलह साल का था । सोहन अभी छोटा था और मैना लड़की थी । ये दोनों अभी किसी लायक न थे । अगर यह तीनों न होते, तो बूटी को क्यों इतनी तकलीफ़ होती। जिसका भी थोड़ा-सा काम कर देती, वही रोटी-कपड़ा दे देता। जब चाहती किसी के सिर बैठ जाती । अब अगर वह कहीं बैठ जाए, तो लोग यही कहेंगे कि तीन-तीन बच्चों के होते इसे यह क्या सूझी ।

मोहन उसका भार हल्का करने की पूरी कोशिश करता । गायों-भैसों को चारा-पानी देना, उन्हें दुहना- मथना यह सब कर लेता, लेकिन बूटी का मुँह सीधा न होता था । वह रोज एक-न-एक कमी निकालती रहती और मोहन ने भी उसकी डांट डपट की परवाह करना छोड़ दिया था । पति उसके सिर घर का यह भार पटककर क्यों चला गया, उसे यही गिला था । बेचारी का सर्वनाश ही कर दिया । न खाने का सुख मिला, न पहनने-ओढ़ने का, न और किसी बात का। इस घर में क्या आयी, मानो चूल्हे में पड़ गई । उसके विधवापन की तपस्या और दिल की अधूरी तम्मनाओं में हमेशा एक जंग सी छिड़ी रहती और उसके जलन में उसके दिल की सारी कोमलता जलकर भस्म हो गई थी । पति के पीछे और कुछ नहीं तो बूटी के पास चार-पॉँच हज़ार के गहने थे, लेकिन एक-एक करके सब उसके हाथ से निकल गए ।

उसी मुहल्ले में उसकी बिरादरी में, कितनी ही औरतें थीं, जो उससे उम्र में बड़ी होने पर भी गहने झमकाकर, आँखों में काजल लगाकर, माँग में सिंदूर की मोटी-सी रेखा डालकर मानो उसे जलाया करती थीं, इसलिए अब उनमें से कोई विधवा हो जाती, तो बूटी को खुशी होती और यह सारी जलन वह लड़कों पर निकालती, ख़ासकर मोहन पर। वह शायद सारे संसार की औरतों को अपने ही रूप में देखना चाहती थी। घृणा में उसे ख़ास आनंद मिलता था । उसकी अधूरी इच्छाएं, पानी न मिलने से ओस का स्वाद चख लेने में ही संतुष्ट हो जा थी; फिर यह कैसे संभव था कि वह मोहन के बारे में कुछ सुने और बडबड ना करे। जैसे ही  मोहन शाम के समय दूध बेचकर घर आया बूटी ने कहा-“देखती हूँ, तू अब साँड़ बनने पर उतारू हो गया है”।
मोहन ने सवाल के भाव से देखा-“कैसा साँड़! बात क्या है ?”

‘तू रूपिया से छिप-छिपकर हँसता-बोलता नहीं ? उस पर कहता है कैसा साँड़? तुझे शर्म नहीं आती? घर में पैसे-पैसे की तंगी है और वहाँ उसके लिए पान लाए जाते हैं, कपड़े रँगाए जाते है।’
मोहन ने विद्रोह के भाव से कहा —“अगर उसने मुझसे चार पैसे के पान माँगे तो क्या करता ? कहता कि पैसे दे, तो लाऊँगा ? अपनी साड़ी रँगने को दी तो क्या उससे रँगाई मांगता ?”
‘मुहल्ले में एक तू ही धन्‍नासेठ है! और किसी से उसने क्यों न कहा?’
‘यह वह जाने, मैं क्या बताऊँ ।’
‘तुझे अब छैला बनने की सूझती है । घर में भी कभी एक पैसे का पान लाया है ?’
‘यहाँ पान किसके लिए लाता ?’
‘क्या तेरे लिए घर में सब मर गए ?’
‘मैं न जानता था, तुम पान खाना चाहती हो।’
‘संसार में एक रुपिया ही पान खाने लायक है क्या ?’
‘शौक-सिंगार की भी तो उमर होती है ।’

बूटी जल उठी । उसे बुढ़िया कह देना उसकी सारी साधना पर पानी फेर देने जैसा था । बुढ़ापे में उन साधनों का महत्त्व ही क्या ? जिस त्याग के दम पर वह औरतों के सामने सिर उठाकर चलती थी, उस पर इतना गहरा वार ! इन्हीं लड़कों के पीछे उसने अपनी जवानी धूल में मिला दी । उसके पति को मरे आज पाँच साल हो गए थे । तब वो जवान थी । तीन बच्‍चे भगवान् ने उसके गले मढ़ दिए. वो चाहती तो आज वह भी होंठ लाल किए, पाँव में  आल्ता लगाए, बिछिया पहने मटकती फिरती । यह सब कुछ उसने इन लड़कों के कारण छोड़ दिया और आज मोहन उसे बुढ़िया कहता है! रुपिया उसके सामने खड़ी कर दी जाए, तो चुहिया-सी लगे । फिर भी वह जवान है, और  बूटी बुढ़िया है, वाह रे वाह !
बोली-“हाँ और क्या । मेरे तो अब फटे चीथड़े पहनने के दिन हैं । जब तेरा बाप मरा तो मैं रुपिया से दो चार साल ही बड़ी थी । उस वक्त दूसरी शादी कर लेती तो, तुम लोगों यहाँ वहाँ रुल जाते । गली-गली भीख माँगते फिरते । लेकिन मैं कह देती हूँ, अगर तू फिर उससे बोला तो या तो तू ही घर में रहेगा या मैं ही रहूँगी ।

Puri Kahaani Sune..

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(Hindi) The Gospel of Wealth

(Hindi) The Gospel of Wealth


क्या आपने कभी सोचा हैं कि अमीर लोगों के पैसे कहां जाते हैं? क्या वे इसे तिजोरी में बंद करके रखते हैं? ये तो ज़रूर हैं कि उनके पास ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा दौलत हैं. इस बुक में, कार्नेगी इस सरप्लस दौलत को खर्च करने का सुझाव देते हैं. उनके विचारों से अमीर और गरीब के बीच अच्छे रिश्ते बनते हैं. आप और हम आज जिस दुनिया में रहते हैं, उसे ढालने में इन्हीं विचारों का हाथ हैं.

इस समरी को किसे पढ़नी चाहिए?

•    करोड़पति 
•    अरबपति
•    CEO
•    एंट्रेप्रेन्योर
•    समाज सेवक 

ऑथर के बारे में
एंड्रू कार्नेगी एक वर्ल्ड फेमस इंडस्ट्रियलिस्ट और समाज सेवक थे. वो अमेरिकी हिस्ट्री के सबसे अमीर लोगों में से एक थे . कार्नेगी ने इतनी दौलत अपनी स्टील कंपनी से कमाई थी. जैसे-जैसे वो अमीर होते गए, कार्नेगी ने एक समाज-सेवक बनने का फैसला किया. उन्होंने लोकल लाइब्रेरी, म्यूजियम और कई यूनिवर्सिटी को फंडिंग दी.
 

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(Hindi) Bank Ka Diwala

(Hindi) Bank Ka Diwala

“लखनऊ नेशनल बैंक के दफ्तर में लाला साईंदास आरामकुर्सी पर लेटे हुए शेयरों का दाम देख रहे थे और सोच रहे थे कि इस बार हिस्सेदारों को मुनाफा कहाँ से दिया जायगा। चाय, कोयला या जूट के हिस्से खरीदने, चाँदी, सोने या रुई का सट्टा(एक तरह का जूआ) करने का इरादा करते; लेकिन नुकसान के डर से कुछ तय न कर पाते थे।  अनाज  के व्यापार में इस बार बड़ा घाटा रहा; हिस्सेदारों को  तसल्ली देने के लिए फायदे-नुकसान का नकली ब्योरा दिखाना पड़ा और नफा पूँजी से देना पड़ा। इससे फिर  अनाज  के व्यापार में हाथ डालते दिल काँपता था।

पर रुपये को बेकार डाल रखना नामुमकिन था। दो-एक दिन में उसे कहीं न कहीं लगाने का सही उपाय करना जरूरी था; क्योंकि डाइरेक्टरों की तिमाही (3 महीने में होने वाली) बैठक एक ही हफ्ते में होने वाली थी और अगर उस समय कुछ तय ही न हुआ, तो आगे तीन महीने तक फिर कुछ न हो सकेगा, और छमाही (6 महीने में होने वाली) मुनाफे के बँटवारे के समय फिर वही नकली कार्रवाई करनी पड़ेगी, जिसे  बार-बार सहन करना बैंक के लिए मुश्किल है। बहुत देर तक इस उलझन में पड़े रहने के बाद साईंदास ने घंटी बजायी। इस पर बगल के कमरे से एक बंगाली बाबू ने सिर निकाल कर झाँका।

साईंदास- “”ताजा-स्टील कम्पनी को एक चिट्ठी लिख दीजिए कि अपना नया बैलेंस शीट भेज दें।””

बाबू- “”उन लोगों को रूपए की जरूरत नहीं। चिट्ठी का जवाब नहीं देते ।””

साईंदास- “”अच्छा; नागपुर की स्वदेशी मिल को लिखिए।””

बाबू- “”उसका कारोबार अच्छा नहीं चल रहा है। अभी उसके मजदूरों ने हड़ताल किया था। दो महीने तक मिल बंद रहा।””

साईंदास- “”अजी, तो कहीं लिखो भी ! तुम्हारी समझ में सारी दुनिया बेईमानों से भरी है।””

बाबू- “”बाबा, लिखने को तो हम सब जगह लिख दें; मगर खाली लिख देने से तो कुछ फायदा नहीं होता।””

लाला साईंदास अपने  खानदान की इज्जत और मर्यादा के कारण बैंक के मैनेजिंग डाइरेक्टर हो गये थे पर व्यावहारिक बातों से अंजान थे। यही बंगाली बाबू इनके सलाहकार थे और बाबू साहब को किसी कारखाने या कम्पनी पर भरोसा न था। इन्हीं के शक के कारण पिछले साल बैंक का रुपया बक्से  से बाहर न निकल सका था, और अब वही रंग फिर दिखायी देता था। साईंदास को इस मुश्किल  से बचने का कोई उपाय न सूझता था। न इतनी हिम्मत थी कि अपने भरोसे किसी व्यापार में हाथ डालें। बेचैनी की हालत में उठ कर कमरे में टहलने लगे कि दरबान ने आ कर खबर दी- “”बरहल की महारानी की सवारी आयी है।””

लाला साईंदास चौंक पड़े। बरहल की महारानी को लखनऊ आये तीन-चार दिन हुए थे और हर एक के मुँह से उन्हीं की चर्चा सुनायी देती थी। कोई उनके पहनावे पर मुग्ध था, कोई सुंदरता पर, कोई उनके  आजाद ख्याल पर। यहाँ तक कि उनकी दासियाँ और सिपाही आदि की भी लोग बातें कर रहे थे। रायल होटल के दरवाजे पर देखने वालों की भीड़ लगी रहती है। कितने ही शौकीन, बेफिक्रे लोग, इत्र बेचने वाले,कपड़े बेचने वाले या तम्बाकू बेचने वाले का वेष बनाकर उन्हें देख चुके थे। जिधर से महारानी की सवारी निकल जाती, देखने वालों की भीड़ लग जाती थी।

वाह-वाह, क्या शान है ! ऐसी इराकी जोड़ी लाट साहब के सिवा किसी राजा-अमीर के यहाँ तो शायद ही निकले, और सजावट भी क्या खूब है ! भई, ऐसे गोरे आदमी तो यहाँ भी दिखायी नहीं देते। यहाँ के अमीर तो मृगांक, चंद्रोदय, और भगवान जाने, क्या-क्या खाते हैं, पर किसी के बदन पर तेज या चमक का नाम नहीं। ये लोग न जाने क्या खाना खाते और किस कुएँ का पानी पीते हैं कि जिसे देखिए, ताजा सेब बना हुआ है। यह सब हवा पानी  का असर है।

बरहल उत्तर दिशा में नेपाल के पास, अँगरेजी राज्य में एक रियासत थी। हालांकि जनता उसे बहुत मालदार समझती थी; पर असल में उस रियासत की आमदनी दो लाख से ज्यादा न थी। हाँ, उसका इलाका  बहुत बड़ा था। बहुत भूमि बंजर और उजाड़ थी। बसा हुआ भाग भी पहाड़ी और बंजर था। जमीन बहुत सस्ती उठती थी।

लाला साईंदास ने तुरन्त खुंटे से रेशमी सूट उतार कर पहन लिया और मेज़ पर आ कर शान से बैठ गये, मानो राजा-रानियों का यहाँ आना कोई साधारण बात है। दफ्तर के क्लर्क भी सँभल गये। सारे बैंक में सन्नाटे की हलचल पैदा हो गयी। दरबान ने पगड़ी सँभाली। चौकीदार ने तलवार निकाली, और अपने जगह पर खड़ा हो गया। पंखा करने वाले की मीठी नींद भी टूटी और बंगाली बाबू महारानी के स्वागत के लिए दफ्तर से बाहर निकले।

साईंदास ने बाहरी ठाट तो बना लिया, लेकिन मन उम्मीद और डर से बेचैन हो रहा था। रानी से व्यवहार करने का यह पहला ही मौका था; घबराते थे कि बात करते बने या न बने। अमीरों का मिजाज आसमान पर होता है। मालूम नहीं, मैं बात करने में कहीं चूक जाऊँ। उन्हें इस समय अपने में एक कमी मालूम हो रही थी। वह राजसी नियमों से अंजान थे। उनसे कैसा व्यवहार करना चाहिए, उनसे बातें करने में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। उनकी इज्जत बनाए रखने के लिए कितनी नम्रता सही है, इस तरह के सवालों से वह गहरी  सोच में पड़े हुए थे, और जी चाहता था किसी तरह परीक्षा से जल्दी ही छुटकारा हो जाय। व्यापारियों, मामूली जमींदारों या अमीरों से वह रुखाई और सफाई का बर्ताव किया करते थे और पढ़े-लिखे लोगों से शील और शिष्टता का।

उन मौकों पर उन्हें ज़्यादा सोचने की जरूरत न होती थी; पर इस समय बड़ी परेशानी हो रही थी। जैसे कोई लंका-वासी तिब्बत में आ गया हो, जहाँ के रस्म-रिवाज और बातचीत की उसे जानकारी न हो।

अचानक उनकी नजर घड़ी पर पड़ी। तीसरे पहर के चार बज चुके थे, लेकिन घड़ी अभी दोपहर की नींद में मग्न थी। तारीख की सुई ने दौड़ में समय को भी मात कर दिया था। वह जल्दी से उठे कि घड़ी को ठीक कर दें, इतने में महारानी का कमरे में आना हुआ। साईंदास ने घड़ी को छोड़ा और महारानी के पास जाकर  बगल में खड़े हो गये। तय न कर सके कि हाथ मिलायें या झुक कर सलाम करें। रानी जी ने खुद हाथ बढ़ा कर उन्हें इस उलझन से छुड़ाया।

जब कुर्सियों पर बैठ गये, तो रानी के प्राइवेट सेक्रेटरी ने व्यवहार की बातचीत शुरू की। बरहल की पुरानी कहानी सुनाने के बाद उसने उन उन्नतियों के बारे में बताया, जो रानी साहब की कोशिश से हुई थीं। इस समय नहरों की एक शाखा निकालने के लिए दस लाख रुपयों की जरूरत थी; लेकिन उन्होंने एक हिंदुस्तानी बैंक से ही व्यवहार करना अच्छा समझा। अब यह फैसला नेशनल बैंक के हाथ में था कि वह इस मौका से फायदा उठाना चाहता है या नहीं।

बंगाली बाबू- “”हम रुपया दे सकता है, मगर कागज-पत्तर देखे बिना कुछ नहीं कर सकता।””

सेक्रेटरी- “”आप कोई जमानत चाहते हैं।””

साईंदास दयालुता से बोले- “”महाशय, जमानत के लिए आपकी जबान ही काफी है।””

बंगाली बाबू- “”आपके पास रियासत का कोई हिसाब-किताब है ?””

लाला साईंदास को अपने हेड क्लर्क का दुनियादारी का बर्ताव अच्छा न लगता था। वह इस समय दयालुता के नशे में चूर थे। महारानी की सूरत ही पक्की जमानत थी। उनके सामने कागज और हिसाब की बात करना बनियों वाली हरकत जान पड़ती थी, जिससे शक की गंध आती है।

औरतों के सामने हम शील और शर्म के पुतले बन जाते हैं। साईंदास बंगाली बाबू की ओर गुस्से भरी नजर से देख कर बोले- “”कागजों की जाँच कोई जरूरी बात नहीं है, सिर्फ हमें भरोसा होना चाहिए।””

बंगाली बाबू- “”डाइरेक्टर लोग कभी न मानेगा।””

साईंदास- “”हमें इसकी परवाह नहीं, हम अपनी जिम्मेदारी पर रुपये दे सकते हैं।””

रानी ने साईंदास की ओर एहसानमंद नजर से देखा। उनके होंठों पर हलकी मुस्कराहट दिखाई दी ।

Puri Kahaani Sune…

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THE INNOVATORS DILEMMA (English)

THE INNOVATORS DILEMMA (English)

“Why should you read this summary?

 

With each passing day, technology is advancing. What is popular and has demand today may not be relevant tomorrow. How can you ensure that emerging technologies will not throw you out of the market? The answer will not be found in your class notes, but history will show you that being creative, cunning, and strategic is what matters. This book will guide you on how to achieve this.

 

Who should read this summary?

 

⮚    Business executives
⮚    Aspiring entrepreneurs
⮚    Design engineers
⮚    Scientists
⮚    Startup founders

 

About the author

 

The late Clayton Magleby Christensen was an American writer and business consultant. He previously taught Business  Administration at the Harvard University School of Business. He is also the  author of several books, including “The Innovator’s Solution” and “Disrupting Class”, books which made people term him as one of the most influential management thinkers. He won several awards, including Forbes and Edison Achievement award. His works continue to be a guide for many industries  today.
 

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(Hindi) Bhagavad Gita (Chapter 2)

(Hindi) Bhagavad Gita (Chapter 2)

“अध्याय 2: ज्ञान योग या सांख्य योग  

श्लोक 1: 
वासुदेव श्रीकृष्ण कहते हैं– “हे अर्जुन ! युद्ध की इस विषम स्थिति में तू कैसे अज्ञान और मोह में घिर गया? ये ज्ञानी और महान पुरुषों का आचरण नहीं हैं. इसलिए हे पार्थ! अपने मन की कमज़ोरी का त्याग कर, अपने कर्म का नहीं. जो इंसान अपने कर्म से मुहं मोड़ लेता है उसे केवल अपमान का सामना करना पड़ता है. तू जिन चीज़ों के लिए शोक कर रहा है वो इसके योग्य है ही नहीं.

ज्ञानी जन जिंदा या मरे हुए लोगों के लिए शोक नहीं करते. ये जान ले कि ऐसा कोई काल नहीं था जब मैं नहीं था, तू नहीं था या यहाँ मौजूद लोग नहीं थे और ना ही कभी ऐसा समय आएगा जब हम सभी नहीं रहेंगे. बदलाव तो इस प्रकृति का नियम है. पंच तत्वों से बना ये शरीर भी एक समान नहीं रहता, समय के साथ इसमें बदलाव होता रहता है और मृत्यु के बाद एक नए शरीर का जन्म होता है. इसलिए धीर पुरुष ना शोक करते हैं और ना ही इससे मोहित होते हैं. ”  

अर्थ : 
इस श्लोक में अर्जुन के माध्यम से इंसान के मन की स्थिति को दिखाया गया है कि जब उसका सामना किसी चुनौती या मुश्किल परिस्थिति से होता है तो वो किस तरह घबरा जाता है, किस तरह मोह में आ जाता है और अपना कर्म करने के बजाय उससे भागने की कोशिश करता है. जब तक इंसान सच से अनजान रहेगा तब तक उसके मन में तरह-तरह के डर और संशय जन्म लेते रहेंगे. सच को जानकर उसे स्वीकार करने के बाद ना ही उसके मन में किसी तरह का भय शेष रहेगा और ना ही वो किसी मोह में अटका रहेगा. 
 
यहाँ ज्ञानी का मतलब है इस शरीर, आत्मा और भगवान् के तत्व को समझना. ज्ञानी मतलब  समझदार।  यहाँ श्रीकृष्ण अर्जुन से सवाल कर रहे हैं कि तू किसका शोक कर रहा है उसका जिसका एक दिन मिट जाना तय है या उसका जिसका नाश कभी हो ही नहीं सकता? अगर नाश होना तय है तो दुःख कैसा और जिसका नाश हो ही नहीं सकता उसके लिए दुःख कैसा. इस सृष्टि में कोई भी चीज़ शोक करने लायक है ही नहीं क्योंकि हर चीज़ का अस्तित्व बस कुछ समय के लिए ही है.  
 
यहाँ मनुष्य को ये बताया गया है कि असल में हम शरीर, विचार, इच्छाएं ये सब नहीं हैं. यहाँ उस  पराभौतिक  तत्व का ज़िक्र किया गया है जिसका कभी नाश नहीं हो सकता यानी  आत्मा. हम तो वो हैं जिसने पांच तत्वों से बने इस शरीर को धारण किया है, उसे ही आत्मा कहते हैं. ये आत्मा पूरी सृष्टि में समाई हुई है या ये कहा जा सकता है कि उसने अपने अंदर पूरे ब्रह्मांड को समेट रखा है. कहने का मतलब यह है कि आत्मा में ब्रह्मांड नहीं बल्कि ब्रह्मांड और इस पूरे संसार का ज्ञान समाया हुआ रहता है क्योंकि आत्मा में ही मन-बुद्धि और संस्कार हैं और यह शरीर इतनी विशाल पाँच तत्वों से बनी प्रकृति का ही तो प्रतीक है। 

इंसान का स्वभाव होता है कि जो चीज़, जो लोग उससे जुड़ जाते हैं उसे उनसे लगाव हो जाता है और वो उसे पकड़ कर रख लेता है , इस लगाव की highest degree को ही  मोह कहा गया है. जब उसे लगता है कि उससे कोई अपना छूट जाएगा तब वो  परेशान हो जाता है, दुखी हो जाता है और ये हर समस्या का कारण बनता है. जब इंसान का मन और बुद्धि लगाव में कहीं अटक जाए, सीमित हो जाए तो उसे मोह कहा जाता है. 

इंसान को दुःख तब होता है जब वो अपनी इन्द्रियों द्वारा नज़र आने वाली चीज़ों के मिट जाने के बारे में सोचता है. इंसान को बाहरी चीज़ों का आभास उसकी इन्द्रियों जैसे त्वचा, आँख, नाक, जीभ, कान के माध्यम से होता है. जब ये इन्द्रीयाँ बाहरी चीज़ों के संपर्क में आती हैं तो अलग-अलग भावनाओं को जन्म देती हैं जैसे सुख, दुःख, सर्दी गर्मी जो पल पल बदलते रहते हैं इसलिए इंसान को हर भावना को धीरज के साथ सहन करना चाहिए. इस तरह उसके मन की स्थिति में एक संतुलन का विकास होने लगता है. ये भावनाएं सिर्फ़ हमारे मन की प्रतिक्रिया (response) हैं. 

इनके गुलाम बनने के बजाय इन्हें observe करना सीखें. रियेक्ट नहीं बल्कि इसके बारे में सोचना(reflect) सीखें. जितना ज़्यादा इंसान ख़ुद को body conscious वाले “मैं” और “मेरा” शब्द के साथ जोड़ेगा उतना ही वह जीवन में समस्याओं और भ्रमों का सामना करेगा। जबकि यह सत्य ज्ञान कि “मैं आत्मा”  “मेरा शरीर” समझकर जिस पल वह अपने सोचने का दायरा और नज़रिए को बढ़ाता है और हकीकत को समझकर खुद को ( आत्मा ) पहचानता है उसके भ्रम गायब होने लगते हैं. 

Puri Gita Sune….

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