(hindi) Wings of Fire..
“अगर आप एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में और ज़्यादा जानना चाहते हैं, तो ये बुक आपके लिए है. वो एक मेहनती स्टूडेंट, समर्पित मिसाइल साइंटिस्ट और बहुत पसंद किये जाने वाले लीडर थे. ये कहानी आपको, तमिलनाडु में उनके बचपन से लेकर DRDO और ISRO में उनके इम्पोर्टेन्ट कंट्रीब्यूशन तक की जर्नी के बारे में बताएगी. इस बुक में आप एरोस्पेस के बारे में कई बातें जानेंगे. आप इंडिया के मिसाइल मैन कहे जाने वाले एपीजे से लाइफ के इम्पोर्टेन्ट लेसंस भी सीखेंगे.
यह बुक किसे पढनी चाहिये
स्टूडेंट्स, टीचर्स, जो साइंटिस्ट बनना चाहते हैं, जो सिविल सर्वेंट बनना चाहते हैं
आँथर के बारे में
एपीजे अब्दुल कलाम मिसाइल साइंटिस्ट और भारत के पूर्व प्रेजिडेंट हैं.उन्हें सब प्यार से मिसाइल मैन कहते हैं . अरुण तिवारी एक प्रोफेसर और मिसाइल साइंटिस्ट हैं. उन्होंने डीआरडीओ में कलाम के साथ काम किया है. साथ में,
उन्होंने 5 बुक्स लिखीं हैं.
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THE MAN WHO MISTOOK HIS WIFE FOR A HAT (English)
“What will you acquire from this summary?
This book will narrate, as well as teach you stories of extraordinary people who have exceptional conditions. Individuals that suffer from brain damages caused by strokes, tumors, rare diseases, and/or any other type of head injuries. Dr. Sacks is a neurologist who accumulated these patients' stories to discover and understand what they're going through.As such, this book will most definitely astonish you.
Who will learn from this summary?
Anyone interested in psychology and/or neurology.
Anyone curious about the secrets of our brains.
About the Author
Oliver Sacks is a neurologist that believed the brain is the most unimaginable matter in the universe. He received several awards, including recognition for his notable works.Furthermore, Dr. Sacks wrote several best-selling books, most of which are case studies regarding his patients.
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(hindi) UPDESH
“प्रयाग के पढ़े लिखे समाज में पंडित देवरत्न शर्मा असल में एक रत्न थे। पढ़ाई भी उन्होंने बहुत की थी और कुल के भी ऊँचे थे। न्यायशीला गवर्नमेंट ने उन्हें एक ऊँचा पद देना चाहा, पर उन्होंने अपनी आजादी पर वार करना ठीक न समझा। उनका भला चाहने वाले दोस्तों ने बहुत समझाया कि इस मौके को हाथ से मत जाने दो, सरकारी नौकरी बड़े किस्मत से मिलती है, बड़े-बड़े लोग इसके लिए तरसते हैं और यही इच्छा लिये ही दुनिया से चले जाते हैं। अपने खानदान का नाम रोशन करने का इससे आसान रास्ता नहीं है, इसे इच्छा पूरी करने वाला पेड़ समझो। वैभव, दौलत, इज्जत और नाम यह सब इससे मिलते हैं। रह गयी देश-सेवा, सो तुम्हीं देश के लिए क्यों जान देते हो?
इस शहर में कई बड़े-बड़े अक्लमंद और अमीर आदमी हैं, जो सुख-चैन से बँगलों में रहते और मोटरों में धूल की आँधी उड़ाते घूमते हैं। क्या वे लोग देश-सेवक नहीं हैं ? जब जरूरत होती है या कोई मौका आता है तो वे देश-सेवा में लग जाते हैं। अभी जब म्युनिसिपल चुनाव का झगड़ा छिड़ा तो मेयोहाल के सामने मोटरों का ताँता लगा हुआ था। भवन के अंदर देश के लिए गीतों और भाषणों की भरमार थी। पर इनमें से कौन ऐसा है, जिसने स्वार्थ को छोड़ दिया हो ? दुनिया का नियम ही है कि पहले घर में दीया जला कर तब मस्जिद में जलाया जाता है। सच्ची बात तो यह है कि जातीयता की यह बात कालेज के छात्रों को ही शोभा देती है। जब दुनिया में आए तो कहाँ की जाति और कहाँ की जातीय बात। दुनिया का यही नियम है।
फिर तुम्हीं को काजी बनने की क्या जरूरत ! अगर बारीकी से देखा जाय तो सरकारी पद पाकर इंसान अपने देश और भाइयों की सच्ची सेवा कर सकता है, ये किसी दूसरे तरीके से कभी नहीं किया जा सकता । एक दयालु पुलिस सैकड़ों जातीय सेवकों से अच्छा है। एक इंसाफ पसंद, धर्म मानने वाला मजिस्ट्रेट सैकड़ों जातीय दानवीरों से ज्यादा सेवा कर सकता है। इसके लिए सिर्फ दिल में लगन चाहिए। इंसान चाहे जिस हालत में हो, देश के लिए काम कर सकता है। इसीलिए अब ज्यादा आगा-पीछा न करो, चटपट पद को मंजूर कर लो।
शर्मा जी को और कोई बात न जँचीं, पर इस आखिरी बात की सच्चाई से वह इनकार न कर सके। लेकिन फिर भी चाहे नियम निभाने के कारण, चाहे आलस के कारण जो अक्सर ऐसे हालात में जातीय सेवा का गौरव पा जाता है, उन्होंने नौकरी से अलग रहने में ही अपना कल्याण समझा। उनके इस स्वार्थ को छोड़ने पर कालेज के लड़कों ने उन्हें खूब बधाइयाँ दीं। उन्होने स्वार्थ पर जीत पाई जिसके लिए एक जातीय ड्रामा खेला गया, जिसके नायक हमारे शर्मा जी ही थे। समाज के ऊँचे तकबे में इस आत्म-त्याग की चर्चा हुई और शर्मा जी अच्छे-खासे मशहूर हो गए ! इसलिए वह कई सालों से जातीय सेवा में लीन रहते थे। इस सेवा का ज्यादा भाग अखबारों को पढ़ते हुए बीतता था, जो जातीय सेवा का ही एक खास अंग समझा जाता है।
इसके अलावा वह अखबारों के लिए लेख लिखते, सभाएँ करते और उनमें फड़कते हुए भाषण देते थे। शर्मा जी फ्री लाइब्ररी के सेक्रेटरी, स्टूडेंट एसोसिएशन के सभापति, सोशल सर्विस लीग के सहायक मंत्री और प्राइमरी एजूकेशन कमिटी के संस्थापक थे। खेती से जुड़ी बातों से उन्हें खास प्यार था। अखबारों में जहाँ कहीं किसी नए खाद या किसी नये आविष्कार के बारे में देखते, तुरंत उस पर लाल पेन्सिल से निशान कर देते और अपने लेखों में उसकी बात करते। लेकिन शहर से थोड़ी दूर उनका गांव होने पर भी, वह अपने किसी किराएदार को जानते तक न थे। यहाँ तक कि कभी प्रयाग के सरकारी खेती की जमीन की सैर करने न गये थे।
उसी मुहल्ले में लाला बाबूलाल रहते थे। वह एक वकील के मुंशी थे। थोड़ी-सी उर्दू-हिंदी जानते थे और उसी से अपना काम अच्छी तरह चला लेते थे। सूरत-शक्ल के ज़्यादा सुन्दर न थे। उस शक्ल पर मऊ के चारखाने का लम्बा कुर्ता और भी शोभा देता था। जूता भी देशी ही पहनते थे। हालांकि कभी-कभी वे कड़वे तेल से उसकी पॉलिश भी किया करते थे पर वह नीच स्वभाव के कारण उन्हें काटने से न चूकता था। बेचारे को साल के छह महीने पैरों में मलहम लगानी पड़ती। वो अक्सर नंगे पाँव कचहरी जाते, पर कंजूस कहलाने के डर से जूतों को हाथ में ले जाते। जिस गांव में शर्मा जी की जमींदारी थी, उसमें थोड़ा-सा हिस्सा उनका भी था। इस नाते से कभी-कभी उनके पास आया करते थे।
हाँ, छुट्टी के दिनों में गाँव चले जाते। शर्मा जी को उनका आकर बैठना पसंद नहीं था, खासकर जब वह फैशनेबल इंसानों की मौजूदगी में आया करते थे। मुंशी जी भी कुछ ऐसी नजर के आदमी थे कि उन्हें अपना अनमिलापन बिलकुल दिखायी न देता था। सबसे बड़ी तकलीफ यह थी वे बराबर कुर्सी पर डट जाते, मानो हंसों में कौआ। उस समय दोस्त अंग्रेज़ी में बातें करने लगते और बाबूलाल को छोटा दिमाग, झक्की, पागल, बेवकूफ आदि बोलते। कभी-कभी उनकी हँसी भी उड़ाते थे। शर्मा जी में इतनी अच्छाई जरूर थी कि वे अपने बेवकूफ दोस्त को जितना हो सके बेइज्जती से बचाते थे। सच में बाबूलाल की शर्मा जी पर सच्ची भक्ति थी। एक तो वह बी.ए. पास थे, दूसरे वह देशभक्त थे। बाबूलाल जैसे अनपढ़ इंसान का ऐसे रत्न को इज्जत देना अजीब बात न थी।
एक बार प्रयाग में प्लेग फैला। शहर के अमीर लोग निकल भागे। बेचारे गरीब चूहों की तरह पटापट मरने लगे। शर्मा जी ने भी चलने की ठानी। लेकिन सोशल सर्विस लीग के वे मंत्री ठहरे। ऐसे मौके पर निकल भागने में बदनामी का डर था। बहाना ढूँढ़ा। लीग के ज़्यादातर लोग कॉलेज में पढ़ते थे। उन्हें बुलाकर इन शब्दों में अपने मन की बात बताई- “”दोस्तों ! आप अपनी जाति के दीपक हैं। आप ही इस बुरे समय में जाति की उम्मीद हैं। आज हम पर तकलीफ की घटाएँ छायी हुई हैं। ऐसी हालत में हमारी आँखें आपकी ओर न उठें तो किसकी ओर उठेंगी। दोस्त, जीवन में देशसेवा का मौका बड़ी किस्मत से मिला करता है। कौन जानता है कि भगवान ने तुम्हारी परीक्षा के लिए ही यह परेशानी दी हो।
जनता को दिखा दो कि तुम वीरों का दिल रखते हो, जो बड़ी से बड़ी मुसीबत आने पर भी नहीं डरता। हाँ, दिखा दो कि वह वीरों को पैदा करने वाली पवित्र भूमि जिसने हरिश्चंद्र और भरत को पैदा किया, आज भी वीर पैदा कर सकती है। जिस जाति के नौजवानों में अपने पीड़ित भाइयों के लिए दया और अटल प्रेम है वह दुनिया में हमेशा नाम करती रहेगी। आइए, हम कमर कस कर कर्म-क्षेत्र में उतर पड़ें। इसमें शक नहीं कि काम मुश्किल है, रास्ता मुश्किल है, आपको अपने मनोरंजन, अपने हाकी-टेनिस को छोड़ना पड़ेगा। तुम जरा हिचकोगे, हटोगे और मुँह फेर लोगे, लेकिन भाइयो !
जातीय सेवा का सुख ऐसे ही नहीं मिल सकता ! हमारा व्यक्तित्व, हमारा मनोबल, हमारा शरीर अगर जाति के काम न आए तो वह बेकार है। मेरी बड़ी इच्छा थी कि इस अच्छे काम में मैं तुम्हारा हाथ बँटा सकता, पर आज ही देहातों में बीमारी फैलने की खबर मिली है। इसलिए मैं यहाँ का काम आपके लायक, मजबूत हाथों में सौंपकर देहात में जाना चाहता हूँ ताकि जितना हो सके देहाती भाइयों की सेवा कर सकूँ। मुझे यकीन है कि आप खुशी खुशी अपने देश के लिए अपने फर्ज का पालन करेंगे।
Puri Kahaani Sune…
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(hindi) The Adventure of the Second Stain
“मैं चाहता था कि” द एडवेंचर ऑफ़ द एबी ग्रेंज “ वाला केस मेरे दोस्त शरलॉक होम्ज़ का आखिरी कारनामा होता जिसे मैं पब्लिक के सामने रखना चाहता था. हालाँकि ऐसा नही था कि मेरे पास बताने के लिए किस्से कम पड़ रहे थे बल्कि मुझे तो सैकड़ो ऐसे किस्से मालूम थे जिनका मैंने कभी किसी से जिक्र तक नही किया था, और ऐसा भी नहीं था कि पब्लिक मेरे तेज़ दिमाग दोस्त की शानदार पर्सनेलिटी और हैरतअंगेज कारनामो से बोर हो गई हो. दरअसल वजह ये थी कि खुद मिस्टर होम्ज़ को अपने कारनामें छपवाने में दिलचस्पी थोड़ी कम हो गई थी.
जब तक वो अपनी प्रोफेशनल प्रेक्टिस में रहा, उसके सक्सेसफुल एडवेंचर के रिकार्ड उसके काम आते रहे पर लेकिन जब से उसने लंदन में अपनी प्रोफेशनल लाइफ से रिटायरमेंट लेकर ससेक्स डाउन्स में मधुमक्खी पालना और उस पर स्टडी करना शुरू किया था तब से बदनामी उससे नफ़रत करने लगी है और उसने निवेदन किया है कि इस मामले में उसकी इच्छाओं को सख्ती से देखा जाना चाहिए.
यहाँ तक कि वो अब उन भूले-बिसरे कारनामो को याद तक नही करना चाहता था और उसने बड़े ही साफ़ शब्दों में हिदायत दे रखी थी कि उसे उन पुराने किस्सों की याद ना दिलाई जाए. पर जब मैं उससे मिलने गया तो मैंने यकीन दिलाया और वादा किया कि” द एडवेंचर ऑफ़ द सेकंड स्टेन” उसी वक्त पब्लिश की जाएगी जब सही वक्त होगा और उसे ये भी बताया कि इस केस में जितनी भी घटनाएँ घटी हैं , सब मिलाकर इसे एक बेहद सनसनीखेज इंटरनेशनल केस बनाती है जिसे सुलझाने के लिए शरलॉक की खासतौर पर मदद ली गई थी.
आखिरकार बड़ी मान-मनौव्वल के बाद उसने मुझे मंज़ूरी दी कि अब तक सबसे छुपाकर रखे गए इस राज को अब मैं पब्लिक के सामने ला सकता हूँ. इस किस्से को सुनाते वक्त अगर कहीं लगे कि कुछ जानकारियां साफ़ नहीं है तो आशा करता हूँ कि इसे पढ़ने वाले मुझे ये सोचकर माफ़ कर देंगे कि उन जानकारियों को छुपाने की भी ख़ास वजह है.
फिर एक साल या कहें कि दशक बाद ऐसा मौका आया कि पतझड़ के मौसम में मंगलवार की सुबह योरोपियन डील-डौल वाले दो मेहमान हमारे बेकर स्ट्रीट वाले फ्लैट में आये. उनमे से पहला मामूली शक्ल वाला था जिसकी ऊँची नाक और चील जैसी आँखे थी. वो देखने में रौबीला शख्स कोई और नही बल्कि ब्रिटेन के दो बार प्रीमियर रह चुके लॉर्ड बेलिंजर थे. उनमे से दूसरे साँवले, elegant और मिडल एज लगते थे और शक्ल-सूरत से भी काफी सुंदर थे, और ये जनाब थे देश के उभरते हुए नेता राईट ओनरेबल ट्रीलॉनी होप जो योरोपियन अफेयर्स के सेक्रेटरी थे.
हमारे छोटे से सोफे पर जिस पर पहले से ही अखबारों का ढेर पड़ा था, दोनों आकर बैठ गये. उन दोनों के चेहरों से लग रहा था कि कोई बेहद जरूरी बात रही होगी जिसकी वजह से उन्हें यहाँ आना पड़ा था. प्राइम-मिनिस्टर के हाथ बेहद पतले थे जिन पर नीली उभरी नसे नजर आ रही थी, वो अपनी छतरी के हाथी दांत की बनी मूंठ को कसकर पकड़े हुए थे और उनका कमजोर चेहरा किसी बूढ़े तपस्वी महात्मा जैसा था. वो मुझे और होम्ज़ को बारी-बारी से देखे जा रहे थे. योरोपियन सेक्रेटरी घबराए हुए अंदाज़ में अपनी मूंछे खींचता हुआ अपनी वॉच चेन की सील घुमाए जा रहा था.
ट्रीलॉनी होप ने बात शुरू की “आज सुबह आठ बजे जब मुझे अपने नुकसान का अंदाजा हुआ मिस्टर होम्ज़, तो मैंने तुंरत प्राइम मिनिस्टर को खबर दी. और उनके ही सुझाव पर हम आपसे मिलने आये है”
होम्ज़ ने पूछा “क्या आपने पुलिस में खबर की ?’
“नहीं सर,” प्रीमियर तुंरत अपने निश्चयपूर्वक अंदाज में बोले जिसके लिए वो मशहूर थे, “हम पुलिस के पास नही गए, क्योंकि आगे चलकर मामला पब्लिक तक पहुँच सकता है जोकि हम बिल्कुल नही चाहते.
“और वो भला क्यों सर?’ होम्ज़ ने पूछा
“क्योंकि ये डाक्यूमेंट इतना इम्पोर्टेंट और confidential है कि मेरे ख्याल से शायद इनका पब्लिश हो जाना बड़ी ही आसानी से योरोपियन अफेयर्स के मामले को बहुद हद तक बिगाड़ सकता है और कोई बड़ी बात नहीं अगर मैं ये कहूं कि जब तक डॉक्यूमेंट् बिना किसी को कानो-कान खबर हुए फिर से बरामद नहीं हो जाते , तब तक अमन और जंग की तलवार हमारे सिर पर लटकती रहेगी या फिर शायद कभी बरामद ही ना हो सके. डॉक्यूमेंट् को चुराने वालो का मकसद शायद उसे सार्वजनिक करना है”
“मैं आपकी बात समझ रहा हूँ मिस्टर ट्रेलॉनी होप (Mr. Trelawney Hope,) अब मेहरबानी करके मुझे खुलकर समझाइए कि ये डोक्यूमेंट कब और कैसे गायब हुआ” होम्ज़ ने पूछा
“बताने के लिए ज्यादा कुछ नही है मिस्टर होम्ज़, दरअसल जिस डॉक्यूमेंट की मैं बात कर रहा हूँ, एक लैटर है जो एक विदेशी अथॉरिटी ने भेजा है——यही कोई छह दिन पहले मुझे ये लैटर मिला था. यूं समझ लीजिए कि ये लैटर इतना इम्पोर्टेंट है कि मैंने उसे कभी अपने ऑफिस की सेफ में भी नही रखा बल्कि मैं उसे रोज़ अपने साथ घर Whitehall Terrace ले जाया करता था और अपने बेडरूम के एक डिसपैच बॉक्स में रखता था. मुझे अच्छे से याद है कि ये लैटर मैंने कल रात भी उसी बॉक्स में रखा था.
असल में डिनर के लिए तैयार होते वक्त मैंने बॉक्स खोल के देखा तो लैटर अंदर ही था. पर आज सुबह लैटर गायब हो गया. मैं उस डिसपैच बॉक्स को पूरी रात अपनी ड्रेसिंग टेबल के ऊपर रखता था. मैं गहरी नींद कभी नहीं सोता और ना ही मेरी वाइफ सोती है. और हम दोनों कसम खाकर बोल सकते है कि रात को हमारे कमरे में भी कोई नहीं आया था, लेकिन इसके बावजूद वो लैटर गायब हो गया”
“आपने किस वक्त डिनर किया था?” होम्ज़ ने पुछा,
“करीब साढ़े सात बजे होंगे” प्राइम मिनिस्टर बोले
“और उसके कितनी देर बाद आप सोने चले गये?
“मेरी वाइफ थिएटर गई हुई थी तो मैं ने उसके आने तक इंतज़ार करता रहा. फिर करीब साढ़े ग्यारह बजे होंगे जब हम अपने कमरे में गए” मिनिस्टर ने बताया.
“तो इसका मतलब है कि चार घंटो के लिए आप डिसपैच बॉक्स से दूर थे?’ होम्ज़ बोला
“मेरे कमरे में बिना मेरी ईजाजत के कोई नही घुसता सिवाए हाउसमेड के जो सुबह आती है, बाकी दिन में उस कमरे में मेरा नौकर और मेरी वाइफ की मेड आते-जाते रहते हैं पर ये सारे भरोसेमंद नौकर है और काफी वक्त से हमारे साथ है. इसके अलावा उनमे से किसी को ये खबर भी नहीं होगी कि मेरे डिसपैच बॉक्स में मामूली डिपार्टमेंटल पेपर के अलावा वो लैटर भी हो सकता है”
होम्ज़ ने पूछा “अच्छा, तो और किसको उस लैटर के बारे में मालूम था?
“घर में किसी को भी नहीं” प्राइम मिनिस्टर बोले.
“बेशक आपकी वाइफ तो जानती होंगी?” होम्ज़ नेपूछा
“नहीं सर, आज सुबह लैटर के गायब से पहले मैंने अपनी वाइफ को कुछ भी नहीं बताया था”
प्रीमियर ने अपना सिर हिलाते हुए सहमति ज़ाहिर की.
“मुझे काफी पहले से मालूम है सर कि आप पब्लिक ड्यूटी को लेकर कितने सेंसिबल है और मैं समझ सकता हूँ अगर आपने इतना बड़ा राज अपनी वाइफ तक से छुपाया है तो यकीनन ये मामला बेहद गंभीर है.”
योरोपियन सेक्रेटरी ने अपना सिर झुकाते हुए होम्ज़ की बात का अप्रूवल किया.
“आपके अलावा और कौन समझ सकता है सर, आज सुबह से पहले मैंने अपनी वाइफ को लैटर के बारे में एक शब्द तक नही बोला था”
“उन्हें कभी शक तो नही हुआ?’ होम्ज़ ने पूछा,
“नहीं, मिस्टर होम्ज़, उसे ज़रा भी शक नही था—उसे क्या किसी और को भी शक नही हो सकता था”
“क्या पहले कभी आपका कोई डॉक्यूमेंट खोया था?’ होम्ज़ ने पूछा
“नहीं,सर .”
“इंग्लैंड में किसे इस लैटर के बारे में मालूम नही था?’ होम्ज़ ने पूछा
प्रीमियर बोले “केबिनेट के हर मेंबर को कल ही इस लैटर के बारे में खबर कर दी गई थी, वैसे तो हर केबिनेट मीटिंग की बातो को गुप्त रखा जाता है पर इस लैटर के मिलने के बाद प्राइम मिनिस्टर की सख्त हिदायत के बावजूद भगवान् जाने कैसे मुझसे वो लैटर खो गया!”
प्रीमियर के खूबसूरत चेहरे पर दुःख और चिंता के बादल छाए हुए थे, परेशानी में वो अपने हाथो से अपने बाल नोचने लगे. एक पल के लिए हमने उनके अंदर छुपे एक आम आदमी की झलक देखी, बैचेन, घबराए हुए और बेहद उत्तेजित. पर अगले ही पल उनकी पोजीशन का रौब उनके चेहरे पर वापस आ गया, उन्होंने अपने एरिस्टोक्रेटिक मास्क के पीछे अपना दुःख छुपा लिया और बेहद नर्मी के साथ बोले” केबिनेट के मेंबर्स के अलावा दो या शायद तीन डिपार्टमेंटल ऑफिशियल्स है जिन्हें इसके बारे में मालूम है. और बाकी पूरे इंग्लैंड में और कोई इस लैटर के बारे में नही जानता है, ये मैं आपको यकीन दिला सकता हूँ”
“पर इंग्लैंड के बाहर?’ होम्ज़ ने शक ज़हिर किया
“मुझे लगता है कि इंग्लैंड से बाहर भी कोई इस लैटर के बारे में नही जानता सिवाए उसके जिसने इसे लिखा है और मुझे यकीन है कि उनके मिनिस्टर—यानी उनकी रेगुलर ऑफिशियल एजेंसी को भी इस मामले की जानकारी नही होगी”
होम्ज़ कुछ देर यूं ही सोचता रहा.
“अब सर, मुझे साफ-साफ बताइए ये डॉक्यूमेंट आखिर है क्या? और इसका गायब होना किस हद तक खतरनाक है? होम्ज़ ने सीधा सवाल किया.
दोनों आदमियों ने एक दूसरे की तरफ देखा और प्रीमियर की घनी भोंहे सिकुड़ गई.
“मिस्टर होम्ज़, लैटर एक लंबे से लिफाफा में था, पतले कागज का हल्के नीले रंग का. ऊपर एक लाल रंग की मोम सील की स्टैम्प लगी थी जिस पर एक झुका हुआ शेर बना हुआ था. बड़े-बड़े, बोल्ड हैण्डराइटिंग में एड्रेस लिखा था—”
होम्ज़ ने बीच में टोकते हुए कहा “मुझे माफ़ कीजिये सर, आपने काफी इंट्रेस्टिंग डिटेल दी पर मैं ये जानना चाहता हूँ कि लैटर किस बारे में था? उसमें क्या लिखा था?’
“माफ़ कीजियेगा मिस्टर होम्ज़ पर ये एक बेहद इम्पोर्टेंट स्टेट सीक्रेट है जो मैं आपको हरगिज़ नही बता सकता और शायद बताने की जरूरत भी नही है. अगर आप किसी तरह अपनी काबिलियत से ऐसा कोई लिफ़ाफा ढूंढ सके जैसा मैंने आपको बताया है तो यकीन मानिए आप अपने देश पर एहसान तो करेंगे ही साथ ही इसके लिए आपको ईनाम भी दिया जाएगा”
शरलॉक मुस्कुराता हुआ अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ.
फिर उसने दोनों को देखते हुए कहा “आप दोनों इस देश के सबसे ज्यादा बिजी लोग है, बेशक मैं एक मामूली हस्ती हूँ पर मेरे पास भी कई फ़ोन आते है, मुझे खेद है कि मैं आपकी इस मामले में कोई मदद नही कर पाऊंगा, इसलिए इस बारे में और पूछताछ करना वक्त की बर्बादी होगी”
प्रीमियर तुंरत कुर्सी से उठ खड़े हुए, उन्होंने होम्ज़ को ऐसे गुस्से से भरी आँखों से घूरा जिसके आगे शायद केबिनट भी थर-थर काँपता होगा.
बेहद तेज़ लहजे में उन्होंने होम्ज़ से कहा “मुझे ऐसे ना सुनने की आदत नही है मिस्टर होम्ज़,——,
फिर अचानक वो अपने गुस्से पर काबू पाते हुए फौरन अपनी सीट पर जा बैठे.
Puri Kahaani Sune..
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Chicken Soup for the Unsinkable Soul (English)
“Why you should read this book
If you are feeling hopeless, if you are being burdened by poverty, sickness or any hardship in life, you should read this book. Chicken Soup for the Unsinkable Soul is a collection of beautiful stories from different kinds of people. You will be inspired on how they were able to overcome challenges and enjoy life once again. You will find that there's a reason to hope, to love and to be happy in spite of everything.
Who should read this
For people who are losing hope; for people who are facing challenges; for people who need courage and inspiration
About the author
Jack Canfield and Mark Victor Hansen are motivational speakers and senior editors of the Chicken Soup Book Series. There are over 250 titles under Chicken Soup. These books are compilations of true stories from different kinds of people. Chicken Soup has sold 500 million copies worldwide.
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(hindi) Laag Daant
“जोखू भगत और बेचन चौधरी में तीन पीढ़ियों से लड़ाई और दुश्मनी चली आ रही थी। कुछ खेत-जमीन का झगड़ा था। उनके परदादाओं में कई बार खून-खराबा हुआ। बाप-दादाओं के समय से केस शुरू हुए। दोनों कई बार हाईकोर्ट तक गये। लड़कों के समय में लड़ाई-झगड़े इतने बढ़ गए कि अब दोनों ही कमजोर हो गये। पहले दोनों इसी गाँव में आधे-आधे के हिस्सेदार थे। अब उनके पास उस झगड़े वाले खेत को छोड़ कर एक अंगुल जमीन भी नही थी। जमीन गयी पैसा गया इज्जत गयी लेकिन वह विवाद जैसे का तैसा बना रहा। हाईकोर्ट के धुरंधर नीति जानने वाले एक मामूली-सा झगड़ा तय न कर सके।
इन दोनों सज्जनों ने गाँव को दो विरोधी दलों में बाँट दिया था। कुछ लोग भांग-बूटी के लिए चौधरी के दरवाज़े पर इकट्ठा होते तो दूसरे दल के चरस-गाँजे के दम भगत के घर पर लगते थे। औरतें और बच्चों के भी दो दल हो गये थे। यहाँ तक कि दोनों सज्जनों की सामाजिक और धार्मिक सोच भी अलग-अलग हो चुकी थी। चौधरी कपड़े पहने सत्तू खा लेते और भगत को ढोंगी कहते। भगत बिना कपड़े उतारे पानी भी नही पीते और चौधरी को भ्रष्ट बताते थे।
भगत सनातन को मानने वाले बने तो चौधरी ने आर्यसमाज को अपना लिया। जिस बजाज दुकानदार से चौधरी सामान लेते उसकी ओर भगत जी देखना भी पाप समझते थे और भगत जी की हलवाई की मिठाइयाँ, उनके ग्वाले का दूध और तेली का तेल चौधरी के लिए बेकार थे। यहाँ तक कि उनके स्वास्थ और इलाज़ के सिद्धांतों में भी अंतर था । भगत जी वैद्यक को मानते थे और चौधरी यूनानी प्रथा के मानने वाले। दोनों चाहे रोग से मर जाते पर अपने सिद्धांतों को नही तोड़ते थे।
जब देश में राजनैतिक आंदोलन शुरू हुआ तो उसकी भनक उस गाँव में आ पहुँची। चौधरी ने आंदोलन का पक्ष लिया भगत उनके विपक्षी हो गये। एक भले आदमी ने आ कर गाँव में किसान-सभा खोली। चौधरी उसमें शामिल हो गए लेकिन भगत अलग ही रहे। लोगों को जगाने और बढ़ी स्वराज्य की चर्चा होने लगी। चौधरी स्वराज्य के पक्ष में हो गये भगत ने राजभक्ति का पक्ष लिया। चौधरी का घर स्वराज्यवादियों का अड्डा हो गया भगत का घर राजभक्तों का क्लब बन गया।
चौधरी जनता में स्वराज्य का प्रचार करने लगे:
“दोस्तों स्वराज्य का मतलब है अपना राज। अपने देश में अपना राज हो वह अच्छा है कि किसी दूसरे का राज हो वह जनता ने कहा-अपना राज हो वह अच्छा है।
चौधरी-तो यह स्वराज्य कैसे मिलेगा इच्छाशक्ति से, कोशिश करने से, आपसी मेल-जोल से एक-दूसरे से लड़ना-चिढ़ना छोड़ दो। अपने झगड़े अपने आप मिल कर निपटा लो।
एक सवाल-आप तो हमेशा अदालत में खड़े रहते हैं।
चौधरी-हाँ पर आज से अदालत जाऊँ तो मुझे गाय की हत्या का पाप लगे। तुम्हें चाहिए कि तुम अपनी मोटी कमाई अपने बाल-बच्चों को खिलाओ और बचे तो दान-पुण्य भलाई में लगाओ। वकील-मुखतारों की जेब क्यों भरते हो, थानेदार को घूस क्यों देते हो, बुरी आदतें क्यों पालते हो, पहले हमारे लड़के अपने धर्म की शिक्षा पाते थे, वह सदाचारी, त्यागी, पुरुषार्थी बनते थे। अब वह विदेशी स्कूलों में पढ़कर उनकी नौकरी करते हैं, घूस खाते हैं, शौक करते हैं. अपने देवताओं और पितरों की बुराई करते हैं, सिगरेट पीते हैं, नया विदेशी साल मानते हैं और प्रधानों की गुलामी करते हैं। क्या यह हमारा काम नहीं है कि हम अपने बच्चों को धर्म के अनुसार शिक्षा दें.
जनता- चंदा इकट्ठा करके पाठशाला खोलनी चाहिए।
चौधरी- हम पहले शराब को छूना भी पाप समझते थे। अब गाँव-गाँव और गली-गली में शराब की दुकानें हैं। हम अपनी मोटी कमाई के करोड़ों रुपये गाँजे-शराब में उड़ा देते हैं।
जनता-जो दारू-भाँग पिये उसे डंडा लगाना चाहिए !
चौधरी-हमारे दादा-बाबा छोटे-बड़े सब देशी मोटा सस्ता कपडा पहनते थे। हमारी दादियाँ-नानियाँ चरखा काता करती थीं। सारा पैसा देश में रहता था. हमारे कपड़े बुनने वाले भाई चैन सुकून से रहते थे। अब हम विदेश के बने हुए महीन रंगीन कपड़ों पर जान देते हैं। इस तरह दूसरे देश वाले हमारा पैसा अपने देश ले जाते हैं. बेचारे कपड़े बनाने वाले कंगाल हो गये। क्या हमारा यही धर्म है कि अपने भाइयों की थाली छीन कर दूसरों के सामने रख दें.
जनता- मोटा कपड़ा अब कहीं मिलता ही नहीं।
चौधरी-अपने घर का बना हुआ मोटा कपडा पहनो, अदालतों को जाना बंद कर दो, नशेबाजी छोड़ो और अपने लड़कों को धर्म-कर्म सिखाओ मिल-जुल कर रहो-बस यही स्वराज्य है। जो लोग कहते हैं कि स्वराज्य के लिए खून की नदी बहेगी वे पागल हैं-उनकी बातों पर ध्यान मत दो।
जनता यह बातें चाव से सुनती थी। दिनोंदिन सुनने वालों की संख्या बढ़ती जाती थी। सब चौधरी के भक्त बन गये।
Puri Kahaani Sune…
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(hindi) Samar Yatra
“आज सवेरे से ही गाँव में हलचल मची हुई थी। कच्ची झोंपड़ियाँ हँसती हुई जान पड़ती थीं। आज सत्याग्रहियों का दल गाँव में आयेगा। कोदई चौधरी के दरवाजे पर मंडप तना हुआ है। आटा, घी, सब्ज़ी, दूध और दही जमा किया जा रहा है। सबके चेहरों पर उमंग है, हौसला है, खुशी है। वही बिंदा अहीर, जो दौरे के अफसरों के पड़ाव पर पाव-पाव भर दूध के लिए मुँह छिपाता फिरता था, आज दूध और दही के दो मटके अपनी बीवी से लेकर रख गया है। कुम्हार, जो घर छोड़कर भाग जाया करता था, आज मिट्टी के बर्तनों का ढेर लगा गया है। गाँव के नाई-कहार सब खुद ही दौड़े चले आ रहे हैं। अगर कोई दुखी है, तो वह नोहरी बुढ़िया है। वह अपनी झोंपड़ी के दरवाजे पर बैठी हुई अपनी 75 साल की बूढ़ी सिकुड़ी हुई आँखों से यह समारोह देख रही है और पछता रही है। उसके पास क्या है, जिसे ले कर कोदई के दरवाजे पर जाए और कहे- “”मैं यह लायी हूँ।”” उसके पास तो खाना भी नहीं है।
मगर नोहरी ने अच्छे दिन भी देखे हैं। एक दिन उसके पास पैसा और परिवार सब कुछ था। गाँव पर उसी का राज था। कोदई को उसने हमेशा नीचे दबाये रखा। वह औरत होकर भी आदमी थी। उसका पति घर में सोता था, वह खेत में सोने जाती थी। मामले-मुकदमे की पैरवी खुद ही करती थी। लेना-देना सब उसी के हाथों में था लेकिन सब कुछ भगवान ने छीन लिया; न पैसा रहा, न लोग रहे। अब उनके नाम को रोने के लिए वही बाकी थी। आँखों से दिखता न था, कानों से सुनायी न देता था, जगह से हिलना मुश्किल था। किसी तरह जिंदगी के दिन पूरे कर रही थी और उधर कोदई की किस्मत खुल गई थी। अब चारों ओर कोदई की पूछ थी, पहुँच थी। आज जलसा भी कोदई के दरवाजे पर हो रहा है। नोहरी को अब कौन पूछेगा। यह सोचकर उसका दिल मानो कुचल गया था। हाय ! मगर भगवान ने उसे इतना कमजोर न कर दिया होता, तो आज झोपड़े को लीपती, दरवाजे पर बाजे बजवाती, कढ़ाई चढ़ा देती, पूड़ियाँ बनवाती और जब वह लोग खा लेते; तो हाथ भर रुपये उन्हें दे देती।
उसे वह दिन याद आया, जब वह अपने बूढ़े पति को लेकर यहाँ से बीस कोस दूर महात्मा जी के दर्शन करने गयी थी। वह उत्साह, वह पवित्र प्यार, वह श्रद्धा, आज उसके दिल में आकाश के काले बादलों की तरह उमड़ने लगी।
कोदई ने आकर पोपले मुँह से कहा- “”भाभी, आज महात्मा जी का दल आ रहा है, तुम्हें भी कुछ देना है।””
नोहरी ने चौधरी को तीखी आँखों से देखा। बेरहम मुझे जलाने आया है। मुझे नीचा दिखाना चाहता है। जैसे आकाश पर चढ़कर बोली- “”मुझे जो कुछ देना है, वह उन्हीं लोगों को दूँगी। तुम्हें क्यों दिखाऊँ !””
कोदई ने मुस्करा कर कहा- “”हम किसी से कहेंगे नहीं, सच कहते हैं भाभी, निकालो वह पुरानी हाँड़ी ! अब किस दिन के लिए रखे हुए हो। किसी ने कुछ नहीं दिया। गाँव की इज्जत कैसे रहेगी ?””
नोहरी ने बड़े दयनीय भाव से कहा- “”जले पर नमक न छिड़को, देवर जी ! भगवान ने दिया होता, तो तुम्हें कहना न पड़ता। इसी दरवाजे पर एक दिन साधु-संत, जोगी, हाकिम सभी आते थे; मगर सब दिन बराबर नहीं होते !””
Puri Kahaani Sune…
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(hindi) Visham Samasya
“मेरे दफ्तर में चार चपरासी थे, उनमें एक का नाम गरीब था। बहुत ही सीधा, बड़ा बात मानने वाला, अपने काम में चौकन्ना रहने वाला, डांट खाकर चुप रह जाने वाला। जैसा नाम वैसा गुण, गरीब इंसान था। मुझे इस दफ्तर में आये साल भर हो गया था, मगर मैंने उसे एक दिन के लिए भी छुट्टी लेते नहीं पाया था। मैं उसे नौ बजे दफ्तर में अपनी दरी पर बैठे हुए देखने का ऐसा आदी हो गया था, मानो वह भी इस इमारत का कोई अंग है। इतना सरल है कि किसी की बात टालना जानता ही न था। एक चपरासी मुसलमान था। उससे सारा दफ्तर डरता है, मालूम नहीं क्यों ? मुझे तो इसका कारण सिवाय उसकी बड़ी-बड़ी बातों के और कुछ नहीं मालूम होता। उसकी माने तो उसके चचेरे भाई रामपुर रियासत में कोतवाल थे।
उसे सब ने “”काजी-साहेब”” का पद दे रखा था, बाकी दो महाशय जाति के ब्राह्मण थे। उनके आशीर्वाद की कीमत उनके काम से कहीं ज्यादा थी। ये तीनों कामचोर, बात न मानने वाले और आलसी थे। कोई छोटा-सा भी काम करने को कहिए तो बिना नाक-भौं सिकोड़े न करते थे। क्लर्कों को तो कुछ समझते ही न थे ! सिर्फ बड़े बाबू से कुछ डरते; हालांकि कभी-कभी उनसे भी बदतमीजी कर बैठते थे। मगर इन सब बुराइयों के होते हुए भी दफ्तर में किसी की हालत इतनी खराब नहीं थी, जितनी बेचारे गरीब की। तरक्की का अवसर आता तो ये तीनों नम्बर मार ले जाते, गरीब को कोई पूछता भी न था। और सब दस-दस रुपये पाते थे, पर बेचारा गरीब सात पर ही पड़ा हुआ था।
सुबह से शाम तक उसके पैर एक पल के लिए भी नहीं टिकते थे। यहाँ तक कि तीनों चपरासी भी उस पर गुस्सा करते और ऊपर की कमाई में उसे कोई भाग न देते थे। तब भी दफ्तर के सब, कर्मचारी से लेकर बड़े बाबू तक उससे चिढ़ते थे। उसको कितनी ही बार जुर्माना हो चुका था और डाँट-फटकार तो रोज की बात थी। इसका राज मेरी समझ में कुछ नहीं आता था। मुझे उस पर दया आती थी और अपने बरताव से मैं यह दिखाना चाहता था कि उसकी इज्जत मेरी नजरों में बाकी तीनों चपरासियों से कम नहीं है। यहाँ तक कि कई बार मैं उसके लिए कर्मचारियों से लड़ भी चुका था।
एक दिन बड़े बाबू ने गरीब से अपनी मेज साफ करने को कहा, वह तुरंत मेज साफ करने लगा। दैवयोग से झाड़न का झटका लगा तो स्याही की बोतल उलट गयी और स्याही मेज पर फैल गयी। बड़े बाबू यह देखते ही आपे से बाहर हो गये। उसके दोनों कान पकड़कर खूब ऐंठे और भारत की सभी प्रचलित भाषाओं से गालियां चुन-चुनकर उसे सुनाने लगे। बेचारा गरीब आँखों में आँसू भरे चुपचाप सुनता था, मानो उसने कोई हत्या कर डाली हो। मुझे बड़े बाबू का जरा-सी बात पर इतना ज्यादा गुस्सा करना बुरा मालूम हुआ। अगर किसी दूसरे चपरासी ने उससे भी बड़ी गलती की होती तो भी उस पर इतनी बड़ी सजा ना दी जाती।
मैंने अंग्रेज़ी में कहा- “”बाबू साहब, यह नाइंसाफी कर रहे हैं, उसने जान-बूझ कर तो स्याही गिरायी नहीं। इसका इतनी बड़ी सजा देना ठीक नहीं है।””
बाबू जी ने नम्रता से कहा- “”आप इसे जानते नहीं, यह बड़ा बदमाश है।””
“”मैं तो इसकी कोई बदमाशी नहीं देखता।””
“”आप अभी इसे जाने नहीं। यह बड़ा पाजी है। इसके घर में दो हलों की खेती होती है, हजारों का लेन-देन करता है, कई भैंसें लगती हैं, इन बातों का इसे घमंड है।””
“”घर की हालत ऐसी ही होती तो आपके यहाँ चपरासीगिरी क्यों करता?””
बड़े बाबू ने गम्भीर भाव से कहा- “यकीन करिए, बड़ा पहुंचा हुआ आदमी है, और बहुत ही मक्खीचूस है।””
“”अगर ऐसा ही हो तो भी कोई गुनाह नहीं है।””
“”अभी आप यहाँ कुछ दिन और रहिए तो आपको मालूम हो जायगा कि यह कितना कमीना आदमी है।””
एक दूसरे महाशय बोल उठे- “”भाई साहब, इसके घर किलों दूध होता है, किलों जुआर, चना, मटर होती है, लेकिन इसकी कभी इतनी हिम्मत नहीं होती कि थोड़ा-सा दफ्तरवालों को भी दे दे। यहाँ इन चीजों के लिए तरस-तरस कर रह जाते हैं। तो फिर क्यों न जी जले और यह सब कुछ इसी नौकरी के बदौलत हुआ है नहीं तो पहले इसके घर में तिनका तक न था।
बड़े बाबू सकुचा कर बोले- “”यह कोई बात नहीं। उसकी चीज है चाहे किसी को दे या न दे।””
मैं इसकी असलियत कुछ-कुछ समझ गया। बोला- “”अगर ऐसे छोटे दिल का आदमी है तो सच में जानवर ही है। मैं यह न जानता था।””
अब बड़े बाबू भी खुले, संकोच दूर हुआ। बोले- “”इन बातों से फायदा तो होता नहीं, सिर्फ देनेवाले की अच्छाई दिखती होती है और उम्मीद भी उसी से की जाती है जो इस लायक है। जिसमें कुछ दम ही नहीं उससे कोई उम्मीद भी नहीं करता। नंगे से कोई क्या लेगा ?””
Puri Kahaani Sune…
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10% Happier: How I Tamed the Voice in My Head, Reduced Stress Without Losing My Edge, and Found Self-Help That Actually Works–A True Story (English)
“What will you learn from this summary?
This book is about a spiritual journey of a famous TV reporter. This is the story of how Dan Harris found peace of mind in a very competitive industry. In this book, you will learn how to focus on the present and how to control the voice inside your head. You will learn how to remain calm and mindful at the same time.
Who will learn from this summary?
● Young professionals
● To anyone who is stressed at work
About the Author
Dan Harris is an American TV news personality. He is the co-host of the weekend edition of ABC Channel's Good Morning America. Dan also previously worked as an anchor for the late-night show Nightline. “10% Happier” is Dan's first book.
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(hindi) The Adventure of the Empty House
“1894 में बसंत के मौसम की एक सुबह थी जब सारा लंदन और फैशन की दुनिया बेहद ईज्जतदार रौनल्ड अडैयर की रहस्यमयी और अजीबो-गरीब हालात में हुए कत्ल से दहल उठा था. पुलिस इन्वेस्टीगेशन से पब्लिक को इस कत्ल की हल्की-फुलकी जानकारी मिली थी पर काफी कुछ ऐसा था जो छुपाया जा रहा था. चूंकि पब्लिक प्रोजीक्यूशन के लिहाज़ से मामला इतना स्ट्रोंग था कि हर जानकारी को सामने लाना मुनासिब नही समझा गया. इस मामले को करीब दस साल हो चुके थे तो अब जाकर मै कत्ल के इस वारदात की खोई हुई कड़ियों की जानकारी दे सकता था जो इस हादसे को एक सनसनीखेज वारदात अंजाम देते थे.. वैसे खुद कत्ल की ये वारदात काफी दिलचस्प थी पर मेरे लिए उससे भी बढ़कर दिलचस्प था इसके पीछे जो हैरतअंगेज वजह थी, जिसने मुझे हिला कर रख दिया था और मेरी अब तक की एडवेंचरस लाइफ का सबसे बड़ा झटका दिया था.
यहाँ तक कि आज भी इतना लंबा अर्सा गुजरने के बाद, इस केस का ख्याल ही मेरे रोंगटे खड़े कर देता है, और मुझे उसी उत्तेजना, आश्चर्य और हैरानी के मिले-जुले एहसासों से भर देता है जो उस दौरान मेरे दिलो-दिमाग पर छाये हुए थे. यहाँ मै आपको एक बात बता दूं कि आम जनता ने इस केस में काफी इंटरेस्ट लिया था जब मैंने उन्हें एक बेहद ख़ास आदमी के कारनामे और उसकी सोच के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी दी वर्ना शायद वो कभी उस पर शक नही करते, अगर मैंने पब्लिक को नहीं बताया होता. क्योंकि मै अपना पहला फ़र्ज़ यही समझता हूँ, अगर उसने खुद मुझ पर इस बात को बताने की रोक नही लगाई होती, और पिछले महीने की तीन तारिख को ही मुझे ये आज़ादी मिली कि अब मै इस मामले पर अपनी चुप्पी तोडू.
ये कोई हैरानी की बात नही कि अपने दोस्त शरलॉक होम्ज़ के साथ रहते हुए मै भी क्राइम केसेस में काफी ज्यादा दिलचस्पी लेने लगा था, और उसके गायब होने के बाद जो भी केस पब्लिक के सामने आते थे, मै उन सबकी बड़ी गहराई सी तफ्तीश करता था, कई बार तो मैंने अपनी ही तस्सली के लिए शरलॉक के तरीके अपनाकर मामले की तह तक जाने की कोशिश की थी, हालाँकि उसके जैसी कामयाबी मुझे कभी नही मिली. लेकिन रौनल्ड अडैयर के साथ हुए उस हादसे ने मुझे झकझोर कर रख दिया था, जब मैंने कानूनी जाँच में दिए गये एविडेंस पढ़े जिसमे किसी अनजान आदमी या आदमियों के खिलाफ कत्ल का मामला दर्ज था,
उस वक्त मुझे उस भारी नुकसान का अंदाजा हुआ जो आम जनता को शरलॉक होम्ज़ की मौत से हुआ था. और मुझे पूरा यकीन है कि कत्ल की इस अजीब गुत्थी में ऐसे कई पॉइंट थे कि अगर शरलॉक होता तो गहरी दिलचस्पी दिखाता और योरोप के फर्स्ट क्रिमिनल एंजेट के तेज़ दिमाग और निगरानी में पुलिस की कोशिशे काफी हद तक कामयाब रहती. सारा दिन मेरे दिमाग में केस से जुडी बाते घूमती रही पर ऐसी कोई वजह समझ नही आ रही थी जो अपने-आप में काफी हो. सुनी-सुनाई कहानी को सुनाने का खतरा उठाते हुए मै उस सच्चाई को सामने रखूंगा जो कानूनी जाँच में नतीजे के तौर पर जनता के सामने रखी थी.
काफी ईज्जतदार और जाने-माने रौनल्ड अडैयर अर्ल ऑफ़ मेनूथ के दूसरे बेटे थे जोकि उस वक्त ऑस्ट्रेलियन कॉलोनी में से एक के गवर्नर हुआ करते थे. अडैयर की माँ मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने के लिए ऑस्ट्रेलिया से लौटी थी. वो और उसका बेटा रौनल्ड और बेटी हिल्डा 427, पार्क लेन में एक साथ रह रहे थे. ये नौजवान एक बढिया सोसाईटी में रहने आये थे, और इस यंगमेन का दूर-दूर तक कहीं कोई दुश्मन या बुरा चाहने वाला नही था. कारस्टैरयर्स की मिस एडिथ वुडली से उनका रिश्ता तय हुआ था हालाँकि कुछ महीने पहले आपसी रजामंदी से दोनों ने मंगनी तोड़ दी थी. वैसे रौनल्ड को मंगनी टूटने का ज्यादा दुःख नहीं था. अपने सीधे-सादे रहन-सहन और ठंडे स्वभाव के चलते उनका उठना-बैठना अपने पहचान वालो तक ही सिमित था. पर इसके बावजूद 30, मार्च,1894 की रात करीब दस से साढ़े ग्यारह के बीच इस बेपरवाह नौजवान की बड़ी ही रहस्यमय तरीके से मौत हुई थी.
रौनल्ड अडैयर ताश का शौकीन था, वो कई घंटो लगातर पत्ते खेल सकता था पर इस हद तक भी नहीं कि अपनी ही जान की बाजी लगा दे और वो बाँल्डविन, द कैवेनडिश और द बैगेटल कार्ड क्लब का मेंबर भी था. जिस दिन उसकी मौत हुई थी, उस रात उसे डिनर के बाद द बैगेटल कार्ड क्लब में रबर ऑफ़ व्हिस्ट खेलते देखा गया था. यही नहीं वो दोपहर में भी वहां ताश खेलने आया था. रौनल्ड और मिस्टर मरे(Murray), सर जॉन हार्डी और कर्नल मोरन चारो ने मिलकर व्हिस्ट का गेम खेला और बाजी बराबर की रही थी. अडैयर शायद पांच pound हारा था पर उसके जैसे रईस के लिए ये बड़ी मामूली सी रकम थी तो हारने के दुःख का तो सवाल ही पैदा नही होता. वो तकरीबन रोज़ ही किसी ना किसी क्लब में खेलने जाया करता था, वो ताश का काफी माहिर खिलाड़ी था इसलिए ज्यादातर जीत कर ही आता था. गोडप्रे मिल्नर और लार्ड बालमोरल की बातो से एक और खुलासा हुआ कि कुछ हफ्तों पहले ही उसने कर्नल मोरन की पार्टनरशिप में एक ही सिटिंग में चार सौ बीस पौंड जीते थे. पूछताछ से रौनल्ड के बारे में अब तक इतनी ही जानकारी मिली थी.
कत्ल वाले दिन रौनल्ड रात के करीब दस बजे क्लब से घर लौटा था. उस शाम उसकी माँ और बहन किसी रिश्तेदार के यहाँ गई हुई थी. नौकरानी ने बताया कि उसने दूसरी मंजिल के फ्रंट रूम में रौनल्ड के दाखिल होने की आवाज़ सुनी थी. ये कमरा आमतौर पर बैठक की तरह इस्तेमाल किया जाता था. नौकरानी ने जब कमरा गर्म करने के लिए फायरप्लेस में आग जलाई तो काफी धुआं हो गया, तो उसने खिड़की खोल दी थी. फिर करीब ग्यारह बजकर बीस मिनट पर लेडी मेनूथ और उनकी बेटी के वापस आने तक कमरे से कोई आवाज़ नही सुनाई दी. अपने बेटे को गुड नाईट बोलने की मंशा से लेडी मेनूथ उसके कमरे में गई.
दरवाजा अंदर से बंद था, उनके बार-बार आवाज़े देने और नॉक करने के बावजूद दरवाजा नही खुला तो नौकरों की मदद से दरवाजे को तोड़ा गया. कमरे में दाखिल होते ही सबके होश उड़ गए, उस बदनसीब नौंजवान की लाश टेबल के पास पड़ी मिली. उसे गोली मारी गई थी, एक्स्पेंडिंग रिवाल्वर की गोली ने उसके सिर के चीथड़े उड़ा दिए थे. कमरे से कोई हथियार बरामद नही हुआ. टेबल पर दस-दस पौंड के दो बैंक नोट और सत्रह pound के करीब गोल्ड और सिल्वर के दस सिक्के पड़े थे. पैसे अलग-अलग अमाउंट में ढेर बनाकर रखे गए थे. साथ ही एक कागज़ भी मिला जिस पर कुछ रकम लिखी गई थी और हर रकम के सामने क्लब के कुछ दोस्तों के नाम लिखे हुए थे, ये कागज इस बात की तरफ इशारा करता था कि मौत से पहले रौनल्ड खेल में हुए नफ़े-नुकसान का हिसाब-किताब कर रहा था.
पूरे घटनाक्रम की तफ्तीश के बाद मामला और भी पेचीदा नज़र आया. पहली बात तो ये समझ नहीं आई कि रौनल्ड में दरवाजा अंदर से क्यों बंद किया था. एक संभावना ये थी कि शायद खुनी ने ही दरवाजा अंदर से बंद किया और खून करके खिड़की के रास्ते बचकर निकल गया पर खिड़की की उंचाई करीब बीस फीट थी और नीचे क्रोकस के पौधो की क्यारियाँ थी जिन पर फूल खिले हुए थे. पर हैरत की बात तो ये थी कि एक भी फूल नही टूटा था और आस-पास की मिट्टी पर भी कोई निशान नही थे. और ना ही घास के पैरो से कुचले जाने के निशान थे जो घर से लेकर रोड तक के रास्ते पर उगी हुई थी.
यानी एक बात तो पक्की थी कि नौजवान ने कमरे का दरवाजा खुद बंद किया था. लेकिन दरवाजा अगर बंद था तो उसे मारा किसने? अगर कोई खिड़की से चढ़कर ऊपर आता तो उसका कहीं कोई निशान तो जरूर मिलता. पर मान लो किसी ने बाहर से गोली चलाई है तो वो उसका निशाना एकदम अचूक था जिसने अपने शिकार को एक ही निशाने में मौत की नींद सुला दिया. पर एक सवाल यहाँ भी खड़ा होता है. पार्क लेन भीड़-भाड़ वाला ईलाका है और घर से कोई सौ यार्ड की दूरी पर एक टैक्सी स्टैंड है इसके बावजूद किसी ने भी गोली चलने की आवाज़ नही सुनी पर कमरे में एक आदमी की लाश और रिवाल्वर की गोली मिली थी जो फट कर मशरूम जैसी हो गई थी, जैसे कि सॉफ्ट नोज्ड बुलेट हुआ करती है और गोली ने इतनी ज़बर्दस्त मार की थी कि लगते ही मौत हो गई.
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(hindi) The Way of Peace
“आपके लिए शांति का क्या मतलब है? क्या अभी आपके जीवन में वो सुकून है जिसे शायद आप पाना चाहते हैं? क्या आपको लगता है कि आप उन लोगों में से एक हैं जिनके अंदर हलचल के बजाय ठहराव है? अगर नहीं, तो आपने बिलकुल सही किताब चुनी है. शांति सिर्फ़ मन की एक स्टेट नहीं है बल्कि ये जीने का तरीका है. शांति आपको एक बेहतर इंसान बनने में मदद करती है और इसे कैसे करना है वो ये किताब आपको सिखाएगी.
यह समरी किसे पढ़नी चाहिए?
• जिन लोगों को बहुत ज़्यादा काम करने की आदत है
• spiritual गुरुओं को
• जो लोग हमेशा तनाव में रहते हैं
ऑथर के बारे में
जेम्स ऐलेन एक ब्रिटिश राइटर थे जिनकी ख़ासियत सेल्फ़-हेल्प और लोगों को inspiration देने वाली बुक्स लिखने में थी. 1903 में उनकी बेस्ट सेलिंग बुक “As a Man Thinketh” पब्लिश की गई थी. इतना लंबा समय गुज़र जाने के बाद भी इस बुक को आज तक कई धार्मिक किताबों और ऑडियोबुक के लिए एक inspiration के रूप में बताया जाता है.
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(hindi) Saanp Ka Mani
“मैं जब जहाज़ पर नौकरी करता था तो एक बार कोलंबो भी गया था। बहुत दिनों से वहाँ जाने को मन चाहता था, खासकर रावण की लंकापुरी देखने के लिए । कलकत्ते से सात दिन में जहाज कोलंबो पहुँचा । मेरा एक दोस्त वहां किसी कारखाने में काम करता था, मैंने पहले ही उसे खत लिख दिया था । वह घाट पर आ पहुँचा। हम दोनों गले मिले और कोलंबो की सैर करने चल दिए। जहाज़ वहां चार दिन रुकने वाला था। मैंने कप्तान साहब से चार दिन की छुट्टी ले ली थी ।
जब हम दोनों खा-पी चुके, तो गपशप होने लगी। वहाँ के सीप और मोती की बात छिड़ गई। मेरे दोस्त ने कहा-“यह सब चीज़ें तो यहाँ समुद्र में निकलती ही हैं और आसानी से मिल जायेंगी, मगर मैं तुम्हें एक ऐसी चीज़ दूंगा जो शायद तुमने कभी न देखी हो । हाँ, उसका हाल किताबों में पढ़ा होगा”।
Puri Kahaani Sune….
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As a Man Thinketh (English)
“Why should you read this book?
Good character, positive circumstances, good health, peace, and prosperity: all of these come from the right thoughts. If you want to have all of the above, you should read this book. You will be amazed at how much thoughts affect your life. Your mind is a power source. This book will teach you how to wield it.
Who should read this book?
People of all occupations; those who want to change their vices; those who have big dreams; and anyone who wants to become the master of his own thoughts.
About the Author
James Allen is a British author, writer, and poet. He is a pioneer of self-help. He wrote several books on philosophy and inspiration. His most famous work is As a Man Thinketh, which was published in 1903. James Allen remains an influence on the self-help writers of today.
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(hindi) Maiku
“कादिर और मैकू शराब खाने के सामने पहुँचे, तो वहाँ कांग्रेस के वालंटियर झंडा लिये खड़े नजर आये। दरवाजे के इधर-उधर हजारों दर्शक खड़े थे। शाम का समय था। इस समय गली में पियक्कड़ों के सिवा और कोई न आता था। भले आदमी इधर से निकलते झिझकते। पियक्कड़ों की छोटी-छोटी टोलियाँ आती-जाती रहती थीं। दो-चार वेश्याएँ दुकान के सामने खड़ी नजर आती थीं। आज यह भीड़-भाड़ देखकर मैकू ने कहा- “”बड़ी भीड़ है बे, कोई दो-तीन सौ आदमी होंगे।””
कादिर ने मुस्करा कर कहा- “”भीड़ देख कर डर गये क्या ? यह सब भाग जायँगे, एक भी न टिकेगा। यह लोग तमाशा देखने आये हैं, लाठियाँ खाने नहीं आये हैं।””
मैकू ने शक से कहा- “”पुलिस के सिपाही भी बैठे हैं। ठीकेदार ने तो कहा था, पुलिस न बोलेगी।””
Puri Kahaani Sune..
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