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(hindi) How to Live 24 Hours a Day

(hindi) How to Live 24 Hours a Day

“क्या आप अपने दिन का सबसे ज़्यादा फायदा उठाना चाहते हैं? क्या आप शेड्यूल फुल होने के बावजूद कुछ नया करने की कोशिश करना चाहते हैं? इस बुक में इसका जवाब हैं. आपको अपनी रूटीन को पूरी तरह से बदलना नहीं हैं. और न ही आपको स्ट्रिक्ट टाइम-टेबल रखना हैं. ये सब नज़रिए के बारे में हैं. क्या आप अपने दिन को काबू करने के लिए तैयार हैं?

इस समरी को किसे पढ़नी चाहिए?

•    काम में डूबे रहने वाले लोग 
•    जो लोग टाइम को ठीक से मैनेज करना नहीं जानते  
•    जो लोग कुछ नया ट्राई करना चाहते हैं 

ऑथर के बारे में
 अर्नोल्ड बेनेट एक राइटर थे. उन्होंने कई नॉवल, शॉर्ट स्टोरी, आर्टिकल और जर्नल लिखे हैं. उनके सिंपल लेकिन शानदार लिखने के तरीके के कारण वे बहुत पॉपुलर हुए. अक्सर उनकी लिखी हुई किताबें और आर्टिकल की सारी कॉपी बिक जाया करती थी.
1954 में,  अर्नोल्ड बेनेट सोसायटी की शुरुवात हुई. यादगार के तौर पर सात पत्थरों पर उनका नाम लिखकर रखे गए हैं. उनके जन्म की 150 वीं एनिवर्सरी के दौरान, बेनेट की एक ब्रॉन्ज़ की मूर्ति, पॉटरिज़ म्यूजियम एंड आर्ट गैलरी के सामने रखी गई थी.
 

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(hindi) Bhagavad Gita(Chapter 1)

(hindi) Bhagavad Gita(Chapter 1)

“नमस्कार दोस्तों, 
गिगल एप पर आपका बहुत बहुत स्वागत है । हम आपके लिए लेकर आए हैं एक ऐसा प्रोजेक्ट जिसे करने के लिए हम तो excited हैं ही । पर हम जानते हैं कि आप भी इसे सुनने के लिए उतने ही बेकरार हैं

Puri Geeta Sune…

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(hindi) Morning and Evening Thoughts

(hindi) Morning and Evening Thoughts

“क्या आप खुश रहना चाहते है? क्या आप लाइफ में और भी पोजिटिविटी लाना चाहते है ? अगर ये सवाल आपके मन में भी उठ रहे है तो इस किताब में आपको इन सवालों के जवाब मिलेंगे. ये किताब आपको बताएगी कि अब तक आप ख़ुशी की तलाश में यूं ही बेकार भटक रहे थे. साथ ही ये किताब आपको सिखाती है कि कैसे अफार्मेशन की पॉवर हमारी जिंदगी में एक पोजिटिव बदलाव ला सकती है. 

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए? 

    उन लोगो को जो नेगेटिव सोचते हैं 
    जो लोग जिंदगी में अपने मकसद से भटक गए हैं 
    जो लोग सेल्फ डेवलपमेंट करना चाहते हैं 
    जिनके अंदर सेल्फ कॉन्फिडेंस की कमी है 

  ऑथर के बारे में 

जेम्स ऐलेन एक ब्रिटिश राईटर थे जिन्होंने कई सेल्फ-हेल्प और इन्सिपिरेशनल बुक्स लिखी है. उनकी  बेस्ट सेलिंग नॉवेल है “As a Man Thinketh” जो 1903 में पब्लिश हुई थी. इतने सालो बाद आज भी ये किताब कई सारी रिलीजियस और ऑडियो बुक्स के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत बनी हुई है. 
 

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(hindi) Bhagavad Gita (Chapter 1)

(hindi) Bhagavad Gita (Chapter 1)

“नमस्कार दोस्तों, 
गिगल एप पर आपका बहुत बहुत स्वागत है । हम आपके लिए लेकर आए हैं एक ऐसा प्रोजेक्ट जिसे करने के लिए हम तो excited हैं ही । पर हम जानते हैं कि आप भी इसे सुनने के लिए उतने ही बेकरार हैं। 

जी हाँ यह है श्रीमद भगवद गीता । पर इससे पहले कि इसे शुरू करें कुछेक बातें हैं जो हम आपसे शेयर करना जरूरी समझते हैं । 
यह बात तो हम सभी को मालूम है कि भगवान यानि परमात्मा एक ही है पर उन्हे न पहचानने के कारण, ना जानने के कारण इस बात को मानते नहीं हैं। परमात्मा को न जान पाने के कारण भी कई हैं। जिसमे सबसे पहला तो यही है कि वह दिखाई नही देता। सोचिये जब आत्मा को ही आँखों से नहीं देखा जा सकता तो परम आत्मा को कैसे देख सकते हैं। 

परम यानि सर्वोच्च – सुप्रीम- आला या अल्लाह। उनसे ऊंचा कोई और नहीं। 
वह एक रचयिता और बाकी सब उसकी रचना यानि creation । 
जिस प्रकार एक आत्मा को अपनी बात कहने के लिए मानव शरीर लेना पड़ता है और हम इंसान या मनुष्य कहलाते हैं ठीक उसी प्रकार साइंस कहें या spiritual साइंस कहें । परम-आत्मा को भी इंसान के शरीर का आधार लेना ही पड़ता है। 
आध्यात्म यानि आत्मा – परमात्मा और इस वर्ल्ड ड्रामा व्हील की स्टडी। 
धर्म यानि धारणायें अर्थात वो नियम जो इंसानों के लिये बनाए गए। 
दुनिया में लगभग 12 मुख्य धर्म हैं और सभी में ईश्वर के स्वरूप के लिए समान बातें कही गई हैं। तभी ईश्वर को सर्वज्ञ भी कहा जाता है। 

जैसे परमात्मा एक नूर है और एक ही है सबसे पहले इस सिद्धांत से मनुष्य का परिचय कराने वाले संदेशवाहक हज़रत इब्राहिम हुये। हज़रत इब्राहीम को ही यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म का मुख्य संस्थापक कहा जाता है। तीनों ही धर्मों में ईश्वर को लाइट यानि नूर , प्रकाश स्वरूप कहा गया है. हज़रत मोज़ेस यानि मूसा को भी एक लाइट / फायर का साक्षात्कार हुआ और उन्होंने 10 commandments मानव समुदाय के लिये सिद्धांत के रूप में दी। । Zoroastrianism यानि पारसी धर्म के संस्थापक जुरुआस्त्र ने भी ईश्वर को फायर , प्रकाश स्वरूप और में ही अनुभव किया था। जीसस क्राइस्ट यानि हज़रत ईसा ने भी God is Light कहकर उस एक परमात्मा के गुणों का बखान किया और उन के शिष्यों द्वारा क्राइस्ट की शिक्षाओं को लिपिबद्ध करके बाइबल में सँजोया गया। 

हज़रत मोहम्मद पैगंबर साहिब ने हज़रत इब्राहिम, हज़रत मूसा द्वारा मिली शिक्षाओं और सर्वोच्च ईश्वर से हुए साक्षात्कार पर आधारित पवित्र पुस्तक कुरान इस्लाम के अनुयायियों के लिए सौंपी। धरती पर रहने वाले किसी भी आदमी की यानि इंसान की, उच्च शिक्षाओं को समेटे इस पुस्तक के साथ छेड़-छाड़ करने की हिमाकत न हो इसके लिए, इसे अल्लाह के घर से आई पुस्तक कहकर इसकी हिफाजत का जिम्मा हर एक अनुयायी को दिया। 

श्री गुरु नानक देव जी ने एक ओंकार यानि एक परमात्मा के बारे में ही प्रशंसा की है और फिर उनके शिष्यों ने उनकी कही बातों और शिक्षाओं को लिपिबद्ध करके गुरु-ग्रंथ साहिब जी बाकी सभी अनुयायियों के लिए रखा। 

हिन्दू धर्म की पुस्तकों को श्रुति और स्मृति के आधार पर बाँटा जाता है। श्रुति अर्थात सुनी हुई पवित्र पुस्तकें वेद- और उपनिषद हैं। स्मृति यानि साक्षात्कार और याद पर आधारित रचित पवित्र पुस्तकें पुराण और रामायण एवं महाभारत महाकाव्य हैं। जन-सामान्य द्वारा सबसे अधिक पढ़ी और फॉलो की जाने वाली पुस्तक रामायण है। इसके उपरांत गीता – ज्ञान को सबसे अधिक सुना और पढ़ा जाता है। 

महाभारत के युद्ध के दौरान आत्मा के धर्म अर्थात आध्यात्म के बारे में दिया गया अनमोल ज्ञान गीता कहलाया।  जिसे बाद में लिपिबद्ध कर श्रीमद भगवद पुराण के रूप में प्रस्तुत किया गया। 

श्रीमद भगवद पुराण में वर्णित प्राचीन ज्ञान के अनुसार निराकार शिव परमात्मा ने गीता का दिव्य सत्य ज्ञान सबसे पहले – पहले ब्रह्मा जी को सुनाया था। इस दिव्य ज्ञान के आधार पर ही ब्रह्मा जी के द्वारा सृष्टि की रचना एवं युगों का निर्माण हुआ था जिन्हे ब्रह्मा का दिन एवं ब्रह्मा की रात के आधार पर बाँटा गया। सतयुग और त्रेता युग ब्रह्मा का दिन कहे जाते हैं और द्वापर और कलियुग ब्रह्मा की राते कहे जाते हैं। इसी ज्ञान के आधार पर आदि सनातन धर्म की स्थापना हुई थी। 

अच्छी बात यह है कि उपरोक्त सभी धर्म एवं दुनिया में लगभग मुख्य 12 धर्म हैं और इन सभी में परमात्मा का स्वरूप निराकार/ ज्योति स्वरूप / God is Light कहकर ही बताया गया है। 

यहाँ यह सब बातें शेयर करने के पीछे भाव यही है कि किन्ही भी नबी अथवा धर्म प्रवर्तक या संदेश वाहकों में से किसी ने भी स्वयं को ईश्वर नहीं बताया। यहाँ तक कि श्रीमद भगवद गीता में भी श्री कृष्ण जी के माध्यम से भी यही कहा गया कि परमात्मा कभी जन्म नहीं लेता। वह जन्म और मृत्यु से परे ( beyond ) निराकार है, अशरीरी है। गीता के वचनों के अनुसार जो कोई भी परमात्मा को देहधारी मानता है वह परमात्मा को नहीं जानता। 

अर्जुन को भी उसके सत्य स्वरूप यानि आत्म भाव में टिककर प्रकाश स्वरूप परमात्मा का ध्यान करने का स्पष्ट निर्देश यानि clear direction दिया गया है। 
फिर प्रश्न उठता है कि जब परमात्मा का स्वरूप एक है उनके attributes same  हैं तो फिर इतने सारे धर्म कैसे बन गए ? और सभी एक होकर क्यों nahi रहते ?

इसका जवाब है ठीक तरह से अपने धार्मिक ग्रंथों को न समझना। जी हाँ। यह छोटा मुह बड़ी बात लग सकती है पर यही सच है। 
इस बात को इस उदाहरण के माध्यम से समझ जा सकता है। गांधी जी और गोडसे दोनों ही हर रोज श्रीमद भगवद गीता का पाठ करते थे। रोजाना ही गीता का कोई न कोई अध्याय पढ़ते थे। 

पर एक ने गीता पढ़कर सत्य, अहिंसा, और ब्रह्मचर्य को अपनाया और अपने अंदर की कमजोरियों से युद्ध किया और दूसरे ने हिंसा का रास्ता अपनाया। 
हम सभी परमात्मा को उतना ही जानते हैं जितना हम खुद को। हम देवात्माओं यानि देवी – देवताओं को पहचानते हैं, धर्मात्माओं को पहचानते हैं, संत-आत्माओं को पहचानते हैं। महान आत्माओं और मनुष्य-आत्माओं को पहचानते हैं। पर उस एक परम-आत्मा को नहीं पहचान पाए हैं। शायद इसीलिए हम धर्म के नाम पर एक दूसरे से अब तक लड़ते आए हैं। पर सत्य ज्ञान कभी भी बांटेगा नहीं वह सभी को एक करेगा। unite करेगा, और  इसे ही आध्यात्म कहा जाता है।  

इसमे कोई दो राय नहीं कि परमात्मा का संदेश है कि धर्म की रक्षा करने से आपकी रक्षा होती है पर यह बात भी तो स मझने की है परमात्मा तो आत्मा के धर्म की (आध्यात्म) की रक्षा करने को कहते हैं। जो कि है शांति और पवित्रता। शरीर का धर्म तो मौत के साथ ही छूट जाता है पर शांति और पवित्रता तो शरीर छूटने के बाद भी आत्मा को चाहिए ही होती हैं। और किसी भी धर्म में जन्मी आत्मा क्यों न हो सभी को शांति और सुकून की तलाश होती है। 

बहरहाल – हम सभी जानते हैं श्रीमद भगवदगीता पर अनेक विद्वानों ने अपने तरह से टीका-टिपण्णी की है। अपने अपने versions भी निकाले हैं । हमारा यहाँ ऐसा कोई इरादा नहीं है। हम सभी यह भी जानते हैं कि इतिहास के पिछले दौर में भारतीय पुस्तकों, धर्म-ग्रंथों को कई बार नष्ट भी किया गया है ऐसे में सम्पूर्ण सत्य का सामने आ पाना भी संभव नहीं है।

पर जितना सत्य भी हम इसमे से पाते हैं हम उसके लिए इस सर्व शस्त्र मई शिरोमणि कहलाने वाली गीता को और इसके स्वरूप को सुरक्षित रखने वालों को दिल से शुक्रिया अदा करते हैं। हमारा उद्देश्य गिगलर्स को बेस्ट आइडियास बेस्ट knowledge available कराना है। कहा जाता है संस्कृत भाषा के जनक आदि गुरु शंकराचार्य जी हैं। जिनका जन्म 17 वीं शताब्दी का बताया जाता है। अतः हम समझते हैं कि अवश्य ही गीता का ज्ञान देव-नागरी में बोल गया होगा जिसे उस समय काल के लोग बोल और समझा करते थे। हमने भी इसी उद्देश्य से गीता के इस अनमोल ज्ञान को भाषाओं में बांधने का प्रयास नही किया है । हमने एक सरल भाषा शैली का चुनाव किया जिससे सभी हिन्दी speaking बेल्ट के गिगलर्स इसे आसानी से समझ सकें। 

हाँ एक बात और – अगर हम सच में चाहते हैं कि गीत का ज्ञान हमे समझ आए तो हमे खुद को अर्जुन  यानि ज्ञान का अर्जन करने वाली आत्मा समझकर यह chapters सुनने चाहियें। 
कुरुक्षेत्र यानि कर्म क्षेत्र 
धर्मयुद्ध यानि – हमारे अपने अंदर अच्छाई और बुराई का युद्ध 
योग यानि आत्मा की परमात्मा से मिलने की विधि 

आइए शुरू करते हैं श्रीमदभगवद गीता 
श्रीमद् भगवद् गीता (Bhagavad Gita)
व्यास ऋषि द्वारा (Sage Vyasa)

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(hindi) Miss Padma

(hindi) Miss Padma

“कानून में अच्छी सफलता हासिल कर लेने के बाद मिस पद्मा को एक नया अनुभव हुआ, वह था जीवन का सूनापन। शादी को उसने एक अप्राकृतिक यानी unnatural बंधन मान लिया था और फ़ैसला कर लिया था कि आज़ाद रहकर जीवन जीऊँगी । पहले उसने एम. ए. की डिग्री ली, फिर कानून पास किया और प्रैक्टिस शुरू कर दी। वो सुंदर थी, जवान थी, बड़ा मीठा बोलती थी और काफ़ी टैलेंटेड भी थी। उसके रास्ते में कोई बाधा न थी। देखते-देखते वह अपने साथी नौजवान मर्द वकीलों को पीछे छोड़कर आगे निकल गयी और अब उसकी आमदनी कभी-कभी एक हजार से भी ऊपर बढ़ जाती थी ।

 अब उसे ज़्यादा मेहनत  और माथा-पच्ची  करने की ज़रुरत नहीं रही। मुकदमें ज़्यादातर  वही होते थे, जिनका उसे पूरा अनुभव हो चुका था, उसके बारे में किसी तरह की तैयारी करने की उसे जरूरत महसूस नहीं होती थी । उसे अपनी काबिलियत पर विश्वास भी हो गया था। कानून में कैसे केस जीता जाता है, इसके कुछ पैंतरे भी उसे मालूम हो गये थे। इसलिये अब उसे बहुत छुट्टी मिल जाया करती थी और इसे वह किस्से-कहानियाँ पढ़ने में, सैर करने में, सिनेमा देखने , मिलने-मिलाने में बिताती थी। जीवन को सुखी बनाने के लिए किसी शौक की जरूरत को वह खूब समझती थी।

 उसने फूल और पौधे लगाने का शौक पाल लिया था। वो तरह-तरह के बीज और पौधे मँगाती औऱ उन्हें उगते-बढ़ते, फूलते-फलते देखकर खुश होती; मगर जीवन में सूनपने का अनुभव होता रहता था। यह बात न थी कि उसे आदमी पसंद न थे। नहीं, उसके प्रेमियों की कमी न थी। अगर उसके पास सिर्फ़ रूप और जवानी होती , तो भी उसके चाहने वालों की कोई कमी न होती; मगर यहाँ तो रूप और जवानी  के साथ दौलत भी थी। फिर ये प्रेमी क्यों चूक रहे थे? पद्मा को ऐशो आराम से घृणा नहीं थी, घृणा थी गुलामी  से, शादी  को बिज़नेस बनाने से। जब आज़ाद रहकर भोग-विलास का मज़ा उठाया जा सकता है, तो फिर क्यों न उड़ाया जाय? भोग में उसे कोई बुराई नहीं दिखती थी, वो इसे सिर्फ़ शरीर की एक भूख या ज़रुरत समझती थी।

 इस भूख को किसी साफ-सुथरी दुकान से भी शान्त किया जा सकता है और पद्मा को साफ-सुथरी दुकान की हमेशा तलाश रहती थी। ग्राहक दुकान में वही चीज लेता है, जो उसे पसन्द आती है। पद्मा भी वही चीज चाहती थी। यूँ तो उसके हज़ारों  आशिक थे- कई वकील, कई प्रोफेसर, कई डॉक्टर, कई रईस। मगर ये सब-के-सब ऐय्याश थे- बेफिक्र , सिर्फ़ भँवरे की तरह रस लेकर उड़ जाने वाले। ऐसा एक भी न था, जिस पर वह विश्वास कर सकती थी । अब उसे मालूम हुआ कि उसका मन सिर्फ़ भोग नहीं चाहता था, कुछ और भी चाहता था। लेकिन वह चीज क्या थी? वो था पूरा आत्म-समर्पण और यह उसे नहीं मिल रहा था।

उसके प्रेमियों में एक मि. प्रसाद था- बड़ा ही ख़ूबसूरत और धुरन्धर विद्वान। एक कॉलेज में प्रोफेसर था। वह भी आज़ादी से जीने वाली बात को मानता था  और पद्मा उस पर फिदा थी। चाहती थी उसे बाँधकर रखे, पूरी तरह से  अपना बना ले; लेकिन प्रसाद चंगुल में न आता था।

एक दिन शाम का वक़्त था। पद्मा सैर करने जा रही थी कि प्रसाद आ गये। सैर करना टल गया। बातचीत में सैर से कहीं ज्यादा आनन्द था और पद्मा आज प्रसाद से दिल की बात कहने वाली थी। कई दिन के सोच-विचार के बाद उसने कह डालने का फ़ैसला किया था ।
उसने प्रसाद की नशीली आँखों से आँखें मिलाकर कहा- “तुम यहीं मेरे बँगले में आकर क्यों नहीं रहते?”

प्रसाद ने शरारत वाली हँसी के साथ कहा- “नतीजा यह होगा कि दो-चार महीने में यह मुलाकात बन्द हो जायेगी”।
'मेरी समझ में नहीं आया, तुम्हारा मतलब क्या है।'
'मतलब  वही है, जो मैं कह रहा हूँ।'
'आखिर क्यों?'

'मैं अपनी आज़ादी खोना नहीं चाहूँगा, तुम अपनी आज़ादी नहीं खोना चाहोगी। तुम्हारे पास तुम्हारे आशिक आयेंगे, मुझे जलन होगी। मेरे पास मेरी प्रेमिकाएँ आयेंगी, तुम्हें जलन होगी। मनमुटाव होगा, फिर अलगाव होगा और तुम मुझे घर से निकाल दोगी। घर तुम्हारा है ही! मुझे बुरा लगेगा, फिर यह दोस्ती कैसे निभेगी?'

दोनो कई मिनट तक चुप रहे। प्रसाद ने सब कुछ इतने साफ़-साफ़ , लट्ठमार शब्दों में खोलकर रख दिया था कि कुछ कहने की जगह नहीं मिल रही थी।
आखिर प्रसाद को कुछ सूझा। वो बोला- “जब तब हम दोनों यह कसम न खा  लें कि आज से मैं तुम्हारा हूँ और तुम मेरी हो, तब तक एक साथ जीना मुमकिन  नहीं है !”

'तुम यह वचन दोगे ?'
'पहले तुम बताओ।'
'मैं करूँगी।'
'तो मैं भी करूँगा।'
'मगर इस एक बात के सिवा मैं और सभी बातों में आज़ाद रहूँगी!'
'और मैं भी इस एक बात के सिवा हर बात में आज़ाद रहूँगा।'
'मंजूर।'
'मंजूर!'
'तो कब से?'
'जब से तुम कहो।'
'मैं तो कहती हूँ, कल से ही ।'
'तय। लेकिन अगर तुमने इसके खिलाफ़ जाकर कुछ किया तो?'
'और तुमने किया तो?'

'तुम मुझे घर से निकाल सकती हो; लेकिन मैं तुम्हें क्या सजा दूँगा?'
'तुम मुझे छोड़ देना, और क्या करोगे?'
'जी नहीं, तब इतने से मन को शान्ति नहीं  मिलेगी। तब मैं चाहूँगा तुम्हे जलील करना; बल्कि तुम्हारी हत्या करना।'
'तुम बहुत निर्दयी हो, प्रसाद?'

'जब तक हम दोनों आज़ाद हैं, हमें किसी को कुछ कहने का हक नहीं, लेकिन एक बार बंधन में बँध जाने के बाद फिर न मैं इसके खिलाफ़ जाने की बात सह सकूँगा, न तुम सह सकोगी। तुम्हारे पास सज़ा देने का ज़रिया है, मेरे पास नहीं है। कानून मुझे कोई भी अधिकार नहीं देगा। मैं तो सिर्फ़ अपने ताकत से वचन का पालन करूँगा और तुम्हारे इतने नौकरों के सामने मैं अकेला क्या कर सकूँगा?'

'तुम तो तस्वीर का नेगेटिव पहलू ही देखते हो! जब मैं तुम्हारी हो रही हूँ, तो यह मकान, नौकर-चाकर और जायदाद सब कुछ तुम्हारा भी है। हम-तुम दोनों जानते हैं कि जलन  से ज्यादा घृणित कोई सामाजिक पाप नहीं है। तुम्हें मुझ से प्रेम है या नहीं, मैं नहीं कह सकती; लेकिन तुम्हारे लिए मैं सब कुछ सहने, सब कुछ करने के लिए तैयार हूँ।'

'दिल से कह रही हो पद्मा?'
'सच्चे दिल से।'
'मगर न-जाने क्यों तुम्हारे ऊपर विश्वास नहीं हो रहा है?'
'मैं तो तुम्हारे ऊपर विश्वास कर रही हूँ।'
'यह समझ लो, मैं मेहमान बनकर तुम्हारे घर में नहीं रहूँगा, मालिक  बनकर रहूँगा।'
'तुम घर के मालिक  ही नहीं , मेरे पति बनकर रहोगे। मैं तुम्हारी पत्नी  बन कर रहूँगी।'

Puri Kahaani Sune..

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(hindi) PANCH PARMESHWAR

(hindi) PANCH PARMESHWAR

“जुम्मन शेख और अलगू चौधरी में गहरी दोस्ती थी। साथ में खेती करते थी। कुछ लेन-देन में भी पार्टनरशिप थी। उन्हें एक दूसरे पर पूरा भरोसा था। जुम्मन जब हज करने गये थे, तब अपना घर अलगू को सौंप गये थे, और अलगू जब कभी बाहर जाते, तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ देते। उनमें न खान-पान का व्यवहार था, न धर्म का नाता; सिर्फ सोच मिलती थी। दोस्ती का मूलमंत्र भी यही है।

इस दोस्ती का जन्म उस समय हुआ, जब दोनों दोस्त बच्चे थे; और जुम्मन के पूज्य पिता, जुमराती, उन्हें पढ़ाया करते थे। अलगू ने गुरु जी की बहुत सेवा की थी, खूब प्लेटें माँजी, खूब प्याले धोये। उनका हुक्का एक पल के लिए भी आराम न लेने पाता था; क्योंकि हर चिलम अलगू को आध घंटे तक किताबों से अलग कर देती थी। अलगू के पिता पुरानी सोच के आदमी थे। उन्हें पढ़ाई से ज्यादा गुरु की सेवा पर  यकीन था। वह कहते थे कि विद्या पढ़ने से नहीं आती; जो कुछ होता है, गुरु के आशीर्वाद से होता है । बस, गुरु जी की दया चाहिए। इसलिए अगर अलगू पर जुमराती शेख के आशीर्वाद या साथ का कुछ असर न हुआ, तो वो यह मानकर संतोष कर लेंगे कि पढ़ाई इसके बस की बात नहीं, विद्या उसके भाग्य में थी ही नहीं , तो कैसे आती ?

मगर जुमराती शेख खुद आशीर्वाद को ज़्यादा महत्त्व नहीं देते थे। उन्हें अपनी छड़ी पर ज्यादा भरोसा था, और उसी छड़ी के कारण आज आस-पास के गाँवों में जुम्मन की पूजा होती थी। उनके लिखे हुए कागजात पर अदालत का मुंशी भी कलम न उठा सकता था। हलके का डाकिया, कांस्टेबल और तहसील का चपरासी-सब उनकी दया की इच्छा रखते थे। इसलिए अलगू का मान उनके धन के कारण था, तो जुम्मन शेख को उनकी अनमोल विद्या ने इज्जतदार बनाया था।

जुम्मन शेख की एक बूढ़ी खाला (मौसी) थी। उसके पास कुछ थोड़ी-सी ज़मान जायदाद  थी; लेकिन उसके पास के रिश्तेदारों में कोई न था। जुम्मन ने लम्बे-चौड़े वादे करके वह जायदाद अपने नाम लिखवा ली थी। जब तक दानपत्र की रजिस्ट्री न हुई, तब तक खालाजान का खूब ख्याल रखा गया। उन्हें खूब अच्छा खाना खिलाया गया। हलवे-पुलाव की बारिश की गयी; पर रजिस्ट्री की मोहर ने इन खातिरदारियों पर भी मानो मुहर लगा दी। जुम्मन की पत्नी करीमन रोटियों के साथ कड़वी बातों के तेज, तीखे सालन भी देने लगी। जुम्मन शेख भी बदल गये। अब बेचारी खालाजान को अक्सर रोज ही ऐसी बातें सुननी पड़ती थीं।

बुढ़िया न जाने कब तक जियेगी। दो-तीन बीघे ज़मीन क्या दे दिए, मानो ख़रीद लिया हो ! अगर दाल में तड़का ना लगा हो तो उनके गले से रोटियाँ नहीं उतरतीं थीं ! जितना रुपया इसके पेट में झोंक चुके, उतने में तो अब तक गाँव ख़रीद लेते।

कुछ दिन खालाजान ने सुना और सहा; पर जब न सहा गया तब जुम्मन से शिकायत की। जुम्मन ने घर की मालिकन के मैनेजमेंट में दखल देना सही न समझा। कुछ दिन तक और यों ही रो-धोकर काम चलता रहा। आखिर एक दिन खाला ने जुम्मन से कहा- “”बेटा ! तुम्हारे साथ मेरा गुजारा न होगा। तुम मुझे रुपये दे दिया करो, मैं अपना पका कर खा लूँगी।””

जुम्मन ने बेशर्मी से जवाब दिया- “”रुपये क्या यहाँ पेड़ पर उगते  हैं ?””

खाला ने नम्रता से कहा- “”मुझे कुछ रूखा-सूखा चाहिए भी कि नहीं?””

जुम्मन ने गम्भीर आवाज़ से जवाब दिया- “”तो कोई यह थोड़े ही समझा था कि तुम मौत से लड़कर आयी हो?””

खाला बिगड़ गयीं, उन्होंने पंचायत में जाने की धमकी दी। जुम्मन हँसे, जिस तरह कोई शिकारी हिरण  को जाल की तरफ जाते देख कर मन ही मन हँसता है। वह बोले- “”हाँ, जरूर पंचायत करो। फैसला हो जाय। मुझे भी यह रात-दिन की खटखट पसंद नहीं।””

पंचायत में किसकी जीत होगी, इस बारे में जुम्मन को कोई भी शक न था। आस-पास के गाँवों में ऐसा कौन था, जो उसके एहसान में दबा न हो; ऐसा कौन था, जो उसे दुश्मन बनाने की हिम्मत कर सके ? किसमें इतना दम था , जो उसका सामना कर सके ? आसमान के फरिश्ते तो पंचायत करने आएँगे  नहीं।

Puri Kahaani Sune…

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(hindi) SHARAB KI DUKAN

(hindi) SHARAB KI DUKAN

“कांग्रेस कमेटी में यह सवाल पेश था- “”शराब और ठेके की दुकानों पर कौन धरना देने जाय?”” कमेटी के पच्चीस मेंबर सिर झुकाये बैठे थे; पर किसी के मुँह से बात न निकल। मामला बड़ा नाजुक था। पुलिस के हाथों गिरफ्तार हो जाना तो ज्यादा मुश्किल बात न थी।

 पुलिस के कर्मचारी अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं। हालांकि अच्छे और बुरे तो सभी जगह होते हैं, लेकिन पुलिस के अफसर, कुछ लोगों को छोड़ कर, सभ्यता से इतने खाली नहीं होते कि जाति और देश पर जान देने वालों के साथ बुरा व्यवहार करें; लेकिन नशेबाजों में यह जिम्मेदारी कहाँ? उनमें तो ज्यादातर ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें धमकी के सिवा और किसी ताकत के सामने झुकने की आदत नहीं होती ।

Puri Kahaani Sune..

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(hindi) The Adventure of the Six Napoleons

(hindi) The Adventure of the Six Napoleons

“हमें शाम को मिलने आना स्कॉटलैंड यार्ड के इंस्पेक्टर मिस्टर लेस्ट्रेड के लिए बहुत नई बात नहीं थी और शरलॉक हमेशा उनका स्वागत करता था क्योंकि उन्हीं से शरलॉक को पुलिस हेडक्वार्टर में क्या चल रहा हैं, वो सब पता चलता रहता था. लेस्ट्रेड जो भी न्यूज़ लेकर आते, उसके बदले में, होम्स हमेशा उन केसेस के डिटेल्स पर अपना ध्यान लगाता था जिन केसेस में डिटेक्टिव खुद इन्वॉल्व होते थे, और कभी कभार बिना इंटरफेयर किए होम्स अपने गहरे नॉलेज और एक्सपीरियंस से इशारों- इशारों में सलाह दे देता था.

आज की शाम लेस्ट्रेड ने मौसम और न्यूज़पेपर की बात की थी. फिर वो चुप हो गए और अपना सिगार पीने लगे. होम्स ने उनकी ओर बड़े गौर से देखा.
“”आपके हाथ में कोई बढ़िया केस आया हैं?”” शरलॉक ने पूछा.
“”ओह, नहीं, मिस्टर होम्स, कुछ खास नहीं हैं.””
“”तब तो मुझे ज़रुर बताइए.””
लेस्ट्रेड हँसे.

“वेल,  मिस्टर होम्स. मेरे दिमाग में कुछ चल रहा हैं, इस बात से इनकार करने का कोई फायदा नहीं हैं. और फिर भी ये कितना बेतुका सा हैं कि मैं आपको इसके बारे में परेशान करने में हिचकिचा रहा हूँ. दूसरी ओर, ये एक कोई बड़ी केस नहीं हैं, हाँ अजीब ज़रूर हैं, और मुझे पता हैं  कि आपको सिर्फ उन मामलों में दिलचस्पी है जो आम नहीं होते. लेकिन मेरी राय में ये हम से ज़्यादा डॉ. वॉटसन की लाइन से जुड़ा हैं.
“” किसी बीमारी से ?”” मैंने पूछा.
“”रोग?”” मैंने पूछा.
“पागलपन. वो भी एक अजीब तरह का पागलपन! आपको नहीं लगता होगा कि आज के ज़माने में कोई ऐसा भी हैं रहता हैं जिसे नेपोलियन से इतनी नफरत हैं कि वो उसकी किसी भी बूत को तोड़ दे,  वो बिलकुल उन्हें बर्दाश्त नहीं कर सकता.””
होम्स वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया.
“”इसमें मेरा काम नहीं हैं ,”” शरलॉक ने कहा.
“”एग्जैक्टली, मैं भी वही कह रहा हूँ. लेकिन तब, जब कोई आदमी उन बूत को तोड़ने के लिए चोरी करता हैं , जो उसका अपना हैं ही नहीं, तो ये बात उसे डॉक्टर से पुलिस की तरफ ले जाती हैं. ”
होम्स फिर से बैठ गया.

“”चोरी! ये तो बहुत इंटरेस्टिंग हैं . मुझे डिटेल सुन लेना चाहिए.”
लेस्ट्रेड ने अपनी पुलिस की नोट-बुक निकाली और उन पन्नों को देखकर अपनी यादों को ताज़ा किया.
उन्होंने कहा, “”पहला मामला चार दिन पहले रिपोर्ट किया गया था.”” “ये घटना मोर्स हडसन की दुकान का था, जिसका केनिंगटन रोड में तस्वीरों और मूर्तियों को बेचने के लिए एक जगह हैं. उसके असिस्टेंट ने एक पल के लिए फ्रंट ऑफिस को छोड़ा ही था कि जब उसे अचानक चीज़ों के टूटने की आवाज़ आई और फ़ौरन जब वो भागकर गया तो बस्ट ऑफ़ नेपोलियन की प्लास्टर की मूर्ति के साथ और भी आर्ट वर्क सामने काउंटर पर टुकड़ों में पड़े हुए थे.  वो सड़क पर भाग कर गया, लेकिन वहां आने-जाने वालों ने बताया कि उन्होंने एक आदमी को दुकान से बाहर भागते हुए देखा था,  लेकिन असिस्टेंट न तो किसी को देख पाया था और न ही उस बदमाश की पहचान करने के लिए कोई सबूत मिले थे. ये कभी- कभार घटने वाली गुंडागर्दी जैसा लगता हैं और इसे बीट कांस्टेबल को रिपोर्ट किया गया था. प्लास्टर कास्ट कुछ शिलिंग से ज़्यादा दाम के नहीं थे इसलिए इसके लिए कोई भी ज़रूरी तहकीकात  करना बहुत बचकाना लगता था.

“”हालांकि दूसरा मामला ज़्यादा गंभीर है और अपने आप में एक इकलौता मामला था. ये कल रात की ही घटना है.
“केनिंगटन रोड में, और मोर्स हडसन की दुकान के कुछ सौ गज की दूरी पर एक मशहूर डॉ. मिस्टर बार्निकोट रहते  हैं, जो थेम्स नदी के साउथ की तरफ की सबसे बड़ी प्रैक्टिस में से एक हैं. उनका घर और कंसल्टिंग-रूम दोनों ही केनिंग्टन रोड पर हैं , लेकिन दो मील दूर लोवर ब्रिक्सटन रोड में उनका एक और ब्रांच और डिस्पेंसरी हैं. डॉ बार्निकोट को नेपोलियन बहुत पसंद हैं और उनका घर इन फ्रेंच शहंशाह नेपोलियन की किताबों, तस्वीरों और उनकी चीज़ों से भरा हुआ है . कुछ समय पहले उन्होंने मोर्स हडसन से फ्रेंच मूर्तिकार, डिवाइन की बनाई हुई फेमस नेपोलियन के सिर के दो डुप्लीकेट प्लास्टर कास्ट खरीदे थे. इनमें से एक को उन्होंने केनिंगटन रोड के घर के अपने हॉल में, और दूसरे को लोवर ब्रिक्सटन में क्लिनिक के मेंटलपीस पर रखा. खैर, आज सुबह जब डॉ. बार्निकोट जब अपने घर पहुंचे, तो वो ये जानकर हैंरान रह गए कि उनके घर में रात को चोरी हुई थी, लेकिन हॉल से प्लास्टर के सिर के अलावा और कुछ भी चोरी नहीं हुआ था. इसे चुराकर बाहर ले जाया गया था और गार्डन की दीवार से मारकर बुरी तरह से तोड़ दिया गया था, इसके टूटे हुए टुकड़े दिवार के नीचे पड़े हुए थे. ”

होम्स ने अपने हाथों को रगड़ा.
“”ये वाकई नया मामला हैं ,”” उसने कहा.
“”मुझे लगा कि ये आपको खुश करेगा लेकिन मेरी बात खत्म नहीं हुई हैं. डॉ बार्निकोट बारह बजे अपनी क्लिनिक में पहुंचे तो आप उनकी हैरानी के बारे में अंदाज़ा लगा सकते हैं, जब वहां पहुंचने पर, उन्होंने देखा कि रात में किसी ने खिड़की खोल दी थी, और उनके दूसरे बस्ट के टूटे हुए टुकड़े भी पुरे कमरे में बिखरे हुए थे. जहां इसे रखा गया था, वहां इसके बहुत छोटे-छोटे टुकड़े बिखरे पड़े थे. दोनों ही मामले में ऐसे कोई भी क्लू नहीं मिले जो हमें उस बदमाश का सुराग दे सके. अब, मिस्टर होम्स, आपको सारी बातें बता चूका हूँ.

होम्स ने कहा, “”ये अपनी ही तरह का एक केस तो हैं, लेकिन अजीब नहीं हैं.”” “”क्या मैं पूछ सकता हूँ कि क्या डॉ. बार्निकोट के रूम में जो दो बस्ट तोड़े गए थे, क्या वो वैसे ही थे जैसे कि मोर्स हडसन की दुकान में तोड़े गए थे?””
“”वे सब एक ही साँचे से लिए गए थे.””
“”ये सच इस बात के खिलाफ हैं कि ये जो भी आदमी उन्हें तोड़ता हैं, उसे नेपोलियन से नफरत हैं. ये देखते हुए कि महान सम्राट नेपोलियन की सैकड़ों मूर्तियाँ लंदन में मौजूद हैं, ये एक इत्तफ़ाक़ हैं कि एक ही तरह के तीन नमूनों को तोड़ा गया हैं. ”
“”वेल, आपकी ही तरह मुझे भी ऐसा ही लगा.”” लेस्ट्रेड ने कहा. “ ये मोर्स हडसन लंदन के उसी हिस्से में डीलर हैं, और ये तीनों ही ऐसे थे जो सालों से उसकी दुकान में थे. हालांकि, जैसा कि आप कहते हैं, लंदन में कई सौ मूर्तियां हैं, ये हो सकता हैं  कि इस डिस्ट्रिक्ट में सिर्फ ये तीनों हैं. इसलिए, एक लोकल सनकी यहीं से इसकी शुरुवात करेगा. आपको क्या लगता हैं डॉ. वॉटसन?

ऐसे धुन की कोई हद नहीं होती, ”मैंने जवाब दिया. “” ऐसे हालात को मॉडर्न फ्रेंच साइक्लोजिस्ट ने 'आइडे फिक्स' ('idee fixe,') कहा हैं , जो किसी के कैरेक्टर में कुछ कमी लाता हैं , वैसे उन्हें बाकी बातों में पूरी समझ होती हैं. एक शख्स जिसने नेपोलियन के बारे में गहराई से पढ़ा हैं, या शायद जिसके परिवार में जंग के कारण कुछ नुकसान उठाना पड़ा होगा, वही इस तरह के 'आइडे फिक्स' का शिकार हो सकता हैं जिसके असर से उसने इस तरह से अपनी भड़ास निकाली हैं.””
होम्स ने अपना सिर हिलाते हुए कहा, “”ऐसा नहीं लगता, मेरे प्यारे वॉटसन,”” ‘आइडे फिक्स' जितना ही क्यों न हो लेकिन वो इस पागलपन के हद तक इन मूर्तियों को कहाँ ढूंढ़ना हैं, ये नहीं मालूम कर सकता था.””

“”अच्छा, तो तुम इसे कैसे समझाओगे?””

“मैं समझाने की कोशिश नहीं कर रहा. मैं सिर्फ ये देख रहा हूँ कि इस शख्स के पागलपन का भी एक तरीका हैं. Example के लिए, डॉ. बार्निकोट के हॉल में, जहाँ कोई भी आवाज़ फैमिली को चौकन्ना कर सकती थी, तोड़ने से पहले बस्ट को बाहर ले जाया जाता हैं , जबकि क्लिनिक में, जहाँ अलार्म बजने का डर नहीं होता हैं , वहां बस्ट जहाँ रखा था, वहीं इसे तोड़ दिया गया था. ये चक्कर बहुत बेतुका लगता हैं  लेकिन फिर भी मैं किसी को भी कम नहीं मानता हूँ क्योंकि मेरे कुछ सबसे क्लासिक केस के शुरुवात में ऐसे ही कमियां देखी गई थी. तुम्हें तो याद होगा, वॉटसन, एबरनेटी फैमिली के खतरनाक काम की तरफ मेरा ध्यान कैसे खिंचा, कैसे एक गर्म दिन में बटर में पार्सले के पत्ता डूबा था. इसलिए, मैं इन तीन टूटे हुए बस्ट केस पर हंस नहीं सकता, लेस्ट्रेड. और आप मुझे इस घटना से जुडी कोई भी नई बात हो तो ज़रूर बताइएगा, मैं आपका बहुत आभारी रहूँगा. “”

Puri Kahaani Sune….

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(hindi) Julus

(hindi) Julus

“पूर्ण स्वराज्य का जुलूस निकाल रहा था। कुछ लड़के, कुछ बूढ़े, कुछ बच्चे झंडियाँ और झंडे लिये वंदेमातरम् गाते हुए माल के सामने से निकले। दोनों तरफ दर्शकों की दीवारें खड़ी थीं, मानो उन्हें इससे कोई लेना देना नहीं हैं, मानो यह कोई तमाशा हो और उनका काम सिर्फ खड़े-खड़े देखना था।

शंभूनाथ ने  दुकान  की पटरी पर खड़े होकर अपने पड़ोसी दीनदयाल से कहा- “”सब के सब मौत के मुँह में जा रहे हैं। आगे सवारों का दल मार-मारकर भगा देगा।””

दीनदयाल ने कहा- “”महात्मा जी भी सठिया गये हैं। जुलूस निकालने से आजादी मिल जाती तो अब तक कब की मिल गई होती और जुलूस में हैं कौन लोग, देखो, आवारा, गुंडे, पागल। शहर का कोई बड़ा आदमी नहीं है ।””

मैकू चप्पलों और स्लीपरों की माला गरदन में लटकाये खड़ा था। वो इन दोनों सेठों की बातें सुनकर हँसा।

शंभू ने पूछा- “”क्यों हँसे मैकू? आज रंग अच्छा मालूम होता है”।

मैकू- “”हँसा इस बात पर जो तुमने कही कि कोई बड़ा आदमी जुलूस में नहीं है। बड़े आदमी क्यों जुलूस में आने लगे, उन्हें इस राज में कौन सा आराम नहीं मिल रहा है? बँगलों और महलों में रहते हैं, मोटरों में  घूमते हैं, साहबों के साथ दावतें खाते हैं, उन्हें कौन सी तकलीफ है ! मर तो हम लोग रहे हैं जिनकी रोटियों का ठिकाना नहीं है । इस समय कोई टेनिस खेलता होगा, कोई चाय पीता होगा, कोई ग्रामोफोन लिए गाना सुनता होगा, कोई पार्क की सैर करता होगा, यहाँ कौन आये पुलिस के कोड़े खाने के लिए? तुमने भी भली कही?””

शंभू- “”तुम यह सब बातें क्या समझोगे मैकू, जिस काम में चार बड़े आदमी आगे हो जाते हैं उसका  सरकार पर भी दबदबा बन जाता है । आवारा-गुंडों का गोल भला अफसरों की नजर में क्या जँचेगा?””

मैकू ने ऐसी नजर से देखा, जो कह रही थी, इन बातों के समझने का ठेका तुम्हीं ने नहीं लिया है और बोला- “”बड़े आदमी को तो हमी लोग बनाते-बिगाड़ते हैं या कोई और? कितने ही लोग जिन्हें कोई पूछता भी न था, हमारे ही बनाने से बड़े आदमी बन गये और अब मोटरों में निकलते हैं और हमें नीच समझते हैं। यह लोगों की तकदीर की खूबी है कि जिसकी ज़रा सी भी बढ़ गई और उसने हमसे आँखें फेरीं। हमारा बड़ा आदमी तो वही है, जो लँगोटी बाँधे नंगे पाँव घूमता है, जो हमारे  हालात को सुधारने के लिए अपनी जान हथेली पर लिये फिरता है और हमें किसी बड़े आदमी की परवाह नहीं है। सच पूछो तो इन बड़े आदमियों ने ही हमारी हालत खराब कर रखी है। इन्हें सरकार ने कोई अच्छी-सी जगह दे दी, बस उसका दम भरने लगे।””

दीनदयाल- “”नया दारोगा बड़ा जल्लाद है। चौरस्ते पर पहुँचते ही हंटर लेकर पिल पड़ेगा। फिर देखना, सब कैसे दुम दबाकर भागते हैं। मजा आयेगा।””

जुलूस आजादी के नशे में चूर चौराहे पर पहुँचा तो देखा, आगे सवारों और सिपाहियों की एक टोली रास्ता रोके खड़ी है।

अचानक दारोगा बीरबल सिंह घोड़ा बढ़ा कर जुलूस के सामने आ गये और बोले- “”तुम लोगों को आगे जाने की इजाजत नहीं है।””

जुलूस के बूढ़े नेता इब्राहिम अली ने आगे बढ़कर कहा- “”मैं आपको तसल्ली दिलाता हूँ, किसी तरह का लड़ाई झगड़ा न होगा। हम दुकानें लूटने या मोटरें तोड़ने नहीं निकले हैं। हमारा मकसद इससे कहीं ऊँचा है।””

बीरबल- “”मुझे यह हुक्म है कि जुलूस यहाँ से आगे न जाने पाये।””

इब्राहिम- “”आप अपने अफसरों से जरा पूछ तो लें।””

बीरबल- “”मैं इसकी कोई जरूरत नहीं समझता।””

इब्राहिम- “”तो हम लोग यहीं बैठते हैं। जब आप लोग चले जायँगे तो हम निकल जायँगे।””

बीरबल- “”यहाँ खड़े होने का भी हुक्म नहीं है। तुम्हें वापस जाना पड़ेगा।””

इब्राहिम ने गंभीर भाव से कहा- “”वापस तो हम न जायेंगे। आपको या किसी को भी, हमें रोकने का कोई हक नहीं। आप अपने सवारों और बंदूकों के जोर से हमें रोकना चाहते हैं, रोक लीजिए, मगर आप हमें लौटा नहीं सकते। न जाने वह दिन कब आयेगा, जब हमारे लोग ऐसे हुक्म को मानने से साफ मना कर देंगे, जिनका इरादा सिर्फ देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़े रखना है।””

बीरबल ग्रेजुएट था। उसका बाप सुपरिंटेंडेंट पुलिस था। उसकी नस-नस में रौब भरा हुआ था। अफसरों की नजर में उसका बड़ा सम्मान था। काफी गोरा चिट्टा, नीली आँखों और भूरे बालों वाला रौबदार आदमी था। शायद जिस समय वह कोट पहन कर ऊपर से हैट लगा लेता तो वह भूल जाता था कि मैं भी यहाँ का रहने वाला हूँ। शायद वह खुद को अंग्रेज समझने लगता था; मगर इब्राहिम के शब्दों में जो अपमान  भरा हुआ था, उसने जरा देर के लिए उसे शर्मिंदा कर दिया। पर मामला नाजुक था। जुलूस को रास्ता दे देता, तो पूछताछ हो जायेगी; वहीं खड़ा रहने देता, तो यह सब न जाने कब तक खड़े रहें। इस परेशानी में पड़ा हुआ था कि उसने डी. एस. पी. को घोड़े पर आते देखा। अब सोचने का समय न था।

यही मौका था कुछ कर दिखाने का। उसने कमर से डंडा निकाल लिया और घोड़े को एड़ लगा कर जुलूस पर चढ़ाने लगा। उसे देखते ही और सवारों ने भी घोड़ों को जुलूस पर चढ़ाना शुरू कर दिया। इब्राहिम दारोगा के घोड़े के सामने खड़ा था। उसके सिर पर एक डंडा इतनी  जोर से पड़ा कि उसकी आँखें तिलमिला गयीं। वह खड़ा न रह सका। सिर पकड़ कर बैठ गया। उसी समय दारोगा जी के घोड़े ने दोनों पाँव उठाये और जमीन पर बैठा हुआ इब्राहिम उसकी टापों के नीचे आ गया। जुलूस अभी तक शांत खड़ा था। इब्राहिम को गिरते देख कर कई आदमी उसे उठाने के लिए लपके; मगर कोई आगे न बढ़ सका। उधर सवारों के डंडे बड़ी बेरहमी से पड़ रहे थे। लोग हाथों पर डंडों को रोकते थे और बिना डरे खड़े थे।

हिंसा के भावों से प्रभावित न हो जाना उसके लिए हर पल मुश्किल होता जाता था। जब मार और बेइज्जती ही सहना है, तो फिर हम भी इस दीवार को पार करने की क्यों न कोशिश करें? लोगों को खयाल आया शहर के लाखों आदमियों की नज़रें हमारी तरफ लगी हुई हैं। यहाँ से यह झंडा लेकर हम लौट जायँ, तो फिर किस मुँह से आजादी का नाम लेंगे; मगर जान बचाने के लिए भागने का किसी को ध्यान भी न आ रहा था। यह पेट के भक्तों, किराये के टट्टुओं का दल न था। यह आजादी के सच्चे स्वयंसेवकों का, आजादी के दीवानों का एकजुट दल था, अपनी जिम्मेदारियों को खूब समझता था। कितनों के सिर से खून बह रहा था, कितनों के हाथ जख्मी हो गये थे। एक हल्ले में यह लोग सवारों की कतारों को चीर सकते थे, मगर पैरों में बेड़ियाँ पड़ी हुई थीं, सिद्धान्त की, धर्म की, आदर्श की।

दस-बारह मिनट तक यों ही डंडों की बारिश होती रही और लोग शांत खड़े रहे।

Puri Kahaani Sune…

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(hindi) JAIL

(hindi) JAIL

“मृदुला मैजिस्ट्रेट की सुनवाई से औरतें जेल में वापस आयी, तो उसके चेहरे पर ख़ुशी थी । बरी हो जाने की गुलाबी उम्मीद उसके गालों पर चमक रही थी। उसे देखते ही राजनैतिक कैदियों के एक दल ने घेर लिया और पूछने लगीं- “”कितने दिन की हुई ?””

मृदुला ने जीत के गर्व से कहा- “”मैंने तो साफ-साफ कह दिया, मैंने धरना नहीं दिया। वैसे आप जबर्दस्त हैं, जो फैसला चाहें, करें। न मैंने किसी को रोका, न पकड़ा, न धक्का दिया, न किसी से मिन्नत की। कोई ग्राहक मेरे सामने आया ही नहीं। हाँ, मैं दुकान पर खड़ी ज़रूर थी। वहाँ कई वालंटियर गिरफ्तार हो गये थे। जनता जमा हो गयी थी। मैं भी खड़ी हो गयी। बस, थानेदार ने आकर मुझे पकड़ लिया।””

क्षमादेवी कुछ कानून जानती थीं। बोलीं- “”मैजिस्ट्रेट पुलिस के बयान पर फैसला करेगा। मैं ऐसे कितने ही मुकदमे देख चुकी हूँ ।””

मृदुला ने कहा – “”पुलिस वालों को मैंने ऐसा रगड़ा कि वह भी याद करेंगे। मैं मुकदमे की कार्रवाई में भाग न लेना चाहती थी; लेकिन जब मैंने उनके गवाहों को सरासर झूठ बोलते देखा, तो मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उनसे बहस करनी शुरू की। मैंने भी इतने दिनों घास नहीं खोदी है। थोड़ा- बहुत कानून जानती हूँ। पुलिस ने समझा होगा, यह कुछ बोलेगी तो है नहीं, हम जो बयान चाहेंगे, देंगे। जब मैंने बहस शुरू की, तो सब बगलें झाँकने लगे। मैंने तीनों गवाहों को झूठा साबित कर दिया। उस समय जाने कैसे मुझे कैसे ये सब सूझा । 

मैजिस्ट्रेट ने थानेदार को दो-तीन बार फटकार भी लगाई । वह मेरे सवालों का ऊल-जलूल जवाब देता था, तो मैजिस्ट्रेट बोल उठता, “वह जो कुछ पूछती हैं, उसका जवाब दो, फजूल की बातें क्यों करते हो”। तब मियाँ जी का मुँह जरा-सा हो जाता था । मैंने सभी का मुँह बंद कर दिया। अभी साहब ने फैसला तो नहीं सुनाया, लेकिन मुझे यकीन है, बरी हो जाऊँगी । मैं जेल से नहीं डरती; लेकिन बेवकूफ भी नहीं बनना चाहती । वहाँ हमारे मंत्री जी भी थे और बहुत-सी बहनें थीं। सब यही कहती थीं, तुम छूट जाओगी।””

औरतें उसे नफरत भरी आँखों से देखती हुई चली गयीं। उनमें से किसी की सजा साल-भर की थी, किसी की छह महिने की। उन्होंने अदालत के सामने जबान ही न खोली थी। उनके  हिसाब से यह अधर्म से कम न था। मृदुला पुलिस से बहस करके उनकी नजरों में गिर गयी थी। सजा हो जाने पर उसका व्यवहार माफ किया जा सकता था; लेकिन बरी हो जाने में तो उसका कुछ प्रायश्चित ही न था।

दूर जाकर एक औरत ने कहा- “”इस तरह तो हम लोग भी छूट जाते। हमें तो यह दिखाना है, अंग्रेजों से हमें इंसाफ की कोई उम्मीद ही नहीं है ।””

दूसरी औरत बोली- “”यह तो माफी माँग लेने के बराबर है। गयी तो थीं धरना देने, नहीं तो दुकान पर जाने का काम ही क्या था। वालंटियर गिरफ्तार हुए थे आपकी बला से। आप वहाँ क्यों गयीं; मगर अब कहती हैं, मैं धरना देने गयी ही नहीं। यह माफ़ी माँगना हुआ, साफ-साफ़  !””

तीसरी औरत मुँह बनाकर बोलीं- “”जेल में रहने के लिए बड़ा कलेजा चाहिए। उस समय तो वाह-वाह लूटने के लिए आ गयीं, अब रोना आ रहा है। ऐसी औरतों को तो देश के काम के पास ही न आना चाहिए। आंदोलन को बदनाम करने से क्या फायदा।””

सिर्फ क्षमादेवी अब तक मृदुला के पास चिंता में डूबी खड़ी थीं। उन्होंने एक हिम्मती भाषण देने के जुर्म में साल-भर की सजा पायी थी। दूसरे  जिले से एक महीना हुआ यहाँ आयी थीं। अभी सज़ा पूरी होने में आठ महीने बाकी थे। यहाँ की पंद्रह कैदिनों में किसी से उनका दिल न मिलता था। जरा-जरा सी बात के लिए उनका आपस में झगड़ना, बनाव-सिंगार की चीजों के लिए लेडी वार्डरों की खुशामद करना, घरवालों से मिलने के लिए बेचैनी दिखलाना उसे पसंद न था। वही बुराई और कानाफूसी जेल के अंदर भी थीं। वह स्वाभिमान , जो उसके हिसाब में एक पोलिटिकल कैदी में होनी  चाहिए, किसी में भी न थी ।

क्षमा उन सभी से दूर रहती थी। उसके जाति के लिए प्यार की हद न थी। इस रंग में रंगी हुई थी; पर दूसरी औरतें उसे घमंडी समझती थीं और रुखाई  का जवाब रुखाई  से देती थीं। मृदुला को हिरासत में आये आठ दिन हुए थे। इतने ही दिनों में क्षमा को उससे खास लगाव हो गया था। मृदुला में वह छोटापन और जलन न थी, न किसी की बुराई करने की आदत, न शृंगार की धुन, न भद्दी दिल्लगी का शौक। उसके दिल में दया थी, सेवा का भाव था, देश के लिए प्यार था। क्षमा ने सोचा था, इसके साथ छह महीने खुशी से कट जायँगे; लेकिन बदकिस्मती यहाँ भी उसके पीछे पड़ी हुई थी । कल मृदुला यहाँ से चली जायगी। वह फिर अकेली हो जायगी। यहाँ ऐसा कौन है जिसके साथ पल भर बैठ कर अपना दुख-दर्द सुनायेगी, देश की बात करेगी; यहाँ तो सभी के घमंड आसमान पर हैं।

मृदुला ने पूछा- “”तुम्हें तो अभी आठ महीने बाकी हैं, बहन !””

क्षमा ने दुख के साथ कहा- “”किसी-न-किसी तरह कट ही जायँगे बहन ! पर तुम्हारी याद बराबर सताती रहेगी। इसी एक हफ्ते के अन्दर तुमने मुझ पर न जाने क्या जादू कर दिया। जब से तुम आयी हो, मुझे जेल जेल जैसा नहीं लगता। कभी-कभी मिलती रहना।””

मृदुला ने देखा, क्षमा की आँखें भरी हुई थीं। वो उसे हौसला देती हुई बोली- “”जरूर मिलूँगी दीदी ! मुझसे तो खुद न रहा जायगा। भान को भी लाऊँगी। कहूँगी, 'चल, तेरी मौसी आयी है, तुझे बुला रही है।' दौड़ा हुआ आयेगा। अब तुमसे आज कहती हूँ बहन, मुझे यहाँ किसी की याद आती थी, तो भान की। बेचारा रोता  होगा। मुझे देख कर रूठ जायगा। 'तुम कहाँ चली गयीं ? मुझे छोड़ कर क्यों चली गयीं ? जाओ, मैं तुमसे नहीं बोलता, तुम मेरे घर से निकल जाओ।' बड़ा शैतान है बहन ! पल-भर शांत नहीं बैठता, सबेरे उठते ही गाता है-‘झन्ना ऊँता लये अमाला’ (झंडा ऊंचा रहे हमारा) ‘छोलाज का मन्दिर देल में है।’ 

स्वराज का मंदिर जेल में है) जब एक झंडी कन्धे पर रख कर कहता है-‘ताली-छलाब पीनी हलाम है’ (ताड़ी-शराब पीनी हराम है) तो देखते ही बनता है। बाप को तो कहता है, 'तुम गुलाम हो।' वह एक अंग्रेज़ी कम्पनी में हैं, बार-बार नौकरी छ़ोडने का सोच के रह जाते हैं। लेकिन गुजर-बसर के लिए कोई काम करना ही पडे़गा। कैसे छोड़ें। वह तो छोड़ बैठे होते। तुमसे सच कहती हूँ, गुलामी से उन्हें नफरत है, लेकिन मैं ही समझाती रहती हूँ। बेचारे कैसे दफ़्तर जाते होंगे, कैसे भान को सँभालते होंगे। सास जी के पास तो रहता ही नहीं। वह बेचारी बूढ़ी, उसके साथ कहाँ-कहाँ दौड़ें ! चाहती हैं कि मेरी गोद में दुबक  कर बैठा रहे और भान को गोद से चिढ़ है। अम्माँ मुझ पर बहुत बिगडे़ंगी, बस यही डर लग रहा है।

मुझे देखने एक बार भी नहीं आयीं। कल अदालत में बाबू जी मुझसे कहते थे, तुमसे बहुत नाराज हैं। तीन दिन तक तो दाना-पानी छोड़े रहीं। इस लड़की ने खानदखन का नाम डुबा दिया, खानदान में दाग लगा दिया, कलमुँही, कुलच्छनी न जाने क्या-क्या बकती रहीं। मैं उनकी बातों का बुरा नहीं मानती ! पुराने जमाने की हैं। उन्हें कोई चाहे कि आकर हम लोगों में मिल जायँ, तो यह उसका अन्याय है। चल कर मनाना पड़ेगा। बड़ी मिन्नतों से मानेंगी। कल ही कथा होगी, देख लेना। ब्राह्मण खायेंगे। बिरादरी जमा होगी। जेल का प्रायश्चित्त तो करना ही पड़ेगा। तुम हमारे घर दो-चार दिन रह कर तब जाना बहन ! मैं आ कर तुम्हें ले जाऊँगी।””

Puri Kahaani Sune…

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(hindi) The Adventure of the Abbey Grange

(hindi) The Adventure of the Abbey Grange

“साल 1897 की सर्दियों का मौसम था. एक दिन कड़ाके की ठंड में सुबह-सुबह किसी ने मुझे कंधो से झकझोरते हुए उठाया. वो और कोई नहीं बल्कि मेरा दोस्त शरलॉक होम्ज़ था. वो मुझ पर झुका हुआ था, जब मैंने उसके हाथ की मोमबत्ती की रौशनी में उसका परेशान सा चेहरा देखा तो मैं तुंरत समझ गया कि जरूर कुछ गड़बड़ है. 

उसने मुझसे कहा “उठो वॉटसन, उठ जाओ. सोने का वक्त नहीं है, एक केस आया है, चुपचाप से कपड़े पहनो और मेरे साथ चलो” 

दस मिनट बाद हम दोनों कैब में बैठकर सुनसान रास्तों से होते हुए चैरिंग  क्रोस स्टेशन की तरफ जा रहे थे. कोहरे की चादर को चीरती सुबह की धुधंली रौशनी में हमें रास्तो पर इक्का-दुक्का लोग चलते हुए दिखाई दे रहे थे. अपने भारी भरकम ऊनी कोट में सिकुड़कर होम्ज़ खामोशी से बैठा रहा और मैं  भी कुछ ख़ास बात करने के मूड में नहीं  था. एक तो ठंडी हवा बदन में तीर सी चुभ रही थी, ऊपर से हम बिना नाश्ता किये ही घर से चल पड़े थे. स्टेशन पर पहुंचकर गर्मा-गर्म चाय पीने के बाद हमने केंटिश ट्रेन पकड़ी तब जाकर होम्ज़ ने अपना मुंह खोला, वो बोलता रहा और मैं  सुनता रहा. उसने ज़ेब से एक पर्चा निकाला और जोर से पढ़ते हुए मुझे सुनाने लगा: 

               “एबी ग्रेंज, मार्शम केंट, Abbey Grange, Marsham, Kent,
                            सुबह 3.30 का वक़्त”
“माई डियर मिस्टर होम्ज़— तुम अगर इस सनसनीखेज कत्ल की गुत्थी सुलझाने में मेरी मदद के लिए आ सको तो मुझे बड़ी ख़ुशी होगी.
    ये केस तुम्हारे बाकि केस की तरह ही पेचीदा लग रहा है. सिवाए इसके कि यहाँ पर हमने लेडी को रिलीज़ कर लिया है और बाकि सारी चीज़े उसी हालत में है जैसी हमें  मौका-ए-वारदात पर मिली थी.
    इसलिए तुम मेरी रिक्वेस्ट पर बिना वक्त बर्बाद किये तुंरत यहाँ चले आओ, क्योंकि सर यूस्टेस को हम और ज्यादा देर तक नहीं  रख पाएंगे. 
.
               “तुम्हारा अपना, स्टैनली हॉपकिंस 
होम्ज़ बोला “ हॉपकिंस अब तक मुझे सात बार केस की जांच के लिए बुला चुका है, और हर बार उसका केस हटकर होता है. मुझे लगता है तुम भी उसके हर केस को अपने कलेक्शन में जगह देते हो. पर मुझे ये भी लगता है वॉटसन कि तुम्हारे कहानी लिखने का जो तरीका है वो मुझे थोडा कम पंसद आता है, अब तुम पूछोगे क्यों? वो इसलिए क्योंकि तुम किसी भी केस को एक साइंटिफिक  रिसर्च  ले नज़रिए से ना लिखकर एक मसालेदार कहानी की तरह पेश करते हो. जो केस क्लासिक example बन सकते थे तुम उन्हें चटखारे लेकर ऐसे सुनाते हो कि रीडर्स को मज़ा तो आता है पर कोई ख़ास नॉलेज हासिल नहीं  होती” 

होम्ज़ की बात मुझे थोड़ी चुभ गई थी. मैंने नाराज़ होते जवाब दिया “तो तुम खुद क्यों नहीं  लिखना शुरू कर देते ?”
“मैं  लिखूंगा माई डियर वॉटसन, जरूर लिखूंगा. फिलहाल तो जैसा कि तुम जानते ही हो, मैं  बहुत बिज़ी हूँ पर मैंने सोच लिया है कि काम से रिटायर होने के बाद एक किताब लिखूंगा जिसका पूरा एक वॉल्यूम तो जासूसी पर ही होगा. फिलहाल तो हम एक मर्डर केस की छानबीन के लिए निकले हैं”. 
“तो तुम्हारा मतलब है कि सर यूस्टेस का खून हो गया है?’ 

“ लगता तो यही है,  हॉपकिंस इमोशनल टाइप का नहीं है पर उसकी राईटिंग से ऐसा लगता है जैसे वो बेहद परेशान है. मेरे खयाल से मामला कत्ल का ही है और लाश को तहकीकात के लिए रखा गया है क्योंकि मामला अगर सिर्फ आत्महत्या का होता तो वो हमें  कभी नहीं  बुलाता और जहाँ तक उस लेडी को छुड़ाने की बात है तो शायद हादसे के वक्त उसे बांध कर रखा गया होगा. हम एक हाई-फाई केस के लिए जा रहे है वॉटसन, ई. बी. मोनोग्राम और जिस पते पर हम जा रहे हैं वो काफी खूबसूरत जगह है. मुझे यकीन है  हॉपकिंस हमें  निराश नहीं  करेगा, मामला काफी दिलचस्प हो सकता है. आज का दिन काफी रोमांचक रहेगा. कत्ल कल रात बारह बजे से पहले हुआ है” 

“ये तुम इतने यकीन से कैसे बोल सकते हो?” मैंने हैरानी से पूछा 
होम्ज़ बोला “मैंने ट्रेन का टाइम टेबल चेक किया. पहले लोकल पुलिस आई होगी, फिर उन्होंने स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस को खबर दी होगी और फिर  हॉपकिंस को वहां भेजा गया होगा और उसने फिर मुझे मैसेज भेजा. इस सब में तो रात भर का वक्त लग गया होगा. खैर, हम चिज्लहस्ट स्टेशन तो पहुँच ही चुके हैं तो अब जल्द ही अपने सवालों के जवाब भी ढूंढ लेंगे” 

हम लोग देहाती ईलाके की संकरी गलियों से गुजरते हुए कोई दो मील का चक्कर काटकर एक बड़े से बगीचे के गेट तक पहुंचे जहाँ एक बूढ़े लॉज कीपर ने हमारे लिए गेट खोला. उसके झुर्रीदार चेहरे पर बीते हुए वक्त की मार के निशान थे, जैसे उसने जिंदगी में बहुत गम झेले हों. पार्क के बीच से होकर गुजरने वाले रास्ते में दोनों तरफ पुराने एल्म के पेड़ लगे थे और आखिरी छोर पर एक बड़े लंबे-चौड़े बंगले का अहाता था जहाँ पलेडियो स्टाइल के बड़े-बड़े पिलर बने थे.

 बंगले के बीच का हिस्सा काफी पुराना लगता था और आईवी की बेलों से घिरा हुआ था पर बड़ी-बड़ी खिड़कियों को देखकर लगता था कि इस पुराने फैशन के बंगलो को मॉडर्न टच देने की कोशिश की गई है क्योंकि घर का एक हिस्सा एकदम नया बना हुआ लग रहा था. घर का मेन गेट खुला हुआ था, नौजवान इंस्पेक्टर  हॉपकिंस का बैचेन चेहरा दरवाज़े से झाँक रहा था. वो काफी अलर्ट लग रह था, ऐसा लगा हमें  वहां देखकर उसे थोड़ी तस्सली मिली थी.   

“बड़ी ख़ुशी हुई कि आप आये, मिस्टर होम्ज़, और आप भी डॉक्टर वॉटसन! अगर पहले ही सारे मामले का खुलासा हो जाता तो मैं  आपको तकलीफ नहीं  देता, क्योंकि लेडी होश में आ चुकी है और उन्होंने अपना बयान दर्ज करवा दिया है इसलिए अब इन्वेस्टीगेशन की कोई ख़ास जरूरत नहीं  लगती, ओह! मामला लूट-पाट का है, आपने  लुइशम गैंग का नाम तो सुना होगा?’ 
“क्या? वो जो तीन रैंडल हैं? होम्ज़ ने पूछा  

“हाँ बिल्कुल वही तीनो, बाप और दो बेटे. मुझे जरा भी शक नहीं  है, ये सब उन्ही का किया-धरा है. अभी दो हफ्ते पहले ही उन्हें सिडनम में लूटपाट करते देखा गया था, पर इतनी जल्दी वो यहाँ आकर ये काण्ड कर जायेंगे, ये सोचकर हैरानी हो रही है, खैर जो भी हो, ये उनका ही किया-धरा है. लेकिन इस बार उन्होंने बहुत बड़ा काण्ड कर दिया है” 
“ तो सर यूस्टेस की मौत हो गई?’?” होम्ज़ ने पूछा 
“हाँ, उनके सिर पर पोकर से वार किया गया था” 
“मेरे ड्राईवर ने बताया था, ये सर यूस्टेस  ब्रैकेनस्टॉल हैं ना” होम्ज़ बोला 
“बिल्कुल वही है- केंट के सबसे अमीर आदमी. लेडी  ब्रैकेनस्टॉल मोर्निंग रूम में मिलेगी. बेचारी, उनके साथ बहुत बुरा हुआ. मैंने जब उन्हें देखा तो मरने की हालत में थी. मेरे खयाल से तुम जाकर उनसे मिल लो और जो कुछ पूछना है पूछ लो. फिर हम साथ में डाइनिंग रूम की तहकीकात करेंगे.” 

लेडी  ब्रैकेनस्टॉल बेहद खूबसूरत औरत थी. हालाँकि मैं  इस बात को मानता हूँ कि मैंने अपनी जिंदगी में  एक से एक खूबसूरत औरतें  देखी हैं  पर ऐसा दिलकश, हसीन चेहरा और नाज़ुक बदन आज से पहले मैंने कभी नहीं  देखा, उनके बाल सुनहरे थे, आँखे नीली जैसे कोई गहरी झील हो. उनका गुलाबी खूबसूरत चेहरा इस सदमे की वजह से सफ़ेद पड़ चुका था और रो-रोकर आंखे सूजी हुई थी. उनकी हालत देखते ही मैं  समझ गया कि दिलो-दिमाग के साथ-साथ उनका बदन भी घायल हुआ है, एक आँख के ऊपर गहरी चोट आने से वहां सूजन आ गई थी.

 एक लंबे कद की सख्त चेहरे वाली औरत जो शायद उनकी नौकरानी थी, चोट वाली जगह को विनेगर और पानी से साफ कर रही थी. लेडी बेहद पस्त हालत में एक काउच के ऊपर लेटी थी, पर उनकी तेज़ नजरो ने हमें  कमरे के अंदर आते देख लिया था. हमें  देखते ही उनके चेहरे पर भाव उभरे मैं  समझ गया कि इस हादसे के बावजूद ना तो उनकी हिम्मत टूटी है और ना ही मुझे वो घबराई हुई लगी. उस वक्त वो एक नीले और सिल्वर रंग का ढीला सा ड्रेसिंग गाउन पहने हुए थी, पर एक काला सलमे-सितारे जड़ा डिनर ड्रेस बगल में काउच पर टंगा हुआ था. 

वो जरा नाराज़गी से बोली “मुझे जो कुछ बताना था, बता दिया मिस्टर हॉपकिंस, क्या आप वो सब इन्हें नहीं  बता सकते? खैर, अगर फिर भी जरूरी है तो मैं इन दोनों जेंटलमेन को फिर से बता सकती हूँ, पर क्या आपने इन्हें डाइनिंग रूम दिखा दिया?” 
“मुझे लगता है कि पहले ये आपके मुंह से पूरी बात सुन ले तो बेहतर होगा” 
“मुझे ख़ुशी होगी अगर आप सारा मामला जल्द से जल्द सुलझा सके, मैं ..मैं  उन्हें ऐसे पड़े हुए नहीं  देख सकती” लेडी थरथर काँप रही थी, चेहरे को हाथो से ढकने की कोशिश में गाउन की ढीली स्लीव्स नीचे खिसक आई थी, बांहों पर पड़े चोट के निशान देखकर होम्ज़ चौंक पड़ा. उसके मुंह से हमदर्दी भरी एक आह निकली. 

 “आपको तो काफी चोटें आई है  मैडम ! ये कैसे हुआ ?’ 
लेडी के गोर बाज़ू पर दो बड़े लाल निशान थे,  वो जल्दी से अपनी बाजू ढकते हुए बोली:
“कुछ नहीं, ये बस ऐसे ही चोट लग गई पर इसका कल रात के हादसे से कोई लेना-देना नहीं है. आप और आपके दोस्त अगर आराम से बैठ जाए तो मैं  आपको पूरी कहानी बताती हूँ. 

Puri Kahaani Sune….

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(hindi) Atmaram

(hindi) Atmaram

“वेदों-ग्राम में महादेव सोनार एक जाना माना आदमी था। वह अपने छप्पर में सुबह से शाम तक सिगड़ी के सामने बैठा हुआ खटखट किया करता था।  लगातार आवाज सुनने के लोग इतने आदी हो गये थे कि जब ये किसी कारण से बंद हो जाती, तो जान पड़ता था, कोई चीज़ गायब हो गयी हो। वह रोज सुबह अपने तोते का पिंजड़ा लिए कोई भजन गाता हुआ तालाब की ओर जाता था। उस धुँधली रोशनी में उसका कमजोर शरीर, पोपला मुँह और झुकी हुई कमर देख कर किसी अंजान इंसान को उसके पिशाच होने का धोखा हो सकता था। जैसे ही लोगों के कानों में आवाज आती- “”‘सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता’, लोग समझ जाते कि सुबह हो गयी।

Puri Kahaani Sune…

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A SHOT AT HISTORY (English)

A SHOT AT HISTORY (English)

“What will you learn from this summary?

 

This book sheds light on the life of individual Olympic gold medalist Abhinav Bindra. This book is a must-read for any sports enthusiast, as Bindra defines his tactics to strive for perfection in shooting. This book is also an interesting read to others as it teaches you to overcome your struggles and reach what you desire.

 

Who will learn from this summary?

 

•    Sports enthusiasts
•    Shooters 
•    Anyone with big dreams

 

About the Author

 

Abhinav Bindra is a businessman and retired shooter. He became India's only individual Olympic gold medalist at the Beijing Olympics in 2008. Bindra had also received the Arjuna Award in 2000 and Padma Bhushan in 2009. A biopic is set to be made based on his memoir, A Shot at History.
 

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The Checklist Manifesto : How to Get Things Right (English)

The Checklist Manifesto : How to Get Things Right (English)

“Why should you read this summary?

 

Would you believe if someone told you that checklists can save lives? A checklist might seem like a simple tool, but it has helped many experts from different fields. Surgeons and pilots, for example, sometimes forget one basic step and this leads to disaster. The solution is to make checklists. This book will teach you how important checklists are and how you can apply them in your own career.

 

Who will learn from the summary?

 

▪    Aspiring doctors and pilots, medical and aviation students
▪    Employees, managers and entrepreneurs
▪    Young professionals

 

About the Author

 

Atul Gawande is a surgeon, researcher, and writer. He has published several articles and books concerning the field of medicine. Gawande is currently a professor at Harvard Medical School and a general surgeon at Brigham and Women’s Hospital. Both of his parents are doctors and immigrants from India. 
 

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