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(hindi) The Dream of Swarajya

(hindi) The Dream of Swarajya

“इंट्रोडक्शन 

जब भारत गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ था तब एक ऐसे बच्चे का जन्म हुआ जिसने आज़ादी पाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वो जाँबाज़ सिपाही और कोई नहीं बल्कि शूरवीर और महान छत्रपति शिवाजी महाराज थे. उनके जीवन का बस एक ही लक्ष्य था “स्वराज्य” हासिल करना. शिवाजी महाराज, महाराष्ट्र के सबसे महान योद्धा होने के साथ-साथ रणनीति बनाने में बेहद माहिर थे. आज भी वो महाराष्ट्र के गौरव के रूप में जाने जाते हैं. विदेशी हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता पाने का संग्राम असल में छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ शुरू हुआ था.  

ये मध्ययुगीन काल की कहानी है. करीब चार सौ साल से भी  ज़्यादा  समय तक भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा. बाहर से आए अत्याचारीयों ने हमारे देश पर कब्ज़ा करके हमारी आज़ादी हमसे छीन कर  हमें  अपना गुलाम बना कर रखा था. भारत में राजशाही की प्रथा रही थी. यानी राजा के बाद उसकी आने वाली पीढियां राज किया करती थी. ये उस समय की बात है जब आज की तरह प्रजातंत्र की व्यवस्था  नहीं  थी जिसे हम आज डेमोक्रेसी कहते है. राजा जो बात बोल से, वो जनता के लिए पत्थर की लकीर होती थी. राजा का दिया आदेश ही कानून था. उस जमाने में जनता तो राजा को भगवान मान कर चलती थी पर राजा को जनता की भलाई की रत्ती भर भी परवाह  नहीं  होती थी.

उन्हें तो बस ऐशो-आराम की जिंदगी जीने और अपना खजाना भरने से मतलब था. राजा और राज परिवार के  लोगों  को हर तरह की सुख-सुविधाएं हासिल थी और हर राजा का एक ही मकसद होता था कि उसके पास बड़ी से बड़ी सेना हो जिसमे दम पर वो अपने दुश्मनों को हराकर उनकी जमीन पर कब्जा करके और भी  ज़्यादा  शक्तिशाली बन सके. उनके अंदर सत्ता और शक्ति की ऐसी भूख थी जो कभी खत्म होने का नाम नहीं लेती थी. जिन राज्यों को वो अपने कब्जे में लेते थे, फिर उस राज्य के  लोगों  के सुख-दुःख से उन्हें कोई वास्ता  नहीं  रहता था. दरअसल दौलत के लालची इन हुक्मरानों के लिए भूखी-नंगी जनता  पैरों  की जूती के बराबर थी. 

आम आदमी दिन-रात हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद जो कुछ कमाता, उसका ज़्यादातर हिस्सा राजा के  खज़ाने में जाता था. जी-तोड़ मेहनत के बाद भी गरीब की गरीबी मिटने का नाम नहीं लेती थी और ना ही उन्हें अपनी मेहनत की सही कीमत मिल पाती थी. ऐशो-आराम की जिंदगी गुज़ारने वाले इन क्रूर   शासकों  के  अत्याचारों  से जनता का जीवन बेहाल था जिनके लिए तीन वक्त का खाना जुटाना भी किसी चुनौती से कम  नहीं  होता था. उस जमाने में हमारे देश के  लोगों  का जीवन सचमुच बहुत दयनीय था. खैर, तब से अब तक ना जाने कितने ही विदेशी हमलावरों के अत्याचार झेलता हमारा देश आज इस मुकाम तक आ पहुंचा है तो अब वक्त आ गया है कि हम अपने देश की तरक्की और खुशहाली में अपना योगदान दे. 

पर भारत में एक जगह ऐसी भी थी जहाँ की जनता इन अत्याचारों से तंग आकर बगावत पर उतर आई थी, और ये जगह थी महाराष्ट्र. जनता को जल्द ही एक ऐसा बहादुर सिपाही और राजा मिलने वाला था जिसने कसम खाई थी कि वो अपने  लोगों  की हिफाजत करेगा और इन विदेशी ताकतों से देश को आज़ादी दिलाकर रहेगा. लेकिन इस बहादुर सिपाही की दास्ताँ सुनाने से पहले हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि उस वक्त महाराष्ट्र में किस तरह के हालत थे. सोलहवीं शताब्दी के महाराष्ट्र में दो बादशाहों का  शासन  था, अहमदनगर में निज़ामशाह और बिजापुर में आदिलशाह राज किया करता था. ये दोनों आपस में  हमेशा लड़ते रहते थे, जनता के दुःख-दर्द से मानो उन्हें कोई लेना-देना ही नहीं था. जनता मरे या जिये उन्हें क्या, उन्हें तो अपना खज़ाना भरना था.

Puri kahaani sune…

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(hindi) HOW TO FAIL AT ALMOST EVERYTHING AND STILL WIN BIG -Kind of the Story of My Life

(hindi) HOW TO FAIL AT ALMOST EVERYTHING AND STILL WIN BIG -Kind of the Story of My Life


क्या आप बार-बार फेल होने से थक चुके है? क्या आप  हमें शा यही सोचते है कि काश एक बार तो मुझे सफलता मिले? क्या आप सफल होने के लिए कुछ ऐसे टिप्स सीखना चाहते हो जो सच में इफेक्टिव हो? तो फ़िक्र करने की कोई बात  नहीं  क्योंकि इस किताब में वो सब कुछ दिया गया है जिसकी आपको जरूरत है. ये किताब स्कॉट एडम्स की निजी जिंदगी के अनुभवों पर आधारित है, इसे पढ़कर आपको एहसास होगा कि असफलता से घबरा कर अपने लक्ष्य को ना छोड़ें. अगर पक्के ईरादे हों तो असफलता भी सफलता में बदल जाती है.

ये समरी किस-किसको पढनी चाहिए? 

    वो लोग जो अपने जीवन का लक्ष्य खो चुके हैं 
    जो लोग खोया हुआ महसूस करते हैं 
    Career mentor/guidance counselor
    टीचर्स और स्टूडेंट्स 
    जो लोग अभी तक अपना करियर  नहीं  बना पाए हैं 
    जो अभी-अभी ग्रेजुएट हुए हैं 

ऑथर के बारे में 
स्कॉट एडम्स एक फेमस कार्टूनिस्ट हैं जो फेमस डिल्बर्ट कॉमिक स्ट्रिप के क्रियेटर हैं. डिल्बर्ट कॉमिक्स अमेरिका की कॉर्पोरेट दुनिया के बारे में है और स्कॉट बड़े ही सर्कास्टिक तरीके से इस कॉमिक के ज़रिए ऑडियंस को कॉर्पोरेट जगत की असलियत से रूबरू कराते हैं. इसके  अलावा स्कॉट ने कई सारी नॉन फिक्शन किताबें भी लिखी हैं. 2018 में स्कॉट को अमेरिका के एक्स प्रेजिडेंट डॉनल्ड ट्रम्प ने अपने ओवल ऑफिस में इनवाईट किया था और 2020 में टेस्ला के फाउंडर एलन मस्क ने स्कॉट को लेकर एक ट्वीट भी किया था. 
 

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(hindi) High Output Management

(hindi) High Output Management

“ये समरी आपको क्यों पढ़नी चाहिए? 
हम जहाँ भी जाते है, कोई ना कोई आर्गेनाइजेशन देखते है. कॉफ़ी शॉप, सुपर मार्केट  यहाँ तक कि आपका फेवरेट रेस्टोरेंट भी एक प्रोडक्शन कंपनी है. ये किताब कंपनीज़ के वर्किंग पैटर्न के ऊपर काफी गहराई से observe करती है कि ये कम्पनियाँ  कैसे काम करती है और कैसे प्रोडक्शन फ्लो,  मार्केट रिसर्च और रीवार्ड जैसी टेक्नीक यूज़ करके अपनी परफॉर्मेंस इम्प्रूव करती है. 

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए ? 
ये समरी  मैनेजर्स और सीईओ के लिए है, और उन लोगो के लिए भी जो बड़े या छोटे लेवल पर अपनी कोई प्रोडक्शन कंपनी स्टार्ट करने की सोच रहे हैं. साथ ही ये किताब उन एंटप्रेन्योर्स के लिए भी बढ़े काम की है जो कोई नया प्रोडक्ट  मार्केट  में  launch  करने का ईरादा रखते हो. 

ऑथर के बारे में 
एंड्रू ग्रोव एक इंजीनियर, एंटप्रेन्योर और ऑथर हैं. जब वो 20 साल के थे तो हंगरी से US चले गए थे जहाँ उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और खुद का बिजनेस एडवेंचर स्टार्ट किया. ग्रोव इंटेल के तीसरे सीईओ बनें और इंटेल को दुनिया की सबसे सक्सेसफुल आर्गेनाइजेशन में से एक बनाने में एंड्रू का बहुत बड़ा हाथ रहा है. 

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(hindi) THE TOP FIVE REGRETS OF THE DYING: A Life Transformed by the Dearly Departing

(hindi) THE TOP FIVE REGRETS OF THE DYING: A Life Transformed by the Dearly Departing

“आपको ये समरी क्यों पढ़नी चाहिए?
अगर आप अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिनों में होते तो आप क्या करते? पीछे मुड़कर अपनी ज़िंदगी में देखते तो आपको पछतावा होता या खुशी? इस बुक  में, आप उन लोगों के पछतावे के बारे में जानेंगे जो मर रहे हैं. आप सीखेंगे कि पछताने से खुद को कैसे रोकें.

इस समरी को किसको पढ़नी चाहिए?
• लाइलाज़ बीमारी से जूझ रहे वाले लोग
• जो लोग मौत के करीब हैं

ऑथर के बारे में
ब्रॉनी वेयर ऑस्ट्रेलिया की एक ऑथर, सिंगर, सॉन्ग-राइटर और इंस्पिरेशनल स्पीकर हैं. बैलेंस, सिम्पलिसिटी और नेचर के लिए उनके प्यार ने उन्हें एक ऐसे सफर के लिए प्रेरणा दी जहाँ वो खुद को पहचान सकें. उन्होंने तीन किताबें भी लिखी हैं. ब्रॉनी अपने कोर्स और मेंटरिंग प्रोग्राम से उन लोगों की भी हेल्प करती हैं जो अपनी ज़िंदगी से मायूस हो चुके हैं.

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(hindi) Naagpuja

(hindi) Naagpuja

“सुबह का समय था। आषाड़ की पहली बारिश हुई थी। कीट-पतंगे चारों तरफ रेंगते दिखायी देते थे। तिलोत्तमा ने बाग की ओर देखा तो पेड़ और पौधे ऐसे निखर गये थे जैसे साबुन से मैले कपड़े निखर जाते हैं। उन पर एक अजीब दिव्य शोभा छायी हुई थी मानों योगी खुशी में मग्न पड़े हों। चिड़ियों में अलग चंचलता थी। डाल-डाल, पात-पात चहकती फिरती थीं। तिलोत्तमा बाग में निकल आयी। वह भी इन्हीं चिड़ियों की तरह चंचल हो गयी थी। कभी किसी पौधे की ओर देखती, कभी किसी फूल पर पड़ी हुई जल की बूँदो को हिलाकर अपने मुँह पर उनके शीतल छींटे डालती। लाल मखमली कीड़े रेंग रहे थे। वह उन्हें चुनकर हथेली पर रखने लगी। अचानक उसे एक काला लम्बा साँप रेंगता दिखायी-दिया।

उसने चिल्लाकर कहा- “”अम्माँ, नागजी जा रहे हैं। लाओ थोड़ा-सा दूध उनके लिए कटोरे में रख दूं।””

अम्माँ ने कहा- “”जाने दो बेटी, हवा खाने निकले होंगे।””

तिलोत्तमा- “”गर्मियों में कहाँ चले जाते हैं ? दिखायी नहीं देते।””

माँ- “”कहीं जाते नहीं बेटी, अपने बिल में पड़े रहते हैं।””

तिलोत्तमा- “”और कहीं नहीं जाते ?””

माँ- “”बेटी, हमारे देवता हैं और कहीं क्यों जायेगें ? तुम्हारे जन्म के साल से ये बराबर यहीं दिखायी देते हैं। किसी से नही बोलते। बच्चा पास से निकल जाय, पर जरा भी नहीं ताकते। आज तक कोई चुहिया भी नहीं पकड़ी।””

तिलोत्तमा- “”तो खाते क्या होंगे ?””

माँ- “”बेटी, यह लोग हवा पर रहते हैं। इसी से इनकी आत्मा दिव्य हो जाती है। अपने पिछले जन्म की बातें इन्हें याद रहती हैं। आने वाली बातों को भी जानते हैं। कोई बड़ा योगी जब घमंड करने लगता है तो उसे सजा के तौर पर इस रूप में जन्म लेना पड़ता है। जब तक सजा पूरी नहीं होती तब तक वह इस रूप में रहता है। कोई-कोई तो सौ-सौ, दो-दो सौ साल तक जीते रहते हैं।””

तिलोत्तमा- “”इसकी पूजा न करो तो क्या करें।

माँ- “”बेटी, कैसी बच्चों की-सी बातें करती हो। नाराज हो जायँ तो सिर पर न जाने क्या परेशानी आ पड़े। तेरे जन्म के साल पहली बार दिखायी दिये थे। तब से साल में दस-पाँच बार जरूर दिखाई दे जाते हैं। इनका ऐसा असर है कि आज तक किसी के सिर में दर्द तक नहीं हुआ।””

Puri Kahaani Sune…

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(hindi) Turn the Ship Around! A True Story of Turning Followers Into Leaders

(hindi) Turn the Ship Around! A True Story of Turning Followers Into Leaders

“आपको ये समरी क्यों पढ़नी चाहिए?
ज़्यादातर हम दूसरों से ऑर्डर्स लेकर उसे फॉलो करते हैं और उन चीजों को करते हैं जो हमें बताए जाते हैं. क्या आपको कभी ऐसा नहीं लगता या ऐसी सोच नहीं आती कि आप उन चीजों को अलग-अलग तरीके से कर सकते हैं, लेकिन बेहतर ढंग से और उसी रिजल्ट के साथ? हम में से कुछ ने ऐसे लोग भी देखे होंगे जिन्होंने ऑर्डर्स को अनसुना किया होगा या उसके खिलाफ खड़े हुए होंगे  लेकिन, इस समरी को पढ़ने के बाद, आप एक ऐसा लीडर बनने की कोशिश करेंगे जो दूसरों को भी आगे ले जा पाएगा!

ये समरी कौन पढ़ सकता हैं?
ये समरी उन लोगों के लिए हैं जो चीजों को जहाँ तक हो सके बेहतरीन ढंग से करने की कोशिश करते हैं, जैसा उन्हें ऑर्डर मिलता हैं, भले ही वे खुद की सोच से चीजों को अलग तरीके से कर सकने के काबिल होते हैं. लीडरशिप को खुदबखुद चलते रहने की जरूरत हैं, चीजों को अपने हाथों में लें और लिमिट या हद के अंदर रहकर ही जो भी करना हो करें. लीडर-लीडर स्ट्रक्चर के इस नए नज़रिए को कोई भी शामिल कर सकता हैं और अपने ऑर्गर्नाईजेशन को आगे बढ़ा सकता हैं.

ऑथर के बारे में
कैप्टन डेविड मार्के US नेवी के पहले इंटलेक्चुअल रहे हैं जिन्होंने  USS सैंटा फ़े की किस्मत को बदलने के लिए कमांड के पहले से ही चल रहे पुराने रूल्स को बदला. उन्होंने Leadership Is Language: The Hidden Power of What You Say – and What You Don’t,जैसी कई किताबें लिखी हैं. इसके अलावा वे कई इवेंट्स में स्पीकर भी रहे हैं. वो लीडरशिप एंड लीडरशिप टेक्निक को बढ़ावा देते हैं. उन्होंने खुद को एक लीडर साबित किया हैं और दूसरों को बताते हैं कि कैसे लीडर बनना हैं और सिर्फ फॉलो नहीं करना हैं.

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(hindi) Siddhartha

(hindi) Siddhartha

“1.    ये समरी आपको क्यों पढनी चाहिए? 
क्या आपको लगता है आपके जीवन का कुछ मतलब है? क्या आपको लगता है कि आप जीवन में कहीं भटक गए है पर आप इस बात को मानने को तैयार नही है? असल में इस दुनिया में ज्यादातर लोग नही जानते कि वो उनके जीवन का मकसद क्या है और उन्हें कैसा जीवन जीना चाहिए?  अगर आपके मन में भी इसी तरह के सवाल हैं तो इस किताब को पढ़िये. ये किताब आपको जीवन जीने का सही तरीका सिखाएगी. इस किताब में सिद्धार्थ की जिंदगी की कहानी है जो हमे सिखाती है कि इंसान का जीवन चुनौतियों से भरा हुआ है पर हमे आगे बढने के लिए अच्छाई के साथ-साथ बुराई को भी स्वीकार करना होगा. 

2.    ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए? 

    जो लोग अपने जीवन में कही भटक चुके हैं या भटका हुआ महसूस करते हैं 
    जो लोग दुःख और परेशानियों से जूझ रहे हैं 

3.    ऑथर के बारे में 
हरमन हेस एक ऑथर, पेंटर और कवि हैं. उनकी जितनी भी फेमस और बेस्ट किताबें हैं है, उन सब मे उन्होंने सेल्फ-एक्चुलाईजेशन यानी आत्म-साक्षात्कार और ऑथेंटिसिटी की बात की है. 1946 में उन्हें लिटरेचर में नोबल प्राइज दिया गया था. 
हेस इतने फेमस और इन्फ्लुएंसल राईटर हैं कि जर्मनी में कई स्कूल उनके नाम पर रखे गए हैं और उनके जन्म स्थान को भी उनका नाम दिया गया है. इसके अलावा उनके नाम पर कई लिटररी अवार्ड भी रखे गए हैं. 
 

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(hindi) Ek Aanch Ki Kasar

(hindi) Ek Aanch Ki Kasar

“सारे शहर में महाशय यशोदानन्द का गुणगान हो रहा था। शहर में ही नहीं ,पूरे  प्रान्त में उनकी तारीफ़ की जा रही थी, समाचार पत्रों में टिप्पणियां हो रही थी, दोस्तों से तारीफ़ भरे पत्रों का तांता लगा हुआ था। समाज-सेवा इसे कहते हैं  ! एडवांस सोच रखने वाले लोग ऐसा ही करते हैं । महाशय जी ने पढ़े-लिखे  लोगों  का चेहरा  उज्जवल कर दिया। अब कौन यह कहने की हिम्मत  कर सकता है कि हमारे नेता सिर्फ़  बात के धनी हैं , काम के धनी नहीं हैं  ! महाशय जी चाहते तो उन्हें अपने बेटे  के लिए कम से कम बीज हज़ार  रूपये दहेज में मिलते, उस पर खुशामद अलग से होती ! मगर लाला साहब ने सिद्धांत  के सामने दौलत की रत्ती बराबर परवाह  न की और अपने बेटे की शादी बिना एक रूपए दहेज लिए स्वीकार किया। वाह ! वाह ! हिम्मत हो तो ऐसी हो, सिद्धांत से प्रेम हो तो ऐसा हो, आदर्श-पालन हो तो ऐसा हो । वाह रे सच्चे वीर, अपनी माँ  के सच्चे सपूत, तूने वह कर दिखाया जो कभी किसी ने नहीं किया था। हम बड़े गर्व से तेरे सामने सिर झुकाते हैं।
महाशय यशोदानन्द के दो बेटे थे। बड़ा लड़का पढ लिख कर काबिल हो चुका था। उसी की शादी तय हो रही थी  और हम देख चुके हैं , बिना दहेज लिये।
आज का तिलक था। शाहजहांपुर स्वामीदयाल तिलक लेकर आने वाले थे। शहर के जाने माने लोगों  को न्योता दिया गया था । वे लोग जमा हो गये थे। महफिल सजी हुई थी। एक माहिर सितार बजाने वाला अपना कौशल दिखाकर लोगो को मंत्र मुग्ध कर रहा था। दावत का  सामान भी तैयार था.  यार-दोस्त  यशोदानन्द को बधाईयां दे रहे थे।
एक महाशय बोले—“तुमने तो कमाल कर दिया !”
दूसरे ने कहा —“कमाल ! यह कहिए कि झण्डे गाड़ दिये। अब तक जिसे देखा मंच पर शेखी बघारते ही देखा। जब काम करने का मौका आता था तो लोग दुम दबाकर भाग लेते थे”।
तीसरा बोला —“कैसे-कैसे बहाने गढे जाते हैं —साहब हमें तो दहेज से सख्त नफरत है यह मेरे सिद्धांत  के खिलाफ़ है, पर क्या करुं, बच्चे की अम्मीजान नहीं मानती”। 
चौथे ने भी कहना शुरू किया —“अजी, कुछ  तो इतने बेशर्म हैं कि साफ-साफ कह देते हैं कि हमने लड़के की पढ़ाई-लिखाई  में जितना खर्च किया है, वह हमें मिलना चाहिए। मानो उन्होंने यह रूपये किसी बैंक में जमा किये थे”।
पांचवें ने कहा —“खूब समझ रहा हूं, आप लोग मुझ पर छींटे उड़ा रहे हैं।
इसमें लड़के वालों का ही सारा दोष है या लड़की वालों का भी कुछ है”।
पहले—“लड़की वालों का क्या दोष है सिवा इसके कि वह लड़की का बाप है?”
दूसरे—“सारा दोष भगवान् का है जिसने लड़कियां पैदा कीं । क्यों ?”
पांचवे—“मैं यह नहीं कहता। न सारा दोष लड़की वालों का है, न सारा दोष लड़के वालों का। दोनों की दोषी हैं । अगर लड़की वाला कुछ न दे तो उसे यह शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं है कि डाल क्यों नही लायें, सुंदर जोड़े क्यों नहीं  लाये, बाजे-गाजे पर धूमधाम के साथ क्यों नही आये ? बताइए !”
चौथे—“हां, आपका यह सवाल गौर करने लायक है। मेरी समझ में तो ऐसी हालत  में लड़के के पिता से यह शिकायत न होनी चाहिए”।
पांचवें—“तो यूँ  कहिए कि दहेज की प्रथा के साथ ही डाल, गहनें और जोड़ों की प्रथा भी बहुत बुरी है। सिर्फ़ दहेज प्रथा को मिटाने की कोशिश करना बेकार है”।
यशोदानन्द—-“यह भी Lame excuse है। मैंने दहेज नहीं लिया, लेकिन क्या डाल-गहने न ले जाऊंगा”।
पहले—“महाशय आपकी बात निराली है। आप अपनी गिनती हम दुनिया वालों के साथ क्यों करते हैं ? आपकी जगह तो देवताओं के साथ है”।
दूसरा—-“20 हजार की रकम छोड़ दी ? क्या बात है”।
यशोदानन्द—“मेरा तो यह विश्वास है कि हमें हमेशा  principle पर डटे   रहना चाहिए। principle  के सामने पैसे  की कोई कीमत नहीं है। दहेज की कुप्रथा पर मैंने खुद कभी भाषण नहीं दिया , शायद कोई नोट तक नहीं लिखा। हां, conference में इस प्रस्ताव के हक़ में बोल चुका हूं। मैं उसे तोड़ना भी चाहूं तो आत्मा न तोड़ने देगी। मैं सच कहता हूं, यह रूपये लूं तो मुझे इतनी मानसिक तकलीफ़ होगी कि शायद मैं इस हमले से  बच ही न सकूं”।
पांचवें—“अब की बार अगर conference आपको चेयरमैन न बनाये तो ये घोर अन्याय होगा ”।
यशोदानन्द—“मैंने अपनी duty कर दी, उसे पहचान मिले या ना मिले, मुझे इसकी परवाह नहीं” । इतने में खबर आई कि महाशय स्वामीदयाल आ पंहुचे । लोग उनका स्वागत करने को तैयार हुए, उन्हें गद्दी  पर बैठाया और तिलक का संस्कार शुरू हो गया। स्वामीदयाल ने ढाक के एक पत्तल पर नारियल, सुपारी, चावल पान वगैरह सामान दुल्हे  के सामने रखे । ब्राहृम्णों ने मंत्र पढें हवन हुआ और दुल्हे के माथे पर तिलक लगा दिया गया। तुरन्त घर की औरतों ने मंगल गान  गाना शुरू किया। यहां महफ़िल में महाशय यशोदानन्द ने एक चौकी पर खड़े होकर दहेज की कुप्रथा पर भाषण देना शुरू किया। भाषण  पहले से लिखकर तैयार कर लिया गया था। उन्होनें दहेज की ऐतिहासिक व्याख्या की थी।
“पहले के समय  में दहेज का नाम भी न थ। महाशयों ! कोई जानता ही न था कि दहेज या ठहरोनी किस चिड़िया का नाम है। सच  मानिए, कोई जानता ही न था कि ठहरौनी है क्या चीज, जानवर  या पक्षी, आसमान में या जमीन में, खाने में या पीने में । बादशाही के जमाने में इस प्रथा की बुनियाद पड़ी। हमारे नौजवान सेना में भर्ती होने लगे । यह वीर लोग थे, सेना में जाना गर्व की बात समझते थे। माताएँ अपने दुलारों को अपने हाथ से शस्त्रों से सजा कर रणभूमी में  भेजती थीं। इस तरह नौजवानों की संख्या कम होने लगी और लड़कों का मोल-तोल शुरू हुआ। आज यह नौबत  आ गयी है कि मेरी इस तुच्छ –महातुच्छ सेवा पर पत्रों में टिप्पणियां हो रही है मानों मैंने कोई असाधारण काम किया है। मैं  कहता हूं ; अगर आप संसार में जिंदा  रहना चाहते हो तो इस प्रथा का तुरन्त अन्त कीजिए”।
एक महाशय ने शंका की—-“क्या इसका अंत किये बिना हम सब मर जायेगें ?”
यशोदानन्द-“अगर ऐसा होता तो क्या पूछना था, लोगो को सज़ा मिल जाती  और सच में ऐसा होना चाहिए। यह भगवान्  का अत्याचार है कि ऐसे लोभी, दौलत  पर गिरने वाले, अपनी संतान का व्यापार करने वाले अधर्मी जिंदा हैं  और समाज उनका अपमान नहीं करता” ।
भाषण बहुत लम्बा और  हास्य से भरा हुआ था। लोगों ने खूब वाह-वाह की । अपनी बात ख़त्म करने के बाद उन्होंने अपने छोटे लड़के परमानन्द को, जिसकी उम्र 7 साल थी, मंच पर खड़ा किया। उसे उन्होनें एक छोटा-सा भाषण  लिखकर दे रखा था। वो दिखाना चाहते थे कि इस खानदान के छोटे बच्चे  भी कितने तेज़ दिमाग वाले और बुद्धिमान हैं। सभा समाजों में बच्चों  से भाषण दिलाने की प्रथा है ही, किसी को अजीब  न लगा ।बच्चा  बड़ा सुन्दर, होनहार, हंसमुख था। मुस्कराता हुआ मंच पर आया और जेब से कागज निकाल कर बड़े गर्व के साथ ऊँची आवाज़ में पढ़ने लगा…………
“प्यारे दोस्तों ,
नमस्कार !
आपके पत्र से मालूम होता है कि आपको मुझ पर विश्वास नहीं है। मैं भगवान्  को साक्षी मानकर कहता हूँ कि आपकी सेवा में पैसा इतने  गुप्त तरीके से पहुंचेगा कि किसी को रत्ती भर  भी शक न होगा । हां सिर्फ़ एक बात जानने की गुस्ताख़ी कर रहा  हूं। इस व्यापार को गुप्त रखने से आपको जो सम्मान और प्रतिष्ठा का फ़ायदा होगा और मेरे जान पहचान वालों  में मेरी जो बुराई  की जाएगी, उसके बदले  में मेरे साथ क्या रिआयत होगी ? मेरी नम्र विनती  है कि 25  में से 5  निकालकर मेरे साथ न्याय किया जाय………..”।
महाशय यशोदानन्द घर में मेहमानों के लिए खाना  परसने का आदेश देने  गये थे। निकले तो यह शब्द उनके कानों में पड़े—“25  में से 5 निकालकर  मेरे साथ न्याय किया कीजिए” । उनका चेहरा फ़ीका पड़ गया, वो  झपटकर लड़के के पास गये, कागज उसके हाथ से छीन लिया और बोले — “नालायक, यह क्या पढ रहा है, यह तो किसी मुवक्किल का खत है जो उसने अपने मुकदमें के बारे में लिखा था। यह तू कहां से उठा लाया, शैतान जा वह कागज ला, जो तुझे लिखकर दिया गया था”।
एक महाशय—–“पढने दीजिए, इस भाषण  में जो मज़ा है, वह किसी दूसरे भाषण में न होगा”।
दूसरे—“जादू वह जो सिर चढ कर बोले !”
तीसरे—“अब जश्न बंद  कीजिए । मैं तो चला”।
चौथै—“यहां से भी चलते बने”।
यशोदानन्द—“बैठिए-बैठिए, पत्तल लगाये जा रहे हैं”।
पहले—“बेटा परमानन्द, जरा यहां तो आना, तुम्हें यह कागज कहां मिला ?”
परमानन्द—“बाबू जी ने ही तो लिखकर अपने मेज के अन्दर रख दिया था। मुझसे कहा था कि इसे पढ़ना । अब बेवजह मुझसे नाराज़ हो रहे हैं”. 
यशोदानन्द—- “वह यह कागज था नालायक जिसे मैंने मेज के ऊपर रखा  था। तूने ड्राअर में से यह कागज क्यों निकाला ?”
परमानन्द—“मुझे मेज के ऊपर नहीं मिला था”।
यशोदान्नद—“तो मुझसे क्यों नहीं  कहा, ड्राअर क्यों खोला ? देखो, आज ऐसी खबर लेता हूं कि तुम भी याद करोगे”। 
दूसरे—-“इस को लीडरी कहते हैं  कि अपना उल्लू सीधा करो और भले  भी बनो”।
तीसरे—-“शर्म आनी चाहिए। यह सब त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं”।
चौथे—“मिल तो गया था पर एक आंच की कसर रह गयी”।
पांचवे—“भगवान् पांखंडियों को ऐसे ही सज़ा देते हैं ”.
यह कहते हुए लोग उठ खडे हुए। यशोदानन्द समझ गये कि भंडा फूट गया, अब रंग न जमेगा। वो बार-बार परमानन्द को गुस्सैल आँखों से देखते और खून का घूँट पीकर  रह जाते। इस शैतान ने आज जीती-जिताई बाजी हरा दी , मुंह में कालिख लग गयी, सिर नीचा हो गया। गोली मार देने का काम किया है। उधर रास्ते में यार-दोस्त टिप्पणियां करते जा रहे थे——-
एक – “भगवान्  ने मुंह में कैसी कालिमा लगायी कि ज़रा सी भी शर्म बची होगी तो अब सूरत न दिखाएगा”।
दूसरा—“ऐसे-ऐसे दौलतमंद , जाने-माने , विद्वान् लोग इतने नीच हो सकते हैं । मुझे यही आश्चर्य हो रहा है। लेना है तो खुले खजाने लो, कौन तुम्हारा हाथ पकड़ता है; पर यह क्या कि माल चुपके-चुपके उडाओ और नाम  भी कमाओ !”
तीसरा—“मक्कार का मुंह काला !”
चौथा—“यशोदानन्द पर दया आ रही है। बेचारे ने इतनी धूर्तता की, उस पर भी पोल खुल ही गयी। बस एक आंच की कसर रह गई”।
 

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(hindi) Simply Said: Communicating Better at Work and Beyond

(hindi) Simply Said: Communicating Better at Work and Beyond

“ये समरी आपको क्यों पढ़नी चाहिए? 
क्योंकि इफेक्टिव कम्यूनीकेशन काफी इम्पोर्टेंट है, अगर आप लाइफ में आगे बढ़ना चाहते है तो आपके लिए अपनी पब्लिक स्पीकिंग स्किल्स इम्प्रूव करनी बेहद जरूरी है. ये किताब आपको वो सारी ट्रिक्स सिखाएगी जो आपको एक वेल स्ट्रक्चर्ड, क्लियर और इन्सिपिरेशनल कंटेंट लिखने में बड़े काम आयेंगे. 

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए?
ये समरी टीम  मैनेजर्स, लीडर्स, पब्लिक स्पीकर्स, स्टूडेंट्स, मार्केटर्स और हर उस  इंसान लिए बेहद काम की है जिनकी जॉब में पब्लिक स्पीकिंग का इम्पोर्टेंट रोल है या जिन्हें  लोगों  को कोई informative  या persuasive  स्पीच देनी होती है. 

ऑथर के बारे में 
जे सलिवन कम्यूनिकेशन स्किल्स कंसल्टिंग फर्म “at Exec|Comm LLC” में  मैनेजिंग पार्टनर हैं . उनका काम प्रोफेशनल्स को ये सिखाना कि वो और भी इफेक्टिव तरीके से कैसे अपनी स्पीच दे सकते हैं . जे मानते हैं कि इफेक्टिव कम्यूनिकेशन की शुरुवात ऑडियंस पर फोकस करने से होती है नाकि खुद पर. जे सलिवन एक अवार्ड विनिंग ऑथर तो हैं ही साथ ही वो फोर्ब्स में एक कोंट्रीब्यूटिंग राईटर भी हैं. उनकी किताब “Simply Said” पूरी दुनिया में पोपुलर हो चुकी है और इसलिए इसे कई भाषाओं में ट्रांसलेट भी किया गया है.   

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(hindi) Lokmat ka Samman

(hindi) Lokmat ka Samman

“बेचू धोबी को अपने गाँव और घर से उतना ही प्यार था, जितना हर इंसान को होता है। उसे रूखी-सूखी और आधे पेट खाकर भी अपना गाँव पूरी दुनिया से प्यारा था। अगर  उसे बूढ़ी किसान औरतों की गालियाँ खानी पड़ती तो बहुओं से ‘बेचू दादा’ कहकर पुकारे जाने का गौरव भी मिलता था। खुशी और दुख के हर मौकों पर उसका बुलावा होता था, खासकर शादियों में तो उसका होना दूल्हा और दुल्हन से कम जरूरी न था। उसकी बीवी घर में पूजी जाती थी, दरवाजे पर बेचू का स्वागत होता था। वह लहंगा पहने कमर में घंटियाँ बाँधे बाजे वालों को साथ लिये एक हाथ मृदंग और दूसरा अपने कान पर रख कर जब बिरहे और बोल गाने लगता तो आत्मसम्मान से उसकी आँखें भर जाती थीं। हाँ, धेले पर कपड़े धोकर भी वह अपनी हालत से संतुष्ट रह सकता था, लेकिन जमींदार के नौकरों की कठोरता और अत्याचार कभी-कभी इतनी ज़्यादा हो जाती थीं कि उसका मन गाँव छोड़कर भाग जाने को चाहने लगता था। गाँव में कारिन्दा साहब के अलावा पाँच-छह चपरासी थे। उनके साथ वालों की संख्या कम न थी। बेचू को इन लोगों के कपड़े मुफ्त धोने पड़ते थे। उसके पास इस्तरी न थी। उनके कपड़ों पर इस्तरी करने के लिए उसे दूसरे-दूसरे गाँव के धोबियों की विनती करनी पड़ती थी। अगर कभी बिना इस्तरी किये ही कपड़े ले जाता तो उसकी शामत आ जाती थी। मार पड़ती, घंटों चौपाल के सामने खड़ा रहना पड़ता, गालियों की वह बौछार पड़ती कि सुनने वाले कानों पर हाथ रख लेते, उधर से गुजरने वाली औरतें शर्म से सिर झुका लेतीं।

जेठ का महीना था। आसपास के ताल-तलैया सब सूख गए थे । बेचू को बहुत रात गए ही दूर के एक ताल पर जाना पड़ता था। यहाँ भी धोबियों की बारी बँधी हुई थी। बेचू की बारी पाँचवें दिन पड़ती थी। पहर रात रहे कपड़े लाद कर ले जाता। मगर जेठ की धूप में 9-10 बजे के बाद खड़ा न हो सकता। आधे कपड़े भी न धुल पाते, बिना धुले कपड़े समेट कर घर चला आता। गाँव के सरल लोग उसकी तकलीफ सुन कर शांत हो जाते थे; न कोई गालियाँ देता, न मारने दौड़ता। जेठ की धूप में उन्हें भी पुर चलाना और खेत जोतना पड़ता था। उनके पैरों के तलवे फट जाते  थे, उसका दर्द वो जानते थे। लेकिन कारिंदा महाशय को खुश करना इतना आसान न था। उनके आदमी रोज बेचू के सिर पर सवार रहते थे।

वह बड़ी गम्भीरता से कहते- “”तू एक-एक हफ्ते तक कपड़े नहीं लाता, क्या यह भी कोई ठंड के दिन हैं, आजकल पसीने से दूसरे दिन कपड़े मैले हो जाते हैं; कपड़ों से बू आने लगती है और तुझे कुछ भी परवाह नहीं रहती।””

बेचू हाथ-पैर जोड़कर किसी तरह उन्हें मनाता रहता था, यहाँ तक कि एक बार उसे बातें करते 9 दिन हो गये और कपड़े तैयार न हो सके। धुल तो गये थे, पर इस्तरी न हुई थी। आखिर मजबूर होकर बेचू दसवें दिन कपड़े लेकर चौपाल पहुँचा। मारे डर के उसके पैर आगे न उठते थे। कारिंदा साहब उसे देखते ही गुस्से से लाल हो गये। बोले- “”क्यों बे पाजी, तुझे गाँव में रहना है कि नहीं?””

बेचू ने कपड़ों की गठरी तख्त पर रख दी और बोला- “”क्या करूँ सरकार, कहीं भी पानी नहीं है और न मेरे इस्तरी ही है।””

कारिंदा- “”पानी तेरे पास नहीं है और सारी दुनिया में है। अब तेरा इलाज इसके सिवाय और कुछ नहीं है कि गाँव से निकाल दूँ। शैतान, हमसे झूठ बोलता है, पानी नहीं, इस्तरी नहीं।””

बेचू- “”मालिक, गाँव आपका है, चाहे रहने दें, चाहे निकाल दें, लेकिन यह कलंक न लगायें, इतनी उम्र आप ही लोगों की सेवा करते हो गयी, पर चाहे कितनी ही भूल-चूक हुई हो, कभी नीयत खराब नहीं हुई। अगर गाँव में कोई कह दे कि मैंने कभी गाहकों के साथ ऐसी चाल चली है तो उसकी टाँग की रास्ते निकल जाऊँ। यह तरीका शहर के धोबियों का है।””

जालिमों का तर्क से विरोध है। कारिंदा साहब ने कुछ और गालियां दी। बेचू ने भी इंसाफ और दया की दुहाई दी। फल यह हुआ कि उसे आठ दिन हल्दी और गुड़ पीना पड़ा। नवें दिन उसने सब गाहकों के कपड़े जैसे-तैसे धो दिये, अपना बोरिया-बँधना सँभाला और बिना किसी से कुछ कहे-सुने रात को पटने की राह ली। अपने पुराने गाहकों से विदा होने के लिए जितने धिरज की जरूरत थी, उसमें वह नहीं था।

Puri Kahaani Sune..

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(hindi) The Gospel of Wealth

(hindi) The Gospel of Wealth


क्या आपने कभी सोचा हैं कि अमीर लोगों के पैसे कहां जाते हैं? क्या वे इसे तिजोरी में बंद करके रखते हैं? ये तो ज़रूर हैं कि उनके पास ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा दौलत हैं. इस बुक में, कार्नेगी इस सरप्लस दौलत को खर्च करने का सुझाव देते हैं. उनके विचारों से अमीर और गरीब के बीच अच्छे रिश्ते बनते हैं. आप और हम आज जिस दुनिया में रहते हैं, उसे ढालने में इन्हीं विचारों का हाथ हैं.

इस समरी को किसे पढ़नी चाहिए?

•    करोड़पति 
•    अरबपति
•    CEO
•    एंट्रेप्रेन्योर
•    समाज सेवक 

ऑथर के बारे में
एंड्रू कार्नेगी एक वर्ल्ड फेमस इंडस्ट्रियलिस्ट और समाज सेवक थे. वो अमेरिकी हिस्ट्री के सबसे अमीर लोगों में से एक थे . कार्नेगी ने इतनी दौलत अपनी स्टील कंपनी से कमाई थी. जैसे-जैसे वो अमीर होते गए, कार्नेगी ने एक समाज-सेवक बनने का फैसला किया. उन्होंने लोकल लाइब्रेरी, म्यूजियम और कई यूनिवर्सिटी को फंडिंग दी.
 

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(hindi) The Adventure of the Norwood Builder

(hindi) The Adventure of the Norwood Builder

“शरलॉक  होम्ज़ ने कहा “एक क्रिमिनल एक्सपर्ट के पॉइंट ऑफ़ व्यू से अगर  देखें  तो प्रोफेसर मोरीआर्टि की मौत के बाद लंदन बड़ा बोरिंग सा शहर हो गया है” “ 
“मुझे  नहीं  लगता कि इस शहर का कोई शरीफ नागरिक तुम्हारी इस बात से इत्तेफाक रखता होगा” मैंने  शरलॉक  की बात का जवाब दिया 

 शरलॉक  ब्रेकफ़ास्ट टेबल से उठते हुए अपनी कुर्सी खिसकाते हुए मुस्कुराया और बोला “वेल, वेल,  मैं  सेल्फिश नहीं बनना चाहता. बेशक जनता का भला हुआ है, सिवाए उन  बेचारों  के जो आउट ऑफ़ वर्क हो गए है, उनका धंधा-पानी तो बंद हो गया है. जब तक वो आदमी एक्टिव था, सुबह के अखबार खबरों से भरे रहते थे. बेशक कहीं कोई डिटेल्स  नहीं  होती थी, पर मेरे लिए एक छोटा सा हिंट ही काफी था ये समझने के लिए कि इस कांड के पीछे भी जरूर उसका ही शैतानी दिमाग होगा, मुझे उसके कारनामो की खबर एक छोटे से क्लू से ही मिल जाती थी. कहीं लूट-पाट का मामला हो या खून-खराबा या फिर बेमतलब का दंगा-फसाद—सब उसी आदमी की कारस्तानी थी. शहर में होने वाले हर जुर्म के तार उससे जुड़े रहते थे. जुर्म की दुनिया का वो बेताज बादशाह था और उस हाई प्रोफाइल साइंटिस्ट को यूरोप के किसी और शहर में अपने पैर ज़माने का वो मौका  नहीं  मिलता जो उसे लंदन में मिला था. पर अब——” होम्ज़ ने ऐसे नाटकीय ढंग से अपने कंधे उचकाए कि मुझे हंसी आ गई. 

 मैं  जिस वक्त की बात कर रहा हूँ, तब होम्ज़ कुछ  महीनों  के लिए लंदन लौटा था, और  मैं  उसकी रिक्वेस्ट पर अपनी प्रैक्टिस बेचकर बेकर स्ट्रीट वाले घर में वापस उसके साथ रहने आ गया था. वर्नर नाम के एक नौजवान डॉक्टर ने मेरा केंसिंग्टन वाला छोटा सा क्लिनिक खरीद लिया था और वो भी उस कीमत पर जितनी कि  मैं  मांगने की सोच भी नहीं सकता था—खैर बाद में कुछ  सालों  बाद मुझे पता चला कि वो डॉक्टर होम्ज़ का दूर का रिश्तेदार लगता था और मेरे दोस्त ने ही सारे पैसे का इंतजाम किया था. 

हमारी इतने  महीनों  की पार्टनरशिप यूं ही बेकार  नहीं  गई, जैसा कि होम्ज़ को लग रहा था, क्योंकि जब मैंने अपने नोट्स पर नज़र डाली तो पाया कि उस दौरान हमने कई बड़े-बड़े केस सोल्व किये थे जिनमे एक्स-प्रेजिडेंट मुरिलो का केस था और डच स्टीमशिप फ्राइजलैंड (FRIESLAND) का वो सनसनीखेज केस भी शामिल था जिसके चक्कर में हम मरते-मरते बचे थे. पर जब भी पब्लिक से वाह-वाही बटोरने की बात होती, होम्ज़ का ठंडा और घमंडी रवैया आड़े आ जाता. उसने मुझे सख्ती से मना करते हुए बोल रखा था कि  मैं  उसके बारे में या उसके तरीकों और सक्सेसफुल केसेज के बारे में किसी से भी चर्चा ना करूँ.—जैसा कि मैंने पहले भी बताया था, मुझ पर एक तरह से पाबंदी लगी थी जो उसने कुछ वक्त पहले ही हटाई थी.  

खैर इस बेतुकी बहस के बाद शरलॉक अपनी कुर्सी पर पीठ टिकाकर बैठते हुए सुबह का अखबार फोल्ड कर ही रहा था कि हमारा नौकर दरवाजे की तरफ भागा, कोई दरवाजे पर खड़ा घंटी पर घंटी बजाये जा रहा था, फिर जोर-जोर से दरवाजा पीटने की आवाज़े आई ऐसा लगा कोई दरवाजे पर मुक्के बरसा रहा हो. दरवाजा खुलते ही ऐसा लगा कोई सीढियों पर कोई भागता हुआ ऊपर चढ़ा है और उसके एक मिनट बाद ही एक बदहवास नौजवान कमरे में घुस आया. उसका चेहरा डर के मारे पीला पड़ा हुआ था, और सांस फूल रही थी. उस वक्त उसे देखकर लग रहा था जैसे वो अपने होशो-हवास में  नहीं  है. उसने मुझे और  शरलॉक  को बारी-बारी से देखा और फिर तुरंत ही उसके चेहरे पर यूं अचानक से कमरे में घुस आने के लिए शर्मिंदगी के भाव नजर आये. 

उसने बड़ी ही दर्द भरी आवाज़ में माफ़ी मांगते हुए कहा”  मैं  माफ़ी चाहता हूँ मिस्टर होम्ज़. पर क्या करूँ,  मैं  एक बदनसीब  इंसान हूँ और बहुत मजबूर होकर आपके पास आया हूँ. मेरा नाम जॉन हेक्टर    मैकफ़ार्लेन (John Hector McFarlane) है” 

उसने ऐसे बोला जैसे कि  हमें  सिर्फ उसका नाम सुनकर ही पता चल जाएगा कि वो कौन है और किस काम से आया है. पर  शरलॉक  के देखते ही मुझे पता चल गया था उसे उस आदमी के नाम से कोई फर्क  नहीं  पड़ा क्योंकि ना तो आज से पहले उसने भी मेरी तरह ये नाम पहले कभी  नहीं  सुना था. 

 शरलॉक  उसकी तरफ सिगरेट केस बढ़ाते हुए बड़े आराम से बोला “सिगरेट लीजिए मिस्टर    मैकफ़ार्लेन . मुझे यकीन है की आपकी ऐसी हालत देखकर मेरे दोस्त डॉक्टर वॉटसन आपको कोई सीडेटिव लिखकर दे देंगे.  पिछले कुछ दिनों से मौसम अचानक बड़ा गर्म हो गया है. अब, अगर आप थोड़े शांत हो गए है तो प्लीज़ आराम से बैठ जाइए और आराम से बैठकर बताइए कि आप कौन है और हमसे क्या चाहते है. आपने अपना नाम ऐसे बताया जैसे कि  मैं  आपको जानता हूँ लेकिन आपको देखकर इतना जरूर कह सकता हूँ कि आप अभी तक कुंवारे है, एक लॉयर और फ्रीमेसन है और अस्थमा के मरीज भी है, इसके अलावा  मैं  आपके बारे में और कुछ  नहीं  जनता” 

अब जैसा कि  मैं  अपने दोस्त  शरलॉक  के तौर-तरीको से अच्छी तरह वाकिफ था तो  मैं  भी उसकी तरह उस आदमी को ओब्ज़ेर्व करने से खुद को रोक  नहीं  पाया. उसके कपड़ो पर पड़ी हुई सिलवटें, उसके हाथ में कानूनी दस्तावेजो का बंडल, wrist वॉच से लटकती हुई चेन और उसकी फूली हुई सांस देखकर होम्ज़ की observation एकदम सच लग रही थी. 
“जी हाँ मिस्टर होम्ज़ आपकी सारी बाते सच है पर एक बड़ा सच ये भी है कि इस वक्त  मैं  लंदन का सबसे बदनसीब  इंसान हूँ. भगवान के लिए इंकार मत कीजियेगा मिस्टर होम्ज़!  मैं  बड़ी उम्मीद लेकर आपके पास आया हूँ. मेरी बात पूरी होने से पहले अगर वो लोग मुझे गिरफ्तार कर ले तो प्लीज़ मुझे इतनी मोहलत दे देना कि  मैं  आपको अपनी सच्चाई बता सकूं. अगर आप मेरा साथ देंगे तो फिर मुझे कोई गम  नहीं  है बेशक वो लोग मुझे फांसी के फंदे पर लटका दे”

होम्ज़ हैरानी से बोला “आपको गिरफ्तार किया जा रहा है! ये तो बड़ा दिलचस्प मामला लगता है. वैसे आपको किस ईल्जाम में गिरफ्तार किया जा रहा है?’ 
“मुझ पर लोअर  नॉरवुड  के मिस्टर जोनस  ओल्डेकर  के कत्ल का ईल्ज़ाम लगा है” 
मेरे साथी के चेहरे पर एक हमदर्दी की झलक दिखी जिसमे एक तरह की तस्सली भी शामिल थी. 

 शरलॉक  बोला “ओह माई गॉड, क्या इत्तेफाक है! आज सुबह ही नाश्ते के वक्त  मैं  अपने दोस्त डॉक्टर वॉटसन से शिकायत कर रहा था कि आजकल अखबारों में सनसनीख़ेज़ खबरे आती ही नहीं है” 
हमारे उस मेहमान ने कांपते हुए हाथो से  शरलॉक  के घुटनों पर रखा हुआ सुबह का अखबार” डेली टेलीग्राफ” उठाया और बोला. 
“आपने भी अब तक खबर पढ़ ली होगी तो शायद आप समझ ही गए होंगे कि  मैं  क्यों सुबह-सुबह आपके पास आया हूँ. मुझे ऐसा लग रहा जैसे आज लंदन में हर किसी की जुबान पर मेरी ही बदनसीबी के चर्चे है. 

उसने अख़बार का सेंट्रल पेज खोलते हुए दिखाया” ये देखिए, आपकी ईजाजत हो तो  मैं  इसे पढ़कर सुनाता हूँ. ये सुनिए मिस्टर होम्ज़, ये रही हेडलाइन: लोअर  नॉरवुड  में एक रहस्यमय कत्ल. एक जाने-माने बिल्डर की गुमशुदगी का मामला. कत्ल और आगजनी का मामला.कातिल के बारे में एक सुराग”
ये है वो सुराग जिसका पीछा वो कर रहे हैं मिस्टर होम्ज़, और  मैं  जानता हूँ कि वो लोग मेरे ही पीछे पड़े है. लंदन ब्रिज स्टेशन से मेरा पीछा किया जा रहा है, वो लोग बस वारंट का इंतज़ार कर रहे है ताकि मुझे गिरफ्तार कर सके. अगर  मैं  गिरफ्तार हो गया तो मेरी माँ को बहुत सदमा लगेगा —बहुत बड़ा सदमा!” 
वो बहुत परेशान लग रहा था. अपने हाथो को कसकर निचोड़ते हुए वो कुर्सी पर बैठा आगे-पीछे झूल रहा था. 

Puri Kahaani Sune…

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(hindi) Foundation stones to happiness and success

(hindi) Foundation stones to happiness and success

“एक खुशहाल जिंदगी जीने के लिए क्या करना होगा? हम कैसे दिमागी सुकून हासिल कर सकते है ? क्या ऐसा हो सकता है कि  इंसान अपनी जिंदगी में  हमें शा खुश और शांत रह सके ? 
ज़ाहिर है ऐसे सवाल हर किसी के मन में उठते होंगे पर ये किताब कहती है कि ऐसा मुमकिन है. जिंदगी में खुशियाँ हासिल करना कोई मुश्किल काम नहीं है. बस इसके लिए आपको कुछ बेसिक बातें   फॉलो करनी होंगी. वो बेसिक चीज़ें क्या हैं,  अगर आप जानना चाहते है तो इस किताब को एक बार  ज़रूर पढ़िये. 

  ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए? 

    जो लोग किसी तरह की मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम से जूझ रहे हैं  
    जिनकी जिंदगी उलझनों और परेशानियों से भरी हुई है 
    जो लोग जिंदगी में सफल होने की कोशिश  कर रहे हैं  

  ऑथर के बारे में 

जेम्स  एलेन  एक ब्रिटिश राईटर थे जो सेल्फ-हेल्प और इन्सिपिरेशनल किताबें लिखने में माहिर थे  . उनकी बेस्ट सेलिंग किताब है “As a Man Thinketh” जोकि 1903 में पब्लिश हुई थी. ये किताब आज भी कई धार्मिक किताबों और ऑडियोबुक के लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा बनी हुई है. 
 

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(hindi) Durga Ka Mandir

(hindi) Durga Ka Mandir

“बाबू ब्रजनाथ कानून पढ़ने में लगे थे, और उनके दोनों बच्चे लड़ाई करने में। श्यामा चिल्लाती, कि मुन्नू मेरी गुड़िया नहीं देता और मुन्नू रोता कि श्यामा ने मेरी मिठाई खा ली।

ब्रजनाथ ने गुस्सा हो कर भामा से कहा- “”तुम इन बदमाशों को यहाँ से हटाती हो कि नहीं ? नहीं तो मैं एक-एक की खबर लेता हूँ।””

भामा चूल्हे में आग जला रही थी, बोली- “”अरे तो अब क्या शाम को भी पढ़ते ही रहोगे ? जरा दम तो ले लो।””

ब्रज.- “”उठा तो न जायेगा; बैठी-बैठी वहीं से कानून बघारोगी। अभी एक-आध को पटक दूँगा, तो वहीं से गरजती हुई आओगी कि हाय-हाय बच्चे को मार डाला!””

भामा- “”मैं कोई बैठी या सोयी तो नहीं हूँ। जरा एक घड़ी तुम्हीं लड़कों को बहला लोगे , तो क्या हो जाएगा ! मैंने तो उनकी नौकरी नहीं लिखायी !

ब्रजनाथ से कोई जवाब न देते बन पड़ा। गुस्सा पानी की तरह निकलने का रास्ता न पा कर और भी तेज हो जाता है। हालांकि ब्रजनाथ नैतिक सिद्धांतों को जानते थे, लेकिन उनका पालन करना इस समय सही न लगा। उन्होंने दोनों बच्चों को एक ही लाठी मारा, और दोनों को रोते-चिल्लाते छोड़ कानून की किताब बगल में दबा कर कालेज-पार्क की राह निकल पड़े ।

सावन का महीना था। आज कई दिन के बाद बादल हटे थे। हरे-भरे पेड़ सुनहरी चादर ओढ़े खड़े थे। हल्की हवा चल रही थी और बगुले डालियों पर बैठे झूले झूल रहे थे। ब्रजनाथ एक बेंच पर आ बैठे और किताब खोली। लेकिन किताब को पढ़ने से ज्यादा प्रकृति के नजारों को देखना उन्हें ज्यादा अच्छा लगा। वो कभी आसमान को देखते, कभी पत्तियों को, कभी दिल को सुकून देने वाली हरियाली को और कभी सामने मैदान में खेलते हुए लड़कों को।

अचानक उन्हें सामने घास पर कागज़ की एक पुड़िया दिखायी दी। लालच ने जिज्ञासा की आड़ में कहा – “”चलो, देखें इसमें क्या है।””

बुद्धि ने कहा- “”तुमसे मतलब ? वहीँ पड़े रहने दो।””

लेकिन जिज्ञासा के रूप में लालच की जीत हुई। ब्रजनाथ ने उठकर पुड़िया उठा ली। शायद किसी के पैसे पुड़िया में लिपटे गिर पड़े हैं। खोल कर देखा; मुहरें थे। गिना, पूरे आठ निकले। उनके आश्चर्य की सीमा न रही।

ब्रजनाथ का दिल धड़कने लगा । वो आठों मुहरें हाथ में लिये सोचने लगे, ‘इनका क्या करूँ ? अगर यहीं रख दूँ, तो न जाने किसकी नजर पड़े; न मालूम कौन उठा ले जाय ! नहीं, यहाँ रखना सही नहीं। चलूँ थाने में खबर कर दूँ और ये मुहरें थानेदार को दे दूँ। जिसके होंगे वह खुद ले जायगा या अगर उसे न भी मिलें, तो मुझ पर कोई दोष न रहेगा, मैं तो अपनी जिम्मेदारी से आजाद हो जाऊँगा।’

लालच ने परदे की आड़ से मंत्र मारना शुरू किया। वह थाने नहीं गये, सोचा- ‘चलूँ, भामा से एक मजाक करूँ। खाना तैयार होगा। कल आराम से थाने जाऊँगा।’

भामा ने मुहरें देखे, तो दिल में एक गुदगुदी-सी हुई। उसने पूछा- “”किसके हैं ?””

ब्रज.- “”मेरे ।””

भामा- “”चलो, कहीं हो न !””

ब्रज.- “”पड़ी मिली है।””

भामा- “”झूठ बात। ऐसे ही किस्मत के अमीर हो, तो सच बताओ कहाँ मिली ? किसकी है ?””

ब्रज.- “”सच कहता हूँ, पड़ी मिली है।””

भामा- “”मेरी कसम ?””

ब्रज.- “”तुम्हारी कसम।””

भामा मुहरों को पति के हाथ से छीनने की चेष्टा करने लगी।

ब्रजनाथ ने कहा- “”क्यों छीनती हो ?””

भामा- “”लाओ, मैं अपने पास रख लूँ ?””

ब्रज.- “”रहने दो, मैं इसकी खबर करने थाने जाता हूँ।””

भामा का मुहँ बिगड़ गया। बोली- “”पड़े हुए धन की क्या खबर ?””

ब्रज.- “”हाँ, और क्या, इन आठ मुहरों के लिए ईमान बिगाड़ूँगा ?””

भामा- “”अच्छा तो सबेरे चले जाना। इस समय जाओगे, तो आने में देर होगी।””

ब्रजनाथ ने भी सोचा, यही ठीक है । थानेवाले रात को तो कोई कार्रवाई करेंगे नहीं। जब मुहरों को पड़ा ही रहना है, तब जैसे थाना वैसे मेरा घर।

मुहरें बक्से में रख दीं। खा-पी कर लेटे, तो भामा ने हँस कर कहा- “”आया हुआ धन क्यों छोड़ते हो ? लाओ, मैं अपने लिए गले का हार बनवा लूँ, बहुत दिनों से जी तरस रहा है।””

लालच ने इस समय मजाक का रूप ले लिया।

ब्रजनाथ ने चिढ़ कर कहा- “”गहने  के लालच में गले में फाँसी लगाना चाहती हो क्या ?””

Puri Kahaani Sune…

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(hindi) Do Bailon Ki Katha

(hindi) Do Bailon Ki Katha

“लखनऊ नेशनल बैंक के दफ्तर में लाला साईंदास आरामकुर्सी पर लेटे हुए शेयरों का दाम देख रहे थे और सोच रहे थे कि इस बार हिस्सेदारों को मुनाफा कहाँ से दिया जायगा। चाय, कोयला या जूट के हिस्से खरीदने, चाँदी, सोने या रुई का सट्टा(एक तरह का जूआ) करने का इरादा करते; लेकिन नुकसान के डर से कुछ तय न कर पाते थे।  अनाज  के व्यापार में इस बार बड़ा घाटा रहा; हिस्सेदारों को  तसल्ली देने के लिए फायदे-नुकसान का नकली ब्योरा दिखाना पड़ा और नफा पूँजी से देना पड़ा। इससे फिर  अनाज  के व्यापार में हाथ डालते दिल काँपता था।

पर रुपये को बेकार डाल रखना नामुमकिन था। दो-एक दिन में उसे कहीं न कहीं लगाने का सही उपाय करना जरूरी था; क्योंकि डाइरेक्टरों की तिमाही (3 महीने में होने वाली) बैठक एक ही हफ्ते में होने वाली थी और अगर उस समय कुछ तय ही न हुआ, तो आगे तीन महीने तक फिर कुछ न हो सकेगा, और छमाही (6 महीने में होने वाली) मुनाफे के बँटवारे के समय फिर वही नकली कार्रवाई करनी पड़ेगी, जिसे  बार-बार सहन करना बैंक के लिए मुश्किल है। बहुत देर तक इस उलझन में पड़े रहने के बाद साईंदास ने घंटी बजायी। इस पर बगल के कमरे से एक बंगाली बाबू ने सिर निकाल कर झाँका।

साईंदास- “”ताजा-स्टील कम्पनी को एक चिट्ठी लिख दीजिए कि अपना नया बैलेंस शीट भेज दें।””

बाबू- “”उन लोगों को रूपए की जरूरत नहीं। चिट्ठी का जवाब नहीं देते ।””

साईंदास- “”अच्छा; नागपुर की स्वदेशी मिल को लिखिए।””

बाबू- “”उसका कारोबार अच्छा नहीं चल रहा है। अभी उसके मजदूरों ने हड़ताल किया था। दो महीने तक मिल बंद रहा।””

साईंदास- “”अजी, तो कहीं लिखो भी ! तुम्हारी समझ में सारी दुनिया बेईमानों से भरी है।””

बाबू- “”बाबा, लिखने को तो हम सब जगह लिख दें; मगर खाली लिख देने से तो कुछ फायदा नहीं होता।””

लाला साईंदास अपने  खानदान की इज्जत और मर्यादा के कारण बैंक के मैनेजिंग डाइरेक्टर हो गये थे पर व्यावहारिक बातों से अंजान थे। यही बंगाली बाबू इनके सलाहकार थे और बाबू साहब को किसी कारखाने या कम्पनी पर भरोसा न था। इन्हीं के शक के कारण पिछले साल बैंक का रुपया बक्से  से बाहर न निकल सका था, और अब वही रंग फिर दिखायी देता था। साईंदास को इस मुश्किल  से बचने का कोई उपाय न सूझता था। न इतनी हिम्मत थी कि अपने भरोसे किसी व्यापार में हाथ डालें। बेचैनी की हालत में उठ कर कमरे में टहलने लगे कि दरबान ने आ कर खबर दी- “”बरहल की महारानी की सवारी आयी है।””

लाला साईंदास चौंक पड़े। बरहल की महारानी को लखनऊ आये तीन-चार दिन हुए थे और हर एक के मुँह से उन्हीं की चर्चा सुनायी देती थी। कोई उनके पहनावे पर मुग्ध था, कोई सुंदरता पर, कोई उनके  आजाद ख्याल पर। यहाँ तक कि उनकी दासियाँ और सिपाही आदि की भी लोग बातें कर रहे थे। रायल होटल के दरवाजे पर देखने वालों की भीड़ लगी रहती है। कितने ही शौकीन, बेफिक्रे लोग, इत्र बेचने वाले,कपड़े बेचने वाले या तम्बाकू बेचने वाले का वेष बनाकर उन्हें देख चुके थे। जिधर से महारानी की सवारी निकल जाती, देखने वालों की भीड़ लग जाती थी।

वाह-वाह, क्या शान है ! ऐसी इराकी जोड़ी लाट साहब के सिवा किसी राजा-अमीर के यहाँ तो शायद ही निकले, और सजावट भी क्या खूब है ! भई, ऐसे गोरे आदमी तो यहाँ भी दिखायी नहीं देते। यहाँ के अमीर तो मृगांक, चंद्रोदय, और भगवान जाने, क्या-क्या खाते हैं, पर किसी के बदन पर तेज या चमक का नाम नहीं। ये लोग न जाने क्या खाना खाते और किस कुएँ का पानी पीते हैं कि जिसे देखिए, ताजा सेब बना हुआ है। यह सब हवा पानी  का असर है।

बरहल उत्तर दिशा में नेपाल के पास, अँगरेजी राज्य में एक रियासत थी। हालांकि जनता उसे बहुत मालदार समझती थी; पर असल में उस रियासत की आमदनी दो लाख से ज्यादा न थी। हाँ, उसका इलाका  बहुत बड़ा था। बहुत भूमि बंजर और उजाड़ थी। बसा हुआ भाग भी पहाड़ी और बंजर था। जमीन बहुत सस्ती उठती थी।

लाला साईंदास ने तुरन्त खुंटे से रेशमी सूट उतार कर पहन लिया और मेज़ पर आ कर शान से बैठ गये, मानो राजा-रानियों का यहाँ आना कोई साधारण बात है। दफ्तर के क्लर्क भी सँभल गये। सारे बैंक में सन्नाटे की हलचल पैदा हो गयी। दरबान ने पगड़ी सँभाली। चौकीदार ने तलवार निकाली, और अपने जगह पर खड़ा हो गया। पंखा करने वाले की मीठी नींद भी टूटी और बंगाली बाबू महारानी के स्वागत के लिए दफ्तर से बाहर निकले।

साईंदास ने बाहरी ठाट तो बना लिया, लेकिन मन उम्मीद और डर से बेचैन हो रहा था। रानी से व्यवहार करने का यह पहला ही मौका था; घबराते थे कि बात करते बने या न बने। अमीरों का मिजाज आसमान पर होता है। मालूम नहीं, मैं बात करने में कहीं चूक जाऊँ। उन्हें इस समय अपने में एक कमी मालूम हो रही थी। वह राजसी नियमों से अंजान थे। उनसे कैसा व्यवहार करना चाहिए, उनसे बातें करने में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। उनकी इज्जत बनाए रखने के लिए कितनी नम्रता सही है, इस तरह के सवालों से वह गहरी  सोच में पड़े हुए थे, और जी चाहता था किसी तरह परीक्षा से जल्दी ही छुटकारा हो जाय। व्यापारियों, मामूली जमींदारों या अमीरों से वह रुखाई और सफाई का बर्ताव किया करते थे और पढ़े-लिखे लोगों से शील और शिष्टता का।

उन मौकों पर उन्हें ज़्यादा सोचने की जरूरत न होती थी; पर इस समय बड़ी परेशानी हो रही थी। जैसे कोई लंका-वासी तिब्बत में आ गया हो, जहाँ के रस्म-रिवाज और बातचीत की उसे जानकारी न हो।

अचानक उनकी नजर घड़ी पर पड़ी। तीसरे पहर के चार बज चुके थे, लेकिन घड़ी अभी दोपहर की नींद में मग्न थी। तारीख की सुई ने दौड़ में समय को भी मात कर दिया था। वह जल्दी से उठे कि घड़ी को ठीक कर दें, इतने में महारानी का कमरे में आना हुआ। साईंदास ने घड़ी को छोड़ा और महारानी के पास जाकर  बगल में खड़े हो गये। तय न कर सके कि हाथ मिलायें या झुक कर सलाम करें। रानी जी ने खुद हाथ बढ़ा कर उन्हें इस उलझन से छुड़ाया।

जब कुर्सियों पर बैठ गये, तो रानी के प्राइवेट सेक्रेटरी ने व्यवहार की बातचीत शुरू की। बरहल की पुरानी कहानी सुनाने के बाद उसने उन उन्नतियों के बारे में बताया, जो रानी साहब की कोशिश से हुई थीं। इस समय नहरों की एक शाखा निकालने के लिए दस लाख रुपयों की जरूरत थी; लेकिन उन्होंने एक हिंदुस्तानी बैंक से ही व्यवहार करना अच्छा समझा। अब यह फैसला नेशनल बैंक के हाथ में था कि वह इस मौका से फायदा उठाना चाहता है या नहीं।

बंगाली बाबू- “”हम रुपया दे सकता है, मगर कागज-पत्तर देखे बिना कुछ नहीं कर सकता।””

सेक्रेटरी- “”आप कोई जमानत चाहते हैं।””

साईंदास दयालुता से बोले- “”महाशय, जमानत के लिए आपकी जबान ही काफी है।””

बंगाली बाबू- “”आपके पास रियासत का कोई हिसाब-किताब है ?””

लाला साईंदास को अपने हेड क्लर्क का दुनियादारी का बर्ताव अच्छा न लगता था। वह इस समय दयालुता के नशे में चूर थे। महारानी की सूरत ही पक्की जमानत थी। उनके सामने कागज और हिसाब की बात करना बनियों वाली हरकत जान पड़ती थी, जिससे शक की गंध आती है।

औरतों के सामने हम शील और शर्म के पुतले बन जाते हैं। साईंदास बंगाली बाबू की ओर गुस्से भरी नजर से देख कर बोले- “”कागजों की जाँच कोई जरूरी बात नहीं है, सिर्फ हमें भरोसा होना चाहिए।””

बंगाली बाबू- “”डाइरेक्टर लोग कभी न मानेगा।””

साईंदास- “”हमें इसकी परवाह नहीं, हम अपनी जिम्मेदारी पर रुपये दे सकते हैं।””

रानी ने साईंदास की ओर एहसानमंद नजर से देखा। उनके होंठों पर हलकी मुस्कराहट दिखाई दी ।

Puri Kahaani Sune…

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