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Category: GIGL Technical

(hindi) SUHAG KI SAAREE

(hindi) SUHAG KI SAAREE

“यह कहना भूल है कि सुखी शादीशुदा जिंदगी के लिए पति पत्नी के स्वभाव में मेल होना जरूरी है। श्रीमती गौरा और श्रीमान् कुँवर रतनसिंह में कोई बात न मिलती थी। गौरा दयालु थी, रतनसिंह पैसे पैसे का हिसाब रखते थे। वह हँसमुख थी, रतनसिंह चिंता करनेवाले थे। वह खानदान की इज्जत पर जान देती थी, रतनसिंह इसे दिखावा समझते थे। उनके सामाजिक व्यवहार और विचार में भी बड़ा अंतर था। यहाँ दयालुता की बाजी रतनसिंह के हाथ में थी। गौरा को सभी जातियों के एक साथ खाने से तकलीफ थी, विधवाओं की शादी से नफरत और अछूतों के सवालों से विरोध। रतनसिंह इन सभी चीजों को पसंद करते थे। राजनीति के बारे में यह अलगाव और भी उलझा हुआ था ! गौरा अभी के हालातों को अटल, अमर, जरूरी समझती थी, इसलिए वह नरम-गरम, कांग्रेस, आजादी, होमरूल सभी से बेपरवाह थी। कहती- ‘‘ये मुट्ठी भर पढ़े-लिखे आदमी क्या बना लेंगे, चने कहीं भाड़ फोड़ सकते हैं?’’

रतनसिंह पक्के आशावादी थे, राजनीतिक सभा की पहली लाइन में बैठने वाले, काम करने के लिए  सबसे पहले कदम उठाने वाले, स्वदेश का व्रत लिए हुए और विदेशी बहिष्कार को पूरी तरह मानने वाले। इतने अलग अलग होने पर भी उनकी शादीशुदा जिंदगी अच्छी थी। कभी-कभी उनमें मतभेद जरूर हो जाता था, पर वे हवा ऐसे झोंके थे, जो शांत पानी को हलकी-हलकी लहरों से सजा देते हैं; वे तेज झोंके नहीं थे जिनसे सागर में तूफान आ जाता है। थोड़ी-सी भी अच्छी इच्छा सारे अलगाव और मतभेदों को  खत्म कर देती थी।

Puri Kahaani Sune….

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(hindi) To Sell Is Human: The Surprising Truth About Moving Others

(hindi) To Sell Is Human: The Surprising Truth About Moving Others

“क्या आपको लगता हैं कि आप कभी भी सेल्समैन नहीं बन सकते? क्या आपको लगता हैं कि आप दूसरों को राजी नहीं कर सकते? वेल अगर ऐसा हैं तो, ये बुक आपकी सोच को बदल देगी. इस बुक में, आप सीखेंगे कि कैसे कोई भी एक सेल्स एजेंट  बन सकता हैं. ये किसी प्रॉडक्ट के बारे में नहीं हैं, बल्कि उन आइडियास के बारे में हैं जिन्हें हम हर रोज़ शेयर करते हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप आज अपनी लाइफ में क्या करते हैं, कहाँ पहुंचे हैं, फिर भी आप दूसरों पर अपना असर डाल सकते हैं और उन्हें बदल सकते हैं. ये बुक आपको सिखाएगी कि ये सब आप कैसे कर सकते हैं.

इस समरी को किसे पढ़नी चाहिए?
• सेल्स एजेंट
•कस्टमर सपोर्ट 
• एम्पलॉईस 
•यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट 
• एंट्रेप्रेन्योर

ऑथर के बारे में
डैनियल पिंक ने बिज़नस और ह्यूमन बिहेवियर पर कई किताबें लिख चुके हैं जो बेस्ट सेलर साबित हुई हैं. वो नेशनल जियोग्राफिक टीवी शो “” Crowd Control”” के होस्ट और को-प्रोड्यूसर भी हैं. उनके लिखे हुए आर्टिकल कई बड़े पब्लिकेशन जैसे 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' और 'हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू' में छपे हैं.

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(hindi) Second Chance: For Your Money, Your Life and Our World

(hindi) Second Chance: For Your Money, Your Life and Our World

“इस दुनिया में कुछ ही अमीर लोग हैं. अगर आप भी अमीर बनना चाहते हैं, तो आपको एक अमीर जैसा ही सोचना होगा. आपका गलत माइंडसेट आपको कहीं नहीं ले जाएगा. अच्छी बात ये हैं कि रॉबर्ट कियोसाकी आपको सही माइंडसेट पाने में हेल्प करेंगे. फाइनेंशियल नॉलेज से भरपूर, ये बुक आपको अमीर बनने में हेल्प करेगी.

इस समरी को किसे पढ़नी चाहिए?

•    जिन लोगों को फाइनेंस की ज़्यादा जानकारी नहीं है  
•    फाइनेंशियल एडवाइजर/मेंटर 
•    जो लोग अमीर बनना चाहते हैं

ऑथर के बारे में
रॉबर्ट टी. कियोसाकी बेस्टसेलिंग बुक 'रिच डैड, पुअर डैड' के ऑथर हैं. रॉबर्ट, रिच डैड कंपनी के फाउंडर भी हैं. इस कंपनी का गोल सेमिनार, बुक और वीडियो की मदद से लोगों को पर्सनल फाइनेंस के बारे में सीखाना हैं. रॉबर्ट, फीनिक्स, एरिजोना में अपनी पत्नी किम के साथ रहते हैं.
 

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(hindi) Rani Sarandha

(hindi) Rani Sarandha

“अँधेरी रात के सन्नाटे में धसान नदी चट्टानों से टकराती हुई इतनी सुंदर मालूम होती थी जैसे घुमुर-घुमुर करती हुई चक्कियाँ। नदी के दाहिने किनारे पर एक टीला है। उस पर एक पुराना किला बना हुआ है जिसको जंगली पेड़ों ने घेर रखा है। टीले के पूर्व की ओर छोटा-सा गाँव है। यह किला और गाँव दोनों एक बुंदेला सरकार के यश की निशानी हैं। शताब्दियाँ बित गयीं बुंदेलखंड में कितने ही राज्य उठे और गीर गए। मुसलमान आये और बुंदेला राजा उठे और गिरे, कोई गाँव कोई इलाका ऐसा न था जो इन बुरे हालातों से पीड़ित न हो। मगर इस किले पर किसी दुश्मन का झंडा न लहराया और इस गाँव में कोई बागी पैर न पाया। यह उसकी अच्छी किस्मत थी।

अनिरुद्धसिंह वीर राजपूत था। वह जमाना ही ऐसा था जब इंसान को अपनी ताकत और वीरता ही का भरोसा था। एक ओर मुसलमान सेनाएँ पैर जमाये खड़ी रहती थीं दूसरी ओर ताकतवर राजा अपने कमजोर भाइयों का गला घोंटने के लिए तैयार रहते थे। अनिरुद्धसिंह के पास सवारों और पैदल सैनिकों का एक छोटा-सा मगर अच्छा दल था। इससे वह अपने खानदान और इज्जत की रक्षा किया करता था। उसे कभी चैन से बैठना नसीब न होता था।

तीन साल पहले उसकी शादी शीतला देवी से हुई थी। मगर अनिरुद्ध घूमने के दिन और आराम की रातें पहाड़ों में काटता था और शीतला उसकी जान की खैर मनाने में। वह कितनी बार पति से विनती कर चुकी थी। कितनी बार उसके पैरों पर गिर कर रोई थी कि तुम मेरी आँखों से दूर न हो, मुझे हरिद्वार ले चलो मुझे तुम्हारे साथ वनवास अच्छा है यह दूरी अब नहीं सही जाती। उसने प्यार से कहा, जिद से कहा, विनती की मगर अनिरुद्ध बुंदेला था। शीतला अपने किसी हथियार से उसे हरा न सकी।

अँधेरी रात थी। सारी दुनिया सोती थी, तारे आकाश में जागते थे। शीतला देवी पलंग पर पड़ी करवटें बदल रही थीं और उसकी ननद सारन्धा फर्श पर बैठी मीठी आवाज में गाती थी-

बिनु रघुवीर कटत नहिं रैन

शीतला ने कहा- “”जी न जलाओ। क्या तुम्हें भी नींद नहीं आती?””

सारन्धा- “”तुम्हें लोरी सुना रही हूँ।””

शीतला- “”मेरी आँखों से तो नींद गायब हो गयी।””

सारन्धा- “”किसी को ढूँढ़ने गयी होगी।””

इतने में दरवाजा खुला और एक गठे हुए बदन के रूपवान आदमी ने अंदर आया। वह अनिरुद्ध था। उसके कपड़े भीगे हुए थे और बदन पर कोई हथियार न था। शीतला बिस्तर से उतर कर जमीन पर बैठ गयी।

सारन्धा ने पूछा- “”भैया यह कपड़े भीगे क्यों हैं?””

अनिरुद्ध- “”नदी तैर कर आया हूँ।””

सारन्धा- “”हथियार क्या हुए?””

अनिरुद्ध- “”छिन गये।””

सारन्धा- “”और साथ के आदमी?””

अनिरुद्ध- “”सबने वीर-गति पायी।””

शीतला ने दबी जबान से कहा- “”भगवान ने ही अच्छा किया।””

मगर सारन्धा के माथे पर बल पड़ गये और चहरा गर्व से चमक गया। बोली- “”भैया तुमने परिवार की इज्जत खो दी। ऐसा कभी न हुआ था।””

सारन्धा भाई पर जान देती थी। उसके मुँह से यह धिक्कार सुनकर अनिरुद्ध शर्म और दुख से बेचैन हो गया। वह वीरता की आग जिसे पल भर के लिए प्यार ने दबा लिया था फिर जलने लगी। वह उलटे पाँव लौटा और यह कह कर बाहर चला गया कि “”सारंधा तुमने मुझे हमेशा के लिए चौकन्ना कर दिया। यह बात मुझे कभी न भूलेगी।””

अँधेरी रात थी। आकाश में तारों की रोशनी धुँधली थी। अनिरुद्ध किले से बाहर निकला। पल भर में नदी के उस पार जा पहुँचा और फिर अंधेरे में गायब हो गया। शीतला उसके पीछे-पीछे किले की दीवारों तक आयी मगर जब अनिरुद्ध छलाँग मार कर बाहर कूद पड़ा तो वह पति से बिछड़ कर चट्टान पर बैठ कर रोने लगी।

इतने में सारन्धा भी वहीं आ पहुँची। शीतला ने नागिन की तरह बल खा कर कहा- “”मर्यादा इतनी प्यारी है?””

सारन्धा- “”हाँ।””

शीतला- “”अपना पति होता तो दिल में छिपा लेती।””

सारन्धा- “”ना छाती में छुरा चुभा देती।””

शीतला ने ऐंठकर कहा- “”चोली में छिपाती फिरोगी मेरी बात गांठ में बाँध लो।””

सारन्धा- “”जिस दिन ऐसा होगा मैं भी अपनी बात पूरी कर दिखाऊँगी।””

Puri Kahaani Sune….

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(hindi) Vismruti

(hindi) Vismruti

“चित्रकूट के सन्निकट धनगढ़ नामक एक गाँव है। कुछ दिन हुए वहाँ शानसिंह और गुमानसिंह दो भाई रहते थे। ये जाति के ठाकुर (क्षत्रिय) थे। लड़ाई में बहादुरी के कारण उनके पूर्वजों को जमीन का एक भाग मुफ्त मिला था। खेती करते थे, भैंसें पाल रखी थीं, घी बेचते थे, मट्ठा खाते थे और खुशी से समय काट रहे थे। उनकी एक बहन थी, जिसका नाम दूजी था। जैसा नाम वैसा गुण। दोनों भाई मेहनती और बहुत ही हिम्मती थे। बहन बहुत ही कोमल, नाजुक, सिर पर घड़ा रख कर चलती तो उसकी कमर बल खाती थी; लेकिन तीनों अभी तक कुँवारे थे। साफ था कि उन्हें शादी की चिंता न थी। बड़े भाई शानसिंह सोचते, छोटे भाई के रहते हुए अब मैं अपना शादी कैसे करूँ। छोटे भाई गुमानसिंह शर्म के कारण अपनी इच्छा बता न पाते थे कि बड़े भाई से पहले मैं अपनी शादी कर लूँ ? वे लोगों से कहा करते थे कि- “”भाई, हम बड़े खुशी से हैं, खुशी से खाना खाकर मीठी नींद सोते हैं। कौन यह झंझट सिर पर ले?””

लेकिन शादी के महीनों में कोई नाई या ब्राह्मण गाँव में दुल्हा ढूँढ़ने आ जाता तो उसकी सेवा-सत्कार में कोई कमी न रखते थे। पुराने चावल निकाले जाते, पालतू बकरे देवी को बलि करते, और दूध की नदियाँ बहने लगती थीं। यहाँ तक कि कभी-कभी उसके भाई का प्यार मुकाबले और दुश्मनी-के भाव के रूप में बदल जाता था। इन दिनों में इनकी दयालुता बढ़ जाती थी, और इसमें फ़ायदा उठाने वालों की भी कमी न थी। कितने ही नाई और ब्राह्मण शादी की  झूठी खबर ले कर उनके यहाँ आते, और दो-चार दिन पूड़ी-कचौड़ी खाकर  कुछ विदाई ले कर वरक्षा (फलदान) भेजने का वादा करके अपने घर का रास्ता लेते। लेकिन दूसरे लग्न तक वह दिखाई तक न देते थे। किसी न किसी कारण भाइयों की यह मेहनत बेकार हो जाती थी। अब कुछ उम्मीद थी, तो दूजी से थी । भाइयों ने यह तय कर लिया था कि इसकी शादी वहीं पर की जाये, जहाँ से एक बहू मिल सके।

इसी बीच गाँव का बूढ़ा कारिन्दा मर गया। उसकी जगह  एक नवयुवक ललनसिंह आया जो अँगरेज़ी में पढ़ा लिखा हुआ शौकीन, रंगीन और रसीला आदमी था। दो-चार दिनों में ही उसने पनघटों, तालाबों और झरोखों की देखभाल अच्छी तरह कर ली थी । आखिर में उसकी रसभरी नजर दूजी पर पड़ी। उसकी कोमलता और सुंदरता पर वो मुग्ध हो गया। भाइयों से प्यार और आपसी मेल-जोल पैदा किया। 

कुछ शादी के बारे में बातचीत छेड़ दी। यहाँ तक कि हुक्का-पानी भी साथ-साथ होने लगा। सुबह शाम इनके घर पर आया करता। भाइयों ने भी उसके आदर-सम्मान की चीजें जमा कीं। पानदान ख़रीद लाये, कालीन खरीदी। वह दरवाजे पर आता तो दूजी तुरंत पान के बीड़े बनाकर भेजती। बड़े भाई कालीन बिछा देते और छोटे भाई तश्तरी में मिठाइयाँ रख लाते। एक दिन श्रीमान ने कहा- “”भैया शानसिंह, भगवान की दया हुई तो अब की लग्न में भाभीजी आ जायेंगी। मैंने सब बातें ठीक कर ली हैं।””

शानसिंह की बाछें खिल गयीं। गुजारिश भरी नजरों से देख कर कहा- “”मैं अब इस हालात में क्या करूँगा। हाँ, गुमानसिंह की बातचीत कहीं ठीक हो जाती, तो पाप कट जाता।””

गुमानसिंह ने ताड़ का पंखा उठा लिया और झलते हुए बोले- “”वाह भैया ! कैसी बात कहते हो ?””

ललनसिंह ने अकड़कर शानसिंह की ओर देखते हुए कहा- “”भाई साहब, क्या कहते हो, अबकी लग्न में दोनों भाभियाँ छमाछम करती हुई घर में आवें तो बात है ! मैं ऐसा कच्चा मामला नहीं रखता। तुम तो अभी से बुड्ढों की तरह बातें करने लगे। तुम्हारी उम्र हालांकि पचास से भी ज्यादा हो गयी, पर देखने में चालीस साल से भी कम मालूम होती है। अब दोनों की शादी होगी , बीच खेत होगी । यह तो बताओ, कपड़ों गहनों का पूरा इंतजाम है न ?””

शानसिंह ने उनके जूतों को सीधा करते हुए कहा- “”भाई साहब ! आप की अगर ऐसी दया है, तो सब कुछ हो जायेगा। आखिर इतने दिन कमा-कमा कर क्या किया है।””

गुमानसिंह घर में गये, हुक्का ताजा किया, तम्बाकू में दो-तीन बूँद इत्र के डाले, चिलम भरी, दूजी से कहा, कि शरबत घोल दे और हुक्का ला कर ललनसिंह के सामने रख दिया।

ललनसिंह ने दो-चार दम लगाये और बोले- “”नाई दो-चार दिन में आने वाला है। ऐसा घर चुना है कि मन खुश हो जाये. एक विधवा है, दो बेटियाँ, एक से एक सुंदर। विधवा दो-एक साल में गुजर जाएगी और तुम पूरे गाँव में दो आने के हिस्सेदार बन जाओगे। गाँव वाले जो अभी हँसी करते हैं, पीछे जल-जल कर मर जाएँगे । हाँ, डर इतना ही है कि कोई बुढ़िया के कान न भर दे कि सारा बना-बनाया खेल बिगड़ जाये।””

शानसिंह के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। गुमानसिंह के चहरे की चमक  कम हो गयी। कुछ देर बाद शानसिंह बोले- “”अब तो आपकी ही आशा है, आपकी जैसी राय हो, किया जाय।””

जब कोई आदमी हमारे साथ बिना किसी कारण के दोस्ती करने लगे तो हमें सोचना चाहिए कि इसमें उसका कोई स्वार्थ तो नहीं छिपा है। अगर हम अपने सीधेपन से इस धोखे में पड़ जायँ कि कोई इंसान हमें सिर्फ एहसानमंद बनाने के लिए हमारी मदद करने लिए तैयार है तो हमें धोखा खाना पड़ेगा। लेकिन अपने स्वार्थ की धुन में ये मोटी-मोटी बातें भी हमारी नजरों से छिप जाती हैं और धोखा अपने रँगे हुए भेष में आकर हमें हमेशा के लिए आपसी व्यवहार का उपदेश देता है।

 शानसिंह और गुमानसिंह ने सोच समझ कर कुछ भी काम न लिया और ललनसिंह के फंदे में फंसते चले गये। दोस्ती ने यहाँ तक पाँव पसारे कि भाइयों के न होने पर भी वह बेधड़क घर में घुस जाते और आँगन में खड़े हो कर छोटी बहन से पान-हुक्का माँगते। दूजी उन्हें देखते ही बड़ी खुशी से पान बनाती। फिर दोनों की आँखें मिलतीं, एक प्यार की उम्मीद से बेचैन, दूसरी शर्म से छुपी हुई। फिर मुस्कराहट की झलक होंठों पर आती। आँखों की ठंडक कलियों को खिला देती। दिल आँखों से बातें कर लेते।

इस तरह प्यार और इच्छा बढ़ती गयी। उस तरह नजर मिलने में, जो भावनाओं का बाहरी रूप था, परेशानी और बेचैनी की हालत पैदा हुई। वह दूजी, जिसे कभी सामान बेचने वाले की आवाज भी दरवाजे से बाहर न निकाल सकती थी, अब प्यार में पड़ कर इंतजार की मूर्ति बनी हुई घंटों दरवाज़े पर खड़ी रहती। उन दोहे और गीतों में, जिन्हें वह कभी मजाक में गाया करती थी, उसे खास लगाव और बिछड़ने का सा दर्द महसूस होने लगा था । मतलब यह कि प्यार का रंग गाढ़ा हो गया था ।

धीरे-धीरे गाँव में बात होने लगी। घास और कास खुद उगते हैं। उखाड़ने से भी नहीं जाते। अच्छे पौधे बड़ी देख-रेख से उगते हैं। इसी तरह बुरी खबर खुद फैलती  हैं, छिपाने से भी नहीं छिपती । पनघटों और तालाबों के किनारे इस बारे में कानाफूसी होने लगी। गाँव की बनियाइन, जो अपनी तराजू पर दिलों को तोलती थी और ग्वालिन जो पानी में प्यार का रंग देकर दूध का दाम लेती थी और तम्बोलिन जो पान के बीड़ों से दिलों पर रंग जमाती थी, बैठ कर दूजी के उतावलेपन और बेशर्मी की बातें करने लगीं। बेचारी दूजी का घर से निकलना मुश्किल हो गया। सखी-सहेलियाँ और बड़े-बूढ़े  सभी उसे ताने मारते। सखी-सहेलियाँ हँसी से छेड़तीं और बूढ़ी औरतें दिल दुखाने वाले तानो से।

आदमियों तक बातें फैलीं। ठाकुरों का गाँव था। उनके गुस्से की आग भड़की। आपस में सम्मति हुई कि ललनसिंह को इस बदमाशी की सजा देना सही होगा। दोनों भाइयों को बुलाया और बोले- “”भैया, क्या अपनी इज्जत को बर्बाद करके शादी करोगे ?””

दोनों भाई चौंक पड़े। उन्हें शादी की उम्मीद में यह होश ही न था कि घर में क्या हो रहा है। शानसिंह ने कहा- “”तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आयी। साफ-साफ क्यों नहीं कहते।””

एक ठाकुर ने जवाब दिया- “”साफ-साफ क्या कहलाते हो। इस बदमाश ललनसिंह का अपने यहाँ आना-जाना बंद कर दो, तुम तो अपनी आँखों पर पट्टी बाँधे ही हो, पर उसकी जान की खैर नहीं। हमने अभी तक इसीलिए कुछ नहीं कहा कि शायद तुम्हारी आँखें खुल जाएँ, लेकिन लगता है कि तुम्हारे ऊपर उसने कोई जादू कर दिया है। शादी क्या अपनी इज्जत बेच कर करोगे ? तुम लोग खेत में रहते हो और हम लोग अपनी आँखों से देखते हैं कि वह बदमाश अपना बनाव-सँवार किये आता है और तुम्हारे घर में घंटों घुसा रहता है। तुम उसे अपना भाई समझते हो तो समझा करो, हम तो ऐसे भाई का गला काट लें जो धोखा करे।””

भाइयों की आँखें खुलीं। दूजी के बुखार के बारे में जो शक था, वह प्यार का बुखार निकला। उनके खून में उबाल आया। आँखों में चिनगारियाँ उमड़ी । तेवर बदले। दोनों भाइयों ने एक दूसरे की ओर गुस्से भरी नजर से देखा। मन के भाव जुबान तक न आ सके। अपने घर आये; लेकिन दरवाजे पर पाँव रखा ही था कि ललनसिंह से मुठभेड़ हो गयी।

ललनसिंह ने हँस कर कहा- “”वाह भैया ! वाह ! हम तुम्हारी खोज में बार-बार आते हैं, लेकिन तुम दिखाई तक नहीं देते। मैंने समझा, आखिर रात में तो कुछ काम न होगा। लेकिन देखता हूँ, आपको इस समय भी छुट्टी नहीं है।””

शानसिंह ने दिल के अंदर गुस्से की आग को दबा कर कहा- “”हाँ, इस समय सच में छुट्टी नहीं है।””

ललनसिंह- “”आखिर क्या काम है ? मैं भी सुनूँ।””

शानसिंह- “”बहुत बड़ा काम है, आपसे छिपा न रहेगा।””

ललनसिंह- “”कुछ कपड़े गहने का भी इंतजाम कर रहे हो ? अब लग्न सिर पर आ गया है।””

शानसिंह- “”अब बड़ा लग्न सिर पर आ पहुँचा है, पहले इसका इंतजाम करना है।””

ललनसिंह- “”क्या किसी से ठन गयी ?””

शानसिंह- “”अच्छी-तरह।””

ललनसिंह- “”किससे ?””

शानसिंह- “”इस समय जाइये, सुबह बतलाऊँगा।””

Puri Kahaani Sune…

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(hindi) THE HAPPINESS PROJECT

(hindi) THE HAPPINESS PROJECT

“हर कोई जिंदगी में खुशियाँ चाहता है. दरअसल खुश रहना सबका अधिकार है. हम सब जिंदगी में खुशियाँ चाहते है पर हम कभी कोई ऐसा प्लान  नहीं  बनाते जो हमारी खुशियों को बढाए. इस बुक की ऑथर  ग्रेचेन रुबिन ने खुद को खुश रखने के लिए एक ऐसा तरीका ढूँढा जो उनकी जिंदगी को और भी मजेदार और खूबसूरत बना दे. उन्होंने एक प्रोजेक्ट स्टार्ट किया  जिसमें  उन्होंने प्लान किया कि वो हर महीने अपनी लाइफ के किसी एक एरिया पर फोकस करेंगी. इस बुक समरी में आपको भी ऑथर उस प्लान के बारे पढने को मिलेगा जिसे सीखकर आप अपनी जिंदगी में और भी ज्यादा ख़ुशी और फुलफिलमेंट ला सकते हो. 

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए?

•    पेरेंट्स 
•    कॉलेज स्टूडेंट्स 
•    एम्प्लोईज़ 
•    यंग एडल्ट्स 
•    मिलेनिय्ल्स 
•    हर वो इंसान जो अपना न्यू ईयर रेजोल्यूशन अचीव करना चाहता है 
•    हर वो इंसान जिसे लाइफ में मोटिवेशन और इंस्पिरेशन की जरूरत है. 

ऑथर के बारे में 
ग्रेचेन रुबिन एक ऑथर हैं जिन्होंने कई न्यू यॉर्क टाइम्स बेस्टसेलर किताबें लिखी हैं जिनमें Outer Order, Inner Calm, Better Than Before, The Happiness Project, और Happier at Home शामिल हैं.  ग्रेचेन प्रिंट और ऑनलाइन दोनों फॉर्म में काफी पोपुलर हैं और उनकी किताबों की दुनियाभर में 3.5 से भी ज्यादा कॉपी बिक चुकी है. साथ ही वो टीवी पर भी काफी popular हैं. इसके अलावा उनका एक वीकली पॉडकास्ट भी आता है  जिसका नाम “Happier with Gretchen Rubin” है जहाँ वो लोगों को अच्छी आदतों के बारे में बताती हैं और हैप्पीनेस टिप्स देती हैं. 
 

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(hindi) Raja Hardaul

(hindi) Raja Hardaul

“बुंदेलखंड में ओरछा पुराना राज्य है। इसके राजा बुंदेले हैं। इन बुंदेलों ने पहाड़ों की घाटियों में अपना जीवन बिताया है। एक समय ओरछे के राजा जुझार सिंह थे। ये बड़े हिम्मती और बुद्धिमान थे। शाहजहाँ उस समय दिल्ली के बादशाह थे। जब शाहजहाँ लोदी ने बगावत की और वह शाही मुल्क को लूटता-पाटता ओरछे की ओर आ निकला, तब राजा जुझार सिंह ने उससे मोर्चा लिया। राजा के इस काम से शाहजहाँ बहुत खुश हुए। उन्होंने तुरंत ही राजा को दक्षिण के शासन की जिम्मेदारी सौंपी। उस दिन ओरछे में जश्न मनाया गया । शाही दूत खिलअत(सम्मान में दिया जाने वाला कपड़ा) और प्रमाण पत्र ले कर राजा के पास आया। जुझार सिंह को बड़े-बड़े काम करने का मौका मिला।

सफ़र की तैयारियाँ होने लगीं, तब राजा ने अपने छोटे भाई हरदौल सिंह को बुला कर कहा,

“”भैया, मैं तो जाता हूँ। अब यह राज-पाट तुम्हारे हवाले है। तुम भी इसे दिल से प्यार करना! इंसाफ ही राजा का सबसे बड़ा सहायक है। इंसाफ के किले में कोई दुश्मन नहीं घुस सकता, चाहे वह रावण की सेना या इंद्र की ताकत लेकर आए, पर इंसाफ वही सच्चा है, जिसे जनता भी इंसाफ समझे। तुम्हारा काम सिर्फ इंसाफ करना ही न होगा, बल्कि जनता को अपने इंसाफ का भरोसा भी दिलाना होगा और मैं तुम्हें क्या समझाऊँ, तुम खुद समझदार हो।””

यह कह कर उन्होंने अपनी पगड़ी उतारी और हरदौल सिंह के सिर पर रख दीं। हरदौल रोता हुआ उनके पैरों से लिपट गया। इसके बाद राजा अपनी रानी से विदा होने के लिए रनिवास(राजा के परिवार की औरतों के रहने की जगह या महल) आए। रानी दरवाज़े पर खड़ी रो रही थी। उन्हें देखते ही पैरों पर पड़ी। जुझार सिंह ने उठा कर उसे गले से लगाया और कहा, “”प्यारी, यह रोने का समय नहीं है। बुंदेलों की पत्नियां ऐसे मौका पर रोया नहीं करतीं। भगवान ने चाहा, तो हम-तुम जल्द मिलेंगे। मुझ से ऐसे ही प्यार करना। मैंने राज-पाट हरदौल को सौंपा है, वह अभी बच्चा है। उसने अभी दुनिया नहीं देखी है। अपनी सलाह से उसकी मदद करती रहना।””

रानी की ज़बान बंद हो गई। वह अपने मन में कहने लगी, “”हाय यह कहते हैं, बुंदेलों की पत्नियां ऐसे मौकों पर रोया नहीं करतीं। शायद उनके दिल नहीं होता, या अगर होता है तो उसमें प्यार नहीं होता!”” रानी कलेजे पर पत्थर रख कर आँसू पी गई और हाथ जोड़ कर राजा की ओर मुस्कराती हुई देखने लगी; पर क्या वह मुस्कराहट थी। जिस तरह अंधेरे मैदान में मशाल की रोशनी अंधेरे को और भी बढ़ा देती है, उसी तरह रानी की मुस्कराहट उसके मन के असीमित दुख को और भी दिखा रही थी।

जुझार सिंह के चले जाने के बाद हरदौल सिंह राज करने लगा। थोड़े ही दिनों में उसके इंसाफ और जनता के लिए प्यार ने जनता का मन जीत लिया। लोग जुझार सिंह को भूल गए। जुझार सिंह के दुश्मन भी थे और दोस्त भी; पर हरदौल सिंह का कोई दुश्मन न था, सब दोस्त ही थे। वह इतना हँसमुख और मीठा बोलने वाला था कि उससे जो बातें कर लेता, वही जीवन भर उसका भक्त बना रहता। राज्य भर में ऐसा कोई न था जो उसके पास तक न पहुँच सकता हो। रात-दिन उसके दरबार का दरवाजा सबके लिए खुला रहता था। ओरछे को कभी ऐसा सब को पसंद आने वाला राजा नसीब न हुआ था। वह दयालु था, भरोसेमंद था, विद्या और गुण पसंद करने वाला था, पर सबसे बड़ा गुण जो उसमें था, वह उसकी वीरता थी। उसका वह गुण हर दर्जे को पहुँच गया था। जिस जाति के जीवन का आधार तलवार पर है, वह अपने राजा के किसी गुण को इतना पसंद नहीं करती जितना उसकी वीरता को। हरदौल अपने गुणों से अपनी जनता के मन का भी राजा हो गया, जो देश और दौलत पर राज करने से भी मुश्किल है। इस तरह एक साल बीत गया। उधर दक्षिण में जुझार सिंह ने अपने शासन से चारों ओर शाही दबदबा जमा दिया, इधर ओरछे में हरदौल ने जनता पर मोहन-मंत्र फूँक दिया।

फाल्गुन का महीना था, रंग और गुलाल से ज़मीन लाल हो रही थी। कामदेव का प्रभाव लोगों को भड़का रहा था। रबी(एक तरह की फसल) ने खेतों में सुनहरा फ़र्श बिछा रखा था और खेतों में सुनहरे महल उठा दिए थे। संतोष इस सुनहरे फ़र्श पर इठलाता फिरता था और बेफिक्री उस सुनहरे महल में गाने गा रही थी। इन्हीं दिनों दिल्ली का मशहूर फेकैती(भाला चलाने वाला योद्धा) कादिर खाँ ओरछे आया। बड़े-बड़े पहलवान उसका लोहा मान गए थे। दिल्ली से ओरछे तक सैंकड़ों मर्दानगी(शरीर की ताकत) के घमंड में  मतवाले उसके सामने आए, पर कोई उससे जीत न सका। 

उससे लड़ना किस्मत से नहीं, बल्कि मौत से लड़ना था। वह किसी इनाम का भूखा न था। जैसा ही दिल का दिलेर था, वैसा ही मन का राजा था। ठीक होली के दिन उसने धूम-धाम से ओरछे में खबर दी कि “”खुदा का शेर दिल्ली का कादिर खाँ ओरछे आ पहुँचा है। जिसे अपनी जान भारी हो, आ कर अपनी किस्मत का निपटारा कर ले।”” ओरछे के बड़े-बड़े बुंदेले सूरमा वह घमंड-भरी बातें सुन कर गरम हो उठे। फाग और डफ के गानों के बदले ढोल की आवाज सुनाई देने लगी। हरदौल का अखाड़ा ओरछे के पहलवानों और फेकैतों का सबसे बड़ा अड्डा था। शाम को यहाँ सारे शहर के सूरमा जमा हुए। कालदेव और भालदेव बुंदेलों की नाक थे, सैंकड़ों मैदान मारे हुए। ये दोनों पहलवान कादिर खाँ का घमंड चूर करने के लिए गए।

दूसरे दिन क़िले के सामने तालाब के किनारे बड़े मैदान में ओरछे के छोटे-बड़े सभी जमा हुए। कैसे-कैसे सजीले, अलबेले जवान थे, सिर पर खुशरंग बांकी पगड़ी, माथे पर चंदन का तिलक, आँखों में मर्दानगी का नशा, कमर में तलवार। और कैसे-कैसे बूढ़े थे, तनी हुईं मूँछें, सफेद पर तिरछी पगड़ी, कानों में बँधी हुई दाढ़ियाँ, देखने में तो बूढ़े, पर काम में जवान, किसी को कुछ न समझने वाले। उनकी आदमियों वाली चाल-ढाल नौजवानों को शर्मिंदा करती थी। हर एक के मुँह से वीरता की बातें निकल रही थीं। नौजवान कहते थे, “”देखें आज ओरछे की इज्जत रहती है या नहीं।”” पर बूढ़े कहते- “”ओरछे की हार कभी नहीं हुई, न होगी।”” वीरों का यह जोश देख कर राजा हरदौल ने बड़े ज़ोर से कहा , “”खबरदार, बुंदेलों की इज्जत रहे या न रहे; पर उनके नाम में आंच न आए। अगर किसी ने औरों को यह कहने का मौका दिया कि ओरछे वाले तलवार से न जीत सके तो धांधली कर बैठे, वह अपने को जाति का दुश्मन समझे।””

Puri Kahaani Sune

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(hindi) FATIHA

(hindi) FATIHA

“सरकारी अनाथालय से निकलकर मैं सीधा फौज में  भर्ती  किया गया। मेरा शरीर मजबूत और ताकतवर था। साधारण इंसानों के मुकाबले मेरे हाथ-पैर कहीं लम्बे और गठीले थे। मेरी लम्बाई पूरी छह फुट नौ इंच थी। फौज में ‘देव’ के नाम से मशहूर था। जब से मैं फौज में  भर्ती  हुआ, तब से मेरी किस्मत ने भी पलटना शुरू किया और मेरे हाथ से कई ऐसे काम हुए, जिनसे इज्जत के साथ-साथ मेरी तनख्वाह भी बढ़ती गई। फौज का हर एक जवान मुझे जानता था। मेजर सरदार हिम्मतसिंह की मेरे ऊपर बहुत कृपा थी; क्योंकि मैंने एक बार उनकी जान बचाई थी। इसके अलावा न जाने क्यों उन्हें देखकर मेरे दिल में भक्ति और श्रद्धा आ जाती। मैं यही समझता कि यह मेरे पूज्य हैं और सरदार साहब का भी व्यवहार मेरे साथ प्यार और दोस्ती भरा था।

मुझे अपने माता-पिता का पता नहीं है, और न उनकी कोई याद है। कभी-कभी जब मैं इस सवाल को सोचने बैठता हूँ, तो कुछ धुँधले-से नजारे दिखाती देते हैं। बडे-बड़े पहाड़ों के बीच में रहता हुआ एक परिवार, और एक औरत का चहरा, जो शायद मेरी माँ का होगा। पहाड़ी के बीच में तो मैं पला बढ़ा ही हुँ। पेशावर से 80 मील दूर पूर्व एक गांव है, जिसका नाम ‘कुलाहा’ है, वहीं पर एक सरकारी अनाथालय है। इसी में मैं पाला गया। यहाँ से निकल कर सीधा फौज में चला गया। हिमालय की जलहवा से मेरा शरीर बना है, और मैं वैसा ही बड़े शरीर का हूँ, जैसे कि सीमाप्रांत के रहने वाले अफ्रीदी, गिलजई, महसूदी आदि पहाड़ी कबीलों के लोग होते हैं। अगर उनके और मेरे जीवन में कुछ अंतर है तो वह सभ्यता का है । मैं थोड़ा- बहुत पढ़-लिख लेता हूँ, बातचीत कर लेता हूँ, अदब-कायदा जानता हूँ,। छोटे-बडे़ का लिहाज कर सकता हूँ, लेकिन मेरा शरीर वैसा ही है, जैसे कि किसी भी सरहद में रहने वाले आदमी का  हो सकता है।

कभी-कभी मेरे मन में इच्छा होती कि आजाद होकर पहाड़ों की सैर करूँ; लेकिन जीविका का सवाल मेरी इच्छा को दबा देता। उस सूखे देश में खाने का कुछ भी ठिकाना नहीं था। वहाँ के लोग एक रोटी के लिए इंसान की हत्या कर डालते, एक कपड़े के लिए मुरदे की लाश चीड़-फाड़ कर फेंक देते और एक बंदूक के लिए सरकारी फौज पर छापा मारते हैं। इसके अलावा उन जंगली जातियों का एक-एक इंसान मुझे जानता था और मेरे खून का प्यासा था। अगर मैं उन्हें मिल जाता, तो जरूर मेरा नाम-निशान दुनिया से मिट जाता। न जाने कितने अफ्रीदियों और गिलजइयों को मैंने मारा था, कितनों को पकड़-पकड़ कर सरकारी जेल में भर दिया था और न मालूम उनके कितने गाँवों को जला कर खाक कर दिया था। मैं भी बहुत सतर्क रहता, और जहाँ तक होता, एक जगह पर हफ्ते से ज्यादा कभी न रहता।

Puri Kahaani Sune…

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(hindi) Prarabdh

(hindi) Prarabdh

“लाला जीवनदास को बिस्तर पर पड़े 6 महीने हो गये हैं। हालत दिनोंदिन खराब होती जाती है। इलाज पर उन्हें अब जरा भी भरोसा नहीं रहा। सिर्फ प्रारब्ध(तकदीर) का ही भरोसा है। कोई जानने वाला वैद्य या डॉक्टर का नाम लेता है तो मुँह फेर लेते हैं। उन्हें जीवन से अब कोई उम्मीद नहीं है। यहाँ तक कि अब उन्हें अपनी बीमारी के जिक्र से भी नफरत होती है। एक पल के लिए भूल जाना चाहते हैं कि मैं मरने वाला हूँ। एक पल के लिए इस लाइलाज चिंता के भार को सिर से फेंक कर आराम से साँस लेने के लिए उनका मन तरसता है। उन्हें राजनीति में कभी रुचि नहीं रही। अपनी खुद की चिंताओं में ही डूबे रहते। लेकिन अब उन्हें राजनीति के बारे में बात करने से खासा प्यार हो गया है। अपनी बीमारी की बात के अलावा वह हर बात के बारे में शौक से सुनते हैं, लेकिन जैसे ही किसी ने सहानुभूति से किसी दवाई का नाम लिया कि उनका भाव बदल जाता है। अंधरे में रोने की आवाज इतनी उम्मीद देने वाली नहीं होती जितनी रोशनी की एक झलक होती है ।

वो सच्चाई पसंद करने वाले आदमी थे। धर्म-अधर्म, स्वर्ग-नरक की बातें उनकी समझ से बाहर थीं। यहाँ तक कि अंजाने डर से भी वे डरते न थे। लेकिन उसका कारण उनकी मानसिक कमजोरी न थी, बल्कि दुनियादारी की चिंता ने परलोक की चिंता की जगह ही नहीं छोड़ी थी। उनका परिवार बहुत छोटा था, पत्नी और एक बच्चा था । लेकिन उनका स्वभाव दयालु था, उधार से बढ़ा रहता था। उस पर यह लाइलाज और लम्बी बीमारी ने उधार को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था। मेरे बाद इन बेसहारों का क्या हाल होगा? ये किसके सामने हाथ फैलायेंगे? कौन इनकी खबर लेगा? हाय ! मैंने शादी क्यों की? पारिवारिक बंधन में क्यों फँसा? क्या इसलिए कि ये दुनिया के दया के सहारे रहें? क्या अपने खानदान की इज्जत और सम्मान को ऐसे बर्बाद होने दूँ? जिस जीवनदास की दया पर सारा शहर था उसी के पोते और बहू घर घर की ठोकरें खाते फिरें? हाय, क्या होगा? कोई अपना नहीं, चारों ओर भयानक जंगल है ! कहीं रास्ते का पता नहीं। यह सरल औरत, यह नादान बच्चा ! इन्हें किस पर छोड़ूँ?

हम अपनी इज्जत पर जान देते थे। हमने किसी के सामने सिर नहीं झुकाया। किसी के कर्जदार नहीं हुए। हमेशा गर्दन उठा कर चले; और अब यह नौबत है कि कफन का भी ठिकाना नहीं रहा !

आधी रात गुजर चुकी थी । जीवनदास की हालत आज बहुत नाजुक थी। उन्हें बार-बार बेहोशी आ जाती। बार-बार दिल की गति रुक जाती। उन्हें लगता कि अब मौत करीब है। कमरे में एक लैम्प जल रहा था। उनके बिस्तर के पास ही प्रभावती और उसका बच्चा साथ सोए हुए थे। जीवनदास ने कमरे की दीवारों को निराशा भरी नजरों से देखा जैसे कोई भटका हुआ राही रहने की जगह की खोज में हो ! चारों ओर से घूम कर उनकी आँखें प्रभावती के चेहरे पर जम गयीं। हा ! यह सुन्दरी एक पल में विधवा हो जायेगी ! यह बच्चा अनाथ हो जायेगा। यही दोनों मेरी जीवन की आशाओं के केन्द्र थे। मैंने जो कुछ किया, इन्हीं के लिए किया। मैंने अपना जीवन इन्हीं के नाम कर दिया था और अब इन्हें बीच में छोड़े जा रहा हूँ। इसलिए कि वे तकलीफ के भँवर का निवाला बन जायँ। इस सोच ने उनके दिल को मसल कर रख दिया। आँखों से आँसू बहने लगे।

अचानक उनकी सोच में एक अजीब बदलाव हुआ। निराशा की जगह मुंह पर एक मजबूत संकल्प की चमक दिखायी दी, जैसे किसी औरत की झिड़कियाँ सुन कर एक गरीब भिखारी के तेवर बदल जाते हैं। नहीं, कभी नहीं ! मैं अपने प्यारे बेटे और अपनी जान से प्यारी पत्नी पर प्रारब्ध(तकदीर) का अत्याचार न होने दूँगा। अपने खानदान की इज्जत को बर्बाद न होने दूँगा। इस अबला को जीवन की कठिन परीक्षा में न डालूँगा। मैं मर रहा हूँ, लेकिन प्रारब्ध(तकदीर) के सामने सिर न झुकाऊँगा। उसका दास नहीं, मालिक बनूँगा। अपनी नाव को निर्दय तरंगों के सहारे न छोड़ूंगा।

‘‘बेशक दुनिया मुँह बनायेगा। मुझे बुरा आदमी कहेगा। इसलिए कि उसके जानवरों की सी खुशी में, उसके  राक्षसी खेल में एक व्यवस्था कम हो जायगी। कोई चिन्ता नहीं, मुझे सन्तोष तो रहेगा कि उसका अत्याचार मेरा बाल भी बाँका नहीं कर सकता। उसके खतरनाक खेलों से मैं सुरक्षित हूँ।’’

जीवनदास के मुंह पर बेरंग संकल्प झलक रहा था। वह संकल्प जो आत्म-हत्या का सूचक है। वह बिस्तर से उठे, मगर हाथ-पाँव थर-थर काँप रहे थे। कमरे की हर चीज उन्हें आँखें फाड़-फाड़ कर देखती हुई जान पड़ती थीं। आलमारी के शीशे में उन्हें अपनी परछाईं दिखायी दी। वो चौंक पड़े, अरे वह कौन? ख्याल आया, यह तो मेरी छाया है। उन्होंने आलमारी से एक चमचा और एक प्याला निकाला। प्याले में वह जहरीली दवा थी जो डॉक्टर ने उनकी छाती पर मलने के लिए दी थी ! प्याले को हाथ में लिये चारों ओर सहमी हुई नजरों से ताकते हुए वह प्रभावती के सिरहाने आ कर खड़े हो गये। दिल में दुख हुआ। ‘‘आह ! इन प्यारों को क्या मेरे ही हाथों मरना लिखा था? मैं ही इनका यमदूत बनूँगा। यह अपने ही कर्मों का फल है। मैं आँखें बन्द करके शादी के बन्धन में फँसा। इन आने वाली मुसीबतों की ओर क्यों मेरा ध्यान न गया? मैं उस समय इतना खुश  था, मानो जीवन कभी ना खत्म होने वाला सुख है, एक-एक पल अमृत की खुशी का तालाब है । ये आगे के बारे में कुछ ना सोचने का नतीजा है कि आज मैं यह बुरे दिन देख रहा हूँ।’’

अचानक उनके पैर काँपने लगे, आँखों में अँधेरा छा गया, नाड़ी की गति बन्द होने लगी। वे दुख भरी भावनाएँ मिट गयीं। शक हुआ, कौन जाने यही दौरा मौत न बन जाए। वह सँभल कर उठे और प्याले से दवा का एक चम्मच निकाल कर प्रभावती के मुँह में डाल दिया। उसने नींद में दो-एक बार मुँह डुला कर करवट बदल ली। तब उन्होंने लखनदास का मुँह खोल कर उसमें भी एक चम्मच भर दवा डाल दी और प्याले को जमीन पर पटक दिया। पर हाय ! इंसान की कमजोरी ! हाय ताकतवर होनी ! किस्मत का भयानक खेल अब भी उनके साथ चाल चल रही थी। प्याले में ज़हर  न था। वह दवा थी जो डाक्टर ने उन्हें ताकत बढ़ाने के लिए दी थी।

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(hindi) Contagious

(hindi) Contagious

“कंटेजियस का मतलब होता है वायरल, ट्रेंडिंग या तेज़ी से फैलने वाला. अब ये कोई ट्वीट भी हो सकता है, या कोई ब्लॉग या अर्टिकल भी या कोई कैंपेन या फिर कोई नया प्रोडक्ट. इस किताब में हम उन सारी चीजों के बारे में बात करेंगे जो कंटेजियस है चाहे वो स्टोरी हो या आईडिया हो या कोई ब्रांड हो या मार्केटिंग हो. हम इस किताब के जरिये उन छेह प्रिंसिपल्स या स्टेप्स के बारे में चर्चा करेंगे जो किसी भी चीज़ को कंटेजियस बना सकती है. तो आखिर क्यों हम किसी बात पर आँख मूँद कर यकीन कर लेते है या किसी चीज़ को अँधाधुंध  फॉलो  करने लगते है, ये सवाल अगर आपके मन में भी उठता है तो ये किताब आपके लिए ही लिखी गई है. 

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए? 
•    मिलेनिय्ल्स को 
•    एडवरटाईजिंग या मार्केटिंग में काम करने वाले  लोगों  को 
•    एंटप्रेन्योर्स को 
•    स्टार्ट-अप ओनर्स को 
•    मैनेजर्स को 

ऑथर के बारे में 
जोनाह बर्जर University of Pennsylvania के Wharton School में मार्केटिंग प्रोफेसर हैं, इसके साथ ही वो एक ऑथर भी हैं जिनकी अब तब तीन बेस्ट सेलर किताबें आ चुकी है. जोनाह वर्ड ऑफ़ माउथ, कंज्यूमर बिहेवियर और वायरल मार्केटिंग में एक्सपर्ट हैं. उनके कई आर्टिकल न्यू यॉर्क टाइम्स, हार्वर्ड बिजनेस रिव्यु और वॉल स्ट्रीट जर्नल में पब्लिश हो चुके हैं. 

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(hindi) Yeh Meri Matrabhumi Hai

(hindi) Yeh Meri Matrabhumi Hai

“आज पूरे 60 साल के बाद मुझे मातृभूमि-प्यारी मातृभूमि(वह जगह या देश जहाँ पैदा हुए हैं) को देखने का मौका मिला हैं। जिस समय मैं अपने प्यारे देश से विदा हुआ था और किस्मत मुझे पश्चिम की ओर ले चली थी उस समय मैं जवान था। मेरी नसों में नया खून बह रहा था। दिल मौज और बड़ी-बड़ी उम्मीदों से भरा हुआ था। मुझे अपने प्यारे भारत से किसी अत्याचारी के अत्याचार या इंसाफ के ताकतवर हाथों ने नहीं अलग किया था। अत्याचारी के अत्याचार और कानून की मुश्किलें मुझसे जो चाहे सो करा सकती हैं मगर मेरी प्यारी मातृभूमि मुझसे नहीं छुड़ा सकतीं। वे मेरी ऊँची उम्मीदें और सोच ही थीं जिन्होंने मुझे देश-निकाला दिया था।

मैंने अमेरिका जाकर वहाँ खूब व्यापार किया और व्यापार से पैसा भी खूब कमाया और पैसे से खुशी भी खूब लूटी। खुशकिस्मती से पत्नी भी ऐसी मिली जो सुंदरता में अपने आप में एक थी। उसकी कोमलता और सुंदरता की तारीफ पूरे अमेरिका में फैली। उसके दिल में मेरे अलावा और किसी चीज के ख्याल की गुंजाइश भी न थी, मैं उस पर पूरी तरह से मोहित था और वह मेरी सब कुछ थी। मेरे पाँच बेटे थे जो सुन्दर तंदुरुस्त और ईमानदार थे। उन्होंने व्यापार को और भी चमका दिया था। मेरे भोले-भाले छोटे छोटे पोते गोद में बैठे हुए थे जब मैंने अपनी प्यारी मातृभूमि को आखिरी बार देखने के लिए अपने पैर उठाये। मैंने सबसे कीमती दौलत प्यारी पत्नी, लायक बेटे और जिगर के टुकड़े नन्हे-नन्हे बच्चे आदि कीमती चीजें सिर्फ इसीलिए छोड़ दिए कि मैं प्यारी भारत माँ को आखिरी बार देख लूँ। मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूँ दस साल के बाद पूरे सौ साल का हो जाऊँगा। अब मेरे दिल में सिर्फ एक ही इच्छा बाकी है कि मैं अपनी मातृभूमि की धूल बनूँ।

यह इच्छा आज मेरे मन में पैदा नहीं हुई बल्कि उस समय भी थी जब मेरी पत्नी अपनी मीठी बातों और कोमल तानो से मेरे दिल को खुश किया करती थी और जब मेरे जवान बेटे सुबह आ कर अपने बूढ़े पिता को भक्ति से प्रणाम करते उस समय भी मेरे दिल में एक काँटा-सा खटखता रहता था कि मैं अपनी मातृभूमि से अलग हूँ। यह देश मेरा देश नहीं है और मैं इस देश का नहीं हूँ।

मेरे पास पैसा था, पत्नी थी, लड़के थे और जायदाद थी मगर न मालूम क्यों मुझे रह-रह कर मातृभूमि के टूटे झोंपड़े चार-छ बीघा खानदानी जमीन और बचपन के दोस्तों की याद अक्सर सताया करती थी । अक्सर अपार खुशी और त्योहार के मौके पर भी यह सोच दिल में चुटकी लिया करती थी  कि काश मैं अपने देश में होता।

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(hindi) THE STARTUP OWNER’S MANUAL -A Step By Step Guide For Building A Company

(hindi) THE STARTUP OWNER’S MANUAL -A Step By Step Guide For Building A Company

“स्टार्ट-अप्स छोटी कंपनीज़  नहीं  होती. जब आप इन दोनों concept के बीच का फर्क समझ जाओगे तो आपको ये भी समझ आ जायेगा कि एक स्टार्ट-अप बिजनेस को सक्सेसफुली कैसे चलाया जाए. इस बुक के ऑथर स्टीव ब्लैंक इस मामले में एक्सपर्ट तो है है और साथ ही एक न्यू डेवलपमेंट मॉडल के फाउंडर भी है जो आपको सफलता की गारंटी देता है. चाहे आप कोई एप डेवलप करना चाहते हो या फिर कोई नया प्रोडक्ट बनाने की सोच रहे हो, ये किताब आपको कस्टमर्स से लेकर  मार्केट  और कॉम्पटीशन, हर चीज़ में हेल्प करेगी.  

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए ?
●    स्टार्ट-अप ओनर्स को 
●    कॉलेज स्टूडेंट्स को 
●    एंटप्रेन्योर्स को 

ऑथर के बारे में 
स्टीव ब्लैंक एक अवार्ड विनिंग सिलिकॉन वैली एंटप्रेन्योर है. वो न्यू कस्टमर् डेवलपमेंट मेथड क्रिएट करने के लिए जाने जाते है जो उन्होंने लीन स्टार्ट-अप मूवमेंट के तौर पर  launch  किया था जोकि इस बात को क्लियर करता है कि स्टार्ट-अप्स बड़ी कंपनीज़ का छोटा वर्जन  नहीं  होते. बल्कि स्टार्ट-अप्स के कुछ अपने प्रोसेस और टूल्स होते है जिन्हें  फॉलो  करके कोई भी स्टार्ट-अप सक्सेसफुली चलाया जा सकता है. स्टीव ब्लैंक कस्टमर डेवलपमेंट और लीन स्टार्ट-अप मेथड के बारे में लिखते हैं और सिखाते भी हैं. 
 

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(hindi) Why We Buy: The Science of Shopping

(hindi) Why We Buy: The Science of Shopping

“रोज़ नए-नए शॉप खुलते हैं. अगर आप चाहते हैं कि आपके शॉप में आपके कम्पटीशन वाले शॉप्स के मुकाबले ज़्यादा कस्टमर्स आएँ, तो आपको इस समरी की ज़रूरत हैं. ये बुक आपको सिखाएगी कि शॉपिंग की साइंस की शुरुवात कैसे हुई और कैसे इसके प्रिंसिपल्स और स्ट्रैटेजीज़ अपनाकर अपने शॉप के कन्वर्शन रेट को बेहतर बना सकते हैं.

ये समरी किसे पढ़नी चाहिए?
ये समरी entrepreneur , शॉप मैनेजर, रिटेलर और मार्केटर के लिए है. ये उन सभी के लिए भी है जो एक नए प्रोडक्ट को बेचने की कोशिश कर रहे हैं, या फिर, जिन्होंने अपने शॉप में एक नया साइन या एक नया शेल्फ लगाया है.

ऑथर के बारे में
 पैको  अंडरहिल एक एनवायर्नमेंटल साइकोलॉजिस्ट, ऑथर, और मार्केट रिसर्च एंड कंसल्टिंग कंपनी ' Envirosell' के फाउंडर हैं.  पैको  एनवायरनमेंट साइकोलॉजी के बेसिक आईडिया को मानते हैं जो ये कहता हैं कि हमारे आसपास के वातावरण का हमारी आदतों पर गहरा असर होता है.
 

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(hindi) The Heavenly Life

(hindi) The Heavenly Life

“क्या आपको लगता है कि आप जीते जी स्वर्ग जैसी जिदंगी जी सकते हो? लोग जिसे हेवन यानी स्वर्ग कहते है, क्या सच में कोई जगह है या सिर्फ दिमागी कल्पना है? दरअसल हेवन एक स्टेट ऑफ़ माइंड है. लेकिन आप जो भी मानना चाहे, इस किताब में आपके सवालों के जवाब मौजूद है. ये बुक” हेवनली लाइफ” आपको सिखाती है कि लाइफ में गुडनेस की वैल्यू क्या है और  हमें  क्यों एक अच्छा इंसान बनने की सबसे ज्यादा जरूरत है और सबसे बढकर ये किताब  हमें  एहसास दिलाती है कि हेवन हम सबके अंदर ही है जो  हमें  खुद ढूंढना होगा. 

ये समरी किस-किसको पढनी चाहिए ? 

    जो लोग धार्मिक हैं 
    फिलोसोफी के स्टूडेंट्स को 
    वो लोग जिनके मन में अपने बिलीफ सिस्टम को लेकर सवाल उठते हैं 

ऑथर के बारे में 

जेम्स  एलेन  एक ब्रिटिश राईटर थे जिन्होंने कई सारी सेल्फ-हेल्प और inspirational किताबें लिखी हैं . उनकी बेस्ट सेलिंग नॉवेल “As a Man Thinketh” 1903 में पब्लिश हुई थी पर तब से लेकर आज तक इस किताब से इंस्पायर होकर कई किताबें और ऑडियोबुक्स लिखी जा चुकी हैं. 
 

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(hindi) Bhagavad Gita(Chapter 3)

(hindi) Bhagavad Gita(Chapter 3)

“अध्याय 3 : कर्म योग 

श्लोक 1 :
अर्जुन कहते हैं, “हे केशव यदि आपको लगता है कि कर्म की तुलना में ज्ञान श्रेष्ठ है, तो हे जनार्दन, आप मुझे ये  भयानक कर्म करने के लिए क्यों कह रहे हैं? आप ज्ञान और कर्म दो अलग-अलग बातों से मेरी समझ को भ्रमित कर रहे हैं, इसलिए, मुझे निश्चित रूप से बताएँ कि कौन से पथ पर चलकर मैं सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य प्राप्त कर सकता हूं.”

अर्थ : यहाँ अर्जुन के ज़रिए हर इंसान की मनःस्थिति को दिखाया गया है कि जब उसका सामना किसी चुनौती से होता है या किसी ऐसी परिस्थिति से होता है जो उसके मन के मुताबिक़ नहीं होती तो वो कैसे उससे भाग जाने की कोशिश करता है. चाहे उसे अलग-अलग रास्ते भी दिखाएँ जाएँ लेकिन वो समझना नहीं चाहता और कर्म ना करने के बहाने ढूँढने लगता है.
 
श्रीकृष्ण ने ज्ञान योग के बाद अर्जुन को कर्म योग के बारे में बताया. सुनने में ये दो अलग-अलग बातें लग सकती हैं लेकिन यही हमारी सबसे बड़ी भूल है क्योंकि ये दोनों कहीं ना कहीं जाकर साथ मिल जाते हैं. मनुष्यआत्मा  को इन दोनों को अपने जीवन में उतारकर कर्म करने चाहिए. यहाँ अर्जुन ने श्रीकृष्ण की बातों का गलत अर्थ निकाला कि सिर्फ़ ज्ञान हासिल कर लेना ही काफ़ी है, उसके बाद कर्म करने की ज़रुरत नहीं है. अगर ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्ञान योग ही श्रेष्ठ है तब तो कर्म का कोई महत्त्व ही नहीं रह जाता. इन्हीं बातों में उलझकर वो श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि आत्म-विकास (self-development) के लिए उन्हें कौन से रास्ते पर चलना चाहिए. वो उनसे अनुरोध करते हैं कि वो उन्हें इन दोनों में से सिर्फ़ उस योग का ज्ञान दें जिससे उनके सारे भ्रम और दुःख दूर हो जाएँ और उनका कल्याण हो. 

Puri geeta Sune….

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