Calm the F*ck Down (Hindi)

Calm the F*ck Down (Hindi)

इंट्रोडक्शन

क्या आप  उनमें  से है जो हर वक्त किसी ना किसी चिंता में डूबे रहते है? क्या आप उन चीजों के बारे में सोच कर पहले से परेशान हो जाते हो जो अभी तक हुई भी  नहीं ? क्या कोई ऐसा तरीका हो सकता है कि हम अपनी लाइफ में टेंशन लेना छोड़ दे?

Problems हर किसी की लाइफ में आती है. ये एक natural चीज़ है जिसे हम रोक  नहीं  सकते पर जब  हमें  उलझनों का सामना करना पड़ता है तो अक्सर हम परेशान हो जाते है, हमारी  रातों  की नींद उड़ जाती है और दिन का चैन छिन जाता है. पर सवाल ये है कि मुश्किल हालातो में हम खुद को  कंट्रोल  में कैसे रखे और कैसे अपनी परेशानियों का हल ढूँढने की कोशिश करे?

Problems सोल्व करने के लिए हमें राईट डिसीजन लेने की जरूरत पड़ेगी. और राईट डिसीजन्स लेने के लिए हमारे  थॉट्स क्लियर होने चाहिए. क्योंकि एक उलझा हुआ दिमाग किसी भी परेशानी का सही हल  नहीं  ढूंढ सकता. जब तक  हमें  सही और गलत का फर्क ना मालूम हो हम सही फैसला  नहीं  कर पायेंगे. इस किताब में आपको सिखाया जाएगा कि खुद को ऑर्गेनाईज़ कैसे रखना है. यानी अपने  थॉट्स , फीलिंग्स और  रिसोर्सेज  सबको  हमें  ऑर्गेनाईज़ रखना होगा तभी हम परेशानियों के जाल से बाहर निकल पायेंगे.

ये किताब  हमें  सिखाएगी कि सिचुएशन के हिसाब से समस्या को कैसे समझा जाये और कैसे उनका सोल्यूशन निकाला जाए. आपको देखना होगा कि आप उस सिचुएशन को  कंट्रोल  कर सकते हो या  नहीं  कर सकते? साथ ही हम ये भी सीखेंगे कि अगर हम अपनी  problems  के लिए पहले से तैयार रहेंगे तो हम उनका डटकर सामना कर सकते है.

सिचुएशन  हमेशा हमारे  कंट्रोल  में  नहीं  रहती और ना ही हम उन्हें अपने मनमुताबिक ढाल सकते है. परेशानीयाँ आती-जाती रहती है हालाँकि आप सिचुएशन आने पर चीजों को बखूबी हैंडल कर सकते हो लेकिन ऐसे में वक्त में भी बिना घबराए अपनी जिम्मेदारी को निभाने के तरीके हम इस किताब से सीखेंगे.

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So, You’re Freaking Out

आप शायद अभी अपने काम को लेकर टेंशन में होंगे जो आपको निपटाने है या शायद आप उन चीजों के बारे में अभी से ही सोच-सोच कर परेशान हो रहे होंगे जो अभी हुई तक  नहीं  है. ये अकेले आपको  प्रॉब्लम  नहीं  है बल्कि आज के टाइम में ज्यादातर लोगो का यही हाल है, अक्सर हम बेवजह इतने परेशान हो जाते है कि हमारी  रातों  की नींद उड जाती है. हम बेवजह घबराते रहते है, सोच-सोच कर तिल का ताड़ बना देते है, डर और चिंता के मारे  हमें  एंजाईटी अटैक्स आने लगते है, इसे एक तरह से फ्रीक आउट बोल सकते है.

आप फ्रीक आउट इसलिए है क्योंकि आप  हमेशा यही सोचते रहते हो” अगर ये हुआ तो क्या होगा? अगर वो हुआ तो क्या होगा? ये सवाल हमारे दिमाग में दिन-रात घुमते रहते है.

अगर आपने  रिपोर्ट खराब बना ली तो क्या होगा ? अगर आपका साथी आपसे दूर चला जाए तो? इस तरह के सवाल  हमें  फ्रीक आउट कर देते है जो  हमें  किसी काम का  नहीं  छोड़ते. यानी एक तरह से ये  हमें  फ्रीज़ कर देते है, ना हम कुछ कर पाते है, ना ही आगे बढ़ पाते है.

फ्रीक आउट्स कई तरह के होते है,  सारा  नाईट जो इस बुक की ऑथर है, वो फ्रीक आउट्स को चार कैटेगरीज़ में रखती है. ये है एंजाईटी, सेडनेस, एंगर और अवॉयडनेस.

एन्जाईटी में हम आने वाले कल की चिंता में घुलते रहते है, जो लोग  हमेशा चिंता में डूबे रहते है वो किसी काम के  नहीं  रहते, ना तो वो किसी चीज़ में मन लगा पाते है और ना ही कोई सही फैसला ले पाते है. कुछ ना करना भी  हमें  और ज्यादा अपसेट कर देता है, तो एक तरह से ये एक नेवर एंडिंग साईंकल है.

सेडनेस होपलेसनेस की हैवी फीलिंग है, जब कोई उम्मीद नजर नहीं आती,  इंसान  नेगेटिव बाते सोचता रहता है. ये एक बेहद एग्जॉस्टिंग फीलिंग होती है. जब आप सारा वक्त रोते रहोगे तो जाहिर है आपकी  एनर्जी  खत्म हो जायेगी और आपके अंदर कुछ भी करने की ईच्छा  नहीं  बचती, ऐसे में  इंसान  खुद को और भी ज्यादा डिप्रेस्ड महूसस करता है.

गुस्सा, आप जब अपसेट होते हो तो आपका बेवजह हर बात पर गुस्सा आने लगता है. गुस्से में आप और भी impulsive हो जाते हो यानी बिना सोचे समझे कुछ कर देना, जो और ज्यादा  problems  क्रिएट कर सकता है. अक्सर गुस्से में  इंसान  किसी को कुछ भी उल्टा-सीधा बोल देता है और बाद में पछताता है, पर तब तक काफी देर हो चुकी होती है, गुस्से में कही गई बाते सामने वाले को अंदर तक हर्ट कर जाती है. अक्सर गुस्से के कारण ही लोगो के आपसी रिलेशन भी खराब हो जाते है.

अवॉयडनेस. दरअसल  problems  को अवॉयड करने का मतलब है अपने  रिसोर्सेज , अपना टाइम और अपनी एनर्जी वेस्ट करना. काम को टालने या अवॉयड करने के बजाए  रिसोर्सेज  यूज़ करके  problems  को सोल्व करने की कोशिश करे तो ज्यादा अच्छा है.

हम इंसानों के पास जो  रिसोर्सेज  है जैसे टाइम, एनर्जी और पैसा, वो एक लिमिटेड अमाउंट में होते है इसलिए फ्रीक आउट करके आप इन रिसोर्सेज को एक तरह से वेस्ट ही करते है. जैसा कि हमने पहले भी बताया  प्रॉब्लम को अवॉयड करना यानी टाइम वेस्ट करना है.

ऐसा ही एक और रिसोर्स है जिसे हम गुडविल कहते है. गुडविल यानी वो सेवायें जो लोग आपको देते है जब वो आपकी हेल्प करना चाहते है. जब लोग आपकी  problems  में आपको हेल्प करने के लिए अपने  रिसोर्सेज  आपके साथ शेयर करते है.

इसीलिए टाइम, एनर्जी और पैसा, इन तीनो इम्पोर्टेंट  रिसोर्सेज  को मैनेज करना बहुत जरूरी हो जाता है. हर बात पर शिकायत करना या बात-बात पर पैनिक होने से आपको दूसरों की गुडविल मिलनी कम हो जाती है, ऐसे लोगो को धीरे-धीरे लोगो से फेवर मिलना बंद हो जाता है, हालात यहाँ तक पहुँच जाते है कि अक्सर मुसीबत में ऐसे लोग खुद को एकदम अकेला पाते है.

छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना आम आदत है. इसका एक एक्जाम्पल लेते है, मान लो आपका टीवी खराब हो गया है. आप टीवी ठीक करने के लिए एक टेक्नीशियन बुलाते हो जो पूरे एक घंटे तक टीवी ठीक करने की कोशिश करता है पर कर  नहीं  पाता क्योंकि वो राईट टूल्स लाना भूल गया.

आपको इतना गुस्सा आता है कि मारे गुस्से के आप पेन का ढक्कन चबाने लगते हो और आपका दांत टूट जाता है, तो देखा आपने नुकसान किसका हुआ? आपका खुद का, एक गुस्से की वजह से आपने अपना दांत तुड़वा लिया.

इस तरह की सिचुएशन से आप दूसरों की गुडविल से शर्तियाँ हाथ धो बैठेंगे. दूसरों की नजरो से देखे तो आपके गुस्से ने आपको डेंटिस्ट के पास जाने पर मजबूर कर दिया. लोग यही कहेंगे कि”  तुम्हें  अपने गुस्से को काबू में रखना चाहिए था”, बल्कि उन्हें तो इसमें फ्रीक आउट होने वाली कोई बात ही नहीं लगेगी, आपके लिए सॉरी फील करने के बजाए उल्टा लोग आपको ही ब्लेम करेंगे.

लेकिन आप ये कैसे जान सकते है कि किस  प्रॉब्लम के पीछे अपने रीसोर्सेज यूज़ करने है? तो इसके लिए आप मेंटल डीक्लटरिंग अप्रोच की हेल्प ले सकते है. मेंटल डीक्लटरिंग अप्रोच के दो स्टेप्स होते है. पहला स्टेप है: टेंशन फ्री हो जाओ, और दूसरा है सोचो और फिर अपना रीस्पोंस प्लान करो. मान लो आप किसी चीज़ को लेकर परेशान हो. तो पहले खुद से ये सवाल करो” क्या मै इसे  कंट्रोल  कर सकता हूँ?

जब हम कोई सिचुएशन कंट्रोल  नहीं  कर सकते तो उसके बारे में ओवरथिंकिंग करना बेकार है. आप बेवजह उस पर अपनी एनर्जी वेस्ट करेंगे, और सबसे बड़ी बात तो ये कि टेंशन लेने से आपकी  प्रॉब्लम दूर तो नहीं हो जायेगी?

अगर सिचुएशन हमारे  कंट्रोल  में है तो सोचो कि आप उस पर कैसे  respond और एक्ट कर सकते हो. सिचुएशन आपके हाथ में हो ना हो पर हाँ उस पर रिएक्ट कैसे करना है, ये जरूर आपके हाथ में है.

ऐसे मौको पर मेंटल डीक्लटरिंग अप्रोच याद  नहीं  रहती, कोई बात  नहीं  अगर आप ऐसे मौकों पर ईमोशनल हो जाए, इमोशनल होना एक नैचुरल ह्यूमन फीलिंग है. कभी-कभी अपने ईमोश्न्स को एक्सप्रेस करना भी बेहद जरूरी होता है, इससे हम रिलेक्स्ड फील करते है.

लेकिन ईमोशंस बहुत स्ट्रोंग होते है जो  हमें  आसानी से डिसट्रेक्ट कर सकते है. इसलिए कभी भी ईमोशनल होकर डिसीजंस मत लो.

कुछ देर के लिए आप अगर ईमोशनल हो भी गए तो कोई बात  नहीं , अपने ईमोशंस से वाकिफ होना भी बेहद जरूरी है. दिल का गुबार निकाल कर  इंसान  हल्का महसूस करता है. दुनिया में हर कोई अपनी फीलिंग्स एक्सप्रेस करना चाहता है, फीलिंग्स ह्यूमन नैचर का एक अहम हिस्सा है पर ईमोशंस को  प्रॉब्लम solve करने में हावी मत होने दो, जब आप एकदम काम डाउन हो जाओ तब  प्रॉब्लम का सोल्यूशन निकालो.

जैसा कि हमने पहले भी कहा” ईमोशनल फील करना एक बेसिक ह्यूमन नैचर है तो कुछ देर के लिए रोया-धोया जा सकता है पर आपको जल्द से जल्द इस पर काबू भी पाना होगा तभी आप कुछ प्रोडक्टिव और क्लियर सोच पाओगे.

जैसे मान लो कि आपका एक्जाम देना है, आप बड़ी टेंशन में आ जाते हो कि पता नहीं एक्जाम कैसा होगा, लाईब्रेरी जाते वक्त आपको पसीने छूट रहे है, एक्ज़ाम कल है और आपको रीव्यू भी करना है तभी एक पोस्टर पर आपकी नज़र पडती है, ये आपके फेवरेट स्टोर का पोस्टर है जहाँ सेल लगी है. और अपना माइंड फ्रेश करने के लिए आप स्टोर में जाते हो और  शॉपिंग  करते हो.  शॉपिंग  के बाद आपको थोडा बैटर लग रहा है, आप रिलेक्स्ड और खुश हो. पर आपको पता है कि आपकी ये ख़ुशी टेम्परेरी है.

क्योंकि आफ्टरआल आपने अपने  रिसोर्सेज  वेस्ट कर दिए, टेंशन से निजात पाने के लिए आपने अनचाही  शॉपिंग  की और साथ ही अपनी एनर्जी और टाइम भी वेस्ट किया. जो टाइम आपने  शॉपिंग  में वेस्ट किया, उस टाइम आप स्टडी कर सकते थे, कल के एक्जाम की तैयारी कर सकते थे.

अगर आपने थोड़ी सी भी तैयारी कर ली होती तो शायद आप एक्जाम को लेकर परेशान  नहीं  होते. आपको इतनी एंजाईटी भी  नहीं  होती. यानी आप खुद को फ्रीक आउट होने से बचा सकते थे.

आपको यहाँ पर मेंटल डीक्लटरिंग मेथड यूज़ करना चाहिए था. ये सिचुएशन एकदम आपके  कंट्रोल  में थी. एग्जाम में आपकी परफोर्मेंस आपके खुद के एफर्ट्स पर डिपेंड थी यानी  शॉपिंग  पर जाकर आपने टाइम, एनर्जी और पैसा तीनो वेस्ट किये जबकि आप ये तीनो बचा सकते थे.

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