(Hindi) The 22 Immutable Laws of Branding: How to Build a Product Or Service Into a World-Class Brand.
द 22 इमुटेबल लॉज़ (Immutable Laws) ऑफ़ ब्रांडिंग
क्विक समरी:
22 लॉज़ जो आपको किसी भी ब्रांड का प्रोडक्ट सेल करने में हेल्प कर सकते है. ये 22 लॉज़ आपके लिए बिलकुल किसी पिल के फॉर्म में समराईज (summarized )किये गए है. बस इसे निगल लो और आपका काम हो गया ! एन्जॉय इट
चैप्टर 1: द लॉ ऑफ़ एक्सपेंशन (expansion )
शेवरले (Chevrolet) कभी एक डोमीनेटिंग कंपनी हुआ करती थी लेकिन अब अगर आप इसे देखे तो पता चलेगा कि ये आज एक ऐसी कंपनी है जिसके पास कोई की प्रोडक्ट नहीं है. आज ये अपने चीप, एक्सपेंसिव (expensive) बड़े या छोटी कार या ट्रक्स के लिए जानी जाती है. अब फोर्ड अमेरिका की एक लीडिंग कार कम्पनी है और ये भी शेवरले (Chevrolet) की तरह सेम प्रोब्लम फेस कर रही है. ये अपनी लाइन एक्सपेंड कर रही है जिससे इसका ब्रांड नेम और कम्पनी नेम दोनों वीक हो जाएगा. अगर हम इन दोनों कंपनीज को कम्पेयर (compare) करे तो पता चलेगा कि शेवरले (Chevrolet )ने लास्ट इयर 10 डिफरेंट कार लाइन्स निकाली थी जबकि फोर्ड ने बस 8. तो शेवरले (Chevrolet ) क्यों और कैसे इन कार्स की मार्केटिंग की? वो इसलिए क्योंकि शेवरले (Chevrolet ) फोर्ड को आउटसेल (outsell) करना चाहती है लेकिन बात अगर लम्बी रेस की है तो फोर्ड ही जीतेगी. क्योंकि मार्किट में एक ही कंपनी की इतनी सारी कारे देखकर कंज्यूमर कन्फ्यूज़ हो जाएगा. तो अगर आप कोई कम्पनी है तो क्या करेंगे? क्या आप लाइन ऑफ़ एक्सपेंशन (line of expansion ) इनक्रीज करके शोर्ट टाइम के लिए सेल करना चाहेंगे या फिर नेरो लाइन ऑफ़ प्रोडक्ट्स (narrow line of products ) के साथ मार्किट में लम्बे टाइम तक टिकना चाहेंगे? अपने प्रोडक्ट्स की लाइन एक्सपेंशन (line expansions ) और मेगा ब्रांडिंग करके जब तक ये कंपनीज मार्किट में अपने प्रोडक्ट्स चलाने की कोशिश करती है तब तक ये पुराने हो चुके होते है और इनकी पॉवर ओवर हो जाती है. कभी अमेरिकन एक्सप्रेस मेम्बरशिप प्रिविलेज (privilege ) के साथ मिलने वाला एक प्रीमियम क्रेडिट कार्ड हुआ करता था जिसने 27% मार्किट शेयर के साथ क्रेडिट कार्ड्स का मार्किट डोमिनेट किया हुआ था. फिर उन्होंने हर साल 12 से 15 कार्ड्स निकालने स्टार्ट कर दिए जिसकी वजह से उनका मार्किट शेयर ड्राप होकर सिर्फ 18% तक रह गया था. यही सेम चीज़ लेवी जींस (Levi jeans) के साथ भी हुई. उन्होंने मार्किट में हर टाइप के कट वाली जींस निकाली. हालाँकि ये डिसीज़न शोर्ट टर्म के लिए प्रोफिटेबल था लेकिन लॉन्ग टर्म के लिए नहीं. ऐसे कई सारे एक्जाम्पल हम देखते है लेकिन कंपनीज ये बात नही समझ पाती है कि कंज्यूमर का माइंड एक नाम और एक चीज़ को एक ब्रांड से जोडकर देखता है. अपने प्रोडक्ट्स एक्सपेंशन (expansion) करने की वजह से मार्किटर के पास लॉन्ग, कोम्प्लीकेटेड (complicated ) ब्रांड नेम की लिस्ट बन जाती है जिससे कस्टमर के लिए सेम प्रोडक्ट्स में फर्क करना ही मुश्किल हो जाता है. मार्किटर्स (Marketers) को ये बात समझनी चाहिए कि उनकी सेल पॉवर ऑफ़ प्रोडक्ट की वजह से नहीं बल्कि उनके कोम्प्टीटर्स की वीकनेस की वजह से होती है.
चैप्टर 2: द लॉ ऑफ़ कॉन्ट्रैक्टशन (law of contraction)
आज के टाइम हर गली या नुक्कड़ में एक कॉफ़ी शॉप मिल जायेगी जहाँ ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर भी सर्व किया जाता है. लेकिन होवार्ड श्लुत्ज़ (Howard Shlutz) ने जो किया वो बिलकुल अलग था क्योंकि उन्होंने सिम्पली एक कॉफ़ी शॉप खोली जो बस एक चीज़ में स्पेशलाईजेड (specialized) थी… गेस (guess ) करो…जी हाँ कॉफ़ी. उस शॉप को आज हम स्टारबक्स के नाम से जानते है. सेम यही चीज़ हुई थी जब फ्रेड डेलुका (Fred DeLuca) ने एक फ़ास्ट फ़ूड रेस्तरोरेंट (restaurant) खोला जिसकी स्पेशिलिटी थी सबमेरीन सेंडविचेस (submarine sandwiches) और इसके लिए उन्होंने एक ब्रिलिएंट नाम चूज़ किया जो ईजीली याद रहता था और ये नाम था”सबवे”. आप अपना फोकस नेरो (focus ) करके फेमस फिंगरप्रिंट वाला एक स्ट्रोंग ब्रांड बिल्ड कर सकते है. आप खुद ही देख लो कि सबवे आज अमेरिका में आँठवा लार्जेस्ट (largest) फ़ास्ट फ़ूड चेन है. बच्चो का सुपर मार्किट एक छोटा सा स्टोर था जहाँ उनके फर्नीचर और टॉयज मिलते थे लेकिन एक पॉइंट पर आके ओनर को फील हुआ कि उसे एक्सपेंड (expand ) करना चाहिए और इसलिए फर्नीचर डिपार्टमेंट (furniture department ) को हटाकर और ज्यादा टॉयज रख दिए गए. और उसने टॉयज का नेम चेंज करके ‘आर” रख दिया. अब इस स्टोर में 20% टॉयज सेल होते है. अगर आप सोचते है कि हर सक्सेसफुल कम्पनी की अपनी कुछ स्पेशल चीज़ होती है तो सही सोचते है. होम डिपो (Home Depot ) और फर्नीचर, गेप (Gap) और कम्फ़र्टेबल क्लोथ्स (comfortable clothes) और इसी तरह कई और चीजों की लम्बी लिस्ट आपको मिल जाएगी जहाँ आप देख्नेगे कि चीज़े और ब्रांड एक दुसरे से कनेक्टेड है. बेस्ट ब्रांडिंग और कांट्रेक्टिंग के लिए फाइव स्टेप्स है :
1. नेरो द फोकस (Narrow the focus )
2. स्टोक इन डेप्थ (Stock in depth)
3. बाई चीप (Buy cheap)
4. सेल चीप (Sell cheap )
5. डोमिनेट द कैटेगरी (Dominate the category)
इस पॉइंट तक आकर आप खुद से शायद ये पूछे “ तो फिर क्यों ज़्यादातर कंपनीज कॉन्ट्रैक्ट (contract ) के बजाये खुद को एक्सपेंड (expand ) करना चाहती है ? तो इसका जवाब है कि हम में से ज्यादातर लोग रिच लोगो को देखते है और उन्हें कॉपी करते है. जबकि हमें उस चीज़ पर गौर करना चाहिए जो ये लोग अमीर होने से पहले किया करते थे.
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चैप्टर 3: द लॉ ऑफ़ पब्लीसिटी (The law of Publicity)
एक बहुत बड़ी मिसकनसेप्शन(misconception ) जो अक्सर न्यू मार्केटर्स के साथ होती है. उन्हें लगता है कि एडवरटाईजिंग का मतलब है कि ब्रांड कैसे बनता है”. वैसे तो ये बात बड़ी कंपनीज पर फिट बैठती है जिन्होंने पहले से ही मार्किट में अपनी डोमिनेंस(dominance)बनाई होती है लेकिन न्यू कंपनीज के उपर ये बात अप्लाई नहीं होती है. स्टारबक्स (Starbuck's) की स्टार्टिंग के 10 साल तक वो बस 10 मिलियन डॉलर ही स्पेंड करते थे और यहाँ हम एक ऐसे बिजनेस की बात कर रहे है जो एनुअली (annually) 2.6 बिलियन का बिजनेस करता है. सेम चीज़ वाल मार्ट (wall-mart ) जोकि अमेरिका का सबसे बड़ा स्टोर है. लेकिन वो एडवरटाईजिंग पर हार्डली (hardly )स्पेंड करता होगा फिर भी वो इतना पोपुलर है. तो आखिर किसी ब्रांड को बनाने का सीक्रेट क्या है ? आप शायद यही सवाल पूछना चाहेंगे? तो इसका आंसर होगा एक अच्छा पब्लिसिटी केम्पेन वो भी इस न्यू एज टेक्नोलोजी और सोशाल मिडिया के टाइम में. और पब्लिसिटी पाने का सबसे बढ़िया तरीका है एक नयू कैटेगिरी बनना, जैसे कि:
हेनिकेन (Heineken) फर्स्ट इम्पोर्टेड बियर (first imported beer )
जीरोक्स (Xerox) फर्स्ट प्लेन पेपर कोपियर (first plain paper copier )
केऍफ़सी (KFC), फर्स्ट फ्रायड चिकेन फ़ास्ट फ़ूड (the first fried chicken fast food )
ये लिस्ट काफी लम्बी है..न्यूज़ मिडिया को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि क्या अच्छा है, क्या नहीं उन्हें बस न्यू चीजों से मतलब है. अब आप शायद खुद से ये पूछे कि अगर पब्लिसिटी इतनी इम्पोर्टेंट चीज़ है तो फिर क्यों सारी पब्लिक एजेंसीज पर एडवरटाईजिंग एजेंट्स का कब्ज़ा है. हम बताते है इसका जवाब. दरअसल पब्लिसिटी एकदम नया ट्रेंड है जैसे स्टार्टिंग में फैक्स इतना फेमस नहीं था लेकिन धीरे-धीरे ये बिजनेस में कम्यूनिकेशन का सबसे इम्पोर्टेंट मेथड बन गया था. लेकिन आज जो चीज़ काम करती है वो है पब्लिसिटी नाकि एडवरटाईजिंग. ऑथर (authors) एक बार की स्टोरी सुनाता है जब उन्हें लोटस डेवलपमेंट कोर्प (Lotus Development Corp) के लिए मार्केटिंग करनी थी. उन्होंने लोटस नोट्स (Lotus Notes ) को “द फर्स्ट ग्रुपवेयर प्रोडक्ट” (“The first groupware product“) के तौर पर प्रोमोट किया. और ग्रुपवेयर का आईडिया काम कर गया क्योंकि तब ये एकदम फ्रेश कैटेगिरी था.
चैप्टर 4: द लॉ ऑफ़ एडवरटाईजिंग (The Law Of Advertising)
पब्लिसिटी बेशक ब्रांड्स क्रियेट करती है लेकिन मार्किट में अपनी लीडरशिप मेंटेन रखने के लिए उन्हें एडवरटाईजिंग की नीड होती है. अब एडवरटाईजिंग में काफी पैसा खर्च होता है लेकिन ये आपको मार्किट में आपके राइवल्स (rivals) से प्रोटेक्ट करती है. एडवरटाईजिंग का बेस्ट तरीका है कि आप लोगो को बताये कि जो लोगो को बेस्ट सोल्यूशन चाहिए वो आपके पास है. और तभो लोग आपका प्रोडक्ट खरीदेंगे. ज़ेरोक्स (Xerox) सबसे पहले लोगो की नजरो में तब आया जब इसकी पब्लिसिटी हुई थी क्योंकि ये अपने टाइम का फर्स्ट प्लेन पेपर कॉपियर (first plain paper copier) था, और कुछ टाइम ही लोग इसे भूल गए क्योंकि ये पुरानी न्यूज़ हो चूका था. तो अब सवाल है कि कोई भी कम्पनी पब्लिसिटी की पॉवर खत्म होने पर अपने प्रोडक्ट का मार्किट शेयर कैसे प्रोटेक्ट करेगी तो इसका ज़वाब है एडवरटाईजिंग. इसीलिए ज़ेरोक्स (Xerox) ने भी अपने प्रोडक्ट की एडवरटाईजिंग स्टार्ट कर दी, उसे बेस्ट कोपियर बताकर और इसी वजह से उनके कोम्प्टीशन के दुसरे ब्रांड्स को काफी हार्ड वर्क करना पड़ा. और सबसे बड़ी बात है कि एडवरटाईजिंग एक्सपेंसिव (expensive ) होती है इसलिए लीडिंग ब्रांड्स ही इसे अफोर्ड कर पाते है..
चैप्टर 5: द लॉ ऑफ़ द वर्ड (The Law of the Word)
सबसे पॉवरफुल ब्रांड्स वो होते है जिनके पास अपने प्रोडक्ट से जुड़ा हुआ एक वर्ड होता जिसे कस्टमर रेसोनेट (resonates ) करता है यानी एक ऐसा वर्ड जिसे सुनकर उन्हें किसी ख़ास ब्रांड की याद आ जाए. जैसे कि अगर किसी ऑटोमोबाइल (automobile) बायर ( buyer ) से पुछा जाए कि “प्रेस्टीज (prestige) वर्ड सुनकर आपके माइंड में क्या आता है तो वो बोलेगा मर्सीडीज़ बेंज (Mercedes-Benz ) और अगर आप पूछे “सेफ्टी” (“Safety”) वर्ड से क्या इमेज माइंड में आती है तो शायद उनका जवाब होगा वॉल्वो ( Volvo ). लेकिन एक कॉमन मिस्टेक जो ये सारी कंपनीज करती है वो ये है कि जो कैटेगरी उन्होंने क्रियेट की थी, अब वो उससे आउट हो गयी है. क्योंकि आप देखेंगे कि वॉल्वो अब सपोर्ट कार्स (sports cars) बनाने लगी है.. क्लीनेक्स (Kleenex) शायद अब तक का बेस्ट ब्रांड रहा होगा क्योंकि लोग टीश्यू बोलने के बजाये (क्लीनेक्स) बोलते थे. उनके लिए टीश्यू का मतलब ही क्लीनेक्स (Kleenex ) होता था.लेकिन आप जानते है क्लीनेक्स (Kleenex ) क्या किया. वो अपने ब्रांड तक स्टिक रहा जोकि फर्स्ट पॉकेट साइज़ टीश्यू था, वे टॉयलेट पेपर (toilet paper) या किचेन पेपर (kitchen paper ) तक पहुंचे ही नहीं. यही सेम फेड-एक्स (Fed-ex ) के साथ भी हुआ. उन्हें ओवरनाईट (“overnight”) डिलीवरी के लिए जाना जाता था क्योंकि वे फास्टेस्ट डिलीवरी देते थे. लेकिन फिर उन्होंने अपना डिलीवरी एरिया एक्सपेंड कर लिया हालाँकि वो कभी अपनी कैटेगरी से आउट नहीं हुए.
चैप्टर 6: द लॉ ऑफ़ क्रेडेन्शियल (The Law of Credentials)
वो चीज़ जो किसी भी ब्रांड को हटके बनाती है वो है उसका स्पेशल होना. यानी कस्टमर जब कोई प्रोडक्ट खरीदे तो उसे लगे कि यही सबसे बेस्ट है लेकिन इसके लिए उन्हें आपकी बात पर यकीन करने की ज़रूरत नहीं है बल्कि उन्हें ये खुद लगना चाहिए. इसलिए सीक्रेट है यूनीक (unique) और डिफरेंट और खुद का क्रेडेन्शियल (credentials) होना.