(Hindi) The Story of My Experiments with Truth

(Hindi) The Story of My Experiments with Truth

परिचय

गांधी जी के कुछ फ्रेंड्स ने उन्हें अपनी लाइफ स्टोरी लिखने के लिए एंकरेज किया. लेकिन वो खुद इस बात पे कांफिडेंस नहीं थे कि इस बुक को ऑटोबायोग्राफी कहा जाए. क्योंकि गांधीजी का मानना था कि ये बुक सच के साथ किये गए उनके एक्सपेरीमेंट्स पर बेस्ड है. उन्होंने लिखा था कि उनकी लाइफ का अल्टीमेट गोल मोक्ष पाना है, यानी सच को स्वीकार करके ज्ञान प्राप्त करना.

उन्होंने ये भी लिखा कि उन्हें पसंद नहीं था कि लोग उन्हें “महात्मा” बुलाये हालाँकि जो लोग उन्हें बहुत रिस्पेक्ट देते थे उन्होंने उनका ये नाम रखा था. ऐसा नहीं था कि गांधी जी लोगो की रिस्पेक्ट की कद्र नहीं करते थे बल्कि उन्हें तो ये लगता था कि वो इतनी रिस्पेक्ट डिजर्व नहीं करते है.

क्योंकि उनका मानना था कि बाकियों की तरह उनकी भी कुछ लिमिटेशंस है और उनसे भी लाइफ में मिस्टेक्स हुई है. खैर जो भी हो, आपको इस बुक summary से गांधीजी के बारे में और काफी कुछ जानने को मिलेगा.

कुछ ऐसी इन्फोर्मेशन जो शायद आज तक आपको पता ना हो. ये तो सब जानते है कि गांधीजी एक इंस्पायरिंग लीडर थे लेकिन वो एक बेहद प्यार करने वाले बेटे और पिता भी थे. वो सही मायनों में सेवा और विश्वास की मूर्ती थे.

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पैरेंटेज और चाइल्डहुड (Parentage and ChiIdhood)

मेरा जन्म पोरबंदर में 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था. मेरी फेमिली बनिया कम्यूनिटी से बिलोंग करती है. मेरे दादा पोरबंदर में दीवान थे और मेरे फादर भी यही काम करते थे. मै अपने माँ-बाप का सबसे छोटा बेटा हूँ. मेरे फादर एक बहादुर, काइंड और बड़े दिलदार इंसान थे.

उन्हें रूपये पैसे का कोई लालच नहीं था. हालाँकि उन्होंने कोई फॉर्मल एजुकेशन नहीं ली थी लेकिन उनके पास अनुभवो का खज़ाना था. उनकी खूबी थी कि वो लोगो को बड़े अच्छे से समझते थे और उनके झगड़े सुलझाते थे. मेरी माँ बड़ी ही रिलीजियस लेडी थी, खाने से पहले भगवान् को शुक्रिया अदा करना उसकी आदत में शामिल था. चतुरमास के दिनों में माँ सिर्फ एक टाइम खाना खाती थी.

ये उसका नियम था फिर चाहे वो बीमार ही क्यों ना हो. उसने फ़ास्ट रखना और प्रे करना कभी नहीं छोड़ा. एक बार ऐसे ही चतुरमास के दिन थे जब माँ ने कसम ली कि वो सूरज निकलने तक कुछ नहीं खाएगी. मै और मेरे भाई-बहन बाहर निकलकर देखने गए कि सूरज निकला या नहीं. लेकिन बारिश के दिन थे इसलिए सूरज बड़ी मुश्किल से निकलता था.

लेकिन माँ ने अपनी कसम नहीं तोड़ी. मेरी माँ एक बड़ी स्मार्ट लेडी थी, उसका कॉमन सेन्स बड़ा स्ट्रोंग था और उसे स्टेट politics की पूरी नॉलेज रहती थी. जब मै सात साल का था मेरे फादर राजस्थानिक कोर्ट के मेंबर बने. इसलिए हमारी फेमिली को पोरबंदर छोडकर राजकोट जाना पड़ा.

और वही पर मैंने हाई स्कूल तक की पढ़ाई की. मै स्कूल में बड़ा शर्मिला स्टूडेंट था. मुझे अपने क्लासमेट के साथ खेलने से ज्यादा बुक्स पढना पसंद था. और इसी वजह से मै हमेशा अकेला ही रहता था. सुबह स्कूल जल्दी आना और स्कूल ओवर होते ही सीधे घर जाना मेरी आदत थी.

मेरे क्लासमेट अक्सर मेरा मज़ाक उड़ाते थे इसलिए उनसे बचने के लिए मै स्कूल से भागते हुए घर जाता था. और घर जाकर फिर अपनी किताबो में डूब जाता था.

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चाइल्ड मैरिज (Child Marriage)

वैसे अपनी लाइफ के इस चैप्टर पर मुझे कोई प्राउड फील नहीं होता लेकिन जो भी हो मुझे अपने रीडर्स से इसे शेयर करना ही होगा अगर मुझे वाकई में सच का पुजारी बनना है तो. मेरी वाइफ कस्तूरबा से मेरी शादी तब हुई थी जब हम दोनों सिर्फ 13 साल के थे.

मेरे घर के बड़े लोगो ने मेरी, मेरे भाई और (cousins)कजंस की एक ही साथ शादी कराने का डिसीजन लिया. मेरा भाई और (cousins) कजन मुझसे 2 साल बड़े थे.

हिन्दू घरो में शादी से पहले कई महीनो तक तैयारी चलती है. खाने में क्या बनेगा, क्या कपडे पहने जायेंगे और क्या-क्या गहने बनेंगे इस पर कई सारी प्लानिंग होती है और साथ ही पैसा भी खूब खर्च किया जाता है.

मेरे फादर और अंकल बूड़े हो रहे थे, उन्हें लगता था कि बच्चो की शादी इस उम्र के करवाकर वो अपनी रिसपोंसेबिलिटी से छुटकारा पा लेंगे. तो इस तरह हमारे घर में एक साथ तीन शादियाँ अरेंज हुई.

उस वक्त मुझे अच्छे कपड़े, शादी की धूम-धाम, ढोल की आवाज़ और खूब सारा टेस्टी खाना सिर्फ यही सब समझ आता था. शादी का मतलब क्या होता है, ये मुझे मालूम नहीं था.

मुझे याद है जब मै पहली बार एक अजनबी लड़की से मिला, हम शादी के मंडप में सात फेरे ले रहे थे. उसके बाद मैंने और मेरी छोटी दुल्हन ने एक दुसरे को कंसार खिलाया. हम दोनों एक दुसरे से शर्मा रहे थे, मै तो अभूत नर्वस हो गया था.

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उससे क्या बात करूँ. लेकिन फिर धीरे-धीरे हम दोनों एक दुसरे को समझने लगे. वो मेरे लिए फेथफुल थी और मै उसके लिए.

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मेरे फादर की डेथ और मेरी डबल शेम (My Father’s Death and My Double Shame)

मै 16 साल का था जब मेरे फादर की डेथ हुई. उन्हें फिसट्यूला हुआ था. वो काफी टाइम से बीमार चल रहे थे इसलिए माँ और मै उनकी सेवा में लगे रहते थे. मै उनके घाव साफ़ करता था और मेडिसिन देता था. हर रात सोने से पहले मै उनके पैरो की मसाज करता था.

मुझे अपने फादर का ध्यान रखना अच्छा लगता था. मैंने एक दिन भी अपनी ड्यूटी नहीं छोड़ी. मेरा टाइम स्कूल की पढ़ाई और अपने फादर का ख्याल रखने में गुजरता था. हालाँकि मुझे एक चीज़ का हमेशा मलाल रहेगा जिसकी वजह से मुझे खुद पर हमेशा शर्म आई, और वो चीज़ थी अपनी वाइफ के लिए मेरा लस्ट. अपनी जवानी के दिनों में मेरा खुद पर कण्ट्रोल नहीं रहता था.

मै अपने फादर की सेवा में होता तो भी मेरा दिल कस्तूरबा में लगा रहता. और पिताजी के सोते ही मै सीधा अपने बेडरूम में घुस जाता था. फिर धीरे-धीरे मेरे फादर की तबियत बिगडती चली गयी.

अब (davaiyon) मेडिसिन से भी उन्हें कोई फायदा नही हो रहा था. फेमिली डॉक्टर ने बताया कि इस एज में उनका ओपरेशन करना रिस्की होगा. मेरे अंकल राजकोट से आये. फादर और उनके बीच काफी क्लोजनेस थी. वो फादर के साथ उनके आखिरी टाइम तक रहे. वो पूरा दिन फादर के सिरहाने बैठे रहते.

और सोते भी उसी कमरे में थे. मुझे आज भी वो रात याद है जब मै हमेशा की तरह फादर के पैरो की मसाज़ कर रहा था. मेरे अंकल ने मुझे बोला लाओ अब मै करता हूँ. मैंने तुरंत उनकी बात मानी और कस्तूरबा के पास चला गया. कुछ मिनट बाद ही एक सर्वेंट ने बेडरूम दरवाजे पर नॉक किया.

“जल्दी उठो, फादर की हालत खराब हो रही है” उसने कहा

मै शॉक के मारे बेड से कूद पड़ा.

‘क्या हुआ? मुझे बताओ? मै जोर से बोला

“पिताजी हमे छोडकर चले गए” ‘

मुझे इतना सदमा लगा कि बता नहीं सकता. मै कुछ भी नहीं कर पाया. मुझे खुद पर बड़ी शर्म महसूस हुई. अगर मै अपनी वासना की आग में अँधा नहीं होता तो फादर के आखिरी टाइम में उनके साथ होता. वो अपने बेटे की बांहों में दम तोड़ते.

लेकिन मेरे बदले मेरे अंकल उनके साथ थे. ये उनकी किस्मत थी कि मेरे फादर के आखिरी पलों में वो उनके साथ थे. इस गलती के लिए आज तक मै खुद को माफ़ नहीं कर पाया हूँ. मै हमेशा इस बात को रिग्रेट करके रोता था.

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