(Hindi) Atal Bihari Vajpayee: A Man for All Seasons
परिचय (Introduction)
एक आदमी जो कंट्री को इकोनोमिक ग्रोथ और लिबरलाइजेशन की तरफ लेकर गया. और वो इंसान थे अटल बिहारी बाजपाई. इस बुक में आप पढेंगे कि कैसे अटल बिहारी बाजपेई ने पांच दशको तक देश के सेवा में अपना कंट्रीब्यूशन दिया. इस बुक में आपको उनके केरेक्टर के बारे में तो जानने को मिलेगा ही साथ ही ये पता चलेगा कि कैसे इतने सालो तक वो अपनी एक अच्छी रेपूटेशन मेंटेन कर पाए. अटल बिहारी बाजपेई ट्रू सेंस में एक इंस्पीरेशंन है उन लाखो लोगो के लिए जो उन्हें आईडियाज फोलो करते है. उन्होंने ना सिर्फ इंडियंस के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लोगो के सामने एक्जाम्पल्स सेट किये है.
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द् फोर्मेटिव इयर्स (The Formative Years)
अटल बिहारी बाजपाई 1924 में क्रिसमस के दिन प्रिंसली स्टेट ऑफ़ ग्वालियर में एक ब्राह्मिन फेमिली पैदा हुए थे. यही उनका बचपन गुज़रा और अर्ली एजुकेशन मिली. तब ये स्टेट ब्रिटिश इण्डिया के अंदर आता था. उनके फादर कृष्णा बिहारी पहले एक स्कूल टीचर थे जो बाद में हेडमास्टर प्रोमोट किये गए और उसके बाद स्कूल इंस्पेक्टर बनकर रहे. अपने फादर कृष्णा बिहारी के इन्फ्लुएंश से अटल को बचपना से ही पढने लिखने का शौक था. 1942 में जब क्विट इंडिया मूवमेंट पूरे इण्डिया में फैला तो ग्वालियर में भी प्रोटेस्ट और डेमोंस्ट्रेशन चल रहा था, कृष्णा बिहारी ने देखा कि उनके बेटे अटल और प्रेम भी रेवोल्यूशंन में इंटरेस्ट दिखा रहे है. और इसलिए उन्होंने दोनों को बटेश्वर भेजने का फैसला लिया. लेकिन जल्दी ही बटेश्वर भी फीडम स्ट्रगल में इन्वोल्व हो गया. एक दिन गाँव की मार्किट में डेमोंस्ट्रेशन चल रहा था, अटल और प्रेम भी वहां पर थे. भीड़ के लीडर लीलाधर बाजपेई ने बड़ी पॉवरफुल स्पीच दी, वो लोगो को एंकरेज कर रहे थे कि गवर्नमेंट ऑफिसेस को डेमोलिश करके वहां इंडियन फ्लैग खड़ा कर दो.
लीलाधर बड़े अच्छे स्पीकर थे. उनकी आवाज़ का जादू लोगो के सर चढकर बोलता था. दोनों भाई अटल और प्रेम भी भीड़ के साथ चले गए लेकिन उन्होंने डेमोलिशन में पार्ट नहीं लिया. जब लीलाधर और बाकि लोग “क्विट इंडिया” के नारे लगाते हुए बिल्डिंग्स जला रहे थे तो दोनों भाई उसमे शामिल नहीं हुए. थोड़ी देर के बाद ही ऑथोरिटीज वहां पहुंच गयी. पोलिस ने कई सारे लोग अरेस्ट किये जिसमे लीलाधर, अटल और प्रेम भी थे. दोनों भाइयों को 23 दिन जेल में काटने पड़े. कृष्णा बिहारी को जब ये सब पता चला तो बड़े परेशान हुए.
अपने बेटो को छुड़ाने के लिए जो उनसे बन पड़ा उन्होंने किया. इसी बीच पोलिस ने अटल और प्रेम को अलग-अलग इंट्रोगेट किया. लेकिन दोनों ने सेम स्टेटमेंट दिया. उन्होंने कहा हां, वो लोग भीड़ के साथ थे लेकिन उन्होंने कोई तोड़-फोड़ नहीं की. क्राउड के लीडर लीलाधर को गिल्टी मानकर कोर्ट ने 3 साल के लिए जेल भेज दिया. दोनों भाई अटल और प्रेम को छोड़ दिया गया. ये इंसिडेंट इस फ्यूचर प्राइम मिनिस्टर के लिए किसी आई ओपनर से कम नहीं था. अरेस्ट के टाइम अटल ग्वालियर में विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ते थे जहाँ वो इंग्लिश, हिंदी और संस्कृत सीख रहे थे और बैचलर ऑफ़ आर्ट्स के स्टूडेंट थे. उसके बाद उन्हें पोलिटिकल साइंस में मास्टर्स करने के लिए गवर्नमेंट स्कोलरशिप मिल गयी थी इसलिए आगे की पढ़ाई उन्होंने कानपुर से की. उन्होंने ऑनर्स से ग्रेजुएशंन पूरी की. पढ़ाई के दौरान वो राष्ट्रीय स्वयंम सेवक संघ यानी आरएसएस के कांटेक्ट में आये. यहाँ उन्हें जो एक्सपीएंश मिला उसने उनके पोलिटिकल लीडरशिप की नींव रखी.
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गेटिंग इनटू पोलिटिक्स
पोलिटिक्स में आना (Getting Into Politics)
अटल बिहारी के अपने शुरुवाती पोलिटिकल करियर में दीन दयाल उपाध्याय से बड़े इन्फ्लुएंशड रहे. दोनों ही नार्थ इंडियन ब्राह्मण थे और दोनों आरएसएस के मेम्बर भी थे. आरएसएस न्यूज़पेपर के एडिटर के तौर पर अटल के काम से दीन दयाल बड़े इम्प्रेस्ड थे. अटल की लाइफ को श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी बड़ा इन्फ्लुएंश किया था जोकि जन संघ के फाउन्डर थे. आरएसएस नयी पोलिटिकल पार्टी का मेजर सपोर्टर बन गया था. और इसलिए दींन दयाल ने अटल को श्यामा प्रसाद से मिलवाया. दीनदयाल को अटल एक ऐसे स्मार्ट एनेर्जेटिक यंगमेन लगते थे जो जन संघ के बड़े काम आ सकते थे. अटल श्यामा प्रसाद के असिस्टेंस बन गए. श्याम प्रसाद जब कश्मीर के कंट्रोवर्शियल इश्यू पर काम कर रहे थे तो अटल उन्हें साथ ही थे. तब तक अटल एक यंग आइडियल पोलिटिकल एक्टिविस्ट के रूप में इमेज बन चुकी थी.
श्याम प्रसाद को कश्मीर जाने की परमिशन नहीं मिली लेकिन फिर भी वो जाना चाहते थे. अटल और उनके स्टाफ के तीन और लोग उनके साथ पठानकोट तक गए. श्यामा प्रसाद को लगा कि शायद पंजाब गवर्नमेंट उन्हें रोक लेगी और अरेस्ट कर लेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. लेकिन अपने खिलाफ हो रही कोंसपाइरेसी (conspiracy) का उन्हें पता नहीं था. उन्हें कश्मीर में एंटर तो करने दिया गया लेकिन उन्हें कश्मीर से वापस नहीं जाने दिया गया. और कश्मीर में ही नज़रबंद रहते हुए उनकी डेथ हो गयी. जन संघ पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा, ये एक बड़ी ट्रेजेडी थी जिसने अपोजीशन पार्टी को बुरी तरह तोड़ कर रख दिया था. जन संघ के लोकसभा में एक पोजीशन की वेकेंसी निकली.
दीन दयाल ने अटल का नाम सजेस्ट किया हालाँकि तब अटल सिर्फ 28 के ही थे. लेकिन दींन दयाल को पूरा यकीन था कि अटल ने श्याम प्रसाद से काफी कुछ लर्न किया है. और उन्हें अटल के पब्लिक स्पीकिंग टेलेंट पर भी पूरा भरोसा था. और इस तरह अटल इलेक्शन में खड़े हुए. तब जन संघ उतनी पोपुलर पार्टी नहीं थी. अटल ने बहुत हार्ड वर्क किया तब जाकर 1957 में जनसंघ 4 सीटे जीतकर पार्लियामेंट में पहुंची. और उनके से एक सीट पर अटल खुद थे. उन्हें पार्लियामेंट के सेशन में सिर्फ 5 मिनट दिए गए बोलने के लिए. और शायद यही वजह थी कि आगे चलकर अटल की पब्लिक स्पीकिंग स्किल्स काफी इम्प्रूव हुई. उनकी एबिलिटी थी कि वो अपना मैसेज एक बड़े क्लियर ओर्गेनाइज़ तरीके से कम्यूनिकेट करते थे. यहाँ तक कि जवाहर लाल नेहरु भी उन्हें बहुत मानते थे. एक मौके पर नेहरु अटल को ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर से मिलाने ले गए. पंडित नेहरु बोले” ये यंगमेन अपोजिशन पार्टी के लीडर है, वैसे ये हमेशा मुझे क्रिटिसाइज़ करते है, लेकिन मुझे इनका फ्यूचर काफी ग्रेट लगता है”
लीडिंग द जन संघ (Leading the Jana Sangh)
जन संघ को लीड करना
जन संघ में एक और ट्रेजेडी हो गयी थी. 1967 में दीन दयाल जन संघ के प्रेजिडेंट चुने गए लेकिन वो सिर्फ 40 दिन से ज्यादा पोजीशन में नहीं रह पाए क्योंकि अचानक उनकी मौत हो गयी और वो भी बड़े मिस्टीरियस तरीके से. वो एक चलती हुई ट्रेन में चढने की कोशिश कर रहे थे कि किसी ने उन्हें पीछे से धक्का दे दिया. उनकी मौत के बाद आरएसएस के लीडर एम्. एस. गोलवालकर जन संघ के नए प्रेजिडेंट बने. पुराने प्रेजिडेंट बलराज मधोक पोजीशन के लिए काफी लोबीइंग (lobbying ) कर रहे थे लेकिन गोलवालकर को अटल एक बैटर कंडीडेट लग रहे थे. अटल को जब पता चला कि उनका नोमिनेशन जन संघ के प्रेजिडेंट के लिए हो रहा है तो वो बड़े शॉक्ड हुए. “मै दींन दयाल की जगह कैसे ले सकता हूँ?” ये ख्याल उनके मन में आ रहा था.खैर, अटल ने अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाई. एक अच्छे लीडर के तौर पर उनकी एक स्ट्रोंग इमेज उभर कर आई.
अटल ने एक मज़बूत टीम बनाई जो उनके साथ मिलकर काम कर सके. हालाँकि अपोइन्टमेंट हो चुकी थी, मधोक के दिल में अभी भी अटल के लिए रिवेंज की फीलिंग थी. वो हर मौके पर अटल की बात का प्रोटेस्ट करते थे. लेकिन मधोक अटल को कमज़ोर नहीं कर पाए. अटल को देखकर वो हमेशा गुस्से में आ जाते थे जबकि अटल कूल कैट बने रहते. मधोक अपने व्यूज़ में एक्सट्रीम थे जबकि अटल हर बात को केयरफूली जज करते थे. अटल मिडल ग्राउंड में रहकर हर साइड के गुड पॉइंट्स देखना पसंद करते थे. जैसे एक्जाम्पल के लिए, मधोक मुस्लिम इश्यूज को लेकर एक्सट्रीम ओपिनियन देते थे लेकिन अटल ने ऐसा कभी नहीं किया. अटल हमेशा टैक्टिकल एलियांस (tactical alliances) के फेवर में रहे. कई मौको पर उन्होंने सेम गोल अचीव करने के लिए अपोजिशन पार्टी का साथ भी दिया. अटल ने एक बार कहा था कि पोलिटिकल अनस्टेबिलिटी अवॉयड नहीं की जा सकती. इसकी एक ही रेमेडी है कि पार्टीज़ को कोएलिशंन पोलिटिक्स (coalition politics.) रखनी चाहिए.
इसी बीच अटल को कई बार इंदिरा गांधी से भी डील करनी पड़ी जैसे कि एक बार दोनों फेमस पोलिटिशियन दिल्ली के जूनियर डॉक्टर्स के इश्यू पर डिसएग्री हो गए थे. ये जूनियर डॉक्टर्स सेलरी बढाने की डिमांड कर रहे थे और साथ ही अपने लिए एक सेपरेट नॉन प्रेक्तिसिंग अलाउंस भी मांग रहे थे. इस पर इंदिरा और अटल के बीच पार्लियामेंट में जमकर डिबेट हुआ. इंदिरा गाँधी ने कहा” गरीब लोग तो कोई कंप्लेंट नहीं कर रहे? ना तो ये लोग हंगर स्ट्राइक पर बैठे और ना हो नॉन कॉपरेटिव बिहेव कर रहे है? तो ये लोग क्यों कंप्लेंट कर रहे है जो अच्छे-खासे पढ़े लिखे है. मै हैरान हूँ, मुझे ये बात समझ नहीं आती”.
इस पर अटल ने जवाब दिया था” क्या ये बात समझने के लिए कोई स्पेशल एफर्ट लगाना पड़ेगा ? गरीब लोग कभी आवाज़ नहीं उठाते, उन्हें हमेशा ही दबाया जाता है और उनमे यूनिटी भी नहीं होती. जबकि ये लोग पढ़े लिखे है इसलिए इन्हें अपने राइट्स पता है”
इसी तरह कई और इश्यूज थे जिनपर इंदिरा और अटल के बीच डिसएग्रीमेंट था. 1970 में इंदिरा ने जन संघ पर एंटी-मुस्लिम होने का आरोप लगाया और ये भी कहा कि ये इंडियनाइजेशन प्रोग्राम के अंडर देश चलाना चाहता है. इंदिरा ने ये भी डिक्लयेर कर दिया कि वो जन संघ ग्रुप से सिर्फ पांच मिनट में निपट सकती है. अटल को ये बात बड़ी बेतुकी लगी, उन्होंने इसका जवाब दिया” प्राइम मिनिस्टर इंदिरा कह रही है कि वो हमसे सिर्फ पांच मिनट में निपट सकती है, लेकिन पांच मिनट में जब वो अपने बाल नहीं ठीक कर सकती है तो हमें क्या ठीक करेंगी?’ जब नेहरु जी हमसे नाराज़ होते थे तो एट लीस्ट अच्छी स्पीच तो देते थे, और फिर जन संघ उन्हें चिढाती थी. लेकिन इंदिरा के साथ ये बात नहीं है, वो खुद ही नाराज़ रहती है”. अटल ने आगे ये भी कहा कि उन्हें नहीं पता कि इंडियनाइजेशन क्या है. जन संघ का प्रोग्राम तो सेक्यूलरिज्म है जिसमे सिर्फ हिन्दू या मुस्लिम नहीं बल्कि सारी इंडियन पोपुलेशन इन्वोल्व है. अटल ने कहा था “इंडियनाइजेशन इज अ मंत्रा ऑफ़ नेशनल अवेकनिंग”.