(Hindi) The Magic of Thinking Big
INTRODUCTION
आपने शायद ये बात कई बार सुनी होगी- थिंक बिग! थिंक आउट ऑफ़ बॉक्स! डू मोर एंड बी मोर. ये काफी कॉमन मोटिवेशनल एडवाइसेस है जो ऑलमोस्ट हर कोई दुसरे को देता है. और हम भी इन बातो पर बिलीव करके यही उम्मीद करते है कि ये सच हो. लेकिन क्या हम वाकई में जानते है कि ये एडवाइस काम करेगी या नहीं ? क्या आपको वाकई लगता है कि थिंकिंग बिग आपको वो सक्सेस दिला सकती है जो आप चाहते है? अगर आप ऐसे लोगो में से है जो यही सवाल खुद से पूछते है, तो इनके आंसर आपको इस बुक में मिलेंगे. थिंकिंग बिग का मैजिक आपकी हेल्प करेगा ये रियेलाइज करने में कि आपकी सक्सेस में आपकी थिंकिंग कितनी मैटर करती है. आप जो है और जो बनना चाहते है, इसमें थिंकिंग काफी बड़ा रोल प्ले करती है. जो आप डिज़र्व करते है उसे हासिल करने में आपकी थिंकिंग ही हेल्प करेगी. तो “मैजिक ऑफ़ थिंकिंग बिग” नाम की इस बुक में आपको वो बेसिक प्रिंसिपल और कॉन्सेप्ट्स सीखने को मिलेंगे जो रियल लाइफ सिचुएशन पर बेस्ड और टेस्टेड है. ये आपको शो कराएगी कि आपको क्या करना है और कैसे उन प्रिंसीप्लस को अप्लाई करके आप बिग सक्सेस और बिग हैप्पीनेस पा सकते है.
तो सबसे पहले आता है-
बीलीव यू केन एंड यू विल सक्सीड (BELIEVE YOU CAN AND YOU WILL SUCCEED)
सक्सेस हर किसी की लाइफ का गोल होता है. फिर चाहे सक्सेस एजुकेशन की हो या करियर की या फेमिली लाइफ में, इन जर्नल हर कोई सक्सेसफुल होना चाहता है. ज्यादातर लोगो को सक्सेस एक आउट ऑफ़ रीच और इम्पोसिबल चीज़ लगती है. लेकिन रियलटी में सक्सेस का फार्मूला काफी सिम्पल है, बस खुद पे बीलीव करना स्टार्ट कर दो कि आप कर सकते हो. और जब आप बिलिव् करने लगोगे कि आप कुछ कर सकते हो तब आप वाकई में करोगे. और एक बार जब आपने करने की ठान ली तो किसी चीज को कैसे करना है आपको खुद समझ में आ जायेगा. ek आदमी टाई एंड डाई की कंपनी में काम कर रहा था, इस काम से वो ठीक-ठाक पैसे कमा लेता था लेकिन वो सेटिसफाईड नहीं था. वो अपनी वाइफ और दो बच्चो के साथ एक स्माल हाउस में रह रहा था. उनके पास इतना पैसा नहीं था कि एक बड़ा घर ले सके या अपनी बाकि ज़रूरते पूरी कर सके. जैसे-जैसे दिन गुजरते जा रहे थे, वो आदमी अपनी लाइफ को लेकर दुखी होता गया और अपनी फेमिली को खुशी ना देने की वजह से वो सबसे ज्यादा हर्ट होता था.
कुछ सालो के बाद उसे एक दूसरी जगह जॉब मिल गयी. यहाँ भी उसका काम सेम था लेकिन एक जगह डिफरेंट थी. ये जगह उसके घर से बहुत दूर थी लेकिन उसने सोचा क्यों ना ट्राई किया जाए. जॉब इंटरव्यू के एक दिन पहले वो आदमी कुछ सक्सेसफुल लोगो से मिला जिन्हें वो जानता था. उसने खुद से पुछा कि उन लोगो के पास ऐसा क्या है जो उसके पास नहीं है. उस आदमी को पूरा बीलिव था कि वो लोग अपनी इंटेलीजेन्स, पर्सनेलिटी या एजुकेशन की वजह से सक्सेसफुल नहीं हुए बल्कि इसलिए हुए क्योंकि उन्होंने इनिशिएटिव लिया था! उन सबको खुद पर भरोसा था कि वो कुछ कर सकते है. नेक्स्ट मोर्निंग वो आदमी पूरे कांफिडेंस के साथ जॉब इंटरव्यू के लिए गया. और उसने बड़ी हिम्मत के साथ 300% ज्यादा सेलरी की भी डिमांड की.
वो इतनी सेलरी इसलिये डिमांड कर रहा था क्योंकि उसे खुद पर भरोसा था कि वो इतना डिजर्व करता है. और उसके इस कांफिडेंस की वजह से उसे वो जॉब मिल गयी. तो आप भी खुद पे बिलिव् करो कि आप कर सकते हो. बिलीव करो कि दूसरो की तरह आपको भी स्कसेस मिल सकती है. हमेशा सेकंड क्लास मत बने रहो. अपनी वर्थ पहचानो और बिलीव करो कि आप इससे ज्यादा कर सकते हो और बन सकते हो! जब आप बड़ा सोचना शुरू करोगे तो बड़ी सक्सेस ऑटोमेटिकली मिलने लगेगी.
TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE
नेक्सट प्रीसिंपल आता है
क्योर योरसेल्फ ऑफ़ एक्सक्यूजिस्टिस, द फेलर डिजीज (CURE YOURSELF OF EXCUSITIS, THE FAILURE DISEASE)
अगर हम दूसरो को ऑब्जर्व और स्टडी करे तो पता चलेगा कि अनसक्सेसफुल लोग एक्चुअल में एक दिमाग को बन्द करने की बीमारी के शिकार है. इस डिजीज को एक्सक्यूजिस्टिस कहते है. जो लोग इससे सफर करते है उन्हें ये नजर नहीं आती लेकिन हम अक्सर अपनी लाइफ के कुछ एस्पेक्ट्स को कंसीडर करते है और उन्हें अपनी फेलियर का जिम्मेदार मानते है. जब लोग हमसे पूछते है कि क्या हुआ, हम प्रोग्रेस क्यों नहीं कर रहे तो हम कुछ ऐसे बहाने गिनवा देते है—“मेरे साथ हेल्थ इश्यूज है या फिर मै काफी ओल्ड हूँ या फिर मै उतना इंटेलीजेंट नहीं हूँ या मै तो अनलकी हूँ”
एक बार एक सेल्स ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान एक ट्रेनी थी जिसका नाम था सेसिल (Cecil.) वो करीब 40 साल की थी और वो मेंनूफेक्चरर के रीप्रजेंटेटिव के तौर पर एक बैटर जॉब ढूंढ रही थी. लेकिन सेसिल में कोंफीडेंस की बड़ी कमी थी क्योंकि उसे लगता था कि वो काफी ओल्ड है इस जॉब के लिए. वो इस बात को लेकर इतनी convinced थी कि जो बनना चाहती थी, कभी नहीं बन पाई क्योंकि उसे लगता था कि अब बहुत देर हो गयी है. बाद में सेम ट्रेनिंग के दौरान होस्ट ने सेसिल से पुछा कि क्या उसे पता है कि आदमी की प्रोडक्टिव लाइफ कब स्टार्ट होती है और कब एंड. तो सेसिल ने प्रेक्टिकल आंसर देते हुए कहा कि आदमी 20 से लेकर 70 साल तक काम कर सकता है. और वो खुद ही अपने जवाब से हैरान थी! सेसिल को रियेलाइज हुआ कि अभी तो वो अपनी प्रोडक्टिव एज के हाफवे भी नहीं पहुंची है, और फिर भी वो आगे बढ़ने से घबरा रही है. सक्सेस की कोई बाउंड्री नहीं होती. हमे आगे बढकर अपनी failure mentality को दूर करना ही होगा चाहे वो हमारे अंदर कहीं भी छुपी हो.
नेक्सट प्रीसिंपल कहता है
बिल्ड कांफिडेंस एंड डिस्ट्रॉय फियर (BUILD CONFIDENCE AND DESTROY FEAR)
कुछ लोगो के लिए फियर सिर्फ माइंड का गेम है. लेकिन सच तो ये है कि फियर रियल होता है और इससे पहले कि ये हमे कण्ट्रोल करे, हमे इसे पहचानना होगा. नेवी रीक्रूट्स के एक ग्रुप का स्विमिंग एबिलिटी का टेस्ट लिया गया. उनमे से ज्यादातर यंग बॉयज थे जो पानी की गहराई से डरते थे, यहाँ तक कि कुछ फीट गहरे पानी से भी. एक एक्सरसाइज़ में उन्हें 15 feet से पानी में जंप मारने को बोला गया. पानी में जंप मारने की किसी की हिम्मत नहीं हुई. नेवी ऑफिसर ने वालंटियर्स को आगे आने को बोला लेकिन कोई नहीं आया. ऑफिसर को एक आईडिया आया, उसने एक रिक्रूट का नाम लिया और उसे अपने पास बुलाया. जब वो रीक्रूट उसके पास आया तो ऑफिसर ने उसे धीरे से कुछ कहा और वाटर पूल में धक्का दे दिया. ये देखकर सारे रीक्रूट्स शॉक्ड रह गए, जिस रीक्रूट को धक्का दिया गया था वो भी तक पानी से ऊपर नहीं आया था. सब डरे सहमे खड़े थे कि अब क्या होगा, तभी अचानक वो रीक्रूट पानी में स्ट्रगल करता नजर आया. वो पानी से बाहर निकलने की पूरी कोशिश कर रहा था, एक प्रोफेशनल स्विमर की हेल्प से उसे पूल से निकाला गया.
जब ऑफिसर ने उससे पुछा कि क्या वो ट्रेनिंग कंटीन्यू करना चाहेगा तो रीक्रूट ने बड़े कॉंफिडेंट के साथ हाँ बोला! और उसने ये भी बोला की वो फिर से पानी में जंप करने को रेडी है ताकि वो अपना डर दूर कर सके और स्विमिंग सीख सके. तो देखा आपने! एक्शन ही फियर का इलाज है. फियर ही हमे बिलीव करने से रोकता है कि हम कुछ कर सकते है. ये हमे पोसीबिलिटीज की तरह बढ़ने से मना करता है. पोजिटिव थौट्स के थ्रू आप अपने कांफिडेंस को बिल्ड करके फियर को अपने माइंड से रीमूव कर सकते है. चीजों का ब्राईट साइड देखने की कोशिश करो और अपनी प्रोब्लम्स को करेज और ऑप्टीमिज्म के साथ फेस करो. जब हम होप करेंगे और एक्चुअल में कोई एक्शन लेंगे तो आपके अंदर का डर ऑटोमेटिकली दूर हो जाएगा.
नेक्सट प्रीसिंपल कहता है
हाउ टू थिंक बिग यानि बडा कैसे सोचे
एक रिच आदमी अपनी एक्सपेंसिव कार चला रहा था. पास के एक रेस्तरोरेंट में कार पार्क करने के बाद जब वो अपने अमीर फ्रेंड्स से मिलने जा रहा था तो उसने नोटिस किया कि एक लड़का उसकी ब्रांड न्यू कार को बड़े गौर से देख रहा था. जब रिच आदमी उस लड़के को देखकर मुस्कुराया तो लडके ने उसे कहा कि उसकी कार कितनी कूल और एक्सपेंसिव है. इस पर रिच आदमी ओवर कॉंफिडेंस से बोला” ये उतनी भी एक्सपेंसिव नहीं है, ये तो उसके ब्रदर ने उसे गिफ्ट की है”. उस आदमी की बात सुनकर लड़का कुछ नहीं बोला. रिच आदमी ने उससे पुछा कि क्या वो भी ऐसी एक्सपेंसिव कार लेने का ड्रीम देख रहा है? लेकिन उस लड़के का जवाब सुनकर वो आदमी हैरान रह गया. “नहीं, बल्कि ये सोच रहा हूँ कि मै आपके ब्रदर की तरह अमीर कैसे बन सकता हूँ”?
अगर हम चीजो को ऐसे देखे जैसे वो हो सकती है नाकि जैसे वो अभी है तो हम उनमे एक ग्रेट वैल्यू एड कर सकते है. इसलिए अपना विजन स्ट्रेच करो और जो दिख रहा है सिर्फ उसी पर मत अटको बल्कि विजुएलाइज करो कि फ्यूचर में क्या हो सकता है. और अपनी सक्सेस की एक बिगर और बैटर पिक्चर इमेजिन करो.