(Hindi) The Code of the Extraordinary Mind: 10 Unconventional Laws to Redefine Your Life and Succeed On Your Own Terms
परिचय
“मुझे लगता है कि आर्डिनरी लोग चाहे तो एक्स्ट्राआर्डिनरी बन सकते है” ये बात बिलेनियर एलन मस्क ने कही थी. तो ऐसी क्या चीज़ है जो उनको और बाकि दुसरे बिलेनियर को भीड़ से अलग करती है ? क्या ये पैसा है ? या फेम? या उनका लक? एलोन मस्क कोई मल्टी मिलेनियर पैदा नहीं हुए थे. सेम चीज़ स्टीव जॉब्स और जॉन डी. रॉकफेलर के साथ भी है. एक ऐसा मेथड है, एक कोड जो कोई भी फॉलो कर सकता है और उनकी ही तरह एक्स्ट्रा आर्डिनरी बन सकता है. यही बात आप इस बुक से सीखने वाले है. हर चीज़ पहले आपके दिमाग से शुरू होती है तो सबसे पहले तो आपको अपनी थिंकिंग बदलने की ज़रुरत है.जैसे वो एप्पल इंक का स्लोगन भी कहता है
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थिंक डिफरेंटली”
इस बुक में आपको अपने फ्रेम ऑफ़ माइंड चेंज करने का तरीका सिखाया जायेगा. अगर आप दुसरे लोगो की ही तरह सोचंगे और एक्ट करेंगे तो कभी भी एक्स्ट्राआर्डिनरी नहीं बन सकते. आपको इतना स्ट्रोंग बनना पड़ेगा कि हर तरह के क्रिटीज्म को आसानी से फेस कर सके और अपनी जिंदगी की सच्ची ख़ुशी आपको हासिल हो. ट्रांसेंड द कल्चरस्केप स्टीव जॉब्स ने एक बार कहा था” आपके आस-पास की वो हर चीज़ जिसे आप लाइफ कहते है, आप ही के जैसे लोगो ने बनाई है” हम सब की लाइफ रूल्स से चलती है. बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि हमें क्या करना है और क्या नहीं. आपको स्कूल की पढाई करनी चाहिए, आपको कॉलेज जाना चाहिए, कोई हाई पेईंग जॉब करनी चाहिए,
शादी करनी चाहिए, वगैरह वगैरह. यहाँ तक हमें कैसा दिखना चाहिए, क्या फील करना चाहिए ये सब भी सोसाइटी के हिसाब से ही तय होता है. क्या रीजन है इसके पीछे? ह्यूमेनिटी ने हमारे लिए ये रूल्स बनाये है. हम इन रूल्स, आईडियाज, बिलिफ और प्रेक्टिस के समन्दर में तैरने वाली फिश की तरह है. सोसाइटी हमेशा यही एक्स्पेक्ट करती है कि हम ये रूल्स माने और फॉलो करे. मगर पॉइंट ये है कि अब ये रूल्स बहुत ज्यादा आउटडेटेड हो चुके है. ये हमें आगे बढ़ने से रोक रहे है, हमें अपाहिज बना रहे है. और कुछ नहीं बल्कि हमें पीछे की ओर धकेल रहे है. लेकिन अगर आपको एक्स्ट्राआर्डिनरी बनना है तो आपको ये रूल्स तोड़ने ही पड़ेंगे.
चलिए लेखक की खुद की स्टोरी पर एक नज़र डालते है. विशेन लाखियानी माइक्रोसॉफ्ट के लिए काम करते थे. वे नए एम्प्लोयीज़ की वेलकम पार्टी में बिल गेट्स से भी मिल चुके है. इस मुकाम तक पहुँचने के लिए विशेन ने बहुत हार्ड वर्क किया है. उन्होंने मिशिगन यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. इस सब के बाद विशेंन को तो बहुत खुश होना चाहिए था. आखिरकार उनके पास इतनी ग्रेट कंपनी में एक स्टेबल जॉब जो थी. उन्होंने टॉप युनिवेर्सिटी से पढ़ाई की है, लोग उन्हें एक सक्सेसफुल इंसान समझते है.
मगर इस सबके बावजूद विशेन खुश नहीं है. माइक्रोसॉफ्ट ज्वाइन करने के कुछ ही महीनो बाद उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी. दरअसल विशेन एक फोटोग्राफर या कोई स्टेज एक्टर बनना चाहते थे. मगर ये सोसाइटी ऐसी जॉब्स को सक्सेसफुल प्रोफेशन के तौर पर नहीं देखती है. लोग अक्सर कहते है कि फोटोग्राफी या एक्टिंग में कोई पैसा नहीं है. लोगो को लगता है कि विशेन को भी कोई नाइन टू फाइव जॉब ही करनी चाहिए. और इस तरह विशेन लाखियानी ने भी अपने सपनो को कुर्बानी दे दी.
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क्या रूल्स सही है क्वेश्चन द रूल्स
आज जो रूल्स हम फॉलो कर रहे है, हमसे पहले वाले लोगो ने बनाए थे. अगर देखा जाए तो ये रूल्स कुछ नहीं है बस लोगो की ओपिनियन है. और हम सिर्फ इसलिए इन्हें फॉलो करते है क्योंकि ये हमारे पैदा होने से भी पहले से चले आ रहे है. जब हम कोई डिसीजन लेते है तो हमें लगता है कि हम रेशनल हो रहे है. हमें लगता है कि हमारा फैसला सिर्फ हमारे माइंड से निकला है मगर हम माने या न माने हमारी हर सोच हमारे दोस्तों, परिवार, और कल्चर से कहीं ना कहीं इन्फ्लुयेंश होती रहती है. वैसे अपना ट्रेडीशन फॉलो करने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन आप ही देखिये कि हर दिन दुनिया कितनी तेज़ी से इवोल्व हो रही है. तो जो इसके रूल्स है, बीलीफ्स है, आईडियाज़ है वे भी तो इवोल्व होने चाहिए.
अगर आप भी उन्ही चीजों में बिलीव करेंगे जिनमे सब करते है तो आप रेशनल नहीं है. अगर आप बिना सोचे समझे चीजों को यूँ ही एक्सेप्ट करते रहेंगे तो आप कभी भी एक्स्ट्राआर्डिनरी नहीं बन सकते. इसलिए रूल्स पर सवाल उठाये क्योंकि आपके पास सोचने के लिए एक दिमाग है. रूल्स चाहे राईट हो या रोंग आप अपने डिसीज़न खुद ले. ब्लाइंडली कुछ भी फॉलो मत करो. एक बार एक 9 साल का हिन्दू लड़का मैकडोनाल्ड का बर्गर खाना चाहता था क्योंकि उसने इसके बहुत से एडवरटाईज़मेंट देखे थे. मैकडोनाल्ड की एक ब्रांच उसके घर के पास ही खुल रही थी मगर उस लड़के को एक प्रोब्लम थी कि वो बीफ नहीं खा सकता था..
अब मैकडोनाल्ड के उस ऐड्स की वजह से उस लड़के को लगता था कि ये बर्गर उसकी जिंदगी का सबसे बढ़िया मील होगा. फिर भी ऐसा कुछ था जो उसको रोक रहा था. तो वो लड़का अपनी माँ के पास गया और पुछा” मै बीफ क्यों नहीं खा सकता? “उसकी माँ ने प्यार से उसे समझाया कि ये उनके रिलिज़न और कल्चर का एक पार्ट है. फिर भी लड़का क्यूरियस रहा. “बाकी लोग भी तो बीफ खाते है, तो हिन्दू क्यों नहीं खा सकते ?” उसने फिर पुछा. तो उसकी माँ ने कहा” तुम खुद ही जाकर क्यों नहीं पता कर लेते?’
तो इस 9 साल के लड़के ने एनसाईंक्लोपीडीया पढ़ा तो उसे पता लगा कि एनशियेंट हिन्दू लोग काऊ को बड़ा यूज़फुल मानते थे क्योंकि ये उनकी फार्मिंग में बड़े काम आती थी. काऊ दूध देती थी तो हिन्दूओं को लगता था कि काऊ इतने काम की है तो इसे क्यों खाए जब खाने के लिए बाकी जानवर है. और फिर लास्ट में उसकी माँ ने उसे बीफ बर्गर टेस्ट करने के लिए अलो कर दिया. लड़के ने फील किया कि मैकडोनाल्ड का बर्गर यूँ ही ओवररेटेड किया गया है. ये उतना भी बेस्ट मील नहीं है. मगर इससे उसने कुछ सीख भी ज़रुर ली.
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प्रेक्टिस कोंसश इंजीनियरिंग
एक्स्ट्राआर्डिनरी बनने के लिए हमें ये बात ध्यान रखनी पड़ेगी कि कुछ रूल्स ऐसे है जो आजकल की लाइफ में किसी काम के नहीं है. हमें अपनी खुद की थिंकिंग के हिसाब से कुछ बाते अपने दिमाग में फिल्टर करनी पड़ेगी कि क्या एक्सेप्ट करना है क्या रिजेक्ट. इमेजिन करे कि आप एक ऐसे कमरे में है जिसमे कई सारे लोग है. आप उनकी बातचीत सुन रहे है जैसे कि सक्सीड होने के लिए बेस्ट तरीका क्या है, आपको क्या पहनना चाहिए या फिर किस टाइप के लोगो से दूरी बनाकर रखे. अब आपको ज्यादा कुछ नहीं पता है तो आप उनकी हर बात को सही समझते है क्योंकि आप भी आर्डिनरी लोगो की तरह ही सोचते है. आप भी बाकियों की तरह भीड़ का एक हिस्सा है |
अगर आपको वाकई में एक्स्ट्राआर्डिनरी बनना है तो खुद को जगाना पड़ेगा. यही पर कोंशस इंजिनियरिंग काम करती है. अपना खुद का बबल बनाने का यही प्रोसेस है. आप अभी भी सेम रूम में है. ऑफ़कोर्स आप अभी भी इसी सेम वर्ल्ड में रहते है मगर आप इसमें अपना खुद का एक वर्ल्ड बना सकते है. कोंशस इंजिनियरिंग का मतलब है आपका खुद का वे ऑफ़ थिंकिंग बिल्ड करना. मतलब ये कि उन रूल्स को तोडना जो आपको आगे बड़ने से रोक रहे है. क्या हो अगर आपको सक्सेस पाने के लिए खुद का रास्ता मिल जाये? क्या हो अगर आप कोई फेमस फोटोग्राफर या कोई एक्टर बन जाए? अगर ऐसा हो तो यही सही मायनों में एक्स्ट्राआर्डिनरी होगा कोंशेस इंजीनियरिंग एक ऐसी चीज़ है जिससे आप अपनी लाइफ अपने हिसाब से चलाने के लिए रूल्स खुद से क्रियेट करेंगे.
आपके हाथ में चॉइस रहेगी जिससे आप दुसरो के जजमेंटल नेचर का विक्टिम होने से बच सकते है. अगर आपके पास कोंशस इंजीनियरिंग है तो आप जो चाहे वो कर सकते है, जो आपको पसंद हो वो पहन सकते है. जिससे चाहे उससे फ्रेंडशिप कर सकते है. आपकी (consciousness) कोंश्सनेस एक कंप्यूटर की तरह है जिसे अपना ऑपरेटिंग सिस्टम अपग्रेड करने की ज़रुरत पड़ती रहती है. आज से सालो पहले विंडोज 95 हुआ करता था, आज आपके पास ज़रूर विंडोज 10 होगा.अपग्रेड करना बहुत ज़रूरी है ताकि ये कंप्यूटर बैटर और फास्टर चलता रहे. ठीक ऐसे ही आपकी कोंशेसनेस भी इवोल्व होती रहे. विंडोज 95 किसी पुरानी थिंकिंग की तरह है मगर आप चाहे तो खुद को विंडोज 10 में अपग्रेड कर सकते है. अपनी लाइफ में ऐसे बिलिफ्स इंजिनियर करे जिससे लाइफ बैटर हो जाये. क्योंकि आपको अच्छे से पता है कि विंडोज 95 अब आउटडेटेड है,ये अब चलता नहीं है तो अभी भी इसे क्यों यूज़ कर रहे हो ?