(Hindi) Decisive: How to Make Better Decisions
इंट्रोडक्शन
200 साल पहले, बेंजामिन फ्रैंकलिन के एक दोस्त ने उससे सलाह मांगी थी। सवाल था कि उसके दोस्त के पास एक जॉब opportunity आई थी, तो उसे वो लेना चाहिए या नहीं? बेंजामिन ने सीधे-सीधे हां या ना में जवाब नहीं दिया बल्कि अपने दोस्त को एक कागज को दो हिस्सों में बांटने के लिए कहा l आगे उन्होंने एक हिस्से पर “Pros” यानी फ़ायदे और दूसरी तरफ “Cons” यानी नुक्सान लिखने को कहा l वहाँ उसके दोस्त को नौकरी के फायदे और नुकसान के बारे में लिखना था ।
आप भी शायद हर दिन डिसिशन लेने के लिए pros और cons का इस्तेमाल करते होंगे l खाने में क्या खाना है से लेकर collage की पढ़ाई कहां करनी है, ये सब तय करने तक l इस समरी में, चिप और डैन साबित करेंगे कि pros और cons का इस्तेमाल करने में क्या कमी है। इसके साथ वे बताएँगे कि क्यों एक इंसान होने के नाते हम ना चाहते हुए भी भेदभाव करते हैं l
यहां आप डिसिशन लेने के प्रोसेस में आने वाले चार विलन के बारे में पढ़ेंगे l वे हमारे दिमाग के साथ इस तरह खेलते है जिसकी वजह से साधारण pros और cons वाली सोच काम नहीं करती l
डिसिशन लेने के चार विलन कुछ इस तरह हैं –
पहला – नैरो फ्रेमिंग (Narrow Framing)
दूसरा – कन्फर्मेशन बायस (Confirmation bias)
तीसरी – शॉर्ट टर्म इमोशन ( Short Term Emotions)
चौथा – ओवर कॉन्फिडेंस ( Overconfidence)
हम इन पर एक-एक करके बात करेंगे। इस समरी के अंत तक आपको यह पता चल जाएगा कि कैसे ज़्यादा असरदार या इफेक्टिव और बेहतर डिसिशन लेना चाहिए।
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THE FOUR VILLAINS OF DECISION MAKING
नैरो फ्रेमिंग (Narrow Framing) का मतलब है इंसान का लिमिटेड option रखने का स्वभाव या tendency l हम हमेशा यह देखते है कि हमारी प्रॉब्लम का जवाब हम हां या ना में दे सकें l example के लिए जैसे हम हमेशा सवाल करते है कि, “क्या मुझे अपने पार्टनर के साथ ब्रेक अप कर लेना चाहिए या नहीं?” जोकि यह पूछने से बिलकुल अलग है कि, “इस रिश्ते को बेहतर बनाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?”
पहले सवाल में देखें तो सवाल के जवाब देने के सिर्फ दो ही option हैं l पर दूसरे सवाल में, ऐसे कई जवाब है जिनसे आप आपने प्रॉब्लम को solve कर सकते हैं।
यह नैरो फ्रेमिंग कहलाता है l एक और example है जब हम अपने आप से पूछते हैं,” क्या हमें एक नई गाड़ी खरीदनी चाहिए या नहीं?” बल्कि उससे अच्छा सवाल यह है की, “हम अपने परिवार के साथ छुट्टी को कैसे यादगार बना सकते हैं”?
इस तरह सिर्फ़ दो options होने के बजाय आप हमेशा अपने possibilities को खुले रख सकते हैं।
HopeLab एक non-profit organization है जिसका मकसद है Technology के ज़रिए बच्चों की हेल्थ में सुधार करन। इसमें स्टीव कोल research और development के VP हैं। उनकी team के पास एक प्रोजेक्ट था जहां उन्हें Portable Device बनाने में मदद करने के लिए एक डिजाइन पार्टनर चुनने की ज़रूरत थी। उसका मकसद था कि वह device बच्चों की एक्सरसाइज को मॉनिटर कर सके. स्टीव ने डिजाइन फर्म से प्रपोजल मांगने और winner चुनने के बजाय एक हॉर्स रेस रखी l उन्होंने पाँच फर्म को काम पर रखा और उन्हें प्रोजेक्ट के पहले phase को पूरा करने के लिए कहा । इस तरह उनके पास चुनने के लिए ज़्यादा ऑप्शन थे यानी पाँच अलग-अलग ऑप्शन थे जिनमें से वह किसी फर्म के बेस्ट concept को चुन सकते थे या अपनी पसंद के अलग-अलग concept को जोड़ सकते थेl
Confirmation bias का मतलब होता है जब हम किसी चीज या इंसान से पहली बार मिलते हैं तो हम पर फर्स्ट इम्प्रैशन का असर होता है. example के लिए, हो सकता था कि स्टीव कोल पहले से ही दूसरों की तुलना में किसी एक फर्म को ज़्यादा पसंद करते थे।
Confirmation bias उसे भी कहते है जब हम अपनी favorite चीज को ज्यादा important spot पर रखते हैं l यह सिर्फ तब होता है जब हम रिजल्ट देखते है कि क्यों हमारा favorite सबसे अच्छा option है l लोग उस option को चुनना ज्यादा पसंद करते है जो उनके present beliefs की ओर होता है l
आसान शब्दों में, आप एक डिसिशन लेने वाले के रूप में पहले ही अपनी पसंद के option को ज़्यादा points दे चुके होते है l जब आप चाहते हैं कि कोई चीज सच हो जाए, तब आप उन चीजों या फैक्टर्स पर ज्यादा ध्यान देते हो जो उसे सही बना सकें.
शॉर्ट टर्म इमोशन डिसिशन लेने की process का एक powerful विलन है l हम सभी अपने जीवन में एक बार कभी न कभी इसके शिकार ज़रूर हुए हैं। क्या आपने कभी भी CEO बनने का सपना देखा है? सोचिए अगर आप कभी उस पोजीशन पर होते तो डिसिशन लेना कितना मुश्किल हो सकता है l हम एंडी ग्रोव से यह सीख सकते हैं। वह इंटेल के बहुत ही काबिल CEO हैं।
यह एक ऐसी कहानी है जिससे आप अपने डर को manage करना और एक brave डिसिशन लेना सीख सकते हैं l
एक समय ऐसा था जब मेमोरी चिप के market में लोग इंटेल को ज्यादा पसंद करते थे l इंटेल का सबसे अच्छा प्रोडक्ट मेमोरी चिप हुआ करता था। लेकिन 1980 की शुरुआत में, competition ज्यादा था, खासकर जापानी कंपनियां में।
जापानी कंपनियां बड़े पैमाने पर मेमोरी चिप बनाती जा रही थीं और market में उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा हिस्सेदारी (शेयर) मिल रही थी।
इस बीच, इंटेल की एक छोटी team ने Microprocessor नाम का एक नया और इनोवेटिव प्रोडक्ट बनाया. इंटेल को बड़ी success तब मिली जब IBM ने अपने नए पर्सनल कंप्यूटर के लिए इंटेल Microprocessor का इस्तेमाल करने का फैसला किया।
जापानी Microchips को लेकर खबरें और खराब होती जा रही थी l दस सालों में उनका मार्केट शेयर 30% से दोगुना होकर 60% हो गया था। एंडी ग्रोव का कहना था की यह जानकर इंटेल वालों को विश्वास नहीं हो पा रहा था l उनका प्रोडक्शन rate impossible लग रहा था लेकिन फिर भी वह सच था।
इसके बाद इंटेल में debate चल रही थी कि किस तरह इस प्रॉब्लम का solution निकाला जाए l कुछ मनागेर्स ने मेमोरी चिप्स के प्रोडक्शन को बढ़ाने के लिए एक बड़ा factory बनाने का सुझाव दिया l दूसरों ने एक ऐसा हाई टेक्नोलॉजी वाला प्रोडक्ट बनाने का सुझाव दिया जिसे जापानी कंपनियां टक्कर ना दे सकें।
समय बीतने के साथ साथ, इंटेल ज़्यादा से ज़्यादा पैसा खो रहा था । इंटेल का Microprocessor अभी और भी powerful बनता जा रहा था लेकिन कंपनी को अभी भी मेमोरी चिप्स की वजह से बहुत नुकसान हो रहा था l
1984 में, एंडी ग्रोव ने कहा कि, “वह एक बहुत ही frustrating साल था. बिना जाने की चीज़े कैसे ठीक होंगी, हम मेहनत किए जा रहे थे l हमे काफी नुकसान का सामना करना पड़ाl”
1985 में, एक दिन एंडी इंटेल के founder Gordon Moore के साथ अपने ऑफिस में थे l वे दोनों इस प्रॉब्लम का solution ढूंढते और मीटिंग करते-करते बहुत थक गए थे l
वे अपनी खिड़की से बाहर Great America Amusement Park के Ferris Wheel को देख सकते थे कि तभी अचानक से एंडी ने कहा “इस कंपनी से अगर हम दोनों को निकाल दिया जाता है और अगर बोर्ड ने एक नया CEO चुना तो सबसे पहली चीज तुम क्या करेगा? ”
Gordon ने जवाब दिया , “वह मेमोरी चिप के business को बंद कर देंगे ।”
जिस पर एंडी ने कहा, “तो ऐसा हम खुद क्यों नहीं करते?”
प्रॉब्लम को दूर से देखकर और बाहरी लोगों की तरह सोचकर, एंडी और Gordon ने दूर के बारे में सोचा। अब उन्हें क्लैरिटी मिल गई थी और short term emotions की वजह से उन्होंने खुद पर असर नहीं पड़ने दिया l
ओवर कॉन्फिडेंस डिसिशन लेने के process का चौथा विलन हैं l मान लीजिए कि यह लंदन है और साल है 1962 में. आप एक बड़े record label के मालिक हैं और चार जवान लड़कों का एक group आपके सामने गिटार और रॉक एंड रोल बाजा कर परफॉर्म कर रहे हैं l उन्होंने एक घंटे तक ऑडिशन दिया और पंद्रह अलग-अलग गाने गाए। ये लड़के बहुत excited और hopeful थे।
ऑडिशन के बाद, आपने जज के रूप में अपना फैसला सुनाया, “मुझे इन लड़कों का गाना ज़्यादा पसंद नहीं आया. अब ग्रुप या बैंड का ज़माना ख़त्म हो चुका है, मुझे माफ़ कीजिए. ”
लेकिन बाद में आपको पछतावा होता है, क्योंकि कुछ ही सालों में वह band दुनिया भर में एक जाना पहचाना रॉक एंड रोल band बन जाता है l इसमें आपकी क्या गलती हैं? गलती आपके डिसिशन लेने के ओवर कॉन्फिडेंस की है l
हम जिस बैंड की बात कर रहे हैं उसका नाम Beatles है l Dick Rowe उस परफॉरमेंस को जज कर रहे थे और Record का label था Decca Records।
अगर आप यह गलतियां नहीं करना चाहते, तो आइए हम WRAP के बारे में सीखते हैं या फिर यह कह ले ऐसे चार process जिसे डैन और चिप ने अपने जीवन और काम में अच्छे डिसिशन लेने के लिए बनाया है l