(Hindi) Mark Zuckerberg Facebook
मार्क ज़करबर्ग की ज़िंदगी पर एक नजर
क्या आपने कभी सोचा है कि वर्ल्ड-फेमस टेक एंट्रेप्रेन्योर मार्क ज़करबर्ग के पास Facebook का बिलियन डॉलर आईडिया कैसे आया होगा? सिर्फ 2020 में, Facebook का रेवेन्यू लगभग 86 बिलियन डॉलर था. मार्केट में बहुत सारे नए सोशल मीडिया ऐप आने के बाद भी, Facebook ने अब भी लगातार सबसे पॉपुलर सोशल मीडिया वेबसाइट का ताज बरकरार रखा है. Facebook हमारी ऑनलाइन पहचान बन गई है.
इमेजिन कीजिए कि आपका बचपन का सपना हार्वर्ड जैसे नामी-गिरामी यूनिवर्सिटी में पढ़ने का था और, आपका सपना सच हो जाता है. आप दुनिया के सबसे फेमस यूनिवर्सिटी में एक ऐसे सब्जेक्ट को पढ़ने के लिए जाते हैं जो हमेशा से आपका पैशन रहा है. फिर एक दिन ऐसी बात होती हैं जिससे आपको अपने ड्रीम यूनिवर्सिटी को छोड़ना पड़ता हैं. मार्क ज़करबर्ग के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था और तभी मार्क ने Facebook बनाने का सफर शुरू किया. आज हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ड्रॉपआउट, मार्क ज़करबर्ग , Facebook के CEO और फाउंडर हैं और उनका नेट वर्थ 114 बिलियन डॉलर है. एक यूनिवर्सिटी ड्रॉपआउट से एक टेक मैग्नेट बनने तक की उनकी मज़ेदार सफर के बारे में जानने के लिए आगे पढ़िए.
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शुरुवाती ज़िंदगी
14 मई 1984 को व्हाइटप्लेन्स,न्यूयॉर्क में मार्क ज़करबर्ग का जन्म हुआ था. उनकी फैमिली पढ़ी-लिखी थी. उनके पिताजी एडवर्ड ज़करबर्ग एक डेंटिस्ट थे और उनकी माँ, केरन, एक साइकिएट्रिस्ट थीं. मार्क और उनकी तीन बहनें रैंडी, डोना और एरियल, न्यूयॉर्क के डाउनटाउन में डॉब्स फेरी नाम के एक छोटे से गाँव में पले-बढ़े थे.
ज़करबर्ग के पिता के शब्दों में, मार्क बचपन से ही स्ट्रांग विल पावर वाले और मज़बूत शख्स थे. वो कहते हैं, “कुछ बच्चों के लिए, उनके सवालों का जवाब सिर्फ हां या ना में दिया जा सकता है, लेकिन, अगर मार्क ने कुछ मांगा, तो ‘हाँ’ कहना तो काफी था, लेकिन ‘ना’ का मतलब बहुत कुछ होता था. अगर आप उसे ‘ना’ कहना चाहते है, तो बेहतर होगा कि आप अपने ‘ना’ कहने की वजह, उसके पीछे का सच, मतलब, और लॉजिक को अपने साथ तैयार रखिए. हमें लगता था कि एक दिन वो वकील बनेगा और जूरी को 100% सक्सेस रेट से अपनी बातों को मनवाएगा.”
ज़करबर्ग छोटी उम्र से ही कंप्यूटर में इंट्रेस्टेड थे. 12 साल की उम्र में, उन्होंने अटारी बेसिक के इस्तेमाल से ज़कनेट नाम का एक मैसेजिंग प्रोग्राम बनाया. उन्होंने इस मैसेजिंग ऐप को अपने पिताजी के डेंटल क्लिनिक के लिए बनाया ताकि वहाँ की रिसेप्शनिस्ट उनके पिताजी को नए पेशेंट्स के बारे में आसानी से बता सकें. जल्द ही मार्क के फैमिली मेंबर्स ने भी एक दूसरे से बात करने के लिए ज़कनेट का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. ये बात इंटरेस्टिंग है कि जहां कुछ बच्चे कंप्यूटर गेम खेलते हैं, वहीं ज़करबर्ग ने कम्प्यूटर गेम बनाया. अपने दोस्तों के साथ कंप्यूटर गेम बनाना उनका हॉबी था.
ज़करबर्ग के शुरुआती सालों से आप क्या सीख सकते हैं?
अपना जुनून, अपना पैशन ढूंढिए और उसमें इन्वेस्ट कीजिए.
दुनिया के सबसे कामयाब लोगों की ही तरह, ज़करबर्ग ने अपने जुनून के दम पर एक बड़ा एम्पायर खड़ी की. जिन हॉबीस में आपका इंटरेस्ट हैं, उसे आगे ले जाने की ज़रूरत हैं, और उसी पर काम करना चाहिए. अगर आपने अपनी ज़िंदगी के शुरुवात में एक जुनून पा ली हैं, तो आपको उस पर काम करना चाहिए और एक एक्सपर्ट बनने तक इसका प्रैक्टिस करना चाहिए. ज़करबर्ग एक ऐसे फैमिली में पले-बड़े जो उनका सपोर्ट करते थे. उनके पेरेंट्स ने कंप्यूटर के लिए उनके जुनून को पहचाना और छोटी उम्र से ही उनकी इस लर्निंग में इन्वेस्ट किया. ज़्यादातर पैरेंटस ग्रेड के पीछे भागते हैं और शायद नहीं चाहते कि उनके बच्चे इतनी कम उम्र में एक्स्ट्रा-कर्रिकुलर एक्टिविटीज़ में बहुत ज़्यादा पार्टिसिपेट करें. पर, ज़करबर्ग के पेरेंट्स ने उन्हें कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में आगे बढ़ने के लिए एनकरेज किया हालांकि कई लोग सोचते कि वो किसी भी सॉफ्टवेयर प्रोग्राम बनाने के लिए बहुत छोटे हैं.
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मार्क ज़करबर्ग की एजुकेशन
ज़करबर्ग के पेरेंट्स ने कंप्यूटर में उनके इंटरेस्ट को देखकर एक प्राइवेट कंप्यूटर ट्यूटर के तौर पर एक सॉफ्टवेयर डेवलॅपर डेविड न्यूमैन, को काम पर रखा. डेविड, मार्क को मेंटर करने और गाइड करने के लिए हफ्ते में एक बार उनके घर जाते थे. मार्क ने मर्सी कॉलेज में ग्रेजुएट लेवल के प्रोग्रामिंग कोर्स में एनरोलमेंट लिया था जबकि तब वो सिर्फ हाई स्कूल के स्टूडेंट ही थे.
बाद में, न्यू हैम्पशायर के एक जाने-माने सेकंडरी स्कूल, फिलिप्स एक्सेटर एकेडमी ज्वाइन कर ली. स्कूल में उन्होंने तलवारबाजी का टैलेंट दिखाया और अपने स्कूल की टीम के कैप्टन बने. उन्होंने लिटरेचर की पढ़ाई की जिसमें उन्होंने एक्सीलेंट परफॉरमेंस दिखाया और क्लासिक्स में डिप्लोमा किया. लेकिन, मार्क का कंप्यूटर में इंटरेस्ट बना रहा और नए प्रोग्राम बनाने पर ज़ोर देते रहें.
हाई स्कूल के दौरान, उन्होंने अपने दोस्त एडम डी'एंजेलो (Adam D’Angelo) के साथ सिनैप्स (Synapse) नाम का एक MP3 प्लेयर डेवलॅप किया. ये यूनिक सॉफ़्टवेयर, मशीन लर्निंग के कांसेप्ट का यूज़ करके किसी भी यूज़र्स द्वारा कंप्यूटर पर चलाए गए सभी गानों का ट्रैक रखता था. इससे ये पता कर सकते हैं कि यूज़र को कैसा गाना पसंद आया ताकि यूज़र के पर्सनल प्रेफरन्स या चॉइस पर प्लेलिस्ट बनाया जा सकें. AOL और Microsoft जैसे टेक कम्पनीज़ ने सिनैप्स को खरीदने में इंटरेस्ट दिखाया. उन्होंने टीनएजर मार्क को हायर करने की कोशिश भी की, लेकिन मार्क ने इस ऑफर को ठुकरा दिया क्योंकि वे आगे पढ़ना चाहते थे.
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स्ट्रांग सेंस ऑफ़ सेल्फ एंड माइंडफुलनेस
इमेजिन कीजिए, एक यंग हाई स्कूल के स्टूडेंट के बनाए गए सॉफ़्टवेयर के राइट्स को खरीदने के लिए Microsoft जैसी टेक कम्पनीज़ से खूब सारा पैसा और जॉब ऑफर का आना. कोई भी ऐसे मौके को नहीं गवांता लेकिन ज़करबर्ग ने इन ऑफर्स को ठुकरा दिया क्योंकि उन्होंने आगे पढ़ाई करने का सोच रखा था. जॉब ऑफर को लेने का मतलब होता कि वो कॉन्ट्रैक्ट से बंध जाते और अपने सॉफ़्टवेयर के कॉपीराइट भी खो देते. उन्होंने इसके फायदे और नुकसान के बारे में सोचकर ही कॉलेज जाने का फैसला किया ताकि वे एक इंसान के तौर पर आगे बढ़ सकें और प्रोग्रामिंग को भी आगे बढ़ा सकें. ये दिखाता है कि वो खुद को अच्छी तरह से जानते थे. उन्हें अपनी काबिलियत के बारे में पता था और जानते थे कि अपने लाइफ में जो भी हासिल करना हैं, वो किसी और के लिए काम करने से ज़्यादा बेहतर हैं. इस लेवल के सेल्फ-अवेयरनेस को सिर्फ माइंडफुलनेस से ही हासिल किया जा सकता है जिसे आज के युथ शायद ही कभी प्रैक्टिस करते हैं.
हार्वर्ड के दिन
ज़करबर्ग ने 2002 में एक्सेटर से ग्रेजुएशन किया और फेमस हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया. इस वक्त तक उन्होंने एक जाने माने प्रोग्रामिंग एक्सपर्ट की रेपुटेशन हासिल कर ली थी. हार्वर्ड में उन्होंने साइकोलॉजी और कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की. अपने सेकंड इयर में, सेमेस्टर की शुरुआत में स्टूडेंट्स को कोर्स चुनने में हेल्प करने के लिए कोर्समैच नाम का एक सॉफ्टवेयर बनाया. कोर्समैच से ये पता लगाया जा सकता था कि किसी कोर्स में एनरोल करने वाले कितने स्टूडेंट्स हैं. इससे ये मालूम होता था कि आपके क्लासमेट्स कौन से कोर्स पढ़ रहे हैं. इस इनफार्मेशन से स्टूडेंट्स को ये तय करने में हेल्प मिलती थी कि कौन सा कोर्स लेना है और स्टडी ग्रुप कैसे बनाना है.
हार्वर्ड में पढ़ाई के दौरान ज़करबर्ग की बनाई गई एक दूसरी वेबसाइट Facemash बहुत पॉपुलर हुई थी. ये वेबसाइट कॉन्ट्रोवर्शियल थी जिसकी वजह से ही Facebook की शुरुआत हुई थी. Facemash एक ऐसी वेबसाइट थी जिसमें यूज़र्स को हार्वर्ड के मेल या फीमेल स्टूडेंट्स की दो फ़ोटो दिखाई जाती जिसमें से यूज़र्स को वोट देना होता था कि उन दोनों में से कौन ज़्यादा अट्रैक्टिव है. यूज़र वोटिंग पर वेबसाइट ने सबसे हॉट स्टूडेंट्स की लिस्ट पोस्ट की. इसके लॉन्च होने के एक हफ़्ते बाद ये वेबसाइट कैंपस में तेजी से वायरल हो गई. इस वेबसाइट पर भारी ट्रैफिक की वजह से हार्वर्ड का नेटवर्क क्रैश हो गया.
जल्दी ही यूनिवर्सिटी ने इस साइट को ब्लॉक कर दिया क्योंकि स्टूडेंट्स ने शिकायत की थी कि उनकी प्राइवेसी कोम्प्रोमाईज़ हुई थी और उनके फ़ोटोज़ को उनके परसमीशन के बिना ही Facemash पर डिस्प्ले किया गया. यूनिवर्सिटी के एडमिन्सट्रेटिव बोर्ड ने ज़करबर्ग को स्टूडेंट्स प्राइवेसी वायोलेशन और कंप्यूटर सिक्योरिटी ब्रीचिंग का आरोप लगाया. उन्हें पब्लिक्ली माफी मांगनी पड़ी थी और उन्हें सख्त निगरानी में रखा गया. स्टूडेंट पेपर ने उनके वेबसाइट को गलत और औरतों के खिलाफ बताया.
उनकी पिछले कामों की वजह से, यूनिवर्सिटी के तीन साथी दिव्य नरेंद्र और जुड़वाँ कैमरन और टायलर विंकलेवोस को उनके साथ हार्वर्ड कनेक्शन नाम के एक सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर काम करने के लिए कांटेक्ट किया गया. इस वेबसाइट का एइम हार्वर्ड के स्टूडेंट्स के लिए एक डेटिंग साइट बनाना था जहां वे दूसरे स्टूडेंट्स के फ़ोटो और प्रोफाइल देख सकें. ज़करबर्ग ने शुरू में उनके प्रोजेक्ट में उनकी हेल्प की, लेकिन जल्द ही Facebook के अपने आईडिया पर काम करने के लिए इस ग्रुप को छोड़ दिया.
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कामयाबी रातोंरात नहीं मिलती
हालांकि, ऐसा लग सकता है कि ज़करबर्ग लकी थे कि उनकी कैज़ुअल प्रोजेक्ट एक अरब डॉलर की कंपनी में बदल गई. लेकिन ऐसा नहीं है. सच तो ये है कि ज़करबर्ग बहुत छोटी उम्र से ही इस दिन की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने प्रोग्रामिंग प्रोजेक्ट्स पर काफी फोकस और मज़बूती से काम करना जारी रखा. अपनी टीनएज के दिनों में जब कई लोग पार्टी जाते, तो ज़करबर्ग ने प्रोग्रामिंग में ही अपना फोकस बनाया. उन्होंने साइकोलॉजी जैसे दूसरे सब्जेक्ट्स को भी पढ़ा, लेकिन वे कोडिंग, गेम और साइनैप्स, कोर्समैच और Facemash जैसे सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग का प्रैक्टिस करते रहे.