(Hindi) Everyday Greatness: Inspiration for a Meaningful Life
इंट्रोडक्शन
अक्सर हम लोगों की बहादुरी और टेलेंट के कारनामे सुनते है. आपने कई ऐसे साइंटिस्ट्स के बारे में पढ़ा होगा या सुना होगा जिन्होंने साइंस की फील्ड में अमेजिंग डिस्कवरीज़ की है. सिर्फ इतना ही नहीं, सोसाईटी में ऐसे बहुत से लोग हुए है जो ग्रेट एक्टर, डांसर, म्यूजिशियन और बिजनेसमैन बनकर अपनी-अपनी फील्ड में नाम कमा चुके है और जिन्होंने समाज की भलाई में बढ़-चढ़कर योगदान दिया है.
आमतौर पर इन महान लोगों के अंदर एक ऐसी ग्रेटनेस होती है जिसकी जितनी भी तारीफ की जाये कम है क्योंकि इनकी अच्छाई और महानता के कारण ही समाज का विकास होता है और ये दुनिया रहने के लिए एक खूबसूरत जगह बन जाती है. वैसे एक और बात हमे समझनी चाहिए कि ग्रेटनेस सिर्फ बड़े-बड़े कामो तक ही सिमित नहीं है बल्कि इसका एक और रूप भी है जो बहुत ऊँचे दर्ज़े का है, जिसे हम” एवरीडे ग्रेटनेस” कह सकते है यानि रोज़मर्रा की जिदंगी के छोटे-छोटे महान काम.
एवरीडे ग्रेटनेस वन टाइम इवेंट नहीं है बल्कि जिंदगी जीने का एक तरीका है. एवरीडे ग्रेटनेस का मतलब ये नहीं है कि हम किस चीज़ में अच्छे है, बेस्ट है बल्कि ये उस गुडनेस यानि अच्छाई के बारे में जो ग्रेट लोगों में होती है. ये हमारे एक्श्न्स की इंटेंशन के बारे में है जो बेशक बहुत छोटे से और साधारण हो. इनके साधारणपन में भी एक ऐसी महानता छुपी है कि हमारे साथ-साथ दूसरों की जिदंगी को भी एक मकसद देती है.
इस किताब में आप सीखोगे कि वैल्यूज और प्रिंसिपल्स हमारी जिंदगी का सही मकसद ढूँढने में काम आते है. इस किताब में आपको कई ऐसे लोगों की रियल लाइफ स्टोरीज़ पढने को मिलेगी कि आप उनसे इंस्पायर होकर अपनी जिंदगी का असली मकसद ढूँढने की कोशिश करेंगे.
तो क्या आप तैयार है एक मीनिंगफुल जर्नी स्टार्ट करने के लिए? अगर हाँ तो फिर तैयार हो जाइए इस किताब के अगले पन्ने पलटने के लिए. खुद पर भरोसा रखिये, आप खुद में बेस्ट है, आपके अंदर भी वो एबिलिटी है कि दूसरों को इंस्पायर करके उनकी जिंदगी बेहतर बनाने में मदद कर सके.
TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE
(योगदान) Contribution
हम सब की जिंदगी में कभी ना कभी एक ऐसा पॉइंट आता है जब हम अपने होने की वजह ढूंढते है यानि हम इस दुनिया में क्यों आये है, हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है, इस तरह के सवाल हम सबके मन में उठते है और अक्सर इन सवालों का हमारे पास कोई जवाब नहीं होता. जबकि कई बार हमे एहसास होता है कि हमारी जिंदगी का एक मकसद है, हमारे कुछ गोल्स है जो हमे पूरे करने है. हमे अपने अंदर एक आवाज़ सुनाई देती है जो हमसे कुछ कहना चाहती है. शायद अभी तक हमे ये पता नहीं कि हम क्यों इस दुनिया में आये है पर अक्सर अंतरात्मा की ये आवाज़ हमे ईशारा करती है कि हम एक बड़े प्लान का हिस्सा है, हमें कुछ इस दुनिया में अपना छोटा सा कोंट्रीब्यूशन करना है— एक ऐसा कोंट्रीब्यूशन जो इस दुनिया को एक बेहतर दुनिया बनने में मदद कर सके.
हमारा भी वक्त आएगा जब जिंदगी हमे ये सोचने के लिए मजबूर कर देगी कि हमे इस दुनिया में अपना योगदान देना है या सिर्फ यूं ही बिना किसी मकसद के जिंदगी गुजारनी है. और जब ऐसा वक्त आएगा तब हमे एक्शन लेना ही होगा, हमे ये जानना ही होगा कि हमारी जिंदगी का आखिर पर्पज क्या है. ऐसा क्या है जो हम अचीव करना चाहते है? बेशक वो चीज़ हमारे कम्फर्ट ज़ोन से बाहर हो या हमारे अंदर ही कहीं छुपी हुई हो. पर चाहे ओ भी हो हमे ये तो समझना ही होगा कि हम कुछ ऐसा बड़ा और ग्रेट काम जरूर कर सकते है जो अभी तक हमारी नजरों से छुपा हुआ है.
जॉन बेकर अपने हाई स्कूल के टाइम से ही एक एसपाईरिंग रनर रहे थे, पर उन दिनों उन्हें स्पोर्ट्स में क्वालीफाई करने के लिए “टू अनकोर्डीनेटेड” समझा जाता था. लेकिन जब उनके बेस्ट फ्रेंड ने कोच का ऑफर ठुकरा दिया तो जॉन ने टीम ज्वाइन करने की ईच्छा जाहिर की और उन्हें रनर बनने का मौका मिला. फिर जल्दी ही वो इतने फेमस हो गए कि स्पोर्ट्सराईटर्स ने उन्हें दुनिया के कुछ गिने-चुने फेमस रनर्स की लिस्ट में शामिल कर दिया.
ग्रेजुएशन के बाद बेकर अलबकोकी के एस्पेन एलीमेंट्री स्कूल में कोच बन गए, इसके साथ ही वो 1972 गेम्स के की ट्रेनिग भी कर रहे थे. बेकर जब पच्चीस साल के थे तो उन्हें कैंसर हो गया था, डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनके पास सिर्फ छह महीने का वक्त है.
अपने दूसरे ऑपरेशन से पहले एक दिन संडे को बेकर गाड़ी लेकर पहाड़ो में घूमने निकल गए. वहां उन्हें सुसाईड करने का ख्याल आया क्योकि वो अपनी फेमिली को अपने लिए दुखी और परेशान होते हुए नहीं देख सकते थे. उन्होंने आँखे बंद कर ली, अचानक उनकी आँखों के सामने उन बच्चो के चेहरे घूमने लगे जिन्हें वो ट्रेनिंग देते थे. यही वो मोमेंट था जब उन्होंने आत्महत्या का ख्याल दिमाग से झटकते हुए फैसला लिया कि वो अपनी बची-खुची जिंदगी अपने स्टूडेंट्स के साथ बिताएंगे.
असहनीय दर्द के बावजूद भी बेकर बच्चो को ट्रेनिग देते रहे. 1970 में बेकर को छोटी लडकियों को सिखाने को कहा गया जिन्हें “Duke City Dashers” कहा जाता था. ट्रेनिंग के साथ-साथ बेकर ने उन्हें ये भी सिखाया करते थे कि हमेशा अपनी बेस्ट परफोर्मेस दो. और उन्होंने प्रेडिक्ट कर दिया था कि लडकियाँ फाईन्ल्स तक जायेंगी.
और बेकर की बात सच साबित हुई. उस वक्त बेकर ऊपरवाले से सिर्फ यही मांगते थे कि वो किसी तरह फाईन्ल्स तक जिंदा रह जाए. लेकिन कुछ दिनों बाद उन्हें होस्पिटल में एडमिट करना पड़ गया. उनकी हालत ऐसी नहीं थी कि वो स्कूल जा पाते, पर वो हर रोज़ डैशर्स को कॉल करके उन्हें ये याद दिलाना नहीं भूलते थे कि तुम्हे अपनी बेस्ट परफोर्मेंस देनी है.
23 नवंबर की सुबह बेकर की जिंदगी की आखिरी सुबह थी. उनकी मौत के दो दिन बाद ही फाईनल था, डैशर्स ने चैंपियनशिप जीत ली थी. उन्होंने अपनी जीत का सारा क्रेडिट बेकर को दिया. इसके कुछ दिनों बाद ही बेकर के सम्मान में एस्पेन का नाम बदलकर “जॉन बेकर” एलेमेन्टरी रख दिया गया. अपनी जिंदगी के सबसे मुश्किल वक्त में भी बेकर ने टीम के लिए जो कोंट्रीब्यूशन दिया था वो कभी भुलाया नहीं जा सकता था, वो अपने पीछे एक ऐसी लेगेसी छोड़ गए जो लोगों को हमेशा उनकी ग्रेटनेस की याद दिलाती रहेगी.
जॉन बेकर की स्टोरी दिखाती है कि हमारी परेशानियों पर भले ही हमारे कण्ट्रोल ना हो पर फिर भी हम अपना रीस्पोंस चूज़ कर सकते है. ये हमे तय करना है कि उस परेशानी से हमे कैसे निपटना है. जॉन बेकर ने कैंसर की बीमारी खुद नहीं चुनी थी पर कैंसर होने के बावजूद टीम को अपना कोंट्रीब्यूशन देने का फैसला उसके हाथ में था, और उसने वही क्या जो उसका फ़र्ज़ था. अपनी अंतिम सांस तक उसने अपना पर्पज पूरा किया. बेकर ने अपनी जिम्मेदारी पूरी की और ना जाने अपने स्टूडेंट्स की लाइफ को इंस्पायर किया. सबसे बढकर तो उसे ख़ुशी तब हुई होगी जब उसे एहसास हुआ होगा कि उसकी जिंदगी का एक मकसद था जो उसने मरते दम तक पूरा किया.