(Hindi) What I Wish I Knew When I Was 20: A Crash Course on Making Your Place in the World

(Hindi) What I Wish I Knew When I Was 20: A Crash Course on Making Your Place in the World

इंट्रोडक्शन

ऐसी क्या बातें हैं जो आप खुद से दस साल पहले कह सकते थे?

जो वक्त गुज़र गया, हमारे पास उसे बदलने की ताकत नहीं है, और न ही हमारे पास फ्यूचर देखने की काबिलियत है.

हमारे पास सिर्फ हमारे आज को बदलने की ताकत हैं. तो क्या आप खुद को बेहतर देखने के लिए तैयार हैं?

इस बुक की ऑथर टीना सीलिग स्टैनफोर्ड के जाने-माने स्कूल  हैसो  प्लैटनर इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन में डिपार्टमेंट ऑफ़ साइंस एंड इंजीनियरिंग में प्रोफेसर हैं. वो क्रिएटिविटी, इनोवेशन और एंट्रेप्रेन्योरशिप सब्जेक्ट्स पढ़ाती है.

टीना सीलिग ने अपने स्टूडेंट्स को उनके लाइफ के सबसे बड़े ट्रांजीशन यानी बदलाव के लिए तैयार करने में हेल्प के लिए ये बुक लिखी है, ये बदलाव है स्कूल के प्रोटेक्टेड एनवायरनमेंट से असली दुनिया में जाना.
इस बुक में, आप उन चीजों के बारे में जानेंगे जिन्हें ज्यादातर लोगों ने अपने 20 साल तक के उम्र में कभी महसूस नहीं किया था.

आप क्रिएटिविटी के पावर और प्रॉब्लम्स की पहचान करने की इंसान की काबिलियत का पता लगाएंगे.

आप ये भी जानेंगे कि आप प्रॉब्लम्स को कैसे सुलझा सकते हैं और उन्हें नए नज़रिए से कैसे देख सकते हैं.

आप ये भी जानेंगे कि आप अपनी लाइफ को कैसे भरपूर जी सकते हैं और दूसरे लोगों की राय को कैसे हैंडल कर सकते हैं.

आखिर में, आप जानेंगे कि आप कैसे शानदार बन सकते हैं और हर मौके का फायदा उठा सकते हैं.

ये बुक, आपको अपने फ्यूचर को फिर से सोचने में और कामयाबी के लिए ज़रूरी कदम लेने में हेल्प करेगा. आप एक नए माइंडसेट से मौकों की तलाश कर पाएंगे, चैलेंजेस को पार कर पाएंगे और हर चीज का ज़्यादा से ज़्यादा फायदा उठा पाएंगे.

‘ व्हॉट  आई विश आई न्यू व्हेन आई  वॉज़ ट्वेंटी’ ये एक ऐसी बुक है जो आपको सही फैसला लेने के लिए आपको गाइड  करती है और आने वाले समय के लिए तैयार करती है.

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बाय वन, गेट टू फ्री

अगर आपको पैसे कमाने के लिए पांच डॉलर और दो घंटे दिए जाएं तो आप क्या करेंगे?

ये सवाल टीना सीलिग ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में अपने स्टूडेंट्स के सामने रखा. लगभग 14 टीमों को “सीड फंडिंग” नाम का एक एन्वेलप मिला जिसमें पांच डॉलर थे जो इस काम के लिए दिए गए थे. एक बार जब वे इस एन्वेलप को खोलेंगे तो उनके पास इनकम कमाने के लिए सिर्फ दो घंटे होंगे.

इस एक्टिविटी का इस्तेमाल स्टूडेंट्स को एंट्रेप्रेन्योरशिप की सोच को बढ़ाने के लिए किया गया था. उन्हें अपने लिमिटेड ज़रियों या रिसोर्सेज का यूज़ करके और क्रिएटिव सोच से मौकों की तलाश करने की ज़रूरत होगी.

ज़्यादातर स्टूडेंट्स का  response था कार वॉश करना या नींबू-पानी का स्टैंड शुरू करना. उन्होंने इस पांच डॉलर को रॉ- मटेरियल खरीदकर कुछ डॉलर कमाने में यूज़ किया. ये तो आम सोच था और इसने रेवेन्यू भी कमाया. हालाँकि, क्लास में सबसे ज़्यादा प्रॉफिट कमाने वाले स्टूडेंट्स ने पाँच डॉलर का भी यूज़ नहीं किया.

आपको क्या लगता है उन लोगों ने क्या किया?

इसलिए, एक ग्रुप ने कॉलेज के स्टूडेंट्स के एक मुश्किल को पहचाना, जब उन्हें पॉपुलर रेस्तरां के बाहर लम्बी कतार में हर सैटरडे के रात को लाइन में खड़ा रहना पड़ता था. इसलिए इस ग्रुप इन रेस्तरां में एडवांस बुकिंग शुरू कर दी और उन स्टूडेंट्स को इन बुकिंग को बेचना शुरू कर दिया जो लाइन में खड़े रहना नहीं चाहते थे. ये फ़ौरन पॉपुलर हो गया और इन्हें जल्द ही बहुत सारे कस्टमर्स भी मिल गए थे.

हालाँकि, इस ग्रुप की क्रिएटिविटी, उनकी सोच, वही नहीं रुकी. कुछ टाइम बाद, इस ग्रुप ने महसूस किया कि लड़कियाँ इन रेज़र्वेशन को बेहतर मार्केटिंग कर पाती थीं. और इसलिए, उन्होंने अपनी टीम को बाँट दिया जहां लड़के पॉपुलर रेस्तरां में रेज़र्वेशन करते जबकि लड़कियाँ इनको बेचती.

इस स्ट्रेटेजी ने उनकी सेल्स बड़ा दी थी और साथ ही उन्हें खुद को ऑर्गनाइज़ करने का भी मौका दिया था. इस ग्रुप ने अपनी सेल्स को बढ़ा लिया था और एक टीम के तौर में काम करने की काबिलियत भी बना ली थी.

एक दूसरे टीम ने भी कॉलेज कैंपस के अंदर एक फ्री साइकिल टायर नापने का काम किया. अगर किसी के टायरों को भरने की जरूरत पड़ती तो कस्टमर्स को एक डॉलर पे करना पड़ता. पहले तो स्टूडेंट एंट्रेप्रेन्योर्स ने सोचा कि कहीं उनके कस्टमर्स ये न सोचे कि वे उनका फायदा उठा रहे हैं.

हालाँकि, ऐसा नहीं था. उनके कस्टमर्स खुश थे क्योंकि उन्हें सिर्फ अपनी साइकिल के टायर ठीक करने के लिए स्कूल से बाहर जाने की अब ज़रूरत नहीं थी. स्टूडेंट एंट्रेप्रेन्योर्स ने महसूस किया कि वे ऐसी सर्विस दे रहे हैं जिसकी स्टूडेंट्स को ज़रूरत है.

इन क्रिएटिव आइडियाज के कारण, दोनों टीमों ने 600 डॉलर से ज़्यादा की कमाई की और 4,000 % की एवरेज रिटर्न हुई. ये तब होता अगर उन्होंने पांच डॉलर के कैपिटल को यूज़ किया होता. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, इसलिए उनके रिटर्न की कोई लिमिट नहीं थी.

स्टूडेंट्स ने महसूस किया कि वो पांच डॉलर तो उनके लिए उनकी काबिलियत और मौकों को लिमिट में रखने के लिए था इसलिए, वे सोचने लगे कि उन्हें बिलकुल जीरो से शुरू करके पैसा कमाना होगा. उन्होंने मिलकर अपने स्किल्स का अस्सेस्मेंट किया, गहराई से सोचा, और देखा कि वहां कौन सी ऐसा प्रॉब्लम थी जो उनका इंतज़ार कर रही थी.

उसी तरह, अब जब आप अपने लाइफ में एक इम्पोर्टेन्ट चेंज के दौर से गुजर रहे हैं, तो इस चैप्टर से आपको तीन बातें सीखने को मिल सकती हैं.

पहला ये कि आपको ये समझना होगा कि ओप्पोरचुनिटी हर जगह मौजूद हैं. जो स्टूडेंट्स जीते वो इसलिए जीते थे क्योंकि वे उन प्रॉब्लम्स को देख पाए थे जिन्हें कोई नहीं देख रहा था. सन माइक्रोसिस्टम्स के को-फाउंडर विनोद खोसला के हिसाब से, बड़े प्रॉब्लम्स का मतलब है बड़े मौके. उन्होंने ये भी कहा कि अगर आप उन प्रॉब्लम्स को सुलझाने पर अपना ध्यान फोकस करते हैं जो असल में प्रॉब्लम्स हैं ही नहीं तो कोई भी आपको उसके बदले में पे नहीं करेगा.

दूसरा, अपने आप को अपने रिसोर्सेज तक लिमिट मत कीजिए. आपके सामने दुनिया पड़ी है. हमेशा लीक से हटकर सोचें और अपने आप को हर पॉसिबल तरीके से क्रिएटिव बनने दें. सभी प्रॉब्लम का हल होता ही हैं. कुछ लोग इसे सिर्फ इसलिए नहीं देख पाते हैं क्योंकि वे अपनी नाकामी या लिमिटेड रिसोर्स के कारण अंधे होते हैं.

तीसरा, खुद को किसी प्रॉब्लम के कंट्रोल में आने मत दें और एक स्टैंडर्ड आंसर मत ढूंढिए. टीना सीलिग का कहना हैं कि उनके बहुत से स्टूडेंट्स ने इस लेसन पर गहराई से सोचा. उनके स्टूडेंट्स ने कहा कि अब उनके पास पैसे न होने का बहाना ही नहीं बचा.

उन्होंने महसूस किया कि प्रॉब्लम्स को एक मौके की तरह देखना चाहिए, न कि किसी तकलीफ की तरह. प्रॉब्लम्स आपको सिर्फ नीचे नहीं खींचते. वे आपको आगे बढ़ने का और मच्योर बनने का मौका भी देते हैं जो इस बात पर डिपेंड करता है कि आप कौन सा रास्ता अपनाते हैं.

जैसे-जैसे उनकी क्लास्सेस आगे बड़ी, स्टूडेंट्स ने प्रॉब्लम्स का सामना करने में कम्फर्टेबल होना सीखा, और रास्ते में आने वाली किसी भी चैलेंज को हराने का कॉन्फिडेंस मिला.

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