(Hindi) What to say when you talk to yourself

(Hindi) What to say when you talk to yourself

इंट्रोडक्शन (Introduction )

कुछ लोग खुशकिस्मत होते है कि उन्हें सब कुछ बड़ी आसानी से मिल जाता है लेकिन क्यों कुछ लोगो को मामूली चीजों के लिए भी बहुत स्ट्रगल करना पड़ता है? क्यों कुछ लोग ऐशो-आराम की जिंदगी जीते है जबकि बाकि लोग दुःख और तकलीफों में जीते है? क्या आप इन सवालों के जवाब जानना चाहते है? क्या आप जानना चाहते है कि सक्सेस का सीक्रेट क्या है? आपने कई लोगो को कहते हुए सुना होगा कि” मै बड़ा लकी हूँ कि मेरी लाइफ आराम से कट रही है”.

ऐसे बहुत से लोग है जो मानते है कि सक्सेस और फेलर या तो किस्मत से मिलती है या बाई चांस. तो क्या आप भी यही सोचते हो? या आपको लगता है कि आप इसलिए सक्सेसफुल नहीं हो पाए क्यों किस्मत ने आपका साथ नही दिया? इस समरी में आप पढ़ेंगे कि सक्सेस हो या फेलर, ना तो हमारी लक पे डिपेंड करती है और ना ही ये चांस की बात है. बल्कि ये उस प्रोग्रामिंग पे डिपेंड करती है जो आपको बचपन से मिली है.

इस  समरी में आप ये भी पढ़ेंगे कि हमारी नेगेटिव प्रोग्रामिंग हमारे ब्रेन को गलत डायरेक्शन में ले जाती है जबकि पोजिटिव प्रोग्रामिंग राईट डायरेक्शन में. हमारे ब्रेन हमारा मेंटल कंप्यूटर है, किसी पर्सनल कंप्यूटर की तरह हो होता है यानी जैसा हम इसे प्रोग्राम करेंगे वैसा ही ये चलेगा. इस समरी में आपको बताया जायेगा कि हम नेगेटिव प्रोग्रामिंग को पोजिटिव में चेंज कर सकते है. और ये हम करेंगे सेल्फ-टॉक से ताकि हम अपने गोल तक पहुँच सके.

इस समरी में हम बताएँगे कि सेल्फ टॉक कितना इम्पोर्टेंट है, इसके कितने लेवल्स होते है और सेल्फ टॉक की न्यू टेक्नीक्स क्या-क्या है. तो अब क्या आप रेडी है सक्सेस का सीक्रेट जानने के लिए? क्या आप रेडी है सेल्फ टॉक से अपनी लाइफ में एक बड़ा बदलाव लाने के लिए? तो चलिए स्टार्ट करते है.

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लुकिंग फॉर अ बैटर वे (Looking for a Better Way)

हर कोई चाहता है कि उसकी लाइफ बेस्ट हो. सबको एक हैप्पी पर्सनल लाइफ और एक सक्सेसफुल प्रोफेसनल लाइफ की चाहत होती है. हर कोई अपनी लाइफ में कंटेंट रहना चाहता है. लेकिन क्या हमको लाइफ में वो मिलता है जो हम चाहते है? कुछ लोग लकी होते है जिन्हें अपनी जिंदगी की हर ख़ुशी नसीब होती है. लेकिन कुछ इतने लकी नहीं होते कि उन्हें मनमुताबिक मिल सके. इस चैप्टर में ऑथर ने यही कोशिश की है कि वो इस बात का पता लगा सके कि आखिर हमारी लाइफ और सक्सेस के बीच कौन सी दिवार खड़ी है.

ऑथर का कहना है कि हम चाहे तो सेल्फ मैनजेमेंट से अपनी लाइफ के मास्टर खुद बन सकते है. शाद हेल्म्स्टेटर बचपन से ही सितारों को छूने का ख्वाब देखते थे. वो रात के वक्त ठंडी गीली घास पे लेट जाते और आसमान की ओर देखते रहते. उन्हें आसमान में चमचमाते स्टार्ट बड़े अच्छे लगते थे. उस टाइम वो सोचते थे कि काश मै हाथ बढ़ाकर इन सितारों को छू सकता. उन्हें बड़े अजीब-अजीब ख्याल आते थे और उन्हें ये भी लगता था कि वो चीज़े सच हो जायेंगी. जब वो बड़े हुए तो उनकी इमेजिनेशन की जगह लाइफ की रियेलिटी ने ले ली. उन्हें समझ चुके थे कि सितारों को छूने का सपना सिर्फ एक सपना ही है. और सपने कभी सच नहीं होते. उनकी फेमिली ने उन्हें यही सिखाया था कि आसमान में उड़ने के सपने देखने से अच्छा है कि जमीन की हकीकत को समझो.

शाद ने लॉ की पढ़ाई की और प्रेक्टिकल मैटर्स सीखने स्टार्ट कर दिए. लेकिन अभी भी उनके दिल का एक कोना खाली था. उन्हें लगता था जैसे उनकी लाइफ से कुछ मिसिंग है. तो उन्होंने काफी सोचा और जानने की कोशिश की कि आखिर उनकी लाइफ में क्या कमी है. उन्होंने फिर से आसमान के तारो को देखना शुरू कर दिया. और ये उनके लिए एक लाइफ चेंजिंग डिसीजन साबित हुआ. कभी जब शाद को अपने बचपन की बाते याद आती तो उन्हें ये सोचकर हैरानी होती कि आखिर ऐसा क्या था कि उनके सपने पूरे नहीं हो सके. ऐसा क्या था जो उन्हें सितारों को छूने से रोक रहा था? शाद को हैरान थे कि आखिर उनके इन सवालों का कुछ तो जवाब होगा. और इसके लिए उन्हें सही जगह की तलाश करनी होगी जहाँ उन्हें अपना सारे सवालों के जवाब मिल सके.

उसके बाद शाद की लाइफ बदल गयी. वो अपने सवालों के जवाब ढूढने निकल पड़े. अपनी इसी तलाश में शाद ने सबसे पहले ह्यूमन बिहेवियर की स्टडी की, और उसके बाद मोटिवेशनल मार्केटिंग की. जब मैथमेटिक्स, रिलिजन, बिजनेस और साइकोलोजी भी उनके सवालों के जवाब नहीं दे पाए तो उन्होंने ह्यूमन ब्रेन की इनर वर्किंग में अपने सवालों के जवाब तलाशने शुरू किये.

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द आंसर्स ( The “Answers” )

शाद को अपने ज्यादातर सवालों के जवाब सेल्फ हेल्प बुक्स और आईडियाज़ में मिले. जब इतनी सारी सेल्फ हेल्प बुक्स और आईडियाज़ मौजूद है तो फिर क्यों लोग अपने गोल्स अचीव नहीं कर पाते? तो क्या ये सारी बुक्स बेकार है? नहीं. बुक्स अपनी जगह एकदम ठीक है और इनमें लिखे आईडियाज़ भी वाकई में काम करते है. लेकिन प्रोब्लम ये है कि ह्यूमन ब्रेन को समझना मुश्किल है. एक ह्यूमन ब्रेन किसी पॉवरफुल पर्सनल कंप्यूटर से कम नहीं होता. और ये दिए गए इंस्ट्रक्शन के हिसाब से ही काम करता है.

अगर आप इसे राईट इंस्ट्रक्शन देंगे तो ये राईट वे में ही काम करेगा. और अगर गलत इंस्ट्रक्शन दिया तो गलत तरीके से चलेगा. अब ये आपके उपर है कि आप इस मेंटल कंप्यूटर को कैसे हैंडल करते है. नेगेटिव प्रोग्रामिंग आपके ब्रेन की फंक्शनिंग को नुकसान पहुंचा सकती है. आपके ब्रेन की नेगेटिव प्रोग्रामिंग या तो आप खुद करते है या इस पर आपके माहौल का असर पड़ता है. हम जब छोटे होते है तो अक्सर ये वर्ड सुनते है’ नो’ हर कोई हर बात में नो बोलता है जैसे कि” तुम ये नही कर सकते, तुम यहाँ नहीं जा सकते” तुम्हे ये नहीं करना चाहिए”.

इस तरह की बाते ऑलमोस्ट हर घर में सुनाई देंगी जहाँ पेरेंट्स या एल्डर्स अपने बच्चो को हर बात पे टोकते है. यहाँ तक कि मोस्ट पोजिटिव फेमिली में भी ये नो वर्ड कोई 148,000 बार यूज़ होता होगा. बचपन में आपको भी ना जाने कितनी ही बार कुछ भी करने से मना किया गया होगा जैसे कि ” तुम ये नहीं कर सकते” “तुम ये अचीव नहीं कर सकते” ये तुम्हारे बस की बात नहीं है” वगैरह-वगैरह. सिंपली बोले तो हमारी लाइफ में नो वर्ड यस से कहीं ज्यादा यूज़ होता है.

और इसे ही हम नेगेटिव प्रोग्रामिंग बोलते है. जाने या अनजाने हम अपने पेरेंट्स, भाई-बहनों, टीचर्स, पड़ोसियों और बड़े लोगो से नेगेटिव प्रोग्रामिंग रिसीव करते रहते है. इसका 77% असर हमारे ब्रेन की प्रोग्रामिंग पर पड़ता है जिसका रिजल्ट होता है हमारी नेगेटिव थिंकिंग. और फिर ये नेगेटिव थिंकिंग हमारे एगेंस्ट काम करने लगती है और ब्रेन को गलत डायरेक्शन में ले के जाती है. एक ही बात को अगर बार-बार बोला जाए तो वही सच लगता है. और फिर यही नेगेटिव थिंकिंग हमारी लाइफ का भी सच बन जाता है.

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वी लर्न टू बीलीव् ( हम बिलीव करने के लिए सीखते है ) We Learn to Believe

अब जबकि हमे ब्रेन की नेगेटिव प्रोग्रामिंग के हार्मफुल इफेक्ट के बारे में पता है तो क्यों ना हम इसे चेंज करने के तरीको के बारे में जान ले. ये तो आपको हमने बताया है कि नेगेटिव प्रोग्रामिंग को चेंज करके ब्रेन में न्यू प्रोग्रामिंग फीड की जा सकती है. तो हम नेगेटिव प्रोग्रामिंग को पोजिटिव प्रोग्रामिंग से रीप्लेस करके और ज्यादा प्रोडक्टिव हो सकते है. फिर जो हमे इम्पॉसिबल लगता था वो भी पॉसिबल हो जायेगा.

यहाँ पर ऑथर ने नेगेटिव और पोजिटिव प्रोग्रामिंग के बारे में हमसे दो स्टोरीज़ शेयर की है. बचपन में शाद कोई म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट सीखना चाहते थे. उनका बड़ा मन था कि वो अपने स्कूल के म्यूजिकल बैंड में शामिल हो. लेकिन जब उन्होंने बैंड के लिए ऑडिशन दिया तो फेल हो गए. बैंड डायरेक्टर ने उन्हें अपने बैंड में लेने से मना कर दिया. उसने ये तक बोल दिया कि शाद के अंदर कोई म्यूजिकल टेलेंट है ही नहीं. बाकि लोगो ने भी शाद को यही बोला.

अपने बारे में बार-बार नेगेटिव कमेंट्स सुनकर शाद को यकीन हो गया कि उन्हें अंदर तो म्यूजिकल टेलेंट है ही नहीं. नेगेटिव प्रोग्रामिंग ने अपना काम कर दिया था. वैसे कुछ सालो बाद ऑथर ने चुपके-चुपके म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजाना सीख लिया था. बैंड डायरेक्टर की बात गलत प्रूव हुई. अब दूसरी स्टोरी की तरफ चलते है. 6 साल का माइकल अपने पड़ोस में रहने वाले एक ओल्ड जेंटलमेन के घर जाता था. एक दिन जब माइकल सोने जा रहा था तभी वो ओल्ड जेंटल मेन उसके घर आये और उसकी मदर को बोला” आपका बेटा बड़ा क्रिएटिव है और ये बड़ा होकर ज़रूर कुछ करेगा”.

माइकल ने उनकी बाते सुन ली. बस फिर क्या था! उसके मन में बैठ गया कि उसके अंदर क्रिएटिविटी है. और उस ओल्ड मेन की बात सच हुई. आज माइक वेंस वाल्ट डिज्नी यूनिवरसिटी के डीन है. ओल्ड मेन ने जब माइक को क्रिएटिव बोला था तो माइक ने सच मान लिया था. ओल्ड मेन की बातो ने माइक के ब्रेन में पोजिटिव प्रोग्रामिंग  का इफेक्ट डाला. तो हमे इस स्टोरी से ये लेसन मिलता है कि नेगेटिव प्रोग्रामिंग को चेंज करना पॉसिबल है और उसके बदले पोजिटिव प्रोग्रामिंग करके हम अपनी लाइफ के गोल्स अचीव कर सकते है.

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द वाल (The Wall)

जाने-अनजाने हम खुद से बाते करते है. क्योंकि हमारा ब्रेन एक थिंकिंग मशीन है जो कभी सोचना बंद नहीं करता. इसे सेल्फ टॉक बोलते है. ये किसी भी फॉर्म में हो सकता है जैसे इम्प्रेशन, फीलिंग या फिजिकल रिस्पोंस. सेल्फ टॉक अनकांशस होता है और इसलिए आपको इसका पता नहीं चलता. जब भी आपके साथ कुछ होता है या आप कुछ भी फील करते हो, ये आपके सबकांशस माइंड में स्टोर हो जाता है. ब्रेन ओल्ड आईडियाज़ को न्यू थौट्स से लिंक कर लेता है.

अगर आपने मेमोरी में नेगेटिव आईडियाज़ स्टोर किये है तो आपको और ज्यादा नेगेटिव आईडियाज़ आयेंगे. सबकांशस माइंड अच्छे और बुरे के बीच फर्क नहीं कर पाता. जो भी आप इस मेंटल कंप्यूटर को दोगे, ये एक्सेप्ट कर लेगा और अपनी मेमोरी में सेव कर लेगा. एक दिन शाद लॉस वेगास के एक कॉफ़ी शॉप में अपने एक फ्रेंड् के साथ लंच पे गया.

उसका वो फ्रेंड एक मोटिवेशनल स्पीकर था. दोनों इस बारे में डिस्कस कर रहे थे कि कैसे नेगेटिव प्रोग्रामिंग लोगो के ब्रेन को अफेक्ट करती है और नेगेटिव सेल्फ टॉक हमारी लाइफ में प्रोब्लम्स क्रिएट करती है. दोनों बाते करते हुए अपने ऑर्डर का वेट कर रहे थे कि तभी एक वेट्रेस उनकी टेबल पर फ़ूड सर्व करने आई. उसके दोनों हाथो में खाने की प्लेट्स थी कि अचानक उसका बेलेंस बिगड़ गया और गर्म खाना उस टेबल पर गिर गया जहाँ शाद और उनके फ्रेंड बैठे थे. और उसके बाद वेट्रेस जब टेबल साफ करने लगी तो उसने कहा” मै बहुत क्लम्सी हूँ’.

और इस तरह शाद और उनके फ्रेंड के सामने नेगेटिव सेल्फ टॉक का एक लाइव एक्जाम्पल आया. क्योंकि उस वेट्रेस को चीज़े गिराने की आदत होगी और इसलिए उसे ये लगा होगा कि वो बड़ी क्ल्स्मी है. उसने अपने लिए खुद ही एक नेगेटिव इमेज बना ली थी.

इस पॉइंट को प्रूव करने के लिए हम एक और एक्जाम्पल लेंगे. मान लो, आप को हमेशा लगता है कि आपको लोगो के नाम याद नहीं रहते. एक दिन आप एक पार्टी में गए. वहां आप कुछ लोगो से मिले. आप अपने नए फ्रेंड्स के नाम याद रखना चाहते है और आप खुद से भी यही बोल रहे है” कि अब से मै लोगो के नाम याद रखूँगा!

लेकिन काश ऐसा हो पाता. आप उनके फिर से नाम भूल गए. ऐसा क्यों हुआ? ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आपके माइंड में ये बात बैठ चुकी है कि आपको नाम याद नहीं रहते. क्योंकि ये बात आप खुद ही बार-बार बोलते रहते हैं. और ये बात सच हो गयी, आपने खुद अपने ब्रेन को नाम भूलने के लिए प्रोग्राम किया है. नेगेटिव सेल्फ टॉक से अगर आपका ब्रेन को रोंग वे में जा रहा है तो ये भी सच है कि पोजिटिव सेल्फ टॉक उसे राईट वे में ले जाएगा.

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