(hindi) THINK LIKE A MONK -Train Your Mind for Peace and Purpose Every Day

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इंट्रोडक्शन

क्या आप हर  वक़्त  खुश रह सकते है? एक पीसफील लाइफ की सीक्रेट रेसिपी क्या है? क्या आप मीनिंगफुल लाइफ जीने का तरीका सीख सकते है?

ये सारे सवाल जो हमने ऊपर पूछे है, उनके जवाब  सिर्फ़  संतों  के पास है. क्योकि उनकी  ज़िंदगी  का मकसद, एक लक्ष्य होता है. वो अपने प्रति ईमानदार और सच्चे होते है. और उनकी यही अच्छाई और सच्चाई इस दुनिया को एक बेहतर जगह बनाती है.

इस किताब में आपको अपनी असली पहचान से रूबरू होना सिखाएगी. और आप ये भी सीखोगे कि हम अपने मन से नकारात्मक विचारों यानी जिन्हें नेगेटिव  थॉट्स कहते है, उन्हें कैसे दूर करे, मोंक्स इसके लिए स्पॉट, स्टॉप और स्वैप अप्रोच अपनाते है.

आप इस किताब से सीखेंगे कि अपने ईगो को हेल्दी कांफिडेंस में कैसे बदला जाए. और सबसे जरूरी बात जो आप सीखोगे, वो ये कि दूसरों की सेवा करना ही मनुष्य की जिदंगी का परम लक्ष्य होना चाहिए जो उसे सच्ची ख़ुशी और सुख देता है.

तो क्या आप भी एक संत का जीवन जीने के लिए तैयार है?

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पहचान (Identity)

जब आप किसी काम में माहिर बनना चाहते हो तो एक्सपर्ट के पास जाते हो, जैसे आपको बास्केटबॉल सीखना है तो आप माइकेल जॉर्डन की सुनोगे. एक माइंड ब्लोविंग परफोर्मेंस देनी है तो बेयोंस का कॉन्सर्ट देखिए. अपनी फील्ड के एक्सपर्ट की टिप लेने से आपको बैटर बनने में हेल्प मिलती है. लेकिन कभी सोचा है कि एक खुशहाल और सुकून भरी  ज़िंदगी  जीने के लिए आपको किसकी सलाह लेनी चाहिए? ज़ाहिर है तब आप मोंक्स यानी  संतों  के पास जायेंगे.

क्योंकि  संतों  को दुनिया के सुख-सुविधाओं से कोई वास्ता  नहीं  होता. वो अपनी  ज़िंदगी  में एक बड़ा लक्ष्य लेकर चलते है. संत दुनिया के सबसे शांत और संतुष्ट लोग होते है. इसलिए जो लोग  ज़िंदगी  में सुकून ढूंढ रहे है, उन्हें  संतों  का अनुसरण करना चाहिए, उनके बताये रास्ते पर चलना चाहिए. नहीं, इसके लिए आपको नंगे पैर चलने की जरूरत  नहीं  है, ना ही एक लंगोट पहनकर अपना घर-बार छोड़ने की जरूरत है. बल्कि उन जीवन मूल्यों को अपनाने की जरूरत है जो संत हमें सिखाते है, जिन जीवन मूल्यों पर वो खुद जीते है.

लेकिन एक संत जैसी सोच रखने का आखिर मतलब क्या है? तो इसका जवाब है,  ज़िंदगी  को देखने का अपना नजरिया बदल कर हम  संतों  जैसा जीवन जी सकते है. यानी दुनिया से पहले खुद को जानने और समझने की कोशिश करो, अपने आप पर फोकस करो. आप कौन हो, क्यों पैदा हुए है, आपके जीवन का लक्ष्य क्या है, अपने आप से ये सवाल पूछो और इनके जवाब ढूँढने की कोशिश करो. संत जैसा जीवन जीने का मतलब है एक ऐसा जीवन जीना जिसका कोई लक्ष्य या उद्द्येश्य हो,  जिसमें  डिसप्लीन हो और दूसरों के प्रति सेवाभाव हो.

एक संत की तरह सोचना आपकी आइडेंटिटी यानी पहचान से जुड़ा है. आप शायद सोचे कि आपकी आइडेंटिटी आपकी अपनी बनाई हुई है पर आप गलत है. आपकी आइडेंटिटी का ज्यादातर हिस्सा  लोगों  की आपके प्रति एक्स्प्केटेशन से जुड़ा है. जब आप परिवार के साथ होते है तो उस  वक़्त  आप कुछ और होते है, आपका व्यवहार अलग होता है और जब अपने दोस्तों के साथ आपका व्यवहार कुछ और होता है. हमारी पहचान माहौल और  लोगों  के हिसाब से बदल जाती है, हमारी आइडेंटिटी की कई परतें है. अलग-अलग रिश्ते में हमारी पर्सनेलिटी भी अलग होती है. और इस प्रोसेस में हम कई बार अपनी असली पहचान खो बैठते है.

तो इस किताब के ऑथर जय शेट्टी को ये कैसे पता चला कि उनकी आइडेंटिटी एक मोंक होने से जुड़ी है? वो इसलिए क्योंकि उन्हें मोंक्स के साथ रहकर एक ख़ुशी और हल्केपन का एहसास होता था. जबकि अपनी फाइनेंस सेक्टर की जॉब से वो खुश  नहीं  थे, वो अपने भीतर एक खालीपन महसूस करते थे. लेकिन ऐसा  नहीं  है कि जय को आसानी से अपनी असली पहचान मिल गई.  लोगों  को उनसे बहुत उम्मीदें थी. उनके पेरेंट्स उन्हें एक बढिया नौकरी करते हुए देखना चाहते थे. वो चाहते थे कि आने वाले कुछ सालो में जय का भी अपना एक परिवार हो और वो सेटल डाउन हो जाये.

अगर आप भी यही चाहते है तो अच्छी बात है, लेकिन इस पर गौर भी करना, क्या यही आपकी  ज़िंदगी  का असली मकसद है? क्या ये आपको दिली ख़ुशी देगा? या फिर आप बस इसलिए चाहते है क्योंकि लोग आपसे चाहते है? पर ऐसा कभी मत करना. आपकी ख़ुशी किसमें है, ये डिसाइड करना  सिर्फ़ आपके हाथ में है. आपकी मीनिंगफुल लाइफ कैसी होगी, इसका फैसला  सिर्फ़ आप और आप करेंगे.

लेकिन आप ये कैसे समझेंगे कि आपकी असली पहचान क्या है? तो इसके लिए सबसे पहले अपने मन में झांकिए और जानने की कोशिश कीजिये कि आपके वैल्यूज क्या है. क्योंकि वैल्यूज ही  हमें  याद दिलाते है कि हमारे लिए लाइफ में क्या जरूरी है. क्या हम लाइफ में ऑनेस्ट बनना चाहते है? या काइंड बनना चाहते है? या फिर  दूसरों  की सेवा करना चाहते है? वैल्यूज  हमें  राईट डायरेक्शन में ले जाते है और हमारी  ज़िंदगी  को एक मकसद देते है. जैसे कोई जीपीएस हमारी गाड़ी को अनजान रास्तो पर चलने में मदद करता है.

अपने वैल्यूज एक पेपर पर लिख लो, फिर खुद से पूछो ये वैल्यूज आये कहाँ से है. क्या आपके पेरेंट्स ने सिखाये या टीचर्स ने? या फिर कलीग्स या दोस्तों ने ? फिर पूछो कि क्या ये वैल्यूज आप खुद की  ज़िंदगी  में अप्लाई करना चाहते है. या  सिर्फ़ अपने पेरेंट्स की ख़ुशी के लिए आप उन वैल्यूज पर चलना चाहते हो और लाइफ में ऐसे कितने मौके आये जब आपने इन वैल्यूज को सच में अपने जीवन में उतारा था? आप अपनी लाइफ में सबसे ज्यादा किस वैल्यू को इम्पोर्टेंस देते हो?

हो सकता है आपको इन सवालों का जवाब ढूँढने में  वक़्त  लगे पर अपनी वैल्यूज के जरिये अपनी असली पहचान ढूंढना आपको  ज़िंदगी  को एक सही दिशा देगा और आपको एक ऑथेंटिक  ज़िंदगी  जीने के लिए प्रेरित करेगा.

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नकारत्मता (Negativity)

हमारे आस-पास इतनी नकरात्मकता है कि हम चाहे भी तो इससे बच  नहीं  सकते. और होता ये है कि वही नेगेटेविटी हम भी दूसरों को पास करते है. ये भी एक तरह की नेगेटीविटी ही है जब हम  लोगों  की बुराई करते है या उनका बुरा सोचने लगते है. अक्सर नेगेटिविटी  हमें  अपने जैसे ही नेगेटिव  लोगों  से भी मिला देती है. आपने देखा होगा अक्सर लोग आपस में मिलकर बॉस की बुराई करते है? या ज्यादा वर्कलोड की शिकायत करते है? दरअसल ये इंसान का स्वभाव है कि वो दूसरों से कन्फर्मेशन चाहता है. अगर उसे कोई चीज़ बुरी लग रही है तो वो चाहेगा कि  दूसरे  भी उस चीज़ की बुराई करे. हम किसी चीज़ का हिस्सा बनकर खुश होते है, चाहे वो चीज़े नेगेटिव हो या  पॉजिटिव .

ये सब जानते है कि नेगेटिविटी हमारी मेंटल और फिजिकल हेल्द के लिए ठीक  नहीं  है. आप जितने ज्यादा नेगेटिव माहौल में रहोगे या जितने नेगेटिव  लोगों  से मिलोगे, आप भी उतने ही नेगेटिव बन जाओगे. और नेगेटिविटी अक्सर हमारे अंदर गुस्से और नफरत को जन्म देती है. ये  हमें  दूसरों की तरक्की पर जलना सिखाती है. नेगेटिव  इंसान  हर चीज़ में बुराई निकालता है, वो किसी की अच्छाई देख ही नहीं सकता. और ये बताने की जरूरत ही नहीं है कि नेगेटिविटी हमारे अंदर cortisol यानी स्ट्रेस होरमोन पैदा करती है.

क्या आपने कभी किसी नेगेटिव  इंसान  को खुश देखा है? नहीं ना? क्योंकि नेगेटिव सोच रखने वाला खुश रह ही नहीं सकता. लेकिन हम अपनी  ज़िंदगी  से नेगेटिविटी को दूर कैसे करे?

जब भी आप किसी नेगेटिव सिचुएशन में हो तो कोशिश करे कि जितना हो सके ईमोशनली एक कदम पीछे हट जाए. उस  वक़्त  आपको  सिर्फ़ एक ऑब्जेक्टिव observer  की नज़र से हालात का जायजा लेना है.यानी  दूसरे  शब्दों में कहे तो किसी की नेगेटिव बातो को बगैर नेगेटिव हुए सुने, उन्हें अपने दिल की बात कह लेने दे, लेकिन आप उनकी नेगेटिव फीलिंग्स से मन ही मन दूर रहे.

अपने अंदर से नेगेटिविटी को दूर करने का एक अलग ही तरीका है, जलन, नफरत, लस्ट, लालच और घमंड, ये सब हमारे मन की कमजोरियां है यानी नेगेटिव  थॉट्स है. लेकिन आपको कोशिश यही करनी है कि इन सब ईमोश्न्स से जितना हो सके दूर रहो. अगर कभी आपको अपने अंदर इन फीलिंग्स का एहसास हो तो अपना ध्यान बँटाने की कोशिश करो, एक स्ट्रोंग विलपॉवर के साथ आप ऐसा कर सकते हो. जब ही लगे आप किसी का बुरा सोच रहे हो, तुरंत उस  इंसान  की कोई अच्छाई याद कर लो.

हम जानते है ये काफी मुश्किल है, भला हम इतनी आसानी से नफरत और जलन से कैसे बच सकते है? बहुत मुश्किल है पर नामुमकिन  नहीं . अपनी आदत बना लो कि जब भी आपके अंदर नेगेटिविटी आये, आप उसे काइंडनेस और सिम्पेथी जैसे  पॉजिटिव   थॉट्स में बदल दो. नेगेटिव ईमोशन  हमें  सिवाए दुखो के और कुछ  नहीं  देते. ये हमारे मन की  शांति  और सुकून छीन लेते है, नफरत करने वाला कभी चैन से नहीं बैठ सकता.

मोंक्स  हमें  नेगेटिव  थॉट्स से निपटने के लिए एक तरीका बताते है, जो है स्पॉट, स्टॉप और स्वैप. एक बार आपको पता चल गया कि आपके मन में कोई नेगेटिव थौट आ रहा है तो तुरंत उसे स्पॉट कर लो. अब अगला कदम है उस फीलिंग को आने से रोकना. ये मुश्किल स्टेप है पर आपको कोशिश  नहीं  छोडनी. फिर अंत में नेगेटिव इमोशन पर गौर करो, उसे सोचो और समझो और फिर उसे अपने माइंड से स्वैप कर दो.

स्पॉट: एक हफ्ते के लिए कोशिश करो आप किसी की ना तो बुराई करे और ना ही किसी चीज़ को लेकर शिकायत करे. आप ऐसा करने में फेल हो गए तो उसका भी रिकॉर्ड रखे. हमारा गोल है अपनी शिकायतों को कम करना. जितना ज्यादा आप अपनी नेगेटिव टेन्ड़ेंसीज़ को समझेंगे उतना ही उनसे दूर हो पाएंगे. इस मेथड से आप अपने नेगेटिव  थॉट्स पर सवाल भी उठा पाएंगे, जैसे कि ये नेगेटिव  थॉट्स आपके दिमाग में आ क्यों रहे है? कहाँ से आ रहे है? इनका सोर्स क्या है? क्या आप अपने दोस्त की तरक्की से जल रहे है या इस बात से इनसिक्योर है कि आप उतने सक्सेसफुल नहीं बन पाए? या कोई और बात आपको परेशान कर रही है?

अपने मन में उठ रहे नेगेटिव  थॉट्स की जड़ तक पहुँचने की कोशिश करो और उस पर गहराई से विचार करो.

स्टॉप: नेगेटिव  थॉट्स को वही का वही रोक दो. जब हम स्ट्रेस फील करते है तो हमारे जबड़े भिंच जाते है, हमारे कंधो में एक जकडन का एहसास होने लगता है, यानी आप समझ सकते हो कि ये नेगेटिव  थॉट्स मेरे दिमाग में आ रहा है. धीरे से अपने हाथ-पैर फैलायें, बॉडी को ढीला छोड़ दे. नेगेटि विटी  इंसान  के दिमाग को ही  नहीं  बॉडी को भी नुकसान पहुंचाती है.

एक और तरीका है नेगेटिविटी को रोकने का, खुद को कभी  दूसरों  से कम्प्येर मत करो. किसी अमीर की इन्सल्ट करके आप अमीर  नहीं  बन जाओगे या किसी की प्रोमोशन से जलकर आपको प्रोमोशन  नहीं  मिलने वाली. इसके बजाए अपनी तरक्की पर फोकस करो. क्योंकि आपको खुद अपनी वेल बीईंग का ध्यान रखना है.

स्वैप: नेगेटिव इमोशंस को स्वैप करने का मतलब है, उन पर गौर से सोच विचार करना. उन पर ध्यान देना. आपको कभी किसी मौके पर कुछ बुरा लगा तो उसे एक पेपर पर लिख लो कि आपको क्या और क्यों बुरा लगा. उस  वक़्त  आपने कैसा रिएक्ट किया या आपके मन की हालत कैसी थी, ये भी लिखना. अगर आपके नेगेटिव इमोशंस दूसरों को लेकर है तो उन्हें ये बात प्रोडक्टिव तरीके से बताओं.

जैसे एक्जाम्पल के लिए आपको अपने पति का घर देर से आना पंसद नहीं है, तो बजाये गुस्से के उन पर चिल्लाने के, आप ये बात शांति से भी कह सकते है. उन्हें समझाये कि उनकी ये लापरवाही आपको अपसेट करती है. और अगर उन्हें काम में देर हो भी जाए तो वो आपको टेक्स्ट मैसेज करके या कॉल करके पहले इन्फॉर्म कर दे. तो ये एक प्रोडक्टिव तरीका है नेगेटिव इमोशंस को हैंडल करने का.

नेगेटिविटी को पोजिटिविटी में स्वैप करना यानी बदलना भी एक अच्छा तरीका है. जैसे कि आप  अगर अपने दोस्त की सक्सेस से जल रहे है तो ये सोचिये कि आप भी उसकी तरह सक्सेसफुल क्यों  नहीं  बन सकते? जरूर बन सकते है. आप भी मेहनत कीजिये. क्या आपके अंदर कोई कमी है? नहीं ना? तो जलना कैसा? तो इस तरह आप अपने नेगेटिव इमोशन को  पॉजिटिव  में बदल सकते है.

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