(hindi) A Guide To The Good Life
इंट्रोडक्शन
आज की इस भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में, ये सोचना कितना खूबसूरत लगता है कि हम फिर से पहले की तरह एक सिंपल लाइफ जी सकते है- एक ऐसी लाइफ जहाँ हम जी भरकर जी सके और खुश रह सके. एक ऐसी ज़िंदगी जहाँ शान्ति और सुकून हो और जहाँ हर कोई मिलकर दुनिया की भलाई के लिए कंधे से कंधा मिलाकर काम करे.
लेकिन आज की इस तेज़ रफ़्तार दुनिया को देखते हुए ऐसा लगता है जैसे ये सपना कभी सच नहीं हो सकता. आज का इंसान पैसे और सुख-सुविधाओं के पीछे भाग रहा है पर वो ये नहीं जानता कि ये सब चीज़े ज़्यादा देर नहीं टिकती. हम किसी चीज़ को पाने का सपना देखते है, और वो सपना जब पूरा हो जाता है तो हम फिर से अपने अंदर एक खालीपन महसूस करने लगते है और फिर एक नए सपने के पीछे भागने लगते है.
ये किताब हमारे बीते हुए कल यानी इतिहास को नज़र में रखते हुए लिखी गई है. ये आपको उस वक़्त में ले जाएगी जब लोगों का मकसद जीवन में शान्ति पाना होता था.
इस किताब में आप एक फिलोसोफी के बारे में सीखेंगे जो शायद आपकी ज़िंदगी बदल सके. आप इसमें फर्स्ट स्टोइस के बारे में पढ़ेंगे कि वो कैसे आये और कब आये और कैसे डेवलप हुए और उनका पतन कैसे हुआ. और कैसे आप भी अपनी मॉडर्न लाइफ उनकी फिलोसफी अप्लाई कर सकते है.
इस किताब में आप कुछ नए कॉन्सेप्ट जैसे नेगेटिव visualization, ड्यूटी और tranquility यानी शांति के बारे में सीखेंगे.
अगर आप सोचते है आपकी ज़िंदगी में उथल-पुथल है और आप शांति और सुकून ढूंढ रहे है तो ये किताब आपके लिए ही लिखी गई है जो आपको एक ऐसे वक़्त की सैर कराएगी जब लोग एक सिंपल ज़िंदगी गुज़ार रहे थे और वाकई में खुश थे.
TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE
The First Stoics
ज़ेनो ईतिहास के पहले स्टोइक माने जाते है. वो एक पर्पल डाई मेकर के बेटे थे, उनके पिता जब भी अपनी यात्राओं से घर लौटते थे तो अपने बेटे के लिए कई सारी किताबे लाया करते थे. इन किताबों में एक किताब फीलोसोफी की थी जो उनके पिता एथेंस से लाये थे. इन किताबो को पढ़ने के बाद ज़ेनो के मन में तरह-तरह के सवाल उठते थे.
एक दिन ज़ेनो जब समुंद की यात्रा कर रहे थे तो उनका जहाज़ एक हादसे का शिकार हो गया. ज़ेनो को जब होश आया तो उन्होंने खुद को एथेंस में पाया. ज़ेनो ने सोचा कि अब जब वो एथेंस पहुँच ही चुके है तो क्यों ना philosophy के बारे में कुछ और सीखा जाए. तो वो एक बुक शॉप पर गए और दूकानदार से पूछने लगे कि उन्हें सुकरात (Socrates) के जैसे फीलोसफर कहाँ मिल सकते है.
उसी वक़्त क्रेट्स नाम का एक आदमी वहां से गुज़रा जो क्रिटिक नैचर का था यानी उसे दूसरों में सिर्फ बुराई नजर आती थी. उसे देखकर दुकानदार ने ज़ेनो को उस आदमी के पीछे जाने को बोला. इस तरह ज़ेनो क्रेट्स का चेला बन गया, और वो भी एक क्रिटिक बन गया. वो सिंपल लाइफ जीता था और उसने लाइफ में वो सब कुछ कमाया जो उसे चाहिए था.
फिर कुछ वक़्त बाद ज़ेनो को कुछ नया करने की धुन सवाल हुई, उसे एहसास हुआ कि वो अपने गुरु क्रेट्स से भी ज़्यादा सिनिजम की थ्योरी में इंट्रेस्टेड है. अब ज़ेनो ने फैसला लिया कि वो नई philosophy की शुरुवात करेगा जिसमे थ्योरी और लाइफस्टाइल दोनों हो.
उसके बाद ज़ेनो ने बहुत से गुरु बनाये और उनसे भी काफी कुछ सीखता रहा जब तक कि उसने अपनी एक नई philosophy की शुरुवात नहीं कर ली. ज़ेनो ने अपनी टीचिंग में दोनों चीजों को एक साथ जोड़ा, एक तो लाइफस्टाइल जो उसने क्रेट्स से सीखी थी और दूसरी philosophy जो उसने पोलेमो से सीखी थी.
ज़ेनो की ये नई philosophy लोगों को बहुत पसंद आई. बहुत से लोग ज़ेनो के चेले बन गए जिन्हें ज़ेनोनियन कहा जाने लगा. फिर उन्होंने स्टोइक बनने के लिए अपने नाम बदले.
सिनिक और स्टोइक के बीच एक बड़ा फर्क है, सिनिक ज़िंदगी का आनंद लेने में विशवास नहीं रखते और सुख-सुविधा से दूर भागते है जबकि स्टोइक एक सिंपल लाइफ में यकीन रखते है, हालाँकि वो इस बात से भी इन्कार नहीं करते कि इंसान को जीने के लिए सुख-सुविधाओं की जरूरत होती है. लेकिन उनका ये भी मानना है कि इन्सान अपनी ईच्छाओं का गला नहीं घोंट सकता, जैसे किसी आदमी को केक खाने का मन है पर वो खुद पर कंट्रोल करता है तो इसका मतलब है कि उसके मन में कहीं ना कहीं ये विचार भी जरूर आएगा कि वो एक स्वादिष्ट चीज़ का आनंद नहीं ले पाया.
स्टोइक मानते है कि उनके पास जो कुछ अच्छा है उन्हें उसी में खुश रहना चाहिए, और अगर कुछ अच्छा नहीं है तो भी ज़िंदगी में जो मिला है, उससे संतुष्ट रहना चाहिए.
स्टोइक लोजिक स्टडी करते है जहाँ उनका फोकस रीजन, पेर्सुएशन और फिजिक्स में रहता है जहाँ वो ये जानने की कोशिश करते है कि ये दुनिया कैसे चलती है और सबसे बढ़कर ये समझने की कोशिश करते है कि इन्सान को अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए किस तरह की अच्छी आदते अपनानी चाहिए.
फिर धीरे-धीरे स्टोइसिज्म ग्रीस से होते हुए रोम तक पहुंचा. ग्रीक्स की तरह रोमन ने भी कभी लॉजिक और फिजिक्स पर ज़्यादा फोकस नहीं किया बल्कि वो लोग जीवन में शांति की तलाश करते थे.
जीवन में शांति को अहमियत देने की वजह से ही स्टोइसिज्म पुराने वक़्त में लोगों के बीच बहुत सराहा गया और आज भी इसकी popularity कम नहीं हुई है.
TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE
Negative Visualization: What’s The Worst That Can Happen?
हम में से हर किसी को नेगेटिव सोचने की आदत है, हम लो अक्सर बुरे से बुरे की भी कल्पना कर लेते है. जाने-अनजाने हम हमें शा अगर-मगर के जाल में उलझते चले जाते है. अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा, अगर वैसा हुआ तो क्या होगा? हम ऐसा इसलिए करते है क्योंकि हमें लगता है अगर हम बुरी चीज़े पहले से सोच लेंगे तो शायद वो हमारे साथ होंगी ही नहीं .
हालाँकि हम चाहें कितना भी बचने की कोशिश करे, जो होंना है वो होकर रहता है. लाख तैयारीयों के बावजूद अक्सर हादसे हो जाते है. दरअसल भविष्य हमारे हाथ में नहीं है शायद इसीलिए सेनेका मानते है कि वर्स्ट केस सिनेरियो के बारे में अगर हम पहले से सोच कर चलेंगे तो बेशक हम उन्हें होने से रोक तो नहीं सकते पर हाँ हम मेंटली प्रीपेयर्ड जरूर रहेंगे.
जो लोग हमें शा दुखी रहते है, उसके पीछे एक और वजह ये है कि वो हमें शा यही सोचते रहते है कि कहीं कुछ बुरा ना हो जाए. यहाँ तक कि जब हमारी कोई ईच्छा या सपना पूरा होता है तो भी हम ज़्यादा देर खुश नहीं रह पाते, जैसे ही कोई ईच्छा पूरी हुई नहीं कि मन में कोई दूसरी ईच्छा जन्म लेती है और हम उसे पूरा करने की जुगत में लग जाते है. कहने का मतलब है कि इन्सान की ख़ुशी उसकी ईच्छाओ पर टिकी है जो कभी पूरी नहीं होती.
साईंकोलोजी में इस phenomena को hedonic adaptation का नाम दिया गया है. सिंपल शब्दों में कहें तो ये इन्सान की फ़ितरत है कि वो हर नई और चमकदार चीज़े के प्रति आकर्षित होता है. जैसे एक्जाम्पल के लिए मान लो किसी आदमी की लाटरी लग जाए तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहेगा, वो एक नया घर और महंगी गाड़ी खरीदेगा. कुछ दिनों तक तो वो लाइफ एन्जॉय करेगा पर फिर कुछ वक़्त बाद उसे अपनी रूटीन लाइफ फिर से बोरिंग लगने लगेगी.
तो इस प्रोब्लम का सोल्यूशन क्या है? हम लाइफ में खुश कैसे रहे? इसका जवाब है: लाइफ में जो कुछ आपके पास है उसके लिए ऊपरवाले का शुक्रिया अदा करो. हम नेगेटिव visualization का भी इस्तेमाल कर सकते है. उन चीजों के बारे में सोचो जो आपकी जिदंगी में सबसे ज़्यादा अहमियत रखती है. अब ये सोचो कि अगर कोई आपसे ये चीज़े छीन ले, तो कैसे लगेगा आपको?
अगर आप अपनी पत्नी और बच्चो को टेकन फॉर ग्रांटेड लेते है तो कभी सोच कर देखना उनके बिना आपकी ज़िंदगी कैसे गुजरेगी? बस एक बार सोच कर देखना, आप खुद ही उन्हें और ज़्यादा प्यार करने लगोगे और अपनी ज़िंदगी में उनके होने की अहमियत समझोगे.
ये स्टोइक प्रिंसिपल सिर्फ अमीरों के लिए ही नहीं है, बल्कि वो लोग जिनके पास कुछ नहीं है, वो भी अपनी ज़िंदगी बेहतर बनाने के लिए नेगेटिव visualization का सहारा ले सकते है. चाहें आपके पास बस एक सूखी रोटी हो, सोचो अगर ये रोटी भी ना रहे और आप बीमार भी पड़ गए तो क्या? सोचकर ही डर लगता है ना?
इस philosophy को अप्लाई करके हम अपने दुखो को काफी हद तक कम कर सकते है पर स्टोइक्स ये नहीं कहते है कि आपको सपने देखना छोड़ देना चाहिए. बल्कि हमें खूब मेहनत करके अपनी ज़िंदगी को इम्प्रूव करने की कोशिश करनी चाहिए लेकिन साथ ही चीजों को टेकन फॉर ग्रांटेड लेना भी छोड़ना होगा.
नेगेटिव visualization की प्रैक्टिस हमें अपने सपने पूरे करने में और खुश रहने में मदद कर सकती है. और हमारे पास जो है जैसा है, हम उसकी कद्र करना सीख जायेंगे. इसके अलावा जब हम वर्स्ट केस सिनेरियो के बारे में पहले से सोचने का एक और फायदा है, एक तो हम मेंटली प्रीपेयर्ड रहते है और दूसरा जब हमें पता होता है कि हमारे साथ बुरा होने वाला है तो हमें ज़्यादा तकलीफ नहीं होती. ये एक ह्यूमन साईंकोलोजी है, आप इसे अपनी ज़िंदगी में आज़मा कर देख सकते है.