(hindi) Why We Buy: The Science of Shopping

(hindi) Why We Buy: The Science of Shopping

इंट्रोडक्शन

हम जैसे shoppers  के लिए शॉपिंग करना बहुत ही मज़ेदार है, लेकिन ये रिटेलर और मार्केटर्स के लिए बेहद मुश्किल काम हो सकता है. एक बढ़िया सक्सेसफुल शॉप को चलाने के लिए, आपको शॉपिंग के आर्ट में महारत हासिल करना ज़रूरी होता है.

ये बुक आपको शॉपिंग के बेसिक फंडामेंटल को समझने में हेल्प करेगी और आप इसे अपने प्रॉफिट को बढ़ाने के लिए यूज़ कर सकते हैं.
इस बुक में, आप सीखेंगे कि शॉपिंग के साइंस की शुरुवात कैसे हुई और इस नए साइंस की बेसिक बातें क्या हैं. इसके बाद, आप सीखेंगे कि शॉपिंग के साइंस से रिटेलर्स और मार्केटर, दोनों को कैसे फायदा हो सकता है.

आप अपनी शॉप के ट्रांजीशन ज़ोन के बारे में भी जानेंगे और, ये भी जानेंगे कि कैसे लाइटिंग आपके शॉप को सक्सेसफुल बना सकती है. अगर आपके कस्टमर आपके कुछ प्रोडक्ट की ओर बिलकुल ध्यान नहीं देते, तो ये बुक आपको पहचानने में हेल्प करेगी कि आखिर ये प्रॉब्लम क्यों हैं और उसे कैसे ठीक किया जाए.
साथ ही, आप जानेंगे कि दोनों हाथों को खाली रखकर शॉपिंग करना ज़रूरी क्यों है. एक शॉप के मालिक के तौर पर, आपको हमेशा ये याद रखना होगा कि आपके कस्टमर्स के सिर्फ दो हाथ हैं और कस्टमर्स को कम्फर्टेबल महसूस कराने में हेल्प के लिए आपको अपने शॉप को डिज़ाइन करने की ज़रूरत हैं.
आपके कस्टमर्स आपके शॉप में लगे साइन को कैसे पढ़ते हैं, आप इसके बारे में भी सीखेंगे. अगर आपने सेल का साइन लगाया हैं, लेकिन कोई भी कस्टमर इस पर ध्यान नहीं देता, तो ये बुक आपको समझने में हेल्प करेगी कि ऐसा क्यों हो रहा हैं.
शॉपिंग में आपके कस्टमर्स का आना-जाना लगा रहना भी ज़रूरी हैं. आप सीखेंगे कि अपनी शॉप को अपने कस्टमर्स के आने-जाने के हिसाब से कैसे बनाएं ताकि वे ज़्यादा से ज़्यादा सामान खरीदें.
ये बुक उन स्ट्रैटेजिज़ से भरी हुई  है जो आपके बिज़नेस को ज़्यादा सक्सेसफुल बनाने में हेल्प करेगी. तो आइये शुरू करते हैं.

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एक नए तरह के साइंस का जन्म

चीज़ें खरीदने को शॉपिंग कहा जाता हैं. हम शॉपिंग उन चीजों की करते हैं जिनकी हमें ज़रूरत पड़ती हैं या फिर हमें अच्छा लगता हैं. शॉपिंग के साइंस को समझने का मतलब हमें ये समझना हैं कि कस्टमर्स किसी एक चीज़ को खरीदने का डिसिशन कैसे लेते हैं. इसे समझने से शॉप के मालिक अलग-अलग स्ट्रैटेजिज़ को यूज़ करके अपने सेल्स को बढ़ा सकते हैं और ये बुक हमें यही सीखने में मदद करेगी.

शॉपिंग का साइंस हमेशा से नहीं था. सबसे पहले, एंथ्रोपोलॉजिस्ट्स (anthropologists) ने शॉपिंग करने वाले लोग यानि शॉपर्स की स्टडी की. एंथ्रोपोलॉजिस्ट्स ने स्टडी किया कि शॉपर्स दुकानों, वहां रखे सामानों और हर डिटेल जैसे कि शेल्फ, काउंटर, बैनर और यहां तक कि साइन के साथ कैसे इंटरैक्ट करते हैं.

हालांकि, एंथ्रोपोलॉजी ने जिन तरीकों से शॉपिंग की स्टडी की थी, वो सही तरीका नहीं था. हाँ, उन्होंने डेटा इकठ्ठा तो किया, लेकिन इसकी जांच या एनालाइज़ करके शॉपर्स के आदतों, उनके बिहैवियर समझने की कोशिश नहीं की. उन्होंने बस इसे ओब्सर्व किया, देखा, लेकिन  कोई रिजल्ट नहीं निकाला.

तो शॉपिंग का साइंस आखिर आया कैसे?
इस सवाल का जवाब देने के लिए, हम आपको एक महान शख्स की कहानी बताएंगे और ये भी कि उनका चीजों को देखने का अंदाज़ कितना अनोखा था.

पैको  अंडरहिल इस बुक के ऑथर हैं, और उनको शॉपिंग और मार्केट- रिसर्च के साइंस की शुरुवात करने वाले फाउंडर माना जाता हैं. जब  पैको  ने पहली बार शॉपर्स को स्टडी करने के लिए अपने तरीकों का यूज़ करना शुरू किया, तो हर किसी को लगा कि वे पागल हैं.

उनके पास एक ऑफिस और एक equipment रूम था जिसमें सौ से भी ज़्यादा कैमरे लगे थे. ये कैमरे पुराने और नए दोनों तरह के मॉडल के थे. ये काम सही ढंग से ऑर्गनाइज़ रहे, इसके लिए  पैको  ने सोचा कि हर कैमरे को एक नंबर देने से बेहतर होगा कि उन्हें एक-एक नाम दिया जाए.

इन कैमरों के साथ ही खाली वीडियो टेप के ढेर भी थे. हरेक टेप दो घंटे की शॉपिंग को रिकॉर्ड कर सकता था.

इसके अलावा, equipment रूम में बहुत सारे कंप्यूटर भी लगे हुए थे, जहां  पैको  और उनकी टीम अपना काम करते थे और ऑफ़ कोर्स, ये सब equipment किसी भी पल पैक होने के लिए तैयार रहते थे क्योंकि ये रिसर्च टीम दुनिया भर में घूमती थी.
इन सब टूल्स का यूज़ दुकानों में शॉपिंग के एक्सपीरियंस को रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता हैं. लेकिन सबसे ज़रूरी टूल हैं ट्रैक शीट, जो एक पेपर का टुकड़ा हैं जिसे ट्रैकर्स अपने साथ रखते हैं और, जो भी शॉपर शॉप के अंदर आते हैं , वे जो कुछ भी करते हैं, उन्हें देखकर ट्रैकर्स पेपर पर लिखते हैं. ट्रैकर्स छोटी से छोटी डिटेल लिखते हैं, यहां तक कि एक शॉपर ने कहाँ देखा, क्या छुआ और किससे बात की, सब नोट किया जाता है।

ये ट्रैकर आमतौर पर एक बार में, एक ही शॉपर पर अपनी नज़र रखते हैं. जब कोई शॉपर शॉप के अंदर आता हैं, तब से ट्रैकर उसके पीछे जाता हैं  और तब तक नोट करता रहता हैं जब तक शॉपर शॉप से चला नहीं जाता.

इन ट्रैकर्स को स्मार्ट और शांत होना चाहिए. उनका काम शॉपर्स के पीछे जाना हैं लेकिन बिना उनका ध्यान खींचे. शॉपिंग का साइंस इन ट्रैकर्स के बिना इतना असरदार नहीं होता।

पैको  और उनकी टीम ने दुनिया भर के बड़ी कंपनियों के साथ काम किया हैं. वे शॉपर्स पर अपनी नज़र रखते हैं और ध्यान देते हैं कि शॉपर्स कैसे किसी एक प्रोडक्ट के साथ इंटरैक्ट करते हैं, फिर रिसर्च करने वाले इस डेटा से कुछ नतीज़े निकालते हैं और किसी भी प्रोडक्ट की सेल्स को बढ़ाने का सोल्यूशन बताते हैं.
इस तरह से शॉपिंग के साइंस की शुरुवात हुई. जब- जब मार्केट, प्रोडक्ट्स और लोगों के सोच में बदलाव होगा, ये साइंस भी बदलता रहेगा.

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वो बात जो रिटेलर्स और मार्केटर्स नहीं जानते

पिछले चैप्टर में, हमने शॉपिंग के साइंस और इसकी शुरुवात को समझने की कोशिश की. इस चैप्टर में, हम रिटेलर्स और मार्केटर्स के नज़रिए से इस साइंस के इस्तेमाल को जानने की कोशिश करेंगे.
शॉप का मालिक एक रिटेलर हैं, और ये समझना उसका काम हैं कि उसके प्रोडक्ट का सेल कैसे हो रहा हैं. दूसरी तरफ, एक मार्केटर को ये समझना हैं कि उसके प्रोडक्ट के साथ शॉपर्स का क्या रवैया हैं.

इससे पहले, मार्केटर्स या कंपनी सिर्फ अपने सेल्स की गिनती पर अपना फोकस रखती थी. उन्होंने कंस्यूमर यानि शॉपर को स्टडी ही नहीं किया.

कोई भी प्रोडक्ट का सेल्स कैसा चल रहा हैं, उसके परफॉरमेंस से पता चलता हैं और परफॉरमेंस को कन्वर्ज़न रेट से नापा जाता हैं.कन्वर्ज़न रेट होता हैं शॉप में आने वाले कस्टमर्स जो इस प्रोडक्ट को खरीदता हैं, उनके पर्सेंटेज की तुलना उन कस्टमर्स के पर्सेंटेज से करना जो शॉप में आते तो हैं पर प्रोडक्ट नहीं खरीदते हैं.
एग्जाम्पल के लिए, अगर आप एक शॉप के मालिक हैं, तो आपको लगता हैं कि आपको अपने शॉप के कन्वर्ज़न रेट मालूम हैं लेकिन ये बिना हिसाब-किताब वाले आपके अंदाज़े गलत हो सकते हैं.

एक दिन,  पैको  ने एक मल्टीमिलियन-डॉलर कंपनी के एक स्मार्ट सीनियर एग्ज़ेक्युटिव से एक सिंपल सवाल पूछा-” आपके शॉप में आने वाले कितने लोग कुछ खरीदकर जाते हैं?”

वे बहुत समझदार थे, इसलिए हम ये अंदाज़ा लगाते हैं कि उन्हें पता होगा कि उनके शॉप का परफॉरमेंस कैसा था. लेकिन उनका जवाब हैंरान करने वाला था. उन्होंने कहा कि उनके शॉप में आने वाले सभी लोग कुछ न कुछ ज़रूर खरीदते हैं.

ये सिर्फ उनका ही जवाब नहीं था बल्कि उनके कंपनी के सारे मेंबर्स का भी यही जवाब था. सभी ने उन्हीं नंबर्स को पढ़ा था. किसी वजह से वे सब मानते थे कि इस कंपनी में कन्वर्ज़न रेट 100 परसेंट था.

कोई भी कंपनी का मालिक ऐसी ही कन्वर्ज़न रेट चाहता हैं, और कुछ कम्पनियाँ तो वाकई में इस रेट को हासिल कर लेते हैं. आप कौन सा प्रोडक्ट बेच रहे हैं, आपने कौन सी मार्केटिंग स्ट्रैटेजीज़ अपनाया हैं, कन्वर्ज़न रेट इन सब बातों पर डिपेंड करता हैं.

एग्जाम्पल के लिए, अगर आप सोना बेच रहे हैं, तो आपके ज्वूलरी शॉप में आने वाले सभी शॉपर कुछ खरीदेंगे क्योंकि अगर उनके पास खरीदने के लिए पैसे नहीं होता तो वे ज्वूलरी शॉप आते ही नहीं. इस सिचुएशन में, शॉप के मालिक के पास 100 परसेंट कन्वर्ज़न रेट हो सकता हैं.
लेकिन ये कंपनी तो सोना नहीं बेच रही थी. क्योंकि उनका शॉप पॉपुलर था तो उन्हें लगता था कि कोई शॉपर तभी कुछ नहीं खरीदता जब उनका प्रोडक्ट स्टॉक से खत्म हो जाता हैं.

पैको  और उनकी टीम ने इस कंपनी को गहराई से स्टडी किया. उनके स्टडी ने उन्हीं तरीकों को अपनाया जिनकी हमने पिछले चैप्टर में बात की थी, और इस कंपनी की सही कन्वर्ज़न रेट निकालने में कई सौ घंटे लग गए थे.

पैको  ने उस स्मार्ट शख्स और उनकी टीम को बताया कि उनके कन्वर्ज़न रेट 48 परसेंट थी, जो कि बुरी नहीं थी बल्कि ज़्यादा यकीन करने लायक था.

इस हकीकत का एहसास होने पर,  इस कंपनी ने अपने सेल्स को सुधारने के लिए बदलाव करना शुरू कर दिया.

यही कारण हैं कि शॉपिंग के साइंस की ज़रूरत रिटेलर्स और मार्केटर्स दोनों को ही हैं. ये उन्हें उनके प्रोडक्ट्स के परफॉरमेंस के बारे में सही नंबर दे सकता हैं और उनके प्रॉफिट के साथ-साथ उनके स्ट्रैटेजिज़ को बेहतर करने में हेल्प कर सकता हैं.

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द ट्वाईलाईट ज़ोन

किसी भी दूसरे साइंस की तरह शॉपिंग के साइंस की भी कुछ उसूल, कुछ प्रिंसिपल्स हैं, जो बहुत ही सिंपल हैं, और कोई भी अपने बिज़नेस को बढ़ाने के लिए उसका यूज़ करना सीख सकता हैं. ये प्रिंसिपल्स लोगों के सोचने, उनकी आदतें और उनके घूमने के तरीके से सीधे-सीधे जुड़ा हुआ हैं.

इस चैप्टर में, हम शॉप की लाइटिंग पर फोकस करेंगे. अगर आप टाउन जाते हैं, तो देख सकते हैं कि कुछ शॉप दूसरों से अलग होते हैं जबकी कुछ बेकार और बोरिंग होते हैं. कुछ दुकानों में मज़ेदार लाइटिंग प्लान का इस्तेमाल होता हैं और कुछ में दिन और रात, दोनों वक्त एक ही तरह की लाइटिंग होती हैं.

दिन और रात, दोनों वक्त एक जैसे ही लाइट के यूज़ से चीज़े एक जैसे नहीं दिखाई देंगे. दोनों वक्त अलग-अलग लाइट यूज़ होना चाहिए जिससे शॉप की बेस्ट क्वालिटी नज़र आए.

एक और पॉइंट के बारे में ध्यान रखना चाहिए, कस्टमर जैसे ही बाहर से आपके शॉप में अंदर की ओर आता हैं, तो वे प्रोडक्ट्स देखने से पहले कुछ मिनट बिताते हैं. ये वो जगह हैं जहां पर पहुँच कर आपके नए कस्टमर रुक जाते हैं, चलना बंद कर देते हैं और फिर आपके प्रोडक्ट्स को देखना और चेक करना शुरू कर देते हैं. इसी जगह को ट्रांजीशन ज़ोन कहते हैं.

अगर आप अपने शॉप के सामने कुछ इंटरेस्टिंग चीज़ रखते हैं, तो हो सकता हैं कि आपके कस्टमर्स इसे नोटिस ही न करें क्योंकि उनकी आँखें अभी तक आपके शॉप की लाइटिंग से एडजस्ट हो ही नहीं पाए हैं.

आइए एक एग्जाम्पल को देखें, 1980 में, बर्गर किंग नाम की एक बड़ी कंपनी अपने रेस्तरां में नया सैलड बार आज़मा रही थी.

अपने नए प्रोडक्ट को बढ़ावा देने के लिए, बर्गर किंग ने अपने कई रेस्तरां के एंट्री डोर को बदलने के बारे में सोचा. आमतौर पर, वहां पार्किंग लॉट रेस्तरां के एंट्री डोर से जुड़ा होता था. अब, उन्होंने उस दरवाजे को एग्ज़िट डोर बना दिया था और उसके ठीक साइड की खिड़की के पीछे सैलड बार लगा दिया.
अब, खुद को इस रेस्तरां में इमेजिन कीजिए. आप अपनी कार को पार्किंग में खड़ी करेंगे. नए दरवाज़े की तरफ जाएंगे, जो अब रेस्तरां के दूसरी तरफ हैं, फिर जब आप अंदर जाते हैं,  आप सीधे सैलड बार पर जाते हैं – ये जानते हुए कि सैलड बार एग्ज़िट के पास हैं. ये सैलड के लिए एक लम्बा सफर लगता हैं.

लेकिन रेस्तरां में जो हुआ वो इससे बिलकुल अलग था. क्योंकि कस्टमर्स ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि एक नई एंट्री डोर बनी हैं, वे सीधे पार्किंग लॉट से पुराने एंट्री डोर तक जाते थे, जो कि अब एक एग्जिट डोर बन गया था. वे यहीं से रेस्तरां में घुसने की कोशिश करते लेकिन इस डोर को बंद पाते थे.

अब, कस्टमर्स रुक जाते और चारों ओर देखकर ये ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं कि एंट्री डोर कहां हैं. उनमें से किसी ने खिड़की के साइड में बनाए नए सैलड बार पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वे दरवाजा ढूंढ़ने की कोशिश में ही बिज़ी थे.

जैसे ही उन्हें नया एंट्री डोर का पता चलता, भूखे कस्टमर्स , खाने का ऑर्डर देने के लिए सीधे रेस्तरां में पहुँचते.

सैलड बार गलत जगह बनाई गई थी, इसलिए कस्टमर्स को दिखाई ही नहीं देता था कि वहां बार भी हैं, इसलिए उन्होंने कभी वहाँ से कुछ नया ऑर्डर नहीं किया.

ये किसी जगह का गलत इस्तेमाल का एक अच्छा एग्जाम्पल हैं. अगर आप अपने शॉप के किसी प्रोडक्ट को स्टार बनाना चाहते हैं, तो आपको अपने कस्टमर्स का ट्रांजीशन ज़ोन पर ध्यान रखना होगा. जो भी कस्टमर्स आते हैं, आप अपने शॉप के वर्कर्स से उनको वेलकम करवा सकते हैं और उन्हें शॉपिंग बास्केट थमा सकते हैं, जिससे कस्टमर्स के लिए खरीदारी करना आसान हो और वे ज़्यादा से ज़्यादा प्रोडक्ट्स खरीदें.

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