(hindi) Bhagavad Gita(Chapter 1)

(hindi) Bhagavad Gita(Chapter 1)

नमस्कार दोस्तों,

गिगल एप पर आपका बहुत बहुत स्वागत है । हम आपके लिए लेकर आए हैं एक ऐसा प्रोजेक्ट जिसे करने के लिए हम तो excited हैं ही । पर हम जानते हैं कि आप भी इसे सुनने के लिए उतने ही बेकरार हैं।
जी हाँ यह है श्रीमद भगवद गीता । पर इससे पहले कि इसे शुरू करें कुछ बातें हैं जो हम आपसे शेयर करना जरूरी समझते हैं ।

यह बात तो हम सभी को मालूम है कि भगवान यानि परमात्मा एक ही है पर उन्हे न पहचानने के कारण, ना जानने के कारण इस बात को मानते नहीं हैं। परमात्मा को न जान पाने के कारण भी कई हैं। जिसमे सबसे पहला तो यही है कि वह दिखाई नही देता। सोचिये जब आत्मा को ही आँखों से नहीं देखा जा सकता तो परम आत्मा को कैसे देख सकते हैं।..

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क्या आपने कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध के बारे में सुना है? कहते हैं धर्म स्थापना के लिए लडे गए उस युद्ध में इतने लोगों की जान गई थी कि वहाँ की मिट्टी रक्त से लाल हो गई थी. क्या आप जानते हैं कि युद्ध से होने वाले विनाश के बारे में सोचकर जब राजकुमार अर्जुन को दुःख और मोह ने घेर लिया था तब  श्रीकृष्ण ने उनसे क्या कहा था? आखिर क्यों लड़ा गया था वो युद्ध,  क्या उद्देश्य था उसका?

“भगवद गीता” का मतलब है भगवान् द्वारा गाया हुआ गीत. इस पवित्र ग्रंथ की गहराई को समझना इतना आसान नहीं है. कई ज्ञानी कहते हैं कि भले ही ये युद्ध कुरुक्षेत्र की भूमि पर अस्त्र शस्त्र से लड़ा गया था लेकिन इसमें दिए गए संदेश का मकसद हमें ये समझाना है कि हमारा मन भी कुरुक्षेत्र की तरह एक रणभूमि है जहां लालच, मोह, गुस्सा, वासना आदि कौरवों की तरह 100 अवगुण बसते हैं जिन्हें हमें अपनी पाँचों इन्द्रियों, जो पांच पांडव के प्रतीक हैं, को क़ाबू में करके हराना होगा तभी हम एक सुखी जीवन जी सकते हैं और मुक्ति पा सकते हैं.

श्रीकृष्ण हमारे मन की आवाज़ या आत्मा या consciousness का प्रतीक हैं जो दुविधा के वक़्त सवालों का जवाब देकर हमारी मदद करते हैं. हर इंसान अर्जुन का प्रतीक है जो दुविधा में घिरा हुआ है.

श्रीमद भगवद गीता उपदेश नहीं देती बल्कि इंसान को जीवन जीने का सही तरीका सिखाती है. ये अमृत रुपी ज्ञान किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है. इसमें श्रीकृष्ण ने पूरी सृष्टि के लिए कई अनमोल बातें बताई हैं जिन्हें अगर अपने जीवन में उतारा जाए तो हम अनगिनत समस्याओं से बच सकते हैं.

इस पवित्र ग्रंथ में आप ब्रह्माण्ड के उन रहस्यों के बारे में जानेंगे जिन्हें लेकर अक्सर हमारे मन में सवाल उठते हैं. कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने जीवन से जुड़े कई अनसुलझे सवालों का जवाब दिए हैं.
इस किताब के ज़रिए आप अध्यात्म को एक अलग नज़रिए से देखने लगेंगे.

इसमें बताई गई बातें आज भी बिलकुल सटीक बैठती हैं क्योंकि इंसान का मन अब भी उन्हीं विकारों और दुविधाओं से जूझ रहा है जैसे हज़ारों साल पहले जूझ रहा था और इसका कारण है अज्ञानता. इसमें बताई गई बातें अज्ञानता को दूर कर मन में ज्ञान का दीपक जलाती है जिससे इंसान सब कुछ साफ़-साफ़ समझने लगता है और उसका बेचैन मन शांत हो जाता है. इन बातों को आप अपने जीवन के हर पहलू में उतार कर परख सकते हैं. देखा जाए तो जीवन यात्रा एक समुद्र की तरह है, जिसमें हमें एक किनारे से दूसरे किनारे तक पहुंचना होता है, तूफ़ान और लहरें वो चुनौतियां हैं जिनका सामना हमें इस सफ़र के दौरान करना पड़ता है और यह पवित्र ग्रंथ, जो समय और काल चक्र से परे है, वो नाव है जो हमें सही रास्ता दिखाती है , निराशा और अन्धकार में डूबने से बचाती है.

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अध्याय 1: विषाद योग

(अर्जुन द्वारा कुरुक्षेत्र के मैदान में सेनाओं का निरिक्षण करना)

कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों ओर सेनाएं तैयार खड़ी थीं, तनाव के कारण हवा में अजीब सा भारीपन था. एक ओर थे पांच पांडव भाई, जिनकी सेना में कई शूरवीर शामिल थे. दूसरी ओर थे सौ कौरव भाई जिनकी सेना कई महारथियों से सजी थी और श्रीकृष्ण की नारायणी सेना ने उनके बल को और भी बढ़ा दिया था. द्वारकाधीश श्रीकृष्ण ने कसम खाई थी कि वो इस युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे इसलिए उन्होंने अर्जुन और दुर्योधन को उनमें और उनकी नारायणी सेना में से एक का चुनाव करने के लिए कहा. अर्जुन ने श्रीकृष्ण को चुना. क्योंकि अर्जुन उनके परम सखा था इसलिए उनका मार्गदर्शन करने के लिए श्रीकृष्ण उनके सारथी बने.
युद्ध शुरू होने का समय हो रहा था, पांडू पुत्र अर्जुन की नज़र सामने खड़ी सेना की ओर गई. वहाँ उन्हें अपने भाई, उनके बच्चे, गुरुजन और भीष्म पितामह दिखाई दिए. ये युद्ध किसी आम युद्ध जैसा नहीं था जहां दो राजा अपने वर्चस्व या राज्य के लिए लड़ रहे थे. ये युद्ध, जो धर्म युद्ध के नाम से जाना जाता है, एक ही परिवार के लोगों के बीच के संघर्ष की कहानी है जिसका जन्म लालच और अहंकार के कारण हुआ था.
दोनों पक्ष अपने दुश्मन को गौर से देख रहे थे, उन्हें हर ओर अपने दिख रहे थे. कहने को वो चचेरे भाई थे लेकिन सत्ता के लालच में कौरवों की आँखों पर पर्दा पड़ गया था.

ध्रितराष्ट्र और पांडू दो भाई थे. ध्रितराष्ट्र के सौ पुत्र थे जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था. उसमें अहंकार और लालच कूट-कूट कर भरा था. कहते हैं कि वो इतना दुष्ट और अधर्मी था कि उसके जन्म के समय प्रकृति भी उदास हो गई थी. पांडू के पांच पुत्र थे पांडव जो धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोग थे. दुर्योधन पर सम्राट बनने का जुनून सवार था. वो हर हाल में इस युद्ध में पांडवों को हराकर अपनी जीत चाहता था. ना उसे निर्दोषों की जान की परवाह थी ना अपने भाइयों को खोने का गम. उसे पूरा यकीन था कि भीष्म पितामाह, अंगराज कर्ण, अश्वथामा और गुरु द्रोणाचार्य जैसे महारथियों का साथ होने से उसकी जीत निश्चित थी. लेकिन उसके विश्वास के विपरीत जीत तो पांडवों की होनी थी क्योंकि श्रीकृष्ण उनके पक्ष में थे. श्रीकृष्ण धर्म के पक्ष में थे.
पांडव पराक्रमी योद्धा होने के साथ बहुत ज्ञानी भी थे, वो ये युद्ध नहीं चाहते थे. वो सिर्फ़ पांच गाँव का अधिकार चाहते थे ताकि सब सुख शांति से रह सकें. लेकिन जब दुर्योधन ने भूमि का एक टुकड़ा तक पांडवों को देने से इनकार कर दिया तब युद्ध के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा. भगवद गीता में ज्ञान का मतलब है इस शरीर, आत्मा और परमात्मा के तत्व को समझना.

कौरवों की ओर से भीष्म पितामह ने सिंह की तरह गरजकर शंख बजाया. इसके बाद शंख, नगाड़े, ढ़ोल सब एक साथ बज उठे जिनके आवाज़ से भयंकर गर्जना हुई. दूसरी ओर, सफ़ेद घोड़ों से सजे अलौकिक और दिव्य रथ पर बैठे श्रीकृष्ण और अर्जुन ने शंखनाद किया. उनके पक्ष में बाकी भाइयों ने अलग-अलग दिव्य शंख बजाए. उन सभी के शंख की गूँज से धरती और आकाश दोनों काँप उठे.

जैसे-जैसे रथ आगे बढ़ने लगा, सामने अपने लोगों को देखकर अर्जुन का मन गहरे दुःख से भर गया. जब उन्हें अपनी दुविधा का कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने श्रीकृष्ण को अपने मन की पीड़ा बताई. मान्यता के अनुसार कहते हैं कि श्री कृष्ण जी ने समय को रोक दिया था और गीता का ये दिव्य संवाद श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच में हुआ था. वहीँ, महर्षि व्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि दी थी जिसके ज़रिए वो हस्तिनापुर से कुरुक्षेत्र में हो रही हर घटना को देख सकते थे, सुन सकते थे. उन्होंने श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए इस संवाद और युद्ध का आँखों देखा हाल ध्रितराष्ट्र को सुनाया. श्रीकृष्ण ने अर्जुन के बेचैन मन को शांत करने के लिए उनके हर सवाल का जवाब दिया और तब ये महान ग्रंथ अस्तित्व में आया.

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