(hindi) Saanp Ka Mani
मैं जब जहाज़ पर नौकरी करता था तो एक बार कोलंबो भी गया था। बहुत दिनों से वहाँ जाने को मन चाहता था, खासकर रावण की लंकापुरी देखने के लिए । कलकत्ते से सात दिन में जहाज कोलंबो पहुँचा । मेरा एक दोस्त वहां किसी कारखाने में काम करता था, मैंने पहले ही उसे खत लिख दिया था । वह घाट पर आ पहुँचा। हम दोनों गले मिले और कोलंबो की सैर करने चल दिए। जहाज़ वहां चार दिन रुकने वाला था। मैंने कप्तान साहब से चार दिन की छुट्टी ले ली थी ।
जब हम दोनों खा-पी चुके, तो गपशप होने लगी। वहाँ के सीप और मोती की बात छिड़ गई। मेरे दोस्त ने कहा-“यह सब चीज़ें तो यहाँ समुद्र में निकलती ही हैं और आसानी से मिल जायेंगी, मगर मैं तुम्हें एक ऐसी चीज़ दूंगा जो शायद तुमने कभी न देखी हो । हाँ, उसका हाल किताबों में पढ़ा होगा”।
मैंने ताज्जुब से पूछा-“वह कौन-सी चीज है ?”
'साँप का मणि।”
मैं चौंक उठा और बोला-“साँप का मणि ! उसका जिक्र तो मैंने किस्से-कहानियों में सुना है और यह भी सुना है कि उसकी कीमत सात बादशाहों के बराबर होती है । क्या साँप का असली मणि ?”
वह बोले-“हां भाई, असली मणि । तुम्हें मिल जाय तब तो मानोगे”।
मुझे विश्वास न हुआ । वह फिर बोले-“यहाँ पचासों किस्म के सांप हैं, मगर मणि एक ही तरह के साँपों के पास होती है। उसे कालिया कहते हैं। यह बात सच है कि यह चीज़ मुश्किल से मिलती है। पचासों में शायद एक के पास निकले । मगर मिलती जरूर है”।
मैंने सुना था कि साँप मणि को अपने सिर पर रखता है, मगर यह बात ग़लत निकली। मेरे दोस्त ने कहा-“यह चीज़ उसके मुँह में होती है” ।
मैंने पूछा-“तो मुँह के अन्दर से चमक कैसे नज़र आती है !”
दोस्त ने हँसकर कहा-“जब उसे रोशनी की ज़रूरत होती है, तो वह किसी साफ़ पत्थर पर उसे सामने रख देता है। उस वक्त ज़रा भी खटका हो तो वह झट उसे मुँह में दबाकर भाग जाता है। उसकी आदत है कि जहाँ एक बार मणि को निकालता है, वहीं बार-बार आता है। मैं आज ही अपने आदमियों से कह देता हूँ और वो लोग कहीं न-कहीं से ज़रूर खबर लायेंगे”।
दो दिन गुजर गये, तीसरे दिन शाम को मेरे दोस्त ने मुझसे कहा-“लो भाई, मणि का पता चल गया”।
मैं झट उठ खड़ा हुआ और अपने दोस्त के साथ बाहर आया तो वह आदमी खड़ा था, जो मणि की ख़बर लाया था। वह कहने लगा—“अभी मैं एक साँप को मणि से खेलते देखकर आ रहा हूँ। अगर आप इसी वक्त चलें, तो मणि हाथ आ सकता है”। हम फौरन उसके साथ चल दिये । थोड़ी देर में हम एक जंगल में पहुँचे। उस आदमी ने एक तरफ़ उंगली से इशारा करके कहा-“वह देखिए, साँप मणि रखे बैठा है”। मैंने उस तरफ़ देखा तो सचमुच कोई 20 गज की दूरी पर एक साँप फन उठाये बैठा है और उसके आस पास उजाला हो रहा है।
पहले तो मैंने समझा कि शायद जुगुनू होगा पर वह रोशनी ठहरी हुई थी । जुगुनू की चमक चंचल होती है-कभी दिखाई देती है, कभी ग़ायब हो जाती है। मैं बड़ी देर तक सोचता रहा कि किस तरह से मणि हाथ लगे। आखिर मैंने उस आदमी से कहा-“मुझसे बड़ी ग़लती हुई कि बंदूक नहीं लाया, नहीं तो इसे मारकर मणि को उठा लेता”। उस आदमी ने कहा-“बंदूक की कोई ज़रूरत नहीं है साहब, आप थोड़ी देर रुकिए, मैं अभी आया”। यह कहकर वह कहीं चला गया।
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थोड़ी देर के बाद वह कुछ हाथ में लिये लौटा ।
मैंने पूछा-“तुम्हारे हाथ में क्या है ?”
उसने कहा-“कीचड़” ।
मैंने पूछा-“कीचड़ से क्या होगा ?”
उसने कहा-“चुपचाप देखिए, मैं क्या करता हूँ”।
वह चुपके से एक पेड़ पर चढ़ गया और मुझे भी चढ़ने का इशारा किया। मैं भी ऊपर चढ़ा। तब वह डालियों पर होता हुआ ठीक साँप के ऊपर आ गया, और अचानक उस मणि पर कीचड़ फेंक दिया। इससे अंधेरा छा गया। साँप घबराकर इधर-उधर दौड़ने लगा। थोड़ी देर के बाद पत्तियों की खड़खड़ाहट बन्द हो गई। मैंने समझा सांप चला गया। मैं पेड़ से उतरने लगा। उस आदमी ने मुझे पकड़ लिया और कहा-“भूलकर भी नीचे न जाईएगा, नहीं तो घर तक न पहुँच पाएँगे । वह सांप यहीं पर कहीं न कहीं छिपा बैठा है”।
हम दोनों ने उसी पेड़ पर रात काटी ।
दूसरे दिन सुबह होते ही हम दोनों इधर उधर देखकर नीचे उतरे। उस आदमी ने कीचड़ हटाया। मणि उसके नीचे पड़ा था। मैं खुशी के मारे मतवाला हो गया।
जब हम दोनों घर पहुँचे, तो मेरे दोस्त ने कहा-“अब तो तुम्हें विश्वास हुआ या अब भी नहीं ?”
मैंने कहा-“हाँ, साँप के पास से इसे लाया ज़रूर हूँ, मगर मुझे अभी तक शक है कि यह वही मणि है, जिसकी कीमत सात बादशाहों के बराबर है” ।
पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि वह एक किस्म का पत्थर है, जो गर्म होकर अंधेरे में जलने लगता है। जब तक वह ठंडा नहीं हो जाता, वह इसी तरह रौशन रहता है। सांप इसे दिन भर अपने मुँह में रखता है, ताकि यह गर्म रहे। रात को वह इसे किसी जंगल में निकालता है और इसकी रौशनी में कीड़े-मकोड़े पकड़कर खाता है।
सीख – इस कहानी के ज़रिए मुंशीजी ने इंसान की फ़ितरत और नीयत को दिखाया है. इंसान बिना मेहनत किए या शोर्ट कट अपनाकर या गलत रास्ते के ज़रिए दौलत पाने की इच्छा रखता है मगर वो भूल जाता है कि अंत में इन सब का परिणाम या तो बहुत बुरा होता है या उसके हाथ कुछ भी नहीं लगता. इसके बजाय अगर वो अपना दिमाग और मेहनत इमानदारी से काम करने में लगाए तो वो जिंदगी में उन्नति ज़रूर करता है.