(hindi) Maa

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आज बन्दी छूटकर घर आ रहा है। करुणा ने एक दिन पहले ही घर लीप-पोत रखा था। इन तीन सालो में उसने मेहनत-मजदूरी करके जो दस-पाँच रूपये जमा कर रखे थे, वह सब पति के सेवा और स्वागत की तैयारियों में खर्च कर दिये।

पति के लिए दो नयी धोती लायी थी, नये कुरते बनवाये थे, बच्चे के लिए नये कोट और टोपी के लिए जमा किये थे। बार-बार बच्चे को गले लगाती और खुश  होती। अगर इस  बच्चे ने सूरज की तरह रोशनी देकर उसके जीवन के अंधेरे को न खतम किया होता, तो शायद ठोकरों ने उसे मार ही दिया होता। पति के जेल जाने के तीन ही महीने बाद इस बच्चे  का जन्म हुआ।

उसी का मुँह देख-देखकर करूणा ने यह तीन साल काट दिये थे। वह सोचती— जब मैं बच्चे  को उनके सामने ले जाऊँगी, तो वह कितने खुश  होंगे! उसे देखकर पहले तो हैरान हो जायेंगे, फिर गोद में उठा लेंगे और कहेंगे— करूणा, तुमने यह रत्न  देकर मुझे दुनिया की सारी खुशियाँ दे डाली। जेल के सारे दुःख बच्चे  की तोतली बातों में भूल जायेंगे, उनकी सरल, पवित्र, मन को अच्छी लगने वाली एक झलक, सारे दुखो को खत्म कर देगी। ये सोचना ही उसे बहुत ख़ुशी दे रहा था।

वह सोच रही थी— आदित्य के साथ बहुत—से आदमी होंगे। जिस समय वह दरवाजे पर पहुँचेगे, जय—जयकार’ की आवाज से आसमान गूँज उठेगा। कितना अच्छा लगेगा यह सब। उन आदमियों के बैठने के लिए करूणा ने एक फटा-सा टाट बिछा दिया था, कुछ पान बना दिये थे और बार-बार उम्मीद भरी आँखों से दरवाजे की ओर देख रही थी। पति का सुन्दर चेहरा बार-बार उसकी आँखों में घूम रहा था। उनकी वे बातें बार-बार याद आती थीं, जो चलते समय उन्होंने कही थी, उनका वह धीरज, वह आत्मबल, जो पुलिस की  मार के सामने भी नहीं टूटा, वह मुस्कराहट जो उस समय भी उनके होंठो पर थी; खुद पर गर्व , जो उस समय भी उनके चेहरे पर था, क्या करूणा कभी भूल सकती थी।

ये याद आते ही  करुणा का मुरझाया चेहरा गर्व से लाल हो गया । यही वह उम्मीद थी, जिसने इन तीन सालो की मुश्किलों में भी उसके मन को संभाले रखा था। कितनी ही राते  बिना खाये गुजरीं, कभी-कभी तो घर में दिया भी नहीं जला, पर इन बातो से परेशान होकर वो कभी  रोई नहीं । आज वो सब परेशानियाँ खत्म हो जाएँगी । पति की मजबूत बाहों में वह सब कुछ हँसकर झेल लेगी। वो वापिस आ जाये तो  फिर उसे कुछ नहीं चाहिए।

आसमान में सूरज अब छिपने चला था, जहाँ शाम ने सुनहरा फर्श सजाया था और सफ़ेद फूलो का बिस्तर था। उसी समय करूणा को एक आदमी लाठी टेकता आता दिखाई दिया, मानो किसी बूढ़े की दर्द भरी आवाज हो। वो थोड़ी -थोड़ी देर में रूककर खाँसने लगता था। उसका सिर झुका हुआ था, करूणा उसका चेहरा न देख सकी, लेकिन चाल-ढाल से कोई बूढ़ा आदमी लगता था;

पर जैसे ही वह पास आ गया, तो करूणा पहचान गयी। वह उसका प्यारा पति ही था, हाय ! उसकी सूरत कितनी बदल गयी थी। वह जवानी, वह तेज, वह फुर्ती, वह सुंदरता , अब कुछ भी नहीं था। वो सिर्फ़ हड्‌डियों का एक ढाँचा रह गया था। न कोई संगी, न साथी, न यार, न दोस्त। करूणा उसे पहचानते ही बाहर निकल आयी, पर गले लगने की इच्छा मन में  ही रह गयी। जो सोचा था सब धरा रह गया । मन की ख़ुशी आँसुओं  में बह गई।

आदित्य ने घर में कदम रखते ही मुस्कराकर करूणा को देखा। पर उस मुस्कान में बहुत दर्द भरा हुआ था। करूणा ऐसी ढीली हो गयी, मानो दिल की धड़कने रूक गयी हो। वह लगातार आँखे खोले पति को देखे जा रही थी, मानो उसे अपनी आँखों पर अब भी यकीन न हो। स्वागत या दु:ख का एक शब्द भी उसके मुँह से न निकला। बच्चा भी गोद में बैठा हुआ डरी हुई आँखों से इस कंकाल को देख रहा था और माँ की गोद में चिपटा जाता था।

आखिर उसने दुःख से कहा— “तुम्हारी क्या हालत हो गयी है? बिल्कुल पहचाने नहीं जाते!”

आदित्य ने उसकी चिन्ता को शांत करने के लिए मुस्कराने की कोशिश करके कहा— “कुछ नहीं, जरा कमजोर हो गया हूँ। तुम्हारे हाथों का खाना खाकर फिर मोटा हो जाऊँगा।”

करूणा— “छी! सूखकर काँटा हो गये। क्या वहाँ भरपेट खाना नहीं मिलता? तुम कहते थे, राजनैतिक आदमियों के साथ बड़ा अच्छा व्यवहार किया जाता है और वह तुम्हारे दोस्त थे ? जो तुम्हें हर वक्त घेरे रहते थे और तुम्हारे पसीने की जगह खून बहाने को तैयार रहते थे?”

आदित्य ने माथा सिकोड़ा और बोले— “यह बड़ा ही कड़वा अनुभव है करूणा! मुझे न पता था कि मेरे कैद होते ही लोग इस तरह बदल जायेंगे, कोई हाल भी न पूछेगा। देश के नाम पर मिटने वालों का यही इनाम है, यह मुझे न पता था। जनता अपने सेवकों को बहुत जल्द भूल जाती है,

यह तो मैं जानता था, लेकिन अपने साथ में काम करने वाले इतने बेवफा होते हैं, ये मैंने पहली बार देखा । लेकिन मुझे किसी से शिकायत नहीं। सेवा ही अपना इनाम हैं। मेरी भूल थी कि मैं इसके लिए यश और नाम चाहता था।”

करूणा— “तो क्या वहाँ खाना भी न मिलता था?”

आदित्य— “यह न पूछो करूणा, बड़ी दुःख भरी कहानी है। बस, यही बहुत समझो कि जिन्दा लौट आया। तुम्हे देखना ही था, नहीं तो मुसीबते तो ऐसी थी की शायद मर ही जाता । मैं आराम करूंगा। खड़ा नहीं रहा जाता। दिन-भर में इतनी दूर से आया हूँ।

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करूणा— “चलकर कुछ खा लो, तो आराम से लेटो। (बच्चे  को गोद में उठाकर) बाबूजी हैं बेटा, तुम्हारे बाबूजी। इनकी गोद में जाओ, तुम्हें प्यार करेंगे।”

आदित्य ने आँसू-भरी आँखों से बच्चे  को देखा और उनका एक-एक रोम उन्हें तानें देने लगा। अपनी कमजोर हालत पर उन्हें कभी इतना दु:ख न हुआ था। भगवान् की दया से अगर उनकी हालत संभल जाती, तो वह फिर कभी देश के आन्दोलन के पास  न जाते। इस फूल-से बच्चे को इस तरह दुनिया  में लाकर,उसे  गरीबी में पालना, क्या ये सही था?

वह अब माँ लक्ष्मी की पूजा  करेंगे और अपना बचा हुआ जीवन बच्चे को पालने में बिताएंगे। उन्हें इस समय ऐसा लगा कि बच्चा उनका मजाक उड़ा रहा है, मानो कह रहा है— “मुझे दुनिया में लाकर मेरे लिए किया क्या ?” वो अपने बच्चे को अपने गले लगाने को बेचैन हो उठे, पर हाथ फैल न सके। हाथों में ताकत ही न थी।

करूणा बच्चे  को लिये हुए उठी और थाली में खाना निकालकर लायी। आदित्य ने आंसू भरी आँखों से थाली की ओर देखा, मानो आज बहुत दिनों के बाद कोई खाने की चीज सामने आयी है। वो जानता था कि कई दिनों के व्रत  के बाद और अपने शरीर की हालत देखते हुए  उसे अपनी जबान को काबू में रखना चाहिए पर सब्र न कर सका, थाली पर टूट पड़ा और देखते-ही देखते थाली साफ कर दी। करूणा डर गयी।

उसने दोबारा किसी चीज के लिए न पूछा। थाली उठाकर चली गयी, पर उसका दिल कह रहा था- इतना तो कभी न खाते थे।

करूणा बच्चे को कुछ खिला रही थी, कि अचानक कानों में आवाज आयी—“ करूणा!”

करूणा ने आकर पूछा— “क्या तुमने मुझे बुलाया?”

आदित्य का चेहरा पीला पड़ गया था और साँस जोर-जोर से चल रही थी। वो हाथों के सहारे वहीं टाट पर लेट गये थे। करूणा उनकी यह हालत देखकर घबरा गयी। बोली— “जाकर किसी वैद्य को बुला लाऊँ?”

आदित्य ने हाथ के इशारे से उसे मना करके कहा— “बेकार है करूणा! अब तुमसे छिपाना बेकार है, मुझे टीबी हो गया है। कई बार मरते-मरते बचा हूँ। तुम लोगों को देखना लिखा था ,इसलिए जान नही निकली। देखो प्रिये, रोओ मत।”

करूणा ने सिसकियों को दबाते हुए कहा— “मैं वैद्य को लेकर अभी आती हूँ।”

आदित्य ने फिर सिर हिलाया— “नहीं करूणा, सिर्फ़ मेरे पास बैठी रहो। अब किसी से कोई उम्मीद नहीं है। डाक्टरों ने जवाब दे दिया है। मैं तो हैरान हूँ कि यहाँ पहुँच कैसे गया। न जाने कौन सी दिव्य शक्ति मुझे वहाँ से खींच लायी।शायद यह इस बुझते हुए दीये की आखरी झलक थी। आह! मैंने तुम्हारे साथ बड़ा अन्याय किया। इसका मुझे हमेशा दु:ख रहेगा! मैं तुम्हें कोई सुख न दे सका। तुम्हारे लिए कुछ न कर सका। सिर्फ़ शादी का दाग लगाकर और एक बच्चे की जिम्मेदारी छोड़कर जा रहा हूँ। आह!”

करूणा ने मन को मजबूत करके कहा— “तुम्हें कहीं दर्द तो नहीं है? आग बना लाऊँ? कुछ बताते क्यों नहीं?”

आदित्य ने करवट बदलकर कहा— “कुछ करने की जरूरत नहीं प्रिये! कहीं दर्द नहीं। बस, ऐसा मालूम हो रहा है कि दिल बैठा जाता है, जैसे पानी में डूबा जाता हूँ। जीवन अब खत्म हो रही  है। मैं दीये को बुझते हुए देख रहा हूँ। कह नहीं सकता, कब आवाज बन्द हो जाये। जो कुछ कहना है, वह कह डालना चाहता हूँ, क्यों वह इच्छा ले जाऊँ। मेरे एक सवाल का जवाब दोगी, पूछूँ?”

करूणा के मन की सारी कमजोरी, सारा दुःख, सारा दर्द  मानो गायब  हो गया और उनकी जगह उस आत्मबल का जन्म हुआ, जो मौत पर हँसता है और दुःख के साँप से खेलता है। रत्नो से जड़ी मखमली म्यान में जैसे तेज तलवार छिपी रहती है,

पानी के कोमल बहाव में जैसे कितनी  ताकत छिपी रहती है, वैसे ही औरत का कोमल मन- हिम्मत  और धीरज को अपनी गोद में छिपाये रहता है। गुस्सा जैसे तलवार को बाहर खींच लेता है, विज्ञान जैसे पानी की ताकत को सामने ले आता है, वैसे ही प्यार औरत के साहस और धीरज को बढ़ा देता है।

करूणा ने पति के सिर पर हाथ रखते हुए कहा— “पूछते क्यों नहीं प्यारे!”

आदित्य ने करूणा के कोमल  हाथों को पकड़ते हुए कहा — “तुम्हारे विचार में मेरा जीवन कैसा था? बधाई के लायक ? देखो, तुमने मुझसे कभी कोई बात नहीं छुपाई। इस समय भी साफ़ साफ़ कहना। तुम्हारे विचार में मुझे अपने जीवन पर हँसना चाहिए या रोना चाहिए?”

करूणा ने जोश के साथ कहा— “यह सवाल क्यों करते हो स्वामी ? क्या मैंने कभी तुम्हारा ध्यान नहीं रखा? तुम्हारा जीवन बिलकुल भगवान् जैसा था, कोई लालच या मतलब नहीं , अलग विचार  और सभी खूबिया! परेशानियों से तंग आकर मैंने तुम्हें कितनी ही बार अपनी इस दुनिया में खींचना चाहा; पर उस समय भी मैं मन में जानती थी कि मैं तुम्हें ऊँचे आसन से गिरा रही हूँ।

अगर तुम हमारे प्यार और घर की जिम्मेदारियों में फँसे होते, तो शायद  मेरे मन को ज्यादा ख़ुशी होती ; लेकिन मेरी आत्मा को वह गर्व और ख़ुशी न होती, जो इस समय हो रही  है। मैं अगर किसी को बड़े-से-बड़ा आर्शीवाद दे सकती हूँ, तो वह यही होगा कि उसका जीवन तुम्हारे जैसा हो।“

यह कहते-कहते करूणा के बेजान चेहरे पर चमक आ गयी, मानो उसकी आत्मा दिव्य हो गयी हो। आदित्य ने गर्व भरी आँखों से करूणा को देखकर कहा-“ बस, अब मुझे चिंता नहीं, करूणा, इस बच्चे की ओर से मुझे कोई चिंता नहीं, उसके लिए तुमसे ज्यादा जिम्मेदार कोई नहीं हो सकता। मुझे विश्वास है कि जीवन-भर मेरे रूप में यह तुम्हारे सामने रहेगा। अब मैं मरने को तैयार हूँ।

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