(hindi) MOONWALKING WITH EINSTEIN – The Art and Science of Remembering Anything
इंट्रोडक्शन
क्या आपको कोई चीज़ याद करने में परेशानी होती है? क्या आप सिंपल काम जैसे ग्रोसरी शॉपिंग को याद रखने के लिए अपने फ़ोन का सहारा लेते हैं? क्या आप चाहते हैं कि आप कभी कुछ भी ना भूलें?
ये बुक आपको सिखाएगी कि सिर्फ़ अपने दिमाग का इस्तेमाल कर के आप अपनी याददाश्त को कैसे ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ा सकते हैं. हालांकि, सब कुछ याद रख पाना नामुमकिन है, लेकिन ये बुक आपके याद रखने की एबिलिटी को बढ़ाने में मदद करेगी.
आप चंकिंग (chunking) नाम की मेमोरी technique के बारे में सीखेंगे जिसका इस्तेमाल मेमोरी कम्पटीशन में किया जाता है. आप इस बारे में जानेंगे कि कैसे चीज़ें याद रखने से हमें लगता है कि हम एक लंबा जीवन जी रहे हैं.
आप मेमोरी पैलेस नाम की एक और मेमोरी technique के बारे में जानेंगे जो आपको ना सिर्फ़ चीज़ों को तेज़ी से याद करने में मदद करेगा बल्कि ये आपको अपने क्रिएटिव साइड को टटोलने के लिए भी encourage करेगा.
हमारी याद करने की एबिलिटी एक एक्सरसाइज की तरह होती है. आप जितना ज़्यादा इसका इस्तेमाल करेंगे ये उतना ही ज़्यादा मज़बूत होता जाएगा. तो क्या आप अपनी याददाश्त को इम्प्रूव करने के लिए तैयार हैं ? तो आइए शुरू करते हैं.
The Expert
वैसे तो ब्रेन बहुत सारे काम करता है लेकिन वो जो सबसे कमाल की चीज़ कर सकता है वो है याद करना. हालांकि, हम इसे सिर्फ़ तब नोटिस करते हैं जब ये काम नहीं करता लेकिन हमारी मेमोरी ही हमें बनाती हैं, हमें एक शेप देती है. ये उस दुनिया और लोगों को भी शेप देती है जिसमें हम रहते हैं. सोचिए वो कैसी दुनिया होगी जहां महान दिग्गजों जैसे आइन्स्टाइन या वैन गोग का एक्स्ट्राआर्डिनरी टैलेंट किसी को याद ही नहीं होगा?
जिस तरह एक्सरसाइज करने से हमारे मसल्स में एक शेप आता है, वो ज़्यादा स्ट्रोंग बनते हैं ठीक उसी तरह हमारी मेमोरी को भी बेहतर बनाया जा सकता है. ऐसा बिलकुल नहीं है कि आपके डीएनए में ही भुलक्कड़पन है. ये सिर्फ़ इस बात पर डिपेंड करता है कि आप इनफार्मेशन कैसे लेते हैं और उसे याद रखते हैं.
इस बुक के ऑथर जोशुआ एक मिशन पर निकले ताकि अपनी मेमोरी को हर एंगल से समझ सकें, स्टडी और इम्प्रूव कर सकें. जब वो अनगिनत किताबें, जर्नल पढ़ने में लगे हुए थे तो उनके सामने एक ही नाम बार-बार आ रहा था, वो नाम था के एंडर्स एरिक्सन.
एरिक्सन साइकोलॉजी के प्रोफेसर थे और उन्होंने मेमोरी के ऊपर कई स्टडीज की थी. उनकी स्टडीज ने सबूतों के साथ ये साबित किया था कि हमारी मेमोरी को बढ़ाया जा सकता है.
शायद एरिक्सन की सबसे फेमस स्टडी SF पर थी. एक साथी साइकोलोजिस्ट बिल चेस के साथ, उन्होंने SF को एक मेमोरी टेस्ट करने के लिए पैसे भी दिए जो लगभग 250 घंटों तक चला. वो टेस्ट इतना मुश्किल नहीं था. इस टेस्ट में कई नंबर्स को धीरे-धीरे पढ़ा जाता था और SF को उसे याद कर सेम आर्डर में रिपीट करना था. शुरुआत में, SF सिर्फ़ शुरू के 7 डिजिट को याद कर पाया. लेकिन एक्सपेरिमेंट के ख़त्म होते-होते SF 70 या ज़्यादा डिजिट याद कर पा रहा था. ये काफ़ी impressive था क्योंकि हम तो अक्सर 10 डिजिट का फ़ोन नंबर भी याद नहीं रख पाते.
इस ज़बरदस्त एक्सपेरिमेंट ने साबित कर दिया कि कोई भी इंसान अपनी मेमोरी को इम्प्रूव कर सकता है. इस डिस्कवरी से इंस्पायर होकर और भी कई स्टडीज और एक्सपेरिमेंट किए गए. जल्दी ही एरिक्सन का नाम मशहूर होने लगा और लोग उन्हें एक्सपर्ट्स का एक्सपर्ट कहने लगे. ये दावा कि किसी भी फील्ड में एक्सपर्ट कहलाए जाने के लिए एक इंसान को 10,000 घंटों की प्रैक्टिस करनी पड़ती है , इसके पीछे भी एरिक्सन का ही नाम आता है.
“एक्सपर्ट” का टाइटल बहुत मायने रखता है, वो बहुत ख़ास होता है. ये दिखाता है कि आपके पास सालों का एक्सपीरियंस है और लोग आपको एक गाइड के रूप में देखने लगते हैं. जो बात एक्सपर्ट्स को भीड़ से अलग बनाती है वो ये है कि वो ऐसी इनफार्मेशन देख लेते हैं जो नॉन एक्सपर्ट्स देखने में फेल हो जाते हैं. एक्सपर्ट हर चीज़ को अलग तरह से देखते हैं. काम करते-करते वो अपने सेंसेस को इस तरह ट्रेन कर लेते हैं कि बेकार की बातों को फ़िल्टर कर वो सिर्फ़ इम्पोर्टेन्ट चीज़ों पर फोकस करने लगते हैं. सबसे ज़रूरी बात, एक्सपर्ट्स ने इस बात को गलत साबित कर दिया है कि ब्रेन एक बार में सिर्फ़ 7 चीज़ों को ही याद कर सकता है.
हार्वर्ड के साइकोलोजिस्ट जॉर्ज मिलर ने कहा था कि हम सात के नंबर में इनफार्मेशन को प्रोसेस करते हैं. बहुत ज़्यादा चांस है कि हम सात के बाद चीज़ों को भूल जाएँगे. हमारे ब्रेन को इस तरह से बनाया गया है कि हम हर पल इतनी इनफार्मेशन अपने अंदर लेते हैं कि ब्रेन इससे थक सकता है या कंफ्यूज हो सकता है. ये सात चीज़ें तुरंत हमारी लॉन्ग टर्म मेमोरी में नहीं जाती. आज आप क्या महसूस कर रहे हैं आपको आज से एक साल बाद वो याद भी नहीं रहेगा. लॉन्ग टर्म मेमोरी को ज़्यादा ज़रूरी और बार-बार रिपीट किए जाने इनफार्मेशन के लिए रखा गया है.
तो फ़िर ये सात चीज़ें आखिर कहाँ जाती हैं? वो हमारी शोर्ट टर्म या वर्किंग मेमोरी में जाती है. ये वो जगह हैं जहां हमारा ब्रेन उस इनफार्मेशन को प्रोसेस करता है जो अभी हमें मिल रही है.
TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE
इंट्रोडक्शन
एक छुपे हुए दुश्मन से लड़ने से ज़्यादा बुरा क्या हो सकता है? इससे बुरा होता है जब आप दुश्मन को सामने देख तो पाते हैं लेकिन जान नहीं पाते कि वो असल में आपका दुश्मन है.
अफ़सोस और दुःख को पकड़ कर रखने से भी बदतर क्या होता है? इससे भी बुरा होता है जब आप अपने अतीत की जीत को पकड़कर रखते हैं और ये सोच लेते हैं कि आप हमेशा जीतने वाले हैं, लेकिन असल में ऐसा नहीं होता.
एक कूल और इजी गोइंग बॉस से भी बुरा क्या हो सकता है? इससे बुरा वो बॉस होता है जिसे इम्प्रेस करना लगभग नामुमकिन सा है.
इन सबको अगर मिला दिया जाए तो इससे भी बुरा क्या हो सकता है? इससे भी बुरा होगा इस समरी को ना पढ़ना क्योंकि इस समरी से आप कई बातें सीखेंगे जैसे कि अपने दुश्मनों को कैसे पहचानना है और उनपर हमला कैसे करना है, कैसे अपनी पिछली जीत और गलतियों में अटके रहने के बजाय उन्हें छोड़ देना है. इसके साथ-साथ आप ये भी सीखेंगे कि एक अच्छा लीडर कैसे बनें और अपनी टीम को कामयाबी की ओर कैसे आगे लेकर जाएं.
ग्रीक से लेकर पर्शियन तक, अंग्रेज़ों से लेकर भारतीयों तक, आप जानेंगे कि दुश्मन से कैसे लड़ना है और जंग कैसे जीतना है. तो चलिए इस दिलचस्प सफ़र को शुरू करते हैं.
Declare War on Your Enemies: The Polarity Strategy
401 B.C. का दौर था, एथेंस में ज़ेनोफोन नाम का एक आदमी रहता था. एक दिन, साइरस की ओर से उसे इनविटेशन मिला जिसने उसे हैरान कर दिया. साइरस पर्शियन राजा का भाई था जो ज़ेनोफोन को एक सिपाही के रूप में सेना में भर्ती करना चाहता था. लेकिन ये चौंकाने वाली बात क्यों थी? क्योंकि इन दोनों देशों के बीच बहुत लंबे समय से जंग छिड़ी हुई थी और ये बात बहुत अजीबोगरीब थी कि पर्शियन राजा अपने दूसरे दुश्मनों से लड़ने के लिए ग्रीक सैनिकों को सेना में भर्ती करना चाहते थे.
ज़ेनोफोन ने इनविटेशन स्वीकार करने का फ़ैसला किया, एक सैनिक के तौर पर नहीं बल्कि एक फिलोसोफर के तौर पर. उसने सोचा कि इसी बहाने कुछ एडवेंचर और रोमांच ही हो जाएगा. बाद में ज़ेनोफोन को पता चला कि साइरस का मकसद कभी ग्रीस को जीतना था ही नहीं. वो तो बस अपने भाई को गद्दी से उतारकर ख़ुद राजा बनना चाहता था.
लेकिन जंग के शुरुआत में ही साइरस मारा गया जिससे जंग का अंत हो गया. उसके बाद पर्शियन राजा ने ग्रीक सैनिकों से कहा कि उन्हें उनसे कुछ नहीं चाहिए, ना जंग , ना कुछ और. वो बस चाहते थे कि वो वापस लौट जाएं. पर्शियन राजा ने ग्रीक सैनिकों को भेजने के लिए अपने दूत के साथ एक पूरी सेना भेजी. लेकिन आधे रास्ते में ग्रीक सैनिकों ने देखा कि उनके पास खाने पीने का सामान बहुत कम था और आगे रास्ता और भी मुश्किल होने वाला था.
इसलिए ग्रीक सैनिकों ने पर्शियन राजा को एक ख़त भेजा कि उन्हें एक ऐसी जगह मिलना चाहिए जिस पर उनमें से किसी का भी अधिकार ना हो ताकि वो अपनी परेशानियों को राजा के सामने रख सकें. लेकिन ये क्या, पर्शियन राजा ने एक और सेना भेजी जिसने ग्रीक सैनिकों को चारों ओर से घेर लिया, फ़िर उन्हें गिरफ्तार कर उनका सिर धड़ से अलग कर दिया.
उनमें से एक सैनिक किसी तरह बचकर अपने कैंप पहुंचा और बाकियों को बताया कि उनके साथ क्या हुआ था. लेकिन उनमें से कुछ ने तो उस पर विश्वास नहीं किया और कुछ ने इतनी शराब पी रखी थी कि वो उसकी बात समझ नहीं पाए.
ग्रीक सैनिकों की समस्या ये थी कि वो अपने दोस्तों और दुश्मनों के बीच फ़र्क को पहचान नहीं पाए. दूसरा उनका कोई मकसद नहीं था. मकसद की कमी ही उनकी सबसे बड़ी दुश्मन थी. जब ये ख़बर ज़ेनोफोन तक पहुंची तो उसने मामला अपने हाथों में लिया. उसने बचे हुए ग्रीक सैनिकों को लीड करने और पर्शियन राजा के ख़िलाफ़ जंग का एलान करने का फ़ैसला किया. एक दूसरे से बहस करने और लड़ने के बजाय ज़ेनोफोन ने अपने सैनिकों से कहा कि वो अपनी एनर्जी और जोश को जंग के लिए बचाकर रखें. ग्रीक सैनिक बस घर जाना चाहते थे, लेकिन अगर उन्हें रास्ते में पर्शिया से लड़ना पड़ा, तो इसके लिए वो तैयार थे. अंत में, लगभग सभी ग्रीक सैनिक जिंदा घर लौटे. गौर करने की बात ये है कि उन्हें बस ये पता लगना था कि उनके दुश्मन कौन थे और उनसे लड़ना था.
तो इससे हम क्या सबक सीख सकते हैं – हमारा सबसे ख़तरनाक, बेरहम और तबाह करने वाला दुश्मन हम ख़ुद हैं. लेकिन हमें अपने बाहरी दुश्मन को भी भूलना नहीं है. अक्सर, हमें साफ़-साफ़ दिखाई नहीं देता कि वो कौन हैं लेकिन अगर हम फोकस करेंगे तो उन्हें पहचान लेंगे.
Polarity strategy एक मैग्नेटिक पोल के दो छोर की तरह हैं. वो एक दूसरे का विरोध करते हैं यानी resist करते हैं लेकिन एक दूसरे को बढ़ने के लिए पॉवर भी देते हैं. अपने दुश्मनों के साथ भी ऐसा ही होना चाहिए. अगर आप थोड़ी सी बुद्धि का इस्तेमाल करते हैं तो जो एनर्जी आपके दुश्मन आपको दे रहे हैं, आप उसका फ़ायदा उठा सकते हैं.
अगर आपको पता ही नहीं होगा कि आपके दुश्मन कौन हैं तो आपका लड़ाई जीतना नामुमकिन है. इसलिए इस स्ट्रेटेजी को सबसे पहले बताया गया है. बहुत सारे लोग जिन्हें हम अपना “दोस्त” कहते हैं असल में वो हमारे “दुश्मन” निकलते हैं. इसलिए आपको बहुत स्मार्टली ये पता लगाना होगा कि कौन आपकी तरफ़ हैं और कौन नहीं.
इस बात को याद रखें कि घटनाओं की उथल-पुथल के बीच अपने presence ऑफ़ माइंड को नहीं खोना है.