hindi) Battlefield of the Mind

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इंट्रोडक्शन

क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे मन में बुरे और डराने वाले विचार कहाँ से आते हैं? ऐसा क्या है या कौन है जो आपके मन को बेचैन कर देता है? आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ये सब आपके ख़ुद की वजह से नहीं होता है. जब ये बुरी भावनाएं आपको घेर लेती हैं तो आप किस चीज़ का सहारा लेते हैं या ख़ुद को कैसे संभालते हैं?

इस बुक में आप जानेंगे कि कैसे शैतान आपके माइंड में आपसे एक जंग लड़ रहा है. क्या आप जानते हैं कि हमारे थॉट्स कितने पावरफुल होते हैं? शैतान तो ये बात बहुत अच्छे से जानता है और इसलिए वो हर रोज़ आपके दिमाग में घुसने की और उस पर हमला करने की कोशिश करता है. आपको ये भी पता चलेगा कि शैतान ऐसा कैसे करता है और उससे लड़ने के लिए आप क्या कर सकते हैं.

आप ये भी जानेंगे कि इन सब में भगवान् का क्या रोल है, आपको उनके रहस्मयी तरीकों के बारे में पता चलेगा. इस बुक के ख़त्म होते-होते आपके पास उस शैतान को हराने के हथियार होंगे और आप उसके साथ आधी जंग भी जीत चुके होंगे. तो आइए बिना देर किए जंग के मैदान में चलते हैं.

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The Mind is the Battlefield

इस बुक की ऑथर जॉयस जब बाइबिल पढ़ रही थीं तो उन्होंने कुछ महसूस किया. बाइबिल में भगवान् के शब्दों में कई बातें ऐसी लिखी हुई थीं जो इंसान के माइंड के पॉवर के बारे में बताती हैं. इसका एक एग्ज़ाम्पल है, Proverb 23:7. बाइबिल के किंग जेम्स के version में ये कहा गया है कि एक आदमी अपने दिल में जो सोचता है, वो वैसा ही बन जाता है.

हमारे विचार हमारे एक्शन को कंट्रोल करते हैं. नेगेटिव माइंडसेट होने से नेगेटिव जीवन ही मिलेगा. लेकिन भगवान् पर ध्यान फोकस करना हमें पॉजिटिव माइंडसेट देगा. पॉजिटिव माइंड के ज़रिए हम उस रास्ते को देखना शुरू कर देंगे जो भगवान् ने हमारे लिए बनाया है और उस पर चलने लगेंगे.

इफिसियों 6:12 का शास्त्र कहता है कि असल में हर इंसान एक जंग लड़ रहा है. अब ये कोई  आम जंग नहीं है जहां खून बहाए जाते हैं, बम गिराए जाते हैं. बाइबिल में जिस जंग का ज़िक्र किया गया है, वो शैतान और उसकी सेना के साथ हमारी स्पिरिचुअल यानी आध्यात्मिक जंग है. शैतान अक्सर हमें धोखा देने की कोशिश करता है. वो हर उस चीज़ को दिखाता है जो झूठी है. शैतान कभी हमसे तुरंत झूठ नहीं बोलता, वो अपना समय लेता है क्योंकि आपको कमज़ोर करने के लिए वो एक शानदार प्लान बना रहा होता है.

शैतान धीरे-धीरे हमारे मन में डाउट, डर, शक जैसे बीज बोने लगता है. शुरुआत में हमें इसका एहसास नहीं होता लेकिन बाद में ये हमें अपनी गिरफ़्त में लेने लगता है, हमें चारों ओर से घेरने लगता है. शैतान में बहुत पेशेंस होता है. वो हमारे मन में जैसे एक किला बना लेता है और भगवान् के बारे में जो हमारा विश्वास और विचार है उसे झूठा साबित करने में लग जाता है. इस किले का मकसद है हमें हराना. ये किला ऐसा एरिया है जिसमें हम अपने गलत विचारों द्वारा कैद हो जाते हैं. ये सब हमारे माइंड में चलता रहता है. मन इसके जंग का मैदान बन जाता है. आइए इसे एक कहानी से समझते हैं जहां आप देख पाएँगे कि मार्था और जौश के दुखी शादीशुदा जिंदगी में मन की लड़ाई कैसे होती है.

मार्था जौश से ख़ुश नहीं थी. वो दोनों हमेशा झगड़ते रहते और एक दूसरे को कड़वी बातें सुनाते रहते. यहाँ तक कि उनके दो बच्चे भी इस नफ़रत और तनाव को महसूस करने लगे थे. मार्था जौश को घर का हेड नहीं बनने देना चाहती थी. वो अपनी ख़ुद की चलाने वाली इंडिपेंडेंट औरत थी. वो सोचती थी कि हमेशा हर फ़ैसला लेने का अधिकार सिर्फ़ उसके पास होना चाहिए. अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसी हालत में मार्था को भगवान् की शरण में जाना चाहिए. भगवान् इस यात्रा में उसकी मदद करेंगे. लेकिन बात ये है कि मार्था भगवान् पर विश्वास तो करती थी. वो ये भी जानती थी कि उसमें ऐंठ है और उसका रवैया ख़राब है लेकिन वो ये नहीं जानती थी कि उसे बदलना या ठीक कैसे करना है. वो इस तरह रियेक्ट इसलिए करती थी क्योंकि वो रियेक्ट करने का और कोई तरीका जानती ही नहीं थी.

यहाँ प्रॉब्लम ये है कि मार्था के मन में एक किला बना हुआ था जो जौश से मिलने से बहुत समय पहले ही बन गया था. बचपन से ही शैतान इस किले को मार्था के मन में मज़बूत करता जा रहा था. क्या लगता है आपको इसका क्या कारण हो सकता है? कारण ये था कि मार्था का बचपन बहुत दर्दनाक था. जब भी उसके पिता का मूड ख़राब होता तो वो उसे बुरी तरह मारते, उसे तकलीफ़ पहुंचाते. मार्था और उसकी माँ ने इस बुरे व्यवहार को कई सालों तक सहा.

अब जैसे-जैसे मार्था बड़ी होने लगी, शैतान का उस पर असर होने लगा. उसके मन में अब आदमियों के खिलाफ़ एक मज़बूत किला बनकर तैयार हो गया था. मार्था के मन में ये बात बैठ गई कि आदमी बेईमान होते हैं और भरोसा करने के लायक नहीं होते. उसे लगने लगा कि आदमी हमेशा उसका गलत फ़ायदा उठाएंगे. इसलिए मार्था ने ठान ली कि अब कोई उसके साथ बुरा व्यवहार नहीं कर सकता, उसे हुक्म नहीं दे सकता कि उसे क्या करना है कैसे करना है, ख़ासकर आदमी तो बिलकुल नहीं.

अब उसके मन में शैतान ने जो किला बनाया था उसे तोड़ने के लिए मार्था क्या कर सकती है? उसके पास एक ही हथियार है, भगवान् की कही हुई बातों को फॉलो करना. लेकिन सिर्फ़ बाइबिल पढ़ना या सुनना काफ़ी नहीं है. मार्था को बार-बार भगवान् की कही हुई बातों को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना होगा.

और भी स्पिरिचुअल हथियार हैं जिनका हम इस्तेमाल कर सकते हैं वो है स्तुति और प्रार्थना. जितना ज़्यादा आप भगवान् की सेवा करेंगे, उनके गुण गाएंगे और उनकी कही हुई बातों को फॉलो करेंगे उतना ही ज़्यादा आप अपने विचारों और शब्दों के इम्पोर्टेंस को जान पाएँगे. इन बातों को फॉलो करने से आप जानेंगे कि वो पवित्र आत्मा हमेशा आपको गाइड कर सही रास्ता दिखाने के लिए तैयार रहती है. इंसान शरीर के मन की बातों पर ध्यान लगाता है लेकिन spirituality हमें आत्मा की बातों पर मन लगाना सिखाती है.

आपकी सेवा या स्तुति ऐसी नहीं होनी चाहिए जिसे आप सिर्फ़ करने के लिए कर रहे हैं, बेमन से. आपको इसे पूरे मन से, सच्चे दिल से करना है. प्रार्थना का मतलब होता है मांगना, भगवान् से बात करना. ये उनसे मदद मांगना भी है और उनके साथ एक गहरा रिश्ता जोड़ना भी. प्रार्थना के ज़रिए हम भगवान् से जुड़ते हैं. ये जुड़ाव हमें सच की ओर ले जाता है और सच हमें हर बंधन, हर झूठ से आज़ाद कर देता है. इन्हीं हथियारों के द्वारा मार्था अपने मन में बने किले को तोड़ पाएगी. तब जाकर वो ये सच्चाई जान पाएगी कि हर आदमी उसके पिता की तरह नहीं होता और उसका पति तो बिलकुल उसके पिता की तरह नहीं था.

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A Vital Necessity

हमारे विचारों में बहुत शक्ति होती है. इसलिए हमें बहुत सावधान रहना चाहिए कि हम अपने मन में किस तरह के विचार रखते हैं. तो सोचने का सही तरीका क्या है? सही तरीका है जब हमारी सोच भगवान् की कही हुई बातों के समान हो जाती है या उनसे मेल खाने लगती है. ऑथर इस बात पर ज़ोर देकर कहती हैं कि अगर आपका माइंड नेगेटिव है तो आप कभी एक पॉजिटिव जिंदगी नहीं जी सकते.

Romans 8:5 दो अलग-अलग माइंड के बारे में बताते हैं – पहला जो हमारे शरीर का दिमाग होता है और दूसरा जो हमारी आत्मा का दिमाग होता है. शरीर का दिमाग उन विचारों के बारे में बताता है जो गलत हैं. ये उन नेगेटिव विचारों के बारे में बताता है जो हमारे मन में आते हैं. उसे इसलिए मांस का दिमाग कहा जाता है क्योंकि हम अपने लिए बुरी और अपवित्र चीज़ें करते हैं.  हम अपने शरीर की इच्छाओं को पूरा करने लगते हैं भले ही वो भगवान् की कही हुई बातों के खिलाफ़ ही क्यों ना जाता हो. ये मांस का दिमाग हमें पॉजिटिव जीवन जीने से रोक देता है. जबकि आत्मा के दिमाग की सुनना ज़्यादा ज़रूरी है क्योंकि ये भगवान् की तरह सोचने जैसा है जिससे पवित्र आत्मा संतुष्ट हो जाती है.

मान लीजिए कि आपको अपने बैंक से कॉल आता है कि आपने अपने अकाउंट से 850$ ज़्यादा निकाल लिए हैं. इसे सुनकर आप बहुत हैरान और शर्मिंदा हो जाते हैं. आपको याद आता है कि शायद इस महीने आप अपने अकाउंट में पैसे जमा करना भूल गए. आप जल्दी से बैंक पहुंचकर पैसे जमा करते हैं. इस मुद्दे को तुरंत हल करने से आगे और मुश्किलें खड़ी नहीं होंगी.

इसी तरह ऑथर सलाह देती हैं कि आप अपने मन को भी नया बनाएं. अगर आप सालों से गलत ढ़ंग से सोच रहे हैं तो आपका जीवन unorganized बनकर रह जाएगा. एक बात हमेशा याद रखें कि आपका जीवन तब तक आर्गनाइज्ड नहीं बन सकता जब तक आपका मन आर्गनाइज्ड नहीं बनेगा. शैतान ने आपके मन में जो किला बना लिया है उसे तोड़ने के लिए आपको सीरियस होना पड़ेगा.आपको  भगवान् की बताई हुई बातें, उनकी स्तुति और प्रार्थना के हथियारों का इस्तेमाल कर किले को तोड़ना होगा.

अपने मन को पॉजिटिव बनाने के लिए भगवान् से मदद मांगें. पवित्र आत्मा आपकी मदद करेगी, उन पर विश्वास करें. आप अकेले शैतान को नहीं हरा सकते और इसलिए भगवान् में विश्वास करने के लिए सही सोचना बहुत ज़रूरी है. ये बिलकुल जिंदा रहने के लिए दिल की धड़कन जितना ज़रूरी है. जिस तरह आपके फिजिकल शरीर को जीने के लिए खाने की ज़रुरत होती है उसी तरह आपके स्पिरिचुअल जीवन को भी पोषण की ज़रुरत होती है और ये हम हर रोज़ कुछ समय भगवान् के साथ बिताकर हासिल करते हैं.

बाइबिल कहती है कि एक पेड़ अपने फलों से ही जाना जाता है. हमारे जीवन का भी यही सच है. विचारों में फल लगते हैं. अच्छे विचार हमारी जिंदगी में अच्छे फल लाते हैं और बुरे विचार बुरे. एक अच्छा इंसान कभी दूसरों के बारे में बुरा नहीं सोचता उसी तरह एक दुष्ट इंसान के विचार कभी अच्छे नहीं होते.

When is My Mind Normal?

भगवान् में विश्वास करने वाले के माइंड की क्या स्टेट होनी चाहिए? इस सवाल में गोता  लगाने से पहले आपको इस प्रिंसिप्ल के बारे में पता होना चाहिए कि मन आत्मा की मदद करता है. जब कोई इंसान भगवान् का अपने जीवन में स्वागत करता है तो पवित्र आत्मा उस इंसान में रहना शुरू कर देती है. बाइबिल के अनुसार ये पवित्र आत्मा भगवान् के मन में भी बसती है. इसलिए आत्मा हमें भगवान् के ज्ञान को पाने में मदद करती है. ये आत्मा हम सब से और भगवान् के साथ जुड़ी हुई है. जब आत्मा हमें भगवान् का ज्ञान देती है तो हमें सच्चाई का पता चलता है

हालांकि आत्मा हमें ज्ञान देना चाहती है लेकिन वो हमेशा कामयाब नहीं हो पाती. इसका कारण है कि हम इतने बिजी हो गए हैं कि हमारा मन उन बातों पर ध्यान ही नहीं देता या उसे याद नहीं रखता जो आत्मा हमें बताती है. एक मन जो हमेशा बिजी रहता है वो abnormal मन होता है. एक नार्मल माइंड तब होता है जब वो आत्मा की बातों को सुनता है. ऐसा मन शांत और रिलैक्स होता है. एक नार्मल मन के अंदर डर, चिंता या बेचैनी जैसी नेगेटिव भावनाएं नहीं होतीं.

जॉयस ने अपने जीवन में हमेशा भगवान् से ज्ञान माँगा है. लेकिन वो ये समझ ही नहीं पाई कि उसके अंदर जो आत्मा बैठी है वो तो उसे कब से वही दे रही है जो वो भगवान् से मांग रही थीं. वो अपने आत्मा की आवाज़ इसलिए नहीं सुन पाई क्योंकि उनका मन इतना बिजी था, वहाँ इतनी उथल पुथल मची हुई थी.

मान लीजिए कि एक कमरे में दो लोग हैं. पहला आदमी दूसरे के कान में कुछ फुसफुसाने की कोशिश कर रहा है. लेकिन दूसरा आदमी इसे सुन नहीं पा रहा क्योंकि कमरे में बहुत शोर हो रहा था. बिलकुल ऐसा ही होता है जब आत्मा और परमात्मा हमसे बात करने की कोशिश करते हैं. आत्मा बहुत कोमल होती है उसकी आवाज़ धीमी होती है. इसलिए हमें अपने मन को जितना संभव हो सके उतना शांत बनाना चाहिए ताकि हम ये सुन सकें कि आत्मा हमसे क्या कहना चाहती है.

शैतान जानता है कि आपका मन और आत्मा साथ मिलकर काम कर रहे हैं. वो इस पर रोक लगाने के लिए आपके मन में एक जंग छेड़ देता है. वो आपके मन में लगातार डर और चिंता के बीज बोता जाता है. आप जितना अपने विचारों के बारे में सोचते हैं, आपका मन उतना ही थकने लगता है. इस थकान की वजह से वो आत्मा की धीमी आवाज़ को सुन ही नहीं पाता. इसलिए नार्मल माइंड वो होता है जिसमें शांति है और जो थका हुआ नहीं है.

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