(Hindi) Measure What Matters: OKRs: The Simple Idea that Drives 10x Growth

(Hindi) Measure What Matters: OKRs: The Simple Idea that Drives 10x Growth

इंट्रोडक्शन

क्या आपको कभी कभी ज़बरदस्त आईडिया आता है जिसे आप हकीकत में बदलने की कोशिश करते हैं लेकिन बुरी तरह से फेल हो जाते हैं? क्या फेलियर के बाद आप दोबारा  कोशिश करने में हिचकिचाते हैं? क्या दूरों को देखकर आपको ताज्जुब होता है कि ना जाने वो अपना गोल कैसे अचीव कर लेते हैं?

इस बुक में आपको पता चलेगा कि सिर्फ़ आईडिया आने से आप कुछ हासिल नहीं कर सकते. आप अपने आईडिया को कैसे आगे बढ़ाते हैं वो आपको जीत दिलाता है. आप जानेंगे कि गूगल, गेट्स फाउंडेशन और बोनों ऐसी कौन सी चीज़ है जो कॉमन है. आप ये भी समझेंगे कि आप उनके जैसे कैसे बन सकते हैं.

आप OKR यानी Objectives and Key Results के बारे में भी जानेंगे. ये वो स्ट्रेटेजी है जिसका इस्तेमाल जानी मानी कंपनियां अपने गोल को हासिल करने के लिए करती हैं. आप उन फैक्टर्स के बारे में जानेंगे जो इसे इफेक्टिव और सक्सेसफुल बनाते हैं. OKR में लाइफ साईकल और तीन फैक्टर होते हैं जो है set-up, OKR shepherd और midlife tracking. एक साईकल के ख़त्म होने के बाद, आपको स्कोर देने की, ख़ुद को जज या measure करने की यानी सेल्फ़-असेसमेंट और अंत में विचार करना होगा यानी रिफ्लेक्ट.

गोल्स के साथ एक आम समस्या ये है कि आप ये जान नहीं पाते कि आप प्रोग्रेस कर रहे हैं या नहीं और सबसे ज़रूरी बात आपको कैसे पता चलेगा कि आपने उसे अचीव कर लिया है?
ये बुक आपको सिखाएगी कि गोल सेट करना सिंपल और इजी कैसे बनाया जाए. ऐसा कोई गोल नहीं है जिसे हासिल करना नामुमकिन हो. आपको बस ये जानना होगा कि Objectives and Key Results को कैसे अप्लाई करें. तो आइए ये दिलचस्प सफ़र शुरू करते हैं.

Google, Meet OKRs

इस बुक के ऑथर जॉन ने पहले ही भांप लिया था कि गूगल कितना बड़ा बनने वाला है. 1999 में किसी ने उम्मीद नहीं की थी कि किसी के गैरज में बनाई गई एक स्टार्ट अप कंपनी टॉप पर पहुँच जाएगी. फ़िर भी जॉन को कंपनी और उसकी शुरुआत करने वाले लोगों पर पूरा यकीन था. यहाँ तक कि जॉन ने उस वक़्त अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा इन्वेस्टमेंट गूगल में ही किया था. ये कोई जुआ या दांव खेलने से कम नहीं था लेकिन जिस चीज़ ने जॉन को यकीन दिलाया था वो ये था कि उन्होंने गूगल के पोटेंशियल को देखा. उन्होंने ये भी देखा कि उसके फाउंडर लैरी पेज और सर्जरी ब्रिन में कुछ कर दिखाने का जुनून था. गूगल के ज़रिए को दुनिया के किसी भी कोने में जानकारी की पहुँच को आसान बनाना चाहते थे.

उन्होंने बड़े सपने देखे. जब जॉन ने पूछा कि उन्हें क्या लगता है वो कितना पैसा कमा पाएँगे तो लैरी ने कहा 10 बिलियन डॉलर. जॉन को ये सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि इतना पैसा माइक्रोसॉफ्ट और आईबीएम जैसी कंपनियां ही कमा सकती थीं. आसान शब्दों में, इन कंपनियों ने कई साल में पहले ख़ुद का नाम बनाया, सक्सेसफुल हुए और इस मुक़ाम पर थे कि इतना कमा सकते थे. लेकिन जॉन उनकी बातों पर हंसें नहीं कि उन्होंने कुछ ज़्यादा ही उम्मीद लगा रखी है. जॉन का मानना था कि वो इसे अचीव कर लेंगे और इसमें उन्होंने उनकी मदद भी की.

उस समय के दौरान गूगल में लगभग 30 एक्स्ट्राऑर्डिनरी टैलेंटेड लोग काम कर रहे थे. गूगल ने तब मार्केट में बस क़दम ही रखा था और गिने चुने लोग ही उनके बारे में जानते थे. एक इंजिनियर के तौर पर जॉन को इंटेल में एक बहुत ही टैलेंटेड मैनेजर एंडी ग्रोव से मिलने का मौक़ा मिला.  एंडी की वजह से जॉन गूगल को वो टूल दे पाए जिससे उन्हें अपनी प्रोग्रेस को measure करने में मदद मिली. ये टूल था OKR जिसका मतलब है Objectives and Key Results.

यहाँ objective शब्द का मतलब है वो गोल जो आप अचीव करना चाहते हैं. वो इम्पोर्टेन्ट और सही मायनों में inspirational होना चाहिए. तो वहीँ, key Results का मतलब है वो तरीका जिसके ज़रिए आप अपना objective हासिल कर सकते हैं.

Key Result यानी KR टाइम लिमिट में बंधा होना चाहिए और रीयलिस्टिक होना चाहिए और सबसे ज़रूरी बात कि वो measure करने के क़ाबिल होना चाहिए. जहां objective कई सालों तक बने रह सकते हैं वहीँ KR को जल्द से जल्द पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए. जैसे-जैसे आप अपने objective के क़रीब पहुँचते जाएंगे उन्हें भी डेवलप करना चाहिए.

बाकि चीज़ों की तरह गोल्स भी गलत हो सकते हैं. ये लोगों के फोकस को कम कर सकते हैं. गोल्स लोगों को इसे पूरा करने के लिए गलत तरीके अपनाने के लिए उकसा सकता है. साइकोलॉजी के प्रोफेसर, एडविन लोके ने गोल्स के बारे में एक प्रिंसिप्ल कहा था जो आज भी सच साबित होता है. पहला, आसान गोल्स की तुलना में मुश्किल गोल्स परफॉरमेंस को बढ़ा सकते हैं. दूसरा, जो गोल्स क्लियर नहीं है उनकी तुलना में फिक्स्ड और क्लियर गोल्स हाई प्रोडक्टिविटी लेवल को दिखाते हैं.

मैनेजमेंट के फील्ड में, 90% एक्सपर्ट मानते हैं कि जब गोल्स क्लियर और challenging होते हैं तो प्रोडक्टिविटी ज़्यादा होती है. क्योंकि आमतौर पर गोल्स लॉन्ग टर्म के लिए होते हैं, इसलिए ख़ुद को ट्रैक पर रखने के लिए आपको गोल मैनेजमेंट सिस्टम की ज़रुरत होगी. OKR आपको बड़े गोल्स को छोटे-कचोटे टुकड़ों में बांटने में मदद करता है. ये आपको अपने छोटे-छोटे जीत और नुक्सान को भी देखने में मदद करता है.

जब जॉन ने गूगल को OKR सिस्टम दिया तो उन्होंने कहा कि वो इसे आज़माएंगे. लैरी और सर्जी ने ये भी सोचा कि अपने गोल्स तक पहुँचने के लिए उन्हें किसी गाइड की भी ज़रुरत पड़ेगी. आज OKR गूगल के रोज़मर्रा के काम का हिस्सा बन गया है. इतना ही नहीं वो  अपने दूसरे प्रोडक्ट जैसे Chrome, YouTube और Google Play के लिए भी इस गोल मैनेजमेंट सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं.

गूगल के लोग अब अपनी टीम और ख़ुद की प्रोग्रेस को देखने के लिए इसके लिए मीटिंग करते हैं जहां वो इस पर चर्चा करते हैं, इसे तैयार करते हैं और इसमें बदलाव भी करते हैं. वो इस बात का ध्यान रखते हैं कि वो भी करें वो गूगल के विज़न और policy को ध्यान में रखकर करें. 2017 में, गूगल Fortune magazine के “Best Companies to work for” पर नंबर 1 पोजीशन पर था. गूगल लगातार 6 बार नंबर 1 की पोजीशन पर रहा है. ये हमें दिखाता है कि अपने गोल के लिए ठीक से प्लान कर उसे organize करना और उसके लिए एक स्ट्रक्चर बनाना किता ज़रूरी होता है.

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Focus and Commit to Priorities

एक सक्सेसफुल आर्गेनाइजेशन के सक्सेस के पीछे का कारण ये है कि वो अपने गोल्स को अचीव करने की ठान लेते हैं. एक बार जब वो अपना OKR तय कर लेते हैं तो बस उसे पाने की ठान लेते हैं. एक लीडर को पता होना चाहिए कि पूरे टीम की एनर्जी और टाइम को कहाँ इन्वेस्ट करना है.

गूगल का मकसद है कि किसी को बबी बड़ी आसानी से कोई भी इनफार्मेशन मिल सके. इस मकसद से गूगल Android और Google Earth लेकर आया. इसका आईडिया लैरी, सर्जी और उनकी एग्जीक्यूटिव टीम को आया था लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि सिर्फ़ टॉप पर रहने वाले लोग ही कमाल का आईडिया क्रिएट कर सकते हैं. टॉप लेवल के लोग पावरफुल और इफेक्टिव OKR बनाने के लिए फ्रंट लाइन एम्प्लाइज के साथ मिलकर काम करते हैं.

रिक क्लाउ की एक बड़ी समस्या थी. वो Youtube का प्रोडक्ट मैनेजर था और उसके होमपेज की ज़िम्मेदारी उसकी थी. उसकी प्रॉब्लम ये थी कि Youtube देखने वाले बहुत कम लोग ही साईट पर log in करते थे. ये एक प्रॉब्लम इसलिए थी क्योंकि जो यूजर log-in नहीं करते हैं वो कई feature यूज़ नहीं कर पाएँगे जैसे किसी विडियो को सेव करना या किसी चैनल को सब्सक्राइब करना. अगर लोग ये देखने में चूक गए कि Youtube कितना वैल्यू दे रहा है तो वो दूसरे प्लेटफार्म पर जाने लगेंगे.

इस प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए रिक और उनकी टीम ने 6 महीने का OKR बनाया. इसमें उन्होंने Youtube के सीईओ सलार कामांगर से भी मशवरा लिया. उसके बाद सलार ने गूगल के सीईओ लैरी पेज से सलाह ली. लैरी ने लॉग इन प्रॉब्लम में उनकी मदद की लेकिन लैरी ने OKR को बदलकर तीन महीने का कर दिया था. सभी की नज़रें रिक और उसकी टीम पर टिकी थीं. एक प्रोडक्ट मैनेजर के प्रोजेक्ट में मदद कर लैरी ने ये दिखाया कि हमें दूसरों को भी सक्सेसफुल होने में उनकी मदद करनी चाहिए. गूगल की कई दूसरी टीम भी रिक की मदद करने के लिए आगे आए.

लैरी ने publicly एक प्रोडक्ट मैनेजर के OKR के लिए ख़ुद को समर्पित कर दिया था. यही बात Intuit के सीईओ ग्रेट बिल कैम्पबेल ने कही थी. अगर आप कंपनी के सीईओ हैं तो सिर्फ़ खोखली बातें नहीं करनी चाहिए बल्कि अपनी कही बात पर ख़ुद भी अमल करना चाहिए. अगर आप जो कह रहे हैं वो ख़ुद नहीं करेंगे तो दूसरे कभी आपकी बातों को फॉलो नहीं करेंगे.
टॉप लेवल के बनाए हुए गोल्स को पूरे आर्गेनाइजेशन को समझने की ज़रुरत है. ये सुनने में आसान लग रहा होगा लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि कैसे कई कंपनियां इस स्टेज पर फेल हो जाती हैं. managers और executives के बीच एक survey किया गया था. उनसे पूछा गया कि उनकी कंपनी के लिए सबसे ज़रूरी क्या था. उनमें से बहुत से लोगों को इस सवाल का जवाब देने में बहुत मुश्किल हुई. इसलिए एक लीडर को खुलकर साफ़-साफ़ ये कम्यूनिकेट करना चाहिए कि कंपनी के गोल्स क्या हैं और उन्हें क्यों चुना गया है. जब लोगों को पता होता है कि उनके काम का एक मकसद है तो वो काम करने के लिए ज़्यादा मोटीवेट होते हैं.

एक बार OKR सेट कर देने का मतलब ये नहीं है कि वो पत्थर की लकीर हो गई. इसे तब भी बदला जा सकता है जब आप इसे पूरा करने के प्रोसेस में हों. वो परफेक्ट नहीं हो सकते, उनमें हमेशा इम्प्रूवमेंट की गुंजाइश होगी. आपको OKR को कम से कम रखना चाहिए यानी 3-5 की लिमिट में होना चाहिए. OKR बहुत ज़्यादा होने से ये पूरे आर्गेनाइजेशन को डिस्टर्ब कर सकता है. बहुत सारी चीज़ों पर फोकस करने से आपका ध्यान उन चीज़ों को measure करने से हटने लगता है जो असल में मायने रखते हैं. बस इतना याद रखें कि KR measure करने के लायक होना चाहिए. जब एक KR पूरा हो जाता है तो इसका मतलब है कि एक objective पूरा होने के करीब पहुँच गया है. अगर ऐसा नहीं होता तो इसका मतलब वो KR नहीं है. इस बात को ध्यान में रखें कि objective बड़े लॉन्ग टर्म गोल्स हैं. KR शोर्ट टर्म गोल्स हैं जो हमें objective को हासिल करने में मदद करते हैं.

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