(Hindi) Brain Rules for Baby: How to Raise a Smart and Happy Child from Zero to Five
इंट्रोडक्शन
इमेजिन कीजिए कि आप Isaac newton, फ्रेंक्लिन रूज़वेल्ट या किसी भी ऐसे महारथी के माता पिता हैं, जिन्होंने अपनी बुद्धि के द्वारा दुनिया में अपनी छाप छोड़ी है. क्या इतने बुद्धिमान बच्चे की परवरिश करने पर आपको ख़ुद पर गर्व नहीं होगा? हम सभी एक स्मार्ट और ख़ुशहाल बच्चा चाहते हैं, है ना?
वैसे, पेरेंटिंग यानी कि परवरिश करना आसान नहीं है और कई बार माँ बाप पूरी कोशिश करते हैं कि वो बच्चों को ठीक से बड़ा करें लेकिन अनजाने में गलत रास्ता अपना लेते हैं. मुझे यकीन है कि हम सभी ऐसे बच्चे चाहते हैं जो स्मार्ट भी हों और मेंटली ख़ुश भी ताकि वो अपनी काबिलियत से समाज में हमारा सिर उंचा कर सकें, ऐसे बच्चे जो कभी हमें प्यार करना या हमारी सलाह मानना बंद ना करें.
तो मैं आपको बता दूं कि ऐसा कर पाना नामुमकिन बिलकुल नहीं है. लेकिन आपको ये समझने की ज़रुरत है कि इसकी शुरुआत उसी पल हो जाती है जिस पल आपको पता चलता है कि आप माँ बनने वाली हैं. इस बुक में आप सीखेंगे कि जब आपका बच्चा गर्भ में हो तो उसकी देखभाल कैसे करें.
आप ये भी सीखेंगे कि आपके बच्चे के लिए सुरक्षा और जुड़ाव कितना ज़रूरी होता है. आप सीखेंगे कि अपने बच्चे के लिए एक ख़ुशहाल माहौल कैसे बनाएं और अपने रिश्ते की देखभाल कर उसे कैसे मज़बूत करें. अंत में आप सीखेंगे कि अपने बच्चे में अच्छी आदतें और मैनर्स को कैसे डेवलप करें.
तो क्या आप एक सुपर माँ या सुपर डैड बनने के लिए तैयार हैं? क्या आप दुनिया के अगले एक्स्ट्राऑर्डिनरी बच्चे की परवरिश करने के लिए तैयार हैं? ये बुक आपको ख़ुश, स्मार्ट और अच्छा व्यवहार करने वाले बच्चों की परवरिश के लिए ब्रेन के रूल्स को समझाएगी.
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PREGNANCY
जब बच्चा माँ के गर्भ में होता है तो उसकी मेंटल लाइफ बहुत एक्टिव होती है जो प्रेगनेंसी के स्टेज के साथ बढ़ती जाती है. शुरू के तीन महीनों के बाद अगले तीन महीनों में बच्चे का ब्रेन डेवलप होना शुरू हो जाता है. बच्चे का ब्रेन कितना स्मार्ट होगा ये काफ़ी हद तक इस बात पर डिपेंड करता है कि आप किस तरह का खाना खाते हैं और कितनी क्वांटिटी में खाते हैं. कई खाने की चीज़ें ऐसी होती हैं जो ब्रेन में नयूरोंस के डेवलपमेंट को बूस्ट करती हैं. नयूरोंस में किसी तरह की डेफिशियेंसी आपके बच्चे के कम IQ का कारण बन सकती है.
जब आप प्रेग्नेंट होती हैं तो आपसे कहा जाता है कि थोड़ा ज़्यादा खाओ ताकि आपका वेट बढ़ सके, है ना? लेकिन क्यों? क्योंकि जितना न्युट्रिशन और पोषण आपके बच्चे के ब्रेन को मिलेगा उसका ब्रेन उतना ही बड़ा होगा जिसके कारण उसका IQ ज़्यादा होगा. ब्रेन के वेट का जन्म के समय बच्चे के वेट से सीधा कनेक्शन होता है यानी बड़े ब्रेन वाले बच्चे ज़्यादा स्मार्ट होते हैं.
प्रेगनेंसी के चार महीनों में आपके बच्चे पर आपके द्वारा खाए हुए खाने का बहुत गहरा असर होता है. जब आपके बच्चे को पूरा न्यूट्रीशन नहीं मिलता तो उसके नयूरोंस पूरी तरह डेवलप नहीं होते और उनके बीच लंबा कनेक्शन नहीं बन पाता है. ऐसे बच्चों में बढ़ते समय बर्ताव में कई तरह की प्रॉब्लम देखने को मिलती है जैसे वो खेल कूद में अच्छा परफॉर्म नहीं करते, पढ़ने में कमज़ोर होते हैं और उनका IQ आमतौर पर कम होता है.
लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप अपने बच्चे का IQ बढ़ाने के लिए ज़रुरत से ज़्यादा खाना खाएं. बच्चे का वज़न सिर्फ़ 8 pound तक होना चाहिए. इसके ऊपर उनका IQ कम होने लगता है और वो हद से ज़्यादा मोटे हो जाते हैं. इसके साथ ही उन्हें हाइपोक्सिया या ऑक्सीजन का लेवल कम होने का भी खतरा होता है.
आप जिस तरह का खाना खाते हैं वो एक बहुत अहम् फैक्टर होता है. औरतों को प्रेगनेंसी के दौरान कुछ ना कुछ खाने की बहुत इच्छा होती है. किसी का आइसक्रीम खाने का मन करता है तो किसी का नींबू का आचार खाने के लिए जी ललचाता है. लेकिन क्या इसे खाने की असल में बच्चे की इच्छा होती है? नहीं. ये इच्छाएं सिर्फ़ ये दिखाती हैं कि उस औरत के खाने पीने की आदत कैसी है जैसे एक ऐसी लड़की जो स्ट्रेस होने पर चॉकलेट खाना पसंद करती है तो प्रेगनेंसी में भी उसे चॉकलेट खाने की इच्छा होगी, इसके चांस बहुत ज़्यादा हैं.
कुछ nutrient और विटामिन नयूरोंस के डेवलपमेंट के लिए बहुत फ़ायदेमंद माने जाते हैं. इसमें वो चीज़ें शामिल हैं जो ज़्यादातर हमारे पूर्वज खाया करते थे क्योंकि तब कुकिंग गैस और इतने मसालों की सुवुधा मौजूद नहीं थी यानी बहुत सारी सब्ज़ियाँ और फल. नॉन vegetarians के लिए रेड मीट में पाया जाने वाला आयरन बहुत फ़ायदेमंद होता है. इसके साथ-साथ नयूरोंस को ओमेगा 3 फैटी एसिड की भी ज़रुरत होती है.
अगर आप भी माँ बनने वाली हैं तो अच्छी क्वांटिटी में ऑयली फ़िश खा सकती हैं. रिसर्च से पता चला है कि ओमेगा 3 की कमी होने से ब्रेन से जुड़ी कई बीमारियाँ जैसे डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर और डिस्लेक्सिया हो सकते हैं. हार्वर्ड में किए गए एक स्टडी से पता चला कि प्रेगनेंसी के दौरान जिन औरतों ने भरपूर मछलियाँ खाई थीं उन्होंने ऐसे बच्चों को जन्म दिया जिनकी अटेंशन देने की एबिलिटी और मेमोरी बहुत स्ट्रोंग थी. इसलिए एक्सपर्ट्स का सुझाव है कि एक प्रेग्नेंट औरत को हफ़्ते में 12 ounce मछली खानी चाहिए.
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RELATIONSHIP
बच्चे के लिए सेफ़्टी यानी अपने आस-पास सुरक्षा का एहसास होना बहुत ज़रूरी होता है क्योंकि वो बहुत वल्नरेबल होते हैं. ना वो चीज़ों को ठीक से समझ सकते हैं और ना ही अपनी भावनाओं को खुलकर जता पाते हैं. कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप उसे कितने अच्छे से खिलाते हैं, उसके लिए सुरक्षा और लगाव ज़्यादा ज़रूरी होते हैं. अपने जन्म के पहले कुछ सालों में बच्चे अपने माता पिता या देखभाल करने वाले से एक मज़बूत रिश्ता बनाने की कोशिश करते हैं. जब उन्हें ये सब नहीं दिया जाता तो उनके भावनाओं की ज़रुरत अधूरी रह जाती है, वो अपने इमोशंस को मैनेज करना नहीं सीख पाते हैं और बड़े होने तक वो अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं.
हैरी हारलो विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी में साइंटिस्ट थे. वो अपने लैब में हाल ही में जन्मे रीसस बंदरों के बच्चों को देखकर इंसानों के बच्चों में वल्नेरेबिलिटी पर रिसर्च कर रहे थे. कई लोगों का कहना है कि हारलो के एक्सपेरिमेंट में बहुत क्रूरता का इस्तेमाल होता था. लेकिन हारलो ने साइकोलॉजी और बच्चे के साथ माँ बाप के रिश्तों की हमारी समझ में बहुत योगदान दिया है. उन्होंने देखा कि अपनी माँ के प्रति एक बच्चे का कितना गहरा लगाव होता है. उन्होंने लोगों को ये समझने में मदद की कि जब माता पिता बच्चे को सुरक्षा की भावना देंगे तो बच्चा ख़ुद-ब-ख़ुद उनकी ओर खींचा चला आएगा.
हारलो ने गुड़िया जैसी बंदर की दो माँ बनाई और उसे अलग अलग पिंजरों में रख दिया. एक गुड़िया बहुत ही सख्त तार से बनी थी जबकि दूसरी मुलायम कपड़ों से बनी थी. जब बंदर के बच्चे पैदा हुए तो हारलो ने उन्हें गुड़िया वाले पिंजरों में रखा. दोनों गुड़िया के साथ बंद बोतलों भी जोड़ दिए गए ताकि बच्चों को खाना खिलाया जा सके. हालांकि बच्चे दोनों गुड़िया से जुड़े bottle से खाना खा लेते थे लेकिन वो नर्म कपड़ों से बनी गुड़िया के साथ खेलना, उस पर चढ़ना और उछल कूद करना पसंद करते थे. लेकिन वो ऐसा क्यों करते थे?
क्योंकि सख्त तारों वाली गुड़िया उन्हें खाना तो देती थी लेकिन उन्हें नर्म कपड़ों वाली गुड़िया के साथ सुरक्षित महसूस होता था. उसके गर्म शरीर से बच्चों को आराम और प्यार का एहसास होता था. जब बच्चों को एक अलग कमरे में ले जाया जाता तो वो ज़ोर से उस नरम गुड़िया से चिपक जाते और उसे तब तक नहीं छोड़ते जब तक उन्हें एहसास ना जाए कि वो अपने नए माहौल में बेफ़िक्र होकर घूम सकते हैं. अगर उस कोमल गुड़िया को पिंजरे से निकाल दिया जाता तो बच्चे रोने लगते, चीखने लगते, बेचैन हो जाते थे मानों वो आराम और प्यार देने वाली उस गुड़िया को तलाश रहे हों.
हारलो के एक्सपेरिमेंट से पता चलता है कि mammals यानी दूध पिलाने वाले जानवरों के बच्चे को अपनी माँ से सुरक्षा और प्यार की ज़रुरत होती है. उन्हें जिंदा रहने के लिए सिर्फ़ खाने की नहीं बल्कि ममता की ज़रुरत है और वो चाहते हैं कि वो अपनी माँ से लिपट सकें, उसे बाहों में भर सकें. उनका छूना बच्चों को आराम पहुंचाता है. ये उन्हें इस बड़ी सी दुनिया में सुरक्षित महसूस कराता है.
आइए अब देखते हैं कि जब बच्चे को अपने माता पिता या देखभाल करने वाले से प्यार या लगाव नहीं मिलता तो क्या होता है. ये कहानी किसी लैब में बंदरों के ऊपर किए गए एक्सपेरिमेंट के बारे में नहीं है. ये कहानी उन हज़ारों बच्चों की है जिन्होंने हकीकत में अकेलेपन को महसूस किया है.
ये हादसा 1966 कमुनिस्ट रोमानिया के दौर में हुआ था. आबादी बढ़ाने के लिए वहाँ के तानाशाह निकोले सीयूसेस्क (Nicolae Ceausescu) ने एबॉर्शन को ban कर दिया और बच्चों को गिराने वाली दवाएं भी मिलनी बंद हो गई थीं. उसने आदेश दिया कि 25 साल और उसके ऊपर की उम्र की लड़कियों को, चाहे वो शादी शुदा हों या कुंवारी हों, उन्हें बच्चों को जन्म देना होगा. अगर वो ऐसा नहीं करेंगीं तो उन्हें भारी टैक्स देना होगा.
जैसे-जैसे ज़्यादा बच्चे पैदा होते जा रहे थे वैसे-वैसे ग़रीबी और बेघर लोगों की तादाद बढ़ती जा रही थी. इसलिए अब लोगों ने अपने बच्चों को अनाथ की तरह छोड़ देने का फ़ैसला कर लिया था. अब कचरे के डब्बे में, खुली सड़क पर यूहीं लोग बच्चों को छोड़ने लगे थे. निकोले ने उन हज़ारों बच्चों की देखभाल करने के लिए शहरों में अनाथालय बनाने का हुक्म दिया. लेकिन उस वक़्त रोमानिया बहुत कर्ज़े में डूबा हुआ था और ज़्यादातर पैसा उसे चुकाने में ख़र्च हो चुका था. इस वजह से अनाथालयों में खाना, बिजली, पानी और बाकि की बुनियादी ज़रूरतों की कमी होने लगी थी. जिन हालातों में बच्चे रह रहे थे वो बहुत दर्दनाक और दुखदायी था.
बच्चों को गोद में उठाने वाला या प्यार से सहलाने वाला कोई नहीं था. उनमें से कई बच्चों के मुहं में दूध की bottle रख कर उन्हें बिस्तर से बाँध कर अकेला छोड़ दिया गया था. उनके बिस्तर मल मूत्र और गंदगी से भर गए थे. बिना इंसानी ज़ज्बात के, बिना किसी देखभाल के वो बच्चे बस एक टक खाली दीवारों को देखते रहते. उनके कमरे में इतना सन्नाटा था कि किसी के रोने की आवाज़ तक सुनाई नहीं देती थी.
इन बच्चों के मरने की संख्या बहुत ज़्यादा थी. कुछ लोगों ने रोमानिया के अनाथालयों को बच्चों का नाज़ी कंसंट्रेशन कैंप कहना शुरू कर दिया था. इसलिए साइकोलोजिस्ट के एक ग्रुप ने गंभीर रूप से सदमे में आए इन बच्चों का इलाज करने का फ़ैसला किया.
Canada के कई परिवारों अपनी मर्ज़ी से इन बच्चों को अच्छे माहौल में बड़ा करने की ज़िम्मेदारी लिए आगे आए. लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगे दूसरों बच्चों की तुलना में उनमें कुछ फ़र्क नज़र आने लगे थे. जिन बच्चों को चार महीने की उम्र से पहले गोद लिया गया था, उनकी ग्रोथ ठीक थी. वो किसी भी नार्मल बच्चे की तरह ख़ुश थे. लेकिन जिन बच्चों को आठ महीने की उम्र के बाद अपनाया गया था वो गुस्सेल और झगड़ालू हो गए थे. वो लोगों से घुलते मिलते नहीं थे. इसके साथ-साथ वो ईटिंग डिसऑर्डर और कई तरह की बीमारियों का शिकार हो चुके थे.
क्योंकि इन बच्चों को कम उम्र में वो प्यार और सुरक्षा नहीं मिला, वो बहुत स्ट्रेस महसूस करने लगे थे. ये सदमा इतना गहरा होता है कि कई साल बीत जाने के बाद भी ये बच्चे नार्मल तरीके से ना जी पा रहे थे ना जिंदगी का आनंद ले पा रहे थे.
इसे अपने बच्चे के साथ ना होने दें. अपने बच्चे पर दिल खोलकर प्यार और देखभाल की छाया बनाए रखें, ख़ासकर पहले तीन सालों तक. इस समय बच्चे का ब्रेन डेवलप करने के स्टेज में होता है. जिस तरह से आप अपने बच्चे की देखभाल करते हैं, उसकी ज़रूरतों को पूरा करते हैं उसका सीधा असर उसके ब्रेन के उन हिस्सों पर पड़ता है जिसका संबंध स्ट्रेस और सोशल behavior से होता है.
जब भी आपका बच्चा रोए, चाहे वो भूख की वजह से हो या सिर्फ़ आपकी मौजूदगी के लिए हो, तुरंत उसके पास जाएं. इससे उसे महसूस होगा कि ये दुनिया रहने के लिए एक सुरक्षित जगह है. वो जान पाएगा कि उसे घबराने या चिंता करने की ज़रुरत नहीं है क्योंकि आप उसके लिए हमेशा मौजूद रहेंगे.