(hindi) FIRST THINGS FIRST

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इंट्रोडक्शन (Introduction)

क्या आपने कभी खुद से ऐसा प्रोमिस किया है जिससे कि आपको फायदा हो? जैसे कि खुद को हेल्दी कैसे रखा जाए या केक कैसे बेक करे पर लास्ट में आपने किया कुछ नहीं ? तो क्या आपको हर चीज़ करने के लिए 24 घंटे काफी लगते है ?

हम हमेशा यही सोचते है कि हमारे पास खुद के लिए कभी टाइम नही होता. हमे अपनी फेमिली को पालना होता है, हमारे ऊपर कई सारी रीस्पोंसेबिलीटीज़ है. हमारे अपने कमिटमेंट्स है जो हमे पूरे करने है. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आप जो काम करने के लिए टाइम निकाल रहे हो, क्या वो सच में वर्थ करता है ? अक्सर लोग कोई एक्टिविटी स्टार्ट करते है, फिर उसे छोडकर दूसरी करने लग जाते है. और आपको रिएलाइज़ भी नही होता कि उनमे से कुछ एक्टिविटीज़ तो एकदम बेकार होती है. हम कुछ ऐसा करना चाहते है जो मीनिंगफुल हो, और जिससे दुनिया का भी भला हो. आप भी चाहो तो आप भी खुद से ही शुरुवात सकते हो.

इस बुक में आप सीखोगे कि अपने लिए टाइम कैसे निकाला जाए और ऐसी कौन सी चीज़े है जो आपके लिए इम्पोर्टेंट है. और आप ये सीखोगे कि आपके लिए क्या सिग्नीफिकेंट है और क्या नहीं. क्योंकि हम अक्सर हर अर्जेंट टास्क को ऑटोमेटिकली इम्पोर्टेन्ट समझ बैठते है. और फाइनली इस बुक से आप फर्स्ट थिंग फर्स्ट का प्रोसेस सीखोगे यानी जो इम्पोर्टेंट है उसे प्रायोरिटी देना.

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द क्लॉक एंड द कम्पास (The Clock and the Compass)

हमे अपना टाइम कैसे स्पेंड करना चाहिए और हमारे लिए क्या इम्पोर्टेंट है, इसके बीच एक गैप है. द क्लॉक डेडलाइन्स और उन एक्टिविटीज़ को रीप्रेजेंट करता है जोकि हमे करनी है. ये हमे ट्रेक करने में हेल्प करता है कि हमे क्या करना चाहिए और कैसे अपना टाइम मैनेज करना है. दूसरी तरफ कंपास हमारी लाइफ के मिशन्स और डायरेक्शन को रीप्रेजेंट करता है. और ये उन एक्टिविटीज़ को भी रीप्रेजेंट करता है जो हमारे लिए बेहद जरूरी चीज़े है और हमे कम्प्लीट करती है. हालाँकि हम अपने टाइम और अपनी मोस्ट वैल्यूएबल चीजों के बीच बेलेंस बनाने की कोशिश करते है फिर भी ये थोडा मुश्किल है.

आप सोच रहे होंगे” सिर्फ टाइम मैनेजमेंट की बात है और कुछ नहीं”. पर ऐसा नही है. चाहे आप उन चीजों को करने की कोशिश करो जो जरूरी है, फिर भी चीज़े हाथ से निकलती चली जाती है. ऐसा क्यों है ? क्योंकि स्पीड में किया गया काम हमेशा एक्यूरेट हो, ये ज़रूरी नहीं. जैसे कि आप एक ही दिन में अपने सारे एसाइनमेंट्स पूरे करते हो ताकि नेक्स्ट डे रिलेक्स कर सको. लेकिन जल्दी के चक्कर में आपने स्पेशिफिक इंस्ट्रक्शन मिस कर दिए और आपके ग्रेड कम हो गए.

पहले क्या करे, क्या नही ये एक ऐसा चेलेंज है जो हम सब फेस करते है. हम वो काम करना चाहते है जो हमे ख़ुशी दे या फिर कुछ ऐसा जो हमारे वैल्यूज और प्रिंसीप्लस को स्ट्रोंग बनाये. पर हम अक्सर इसके लिए टाइम ही नहीं निकाल पाते क्योंकि हमे बाकी काम करने होते है जैसे ऑफिस जाना या अपनी फेमिली की केयर करना. टाइम मैनेजमेंट इतना मुश्किल इसलिए है क्योंकि हर एक्टिविटी जो टाइम मांगती है, या तो हमारे क्लॉक के लिए अच्छी है ( मैंने डेडलाइन से पहले प्रोजेक्ट फिनिश कर लिया) या हमारे कम्पास के लिए अच्छी है( बुक्स पढ़ना कितना रिलेक्सिंग है) लेकिन अफ़सोस! हम अक्सर दोनों साथ में पूरे नहीं कर पाते.

ये गैप काफी पेनफुल हो सकता है. लोगो को लगता है जैसे कि वो फंस गए उन्हें फुलफिलमेंट का एहसास नही होता क्योंकि उन्हें क्लॉक की डेडलाइन और शेड्यूल पूरे करने होते है. उन्हें डर होता है कि कहीं कंपास सेटिसफाई करने के चक्कर में कुछ गलत ना हो जाए. ये वो लोग होते है जिन्हें लगता है कि कोई और उनकी लाइफ जी रहा है.

और जहाँ तक बाकि लोगो की बात है, ये गैप उन्हें थोड़ा परेशान करता है. उन्हें पता नहीं होता कि उन्हें क्या करना है या क्या चाहिए. ऊपर से वो जो कर रहे होते है, उसे भी एन्जॉय नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें बाकी चीजों को ना कर पाने की गिल्टी होती है. बाकि सिर्फ एक खालीपन फील करते है. उनकी सारी हैप्पीनेस सिर्फ इन बातो पर टिकी होती है जैसे किसी कंपनी में हाई रैंक, लेकिन इसके बावजूद उन्हें हैप्पीनेस नही मिलती.

उन्हें ये अनप्लीजेंट्स फीलिंग्स इसीलिए आती है क्योंकि ये लोग उन चीजों के लिए टाइम ही नहीं निकाल पाते जो उन्हें वाकई में ख़ुशी देती है. जो उनके लिए रियली में मैटर करती है. जिन्हें पता नहीं होता कि उनके लिए क्या मैटर करता है, वो लोग एक मीनिंगलेस लाइफ जीते है यानी खालीपन से भरी हुई एक अनसेटिसफाईड लाइफ.

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द एवोल्यूशन ऑफ़ थ्री जेनरेशंस ऑफ़ टाइम मैनेजमेंट (The Evolution of the Three Generations of Time Management)

बात जब क्लॉक और कंपास की आती है तो लोग अक्सर दोनों में गैप क्लोज करने की कोशिश करते है. यानी अपनी रिस्पोंसेबिलिटीज़ और अपने पैशन के बीच बेलेंस. स्टेफन कोवे टाइम मैनेजमेंट की फील्ड में जाकर देखने की कोशिश करते है कि इतने सालो में लोगो ने इस गैप को कैसे सोल्व करने की कोशिस की है. हालाँकि लोगो की डिफरेंट अप्रोच रही है पर उन्होंने इनमे से 3 पर फोकस किया क्योंकि ये सबसे ज्यादा रिलेट करती है. कोवे उन्हें थ्री जेंरेश्न्स ऑफ़ टाइम मैनेजमेंट बोलते है.

फर्स्ट जेनरेशन: इसमें सब कुछ रीमाइंडर्स पर है. इस अप्रोच में टू-डू लिस्ट आपके बड़े काम आती है क्योंकि एक-एक कर आप अपने काम फिनिश करते जाते हो और क्रोस करते जाते हो. और अगर आप नहीं करते तो आप उन्हें आगे की टू-डू लिस्ट में डाल सकते हो. हालाँकि ये बड़ी अच्छी अप्रोच लगती है पर इसमें गलती की काफी गुंजाइश है. आप टू-डू लिस्ट में दो-चार चीज़े यूं ही भूल जाओगे. लाइफ में बिना किसी गोल या कम्पास के आपको पता नहीं चलेगा कि कौन सी चीज़ आपको सेटिसफाई करती है, इस जेनरेशन के लिए लोग सोचते है कि जो चीज़े सामने है,वही मोस्ट इम्पोर्टेंट है.

2 जेनरेशन प्लानिंग और प्रिपरेशन पर ज्यादा जोर देती है. अगर 1 जेनरेशन का ट्रेडमार्क टू-डू लिस्ट है तो इस जेनरेशन का ब्रांड है कैलेंडर. ये आपको एफिशिएंट बनने और प्लानिंग करने के लिए पुश करती है. आप अपनी मीटिंग्स, एक्टिविटीज़, या कमिटमेंट्स टाइम से पहले ही पूरे कर लेते हो. अगर आप अपने कैलेंडर को चेक करोगे तो हर दिन आपको एक एक्टिविटी करनी होगी. हालाँकि ये जेनरेशन के पास वो है जो 1 जेनरेशन के पास नही है फिर भी आपके शेड्यूल्स आपको एक तरह से अकेलापन फील कराते है. और जब आप अपने प्लान्स पर स्टिक रहते हो तो आपको अपने शेड्यूल के बीच आने वाली हर चीज़ बुरी लगती है.

3 जेनरेशन भी प्लानिग पर चलती है पर यहाँ पर प्रायोरिटीज़ फिक्स है और काम पर भी कण्ट्रोल रहता है. ये अप्रोच भी थोड़ी स्ट्रिक्ट और स्ट्रक्चर्ड फील हो सकती है. 3 जेनरेशन को जिस लेवल का फोकस और कंसंट्रेशन चाहिए, उसे मेंटेन करना बड़ा मुश्किल है.

इसलिए स्टीफन कोवे के हिसाब से हमे 4 जेनरेशन ऑफ़ टाइम मैनेजमेंट की जरूरत है. ये अप्रोच पहले की जेंरेशंस की वीकनेसेस को छोडकर उनकी सारी स्ट्रेंग्थ का कॉम्बिनेशन है. ये ना सिर्फ टास्क को पूरा करने पर फोकस करती है बल्कि इन्सान की क्वालिटी ऑफ़ लाइफ इम्प्रूव करती है और उसकी फुलफिलमेंट भी बढ़ाती है. नेक्स्ट चैप्टर्स में हम इसके बारे में डिटेल्स से पढ़ेंगे.

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द अर्जेंसी एडिक्शन (The Urgency Addiction)

इससे पहले कि हम 4थ जेनरेशन में आये, आपको दो फैक्टर्स पता होने चाहिए जो हमारे टाइम स्पेंडिंग हैबिट पर काफी बड़ा इम्पैक्ट डालते है. और ये दो फैक्टर्स है अर्जेंसी और इम्पोर्टेंस. 4थ जेनरेशन काफी हद तक इम्पोर्टेंस फैक्टर पर डिपेंड है. यानी जब आप वो करते हो जो रियली में इम्पोर्टेंट तो है पर अर्जेंट नही. इससे आप फर्स्ट थिंग्स फर्स्ट में रियली सक्सेसफुल रहते हो. तो ये जानने के लिए हम पहले अर्जेंसी के बारे में सीखेंगे कि ये आपकी लाइफ को कैसे अफेक्ट करती है और आप कौन सी अप्रोच यूज़ कर रहे हो या फिर आपको अप्रोच चेंज करनी चाहिए या नही.

ऐसी सिचुएशन में जहाँ आपको कोई भी प्रोब्लम सक्सेसफूली मैनेज करने की हैबिट हो वहां आप को अर्जेंसी की आदत सी हो जाती है. जैसे कि आप महीने भर की रीपोर्ट्स एक रात में ही फिनिश कर लेते हो, या कई वीक्स पहले का स्कूल प्रोजेक्ट कुछ ही घंटो में निपटा देते हो. आपको अर्जेंट प्रोब्लम्स सोल्व करना अच्छा लगता है. इंस्टेंट रीजल्ट्स इंस्टेंट सेटिसफेक्शन देते है. जब हम जल्दी में कुछ करते है तो लगता है कि हम बिज़ी है और हमारा बिज़ी होना ही हमे इम्पोर्टेंट फील कराता है. ये हमे वेलिडेट करता है पर साथ ही लाइफ की कुछ वैल्यूएबल चीजों से भी दूर करता है.

क्या आप किसी फ्रेंड को ये बोलते वक्त गिल्टी फील करते हो कि सॉरी मै मिलना तो चाहता हूँ पर मेरा एक अर्जेंट प्रोजेक्ट है ? या शायद आप खुद को ये बोलकर मना लेते हो” एक्सरसाइज़ से भी ज्यादा और इम्पोर्टेंट काम पड़े है”. आप शायद सोचते होगे” वेल, कम से कम मैंने कुछ किया तो सही?’ लेकिन ऐसा नही है. आप बस उन चीजों को टाइम दे रहे हो जो आपके लिए असल में वैल्यूएबल है ही नही. हर काम हमेशा अर्जेंसी में करने से आप उन चीजों को मिस कर रहे हो जो लाइफ में बेहद जरूरी है. आप खुद को इतना बिज़ी कर लेते हो कि ये सोचने की भी फुसर्त नही मिलती कि आपके लिए क्या इम्पोर्टेंट है और क्या नही.

तो फिर आप ही बताओ आपकी हेल्थ या आपकी फेमिली से बढ़कर कौन सा काम इम्पोर्टेंट है ? और सच जानकर आप हैरान रह जाओगे. असल में जो चीज़े वाकई में इम्पोर्टेंट है, वो हम पर बिल्कुल भी प्रेशर नही डालती है. ये वो काम ही जो बिलकुल भी अर्जेंट नही लगते हालंकि इन्हें हमे सबसे ज्यादा प्रायोरिटी देनी चाहिए. अब जैसे कि हेल्दी बॉडी और माइंड के लिए एक्सरसाइज़ बहुत जरूरी है. आप इसे इम्पोर्टेंट तो समझते हो पर अर्जेंट नहीं. और इसे डिले करते रहते है जब तक कि कोई हेल्थ प्रोब्लम ना आ जाए.

अर्जेंसी और इम्पोर्टेंस आपकी लाइफ में क्या इम्पेक्ट डालती है, इसे समझने के लिए टाइम मैनेजमेंट मेट्रिक्स पर नजर डालो और देखो कि असल में हम सबसे ज्यादा किस क्वाड्रेंट में टाइम स्पेंड करते है.

क्वाड्रेंट 1: अर्जेंट और इम्पोर्टेंट : ये वो एक्टिविटीज़ है जो आपको तुरंत करनी है. जैसे कि आपको कस्टमर हैंडल करना है जो गुस्से से चिल्ला रहा है या ईमेल्स पे ईमेल्स भेज रहा है. इस क्वाड्रेंट में हम काफी टाइम स्पेंड करते है क्योंकि हमे ये इम्पोर्टेंट और अर्जेंट दोनों लगता है, हम यहाँ तुंरत एक्शन लेते है. पर ज़रा खुद से पूछो” जो एक्टिविटी आप कर रहे हो क्या उसे अभी करना जरूरी है”? क्या आप उसे सिर्फ इसलिए कर रहे हो कि वो अर्जेंट लग रही है ? असल में हर काम को अर्जेंट लेने से हम अपना काफी टाइम बेकार में वेस्ट करते है.

क्वाड्रेंट 2: इम्पोर्टेंट पर अर्जेंट नही: इसे क्वाड्रेंट ऑफ़ क्वालिटी और पर्सनल लीडरशिप बोलते है. क्वाड्रेंट 2 में हम अपनी प्लानिंग करते है और उन पर एक्शन लेते है. इसमें हम जो भी एक्टिविटीज़ करते है वो हमारी स्किल्स डेवलप करती है जिससे कि हम खुद को और दूसरों को भी फायदा पहुंचा सके. जैसे किसी ओल्ड फ्रेंड के साथ फिर से रिलेशनशिप मेंटेन करना या किसी इम्पोर्टेंट मीटिंग की तैयारी करना. जब हम काफी टाइम स्पेंड करते है तो हम क्वाड्रेंट 1 को छोटा बना देते है क्योंकि प्लानिंग और तैयारी करना क्वाड्रेंट 1 का दुश्मन है. क्वाड्रेंट 2 हम पर एक्शन नहीं लेता बल्कि हम इस पर एक्ट करते है. ये मोस्ट आइडियल क्वाड्रेंट है जहाँ हमे अपना मोस्ट ऑफ़ टाइम स्पेंड करना चाहिए क्योंकि ये हमारे कंपास को प्रायोरिटी देता है. यही से हम अपनी लाइफ के गोल्स और पैशन्स पर फोकस करते है.

क्वाड्रेंट 3: अर्जेंट पर इम्पोर्टेंट नही: ये क्वाड्रेंट 1 की तरह है और इसे क्वाड्रेंट ऑफ़ डिसेप्शन भी बोलते है. हमे लगता है कि कुछ अर्जेंट है तो हम अपना कंपास पूरा कर रहे है पर ऐसा नही है. इसलिए इसे क्वाड्रेंट ऑफ़ डिसेप्शन बोलते है. हम खुद को बिज़ी शो करने के लिए बेकार के कामो में उलझे रहते है. खुद से पहले हम औरों के गोल्स को प्रायोरिटी देते है. जैसे आप अपने कलीग को प्रोजेक्ट में हेल्प करते हो या फिर अपने बॉस के एक्स्ट्रा काम निपटाते हो. आपको ये सब करना इम्पोर्टेंट लगता है पर इससे आपको कोई फायदा नही होता.

क्वाड्रेंट 4: ना अर्जेंट और ना ही इम्पोर्टेंट: इसे क्वाड्रेंट ऑफ़ वेस्ट बोलते है. हम इस क्वाड्रेंट में वो सारी एक्टिविटीज करते है जो हमे रिलेक्स फील कराती है. क्योंकि क्वाड्रेंट 1 और 3 में ज्यादा टाइम स्पेंड करना काफी स्ट्रेसफुल होता है. इसलिए ये हमारा रिलेक्स ज़ोन है. वैसे हमे ये भी पता होता है कि इसमें हम टाइम वेस्ट करते है पर हम खुद को रोक नही पाते. अब जैसे कि माइंडलेस मूवीज़ या सीरियल्स देखना या ऑफिस के लंच ब्रेक में कलीग्स से देर तक गप्पे मारना.

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